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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से* *20 अप्रैल 2021* 823 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। *श्री राम जय राम जय जय राम* *श्री राम जय राम जय जय राम* *पतित पावन सीताराम* *रघुपति राघव राजा राम* *जय श्री राम* जब हनुमान जी वायु मार्ग से लंका की ओर जा रहे थे तब लंका में जब वह पहुंच गए और वहां से अंदर आकाश में जब वह वायुमंडल में थे, तब उनको यह सुनकर अचरज हुआ कि वहां राम राम राम नाम का भजन कीर्तन,गान हो रहा है, हनुमान जी ने सोचा कि मैं कहां आ गया?मैं अयोध्या में हूँ या लंका में हूँ? यदि मैं लंका में हूं तो यहां राम राम राम कौन कह रहा है? लंका में राम का नाम लेने वाले विभीषण थे, जो राम के भक्त थे और साथ ही उन्होंने हनुमान जी की सीता की खोज में सहायता की। विभीषण राम भक्त थे और उन्होंने अपनी महल की दीवारों पर सर्वत्र राम-राम लिखवा रखा था। एक समय उनके भाई रावण जब उनसे मिलने आए तो देखा कि सर्वत्र राम राम लिखा हुआ था।उनहोने विभीषण को फटकारा कि तुमने सर्वत्र राम नाम क्यों लिखा हुआ है या यह यहां नहीं चलेगा, तब विभीषण ने समझाया कि,यह वह राम नाम नहीं हैं।इसका मतलब कुछ अलग हैं। रा मतलब रावण और म मतलब मंदोदरी। तो यह तो आप दोनों का ही नाम है। रावण एवं मंदोदरी इस प्रकार भगवान के भक्त बहुत ही चतुर होते हैं वह एक बहुत अच्छे प्रचारक थे उन्होंने रावण को दूसरे तरीके से समझा दिया तब रावण खुश हो गए और फिर कहते हैं कि रावण ने पूरी लंका के दीवारों पर किसी विशिष्ट पेंट से राम नाम सर्वत्र लिखवा दिया।रावण को भी इससे अज्ञात सुकृति मिलने वाली है।अज्ञात मतलब सुकृत जब हम कुछ अच्छा कृत्य करते हैं तब हमारी सुकृति बढ़ती है। ऐसा ही कृत्य रावण ने किया। जब हनुमान जी को रावण के समक्ष उपस्थित कराया गया, जब यह रामदूत हनुमान रावण के समक्ष थे तब विभीषण ने कहा था कि सीता को लौटा दो,अभी लौटा दो नहीं तो देखिए हनुमान ने तो खोज ही लिया हैं कि सीता कहां है। जब हनुमान लौट के जाएगे राम के पास तो उसे तो पता है ही कि सीता अशोक वाटिका में हैं ।क्योंकि राम लंका में तो आने ही वाले हैं और जब श्री रामआएंगे तो तुम्हारी जान लें लेंगे भैया,इसलिए लौटा दो सीता को।रावण ने विभीषण की एक भी नहीं मानी।विभीषण के उपदेश और सलाहे चल ही रही थी कि रावण ने विभीषण को अपने राज्य से निष्कासित कर दिया। यहां से चले जाओ। तब तक राम अपनी सेना के साथ तैयार थे। वानर और भालू सेना के साथ। वहां सुग्रीव अंगद और कई महान योद्धा थे।जब वह रामेश्वर तक पहुंचे तो लंका से विभीषण भी आ गए। हनुमान जी तो छलांग लगाकर आ गए थे। उसी प्रकार विभीषण भी आकाश मार्ग से रामेश्वर पहुंच गए थे। जब वह दिखाई दे रहे थे तब कई सारे तर्क चल रहे थे। यह कौन हैं और क्यों आ रहा है। यहां सब चर्चा कर रहे थे कि उन्हें लौटा देना चाहिए या उनका स्वागत करना चाहिए? तब श्री रामचंद्र ने उनका स्वागत किया।भगवान शरणागत वत्सल जो हैं।जो शरणागत भगवान की शरण में आते हैं उनके प्रति भगवान का वात्सल्य हो जाता हैं। ऐसे हैं भगवान श्री राम। *श्री रामचंद्र भगवान की जय......* किसी ने कहा कि अभी तो यह विभीषण शरण में आ रहे हैं, आप उनको शरण दे रहे हो और अगर रावण आएगा तो कया आप उसको भी शरण दोगे तो राम ने कहा कि जरूर क्यों नहीं। उसको भी शरण दे दूंगा। मैं लंका का सारा राजय उसको ही दे दूंगा। वह लंकेश तो हैं ही लेकिन उसकी जान नहीं लूंगा। यदि वह मेरी शरण में आता है तो मैं उसे श्रीलंका का राजा बनाऊंगा।तो रावण बिचारा शरण में तो नहीं आया। जब राम अपनी पूरी सेना के साथ पुल से लंका पहुचे और जब युद्ध चल रहा था( रामायण में छठवां कांड युद्ध कांड हैं) जैसे कुरुक्षेत्र में युद्ध चल रहा था वैसे ही यहां भी युद्ध चल रहा था। लंका का युद्ध कई महीनों तक चलता रहा और कई सारे राक्षस मारे गये।श्री हरि।ऐसा सुनने और पढ़ने में आता कुंभकरण सो रहे थे जब युद्ध चल रहा था कुंभकरण आराम से सो रहा था। रावन ने सोचा कि अरे भाई राम तो कई जनों की जान ले रहे हैं, कईयों की हत्या कर रहे हैं और इसी के साथ ही उनको मुक्त भी कर रहे हैं जो भगवान के हाथों से या उनकी उपस्थिति में मारा जाता हैं,उसकी मुक्ति निश्चित हैं। वैसे रावण भी बड़ा विद्वान था, शास्त्रज्ञ था। शास्त्रों को जानता था। उसने सोचा कि यह मेरा भैया कुंभकरण सोता ही रहेगा तो फिर इसका नंबर नहीं लगेगा। राम इसकी जान नहीं लेंगे और मेरा भाई मुक्त नहीं होगा ।तब उसने कुंभकरण को जगाया।कुंभकरण 6 महीने सोते थे और 1 दिन के लिए उठते थे। उठने के बाद थोड़े समय बात करते थे,खाते पीते थे और बाद में पुनः सो जाते थे और पुनः 6 महीने के बाद उठते थे,खाते पीते थे और सोते थे।ऐसे ही उनका चलते रहता था पर अब की बार जब वह उठे,उन्हें युद्ध के बारे में पता चला और यह भी पता चला कि रावण ने सीता का अपहरण किया हैं,तब उनहोंने रावण को समझाया कि भैया सीता को लौटा दो।यह कार्य ठीक नहीं है। कृपया आप सीता को लौटा दो।यह बात रावण ने नहीं मानी। वैसे यह बात रावण को कई और लोगों ने समझाई थी पर रावण ने किसीकी ना मानी। जब कुंभकरण भी युद्ध खेल रहा था तब उसका भी भगवान श्री रामचंद्र ने उद्धार किया और याद रखिए कि कुंभकरण और रावण जय और विजय हैं जिन को श्राप मिला है और श्राप क्या था ?वह तीन राक्षस योनि को प्राप्त करेंगे। 3 जन्मों में राक्षस योनि को प्राप्त करेंगे। तो पहले जन्म में सत्तयुग में हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु बने थे। भगवान ने उनका वध किया। उनको मुक्त किया और फिर दूसरा जन्म त्रेता युग में वही जय और विजय बने हैं,रावण और कुंभकरण और उसी के साथ श्री रामचंद्र उनका उद्धार करने वाले हैं। और उसी के साथ रावण का भी नंबर लग ही गया और भगवान श्री रामचंद्र ने अंतिम बान रावण के उद्धार के लिए,कल्याण के लिए चलाया और इस समय प्रतीक्षा कर रहा था कि कब राम मुझे वह बान मारते हैं और कब मैं मरता हूं। कब मेरी मृत्यु होंगी और मृत्यु के साथ मेरा उद्धार होगा। श्री रामचंद्र के हाथों से मेरा उद्धार होगा।मन ही मन में रावण ऐसा विचार कर ही रहा था। तब रावण का भी उद्धार रामचंद्र जी ने किया। *हा हताः स्म वयं नाथ लोकरावण रावण कं यायाच्छरणं लङ्का त्वविहीना परार्दिता ॥२६ ॥* *श्रीमद्भागवत 9.10.26* *अनुवाद:- हे नाथ ! हे स्वामी ! तुम अन्यों की मुसीबत की प्रतिमूर्ति थे ; अतएव तुम रावण कहलाते थे । किन्तु अब जब तुम पराजित हो चुके हो , हम भी पराजित हैं क्योंकि तुम्हारे बिना इस लंका के राज्य को शत्रु ने जीत लिया है बताओ न अब लङ्का किसकी शरण में जायेगी ?* लंका की सारी स्त्रियां रण आंगन में पहुंच गई यह कोई क्रीडांगण नहीं है ये रण आंगन हैं रण मतलब युद्ध आंगन युद्ध करने की जगह। वहां सभी स्त्रियां पहुंचीं और अपने-अपने पति को देखा। किसी का भाई या किसी का सगा संबंधी,किसी का पुत्र, वहां मरे पड़े हैं। तब मंदोदरी भी खोजती हुई आयी कि कहां है मेरे पतिदेव।तब वह वही खड़ी थी,रावण के शव के पास और कहती हैं- हें रावण *नवै वेद महाभाग भवान्कामवशं गतः । तेजोऽनुभावं सीताया येन नीतो दशामिमाम् ॥ २७ ॥* *श्रीमद्भागवत 9.10.27* *अनुवाद:-हे परम सौभाग्यवान , तुम कामवासना के वशीभूत हो गये थे ; अतएव तुम सीतादेवी के प्रभाव ( तेज ) को नहीं समझ सके । तुम भगवान् रामचन्द्र द्वारा मारे जाकर सीताजी के शाप से इस दशा को प्राप्त हुए हो ।* तुम्हारी यह जो दशा हुई है, जो मैं देख रही हूं, यह किसका परिणाम है?जो तुम काम के वशीभूत हुए थे,काम में तुम जो नम्बर वन बने थे, उसका ही परिणाम हैं ये दशा, जिसको मैं देख रही हूं। यह मंदोदरी के वचन हैं।मंदोदरी पतिव्रता नारी के रूप में भी प्रसिद्ध हैं।मंदोदरी के इस कथन को सुखदेव गोस्वामी ने राजा परीक्षित को सुनाया। श्रीमद्भागवत के नवम स्कंध के दसवें अध्याय में आप इसे पढ़ सकते हैं। तब मंदोदरी ने कहा *कृतैषा विधवा लङ्का वर्ष च कुलनन्दन । देहः कृतोऽनं गधाणामात्मा नरकहेतवे ॥श्रीमद्भागवत 9.10.28॥* *अनुवाद:-हे राक्षसकुल के हर्ष , तुम्हारे ही कारण अब लंका - राज्य तथा हम सबों का भी कोई संरक्षक नहीं रहा । तुमने अपने कृत्यों के ही कारण अपने शरीर को गीधों का आहार और अपनी आत्मा को नरक जाने का पात्र बना दिया है ।* अब क्या होगा तुम्हारे देह को गिद्द खाएंगे। और आत्मा का क्या होगा तुम्हारी आत्मा को नर्क में पहुंचाया जाएगा। हे रावण तुम सचमुच के रावण बने तुमने आज तक कितनो को रुलाया तुमने सीता को भी रुलाया। उसी का परिणाम सारा संसार अब देख सकता है। *हरि हरि* हरि हरि । 1000000 वर्ष पूर्व वह दशमी का दिन था और उस दशमी का नाम हुआ राम विजयदशमी और उसी दिन भगवान ने रावण पर कृपा की। राम ने विभीषण को कहा इसका अंतिम संस्कार कराओ और फिर विभीषण को राजा बनाया गया, राम खुद राजा नहीं बन रहे हैं।उनका ऐसा उद्देश्य कभी नहीं था ,किस्सा कुर्सी का कभी था ही नही ।उनहोंने अपने भक्त को राजा बनाया।विभीषण को राजा बनाया । और फिर राम का सीता के साथ मिलन हुआ, सीता की परीक्षा हुई , इतने सारे प्रसंग हैं और फिर राम ने सीता को , लक्ष्मण को, विभीषण को , सुग्रीव को, हनुमान को साथ में लेकर पुष्पक विमान में आरूढ़ होकर अयोध्या के लिए प्रस्थान किया । अयोध्या धाम की जय । औरअयोध्या धाम में फिर दीपावली का उत्सव मनाया गया । अब हम आपको कुछ स्थलिया दिखाने वाले हैं। वैसे आप कुछ देख ही रहे हो , यह सब स्थान दिखाएंगे।यह राम की लीला स्थलिया हैं। सीता की जन्मस्थली जनकपुर , राजा जनक का पुर जनकपुर और सीता जनक की पुत्री हैं। इसलिए सीता को जानकी भी कहते हैं । सीता मैया की जय । जय सीते।दर्शन करो।यह स्थान आज भी है और सदा के लिए रहेगा । *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।* द्रोणागिरी पर्वत उत्तराखंड , अशोक वाटिका लंका में हैं, जहां हनुमान सीता से मिले। उसका यह फोटोग्राफ आप देख रहे हो । शायद आप ना कभी लंका गए होंगे ना कभी जाओगे , जा सकते हो लेकिन शायद नहीं जाओगे।इसलिए अब आपके पास ही है , घर बैठे बैठे इस स्थान का दर्शन करो और आप सीता को देख भी रहे हो , हनुमान जी का संवाद हो रहा है । हरि हरि । और यह सीता निवास , लंका में अशोक वाटिका है और ऐसे ही वृक्ष 1000000 वर्ष पूर्व थे । स्थान वही है , वृक्ष तो कई जन्म लेते हैं और चल बसते हैं लेकिन यह स्थान तो वही है ।यह भूमि सीता के चरण की स्पर्श से पावन बनी है । हरि हरि । और यह पंचवटी नाशिक महाराष्ट्र में गोदावरी के तट पर है , वैसे वही स्थान नहीं है ,पंचवटी पास में ही है, लेकिन नासिक जरूर है । वैसे एक स्थान है नासिक , सुर्पनका का जहा लक्ष्मण ने नाक काटा उसकी नासिका जहां गिरी उस स्थान का नाम नासिक बन गया ।पंचवटी दूसरी स्थली है , पंचवटी नासिक एक दूसरे के अगल बगल में ही है । पंचवटी , जहाँ पाँच वट , वृक्ष 1000000 वर्ष पूर्व भी थे और आज भी है। जहाँ पर्णकुटी बनाकर भगवान राम , लक्ष्मण, सीता रहे थे। पंचवटी वही स्थान है । आप आज भी जाकर आप देख सकते हो।हम कई बार गए हैं । ठीक है । जानकी मंदिर एक नेपाल में भी है।जानकी मतलब सीता , सीता का मंदिर नेपाल में है । कुछ मत भिन्नता है कि यहां सीता का जन्म हुआ, वहां सीता का जन्म हुआ तो संभावना है कि नेपाल के लोग इस स्थान को सीता का जन्म स्थान मानते है। हर देश चाहता है , सभी तो नहीं लेकिन कुछ देश चाहते हैं कि उनके देश का संबंध राम के साथ , सीता के साथ स्थापित रहे, यह भाव अच्छे हैं । सीता विवाह मंडप जनकपुर मे हैं।आप जानते हो सीताराम और सिर्फ सीताराम का ही विवाह नहीं हुआ ,लक्ष्मण का , शत्रुघ्न का , भरत का भी विवाह एक साथ हुआ , विवाह मंडप यही विवाह स्थली है । और यह जनकपुर में है ।जहाँ विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को ले गए थे और यहीं पर वह धनुष्य था जिसको राम ने उठाया और जब प्रत्यंचा चढ़ा ही रहे थे तो वह टूट गया और उसी के साथ राम को सीता प्राप्त हुई।क्योंकि सीता स्वयंवर मतलब सीता स्वयं अपने पति को चुनेगी , वह चयन यही जनकपुर में हुआ। यहां और भी लीलाए हुई हैं । पंपा सरोवर कर्नाटक राज्य में है । महाराष्ट्र कर्नाटक के बॉर्डर में है , कर्नाटक के अंतर्गत है ।हम्पी आपने नाम सुना होगा ऐसे पर्यटन स्थान भी है । पंपा सरोवर जिसके तट पर शबरी भी एक गुफा में रहा करती थी और बगल में ही वृषमुख पर्वत है जिस पर्वत पर सुग्रीव और हनुमान भी रहते थे ।और इसी पंपा सरोवर के तट पर ही राम, लक्ष्मण और हनुमान का प्रथम मिलन हुआ। यह पंपा सरोवर ऐसा परम पवित्र है । यहां पर भी हम गए हैं आप भी जाया करो । कभी घर को छोड़ो , एक दिन तो छोड़ना ही है लेकिन जल्दी करो । यह है रामेश्वर , कौन किसके ईश्वर ? शिव भक्त कहेंगे यह रामेश्वर , राम के ईश्वर शिव है । *रामः ईश्वर यशशः।* मतलब राम जिनके ईश्वर है , शिव जी के ईश्वर राम है ।समाज अलग अलग प्रकार से इस रामेश्वर शब्द का अर्थ लेता है , और दो प्रकार से तो कर ही सकते हैं। हरि हरि । शिवजी राम भक्त थे , चार धामो में से एक धाम रामेश्वर धाम हैं और राम की सेना किष्किंधा से यहां तक पहुंच गई और अब उनको जलमार्ग से आगे पहुंचना था, इसलिए सेतु बंधन हुआ । ब्रिज का निर्माण हुआ , वह कार्य यहीं से लंका तक हुआ। वैसे यह रामेश्वर धाम , कोदंड नाम का एक स्थान है जहाँ विभीषण राम से मिले।यह रामेश्वर से कुछ दूरी पर हैं । वृषमुख सरोवर का भी दर्शन कीजिए।हनुमान जी ने अपने कंधे पर लक्ष्मण और राम को बैठाकर इस पर्वत पर पहुंचा दिया । अपने कंधे पर बैठाया और पंपासरोवर से वृषमुख सरोवर पर पहुचा दिया ताकि उनको चढ़ने की आवश्यकता ना हो ।यह वृषमुख पर्वत यहां कई सारे लीलाएं हैं , राम यहाँ इसी क्षेत्र में चातुर्मास में रहे है और इत्यादि इत्यादि , और इसी पर्वत पर सीता ने अपने अलंकार फेंक दिए थे । हरि हरि । श्रृंगवेदपुर प्रयागराज के पास ही है और यह गंगा मैया ।गंगा मैया की जय । यही राम ,लक्ष्मण, सीता ने गंगा को पार किया और नौका में बैठकर गये । इसकी कथा हमने सुनी है , राधा रमन महाराज ने सुनाई थी । कौन थे वह ? नावाडी कौन थे? कैवट । राम सुग्रीव मिलन , यह वही है। जिसे किस्किंधा क्षेत्र कहते हैं और किष्किंधा कांड भी हैं और इस वृषमुख पर्वत के शिखर पर ही राम और सुग्रीव का मिलन हुआ , वही पवित्र स्थली को आप देख रहे हो । केवट है वह , अच्छा ठीक है । केवट जी ने राम को अपनी नौका में बिठाकर गंगा को पार कराया , ठीक है । यह रहा रामसेतु , तमिलनाडु को इसका श्रेय जाता है । एक और रामेश्वर है,तो दूसरी और लंका है , यह दूरी कुछ 800 मील की है । नासा अमेरिका की नॉर्थ अमेरिकन स्पेस एजेंसी की व्यवस्था से ऐसी फोटोग्राफ हम देख पा रहे हैं । इसी पर चलकर राम , लक्ष्मण , हनुमान सुग्रीव ,अंगद , इत्यादि आगे बढ़े थे । यह सीता मंदिर अशोक वाटिका का दृश्य हैं। जो हमने पहले देखा था , पास में ही हनुमान और सीता का मिलन और संवाद हुआ और उसी के पास अशोक वाटिका में ही सीता का भी मंदिर है । जनकपुर में तो हैं ही। यहां लंका में भी सीता का मंदिर है , आप जाकर सीता का दर्शन कर सकते हो और फिर यहीं पर स्मरण रहे कि इसी वाटिका में ही रावण के वध उपरांत श्री राम भी पहुंचे और अशोक वन में ही राम और सीता का मिलन हुआ । विभीषण तिलक स्थली जहां अभिषेक हुआ। ऐसा भी हम समझ सकते हैं।लंका में विभीषण को राजा बनाया गया , राज्याभिषेक हुआ और यह सब लंका का क्षेत्र है । लंकेश! लंका के ईश यह एक समय स्वर्ण नगरी रही , जैसे धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र युद्ध भूमि है। तो यहां यह राम रावण युद्ध स्थली का दर्शन है । 1000000 वर्षों बित चुके है लेकिन पर्वत वही है , नदी वही है, नदी उस समय भी थी आज भी है , पर्वत भी था आज भी है , बादल तो आते जाते रहते हैं और वृक्ष भी उगते मरते रहते हैं , उस समय के नदी और पर्वत तो है ही । अंत में रावण का महल इसको भी संभाल कर रखा है और इसका भी कुछ नवनिर्माण करके रखा हुआ है , यह कोई अच्छा स्मृति चिह्न नहीं है लेकिन हनुमान जैसे लंका में पहुंचे तब पहले रावण महल में आए थे , उनको सीता को खोजना था तो उन्होंने सोचा कि रावण के महल में ही सीता हो सकती है या होनी चाहिए ऐसा ही सोच कर वह यहां आए थे , कई स्त्रियों को देखा और कई स्त्रियां रावण के साथ में ही थी किंतु हनुमान समझे कि नहीं नहीं नहीं इसमें से कोई भी स्त्री सीता नहीं हो सकती , फिर इस महल से दूर गए और कई स्थानो पर हनुमान गए और सीता को खोज रहे थे , ठीक है । यह आखरी वाला है । *जय श्री राम ।* *गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ।* दर्शन किया ? आपने सबूत देखा , राम है कि नहीं ?रामलीला खेली कि नहीं ? आपने सेतुबंध देखा मतलब अभी तो मानना ही पड़ेगा । हरि हरि । *जय श्री राम ।* *जय श्री राम ।* *रामनवमी महोत्सव की जय।* अब रामनवमी महोत्सव आही रहा है । *रामायण की जय ।* ठीक है । *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।*

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