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*जपा टॉक!!!* *पंढरपुर धाम से* *दिनांक 21 अप्रैल 2021* हरे कृष्ण!!! आज इस जपा कॉन्फ्रेंस में ९१९ स्थानों से प्रतिभागी सम्मिलित हैं। आज विशेष अवसर अथवा उत्सव होने के कारण शायद यह संख्या अधिक है। राम नवमी महोत्सव की जय! आप सभी का स्वागत है। आप सभी की जानकारी के लिए यह प्रात: कालीन शार्ट कथा मैं अंग्रेजी में करूंगा। तत्पश्चात लंबी कथा हिंदी में आठ से साढ़े नौ बजे तक होंगी। कृपया बुरा मत मानिएगा। बेचारे अंग्रेजी भाषी भी लाभान्वित होंगे। प्रारंभ में आपको एक क्लिप दिखाया जाएगा। इस्कॉन नागपुर से परम् करुणा प्रभु ने एक छोटा सा प्रेजेंटेशन भेजा है। उसी के साथ उनकी और हमारी ओर से आपको राम नवमी की शुभकामनाएं भी प्रस्तुत होगी। लेकिन प्रारंभ में आप सब को शुभकामनाएं देने के लिए छोटा सा प्रस्तुतिकरण होगा। हरे कृष्ण! राम राम राम सीता राम राम... अयोध्या वासी राम.. राम... दशरथनंदन राम... राम... हरि हरि *ॐ नमो भगवते रामाय*... आप समझ गए हो। हम सब प्रणाम करते हैं। ओम नमो भगवते, श्री राम। श्री राम परम पुरुष हैं। हम श्री राम प्राकट्य दिवस की जयंती मना रहे हैं। यह केवल श्री राम के प्राकट्य का उत्सव नहीं है। आज परम् पुरुष के अन्य व्यक्तित्व (रुपों) का भी उत्सव है। आज केवल राम नवमी ही नहीं है, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न नवमी भी है। लक्ष्मण नवमी, भरत नवमी, शत्रुघ्न नवमी की जय! क्या कहा जा सकता है, आज कितना अधिक महत्वपूर्ण दिन है। बहुत समय पहले, हम कह सकते हैं कि कम से कम लाखों वर्ष पहले आज के दिन अयोध्या में भगवान राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न प्रकट हुए थे। आज नवमी है, आज की नवमी का नाम राम नवमी है। हमारे वैष्णव कैलेंडर के अनुसार आज नवमी है। .. लाखों वर्ष पहले इस नवमी पर भगवान राम प्रकट हुए थे। वह निश्चित रूप से नवमी ही थी, इसलिए नवमी पर उत्सव मनाया जाता है। राम का प्राकट्य ऐतिहासिक प्रसंग है। भगवान् वास्तव में प्रकट हुए थे। जो लोग इसे काल्पनिक मानते हैं, वे निश्चित रूप से मूर्ख हैं। पौराणिक कथा के अनुसार आज के दिन भगवान राम सरयू नदी के किनारे अयोध्या में प्रकट हुए थे, यह सत्य है। सरयू नदी भी है, वहाँ अयोध्या भी है। अयोध्या में वह स्थान निश्चित आज भी है, जहां आप जा कर देख सकते हैं और वहां राजा दशरथ का महल, दशरथ नंदन राम जहाँ प्रकट हुए थे, उन स्थानों के दर्शन कर सकते हैं। आसमान में देवी देवता भी आए थे। *यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै-र्वेदः साङ्गपदक्रमोपनिषद़ैर्गायन्ति यं सामगाः।* *ध्यानावस्थितततद् गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणा देवाय तस्मै नमः* ( श्रीमद् भागवतम् १२.१३.१) अनुवाद:- सूत गोस्वामी ने कहा:- ब्रह्मा, वरुण, इंद्र, रुद्र तथा मरुतगण दिव्य स्तुतियों का उच्चारण करके तथा वेदों को उनके अंगों, पद कर्मों तथा उपनिषदों समेत बांचकर जिनकी स्तुति करते हैं, सामवेद के गायक जिनका सदैव गायन करते हैं, सिद्ध योगी अपने आपको समाधि में स्थिर करके और अपने आप को उनके भीतर लीन करके जिनका दर्शन अपने मन में करते हैं तथा जिनका पार किसी देवता या अशुभ द्वारा कभी भी नहीं पाया जा सकता- ऐसे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान को मैं सादर नमस्कार करता हूं। भगवान् प्रकट हुए। *परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥* (श्रीमद् भगवतगीता ४.८) अनुवाद:- भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ । भगवान् हर युग में प्रकट होते हैं, वह त्रेता युग था। जब भगवान् प्रकट हुए तब देवी देवता ठीक समय पर वहां पहुंच गए और उन्होंने श्रीराम के दर्शन किए। उन्होंने भगवान् को प्रार्थना और पुष्प अर्पित किए। अप्सराओं ने नृत्य किया व गंधर्वों ने गाया। लाखों वर्ष पहले भी उस दिन यह सब हो रहा था। जय श्रीराम! हम क्या कह सकते हैं। यह भगवान की दया है। यह उनकी हम बद्ध जीवों अर्थात विस्मृत आत्माओं के लिए करुणा है। भगवान् इस ब्रह्मांड में समय-समय पर आते रहते हैं। वे इस राम नवमी के दिन राम के रूप में प्रकट हुए थे। हम कैसे जानते हैं कि राम प्रकट हुए थे? और उन्होंने क्या किया था? भगवान् ने अपने सभी पुराने बाल्य लीलाओं को सम्पन्न किया था। वाल्मीकि मुनि ने कृपा कर रामायण का सम्पादन किया। जैसा कि हम रामायण के पृष्ठों को देखते हैं या नागपुर के इस प्रस्तुतिकरण को देखते हैं। हमें राम लीला प्रत्येक पृष्ठ पर, 3 आयामों और 4 आयामों या सभी आयामों पर होती हुई दिखाई दे रही है। भगवान व उनके सहयोगी इस लीला, उस लीला को करते हुए दिखाई दे रहे थे। जब हम रामायण सुनते व पढ़ते हैं तब हमें राम के दर्शन होते हैं। रामायण में राम के रूप का भी वर्णन है। रामायण के पन्नों में राम के नाम, रूप, गुण, लीला, धाम का वर्णन है लेकिन प्रमाण क्या है कि राम का प्राकट्य हुआ था। रामायण इसका प्रमाण है, रामायण साबित करता है और रामायण हमें, राम की उपस्थिति और उनकी गतिविधियों के आंकड़े व तथ्य देता है। हरि! हरि! जैसा कि श्रीराम, सूर्य वंश में प्रकट हुए थे। सूर्य दिन का शासक होता है, सूर्य को दिनेश भी कहते हैं दिन अर्थात दिन होता है और ईश अर्थात शासक। सूर्य दिन का शासक होता है। जब राम सूर्य राजवंश में प्रकट हुए तब सूर्य उस दिन दोपहर के समय अपना शासन कर रहा था। रात के समय चंद्रमा शासक होता है। श्रीकृष्ण चंद्रवंश में प्रकट हुए थे। इसलिए वे रात के मध्य में प्रकट हुए। राम दिन के मध्य अथवा दिन के समय प्रकट हुए थे। हरि! हरि! जय श्री राम! हम सुन सकते हैं, हम देख सकते हैं। (हम यह भी जानते हैं कि कौन से रास्ते से आगे बढ़ा जाए) पर जैसा हमनें कहा कि केवल अयोध्या ही हमें राम की याद नहीं दिलाती। भगवान् अलग अलग स्थानों पर अपनी लीलाओं का प्रदर्शन कर रहे थे। उसमें जनकपुरी भी आती है, जहां सीता का प्राकट्य हुआ था। जय सीते! भगवान, सीता के बिना अपने लीलाओं का प्रदर्शन नहीं कर सकते थे। जनकपुर भी सीता राम की लीलाओं का साक्षी है और हमें उनका स्मरण दिलाती है। राम 11000 वर्षों में से १४ वर्ष के लिए वन में चले गए थे। *हत्वा क्रूरम दुराधर्षम् देव ऋषीणाम् भयावहम्। दश वर्ष सहस्त्राणि दश वर्ष शतानि च।* ( १-१५-२९) अनुवाद:- देवताओं तथा ऋषिओं को भय देने वाले उस क्रूर व दुर्धर्ष राक्षस का नाश करके मैं ग्यारह हजार वर्षों तक इस पृथ्वी का पालन करते हुए इस मनुष्य लोक में निवास करूंगा। इतने वर्ष राम धरातल पर रहे। भगवान् राम ने ११००० वर्ष ब्रह्मांड पर अपनी लीला की। भगवान कृष्ण ने केवल १२५ वर्ष ही इस ब्रह्मांड पर अपनी प्राकट्य लीला की। जहाँ तक हम जानते हैं, श्रीराम ने 11000 वर्षों में से अधिकांश समय अयोध्या में बिताया था और 14 वर्ष के लिए वे वनवासी थे परंतु अधिकांश रामायण भगवान् के वनवास के विषय में बताती हैं। पहले वे अयोध्या में थे, तत्पश्चात वनवास में बहुत सारे स्थानों पर गए । चित्रकूट मुख्य स्थान रहा। चित्रकूट में विशेषतया मंदाकिनी नदी के तट पर भगवान् की लीला का उल्लेख है। यह एक विशेष लीला है। राम, भरत मिलाप अथवा मिलन। निश्चित ही अयोध्या से हर कोई श्रीराम के साथ मिलने व समझौता करने के लिए आया था। विशेष रूप से भरत श्रीराम से मिलने के लिए आए थे। भरत श्रीराम से मिलते हैं और विनम्रतापूर्वक उन्हें वापिस लौटने की अपील करते हैं, "चलो अयोध्या वापस चलो! आप राजा बनोगे।" इस प्रस्ताव के साथ राम और भरत का मिलन होता है। राम और भरत के मध्य हुए संवाद को सुनकर पत्थर भी पिघल जाता है। वह स्थान जहाँ पर राम और भरत मिले थे और वार्तालाप हुई थी, उस स्थान पर राम और भरत के पैरों व अन्यों के निशान भी पुरातात्विक रूप से साक्षी हैं। वे वहां जा कर भी देख सकते हैं। वहां भरत शत्रुघ्न व अन्य भी आए थे। राम ने उस महान् स्थान पर अपने १४ वर्षों में से १२ वर्ष बिताए। तब राम ने आगे रामगिरि पर्वत की नागपुर की ओर प्रस्थान किया। इसे रामटेक के नाम से भी जाना जाता है। वहां पर श्री राम ने प्रतिज्ञा ली थी, कि मैं इस ग्रह से सभी राक्षसों को मिटा दूँगा। उन्होंने अपना धनुष और बाण धारण किया और यह वचन लिया। रामटेक अर्थात राम की प्रतिज्ञा। *परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।* विनाशाय अर्थात दुष्टों का विनाश। यह भगवान् के प्रकट होने का उद्देश्य था। उन्होंने वहां प्रतिज्ञा ली थी। वहाँ पर अगस्त्य मुनि का आश्रम भी है। हम वहां पर गए थे, वहां की दीवारों पर नक्काशी की गई थी, जो बताती है कि कुछ लाखों वर्ष पहले राम वहाँ रामटेक में थे और उस पत्थर पर राम के चिन्ह हैं। राम, लक्ष्मण, सीता ने गोदावरी नदी के तट पर स्थित पंचवटी नासिक की ओर प्रस्थान किया। नदी के तट पर पांच वट के वृक्ष हैं जो लाखों वर्ष पहले भी थे और वे अब हैं। वे वहां गोदावरी नदी के तट पर हुई राम की लीलाओं के गवाह हैं। तब वहां शूर्पणखाआयी। लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काट दी और जहां पर उसकी नाक गिरी, उस शहर को नासिक के नाम से जाना जाता है। शूर्पणखा की यह नासिका भी साक्षी है। यह भी तथ्य है कि राम वहाँ थे। वहां उनकी कई लीलाएँ है। तब कुछ समय में रावण आया और सीता का अपहरण कर लिया। तत्पश्चात राम और लक्ष्मण, सीता की तलाश करने लगे। सीते! सीते! यह रामायण में वर्णित किया गया है कि जिस प्रकार वृंदावन के जंगलों में गोपियां श्रीकृष्ण को देखती और खोजती हैं। रास्ते में हर किसी से हर पेड़, हर व्यक्ति और जानवर, रास्ते में हिरन से पूछती हैं,"क्या आपने कृष्ण को देखा है।" वैसे ही , राम हर किसी से दंडकारण्य वन में सभी से पूछताछ कर रहे थे। "क्या किसी ने मेरी सीता को देखा है? क्या किसी ने मेरी सीता को देखा है?" इस प्रकार रामायण में श्रृंगार रस का वर्णन किया गया है। सीता के लिए श्रीराम की भावनाएं और व्यवहार का वर्णन है। इस प्रकार श्रीराम सीता की तलाश में पंपा सरोवर की ओर आगे बढ़ते हैं। इसका भी रामायण में वर्णन मिलता है, वह पम्पा सरोवर भी लीला का साक्षी है। पम्पा सरोवर के किनारे, ऋषिमुख पर्वत (आप वहां जाकर देख सकते हो, फोटो ले सकते हो और सेल्फी ले सकते हो।) राम ने उस पहाड़ की चोटी पर काफी समय बिताया। वहां सुग्रीव से दोस्ती की और बाली का वध हुआ। वानर और अन्य जीव सीता की तलाश कर रहे थे। तत्पश्चात वे रामेश्वरम आए। वहां पर उनके पास केवल हनुमान थे जो कूद कर लंका में जा सकते थे। हनुमान लंका गए और अशोक वाटिका में सीता को ढूंढा। अंततः उनको अशोक वन में सीता मिली। आज भी वहां रावण के महल के साथ अशोक वन स्थित है। आप वहां आज भी जा सकते हो। यह इतिहास है। रावण भी उस इतिहास का हिस्सा था। लंका भी इतिहास का हिस्सा है। उसका महल व अशोकवन भी इतिहास के हिस्से( भाग) हैं। ये काल्पनिक चीजों से नहीं बने हैं, ये तथ्य हैं। राम ने वानरों की सहायता से पुल बनाया। यहां तक कि नासा भी श्री राम द्वारा निर्मित पुल की तस्वीर और वीडियो लेने में कामयाब रहा है। राम द्वारा बनाया गया पुल सबसे लंबा और सबसे मजबूत पुल है यह उस दिन से मौजूद है और उसका अस्तित्व आज भी है। हरि! हरि! यह संदेश आज रामनवमी के अवसर पर सभी को सुनाया गया है, जो भी वर्णन किया गया है अर्थात जो कुछ भी बोला गया है, अक्षरं मधुरं अक्षरम् .. हर अक्षर केवल मीठा ही नहीं है .. यह सत्य भी है। ऐतिहासिक तथ्य है। अतः हमें उस भावना में लग जाना चाहिए। हरि! हरि! अगर सब पौराणिक कथा हैं, राम भी पौराणिक हैं। तब हम अपराधी व मूर्ख हैं और पराजित होकर हार जाएंगे। इसलिए हमें वाल्मीकि के शब्दों अर्थात 'रामायण' में विश्वास होना चाहिए जिन्होंने भगवान् की अन्य लीलाओं के अतिरिक्त श्री राम के प्राकट्य अथवा रामनवमी का गहन वर्णन किया है। *श्रीराधिका-माधवयोर्अपार-माधुर्य-लीला-गुण-रूप-नाम्नाम् प्रतिक्षणाऽऽस्वादन-लोलुपस्य वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्।।* अनुवाद:- श्रीगुरुदेव श्रीराधा-माधव के अनन्त गुण, रूप तथा मधुर लीलाओं के विषय में श्रवण व कीर्तन करने के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं। वे प्रतिक्षण इनका रसास्वादन करने के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं। वे प्रतिक्षण इनका रसावस्वादन करने की आकांक्षा करते हैं। ऐसे श्रीगुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ। पिछले सभी आचार्यों और वर्तमान आचार्यों ने प्रतिक्षणाऽऽस्वादन-लोलुपस्य का आस्वादन किया है। सीता राम की लीलाओं का, हनुमान ' .. बहुत सारे चरित्र हैं .. इतने सारे व्यक्तित्व और लीलाओं का आस्वादन किया है। श्रील प्रभुपाद ने भी आस्वादन किया है। उन्होंने हमें राम दिये हैं। शुकदेव गोस्वामी भागवतम के नौवें स्कन्ध में रामकथा का वर्णन करते हैं। श्रील प्रभुपाद ने उसका अनुवाद किया है। उन्होंने भागवतम् के अनुवाद में ही रामायण के दो अध्यायों का अनुवाद और टिप्पणी दी है। एक दिन जुहू बीच पर सुबह की सैर के समय मैंने श्रील प्रभुपाद से रामायण का अनुवाद करने के विषय में पूछा, उन दिनों श्रील प्रभुपाद, भागवतम और चैतन्य चरितामृत का अनुवाद करने में व्यस्त थे। उन्होंने कहा, हां, जब मैं यह अनुवाद कर लूंगा, तब मैं रामायण का अनुवाद करूंगा। उन्होंने सुबह की सैर में यह बात कही थी। श्रील प्रभुपाद ने हमें राम मंदिर दिए। इस्कॉन के कई मंदिरों में राम मंदिर है। इस्कॉन दिल्ली में राम मंदिर है। लंदन में इस्कॉन भक्ति वेदांत मैनर और वॉशिंगटन डी.सी. में भी राम मंदिर है। ये सब राजधानियां है। जैसे भारत की राजधानी दिल्ली, इंग्लैंड की राजधानी लंदन, अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डी.सी. । भगवान् राम ने उन राजधानियों को अपनी राजधानी बनाया है। हमें उनके दर्शन का अवसर मिला है जिससे हम सेवा कर सकें। हमारे पास श्री राम का नाम है। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।* केवल यही राम की पूजा करने और पवित्र नाम जपने का तरीका है। राम राम राम सीता राम राम राम। मैं यहीं रुकूंगा। मुझे रुकना होगा। शीघ्र ही दूसरी कथा प्रारंभ होने वाली है। राम नवमी महोत्सव की जय! गौर प्रेमानंद हरि हरि बोल!

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