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जप चर्चा दिनांक 21 अक्टूबर 2020 हरे कृष्ण! सुप्रभातम! या तो प्रभात अच्छी है या आप प्रभात में जप करके, राधा कृष्ण का स्मरण करते हुए उसे अच्छी बना रहे हो।हरि! हरि! तीन गुणों की चर्चा चल ही रही है। आज मैं आपसे पहले कुछ कहूंगा, तत्पश्चात यह भी जानना चाहूंगा कि आप क्या समझे हो और भगवान् की त्रिगुणमयी माया को समझ कर आप अपने जीवन में कैसे परिवर्तन करने वाले हो जो आपने पहले नहीं किया हुआ है। जैसे वह कार्य मेरा तमोगुण कार्य था कि मैं जल्दी नहीं उठता था या वह मेरा कार्य रजोगुण ही होता था जब रजोगुणी लोगों के साथ मेरा मिलना जुलना खूब चलता था क्योंकि ऐसा कहा गया है 'यू आर् नोन बाय द कंपनी यू कीप' अर्थात आपकी पहचान कैसे बन जाती है? 'द कंपनी दैट यू कीप' आप किन के साथ रहते हो या मिलना जुलना होता है या जिनके साथ आप व्यवहार करते हो, उससे भी आपकी पहचान बन जाती है। आप जिनके साथ अधिक समय बिताते हो, बारंबार समय बिताते हो, यदि वे तमोगुणी है तो आप भी तमोगुणी बन जाते हो। जैसा कि मराठी में भी एक कहावत है ढोलय... गुण लागलाय। दो बैल अलग अलग रंग के है यदि एक बैल को दूसरे बैल के साथ बांध दिया जाए या रख दिया जाए तो उनके रंग में परिवर्तन नहीं होगा लेकिन एक बैल दूसरे बैल के साथ रहने से उसके गुणों में परिवर्तन हो जाता है। ऐसे ही कई बातें हैं। हो सकता है कि यह कार्य आपका तमोगुणी कार्य होता था अथवा रजोगुणी कार्य अथवा सतोगुण कार्य होता था। हरि! हरि! यह तीनों प्रकार के गुणों का कार्य भी अच्छा नहीं है लेकिन तमोगुण से रजोगुण अच्छा है, और रजोगुण से सतोगुण अच्छा है, लेकिन शुद्ध सत्व सर्वोपरि है। हो सकता है कि जहां आप रहते थे, वहां गंदगी रहती थी अर्थात आप गंदगी में रहते थे अथवा गंदे घर में रहते थे या गंदे कमरे में रहते थे। गंदा होना किस गुण का लक्षण है? क्या कहोगे? कौन सा गुण है? तमोगुण, रजोगुण अथवा सतोगुण है? यह तमोगुण है। तब आप क्या उसमें सुधार करना चाहोगे ? क्लीन इंडिया! स्वच्छ भारत मतलब सतोगुण। स्वच्छता मतलब सतोगुण। स्वच्छता मतलब सु-अच्छा। यह गुडनेस है। यह सतोगुण है। जैसा कि आप पिछले कुछ दिनों से तीन गुणों की चर्चा सुन रहे थे। तीन गुणों का प्रभाव हर बात पर व हर बात से होता है। जैसे कि पहले ही बता चुके हैं कि खानपान या जिनका सङ्ग करते हैं, उस पर निर्भर करता है कि आप कौनसे गुण के बनने वाले हो? आप किसके साथ रहते हो या किसका सङ्ग करते हो उससे हमारे गुणों में भी परिवर्तन आता है अथवा उससे प्रभावित होते हैं। आप कौन सा लिटरेचर पढ़ते हो? वांग्मय या किताबें भी तमोगुणी या रजोगुणी या सतोगुणी विषय है। आप क्या देखते हो? कोई मूवी देखता है, कोई सिनेमा देखता है। सिनेमा में क्या दृश्य होता है? उसमें कामवासना का दृश्य होता है अर्थात कामी लोग और क्रोधी लोग होते हैं। “ध्यायतो विषयान्पुंसः सङगस्तेषूपजायते | सङगात्सञ्जायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते || " ( श्री मद् भगवतगीता२.६२) अनुवाद: इन्द्रियाविषयों का चिन्तन करते हुए मनुष्य की उनमें आसक्ति उत्पन्न हो जाती है और ऐसी आसक्ति से काम उत्पन्न होता है और फिर काम से क्रोध प्रकट होता है। मुझे गुस्सा खूब आता है, मुझे क्या करना चाहिए? भगवान कहते हैं कामात्क्रोधोऽभिजायते- आप कामी होंगे। आप इतनी सारी कामवासनाओं से भरे पड़े हो और जब उसकी पूर्ति नहीं होती है या कुछ देर से होती है तो आपको क्रोध आता है। कामात्क्रोधोऽभिजायते। इसलिए आपको कामवासना को कम करना चाहिए। एक एक आइटम अथवा इस काम को हटा दो या उस कामवासना को मिटा दो। ऐसा कुछ प्रोग्राम आप बनाना चाहोगे? यह कामवासना कहां से आती है। आप रजोगुणी हो क्योंकि “श्री भगवानुवाच काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः | महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम् || ( श्रीमद् भगवतगीता 3.37) अनुवाद: श्रीभगवान् ने कहा – हे अर्जुन! इसका कारण रजोगुण के सम्पर्क से उत्पन्न काम है, जो बाद में क्रोध का रूप धारण करता है और जो इस संसार का सर्वभक्षी पापी शत्रु है। यदि आप रजोगुणी हो तो रजोगुण से क्रोध उत्पन्न होता है। काम का कारण क्रोध है। रजोगुण से कैसे मुक्त हो सकते हैं? इस पर विचार करना होगा। हरि! हरि! हमें कुछ ऐसा परिवर्तन करना होगा। हम दिन भर रजोगुण बढ़ाते रहते हैं या पहले के जीवन अथवा पूर्व जन्म में या पिछले पचास वर्षों से हम अलग-अलग गुण वाले बन रहे हैं। अलग-अलग संस्कार या सब अलग-अलग खानपान। ऐसे हम फिर तमोगुणी या रजोगुणी बनेंगे। जैसे हम खाना भी खाते हैं, यदि हमनें तमोगुण भोजन अथवा अभक्ष्य-भक्षण किया तो हम तमोगुण बन जाएंगे। हम तमोगुणी थे और हम तमोगुण ही भोजन भी खा रहे हैं और अधिक तमोगुणी बन रहे हैं। यदि हमनें थोड़ा ज्यादा खा लिया तो हम अधिक तमोगुणी बन जाएंगे। यदि हम अधिक खाते हैं तब हमें अधिक नींद आ जाती है। यदि हम अधिक सोते हैं तो हम और अधिक तमोगुणी बन जाते हैं। अधिक सोओगे तब और अधिक तमोगुणी बन जाओगे। यदि हम अधिक खाएंगे तब रजोगुण भी उत्पन्न हो सकता है और होता ही है। सकता है कि बात ही नहीं है। उपदेशमृत में भी कहा गया है वाचो वेगं मनसः क्रोधवेगं जिह्वावेगमुदरोपस्थवेगम्। एतान्वेगान्यो विषहेत धीरः सर्वामपीमां पृथिवीं स शिष्यात् ॥ (उपदेशामृत १) अनुवाद - वह धीर व्यक्ति जो वाणी के वेग को, मन की मांगों को, क्रोध की क्रियाओं को तथा जीभ, उदर एवं जननेंद्रियो के वेगों को सहन कर सकता है, वह सारे संसार में शिष्य बनाने के लिए योग्य है। उपदेशामृत में समझाया गया है और प्रभुपाद भी तात्पर्य में कहते हैं कि जिव्हा, पेट और जननेद्रियां एक लाइन में हैं। यदि जिव्हा पर नियंत्रण नहीं रखा और खूब खा लिया या भरपेट खा लिया तो उससे रजोगुण उत्पन्न होगा व कामवासना उत्पन्न होगी ही। तत्पश्चात हम कामवासना की तृप्ति के लिए और प्रयासरत होंगे और इस प्रकार हम लैंगिक क्रिया में फंस जाते हैं। यदि हम अधिक खाएंगे या अधिक सोएंगे या रात को भी अधिक खाएंगे, जिससे और कामवासना उत्पन्न होगी, रजोगुण उत्पन्न होगा लेकिन यदि हम रात में सोएं ही नहीं या फिर पूरी नींद नहीं हुई, या फिर ब्रह्म मुहूर्त में उठे ही नहीं या फिर हम उठे हैं और जप भी कर रहे हैं लेकिन हमारी नींद पूरी नहीं हुई है, इसलिए ध्यानपूर्वक जप नहीं हो रहा है अथवा हरि नाम में ध्यान नहीं लग रहा है या झपकी लग रही है अर्थात यह तमोगुण का प्रभाव है। तब आप उठ सकते हो। जब हम उठते हैं तब रजोगुण का प्रभाव होता है, तत्पश्चात हम तमोगुण से रजोगुण तक पहुंच जाते हैं। यह अच्छी बात है कि आपने थोड़ा उद्धार किया। आप तमोगुण में थे या अंधेरा छा रहा था या नींद आ रही थी तो आप उठ जाओ। जब आप थोड़ा उठ कर थोड़ा जग गए , तत्पश्चात उठने से नींद चली जाएगी । फिर पुनः बैठो और जप करो। बैठना मतलब सतोगुण है। उठना मतलब रजोगुण है। लेटना मतलब तमोगुण है। यदि बैठने से नींद आ रही थी तो लेटने के बजाय उठो। लेटोगे तो तमोगुण है, उठोगे तो रजोगुण है। लेकिन रजोगुण भी ठीक नहीं है इसलिए पुनः बैठो। यह सतोगुण की स्थिति है। सतोगुण में आसन अथवा सुखासन है। फिर कर्म बंधन है। तमोगुण में सबसे अधिक बंधन है, रजोगुण का उससे कम है, सतोगुण का उससे और कम है। जब आप सतोगुण में होते हो तब आप ध्यानपूर्वक जप कर सकते हो। इस तरह से गुणों का अभ्यास अथवा गुणों को समझना है। गुणों का अध्ययन करना है और फिर अध्यापन भी करना है, प्रचार भी करना है जैसे हम आपको कुछ सुना रहे हैं। हमने भी अध्ययन किया। उसे कुछ समझ लिया, कुछ चिंतन किया तत्पश्चात उसका प्रचार कर रहे हैं। आपको भी इसी परंपरा में करना है । य़ारे देख, तारे कह कृष्ण उपदेश। आमार आज्ञाय गुरु हञा तार' एइ देश।। ( श्री चैतन्य चरितामृत मध्य लीला ७.१३८) अनुवाद:- हर एक को उपदेश दो कि वह भगवतगीता तथा श्रीमद्भगवत में दिए गए भगवान् श्रीकृष्ण के आदेशों का पालन करे। इस तरह गुरु बनो और इस देश के हर व्यक्ति का उद्धार करने का प्रयास करो। प्रचार से पहले आचार अर्थात आचरण भी करें। आप यह जो तीन गुणों की चर्चा सुन रहे हो, श्रीभगवानुवाच परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् | यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः ( श्रीमद भगवद्गीता १४.१ ) अनुवाद: भगवान् ने कहा – अब मैं तुमसे समस्त ज्ञानों में सर्वश्रेष्ठ इस परम ज्ञान को पुनः कहूँगा, जिसे जान लेने पर समस्त मुनियों ने परम सिद्धि प्राप्त की है। भगवान ने कहा कि यह उत्तम ज्ञान है और इस ज्ञान को समझ कर मुनयः या ऋषियः परां सिद्धिमितो गताः अर्थात यह तमोगुण को त्याग कर परम् गता: अर्थात शुद्ध सत्व को प्राप्त किया है अथवा भगवत धाम लौटे हैं। हमारा लक्ष्य भी वही है। हरि! हरि! वैसे मैं थोड़ा सा कहूंगा, इन तीन गुणों के संबंध में कहने की तो इतनी सारी बातें हैं। इन तीन गुणों के व्यवस्थापक/ संचालक यह तीन देवता हैं या यह तीन भगवान हैं। शिव भी भगवान हैं और ब्रह्मा को भी छोटे-मोटे भगवान कहा जा सकता है लेकिन मूल भगवान तो विष्णु हैं। यह जो अवतार है। इन्हें गुण अवतारी भी कहते हैं। अलग-अलग अवतारों के कई प्रकार हैं। उसमें से एक प्रकार गुण अवतार है जो ब्रह्मा, विष्णु महेश हैं। ब्रह्मा सृष्टि करता है। ऐसी ही उनकी ख्याति है। ब्रह्मा निर्माण का कार्य करते हैं। तत्पश्चात निर्माण के बाद उसके मेंटेनेस (अनुरक्षण) का समय होता है। सृष्टि, स्थिति, प्रलय ऐसे शब्दों का प्रयोग होता है। ब्रह्मा सृष्टि करते हैं। स्थिति अर्थात उसको बनाए रखना है अथवा उसको मेन्टेन करना है। इस मेंटेनेंस कार्य को विष्णु संभालते हैं। इसे लालन- पालन कहा जाए या संभालना अथवा उसकी देखरेख करना कहा जा सकता है। जो भी निर्माण किया है, उसका मेंटेनेंस, उसका लालन-पालन, उसकी देखरेख रखना होता है। शिवजी तमोगुण को सक्रिय करते हैं या तमोगुण को चलाएमान करते हैं। तमोगुण का परिणाम विनाश होता है। हम वैष्णव कहलाते हैं। हम विष्णु के भक्त हैं। विष्णु सर्वोपरि भी है और हमारी मान्यता से स्वीकृत भी है। ” बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते | वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः (श्रीमद भगवद्गीता ७.१९ ) अनुवाद: अनेक जन्म-जन्मान्तर के बाद जिसे सचमुच ज्ञान होता है, वह मुझको समस्त कारणों का कारण जानकर मेरी शरण में आता है | ऐसा महात्मा अत्यन्त दुर्लभ होता है। अहम मन्ये..वासुदेवः सर्वमिति विष्णु ही सर्वोपरि हैं। हम वैष्णव कहलाते हैं तो फिर हमारी ख्याति भी होनी चाहिए। विष्णु का कार्य मेंटेनेंस है। यह गुडनेस अथवा सतोगुण में मेंटेन होता है। लेकिन हम उसको इग्नोर करते हैं या टालते हैं अथवा मेंटेन नहीं करते। अगर हम मेन्टेन नहीं करेंगे तो उसका विनाश ही होगा। हम शिव के अनुयायी.... निम्नगानां यथा गङ्गा देवानामच्युतो यथा। वैष्णवनां यथा शुम्भुः पुराणानामिदं तथा।। ( श्रीमद् भागवतं १२.१३.१६) अनुवाद:- जिस तरह गंगा समुद्र की ओर बहने वाली समस्त नदियों में सबसे बड़ी है, भगवान अच्युत देवों में सर्वोच्च हैं और भगवान शंभू (शिव) वैष्णवों में सबसे बड़े हैं, उसी तरह श्रीमद्भागवत समस्त पुराणों में सर्वोपरि है। शिवजी, प्रधान अथवा अग्रगण्य वैष्णव शिरोमणि, चूड़ामणि हैं। उस दृष्टि से वह नंबर वन वैष्णव है लेकिन जहां तक गुणों की बात है, गुण अवतार हैं तो वे तमोगुण के संचालक या नियंता हैं। इसलिए तब विनाश ही होता है। उनके अनुयायी विनाश ही करते हैं। वैसे जब ब्रह्मा सृष्टि कर ही रहे थे तब शिवजी भी प्रकट हुए। हरि! हरि! ब्रह्मा से चार कुमार प्रकट हुए। तत्पश्चात ब्रह्मा जी से शिव जी प्रकट हुए। प्रकट होते ही उन्होंने वैसे अपना कार्य अपने गुणों के अनुसार अथवा तमोगुण कार्य करना प्रारंभ कर दिया। शिवजी के कई सारे संगी साथी पार्षद भी उनके साथ विनाश करने लगे। तब ब्रह्मा ने कहा- 'नहीं! नहीं! अभी नहीं! यह बहुत जल्दी है! विनाश का कार्य तो कल्प के अंत में होता है या महाकल्प के अंत में होता है। अभी तो सृष्टि बनी है। अभी तो प्रारंभ है, विनाश का समय नहीं है। शिवजी विनाश का कार्य करने के लिए तैयार हो रहे थे। लेकिन ब्रह्मा जी ने कहा- रुको! रुको! यह माला ले लो और थोड़ा जप करो। मैं भी करता हूं। ब्रह्मा बोले चतुर्मुखी कृष्ण कृष्ण हरे हरे। महादेव पंचमुखी राम राम हरे हरे।। शिव जी ध्यान करने लगे। शिवजी संकर्षण की आराधना करते हैं। हरि! हरि! हम वैष्णव हैं । हम विष्णु की आराधना करते है। आराधनानां सर्वेषां विष्णोराराधनं परम्। तस्मात्परतरं देवि तदीयानां समर्चनम्।। ( श्री चैतन्य चरितामृत मध्य लीला११.३१) अनुवाद:- "( शिवजी ने दुर्गा देवी से कहा:) हे देवी, यद्यपि वेदों में देवताओं की पूजा की संस्तुति की गई है, लेकिन भगवान् विष्णु की पूजा सर्वोपरि है किंतु भगवान् विष्णु की सेवा से भी बढ़कर है, उन वैष्णवों की सेवा, जो भगवान् विष्णु से संबंधित हैं। विष्णु की आराधना परम आराधना है। हमारी ख्याति मेन्टेन्स के लिए होनी चाहिए। मेंटेन करें। हम अपनी साधना को मेंटेन करें या शरीर का भी मेंटेनेंस है। हमारे घर का मेंटेनेंस है जिस घर का प्रयोग हमें भगवान की सेवा में करना है या जो कुछ भी साधन है, यदृच्छालाभसंतुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः । समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते ( श्री भगवतगीता ४.२२) अनुवाद:- जो स्वतः होने वाले लाभ से संतुष्ट रहता है, जो द्वन्द्व से मुक्त है और ईर्ष्या नहीं करता, जो सफलता तथा असफलता दोनों में स्थिर रहता है, वह कर्म करता हुआ भी कभी बँधता नहीं। भगवान् की इच्छा से हमें जो कुछ भी साधन प्राप्त हुए हैं, उनको मेंटेन करना चाहिए, उसके लिए हमें प्रसिद्ध होना चाहिए। टेम्पल मेन्टेन्स, भक्तों की देखभाल , वह मेंटेनेंस, यह मेंटेनेंस.. मेंटेनेंस,मेंटेनेंस चलता ही रहता है। हम विष्णु के भक्त हैं। विष्णु, सत्व गुण अर्थात विशुद्ध सत्व के भी नियंता हैं। हमें भी मेंटेन करना चाहिए। हमें हमारी साधना को मेंटेन करना है। हर चीज को मेंटेन करना है। ऐसी हमारी ख्याति होनी चाहिए। तब हम वैष्णव है नहीं तो हम कैसे वैष्णव है। फिर आप कहोगे कि हम शैव हो गए। फिर हम सब तथाकथित वैष्णव हैं, नाम तो है वैष्णव लेकिन यदि हमारी कथनी और करनी में अंतर है और हम वैष्णव जैसा मेंटेनेंस का करणीय कार्य नहीं कर रहे हैं तब आप शिव जैसा ही विनाश का कार्य कर रहे हो। अब आप कहिए, आप क्या क्या और कैसे-कैसे सुधार करने का सोच रहे हो ताकि आप तमो गुणो, रजोगुण से बच पाओ और अंततोगत्वा सतोगुण से भी बचना है। शुद्ध सत्व को प्राप्त करना है। या वैसी भावना बनानी है। ठीक है। अब आप बोल सकते हो। हरे कृष्णा! आप क्या करने वाले हैं, आप कैसे प्रोग्रेस करोगे, कैसे सुधार करोगे? या कई प्रकार से आप एडजस्टमेंट करोगे। इस विषय पर केवल बोलिए। हरे कृष्ण!

English

21 October 2020 Upgrade beyond the three modes of nature Hare Krsna! Welcome you all to the Japa Talk. Devotees from 767 locations are chanting with us right now. All devotees are welcome! Good morning. Suprabhatam. Suprabhat is good or you want to make it good. We are making the morning good by this process of chanting. The discussion of the 3 modes of nature is already going on. We will be discussing this topic and how to identify in which mode of nature we are. During the day you are meeting different people or friends, they may be in the mode of ignorant, passion or goodness. When we associate with them it affects our nature. It is said, “You are known by the company you keep” because you are identified by your company. In Marathi, there is one proverb, "When we put two bulls together in one stand, their colour cannot be changed but there will be a change in their nature of quality." We have to understand that passion is better than ignorance and goodness is better than passion and ignorance. We have to come up in the suddha satva. Maybe you were living in an unclean house or an unclean room. This creates the mode of ignorance. The habit of keeping the surroundings clean is in the mode of goodness. Whose association you are in, the kind of books you read and if you watch movies, there are scenes of lust and anger. If you are lusty, and your desire is not fulfilled then you become angry. śrī-bhagavān uvāca kāma eṣa krodha eṣa rajo-guṇa-samudbhavaḥ mahāśano mahā-pāpmā viddhy enam iha vairiṇam Translation: The Supreme Personality of Godhead said: It is lust only, Arjuna, which is born of contact with the material mode of passion and later transformed into wrath, and which is the all-devouring sinful enemy of this world. [BG 3.37] This anger is a by-product of the mode of passion. We must think what should be done to get rid of the mode of passion. If we are 50 years old, it means that for the past 50 years we are constantly changing dominance of these three modes of nature. If we eat the uneatable, it increases the mode of passion. The mouth, the tongue, the genitals are in one line, so if we eat more, then we become lusty. vāco vegaṁ manasaḥ krodha-vegaṁ jihvā-vegam udaropastha-vegam etān vegān yo viṣaheta dhīraḥ sarvām apīmāṁ pṛthivīṁ sa śiṣyāt Translation: A sober person who can tolerate the urge to speak, the mind’s demands, the actions of anger and the urges of the tongue, belly and genitals is qualified to make disciples all over the world. [NOI Verse 1] We sleep more, or we are unable to sleep on time, because we are unable to get up on time. If you get up early, but you have not slept properly so you cannot chant attentively. To sit in one place is mode of goodness To stand is in mode of passion To lie down is in the mode of ignorance All of them have a nature of binding so we must practice being situated in the mode of pure goodness. Krsna says when we get this supreme knowledge of the three modes of nature, we must practice being situated in mode of pure goodness. By this we can go back home back to Godhead. We have to attentively study the three modes of nature. Then we have a better understanding. After that we have to preach this knowledge also. yāre dekha, tāre kaha 'kṛṣṇa'-upadeśa āmāra ājñāya guru hañā tāra' ei deśa Translation: "Instruct everyone to follow the orders of Lord Śrī Kṛṣṇa as they are given in the Bhagavad-gītā and Śrīmad-Bhāgavatam. In this way become a spiritual master and try to liberate everyone in this land." [Madhya 7.128] This knowledge of the three modes of nature is supreme wisdom. And earlier also, many munis attained supreme perfection. We have to leave ignorance and lift ourselves up to suddh satva - parāṁ siddhim ito gatāḥ - because it leads us back to Godhead. The Lords of the three modes of nature are Brahma, Vishnu and Shiva. Lord Brahma is situated in the mode of passion, and he creates (srishti) the material world. Lord Vishnu shows the influence of mode of goodness and takes care of the maintenance (sthiti) of the material world. Lord Shiva shows the influence of the mode of ignorance and takes care of the annihilation (pralayah) of the world. Lord Shiva is the number one Vaisnava and there is no doubt. He is certainly situated beyond the three modes of nature, but just to fulfil his duties he uses and controls the mode of ignorance. As soon as Lord Shiva appeared from between the brows of Brahma, he started accomplishing his duties of annihilation. Lord Brahma stopped him saying that this was not the time. He handed Lord Shiva a japa mala and asked him to sit and chant till the time comes. Maintenance is in mode of goodness brahma bole chatur mukhe krishna krishna hare hare mahadeva pancha mukhe rama rama hare hare Translation: Brahma sings "krishna krishna hare hare" in ecstasy with four mouths & Shiva ecstatically sings "rama rama hare hare" as if with five mouths. Lord Vishnu is the controller of mode of goodness and pure goodness. ārādhanānāṁ sarveṣāṁ viṣṇor ārādhanaṁ param tasmāt parataraṁ devi tadīyānāṁ samarcanam Translation: “[Lord Śiva told the goddess Durgā:] ‘My dear Devī, although the Vedas recommend worship of demigods, the worship of Lord Viṣṇu is topmost. However, above the worship of Lord Viṣṇu is the rendering of service to Vaiṣṇavas, who are related to Lord Viṣṇu.’ [CC Madhya 11.31] We are Vaisnavas. That is why we can focus on maintenance and not pay too much attention on annihilation and creation. We have to maintain our sadhana, japa, preaching, prasada etc. We should also try to engage in maintaining our house, the temples, etc. If we are busy in creating or destroying then we are not pure Vaisnavas. You all may share what you are planning to do to upgrade yourselves to the mode of pure goodness. Haribol! Thank you so much.

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