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हरे कृष्ण जप चर्चा पंढरपुर धाम से, 10 नवंबर 2020

आज हमारे साथ 781 स्थानों से भक्त जप कर रहे है। क्या आप ने सुन लिया ?आप प्रसन्न हो इस नंबर से? 780 चल रहा है, पद्ममाली अभी तक 1000 नहीं हुआ, देखो कुछ प्रयास करो! उज्वला गोपी माताजी नागपुर से उनका 71वा जन्मदिवस था। हमारा भी दीक्षा का दिन था और राधा कुंड का आविर्भाव तिथि था, उज्वला गोपी माता जी का जन्मदिवस था गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल,आपको जन्मदिवस की शुभकामनाएं! और आप सभी का भी स्वागत और आप सभी को भी मेरी सदिच्छा, शुभकामनाएं! हरि हरि।

तो अभी कार्तिक मास चल रहा है तो मान लीजिए कि हर दिन विशेष है, सुखी रहो, भक्तिवान बनो और अपना जीवन सफल बनाओ। ब्रजमंडल परिक्रमा, दीपदान करो! औरोंसे भी करवाओ! ऐसा नहीं कि, हमारा भाग्योदय हुआ तो बस हुआ, ऐसा वैष्णव का स्वभाव नहीं होता, वैष्णव पर दुखी दुखी होते है! तो जब श्रील प्रभुपाद वृंदावन में थे तो राधा दामोदर मंदिर में रहते थे। लेकिन अमेरिका को प्रस्थान किए वृंदावन को नहीं छोड़ना चाहिए था, भगवान भी नहीं छोड़ते।वृंदावन परित्यज्य अकम् पगं न गच्छन्ति वृंदावन को छोड़कर एक भी नहीं जाते वृंदावन के कृष्ण, लेकिन श्रील प्रभुपाद उनके गुरु के आदेशानुसार गए! तो ऐसा ही है परंपरा के आचार्य पर दुखी दुखी होते है। दूसरों को दुखी देखते हैं तो वह स्वयं दुखी हो जाते है। और दुखी होके वह सोचते हैं कि कैसे उनको हम सुखी कर सकते है? संतों का या भक्तों का यही चिंतन का विषय रहता है। और भगवान का भी, भगवान भी तो चिंतित रहते है! तो भगवान की ओर से भगवान उनके आचार्य गनों को यानि बाप जैसे-जैसे बेटे भगवान है बाप तो आचार्य है उनके बेटे! और हम भी उन आचार्य उनके बेटे है या हम भी भगवान के छोटे-मोटे बेटे है। भगवान जैसे सोचते है या भगवान जैसे चिंतित होते है, भगवान भी पर दुखी दुखी होते है। वैसे पर दुख क्या, वे पाराए है ही नहीं! जीव पराए थोड़ी ना है? जिओ भी भगवान के ही है।

ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः | मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति || भगवतगीता १५.७

अनुवाद:- इस बद्ध जगत् में सारे जीव मेरे शाश्र्वत अंश हैं । बद्ध जीवन के कारण वे छहों इन्द्रियों के घोर संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें मन भी सम्मिलित है ।

तो जीव पराए कैसे हुए? जीव उन्हीं के है। वैसे हमारे लिए भी जो अन्य जीव है वह पराए थोड़ी ना है? वैसे

मातृवत् परदारेषु परद्रावणी लोष्ठवत्। आत्मवत् सर्वभूतानि यः पश्यति सः पण्डितः।( चाणक्य श्लोक १०) अनुवाद:- अन्य व्यक्तियों की पत्नियों को माता के रूप में मानें, दूसरों के धन पर नज़र न रखें, उसे बाहरी व्यक्ति समझें और सभी लोगों को अपना समझें।

वैसे पंडित मतलब ज्ञानी या जानकार, समझदार होता है। पंडित कौन है? जो जानता है आत्मवत् सर्वभूतानि जो जीव है, वह मेरे जैसे ही है मेरे प्रभु के है। तो वह भी पराए नहीं है! हरि हरि। मैं आपको समझाना चाहता था कि, हर एक जीव भगवान का अंश है, भगवान के जैसे ही है। तो उनका दुख देखकर, भगवान दुखी होते है, और जब भगवान दुखी होते हैं तो हमें भी दुखी होना चाहिए! लेकिन इस संसार में कुछ और ही होता है। भक्ति विनोद ठाकुर अपने गीत में गाते है, पर दुखे सुखी वैसे आप नहीं हो और मैं भी नहीं हूं लेकिन कई सारे लोग दूसरों को दुखी देखकर सुखी होते है। कोई परेशानी में है तो उसे मरने दो! जेसे मृगारी, मृग मतलब जानवर हरि मतलब हत्यारा, शिकारी। तो जब शिकारी पशु की हत्या करता है तो उसे आधा ही मार देता है, और जब वह पशु कई सारे वेदना का अनुभव करता है तो यह शिकारी वह दृश्य देखकर नाचने लगता है, सुखी होता है। और यह बात देखकर नारद मुनि प्रसन्न नहीं थे की, मृगारी पशु को आधा ही मारता है सिर्फ हाथ या पैर काट देता है। तो यह बहुत बड़ी कथा है, तो ऐसा दृश्य देखकर नारद मुनि बहुत दुखी थे। वैष्णव जन तो तेने रे कहिए जे पीड़ पराई जाणे रे। वैष्णव तो उन्हें कहिए दूसरों की पीड़ा जानता है। तो ऐसे नारद मुनि जैसे आचार्य है, उदाहरण के तौर पर मैं यह बात कह रहा हूं लेकिन आचार्य तो ऐसे ही है। हरि हरि। तो फिर उन्होंने मृगारी को शिक्षा दी, तो उसके खोपड़ी में कुछ प्रकाश डाला,

ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै शीगुरवे नमः

अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया ऐसा कुछ किया और फिर वही मृगारी असुरी प्रवृत्ति का था। वैसे मुझे ब्रज मंडल परिक्रमा के बारे में कुछ कहना था तो कहां से कहां जा रहे है। ठीक है! अब आगे बढ़ते है, तो यह मृगारी पुनर्जन्म को स्वीकार नहीं करता था। तो उसने नारद मुनि से पूछा किसने देखा है पुनर्जन्म? नारदमुनि ने कहा तुम्हें इस कर्म का फल भोगना पड़ेगा, इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में! तो उसने कहा कि, अगला जन्म किसने देखा है ? पुनर्जन्म होता ही नहीं है! जेसे चार्वाक मुनि ने कहा, कुथः पुनर आगमन भवेत् एक बार शरीर की राख हो गई तो पुनर्जन्म किसने देखा है? मैं नहीं मानता पुनर्जन्म को। तो नारादमुनी ने मृगारी को कहां, 10000 वर्षों के उपरांत का दृश्य देखो! तो मृगारी देख रहे, जिस चिड़िया की हत्या किए थे वह चिड़िया बनी है बहुत बड़ा पक्षी गिद्ध और मृगारी बने हैं चिड़िया! गिद्ध चिड़िया के पीछे दौड़ रहा है, तो चिड़िया कितना दौड़ पाएगी आखिर चिड़िया को पकड़ ही लेता है, और फिर भक्षण होता है। और फिर अगले जन्म में 10000 वर्षों के उपरांत या 100000 वर्षों के उपरांत ऐसा होने वाला है, ऐसे सारे दृश्य नारद मुनि जो भूत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता है वह मृगारी को बस कह नहीं रहे थे, दिखा रहे थे! मृगारी ने जब यह सब देखा तो, जिसे अंग्रेजी में कहा जाता है कि जब हम देखेंगे तब स्वीकार करेंगे! नास्तिक लोग कहते है, तुम कहते हो कि, भगवान है तो दिखाओ कहां पर है, दिखाओगे तो हम विश्वास करेंगे कि भगवान है! वैसे यह कुतर्क चलता रहता है संसार में, है तो बदमाश या चार्वाक मुनि का चेला!हरी हरी। गृहमेदि सुखादी तुच्छम् गृहमेदि बन कर सुख का आनंद ले रहा है, और ऐसा व्यक्ति कहता है की, मुझे भगवान दिखाओ! तो प्रभुपाद कहते थे, है दुष्ट! तुम भगवान को देखना चाहते हो? तुम्हारी गुणवत्ता क्या है? हरि हरि। तो फिर भी नारदमुनि ने इस मृगारी का भविष्य दिखा ही दिया और जब देखा तो उसने विश्वास कर लिया। नारद मुनि का उद्देश्य यही था कि मृगारी हत्या छोड़ दे!

यह दृश्य जब देख लिया मेरा भविष्य ऐसा है , वैसा है , और अब जो मैं पाप कृत्य कर रहा हू इसका फल मेरा पीछा छोड़ने वाला नहीं है , तो यह और किसने देखा है पुनर्जन्म मतलब फिर मैं जितना चाहे जी भर के पाप कर सकता हूं क्योंकि पुनर्जन्म है ही नहीं और पाप का कुछ तो होगा ही नहीं क्योंकि पुनर्जन्म है ही नहीं । हरि हरि । अपने कर्मों के या पाप के फल से बचना चाहते हैं ऐसा समझकर लेकिन फिर कहां है । खरगोश का कभी शेर फिछा कर रहा है और खरगोश दौड़ रहा है तब वह जब देखता है कि शेर मेरा पीछा नहीं छोड़ने वाला अब आ ही रहा है , आ ही सकता है तो फिर खरगोश क्या सोचता है ? देखो उसका दिमाग , छोटा सा गड्ढा बनाता है और उस मूह को गड्ढे में डाल लेता है और फिर सोचता है , किसने देखा है शेर ? शेर है ही नहीं । शेर है ही नहीं ।शेर क्या होता है ? शेर तो है ही नहीं ? शेर आ ही नहीं रहा है , ऐसा मान के मन्नते ऐसा मानकर , ऐसा मानता है वह खरगोश फिर ऐसे मान्यता से वह बचेगा नहीं , शेर तो आ ही रहा है , आ ही गया है और खा लिया है । यह जब हुआ ? किसने देखा है और यह जो लोग कर्म फल से , पाप फल से बचना चाहते हैं तो ऐसा कोई पर्याय सोचते हैं लेकिन ऐसा नहीं होता है , ऐसे नियम भगवान ने बनाए हैं और पुनर्जन्म तो है ही , तुम जानते हो , मानते हो कोई फर्क नहीं पड़ता है । पुनर्जन्म तो है ही और पुनर्जन्म में फिर पुण्य फल , पाप का पुण्य का फल तो भोगना ही होगा । ऐसे भगवान ने तो कहा ही है जगन्न गुणवती जो पुण्यात्मा है वह स्वर्गतक ही जाएंगे , भगवत धाम नहीं जाएंगे और जो अन्य है पाप करने वाले नीचे जायेंगे । अगर पुनर्जन्म नहीं होता तो फिर भगवान क्यों कहते थे की पुण्यवान वहा जाएंगे , पापी वहा जाएंगे । पुनर्जन्म है कि नहीं ? अगर भगवान कह रहे हैं तो है , शास्त्रों में कहा है तो समाप्त हो गया , हमें सोचना ही नहीं चाहिए । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।

फिर इस प्रकार मृगारी ने नारद मुनि की बातों को स्वीकार किया और आज से मैं हिंसा करना बंद करता हू , फिर बाण को तोड़ दिया , धनुष्य बाण फेंक दिया । तुम यह माला ले लो और जप करो ।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।

ऐसा राम का मंत्र रत्नाकर ने वाल्मिकी कोभी दिए था । डाकू थे , गुंडे थे , लुटेरे थे तो वह भी जानते हैं आगे क्या हुआ । राम नाम लेते हुए राम के उत्तम , उच्च कोटि के भक्त बने हैं , वैसे ही यह मृगारी अपने पत्नी के साथ जप करता है , दोनों पति पत्नी जप कर रहे हैं । उनको यह भी कहा था कि मैं जप तो करूंगा तो फिर पेट की पूजा कैसे होगी ,सामान कैसे लाऊंगा , सब व्यवस्था कैसे होगी तब नारद मुनीने कहा , चिंता मत करो , मां शुच: भगवान ने कहा है , डरो नहीं

अनन्याश्र्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते । तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ||

अनुवाद : किन्तु जो लोग अनन्यभाव से मेरे दिव्यस्वरूप का ध्यान करते हुए निरन्तर मेरी पूजा करते हैं, उनकी जो आवश्यकताएँ होती हैं, उन्हें मैं पूरा करता हूँ और जो कुछ उनके पास है, उसकी रक्षा करता हूँ |

योगक्षेमं वहाम्यहम् भगवान का वचन है मेरे भगवान की जो आवश्यकता है उसकी पूर्ति में करता हूं । वैसे भी भगवान करते ही रहते है सभी के लिये ।

एकनो बहूनाम चलता ही रहता है , मनुष्य केवल चिंता करता रहता है व्यवस्था , व्यवस्था , परिवार की व्यवस्था ?पहले चिंतन करो । चिंता को छोड़ो चिंतन करो , मनन करो । मृगारी नाम जप तुलसी महारानी के पास बैठकर करते तो सर्वत्र चर्चा हो रही थी , मृगारी वह शिकारी जप कर रहा है , तप कर रहा है , महात्मा बन रहा है तो लोग उससे मिलने के लिए जाया करते थे और जो मिलने के लिए आते थे कई सारे भेट लेकर आते थे , हमारे तरफ से यह पत्रं , पुष्पं , तोयं या वस्त्रम या फलम तो कोई कमी नही थी । हरि हरि । एक समय नारद मुनि पुनः जहा मृगारी अपने जप तप में तल्लीन थे वहां उस स्थली के आकाशमार्ग से जब नारायण नारायण नारायण नारायण नारद मुनि बजाए बिना कीर्तन करते हुए नारद मुनि जा रहे हैं तो याद आया , यही तो मैंने मृगारी को शिक्षा और दीक्षा दि , तो चलो देखते हैं इसकी साधना कैसे चल रही है ? फिर नारद मुनि नीचे उतरे और मृगारी ने जैसे ही देखा नारद मुनि और आगे बढ़ रहे थे किंतु नारद मुनि ने यह देखा कि , उनका शिष्य बड़े मंद गति से उनके और आगे बढ़ रहा है , बीच में झुकता है कभी दहीनी और मूडता है , कभी आगे की ओर बढ़ता है , कभी बाहे मुड़ता है , कभी झुकता है , कभी चलता है तो नारद मुनि देखते रहे और आश्चर्य करते रहे , क्या कर रहे हो ? इतना धीरे-धीरे क्यों चल रहे हो ? अंतत्व गत्वा वह पहुंच ही गए फिर नारद मुनि के चरणों में साष्टांग दंडवत प्रणाम किया और नारद मुनि ने पूछा , क्या हुआ तुमने जैसे हमको देखा तो दोडकर आना चाहिए था हमसे मिलने के लिए , मैं देखी रहा हूं तुम इतना धीरे क्यो आ रहे थे ? कितना सारा समय बिताया विलम से क्यों आ रहे हो ? मृगारी ने कहा हां मैं आना तो चाहता था लेकिन दौड़ के कैसे आता ? क्यों क्या समस्या थी ? मृगारी ने कहा रास्ते में कई सारी चीटियां थी चीटियां , मैं दौड़कर आता तो कई सारी चीटियों की हत्या कर देता पाप हो जाता यह टालने के लिए मैं रास्ता साफ करते हुए आ रहा था , मुझे माफ कर दो , मुझे माफ करना मैं ज्यादा जल्दी नहीं आ सका , लेकिन यह जब ऐसा उत्तर मृगारी से नारद मुनि ने सुना नारद मुनि ने वह आगे बढ़े और अपने प्रिय शिष्य को गाढ आलिंगन दिया और फिर कहां शाबाश बहुत अच्छा किया मृगारी । यछ प्रसादाद भगवद् प्रसादो तुमने मुझे प्रसन्न किया है । एक समय के तुम मृगारी , अब तो मृग अमृत हो गए । पशुओं के शत्रु ऐसी तुम्हारी ख्याति थी कु विख्यात थे लेकिन अब तो तुम सु विख्यात बन गए हो । सारे पशुओं के मित्र बन गए हो , यहां तक कि चीटियों को भी तुम मारना नहीं चाहते हो , दुख नहीं पहुंचाना चाहते हो , तुममे इतनी सारी करुना जागृत हुई है । हरि हरि ।

अब समय भी हो गया है और नारद मुनि और मृगारी कि यह कथा भी हुई फिर नाम का महीना भी आपने सुना , हरी नाम जप करने से कैसे विचारों की क्रांति कैसे हो सकती है , यह भी आपने मृगारी के चरित्र में देखा । और पापका तो फल भोगना ही पड़ता है पुनर्जन्म है इस बात को मृगारी ने भी स्वीकार किया , समझा तो आप भी समझे होंगे । मृगारी समझे तो फिर मृगारी को समझाते समझाते आप को समझाने का तो प्रयास ही है । इस उदाहरण से मृगारी का चरित्र ऐसी कई शिक्षाएं दी है व्यक्ति एक समय का पापी दुराचारी कैसे सदाचारी बन सकता है यह ज्वलंत उदाहरण है । हरि हरि । गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ।

आप समझे होगे तो यह बात आप औरों को सुनाओ । आपको हम क्यों सुना रहे हैं ? क्यों सुना रहे हैं ? आपके लिए सुना रहे हैं , और साथ ही साथ आप औरों को भी सुनाओगे इस उद्देश्य से भी सुना रहे हैं । यह सारी बातें खुद तक सीमित नहीं रखना , इन बातों का प्रचार प्रसार , यह सत्य है , यह सत्य का प्रचार होना चाहिए । आपको मंजूर है ? सत्य भी मंजूर है ?और औरों तक पहुंचाने की बात भी मंजूर है ? हां !मुंडी तो हिला रहे हो नंदी बैल जैसे । परिक्रमा करते रहो , दामोदर मास में प्रचार करो और औरों से दीपदान कराओ , आप में से कई सारे कर रहे हो , रिपोर्टिंग भी करो , रिपोर्टिंग कर सकते हो , लिख सकते हो आप क्या क्या कर रहे हो और रोज परिक्रमा में जुड रहे हो या नहीं यह भी बताना होगा , आपका स्कॉर देखा जयेगा । हरि हरि । ब्रजमंडल दर्शन किताब को भी पढ़ो , यह सब करते रहो ।

गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।

ब्रजमंडल परिक्रमा की जय । यशोदा दामोदर की जय । श्रील प्रभूपाद की जय ।

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