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*जप चर्चा*, *नागपुर से*, *19 सितंबर 2021* हमारे साथ 764 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। हरे कृष्ण। मैं नागपुर पहुंचा हूं। इस्कॉन नागपुर की जय। हम डॉ श्यामसुंदर शर्मा प्रभु के गांव में आ गए। आज एक विशेष तिथि है। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर आविर्भाव तिथि महोत्सव की जय। *नमो भक्तिविनोदय* *सच्चिदानंद नामिने* *गौर-शक्ति-स्वरूपाय* *रूपानुगा-वरायते* आप भी प्रार्थना करो। आपने ही तो कहा कि नहीं? हरि हरि। इनका नाम सच्चिदानंद भक्तिविनोद था। वह सत चित आनंद थे। उनका नाम भी सच्चिदानंद भक्तिविनोद था। *गौर-शक्ति-स्वरूपाय*। गौरंग गौरंग। गौर शक्ति के स्वरूप और मूर्तिमान, गौर शक्ति का ही उन्होंने प्रदर्शन किया। *रूपानुगा-वरायते* रूपानुगो में वह श्रेष्ठ रहे। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर की जय। यदि भक्ति विनोद ठाकुर ना होईते। वैसे यह सब पर लागू होता है। गौर ना होईते, प्रभुपाद ना होईते, श्रील भक्तिविनोद ठाकुर ना होईते तो की होईते। आगे कुछ भी नहीं होना था। क्या कहा जाए। हम कहने तो कह रहे थे कि श्रील भक्तिविनोद ठाकुर एक महान आचार्य रहे। वह कितने महान रहे। कौन जानता है और कौन समझ सकता है, उनकी महिमा और बड़प्पन। हरि हरि। यह ब्रिटिश काल में रहे। बड़ी कठिन काल था और विकट परिस्थिति भारतवर्ष में थी। उनका जन्म 1838 में हुआ था और तिरोभाव 1914 में हुआ। 1914 की बात कर रहे हैं। 2014 की बात नहीं कर रहे। 1914 में तीरोभाव हुआ। कल्पना कर सकते हो, कब रहे और कब हुए। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर अपने जमाने के वह डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट रहे। वैसे अंग्रेज भारतीयों को ज्यादा जिम्मेदारी या पद्मी नहीं दिया करते थे। कुछ गिने चुने भारतीयों को जिम्मेदारी दिया करते थे। उनमें से एक थे श्रील भक्तिविनोद ठाकुर। उन दिनों में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट बहुत ऊंचा पद होता था। वह डिस्ट्रिक्ट भी जगन्नाथ पुरी धाम की जय। जगन्नाथ पुरी धाम के मजिस्ट्रेट बने। उनकी कोठी आज भी है। आप अगर जगन्नाथपुरी कभी गए होगे या आप जाओगे तो भक्तिविनोद ठाकुर की कोठी पर जरूर जाना। जो रथयात्रा के मार्ग पर ही है। श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर का जन्म हुआ था। वही उन्होंने अपना जीवन के कार्य को प्रारंभ किए। हरि हरि। जीवन का मिशन कहिए। वहीं पर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के तौर पर दुष्टों का संहार भी किए। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 4.8) अनुवाद:- भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ | तांत्रिक या सिद्धि बाबा जो स्वयं को भगवान घोषित कर रहे थे। उनको गिरफ्तार किया। उनको जेल में डाला और वह चल बसे। इस आंदोलन को या श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के गौडीय वैष्णव परंपरा का काफ़ी प्रचार हो। आगे बढ़ता रहे यह प्रचार, श्रील भक्तिविनोद ठाकुर की ऐसी तीव्र इच्छा थी। तो उन्होंने जगन्नाथ से प्रार्थना भी की। मुझे ऐसा पुत्र रत्न प्राप्त हो। यह चैतन्य महाप्रभु का आंदोलन *संकीर्तन एक पितरों*। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर की पुकार या प्रार्थना को जगन्नाथ स्वामी सुने और उनको पुत्र रत्न प्राप्त हुआ। वह रहे श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर की जय। विमला प्रसाद उनका नाम दिया था। जगन्नाथपुरी मंदिर में विमला देवी है। उन्होंने समझा कि यह विमला देवी का ही प्रसाद है। मेरा पुत्र विमला प्रसाद या विमल प्रसाद नाम लिया। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर वैसे रिटायर्ड होना चाहते थे या सेवानिवृत्त होना चाहते थे। उनकी सरकारी नौकरी थी और उनको पूरा समर्पित होना था और अपनी पूरी शक्ति सामर्थ्य के समय गौरांग महाप्रभु के आंदोलन की सेवा में लगाना चाहते थे। उन दिनों में श्रील भक्तिविनोद ठाकुर उनका नाम केदारनाथ दत्त था, जो पारिवारिक नाम था। उनको छोड़ नहीं रहे थे। उनको ट्रांसफर किया गया। दूसरा जिला कृष्ण नगर में उनको भेजा गया। जो नवद्वीप मायापुर के पास था। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर रिटायर हो कर मायापुर में वास करना चाहते थे। तो अंग्रेज सरकार ने उनको सेवा से निवृत्त तो नहीं होने दिया किंतु मायापुर के पास पहुंचा दिया कृष्ण नगर में और मायापुर धाम में श्रील भक्तिविनोद ठाकुर अपने कार्य को आगे बढ़ाएं। अभी तो उनको सप्तम गोस्वामी कहते हैं। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर को सातवें गोस्वामी कहते हैं। जो कार्य षठ गोस्वामी वृंदो ने किया। *वंदे रूप - सनातनौ रघु - युगौ श्री - जीव - गोपालको।* *नाना - शास्त्र - विचारणैक - निपुणौ सद् - धर्म संस्थापकौ लोकानां हित - कारिणौ त्रि - भुवने मान्यौ शरण्याकरौ राधा - कृष्ण - पदारविंद - भजनानंदेन मत्तालिकौ वंदे रूप - सनातनौ रघु - युगौ श्री - जीव - गोपालकौ।।२ ।।* (श्री श्री षड् गोस्वामी अष्टक) अनुवाद:- मै , श्रीरुप सनातन आदि उन छ : गोस्वामियो की वंदना करता हूँ की , जो अनेक शास्त्रो के गूढ तात्पर्य विचार करने मे परमनिपुण थे , भक्ति रुप परंधर्म के संस्थापक थे , जनमात्र के परम हितैषी थे , तीनो लोकों में माननीय थे , श्रृंगारवत्सल थे , एवं श्रीराधाकृष्ण के पदारविंद के भजनरुप आनंद से मतमधूप के समान थे । इन षठ गोस्वामी वृंदो ने जो वृंदावन में कार्य किया वैसा ही कार्य श्रील भक्तिविनोद ठाकुर ने मायापुर में किए। मायापुर धाम के श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की लीला स्थलियो को खोजना, ग्रंथों की रचना करना, नवद्वीप मंडल परिक्रमा की स्थापना करना और इस प्रकार पूरे धाम के गौरव को बढ़ाना और फैलाना, धाम को प्रकाशित करना, यह कार्य श्रील भक्तिविनोद ठाकुर मायापुर में किए। वही कार्य जो षठ गोस्वामी वृंदो ने वृंदावन में किया था। हरि हरि। मायापुर में नवद्वीप जहां है, नवद्वीपो में से एक द्वीप गोदरूम द्वीप है। गोदरूम द्वीप में श्रील भक्तिविनोद ठाकुर रहने लगे। पहले उनकी कोठी जगन्नाथपुरी में थी। गोदरूम द्वीप में स्वरूपगंज में उनकी कोठी थी और श्रील भक्तिविनोद ठाकुर उस स्थान को भक्तिविनोद ठाकुर समाधि के रूप में जाना जाता है। वह केवल वहां पर रहे ही नहीं। ऐसा भी समय था। एक विशेष समय ऐसा भी था। एक ही साथ जहां भक्तिविनोद ठाकुर रहा करते थे। हमारे परंपरा के चार अचार्य एक साथ वहां पर उपस्थित रहा करते थे। जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज भक्ति विनोद ठाकुर के गुरु महाराज या शिक्षा गुरु जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज। फिर स्वयं भक्तिविनोद ठाकुर, उनके शिष्य गौर किशोर दास बाबाजी महाराज और उनके शिष्य भक्तिविनोद ठाकुर के पुत्र श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर। वहां पर रहा करते थे, उपस्थित होते थे। विचार ,विमर्श और शास्त्रार्थ किया करते थे। षठ गोस्वामी वृंद वृंदावन में राधा दामोदर मंदिर के आंगन में एकत्रित होकर शास्त्रार्थ किया करते थे। यहां नवद्वीप में हमारे 4 आचार्य एक साथ थे। उन दिनों में अभय चरण डे कोलकाता में थे। अभी तक उनका संपर्क इस परंपरा के साथ नहीं हुआ था। भक्तिविनोद ठाकुर कई सारे ग्रंथ लिखे। वह लेखक भी थे और कवि भी रहे। उनकी कविताएं और उनके गीत अब पूरा संसार गा रहा है। इसमें वह गीत भी सम्मिलित है जो श्रील प्रभुपाद अपने हर प्रवचन के प्रारंभ में गाया करते थे। *जय राधा माधव, *जय कुन्ज बिहारी *जय राधा माधव, *जय कुन्ज बिहारी *जय गोपी जन बल्लभ, *जय गिरधर हरी *जय गोपी जन बल्लभ, *जय गिरधर हरी* **॥ जय राधा माधव...॥* *यशोदा नंदन, ब्रज जन रंजन *यशोदा नंदन, ब्रज जन रंजन *जमुना तीर बन चारि, *जय कुन्ज बिहारी* *॥ जय राधा माधव...॥* यह गीत भी भक्तिविनोद ठाकुर की रचना है। *किब जय जय गौराचंदेर आर्तिको शोभा* यह संध्या आरती का गीत भक्तिविनोद ठाकुर की रचना है। *विभावरी - शेष , गोपनन्दपाल आलोक - प्रवेश निद्रा हि उठ जीव ।* इस्कॉन कृष्ण बलराम वृंदावन में मंगला आरती में यह गीत गाया जाता है। *जीव जागो जीव जागो गौरा चांद बोले* द्वारा यह भक्ति विनोद ठाकुर की रचना है। *अरुणोदय - कीर्तन उदिल अरुण पूरब भागे , द्विजमणि गोरा अमनि जागे , भकतसमूह लइया साथे , गेला नगर - बाजे* यह प्रसिद्ध गीत है। भक्तिविनोद ठाकुर की रचना है और ऐसे कई सारे गीत है। *यशोमती नंदन ब्रजबर नागर गोकुल रंजन कान्हा* यह भक्तिविनोद ठाकुर ने इन गीतों में जो भाव है और भक्ति है। वे भगवान की लीला, गौर लीला या कृष्ण लीला का का वर्णन करते हैं। जिससे हम समझ सकते हैं, उनके दिल और दिमाग में क्या था। वह क्या सोचते हैं। उनके क्या विचार हैं। भक्तिविनोद ठाकुर के क्या भाव है। व्यक्ति की पहचान होती है उसकी वाणी से। उसको बोलने तो दो। उसको माइक्रोफोन तो दो, उसको बोलने दो। तो पता चलेगा कि वह मूर्ख नंबर एक का है। 1 मिनट में पता चलेगा मुंह खोलते ही। लेकिन भक्तिविनोद ठाकुर मुंह खोलते ही, उनके मुखारविंद से जो वाणी निकलती थी। यह तो उनके गीत रहे हम सबको श्रील प्रभुपाद ने कहा है कि यह भक्ति विनोद ठाकुर के गीत हैं और इस्कॉन में हम नरोत्तमदास ठाकुर के गीत गाते हैं। यह वेद वाणी ही है। हरि हरि। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर कहीं सारे ग्रंथ लिखे। नवद्वीप मंडल परिक्रमा यह ग्रंथ नहीं लिखते तो हमको पता नहीं चलता कि नवद्वीप मंडल परिक्रमा कहां से प्रारंभ करें। कौन सी लीला कहां पर हुई इत्यादि इत्यादि। पूरा मार्गदर्शन उन्होंने हमको इस ग्रंथ में किए हैं। जैव धर्म नामक एक प्रसिद्ध ग्रंथ है। जीव का धर्म बहुत ही मशहूर है उसमें कहीं सारे संवाद के रूप में है। इस जैव धर्म नामक ग्रंथ में वह गौडीय वैष्णव सिद्धांत स्थापित करते हैं। उन्होंने कई सारे भाष्य लिखे। भक्तिविनोद ठाकुर में विशेष रूप से चैतन्य चरितामृत लिखे, अमृत प्रवाह भाष्य लिखा। श्रील प्रभुपाद ने चैतन्य चरितामृत की रचना किए या भाषान्तर किए, तो अमृत प्रवाह भाष्य भक्ति विनोद ठाकुर । इसी का अनुवाद किए हैं अध्यायों का जो परिचय हैं रेल भक्ति विनोद ठाकुर के अमृत प्रभाह पर यह आधारित है । हरि हरि !! और अन्य सारी किताबें । हरिनाम चिंतामणि ! हम जप करने वाले लोग हैं । जपा क्षेत्र करते हैं तो भक्ति विनोद ठाकुर हरिनाम चिंतामणि नाम ग्रंथ लिखे । अपराधियों को कैसे टालना चाहिए किस को अपराध कहते हैं और वैसे यह हरिनाम चिंतामणि तो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु और नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर मध्य का संवाद है । उसी को यह चिंतामणि हरिनाम चिंतामणि के रूप में वे लिखे हैं । ऐसे कई ग्रंथों का श्रील भक्ति विनोद ठाकुर और यह बड़े सामाजिक विज्ञान भी कहिए । श्रील भक्ति विनोद ठाकुर के समय जो ... यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ ( भगवत गीता अध्याय 4.7 ) हे भारतवंशी ! जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है , तब तब मैं अवतार लेता हूँ । धर्म की हुई ग्लानि या सिद्धांत खेल रहे थे समाज में सर्वत्र तो श्रील भक्ति विनोद ठाकुर सारा अध्ययन किए । अबलोकन किए । परीक्षण निरीक्षण किए । और एक पूरी लिस्ट बनाएं । यह है आउल् और यहां है बाउल् । यह है सहजिया, गोरांग नागरी इत्यादि इत्यादि । कुछ एक दर्जन जो अपसिद्धांत जो वैसे दूर्दैव से जो गुड़िय वैष्णव परंपरा में कई सारे बिगाड़ लाए गए मिश्रण हुआ और सिद्धांतों के या विरोध में प्रचारहो रहा था तो श्रील भक्ति विनोद ठाकुर उसका सारा खंडन मंडन किए । उसी को आगे अपसिद्धांत-व्धन्त- हारिणे । भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर उस कार्य को आगे बढ़ाए फिर श्रील प्रभुपाद और भी आगे बढ़ाए संसार भर में । सही सिद्धांतों की स्थापना की जा रही है किंतु भक्ति विनोद ठाकुर ही थे जिन्होंने यह सब नोट किया प्वाइंट आउट किया । समझाया कि नहीं नहीं यह गलत है यह सही नहीं है यह । यह दोष है, यह त्रृटी है, यह अभाव है । कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान्गुणः । कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः परं व्रजेत् ॥ ( श्रीमद् भागवतम् 12.3.51 ) अनुवाद:- हे राजन् , यद्यपि कलियुग दोषों का सागर है फिर भी इस युग में एक अच्छा गुण है केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करने से मनुष्य भवबन्धन से मुक्त हो जाता है और दिव्य धाम को प्राप्त होता है । इसी के साथ उन्होंने ... परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ ( भगवद् गीता 4.8 ) अनुवाद:- भक्तों का उद्धार करने , दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ । आचार्य धर्म की संस्थापना करते हैं । एक तो भगवान करते हैं यह तीनों भी कार्य वैसे "परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥" एक तो भगवान के प्रकट होते ही हैं । "परित्राणाय साधूनां" भक्तों की रक्षा और "विनाशाय च दुष्कृताम्" दुष्टों का या दुष्ट प्रवृत्ति का विनाश या दमन का या उसको समूल नष्ट करने का प्रयास और सफल प्रयास भगवान भी करते हैं और जब जब भगवान की प्रकट लीला संपन्न होती है यहां पृथ्वी पर तो दरमियान एक अवतार और दूसरे अवतार के बीच में परंपरा के आचार्य परंपरा में आने वाले आचार्य भगवान का कार्य आगे बढ़ाते हैं तो "धर्मसंस्थापनार्थाय" तो धर्मसंस्थापन यह कार्य तो भगवान का है किंतु "साक्षाद्धरित्वेन समस्त-शास्त्रैर्" भगवान श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जैसे आचार्य को शक्ति प्रदान करते हैं । "गौर शक्ति स्वरूपाय" और उनसे यह कार्य करवाते हैं जैसे श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने यह कार्य किया या इतना संभ्रम था उन दिनों में कि वैसे चैतन्य महाप्रभु की जन्मस्थली का लोगों का पता नहीं था कई सारे मत मतान्तर थे तो श्रील भक्ति विनोद ठाकुर के प्रयासों से उसको विराम और स्पष्ट हुआ तो उन्होंने अपने गुरु महाराज जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज की मदद से अपने गुरु महाराज को स्वयं तो नहीं और एक व्यक्ति उनको ढो रहे थे टोकरी में और ले जा रहे थे सारे नवदीप में । जैस कुछ वाटर डिटेक्टर होते हैं ना किसान को कुआं खोदना होता है ना तो ऐसे कुछ लोग होते हैं जो जानते हैं कि हां यहां खोदो कुआं पानी मिलेगा । यहां घूमता है वहां फिरता है वह एक जगह पर पहुंच जाता है, हां ! पानी यहां मिलेगा तो वैसे ही हुआ भक्ति विनोद ठाकुर जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज के मदद से वह डिटेक्ट करना चाहते थे चैतन्य महाप्रभु का आविर्भाव स्थान तो घूम फिर के वे पहुंच गए यह सब वहां से जब वे जा रहे थे इसको हम अब कहते हैं योग पीठ जन्मस्थली । वहां जब वह आए तो जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज जो कुछ 130 साल के थे । 130 वर्ष के थे सीधे बैठ भी नहीं पाते थे जैसे हम देखते हैं उनका चित्र है । आंखें नहीं खुलती दूसरे भक्त उनको आंखों खोल देते थे कि वह देख पाते थे । वे जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज उसमें ऐसे जोश में आए, ऐसी एनर्जी उनको मिली वो टोकरी में ही छलांग मारने लगे । हरि बोल ! हरि बोल ! हरि बोल ! गौरांग ! गौरंग ! गौरांग ! गौरंग ! तो इस बात की स्थापना हुई थी यही स्थान है । गौराविर्भाव-भूमेस्त्वं निर्देष्टा सज्जनप्रियः । वैष्णव-सार्वभौमः श्रीजगन्नाथाय ते नमः ॥ ( श्रील जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज प्रणति मंत्र ) तो वे हो गए उनको सम्मान मिला या जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज को जिन्होंने क्या किया ? गौराविर्भाव भूमि का निर्देश किए । संकेत किए यह है गौर अवीरभाव भूमि । श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की प्राकट्य स्थली यही है तो भक्ति विनोद ठाकुर का क्या कहना यह जो नाम हाट्ट और यह भक्तिवृक्ष का जो प्रचार खूब हो रहा है उसके संस्थापक कहो या प्रवर्तक कहो, संयजोक कहो श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ही रहे । "गोद्रृम कल्पतविना" नामक ग्रंथ उन्होंने लिखा और उसी के अंतर्गत उन्होंने सब योजना बनाई कैसे कैसे चक्रवर्ती होंगे और यह यह होगा वह वह होगा वह सब मिलके विचार प्रसार करेंगे । इस्कॉन में जो जैसे जय पताका स्वामी महाराज ने लीडरशिप लेकर यह भक्तिवृक्ष नाम हाट्ट विचार जो प्रारंभ किया यह सारी संकल्पना तो श्रील भक्तिविनोदा ठाकुर की ही है । नदिया-गोद्रुमे नित्यानन्द महाजन । पातियाछे नाम - हट्टा जीवेर कारण ॥ 1 ॥ ( नदिया-गोद्रुमे नित्यानन्द महाजन, श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ) यह गीत उन्हीं का है भक्ति विनोद ठाकुर का और वहां पर वो स्मरण दिला रहे हैं । वैसे नाम हाट्ट के संस्थापक आचार्य हो गए नित्यानंद प्रभु । चैतन्य महाप्रभु ने उनको भेजा था, तुम जाओ ! बंगाल जाओ वहां प्रचार करो तो नित्यानंद प्रभु, आदि गुरु उन्होंने प्रचार प्रारंभ किया बंगाल में और परंपरा में श्रील भक्ति विनोद ठाकुर उसको कुछ रूपरेखा दे दिए और "पातियाछे नाम - हट्टा जीवेर कारण" जीवो के कल्याण के लिए नाम हाट्ट का प्रचार प्रारंभ हुआ तो यह भी भक्ति विनोद ठाकुर की योगदान है । भक्ति विनोद ठाकुर ने एक महापुरुष होंगे संसार भर में प्रचार करेंगे और वह प्रचार जो लोग सुनेंगे वे लोग भारत आएंगे नवदीप आएंगे और सब मिलके ... जय सचिनंदन ! जय सचिनंदन ! जय सचिनंदन गौर हरी ! जय सचिनंदन ! जय सचिनंदन ! जय सचिनंदन गौर हरी ! तो भक्ति विनोद ठाकुर भी एक भविष्यवाणी रही । श्रील प्रभुपाद होंगे और प्रचार होगा सर्वत्र । दुनिया भर के लोग भारत आएंगे नवदीप मायापुर आएंगे तो गाएंगे जय सचिनंदन ! भक्ति विनोद ठाकुर का यह भविष्यवाणी रहा जो सच होते हुए हम देख रहे हैं वह प्रचार करने के लिए । वही परंपरा में तो उन्हीं के पुत्र भक्ति विनोद ठाकुर के पुत्र और ग्राड डिसएपल भक्ति स्थान सरस्वती ठाकुर ने ही तो फिर कहां अभय बाबू को कहा ! तुम बुद्धिमान लगते हो जाओ पाश्चात्य देश में जाकर प्रचार करो, तो भक्ति विनोद ठाकुर के भविष्यवाणी को सच करके दिखाना है तो भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर आदेश दे रहे हैं । जाओ विदेश । 2 दिन पहले 17 सितंबर प्रभुपाद गए 1965 में और सर्वत्र प्रचार हुआ । उसी के साथ चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी भी सच हुई और अब संसार भर के लोग आ रहे हैं । भारत आ रहे हैं, नवदीप आ रहे हैं और गा रहे हैं । जय सचिनंदन ! जय सचिनंदन ! मुझे ऐसे ही याद आया हम पदयात्रा में जा रहे थे तो उड़ीसा में एक स्कूल के वे हैव मास्टर थे । उस स्कूल में हम गए रहे, तो भद्रक में भक्ति विनोद ठाकुर हेड मास्टर थे । पहले हेड मास्टर स्कूल के । वहां के हमको कुछ रिकॉर्ड मिले और सारे हेड मास्टर का लिस्ट था अब तक के हेड मास्टर । पहला नाम तो भक्ति विनोद ठाकुर हेड मास्टर । हरि हरि !! तो हम क्या कहे इन सब सारे ऋषि मुनियों के आचार्यों के ऋणी है । जिस ऋण से मुक्त होने का प्रयास हो सकता है और और वह है उनकी शिक्षाओं को ग्रहण करे हम । स्फूर्ति ले ले और उस विचारधारा का प्रचार प्रसार करें या वही बात है जैसे श्रील प्रभुपाद कहे ; तुम वैसे ही करो जैसे मैंने किया, अंतिम उपदेश था कि श्रील भक्ति विनोद ठाकुर की श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर को रही की तुम परिक्रमा करो । नवदीप परिक्रमा करो और नवदीप मंडल परिक्रमा जो करेंगे तो पूरा ब्रह्मांड मुक्त हो जाएगा । हम जब परिक्रमा कर रहे थे , श्रील प्रभुपाद के 100 सेंटेनियल ,हमने टी-शर्ट भी बनाया था परिक्रमा के भक्त वह टीशर्ट पहन के परिक्रमा कर रहे थे । जैसे भक्ति विनोद ठाकुर का बच्चन था परिक्रमा करने से सारे संसार को मुक्त करने वाली है यह नवदीप मंडल परिक्रमा ऐसा आदेश दिये भक्ति विनोद ठाकुर और फिर भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर 8 बार परिक्रमा किए अपने हजारों शिष्यों के साथ तो फिर श्रील प्रभुपाद जो भी श्रील प्रभुपाद का कार्य, वैसे भक्ति विनोद ठाकुर का ही कार्य । एक आचार्य कुछ सीमा तक कुछ हद तक पहुंचाते हैं उस कार्य तक उसके बाद वह कार्य को दे दिया जाता है उस रूप से आगे बढ़ाते हैं और फैलाते हैं उसकी स्थापना करते हैं । और उसके बाद अगले आचार्य को परंपरा में आगे बढ़ाते हैं और उसको जारी रखते हैं । वैसे अपने किसी आचार्य का कार्य अपने जीवन में पूरा नहीं होता । उसको परंपरा के जो आने वाले आचार्य उस को आगे बढ़ाते हैं उसी तरह से । अब हम भक्तों की बारी है हमारा जमाना है कहो तो जो कार्य एक समय भक्ति विनोद ठाकुर यह और फिर श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर उसका आगे बढ़ाए और श्रील प्रभुपाद उसको विश्वभर में फैलाए और वो कहे; तुम वैसे करो जैसे मैंने किया तो मैंने फिर शुरुआत की आगे बढ़ाओ और फैलाउ । हरि हरि !! तो श्रील विनोद ठाकुर के चरण कमलो में हम प्रार्थना करते हैं हमें शक्ति बुद्धि भाव भक्ति दे ताकि इस कार्य को हम भी कुछ निमित्त बन जाए कुछ कार्य को आगे बढ़ाने में और उनको हम प्रसन्न कर पाए । जय श्री भक्ति विनोद ठाकुर आविर्भाव महोत्सव की जय ! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ! ॥ हरे कृष्ण ॥

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