Hindi

हरे कृष्ण जप चर्चा पंढरपुर धाम से, 15 दिसंबर 2020

हरे कृष्ण । 826 स्थानो से आज जप हो रहा है । गौर हरी बोल । हरि हरि । आप सभी का स्वागत है । रोहिणी जाधव आप का स्वागत है । जप को अभि रोक दो । हरे कृष्ण ।

आपकी हरीनाम में इतनी रुचि बढ़ रही है और आप जब मैं करने में तल्लीन हो रहे हो , आप को रोकने से आप रुक नहीं रहे हो , आप रुकने का नाम ही नहीं ले रहे हो , यह अच्छी बात है लेकिन जप भी है और जप चर्चा भी हैं । दोनों को सुनना चाहिए , जप को भी सुने और चर्चा को भी सुने । यहा दोनों भी है श्रवण और कीर्तन , यह दोनों करने से स्मरण भी होगा । भगवत गीता का संजय ने श्रवण किया , उनको भगवान का स्मरण हुआ । संजय याद है ना आपको ? संजय कौन है ? संजय उवाच । भगवत गीता में हम पढ़ते हैं संजय उवाच , संजय ने कहा वैसे उस दिन , मोक्षदा एकादशी के दिन संजय ही भगवत गीता सुन रहे थे । जो गीता का उपदेश श्रीकृष्ण अर्जुन को सुना रहे थे वही कुरुक्षेत्र का दृश्य संजय देख भी रहे थे और कुरुक्षेत्र में जो भी हो रहा है उसका रनिंग कोमेंट्री कहो हो रहा था । जैसे हम घर बैठे बैठे करते है लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए क्रिकेट वगैरे नही देखना चाहीये , अपने समय को बर्बाद नहीं करना चाहिए । कॉमेंट्री सूनते है , ऑस्ट्रेलिया में क्रिकेट की मैच हो रही है और घर बैठे बैठे हम मैच को देख भी सकते हैं , दूरदर्शन से और सुन भी सकते हो जो कोमेंट्री सुनाता है , किसने क्या कहा ? किसने क्या कहा ? या क्या हो सकता है ? क्या-क्या हो रहा है ? वैसीही भूमिका संजय की थी । जो हस्तिनापुर मे बैठे थे और धृतराष्ट्र को सुना रहे थे । संजय सुन रहे थे और संजय देख भी रहे थे , दूरभाषँय और दूरदर्शन दोनों भी हो रहा था । टेलीफोन को दूरभाष्य कहते है , टेलिविजन को दूरदर्शन कहते हैं , टेलीफोन , टेलीविजन । संजय ने भी जो भगवत गीता का वचन सुना , श्री भगवान उवाच , जो भी भगवान ने कहा , अर्जुन ने सुना और वैसे वहां पर एक वृक्ष भी था ।

“अर्जुन उवाच सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थाप्य मेऽच्युत | यावदेतान्निरिक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् || कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन्रणसमुद्यमे ||

(भगवद्गीता 1.21-22)

अनुवाद : अर्जुन ने कहा – हे अच्युत! कृपा करके मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच में ले चलें जिससे मैं यहाँ युद्ध की अभिलाषा रखने वालों को और शस्त्रों कि इस महान परीक्षा में, जिनसे मुझे संघर्ष करना है, उन्हें देख सकूँ |

ऐसे जब अर्जुन ने कहा था कि , "मेरे रथ को आगे बढ़ाइए , दोनों सेना के मध्य में मेरे रथ को खडा कीजिए ।" तब श्री कृष्णने , पार्थसारथी ने वैसे ही किया , पार्थसारथी ने पार्थ के रथ को जहां ख़डा कर दिया , रथी , रथ में जो विराजमान होते हैं उसको रथी कहते हैं , अर्जुन का रथ है तो उसका रथ के रथी अर्जुन है और श्री कृष्ण सारथी है । वैसे वह दोनों भी बैठे हैं , अर्जुन के साथ में बैठे हैं भगवान श्री कृष्ण , तो अर्जुन है रथी और कृष्ण है सारथी । स रथी , अर्जुन के साथ जो रथ में विराजमान है वह सारथी , पार्थसारथी । वैसे सारथी का अर्थ चालक भी होता है । श्री कृष्ण वैसे रथ को भी हांक रहे हैं , जैसे ही उस रथ को दोनों सेना के मध्य में स्थापित किया , जहां रथ खडा किया वहा एक वृक्ष भी था । भगवत गीता के वचन जो श्री कृष्ण सुना रहे थे ,

गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः। या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्मादि्वनिः सृता।।

(गीतामहात्म्य 3)

पार्थसारथी के मुखारविंद से गीता के वचन जब निकल रहे थे तब वह वचन अर्जुन ने सुने और वहां पर पास में एक वृक्ष भी था , उस वृक्ष ने भी भगवत गीता सुनी और वह वृक्ष भी मोक्ष को प्राप्त हुआ , या वृक्ष भी अमर हुआ , वह वृक्ष आज भी है । हम कई बार कुरुक्षेत्र गए हैं , आप भी जा सकते हो ,आप क्यों नहीं जा रहे हो ? आप जाओ , कुरुक्षेत्र । वह स्थान भी है जहां रथ खड़ा हुआ था , जिसे ज्योतिसर कहते हैं । आज उस स्थान को ज्योतिसर कहते हैं , ज्योतिसर । वहां सरोवर बना हुआ है , तालाब है , तालाब के मध्य में द्विप जैसा स्थान है , जहां एक रथ भी बनाया है । रथ है , उसमें श्री कृष्ण और अर्जुन बैठे ऐसा दृश्य भी है , दृश्य दिखा रहे हैं , प्रदर्शनी है और वहां वह वृक्ष भी है जो वृक्ष 5000 वर्ष पूर्व जब गीता के वचन श्री कृष्ण ने अर्जुन को सुनाये तब जिस वृक्ष ने उस गीता को सुना वह आज भी वहां है । आज वह साक्षी है या साक्षी के रूप में है । हरि हरि । मोक्षदा एकादशी को मोक्ष प्राप्त हुआ इसलिए उसे मोक्षदा कहते हैं ।अर्जुन मुक्त हुए गीता का वचन सुनकर इसीलिए उसको मोक्षदा एकादशी कहते हैं , उस एकादशी का नाम ही मोक्षदा , मोक्ष देने वाली एकादशी है । उस वृक्ष को भी मोक्ष प्राप्त हुआ और संजय भी सुन रहे थे उस भगवत गीता को , उन्होंने भी कहा ,

तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरे: | विस्मयो मे महान्राजन्हृष्यामि च पुनः पुनः ||

(भगवद्गीता 18.77)

अनुवाद : हे राजन्! भगवान् कृष्ण के अद्भुत रूप का स्मरण करते ही मैं अधिकाधिक आश्चर्यचकित होता हूँ और पुनःपुनः हर्षित होता हूँ |

गीता के अंत में संजय उवाच आता है । गीता का अंत मतलब अठरावे अध्याय मे , वैसे गीता मे बीच बीच में समय-समय पर संजय बोलते है । संजय के कुछ 50 से अधिक श्लोक है , संख्या तो याद नहीं आ रही लेकिन आपको कभी बताएंगे कितने वचन है ।भगवत गीता के 700 जो श्लोक है , यह सारे 700 श्लोक श्री भगवान उवाच नहीं है । भगवान ने कहे हुए वचन नहीं है , उसमें एक वचन तो धृतराष्ट्र का भी है , एक श्लोक धृतराष्ट्र का भी है ,वहा से भगवत गीता प्रारंभ होती है और उसमें से कई सारे वचन अर्जुन के भी है , अर्जुन उवाच , यह जो भगवत गीता है , यह संवाद है , संजय ने कहा है । कुछ वचन संजय के भी है , समय-समय पर जैसे उसको हमने कॉमेट्री भी कहा , उसको वह धृतराष्ट्र को हस्तिनापुर में सुना रहे हैं । युद्ध कुरुक्षेत्र में हो रहा है , जो हरियाणा में है , हरियाणा एक राज्य का नाम है । हरियाणा , हरि का जहां हुआ है आना वह है हरियाणा । ऐसे भी समझाते हैं , हरियाणा नाम क्यों हुआ ? हरि जहां आए , कुरुक्षेत्र के मैदान में आ गये तो उसको कहते हरियाणा । उसका नाम हो गया हरियाणा , हरि का वहा हुआ है आना । भगवत गीता में अर्जुन के यह वचन है , संजय के भी वचन है । आपको बताएंगे बाद में किसके कितने वचन है और अधिकतर कृष्ण के ही है लेकिन अन्यो के भी वचन है और दूसरे शब्दों में यह बात है कि , सारे 700 श्लोक भगवान के वचन नहीं है ।

किसी ने बताया हैं कि , 41 संजय के वचन है और बाकी किस-किस के हैं ? 574 भगवान उवाच है और 84 वचन अर्जुन के हैं कोई लिख भी नहीं रहा है । अगर आपको इतना भरोसा है आपके स्मरण शक्ति के ऊपर , आप बहुत शक्तिढर हो , हरी हरी । और एक धृतराष्ट्र का है । इसी तरह मैं जो कहने जा रहा था कि , भगवत गीता का पहला अध्याय है उसमें तो भगवान ने आधा श्लोक ही कहां है , पूरे पहेले अध्याय में भगवान उवाच , भगवान का गीत , श्रीकृष्ण का वचन आधा ही है ।

भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम् | उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरुनिति ||

(भगवद्गीता 1.25)

अनुवाद: “भीष्म, द्रोण तथा विश्र्व भर के अन्य समस्त राजाओं के सामने भगवान् ने कहा कि हे पार्थ! यहाँ पर एकत्र सारे कुरुओं को देखो |”

ऐसे जब रथ को आगे बढ़ायां कुरु सेना के मध्य में खड़ा किया , श्री कृष्ण ने ऐसा किया , पार्थसारथी ने ऐसा किया , फिर उस समय कृष्ण ने अर्जुन को कहा , " देखो , देखो " । मैं निरीक्षण करना चाहता हूं ऐसा कहा था अर्जुन ने , रथ को आगे बढ़ाओ ताकि मैं निरीक्षण करना चाहता हूं , देखना चाहता हूं , मेरे साथ कौन युद्ध करना चाहता हैं , कौन तैयार है मेरे साथ युद्ध करने के लिए? मुझे दिखाओ तो सही , तब रथ जब आगे बढ़ा , श्री कृष्ण ने कहा ," देखो , देखो , तुम देखना चाहते हो ना , देखो तो सही । पश्यैतान्समवेतान्कुरुनिति मतलब एकत्रित हुए हैं , कुरु , कौरवो को देखो , बस इतना ही भगवत गीता के पहले अध्याय में भगवान का वचन है । बचे हुए जो प्रथम अध्याय के श्लोक है , एक तो धृतराष्ट्र का है और अधिकतर संजय के है और अर्जुन ने भी बहुत कुछ बकबक की हुई है , अर्जुन भी बोले हैं । वह संर्भमित अर्जुन प्रथम अध्याय में बोलते गए , आप समझ गए ना 700 श्लोक कृष्ण के कहे हुए नहीं है , अठरावे अध्याय मे भगवत गीता का प्रवचन तो समाप्त हुआ , जो अर्जुन ने कहा , मैं आपके आदेश का पालन करने जा रहा हूं फिर और अधिक बोलने की कुछ आवश्यकता नहीं थी ।अर्जुन अभी युद्ध के लिए तैयार है ।

अर्जुन उवाच | नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत | स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव ||

(भगवद्गीता 18.73)

अनुवाद: अर्जुन ने कहा – हे कृष्ण, हे अच्युत! अब मेरा मोह दूर हो गया | आपके अनुग्रह से मुझे मेरी स्मरण शक्ति वापस मिल गई | अब मैं संशयरहित तथा दृढ़ हूँ और आपके आदेशानुसार कर्म करने के लिए उद्यत हूँ |

फिर अठरावे अध्याय के अंत में संजय उवाच आता है , संजय के वचन है । शुरुआत होती है , संजय उवाच , अठरावे अध्याय का 74 , 75 , 76 , 77 , 78 यह पांच श्लोक है । भगवत गीता के आठरावे अध्याय के यह पाच श्लोक संजय के है , संजय उवाच है । गिता का समर्पण वैसे संजय के वचनों से होता है और यह भी कहा ही है , यह सवांद मैं जो सुन रहा हूं , कृष्णा के और अर्जुन मध्य का जो संवाद है यह मैंने सुना , यह संवाद कैसा हैं ? वह कहते हैं गीता में ,

व्यासप्रसादाच्छ्रुतवानेतद्गुह्यमहं परम् | योगं योगेश्र्वरात्कृष्णात्साक्षात्कथयतः स्वयम् ||

(भगवद्गीता 18.75)

अनुवाद : व्यास की कृपा से मैंने ये परम गुह्य बातें साक्षात् योगेश्वर कृष्ण के मुख से अर्जुन के प्रति कही जाती हुई सुनीं ।

संजय उवाच , संजय ने कहा व्यासप्रसादाच्छ्रुतवानेत मैने सुना , इस संवाद के आगे कहा है , यह अदभूत संवाद है , केशव और अर्जुन के बीच का यह संवाद है , वह अद्भुत संवाद है और इस संवाद को मैंने सुना । यह कैसे संभव हुआ ? व्यासप्रसादाच्छ्रुतवानेत श्रील व्यासदेव की कृपा से , व्यवस्था से यह संभव हुआ है । श्रील व्यासदेव ने ऐसी आशीर्वाद कहो या शक्ति कहो संजय को प्रदान की थी , ताकि वे दूर से भी कुरुक्षेत्र का दृश्य देख भी सकते थे और वहीं कहीं जाने वाली बातें जो है उसको सुन भी सकते थे । इतना ही नहीं तो वह कुरुक्षेत्र में जो भी दोनों पार्टी है , कुरु और पांडव हैं । वह क्या सोचते हैं ? उनके मन के विचार भी क्या है ? इसको जानने की भी शक्ति महाभारत मे श्रील व्यासदेव ने संजय को दी थी । ऐसा अर्थ समझाया हुआ है । हरे कृष्ण। ईमानदारी यह अच्छा गुणधर्म है । ईमानदारी के साथ वह अपनी कृतज्ञता संजय व्यक्त कर रहे हैं । मैं जो यह संवाद सुन सका और धृतराष्ट्र महाराज मैं आपको सुना रहा हूं , यह गिता का वचन या संदेश , उपदेश , यह संवाद आपको बता रहा हूं , यह कैसे संभव हुआ ?

व्यासप्रसादाच्छ्रुतवानेत यह संवाद बहुत गोपनीय है और मैंने किनसे सुना ? योगेश्र्वरात्कृष्णात्साक्षात्कथयतः स्वयम

आपको यह बात को लिख लेना चाहिए , संजय क्या कह रहे हैं ? उसके एक-एक शब्द को अगर आप समझ सकते हैं और 18 अध्याय के 75 श्लोक को , योगेश्र्वरात्कृष्णात्साक्षात्क गीता के सवाद के वचन मैंने सुने । वह कौन सुना रहे थे ? भगवद गीता , भगवान का ज्ञान , भगवान सुना रहे थे । वह कह रहे है , योगेश्र्वरात्कृष्णात्साक्षात्कथयतः स्वयम जो कृष्ण योगेश्वर है , उनका नाम भी ले रहे है , कृष्ण से , योगेश्वर से , साक्षात , साक्षात कह रहे है । साक्षात , स्वयं ऐसे शब्द का उपयोग कर रहे है । गीता किसने सुनाई ? गीता किसके वचन है ? साक्षात , स्वयं ,कृष्ण , योगीश्वर , अहं ,श्रुत्वा , व्यास , प्रसादात , ऐसे शब्द है ।

यह सारे गीता के वचन मैने श्रील व्यासदेव की कृपा के कारण मैं सुन पाया, और सुनाने वाले कौन थे? वे योगेश्वर साक्षात भगवान श्रीकृष्ण थे! उनसे ही मैंने इन वचनों को सुना। हरि हरि। और फिर मुझे यह कहना था, जो मैंने संजय से सुना

राजन्संस्सृत्य संस्सृत्य संवादमिममद्भुतम् | केशवार्जुनयो: पुण्यं हृष्यामि च मुहुर्मुहु: || ७६ ||” भगवतगीता १८.७६

अनुवाद:- हे राजन्! जब मैं कृष्ण तथा अर्जुन के मध्य हुई इस आश्चर्यजनक तथा पवित्र वार्ता का बारम्बार स्मरण करता हूँ, तो प्रति क्षण आह्लाद से गद्गद् हो उठता हूँ |

हे राजा, राजा धृतराष्ट्र, संजय जो राजा धृतराष्ट्र के मंत्री थे वे अपने स्वामी को या राजा को संबोधित करते हुए कह रहे थे कि, हे राजन! राजन्संस्सृत्य संस्सृत्य संवादमिममद्भुतम् यहां पर संवाद समाप्त हुआ या संपूर्ण हुआ और उसके उपरांत संजय कह रहे है कि, जो संवाद मैंने सुना और आपको भी सुनाया, जिस बात का मैंने श्रवन किया और कीर्तन भी किया तो श्रवण और कीर्तन से क्या होता है? स्मरण होता है। तो यह बात संजय कह रहे है संस्सृत्य। जो भगवत गीता के वचन मैंने सुने और आपको सुना है तो उसी के कारण मेरे विचारों में परिवर्तन हो रहा है! मुझे पुनः वह स्मरण हो रहा है! और केवल वचनों का ही स्मरण नहीं हो रहा है, केशवार्जुनयो: पुण्यं हृष्यामि च मुहुर्मुहु: || संजय कह रहा है कि भगवतगीता के वचन सुनकर मुझे हर्ष हो रहा है! मुझे उन वचनों का स्मरण हो रहा है! तो उसी के साथ उसका परिणाम है कि मुझे हर्ष हो रहा है। कितना हर्ष हो रहा है! मुहुर्मुहु: मतलब पुनः पुनः हर्ष का में अनुभव कर रहा हूं। और फिर आगे कह रहे हे,

तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरे: | विस्मयो मे महान्राजन्हृष्यामि च पुनः पुनः || भगवतगीता १८.७७

अनुवाद:- हे राजन्! भगवान् कृष्ण के अद्भुत रूप का स्मरण करते ही मैं अधिकाधिक आश्चर्यचकित होता हूँ और पुनःपुनः हर्षित होता हूँ |

तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरे: अब मुझे उस हरि का जिन्होंने गीता का उपदेश सुनाया उस भगवान के, हरी के रूप का स्मरण हो रहा है! मैंने गीता के वचन सुने और उन वचनों का जब मैं स्मरण कर रहा हूं तो उसी के साथ, इन वचनों को कहने वाले श्री कृष्ण उनके रूप माधुर्य का मुझे स्मरण हो रहा है! विस्मयो मे महान्राजन्हृष्यामि च पुनः पुनः मुझे अचरज रख रहा है पकवान के वचनों का, उनके वचन अद्भुत! और उनका रूप भी अद्भुत! विशेष! रूप का स्मरण मुझे पुनः पुनः हो रहा है। और अब दो वचन बाकी है जो संजय ने कहे है। ७७-७८ यह दो श्लोक हैं, एक में तो वह कह रहे है, वैसे दोनों श्लोकों में एक ही बात कह रहे है जो है, अब भगवत गीता के अंत में जो संजय कहेंगे या बात होगी या धृतराष्ट्र में पूछे हुए प्रश्न का वह उत्तर होगा। धृतराष्ट्र ने प्रश्न पूछा था जो भगवतगीता का पहला श्लोक है। तो उस श्लोक में धृतराष्ट्र ने गीता के प्रारंभ में पूछे हुए प्रश्न का उत्तर संजय भगवत गीता के अंतिम 2 श्लोकों में देंगे। तो प्रश्न यह था कि,

धृतराष्ट्र उवाच धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः। मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय।। भगवतगीता १.१

अनुवाद:- धृतराष्ट्र ने कहा -- हे संजय ! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्र हुए युद्ध के इच्छुक (युयुत्सव:) मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?

मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय तो पांडु के पुत्र जो धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में इकट्ठे हुए है उनका क्या हुआ? युद्ध में क्या होता है? एक पक्ष जीत जाता है और दूसरा पक्ष हार मान लेता है। एक पक्षकार विजय होता है और दूसरे पराजित हो जाते है! तो प्रश्न पूछने का उद्देश्य यही था कि कौन जीत रहा है? किसकी जीत हो रही है? या किसकी जीत होगी? तो संजय के रहे है,

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।। भगवत गीता १८.७८

अनुवाद:- समस्त योग और उनके बीज उन्हींसे उत्पन्न हुए हैं? अतः भगवान् योगेश्वर हैं। जिस पक्षमें ( वे ) सब योगोंके ईश्वर श्रीकृष्ण हैं तथा जिस पक्षमें गाण्डीव धनुर्धारी पृथापुत्र अर्जुन है? उस पाण्डवोंके पक्षमें ही श्री? उसीमें विजय? उसीमें विभूति अर्थात् लक्ष्मीका विशेष विस्तार और वहीं अचल नीति है -- ऐसा मेरा मत है।

तो इसी वचन के साथ भगवतगीता का समापन है। वैसे ७८ मैं उत्तर है वैसे मैं गलत कह रहा था कि 2 श्लोकों में मिल के उत्तर है लेकिन एक ही श्लोक में उत्तर है। तो हो गया उत्तर। यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तो जहां पर होते हैं योगेश्वर कृष्ण वहीं पर होते हैं पार्थ जैसे धनुर्धर योद्धा, जहां कृष्णा और अर्जुन जैसी जोड़ी होती है वहां तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम वैभव होता है, वाह विजय होता है! वैसे ही नीति नियमों का पालन होता है और विशेष शक्तियों का प्रदर्शन भी होता है ऐसी चार बातें कही है। वह होता है श्री मतलब वैभव, विजय, नीति और वहां होता है विशेष शक्तियों का प्रदर्शन! लेकिन मुख्य बात तो विजय की ही है। तो इस प्रकार संजय ने, अभी तो युद्ध का प्रारंभ होने जा रहा है लेकिन संजय ने तो यह घोषित कर दिया कि, जीत किसकी होगी? ऐसा नियम है कि जहां कृष्णा और कृष्ण के भक्त होते है, वहां विजय होती है! यतो धर्मः ततो जयः ऐसा महाभारत में कहां गया है। जहां धर्म होता है वह विजय होती है! वैसे महाभारत में यह भी कहा गया है कि विजय तो पांडव पुत्रों का ही होगा। पांडव पुत्रों का विजय तो निश्चित है! क्यों ? उनके पक्ष में जनार्दन श्री कृष्णा है! जीतेगा भाई जीतेगा कौन जीतेगा? कृष्ण और उनके भक्त जीतेंगे! परं विजयते श्रीकृष्ण-संकीर्तनम् जहां पर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु और गौर भक्तवृंद है वहां संकीर्तन कि जीत होगी! यह बात भगवान ने पहले ही घोषित करके रख दी है।

श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय! श्री कृष्ण अर्जुन की जय! श्रीमद् भगवतगीता की जय! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!

ठीक है! तो ऐसे ही गीता को पढ़ो, सुनो और क्या क्या अनुभव रहे जैसे संजय ने गीता सुनी तो उनके क्या अनुभव रहे, तो यह पुनः पुनः आप पढ़ सकते हो। देवकीनंदन और अर्जुन को भी सुन सकते हो। ठीक है! गीता पढ़ो और इस महीने में गीता का वितरण करो! ऐसी विचारधारा का प्रचार और प्रसार होना चाहिए! हरि हरि। ऐसी विचारधारा यानी भगवतगीता के जो विचार है यह उच्च विचार है, सरल जीवन और उच्च विचार! उच्च विचार होते क्या है? भगवतगीता के विचार जो भगवान के विचार है यह उच्च विचार है। हमें ऐसे विचारों का बनना चाहिए। तो पहले विचार है फिर आचार है और उसके बाद प्रचार भी है! और उच्चार भी है उच्चारण भी सही होना चाहिए। और फिर उन विचारों का आचरण भी हो, मंथन भी होना चाहिए। और फिर प्रचार, ऐसे विचारों का प्रचार! और यह विचार तो हमारे नहीं है यह विचार तो भगवान के है। इसी में संसार का कल्याण है। फिर आप कहीं से भी हो भारत से या फिर किसी अन्य देश से, जहां जहां मनुष्य है उन सभी मनुष्यों के लिए है। भगवान ने गीता केवल हिंदुओं के लिए नहीं सुनाई, ऐसा भगवान का विचार नहीं है। हर जीव के लिए और हर मनुष्य के लिए भगवान ने गीता का संदेश बनाया है। तो जिनके लिए भगवान ने गीता सुनाई उनके तक हमें गीता को पहुंचाना है! तो आज से ही तैयार हो जाओ और गीता का वितरण करो, योजना बनाओ! हरि हरि।

English

15 December 2020

The ecstasy of hearing the Bhagavad Gita directly from Krsna

Hare Krsna, we have devotees from 831 locations. You are all welcome! You all are so absorbed in chanting that it is very difficult to stop you, but remember there are 2 things! One is Japa and another is Japa Talk. So hear both attentively. One is sravana and another is kirtana.

Sanjay heard Bhagavad Gita and then he recited it. On the day of Moksada Ekadasi, Sanjaya was also hearing Bhagavad Gita that was being delivered to Arjuna by the Lord. He was giving a running commentary. Generally people see the cricket match that is being played in Australia. It is not good thing to do in this valuable life. Similarly the role of a commentator was performed by Sanjaya. Sanjaya was hearing and seeing also. It was like a television and a telephone, seeing and hearing things from a distance. There was also a tree where the chariot was stationed in between the parties. Parthasarathi (Lord) was driving the chariot on which Arjuna (Rathi) and Sarathi is One who accompanies the Rathi. Arjun is Rathi and Krsna is known as Parthasarathi. Sarathi is also known as a driver. That tree also heard the Bhagavad Gita the Lord was reciting.

This recitation was heard by three - Arjuna, the tree and Sanjaya. The tree got liberation and is still there today. You all must go to Kuruksetra and see it. That tree is still there and a diorama of a chariot is made at that place where the Lord stationed the chariot. That same tree is still there as a witness. Since it is known as Moksada Ekadasi, the tree was liberated and also Sanjaya. The war was being fought in Kuruksetra and Sanjaya was reciting it for Dhritrastra in Haryana or the place where Hari came.

41 verses were spoken by Sanjaya. 574 by the Lord. 84 by Arjuna. 1 by Dhritrastra. In the 1st chapter of Bhagavad Gita, the Lord has recited only half a verse. When the Lord stationed Arjun’s chariot in between both the armies, the Lord asked Arjuna to look at both the armies. At that time the Lord said to Arjuna: “See both the armies that you wanted to see! See the Kauravas who have assembled here to fight with you.” The remaining verses of Bhagavad Gita in in the 1st chapter are recited by Sanjaya, one by Dhritrastra and many by Arjuna. Arjuna is confused in chapter 1 of Bhagavad Gita. You must know that all 700 verses of Bhagavad Gita are recited by the Lord. At the end of Bhagavad Gita Arjuna got ready to fight and there is nothing more to tell hm. At the end of the 18th chapter, in Bhagavad Gita 18.74 Sanjaya says again:

sañjaya uvāca ity ahaṁ vāsudevasya pārthasya ca mahātmanaḥ saṁvādam imam aśrauṣam adbhutaṁ roma-harṣaṇam

Translation: Sañjaya said: Thus have I heard the conversation of two great souls, Kṛṣṇa and Arjuna. And so wonderful is that message that my hair is standing on end. (BG18.74)

The last 5 verses of Bhagavad Gita are recited by Sanjaya. The conclusion of Bhagavad Gita is made by Sanjaya’s statements. Sanjaya says that this discussion between the Lord and Arjuna is divine. “I got to hear this divine message just by the mercy of Srila Vyasadeva.” Srila Vyasadeva had blessed Sanjaya to be able to see and hear the war of Kuruksetra from a distance. Not only this, but Sanjaya was even blessed by Vyasadeva to know the thoughts of what Kurus and Pandavas were thinking. Sanjaya is expressing his honest gratitude. He said, “I could do this only by the mercy of Srila Vyasadeva.” He says this knowledge is very confidential and he heard this divine message form Lord Yogesvara. In 18.75 Sanjaya said, “Krsna is Yogesvara.” He is naming Krsna Yogesvara and he is saying this in Bhagavad Gita.

vyāsa-prasādāc chrutavān etad guhyam ahaṁ param yogaṁ yogeśvarāt kṛṣṇāt sākṣāt kathayataḥ svayam

Translation By the mercy of Vyāsa, I have heard these most confidential talks directly from the master of all mysticism, Kṛṣṇa, who was speaking personally to Arjuna. (BG 18.75)

Then Sanjaya told Dhritrastra in the next verse, 18.76

rājan saṁsmṛtya saṁsmṛtya saṁvādam imam adbhutam keśavārjunayoḥ puṇyaṁ hṛṣyāmi ca muhur muhuḥ

Translation O King, as I repeatedly recall this wondrous and holy dialogue between Krsna and Arjuna, I take pleasure, being thrilled at every moment. (BG 18.76)

Almost towards the end of this dialog, Sanjaya is telling all this to Dhritrastra. Sanjaya did sravana and then did kirtana and as a result he was able to remember the Lord all the time. He said that now his thoughts had changed and he was again and again remembering the words of the Lord.

In the last 2 verses he says, “I am to only remembering the words of Bhagavad Gita but I am even becoming delighted and I am feeling happy again and again. In next verse Sanjaya continues to share his remembrance to Dhritrastra.

tac ca saṁsmṛtya saṁsmṛtya rūpam aty-adbhutaṁ hareḥ vismayo me mahān rājan hṛṣyāmi ca punaḥ punaḥ.

Translation O King, when I remember the wonderful form of Lord Krsna, I am struck with even greater wonder, and I rejoice again and again. (BG 18.77)

I am able to remember the beauty of Lord Krsna who recited this Bhagavad Gita to Arjuna. I am also astonished by the divinity of the Lord’s words and his beauty both. I am amazed by the beauty of Lord BG 77 and 78. In the last 2 verses of Bhagavad Gita, Sanjaya says same thing. I am remembering that beauty again and again.

yatra yogeśvaraḥ kṛṣṇo yatra pārtho dhanur-dharaḥ tatra śrīr vijayo bhūtir dhruvā nītir matir mama

Translation Wherever there is Krsna, the master of all mystics, and wherever there is Arjuna, the supreme archer, there will also certainly be opulence, victory, extraordinary power, and morality. That is my opinion.(BG 18.77)

What he says in last verse of Bhagavad Gita is actually an answer to the enquiry made by Dhritrastra in the very beginning of Bhagavad Gita

Question by Dhritrastra, BG 1.1

dhṛtarāṣṭra uvāca dharma-kṣetre kuru-kṣetre samavetā yuyutsavaḥ māmakāḥ pāṇḍavāś caiva kim akurvata sañjaya

Translation Dhṛtarāṣṭra said: O Sañjaya, after assembling in the place of pilgrimage at Kurukṣetra, what did my sons and the sons of Pandu do, being desirous to fight? (BG 1.1)

He asked what was happening on the battle filed. Usually in a battle only one army wins so his inner desire in asking this question was to know if the Kurus are winning or not! To this question Sanjaya replied and recited the last verse of Bhagavad Gita 18.78 as an answer to 1.1

yatra yogeśvaraḥ kṛṣṇo yatra pārtho dhanur-dharaḥ tatra śrīr vijayo bhūtir dhruvā nītir matir mama

Translation Wherever there is Krsna, the master of all mystics, and wherever there is Arjuna, the supreme archer, there will also certainly be opulence, victory, extraordinary power, and morality. That is my opinion. (BG 18.78)

Sanjaya concluded by saying wherever there is a team of Krsna Arjuna victory is assured and opulence, morality and special strength will be displayed. Here only Bhagavad Gita is recited and the battle has not yet started, but still Sanjaya declared who will win! In Mahabharata it is mentioned that the side which has Janardana will surely win.

parama vijayate sri krsna sankitanam

All glories to the Sankirtan of the Lord. All Glories to Krsna Arjuna All Glories to Bhagavad Gita

Experience it! Read and know what Sanjaya experienced. Study and distribute this divine knowledge. People do not even know what high thinking is. The Lord’s thoughts are high and we must also develop such thoughts and practice them. This thoughts of the Lord should be preached to all. No matter where you come from. It should be preached and distributed at each and every place where humans are present. Lord did not recite it only for Hindus, but for humanity at large.

Gaur Premanande Hari Haribol.

Russian

Наставления после совместной джапа-сессии 15.12.2020г.

Харе Кришна, у нас есть преданные из 831 места. Добро пожаловать!

Вы все настолько поглощены воспеванием, что очень трудно остановить вас всех от воспевания, но помните, что есть 2 вещи! Не только эта Джапа, а еще другая — Джапа толк.

Так что слушайте внимательно

Одна - Шраванам, а другая - Киртанам

Санджай услышал Бхагавад Гиту (БГ), а затем прочитал ее.

В день Мокшада экадаши Санджай также слушал БГ, которую Господь рассказал Арджуне.

Он давал быстрый комментарий

Обычно люди смотрят матч по крикету, который проводится в Австралии, и это нехорошо в этой ценной жизни.

ТАК похожую роль комментатора исполнил Санджая

Санджая тоже слышал и видел

Это было похоже на телевидение и телефон: видеть и слышать на расстоянии.

Также было Дерево, у которого колесница стояла между обеими сторонами. Партха Саратхи (Господь) вел колесницу, на которой Арджуна был Рати (воином), а Сарати - тем, кто сопровождает Рати. Арджуна - это Рати, а Кришна известен как Партха Саратхи. Саратхи также известен как колесничий.

Итак, это Древо также услышало БГ, которую рассказывал сам Господь.

Арджуна, Дерево и Санджая - все трое -внимательно слушали этот рассказ. Дерево освободилось, и это дерево все еще существует сегодня. Вы все должны отправиться на Курукшетру и увидеть это. Это Дерево все еще там, и это место также там, где Господь поставил колесницу, и есть диорама (изогнутая полукругом живописная картина с передним предметным планом), сделанная из Колесницы.

То же самое дерево все еще там, кто слышал БГ от Господа, оно там как свидетель.

Поскольку этот день известен как Мокшада Экадаши, дерево стало освобожденным, а также Санджая

Санджая прочитал много стихов БГ. На самом деле Санджая читает много стихов. Дело не в том, что все 700 стихов читает только Господь. Есть даже 1 стих Дхритраштры! Некоторые написаны Арджуной, Санджаем ..

Война происходила на Курукшетре, и Санджая рассказывал ее для Дхритраштры в Харьяне.

Место Хараяна названо от имени Хари. Место, где пришел Хари, известно как Харияна.

41 стих от Санджая

574 от Господа

84 от Арджуны

1 от Дхритараштры

В 1-й главе БГ Господь произнес только половину стиха.

Когда Господь поставил колесницу Арджуны между обеими армиями, Господь попросил Арджуну посмотреть на обе армии.

В то время Господь сказал это Арджуне

Он сказал: «Посмотри на обе армии, которые ты хотел увидеть!

Посмотри на Кауравов, которые собрались здесь, чтобы сражаться с тобой

Остальные стихи БГ в 1-й главе читает Санджай, один - Дритраштра, а многие - Арджуна.

Арджуна введен в заблуждение в главе 1 БГ.

Итак, вы должны знать, что все 700 стихов БГ произнес Сам Господь.

В конце БГ Арджуна приготовился к бою, и больше нечего сказать.

Итак, в конце 18-й главы Санджая снова говорит

Получилось в 18,74 (18глав 74 стиха)

Санджая говорит

- Санджая сказал

Последние 5 стихов из последней главы БГ читает Санджая.

Путаница с БГ заключается в утверждениях Санджая.

Заключение, а не путаница (ошибка написания)

Санджая говорит, что эта беседа между Господом и Арджуной божественна.

Я получил это божественное послание только по милости Вьясадевы

Шрила Вьясадева благословил Санджая на то, что он смог увидеть войну на Курукшетре на расстоянии, а также мог слышать

Не только это, но и Вьясадева благословил Санджайю знать мысли воевавших.

О чем думали Куру Пандавы, было также известно Санджае

Итак, Санджая выражает искреннюю благодарность

Он сказал: «Я мог сделать это только по милости Шрилы Вьясадевы». Это знание очень сокровенно, и я слышал это божественное послание от самого Господа Йогешвары.

В (БГ) 18.75 Санджая сказал: Кришна - это Йогешвара. Он называет Кришну именем Йогешвара и сам говорит на этом БГ.

вйа̄са-праса̄да̄ч чхрутава̄н этад гухйам ахам̇ парам йогам̇ йогеш́вара̄т кр̣шн̣а̄т са̄кша̄т катхайатах̣ свайам

Перевод Шрилы Прабхупады:

По милости Вьясы я услышал эти сокровенные речи, обращенные к Арджуне, которые изошли из уст повелителя всех мистических сил, Кришны.

(БГ 18.75)

Затем Санджая сказал Дхритратре в следующем стихе

Он обращался к своему царю и рассказал следующий стих 18.76.

ра̄джан сам̇смр̣тйа сам̇смр̣тйа сам̇ва̄дам имам адбхутам кеш́ава̄рджунайох̣ пун̣йам̇ х̣р̣шйа̄ми ча мухур мухух̣

Перевод Шрилы Прабхупады:

О царь, снова и снова я вспоминаю эту удивительную священную беседу Кришны и Арджуны и всякий раз испытываю бесконечное наслаждение.

(БГ 18.76)

Почти в конце этого диалога Санджая рассказывает все это Дхритраштре. Санджая провел шраванам, а затем провел киртанам, и в результате он смог все время помнить Господа. Он сказал, что теперь его мысли изменились, и он снова и снова вспоминает слова Господа

В последних двух стихах он говорит: «Я должен помнить только эти слова БГ, но я даже получаю удовольствие, и я снова и снова чувствую себя счастливым».

В следующем стихе Санджая продолжает делиться своими воспоминаниями с Дхритраштрой

тач ча сам̇смр̣тйа сам̇смр̣тйа рӯпам атй-адбхутам̇ харех̣ висмайо ме маха̄н ра̄джан хр̣шйа̄ми ча пунах̣ пунах̣

Перевод Шрилы Прабхупады:

О царь, всякий раз, когда в памяти моей встает тот дивный облик Господа Кришны, я поражаюсь этому чуду и моей радости нет конца.

(БГ 18.77)

Я могу вспомнить красоту Господа Кришны, который рассказал эту БГ Арджуне. Я также поражен божественностью слов Господа и его красотой. Я поражен красотой Господа

Я снова вспоминаю эту красоту

Итак, в последних двух стихах БГ Санджая говорит то же самое.

То, что он говорит в последнем стихе БГ, на самом деле является ответом на вопрос, заданный Дхритараштрой в самом начале БГ.

Вопрос, заданный Дхритраштрой: 1.1.

дхр̣тара̄шт̣ра ува̄ча дхарма-кшетре куру-кшетре самавета̄ йуйутсавах̣ ма̄мака̄х̣ па̄н̣д̣ава̄ш́ чаива ким акурвата сан̃джайа

Перевод Шрилы Прабхупады: Дхритараштра спросил: О Санджая, что стали делать мои сыновья и сыновья Панду, когда, горя желанием вступить в бой, собрались в месте паломничества, на поле Курукшетра?

(БГ 1.1)

Он спросил, что происходит на поле боя.

Обычно на поле боя побеждает только одна армия, поэтому его внутренним желанием, задав этот вопрос, было узнать, побеждают Куру или нет!

И на этот вопрос Санджая отвечает и декламирует последний стих БГ.

18.78 - это ответ на 1.1

йатра йогеш́варах̣ кр̣шн̣о йатра па̄ртхо дханур-дхарах̣ татра ш́рӣр виджайо бхӯтир дхрува̄ нӣтир матир мама

Перевод Шрилы Прабхупады: Где бы ни находился Кришна, повелитель всех мистиков, и где бы ни находился Арджуна, непревзойденный лучник, там всегда будет изобилие, победа, необычайная сила и нравственная чистота. Таково мое мнение.

(БГ 18.78)

В заключение Санджая сказал, что где бы ни находилась команда Кришны Арджуны, победа гарантирована. Также отображается Сопротивление, Победа, Нравственность и Особая сила.

Там рассказывается только БГ, и битва еще не началась, но Санджай все равно объявил, кто победит!

В Махабхарате упоминается, что сторона, у которой есть Джанардана, обязательно победит.

Парама Виджаяте Шри Кришна Санкитанам

Шри Чайтанья Махапрабху уже объявил о победе санкиртаны

Вся слава санкиртане Господа

Слава Кришне Арджуне

Вся слава БГ

Так что изучайте эту БГ

И испытайте это, прочтите и узнайте, что испытал Санджая

Изучайте и распространяйте это божественное знание

Это сознание и наставления необходимо проповедовать людям в целом.

Люди даже не знают, что такое возвышенное мышление

Мысли Господа Возвышенны, и мы также должны развивать такие мысли и практиковать их.

Эти мысли Господа следует проповедовать всем

Независимо от того, где вы находитесь, их следует проповедовать и распространять в каждом месте, где присутствуют люди.

Господь рассказывал это не только для индусов, но для каждого человека.

(Перевод Кришна Намадхан дас)