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जप चर्चा
पंढरपुर धाम से
दिनांक १३.०२.२०२१
हरे कृष्ण!
आज इस जपा कॉन्फ्रेस में ६५९ स्थानों से प्रतिभागी जप कर रहे हैं। हम कुछ दिनों के लिए यह चर्चा अथवा जपा टॉक 10-15 मिनट पहले प्रारंभ कर रहे हैं। यह सात बजे तक होगी, ६.३० बज चुके हैं।
क्या आप तैयार हो? मनोहारिणी?जगजीवन? बाकी सब? सुंदरलाल?
ठीक है।
पृथिवीते आछे यत नगरादि ग्राम।सर्वत्र प्रचार होइबे मोर नाम।
( चैतन्य भागवत)
अनुवाद:- पृथ्वी के पृष्ठभाग पर जितने भी नगर व गाँव हैं, उनमें मेरे पवित्र नाम का प्रचार होगा।
आपने यह भविष्यवाणी सुनी है या नहीं? सुनी है। यह सुनना जरूरी है। यह भविष्यवाणी अथवा गौरवाणी, गौरांग महाप्रभु की भविष्यवाणी है।
महाप्रभु ने कहा है कि
पृथिवीते आछे यत नगरादि ग्राम।
सर्वत्र प्रचार होइबे मोर नाम।
इस पृथ्वी पर जितने भी नगर व ग्राम हैं व और भी छोटे कस्बे आदि भी हैं, सर्वत्र प्रचार होएब मोर नाम अर्थात मेरे नाम का प्रचार सर्वत्र होगा। हरि! हरि! यह वाणी किसकी है?
यह वाणी गौर वाणी है। यह श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी है। चैतन्य महाप्रभु की जय! चैतन्य महाप्रभु की जय! उनकी जय भी हो, यह वाणी भी उनकी ही है। भगवान की वाणी सदा सत्य होकर ही रहती है। प्रॉमिस इज प्रॉमिस (वादा, वादा है) जेंटलमैन प्रॉमिस। भगवान अपने वचन के पक्के होते हैं। जब वे कुछ कहते हैं, तब वैसा करके दिखाते ही हैं, वैसा ही होता है, जैसा कि भगवान् कहते हैं। होना तो प्रारंभ हो चुका है। इस अंतरराष्ट्रीय श्री कृष्णभावनामृत संघ के संस्थापकाचार्य श्रीकृष्ण कृपा मूर्ति अभय चरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद हैं।
श्रील प्रभुपाद की जय! श्रील प्रभुपाद हरे कृष्ण आंदोलन अथवा मूवमेंट के संस्थापकाचार्य हैं। हरे कृष्ण आंदोलन की जय! विश्वभर में हरे कृष्ण आंदोलन का कुछ मूवमेंट दिखा रहा है। २५ वर्ष पूर्व अर्थात वर्ष १९९६ में हम जब श्रील प्रभुपाद का जन्म शताब्दी अर्थात सौवां जन्म उत्सव मना रहे थे, उस समय सौ देशों के भक्तों ने कोलकाता के रास्ते पर संकीर्तन किया। कोलकाता जो कि श्रील प्रभुपाद की जन्मभूमि है, वहाँ पर 100 देशों के भक्त आए थे अथवा आमंत्रित किए गए थे। उन सौ देशों के भक्तों ने
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे का कीर्तन किया। चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी सच हो चुकी है, हम ऐसा क्लेम तो नहीं कर सकते परंतु इसमें कोई शक भी नहीं है कि वह पूरी होने वाली है। अभी पूरी नहीं हुई है लेकिन प्रारंभ हो चुका है अर्थात महाप्रभु की भविष्यवाणी का सच होना प्रारंभ हो चुका है। आप सब ने अनुभव किया है और हम भी इसी के अंतर्गत बता रहे हैं। शायद आप सब वर्ष 1996 में नहीं होंगे। क्या आप में से कोई था? जब सौवां संकीर्तन महामिलन कोलकाता में हुआ था। क्या आप में से कोई था? श्री अद्वैत आचार्य, कहां थे? तुम वहाँ नहीं थे। कृष्णकांता भी नहीं थी, लेकिन ऐसा हुआ था। हमने ही आयोजन किया था। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने श्रीचैतन्य महाप्रभु की ओर से भविष्यवाणी की अथवा उनकी भविष्यवाणी भी बिल्कुल वैसी ही है जैसे श्रीचैतन्य महाप्रभु की थी उन्होंने भी कहा था कि ऐसा एक समय आएगा जिसमें कई देशों जैसे जर्मनी, इंग्लैंड या इस देश अथवा उस देश के लोग भारत आएंगे, नवद्वीप आएंगे।
जय शचीनन्दन, जय शचीनन्दन,जय शचीनन्दन गौर हरि।
जय शचीनन्दन
गौरा गौरा हरि,गौरा गौरा हरि।।
कीर्तन करो, अब क्या लिख रहे हो? नंदीमुखी लिख रही है। भक्ति विनोद ठाकुर ने कहा कि संसार भर से लोग आएंगे, वह भी सच हो रहा है। आप गौर पूर्णिमा के समय मायापुर फेस्टिवल में आइए। कई सारे देशों के भक्त वहां पहुंच रहे हैं। जिनको हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे नाम प्राप्त होता है।
अथवा वे अपने-अपने देशों में हरि नाम को प्राप्त कर रहे हैं। कुछ समय पहले मैं देख रहा था की एक भक्त मंगोलिया के जप कर रहे थे, वह ग्रेटर नोएडा पहुंचे हुए थे लेकिन वे मंगोलिया के थे। एकनाथ गौर! इस कॉन्फ्रेंस में भी १०-२० देशों के भक्त जैसे ऑस्ट्रेलिया से हरि ध्वनि माताजी, वैसे वह ऑस्ट्रेलियन तो नहीं हैं, वैसे भी कोई भी ऑस्ट्रेलिया या केनेडियन नहीं होता, हम सब लोग वैकुंठ से हैं। हम भूले भटके जीव नाना योनियों में भ्रमण कर रहे हैं, कभी केनेडियन बनते हैं और कभी ऑस्ट्रेलियन बनते हैं, कभी हिंदू बनते हैं, कभी क्रिश्चियन बनते हैं। कभी यहूदी बनते हैं, कभी मुस्लिम बनते हैं, कोई त्रिपाठी बनता है तो कोई कौशिक बनता है लेकिन हम इसमें से कुछ भी नहीं होते हैं। हमारा इन देशों से कोई संबंध नहीं है और न ही इन धर्मों से हमारा कोई संबंध है। वैसे अगर देखा जाए अथवा मैंने जिनके भी नाम लिए हैं, आजकल इस संसार में यह धर्म, वह धर्म या क्रिश्चियन... आपने कभी पढ़ा नहीं होगा अथवा आपने सुना सोचा भी नहीं होगा कि इस संसार में एक तिहाई लोग क्रिश्चियन( इसाई) हैं, अर्थात इस संसार के 33% क्रिश्चियन(इसाई) है। आपके ज्ञान के लिए अथवा अचरज वाली बात यह है कि इस संसार की २५% आबादी मुसलमानों की है।
केवल 15 प्रतिशत ही हिंदू हैं। ६ से 7 प्रतिशत बौद्ध है अथवा बौद्ध पंथी हैं। लगभग 15% लोग नास्तिक भी हैं, जो कहते हैं कि हम भगवान को नहीं मानते। ऐसे लोग भी हैं। वैसे सारे जीव सनातन धर्म से सम्बंधित हैं। सभी जीवों का धर्म सनातन धर्म है।
वृंदावन दास सुन रहे हो? यदि
धर्म को नाम दिया जा सकता है तो सनातन धर्म नाम दिया जा सकता है।
जब इन अलग-अलग धर्मों का इस पृथ्वी पर अभ्यास किया जाता है अर्थात वह आधा सनातनी ही है अथवा वह 50 से 70% सनातन धर्मी है। जो गौड़ीय वैष्णव है, वह सौ प्रतिशत सनातन धर्मी है या भागवत धर्मी है। यह भी सुन लीजिए अथवा आप कल्पना भी कर सकते हो या कल्पना भी क्यों करें यह सब तथ्य सत्य है। यह मान्यता भी है कि सबसे प्राचीन धर्म हिंदू धर्म है। ऐसी भी समझ है अथवा ऐसा भी समझा जाता है कि हिंदू धर्म 7000 वर्ष पुराना है। बाद में यहूदी धर्म का नाम आता है, यहूदी धर्म साढ़े तीन हजार वर्ष पुराना है। तत्पश्चात बौद्ध धर्म का नाम आता है जो कि ढाई हजार वर्ष पुराना है। महात्मा बुद्ध प्रकट हुए थे और उन्होंने एक धर्म की स्थापना की लेकिन उसका उपयोग तो कुछ समय के लिए होना चाहिए था लेकिन कुछ लोग तो आगे बढ़ा रहे हैं। श्रील प्रभुपाद ने भी लिखा है। तत्पश्चात ईसाई धर्म है, ईसा मसीह दो हजार वर्ष पूर्व हुए थे उनके समय से ही यह क्रिस्टा शब्द शुरू हुआ है। इस्लाम की स्थापना चौदह सौ वर्ष पूर्व हुई थी व नानक 500 वर्ष पूर्व हुए थे। चैतन्य महाप्रभु के समय या लगभग थोड़ा आगे पीछे नानक भी थे। इस प्रकार हर धर्म की एक तिथि है अर्थात इस तिथि अथवा वर्ष में स्थापना हुई। इस वर्ष या इतने वर्ष पहले या इतने हजार वर्ष पहले यह धर्म शुरू हुआ अथवा सैकड़ों वर्ष पहले यह धर्म शुरू हुआ लेकिन सनातन धर्म कब शुरू हुआ? क्या उत्तर है? उत्तर यह है कि ऐसा समय नहीं था जब सनातन धर्म नहीं था। सनातन धर्म शाश्वत है। सनातन धर्म की शुरुआत ही नहीं हुई। कुछ पल्ले पड़ रहा है? कठिन तो नहीं है? आप ध्यानपूर्वक और श्रद्धापूर्वक भी सुन रहे हो? बलरामप्रिया, म्यांमार से ध्यानपूर्वक सुन तो रही है। लग रहा है कि ध्यान पूर्वक सुन रही है। सीता ठकुरानी कैसे सुन रही है? ध्यानपूर्वक या... ठीक है।
तत्पश्चात इसके साथ संसार का दूसरा नियम। यह पहले या दूसरे की बात नहीं है, एक ही नियम है। मोटा मोटा नियम यह है जिसकी शुरुआत होती है उसका क्या होना चाहिए? फिल इन द ब्लैंक्स(रिक्त स्थान) जिसकी शुरुआत होती है, उसका अंत होना ही चाहिए। यह नियम है। यह धर्म की बात नहीं है। शरीर की बात नहीं है। जिसकी शुरुआत होती है उसका अंत होना ही चाहिए, होता ही है। जल्दी और देर से परंतु अंत होता ही है और होगा भी।
भगवान, भगवतगीता में शरीर के संबंध में कहते हैं:-
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च । तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ॥
( श्रीमद् भगवतगीता २.२७)
अनुवाद:- जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के पश्चात् पुनर्जन्म भी निश्चित है। अतः अपने अपरिहार्य कर्तव्यपालन में तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए।
शरीर में अगर जन्म लिया है तो उसकी मृत्यु निश्चित है। हाऊ ओल्ड आर् यू, ई एम .. इयर्स ओल्ड (आप कितने वर्ष के हो, मैं इतने वर्ष का हूं) यह द्वंद भी है। यह संसार द्वंद्वों से भरा पड़ा है अर्थात इस संसार का ड्यूल नेचर अथवा प्रकृति है। यह प्रकृति ही है।
द्वंद मतलब दो, यह और वह। जैसे यदि काला है, तब फिर क्या होना चाहिए? गोरा। यदि स्वदेशी है तो फिर क्या होना चाहिए? विदेशी। स्त्री है तो पुरुष। गरीब है तो फिर अमीर है, रात है फिर दिन है, यह द्वंद है। यदि शुरुआत है तो अंत भी होगा। यह जो धर्म का अलग-अलग जन्म हुआ है अथवा इनकी शुरुआत हुई है। जैसे आप इनकी कोई डेट बता रहे हो कि हमारा धर्म इतने हजार वर्ष पुराना धर्म है। शायद हम हिन्दू धर्म को स्वीकार नहीं करते होंगे। इसीलिए उन्होंने कहा युहुदी धर्म सबसे पुराना धर्म है। ऐसा उनका दावा है साढ़े तीन हजार वर्ष पुराना है। मौजिज से पहले अब्राहम हुए। आगे मौजिज हुए और उनके द्वारा स्थापित किया हुआ धर्म सबसे पुराना धर्म माना जाता है। बड़े रुबाब अथवा गर्व के साथ कहो कि हम यहूदी हैं क्योंकि हमारा धर्म सबसे पुराना है लेकिन शुरुआत तो हुई । शुरुआत हुई है तो अंत भी होगा।
यहां पर हम कोई शाप आदि नहीं दे रहे हैं कि तुम्हारा अंत होगा। ऐसा नियम ही है, ऐसा ही इस संसार में होता है। जो धर्म इस संसार में मौजूद है या है उनका क्या होने वाला है? वे धीरे-धीरे समाप्त होंगे। हम देख भी रहे हैं और देखते भी रहते हैं। क्या आपने फारसी नाम का धर्म सुना है? यह लगभग डेड एंड( अंत) तक पहुंच चुका है। यहूदी की संख्या भी डांवाडोल ही चल रहा है। जब विभाजन होता है तब टुकड़े टुकड़े हो जाते हैं। यह भी विनाश का एक लक्षण है। जैसा क्रिश्चियनटी के साथ हुआ, ऐसा ही हिंदू धर्म के साथ है। हम लोग तो क्रिश्चियन रिलिजन के थे लेकिन आपको शायद पता नही होगा। कोई कैथोलिक है तो कोई प्रोटेस्टेंट है कोई भी जेहोवा विटनेस है , कोई क्या है तो कोई क्या है। धर्म के सैकड़ों विभाजन होंगे। वही हाल हर धर्म का है। वही हाल हिंदू धर्म का है, यदि हिंदू धर्म की शुरुआत हुई है तो हिंदू धर्म का भी अंत होगा। आप कुंभ मेले जाओगे तो वहां आप देख सकोगे क्रिश्चियनटी के कुछ विभाजन अथवा कुछ टुकड़े हो चुके हैं लेकिन प्रतियोगिता में हिंदू धर्म कुछ पीछे नहीं है। जहां तक विभाजन कहो, टुकड़े कहो अगर कुंभ मेले में आप देखोगे तब हजारों की संख्या में हर एक का अपना अपना एक अलग कैंप लगा हुआ है। सबका अपना-अपना पंथ है , पथ है। कोई भगवान को लेकर या कोई देवी देवता को लेकर धर्म चला रहे हैं, धर्म के कर्म कर रहे हैं। वैसे हमने कहा ही और हम जो भी कहते हैं, सत्य ही कहते हैं। सत्य के अलावा हम कुछ झूठ कहते हैं क्या? हम झूठ नहीं कहने वालों की ओर से हैं। हम परंपरा के आचार्य की ओर से कहते हैं। सभी जीवों का सनातन धर्म है।
श्रीकृष्णचैतन्य प्रभु दया कर मोरे। तोमा बिना के दयालु जगत-संसारे॥1॥
पतितपावन हेतु तव अवतार। मोसम पतित प्रभु ना पाइबे आर॥2॥
हा हा प्रभु नित्यानन्द! प्रेमानन्द सुखी। कृपावलोकन कर आमि बड़ दुःखी॥3॥
दया कर सीतापति अद्वैत गोसाइ। तव कृपाबले पाइ चैतन्य-निताइ॥4॥
हा हा स्वरूप, सनातन, रूप, रघुनाथ। भट्टयुग, श्रीजीव, हा प्रभु लोकनाथ॥5॥
दया कर श्रीआचार्य प्रभु श्रीनिवास। रामचन्द्रसंग मागे नरोत्तमदास॥6॥
( श्री नरोत्तम दास ठाकुर द्वारा रचित गीत)
अर्थ
(1) हे श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु! मुझपर दया कीजिए। इस संसार में आपके समान दयालु और कौन है?
(2) हे प्रभु! पतितों को पावन करने हेतु ही आपका अवतार हुआ है, अतः मेरे समान पतित आपको और कहीं नहीं मिलेगा।
(3) हे नित्यानंद प्रभु! आप तो सदैव गौरांगदेव के प्रेमानन्द में मत्त रहते हैं। कृपापूर्वक मेरे प्रति आप दृष्टिपात कीजिए, क्योंकि मैं बहुत दुःखी हूँ।
(4) हे अद्वैतआचार्य! आप मुझपर कृपा कीजिए क्योंकि आपके कृपाबल से ही चैतन्य-निताई के चरणों की प्राप्ति संभव हो सकती है।
(5) हे श्रील स्वरूप दामोदर गोस्वामी! हे श्रील सनातन गोस्वामी! हे श्रील रूप गोस्वामी! हे श्रील रघुनाथदास गोस्वामी! हे श्रील रघुनाथ भट्ट गोस्वामी! हे श्रील गोपाल भट्ट गोस्वामी! हे श्रील जीव गोस्वामी! तथा श्रील लोकनाथ गोस्वामी! आप सब मुझपर कृपा कीजिए, ताकि मुझे श्री चैतन्य-चरणों की प्राप्ति हो।
(6) श्रील नरोत्तमदास ठाकुर प्रार्थना कर रहे हैं, ‘‘हे श्रीनिवास आचार्य! आप मुझपर कृपा करें, ताकि मैं श्रीरामचन्द्र कविराज का संग प्राप्त कर सकूँ। ’’
श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु क्या केवल हिंदुओं के भगवान् हैं ? ईसाइयों के भगवान कौन है? गौरांग महाप्रभु ही हैं क्योंकि ईसाइयों का धर्म ईसाई धर्म नहीं है। उनका कौन सा धर्म है? लीला प्रिया गोपी कहो? ईसाइयों का कौन सा धर्म है? पता नहीं, तुमने कुछ तो कहा है शायद सनातन धर्म ही कहा है। उनका धर्म सनातन धर्म है। मुसलमानों का धर्म कौन सा है? यस? रघुकुल राम? उनका भी धर्म भी सनातन धर्म है। हिंदुओं का धर्म कौन सा है? उनका भी सनातन धर्म है। हर जीव का सनातन धर्म है। आप क्या सोच रहे हो?15 मिनट पहले तो बताया था कि हर जीव का धर्म सनातन धर्म है। इन सब का पुनः प्रर्वतन होने वाला है। चैतन्य महाप्रभु की विशेष कृपा से उन्हीं के जो जीव हैं, उन्हीं के अधिपत्य व पुत्र है अंश है।
ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः । मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ॥७॥
( श्रीमद् भगवतगीता १५.७)
अनुवाद:- इस बद्ध जगत् में सारे जीव मेरे शाश्र्वत अंश हैं । बद्ध जीवन के कारण वे छहों इन्द्रियों के घोर संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें मन भी सम्मिलित है।
श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु कृपा करने वाले हैं। आप सब तक तो कृपा पहुंच गई है। इसीलिए हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे कर रहे हो। यह कृपा हर एक को मिलने वाली है। यह कृपा इस पृथ्वी पर जितने नगर व ग्राम है, वहां तक पहुंचने वाली है। यह गुड न्यूज़ है ? यस और नो? अच्छा समाचार है? जान्हवी गंगा, तुम क्या सोचती हो? एक और न्यूज़( समाचार) है। हरि! हरि! इसमें कोई जिंदाबाद मुर्दाबाद वाली बात नहीं है। जो भी कीर्तन को अपनाएंगे अथवा सनातन धर्म को अपनाएंगे, सभी की जय होगी। वैसे कलयुग का धर्म नाम संकीर्तन है। जो नाम संकीर्तन को अपनाएंगे, उन सब की जय होगी। ऐसा नहीं कि हमने ईसाई धर्म को परास्त किया या हमने उनके धर्म का परिवर्तन किया। उनका धर्म ईसाई धर्म था ही नहीं, उनका हिंदू धर्म था ही नहीं, उनका धर्म तो सनातन धर्म था और है और रहेगा। जब कोई कृष्णभावनामृत को स्वीकार करता है, हरि! हरि! वैसे मैं सोच रहा था कि ..अभी कोई नया टॉपिक तो नहीं खोल सकता मैं लेकिन यदि कोई कहता भी है कि मैं इसाई हूं, मैं मुस्लिम हूं, मैं हिंदू हूं लेकिन वह क्या करता है आपको पता है? पहला वह मांस भक्षण करता है, दूसरा वह नशा पान करता है, तीसरा वह अवैध स्त्री पुरुष संग करता है और चार जुआ खेलता है। हम कहेंगे कि वह धार्मिक ही नहीं है। वह किसी धर्म को जुड़ा हुआ नहीं है। क्योंकि श्रीमद्भागवत कहता है
सूत उवाच
अभ्यर्थितस्तदा तस्मै स्थानानि कलये ददौ। द्यूतं पानं स्त्रियः सूना यत्राधर्मश्चतुर्विधः।।
( श्रीमद् भागवतम १.१७.३८)
अनुवाद:- सूत गोस्वामी ने कहा, कलियुग द्वारा इस प्रकार याचना किए जाने पर महाराज परीक्षित ने उसे ऐसे स्थानों में रहने की अनुमति दे दी, जहां जुआ खेलना, शराब पीना वेश्यावृत्ति तथा पशु वध होते हो।
हे कलि! तुम वहाँ रहो? जहाँ द्यूतं पानं स्त्रियः सूना अर्थात जहाँ ये चार प्रकार के अधर्म होते हैं। चतुर्विधः इसको अधर्म कहा है अथवा यह अधार्मिक कृत्य है। जो व्यक्ति मांस भक्षण करता है अथवा जो व्यक्ति नशापान करता है और जो व्यक्ति अवैध स्त्री पुरुष सङ्ग में लिप्त हैं और जो जुआ खेलता है। वह धार्मिक है ही नहीं। इसी को इस कलयुग में पाखंड कहते हैं। वैसे जो और टेस्टामेंट्स हैं हिब्रू और बाइबल में या जो नये टेस्टामेंट्स है, प्रभुपाद लिखते हैं और बारंबार कहा करते थे कि आप कैसे क्रिश्चियन हो? क्या आप सचमुच में क्रिश्चियन हो? आपका बाइबल तो दस निर्देशों में कहता है दाऊ शैल नाँट किल (thou shall not kill ) पशुओं की हत्या मत करो। अर्थात यह मांस भक्षण मत करो। यदि ऐसा कहा है लेकिन अगर आप उसका पालन नहीं करते हो, आप क्रिश्चियन हो? नहीं! आप क्रिश्चियन नहीं हो? आप धार्मिक ही नहीं हो।
यत्राधर्मश्चतुर्विधः। यह अधार्मिक कृत्य है। इस संसार के जो भी लोग कहते हैं कि हम धार्मिक हैं, हम ईसाई हैं, हम हिंदू हैं लेकिन अगर आपका यह धंधा या आप ऐसे काम करते हो, ऐसा पाप करते हो अथवा इन सारे नियमों का उल्लंघन करते हो तब आप अधर्मी हो। आपका कोई धर्म नहीं है। हरि! हरि! कीर्तन करते रहो। जप करते रहो। भागवत को पढ़ते रहो। यह आपका धर्म होगा भागवत धर्म। यह हर जीव का धर्म है।
यदि कोई नाम दे सकते हैं वह जैव धर्म। जैव धर्म जीव का धर्म है। यदि उसको कुछ नाम दे सकते हैं, वह सनातन धर्म ऐसा नाम दे सकते हैं और है भी अथवा उसको भागवत धर्म नाम दे सकते हैं। कभी-कभी थोड़ा वर्णाश्रम धर्म भी नाम होता है। लेकिन वह भी इतना ठीक नहीं है। कभी-कभी वैष्णव धर्म भी कहते हैं। यदि कभी आपको वैष्णव कहते हैं, आप सब वैष्णव हो? वैष्णव होना इस संसार की कोई उपाधि नहीं है। बैकुंठ में वैष्णव होते हैं। वैकुंठ में हिन्दू नहीं होते हैं। वैकुंठ में वैष्णव होते हैं। वैकुंठ में ईसाई नहीं होते। वैकुंठ में वैष्णव होते हैं। वैकुंठ में मुस्लिम नहीं होते, बैकुंठ में वैष्णव होते हैं। वैकुंठ में सौ प्रतिशत संख्या वैष्णव की ही है। आप ऐसे वैष्णव शाश्वत सनातन धर्म का अवलंबन कर रहे हो, आप सभी का अभिनंदन है। करते रहो। साथ के साथ और यह प्रेम की गंगा बहाते चलो। इसे प्रेम धर्म भी नाम दिया जा सकता है लेकिन यहां अधिकतर काम धर्म है। हरि! हरि! इसका अभ्यास करो। प्रैक्टिस एंड प्रीच करो। हमें कृष्ण भावना का अभ्यास करना चाहिए। प्रैक्टिस करनी चाहिए। साधना करनी चाहिए। साथ ही साथ अन्यों के साथ शेयर करना चाहिए। हम कृष्ण को शेयर करते हैं, हम भगवान को शेयर करते हैं, हम दूसरों के साथ सत्य को शेयर करते हैं। श्री चैतन्य महाप्रभु का उपदेश भी है
य़ारे देख, तारे कह, ' कृष्ण'- उपदेश।आमार आज्ञाय गुरु हञा तार' एइ. देश।।
( श्रीचैतन्य चरितामृत ७.१२८)
अनुवाद:- हर एक को उपदेश दो कि वह भगवतगीता तथा श्रीमद् भागवत में दिए गए भगवान श्रीकृष्ण के आदेशों का पालन करे। इस तरह गुरु बनो और इस देश के हर व्यक्ति का उद्धार करने का प्रयास करो।
हे देश वासियों! आप जिस भी देश के हो। आप क्या करो?
य़ारे देख, तारे कह, ' कृष्ण'- उपदेश।आमार आज्ञाय गुरु हञा तार' एइ. देश।।
हम यहीं पर विराम देते हैं।
चिंतन करो, विचार करो। यह फ़ूड फ़ॉर थॉट है। जैसा कि हम कहते ही रहते हैं। थोड़ा डाइजेस्ट करो। चिंतन करो। मनन करो। हृदयांगम करो, चैतन्या? दूसरों को आश्र्वस्त करो। ठीक है।
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय!
श्रील प्रभुपाद की जय!
गौरांग!