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*जप चर्चा*, *वृंदावन धाम*, *5 सितंबर 2021* हरी बोल । गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। हमारे साथ 648 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। हरे कृष्ण। वृंदावन धाम की जय। समय कम है । कम क्या समय, हमारे पास समय ही है। हरि हरि । वृंदावन या कृष्ण की कथा का ही मैं सोच रहा था। जो मैं पढ़ रहा था कल या फिर चिंतन कर रहा था या फिर कुछ विचारों का मंथन हो रहा था। तो मैंने तय कर लिया कि आज वही बातें मैं आपके साथ शेयर करूं या सुनाऊं। यह सब कहते हुए समय निकल जाता है। कृष्ण कन्हैया लाल की जय। वृंदावन धाम की जय। मैं कुछ कहने जा रहा हूं, तो वह लिखने योग्य बातें हो सकती हैं और तकनीकी बातें भी कहूंगा । आप उसको लिख कर रख सकते हो, आपका फायदा होगा । मैं जो कुछ बातें कहूंगा, सब बातें तो आप कुछ बातें सुनकर याद रख सकते हो किंतु कुछ बातें आप लिख सकते हो और याद रख सकते हो । अगर भूल गए तो पुनः आप पढ़ सकते हो । एक तो वृंदावन में लीलाएं होती है। वृंदावन में ही क्यों ? कृष्ण की जितनी भी लीलाएं हैं, उनके तीन प्रकार बताएं है । एक है बाल्य लीला, दूसरी पोगंड लीला और तीसरी किशोर लीला या फिर किशोर से आगे यौवन लीला *नवयोवनम च* ऐसा भी कह सकते हो । किशोर और यौवन एक ही प्रकार है । कृष्ण की लीलाएं प्रारंभ होती है। मैं आपको बता ही देता हूं । थोड़ी तकनीकी जानकारी कहो । भागवत के दशम स्कंध में 90 अध्याय में श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन है । श्रीकृष्ण का चरित्र है कहो । श्रीकृष्ण चरित्र 90 अध्याय में है । उसमें जो पहले 5 अध्याय हैं । उसमें कृष्ण के जन्म की लीलाएं या कथा है और वैसे इन लीला की स्थलियां भी अलग-अलग है । बाल्य लीला कहां होती हैं और पोगण्ड किसी दूसरे स्थान पर होती है । उसके साथ उसमें उम्र का भी प्रश्न होता ही है । भगवान की जैसे उम्र बढ़ जाती है। एक दिन आपको बताया था । कृष्ण गोकुल में रहते हैं । कितने वर्ष ? आपको याद है विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर आप बताएं कितने वर्ष रहे गोकुल में, कौन जानता है ? 3 वर्ष और 8 महीने रहे । कृष्ण वहां से शकटावर जाते है। बस गोकुल में भगवान की बाल्य लीला संपन्न होती है। कृष्ण आगे बढ़ते हैं । उम्र भी बढ़ रही है और आगे भी बढ़ रहे हैं। शकटावर जाते हैं और स्थांतरित हो जाते हैं। छटीकरा का यहां का, शकटावर यह सब आपको बताए थे । यहां पर भी रहते हैं 3 वर्ष और 8 महीने । बाल्य लीला अधिकतर गोकुल में संपन्न होती है किंतु कुछ बाल्य लीला शकटावर में भी होती है। बाल लीला पहले 5 वर्ष की आयु में जो होती है उसको बाल लीलाएं कहते हैं । 5 से 10 तक को पोगण्ड लीला कहा गया है। 10 या 16 वर्ष तक को किशोर लीला कहा है। फिर आगे यौवन लीला किशोर ही है। कृष्ण सदैव किशोर ही रहते हैं। फिर कृष्ण शकटावर से आगे बढ़ते हैं, नंदग्राम जाते हैं। पहले नंदगोकुल में थे । नंद महाराज का गोकुल नंद महाराज का ग्राम, नंद ग्राम और यहां शकटावर में भी पोगण्ड लीला भगवान की होती है। श्रीशुक उवाच ततश्च पौगण्डवयः श्रीतौ व्रजे बभूवतुस्तौ पशुपालसम्मतौ । गाश्चारयन्तौ सखिभिः समं पदै वृन्दावनं पुण्यमतीव चक्रतुः ॥ (श्रीमद् भागवत 10.15.1) अनुवाद:- शुकदेव गोस्वामी ने कहा : वृन्दावन में रहते हुए जब राम तथा कृष्ण ने पौगण्ड अवस्था ( ६-१० वर्ष ) प्राप्त कर ली तो ग्वालों ने उन्हें गौवें चराने के कार्य की अनुमति प्रदान कर दी । इस तरह अपने मित्रों के साथ इन दोनों बालकों ने वृन्दावन को अपने चरणकमलों के चिन्हों से अत्यन्त पावन बना दिया । यह बात भी आपको कुछ दिन पहले बताई थी। कृष्ण जब पोगण्ड अवस्था को प्राप्त कर लिए। तो कृष्ण गोपाल बन गए। पोगण्ड लीला शकटावर में प्रारंभ होती है। फिर कृष्ण आगे उम्र में और बढ़ते हैं और नंद ग्राम पहुंचते हैं और वहां किशोर अवस्था को प्राप्त करते है और वहां किशोर लीला संपन्न होती है। तो लीला के जो तीन प्रकार बता रहे हैं। तो बाल्य लीला गोकुल में और पोगण्ड लीला शकटावर में और किशोर लीला नंदग्राम में संपन्न होती है । किशोर लीला और आगे की लीलाएं नंदग्राम में, मथुरा में भी, द्वारका में भी वह सारी लीला संपन्न करते है। फिर कृष्ण कुछ 11 वर्ष के हुए। फिर मथुरा के लिए प्रस्थान करते हैं और बचे हुए जितने वर्ष हैं, कुल 125 वर्षों तक भगवान इस धरातल पर रहेंगे। मथुरा में रहेंगे 18 वर्ष और बचे हुए वर्ष और जो साल है भगवान द्वारिका में रहेंगे तो वहां पर किशोर या यौवन लीला कहो । मैं अध्ययाओ की बात कर रहा था। श्रीमद भागवत के दशम स्कंद के पहले जो 5 अध्याय हैं। उसमे भगवान की अजन्म लीला का वर्णन है । मथुरा में जन्म और गोकुल में पहुंचाए गए। वहां पर लीलाएं संपन्न हुई। इसको जन्म लीला कहिए। पहले 5 अध्याय में जन्म लीला है और आगे के 9 अध्यायों में बाल्य लीला है । श्रीमद्भागवत के 10वे स्कंद की बात चल रही है। आप पढ़ते हो यह जानकारी उपयोगी होगी। यह जानकारी भी विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर देते हैं । वैसे कठिन तो नहीं है। जो भी अवलोकन करेंगे अध्यायों का उनको पता लग सकता है । कौन सी लीला कहां संपन्न हुई और पता चलेगा की लीला कौन सी प्रकार की है । बाल्य लीला है या किशोर लीला है या फिर पोगण्ड लीला है तो 9 अध्याय बाल्य लीला है और फिर जो 10वे स्कंद के 15 वा अध्याय में पोगण्ड लीला प्रारंभ होती है । श्रीकृष्ण पोगण्ड आयु को प्राप्त हुए और गोपाष्टमी भी कार्तिक मास की थी। कृष्ण गोपाल बने और गौचारण लीला कहो । गोचारण लीला प्रारंभ होती है । अब तक श्री कृष्ण अधिकतर या गोकुल में रहे और जहां बाल लीला मतलब यहां वात्सल्य भाव का प्राधान्य रहता है पहले वात्सल्य भाव का प्राधान्य फिर पौगंड़ लीला में सख्य मित्रों के साथ मिलना जुलना खेलना फिर अभी बछड़े चराने जाना यह लीलाएं प्राप्त होती है तो वह भी क्रम है ही । वात्सल्य भाव, पहले वात्सल्य भाव का प्राधान्य है लीलाओं में और कृष्ण थोड़े बड़े हो जाते हैं उम्र में बड़े हो जाते हैं तो मित्रों से मिलते हैं और सख्य भाव और फिर उसमें बढ़ जाते हैं ज्यादा तो उम्र नहीं बढ़ी है लेकिन कुछ हो गए 7-8 साल और 10 साल की ओर आगे बढ़ रहे हैं तो फिर भगवान की माधुर्य लीला या माधुर्य भाव मतलब गोपियों के साथ और उसके बाद राधा के साथ तो कृष्ण के दो प्रकार के दोस्त हैं कहो या दोस्ती भी है उस माधुर्य में दोस्ती भी है और भी दोस्ती से ज्यादा और कुछ अधिक भी है तो दोस्त सखियां उनके मित्र हैं और उनकी सखियां और सखा तो पहले उन्होंने मित्रों के साथ बालकों के साथ उनका मिलना जुलना खेलना उसी समय को गोचरण लीला खेलते हैं और उम्र बढ़ती है तो फिर गोपियों के साथ गोपियों को छेड़ना इत्यादि । गोपियों के साथ और धीरे-धीरे रास क्रीडा इत्यादि भी प्रारंभ होती है तो मूल रूप से यह क्रम है या भाव के दृष्टि से सर्वप्रथम वात्सल्य भाव का प्राधान्य है और दूसरे क्रमांक में यह सख्य भाव प्राधान्य आदि लीलाएं और फिर माधुर्य लीला । राधा बल्लभ, गोपी बल्लभ कृष्ण बनते हैं तो नंदग्राम से लगभग नंद ग्राम से प्रारंभ होती है । ठीक है जहां तक यह अध्याय का क्रम की बात चल रही है तो 6 अध्याय में प्रारंभ से 15 अध्याय से शुरुआत तो 6 अध्याय में पौगंड़ लीला है और मुझे याद आ रहा है कि 21 अध्याय से जो वेणु गीत है, वेणु गीत वाला जो अध्याय है वहां से किशोर लीला प्रारंभ होती है और इसके 19 अध्याय है तो बाल्य लीला के 9 अध्याय, पौगंड़ लीला के 6 अध्याय उसके बाद किशोर लीला के माधुर्य लीला के 19 अध्याय है । यह किशोर लीला का प्रारंभ होता है । मुझे यहां पर रुकना भी होगा तो किशोर लीला का प्रारंभ होता है वेणु गीत से आपको बताया शायद वो 21 वा अध्याय होगा आप लीजिए और फिर यहां से अब कृष्ण, अक्रूर आने वाले हैं आ ही गए और मथुरा के लिए प्रस्थान । कृष्ण बलराम मथुरा के लिए प्रस्थान करेंगे तो रास्ते में अक्रूर घाट में अक्रूर की स्तुति है वह एक अध्याय है । अक्रूर की स्तुति वाला एक अध्याय है और अब कृष्ण 'मथुरेसी गेला' मथुरा गए । मथुरा में रहेंगे, मथुरा में प्रवेश और वहां 11 अध्याय में मथुरा लीला है और फिर 'रणछोड़-'रणछोड़'-'रणछोड़' जो जरासंध ने कहा । कृष्ण और बलराम वहां युद्ध होता रहा हर वर्ष । उस युद्ध को छोड़े और कृष्ण जा रहे थे तो रण छोड़ा और उसी के साथ उन्होंने मथुरा को भी छोड़ा और आगे बढ़े हैं द्वारका के लिए प्रस्थान किया है जहां उनका विशेष स्वागत हुआ है । रणछोड़राय की जय ! बहुत अच्छा हुआ आपने रण को छोड़ा ताकि आपको हम मिले । आपका बहुत स्वागत है श्री कृष्ण । बाकी जो बचे हुए जितने भी अध्याय हैं यह सब द्वारका लीला है तो मथुरा लीला तक उसको 'पूर्वार्ध' कहा है 'पूर्व-अर्ध'। पहला आधा और दूसरा आधा । 'उत्तरार्ध' तो वृंदावन मथुरा की लीला इनको पूर्वार्ध कहा है और बची हुई लिपटे द्वारिका में 90 अध्यायों तक इसको उत्तरार्ध कहा है या मूल रूप से इस प्रकार यह श्रीमद्भागवत् के दसवें स्कंध के अध्यायों का बंटवारा है और यह 3 प्रकार की लीलाएं बाल लीला, पौगंड़ लीला, किशोर लीला यह भी उस क्रम से होती है और उसके साथ भाव भी जुड़े हैं और वे हैं । प्रारंभ होता है वात्सल्य भाव से और फिर सख्य भाव से या फिर सख्य रस पूर्ण जो लीलाएं हैं और फिर किशोर लीला फिर वृंदावन में परकिय भाव है और द्वारिका में स्वकिय भाव है । वैसे यह कुछ वृदावन की गोपियां ही श्री कृष्ण की रानियां बन जाती हैं जो गोपियां थी वृंदावन में वह बन जाते हैं रानियां । रुक्मिणी, सत्यभामा इत्यादि इत्यादि तो वृंदावन में भी शृंगार रस या माधुर्य रस है और द्वारिका में भी है । लेकिन इन दौ रसों में भेद है । वृंदावन में 'परकिय भाव' । जय जय उज्ज्वल-रस, सर्व-रस-सार । पारकिया-भावे जाह, ब्रजते प्रचार ॥ 10 ॥ ( जय राधे, जय कृष्ण, जय वृंदावन ) अनुवाद:- समस्त रसों के सारस्वरूप माधुर्यरस की जय हो , परकीय भाव में जिसका प्रचार श्रीकृष्ण ने व्रज में किया । व्रज में परकिय भाव का प्रचार है और द्वारिका में स्वकिय भाव । ठीक है । गौर प्रेमानंदे ! तो याद रखिए कुछ आपने लिख भी लिया होगा हां ! इसको याद करिए इस पर विचार कीजिए, मनन कीजिए, चिंतन कीजिए तो यह विचार के लिए भोजन है कहो और फिर इसको औरों के साथ फिर शेयर करना है औरों को सुनाइए और इसी के साथ कृष्ण भावना या कृष्ण को फैलाईये । कृष्ण भावना का वितरण कीजिए मतलब कृष्ण को ही दीजिए औरों को इस कथा के रूप में । ठीक है तो अब हम सुनना चाहेंगे प्रभुपाद कथा या प्रभुपाद गौरव गाथा हमारे मंदिर के भक्तों के मुखारविंद से । ठीक है । ॥ हरे कृष्ण ॥

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