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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से* *दिनांक 4 मई 2020* हरे कृष्ण 905 जगह से आज भक्त जप कर रहे है । कोरोनावायरस बढ़ रहा है क्या ? हमारा यही प्रार्थना या प्रयास है ताकी यह वायरस घटे और अंततोगत्वा मीटे । अधिक से अधिक भक्त जॉइन कर रहे हैं , जुड़ रहे हैं तो फिर हम अधिक संख्या में होंगे , अधिक भक्त प्रार्थना करेंगे । यह जो जप चर्चा चल रही है यह एक प्रार्थना सत्र है और फिर प्रार्थना और प्रयास है। हम सब प्रयास भी करेंगे ताकि इस संसार को इस महामारी से राहत मिले , प्रार्थना तो यह है की *सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया,* *सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत।* *अनुवाद:- "सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।"* आप सब को यह प्रार्थना करनी है , इस प्रार्थना के साथ जप करना है या प्रार्थना के साथ जप करना है *सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया,* सभी सुखी हो , सभी सुखी हों सभी मतलब ? सभी ! पूरे संसार के लोग उन सभी से मिलकर हमारा पूरा परिवार है । यही पूरा हमारा परिवार है और अपना संकीर्ण विचार छोड़ दो । नीच विचार , हम दो हमारे दो , हो गया हमारा परिवार पूरा । उच्च विचार वाला व्यक्ति भक्त वसुदेव कुटुंबकम , ऐसा विचार रखता है । *अयं निजः परो वैति गणना लघुचेतसाम् ।* *उदारचरितानान्तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥* *(पञ्चतन्त्रम्पंचम तंत्र, “अपरीक्षितकारकम्)* *अर्थ – यह अपना है या पराया है ऐसा आकलन छोटे दिल वालों का होता है। उदार चरित्र वालों के लिए तो पूरी पृथ्वी ही उनका कुटुम्ब होती है।* ऐसे शिक्षाएं हैं , ऐसी वेद वाणी है । वसुदेव कुटुंबकम विशाल दूरदृष्टि हैं और विशाल ह्रदय हैं , जिस हृदय में भगवान है वह निश्चित ही विशाल हृदय होता है फिर उच्च विचार भी *सर्वे सुखिनः भवंतु सर्वे संतु निरामया* निरामया मतलब रोग निरामया सभी रोगों से मुक्त हो । सभी रोग से मुक्त हो । *महामारी विनाशनम* कल मैं बता रहा था भगवान के सहस्त्रनाम में से एक नाम है महामारी विनाशक , बस वही जाने , वही सब कुछ करते हैं। *BG 9.10* *“मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम् |* *हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते || १० ||”* *अनुवाद:-* *हे कुन्तीपुत्र! यह भौतिक प्रकृति मेरी शक्तियों में से एक है और मेरी अध्यक्षता में कार्य करती है, जिससे सारे चर तथा अचर प्राणी उत्पन्न होते हैं | इसके शासन में यह जगत् बारम्बार सृजित और विनष्ट होता रहता है |* और आगे हमारे आचार्य कहते हैं *मारबि राखबि जो इच्छा तोहार* *नित्यदास-प्रति तुया अधिकार॥3॥* *अनुवाद:-आप चाहें तो मुझे मारें अथवा जीवित रखें, आपको पूरा अधिकार है। आपकी जो कुछ भी इच्छा हो, उसे कार्यान्वित करने हेतु आप स्वतन्त्र हैं, क्योंकि मैं तो आपका नित्य दास हूँ।* उनका अधिकार है , उन्हीं से प्रार्थना है *सर्वे संतु निरामया* सभी निरोगी हो *सर्वाणि भद्राणि पश्यंतु* सभी मंगलमय जीवन का अनुभव करें । *सर्वाणि भद्राणि पश्यंतु* वही बात है। *भद्र मंगल* सभी का भद्र हो , मंगल हो भला हो ऐसी प्रार्थना है। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।* कहते समय , यह प्रार्थना ऐसे विचार हमको करने हैं । *सर्वे सुखिनः भवंतु* फिर उसमें हमारे लिए भी हमने प्रार्थना की , सभी सुखी हो उसमें आप भी शामिल हो और यह उच्च विचार है। जब ब्रजवासी संकट में थे बाढ़ आ गई , आदिदैविक दुख से परेशान हुए , अब पृथ्वी पर जो मानव है वह भी पीड़ित हैं । इस दुख को आदिभौतिक ऐसा नाम दिया जा सकता है । वायरस एक जीव है , कीटाणु है यही आदि भौतिक होता हैं । जब अन्य भूतों से अन्य जीवों से जब कष्ट होता है तो उसे आदिभौतिक कहते हैं। देवताओं के कारण कष्ट होता है , देवता प्रसन्न नहीं है फिर परेशानियां , उलझने आ जाती है, संकट आ जाते हैं उनको आदि दैविक कहते है । हमारे मन और शरीर के स्वभाव के कारण भी दुख होता है उसको आध्यात्मिक दुःख कहा जाता है। आध्यात्मिक मतलब दिव्य नहीं है , अलौकिक नहीं है , भौतिक ही दुख है लेकिन ,आध्यात्मिक नाम दिया है । आध्यात्मिक मतलब आपके खुद के कारण , आत्मा स्वयं है , आत्मा भी हमारे स्वयं का एक अंग है , मन है , शरीर है, यह सब परिभाषा मुझे आपको सुनानी नहीं थी । ठीक है । आगे बढ़ते हैं। लेकिन इसको भी समझ जाओ आदि भौतिक दुखों से सारा संसार परेशान है और वैसे ही इंद्र के कारण बृजवासी जब परेशान थे , वह आदिदैविक था। देवों के राजा इंद्र उनके कारण सारे बृजवासी परेशान थे , संकट में थे और सभी ब्रजवासी भगवान के पास पहुंचे और उन्हें प्रार्थना की बचाओ ! बचाओ ! बचाओ ! ऐसे ही प्रार्थना को *सर्वे सुखिनः भवंतु सर्वे भद्राणि पश्यंतु नक्वाचित दुःख भवेत* किसीको किंचित भी दुख न हो , मतलब सभी सुखी हो ऐसी ही प्रार्थना सभी ब्रज वासियों ने की । हरि हरि ।वैसी प्रार्थना करने के लिए अब आप को प्रेरित किया जा रहा है । ठीक है। *भगवान गिरिराज गोवर्धन की जय ।* *गिरधारी की जय ।* भगवान ने गोवर्धन पहाड़ को उठाया और सभी की रक्षा की , सभी को सुखी बनाया और इंद्र को परास्त किया । इंद्र भगवान के शरण में आए , भगवान के इस गोवर्धन धारण लीला के उपरांत कई बुजुर्ग ब्रजवासी नंद महाराज के पास पहुंचे और उनको पता नहीं चल रहा था कि यह बालक कौन है ? क्या है ?यह कौन है? लगता तो है अन्य बालको जैसे ही यह बालक है , हमारे भी बालक है , हमारे भी पुत्र हैं लेकिन नंद महाराज तुम्हारा पुत्र कौन है ? यह कौन है ? इसके संबंध में कुछ रहस्य होगा तो कुछ समझाओ , हम संभ्रमित हो रहे हैं । इतनी शक्ति का प्रदर्शन किया , गोवर्धन को उठाया , यह इसके लिए बाएं हाथ का खेल हुआ । कृपया हमें बताएं ये कौन है ? उस समय नंद महाराज ने वही उत्तर दिया जो गर्ग मुनि ने कृष्ण के संबंध में कहा था । ऐसे कुछ वचन है, श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंध में जो दो बार आते हैं । एक जो यहां गोवर्धन धारण का प्रसंग है वहां पर आता हैं और नंद महाराज वही बातें दोहरा ते है, जो गर्गाचार्य ने कहा था । एक एक शब्द बताया , यथारूप सुनाते हैं। कई सारे श्लोक हैं , कई सारे वचन है जो नंद महाराज ने ब्रज वासियों को सुनाएं । जो नंद महाराज को गर्गाचार्य ने सुनाया थे , गर्गाचार्य ने जो बातें कही थी उसमें से कई वजन कुछ बातें आपको हम स्मरण दिलाते हैं। श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध में अध्याय आठवां और श्लोक 16, 17,18,19 ऐसे कुछ श्लोक देखते हैं। यहां वचन है गर्गाचार्य , गर्ग मुनि इन्होंने उस समय कहे थे , जब कृष्ण बलराम का नामकरण हुआ था । नंद महाराज के गौशाला में छुप छुप के ही नामकरण हो रहा था , नामकरण के उपरांत वैसे कुछ कुंडली देखते है । यह बालक कैसा होगा ? या बड़ा हो कर क्या करेंगा ? कौन होगा ? ऐसा भविष्य बताया जाता है। तब गर्गाचार्य जो त्रिकालज्ञ है , तीन कालों को जानने वाले हैं और वह भगवत साक्षात्कारी भी है , कृष्ण को भी जानते हैं , जैसे कृष्ण है। इसलीये उनको यह सब कहने का अधिकार है । गर्गाचार्य ने कहा... *एष वः श्रेय आधास्यद्गोपगोकुलनन्दनः । अनेन सर्वदुर्गाणि यूयमञ्जस्तरिष्यथ ॥१६ ॥* *श्रीमद्भागवत 10.8.16* *अनुवाद:- यह बालक गोकुल के ग्वालों के दिव्य आनन्द को बढ़ाने हेतु तुम्हारे लिए सदैव शुभ कर्म करेगा । इसकी ही कृपा से तुम लोग सारी कठिनाइयों को पार कर सकोगे ।* कृष्ण और बलराम यशोदा और रोहिणी की गोद में बैठे हैं और उनका नामकरण हो रहा है। *अनेन* मतलब उंगली करके दिखा रहे है । अनेन , यही , इसने ही , क्या किया? *सर्वदुर्गानी* सभी प्रकार के संकट कष्ट समस्याएं । *अनेना सर्वानी दुर्गानि नुयम* पहले भविष्य की बात कर रहे हैं। ऐसा करेंगे *करिषत* तुम सबको *यूयमञ्जस्तरिष्यथ* हम सब , आप सब , *करिष्ठथा* यह रक्षा करेगा । बड़े आसानी के साथ रक्षा करेगा, बहुत आसानी से यह रक्षा करेगा। *अनेन सर्वदुर्गाणि यूयमञ्जस्तरिष्यथ* ऐसा कृष्ण का भविष्य बता रहे हैं। ऐसा है तुम्हारा बालक और भी बातें है और फिर संक्षिप्त में कहूंगा लेकिन इसके पहले मैं यह कहना चाह रहा था कि , *यूयम* यह कन्हैया , यह कृष्ण तुम लोगों की यह रक्षा करेगा । उस *यूयम* में ब्रजवासी उस जगह प्रकट लीला में थे ही लेकिन भविष्य में जितने भी लोग प्रकट होंगे , जन्मेगे और कम से कम कह सकते है जो भगवान के शरण में आएंगे और भगवान से प्रार्थना करेंगे , मदद करो , बचाओ ! बचाओ ! बचाओ ! अभी हमारे बस का रोग नहीं है । उन सभीपर भविष्य में जब जब संकट आएंगे तब वह रक्षा करेंगे। आप जानते हो ? हमारे कुंती महारानी ऐसी प्रार्थना भी करती रहती है । *विपदः सन्तु ताः शश्वत्तत्र तत्र जगद्गुरो । भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम् ॥ २५ ॥* *श्रीमद्भागवत 1.8.25* *अनुवाद:- मैं चाहती हूँ कि ये सारी विपत्तियाँ बारम्बार आयें , जिससे हम आपका दर्शन पुनः पुनः कर सकें , क्योंकि आपके दर्शन का अर्थ यह है कि हमें बारम्बार होने वाले जन्म तथा मृत्यु को नहीं देखना पड़ेगा ।* आने दो , संकट आने दो , महामारी आने दो , महामारी आएगी, कोई संकट आएगा तब मैं क्या करूंगी ? आपकी और दौडूंगी , आपसे प्रार्थना करूंगी और आप पर मुझे पूर्ण विश्वास है। *दैन्य, आत्मनिवेदन, गोप्तृत्वे वरण।* *‘अवश्य रक्षिबे कृष्ण’-विश्वास, पालन॥3॥* *अनुवाद:- शरणागति के सिद्धांत हैं - विनम्रता, कृष्ण के प्रति आत्म-समर्पण, कृष्ण को अपना पालनकर्ता स्वीकार करना, यह दृढ़ विश्वास होना कि कृष्ण अवश्य ही रक्षा करेंगे* *‘अवश्य रक्षिबे कृष्ण* यह भी शरणागत भक्त का लक्षण हैं । जो कृष्ण को शरणागत हुए हैं उनका लक्षण क्या है ? *‘अवश्य रक्षिबे कृष्ण* भगवान जरूर सहायता करेंगे , ऐसा विश्वास कुंती महारानी का था इसलिए संकट भेजो , संकट आएगा तो हम आपके पास पहुंचेंगे , मैं आपके शरण में आउगी और इससे हमारा कल्याण होगा , फायदा ही होगा । मुझे पुनः इस भवसागर का दर्शन नहीं करना पड़ेगा , पुनर्जन्मा नहीं होगा । कुछ तुरंत फायदे , कुछ बाद में फायदे भी होगे । गर्गमुनि नंद महाराज से जो यहा कह रहे हैं साथ ही यह हम सभी को भी लागू होता है । गर्गाचार्य हमको भी कह रहे हैं , यह बालक आप की भी रक्षा करेगा , दूसरा और कोई है ही नहीं । कृष्ण के अलावा रक्षा करने वाला कोई है भी नही , वही है । *एकले ईश्वर कृष्ण, आर सब भृत्य।* *यारे यैछे नाचाय, से तैछे करे नृत्य ॥142॥* *चैतन्य चरितामृत 5.142* *अनुवाद:-एकमात्र भगवान् कृष्ण ही परम नियन्ता हैं और अन्य सभी उनके सेवक हैं वे* *जैसा चाहते* *हैं वैसे उन्हें नचाते हैं* और आगे गर्गमुनि ने कहा हैं। *य एतस्मिन्महाभागाः प्रीतिं कुर्वन्ति मानवाः ।* *नारयोऽभिभवन्त्येतान्विष्णुपक्षानिवासुराः ॥१८ ॥* *श्रीमद्भागवत 10.8.18* *अनुवाद:- देवताओं के पक्ष में सदैव भगवान् विष्णु के रहने से असुरगण देवताओं को हानि नहीं पहुँचा सकते । इसी तरह कोई भी व्यक्ति या समुदाय जो कृष्ण के प्रति अनुरक्त है अत्यन्त भाग्यशाली है । चूँकि ऐसे लोग कृष्ण से अत्यधिक स्नेह रखते हैं अतएव वे कंस के संगियों यथा असुरों ( या आन्तरिक शत्रु तथा इन्द्रियों ) द्वारा कभी परास्त नहीं किये जा सकते ।* इस कन्हैया की जो लोग , *प्रीति कुर्वंति* मानव , जो मनुष्य प्रेम करेंगे , शरण में आएंगे , सेवा करेंगे तब कोई भी शत्रु कोई भी संकट हो अभी भवंति वो सब जीतेंगे । जो भक्त भगवान की और सहायता के लिए दौड़ेंगे , प्रार्थना करेंगे वह पार होंगे । अंततोगत्वा बेड़ा पार होगा और कृष्ण संकट से भी मुक्त करेंगे । *अभी भवंति तान विष्णु पक्षांन* जो विष्णु पक्ष के हैं , वैसे यहां महाभारत का भी वचन है , *विजयस्थू पाण्डु पुत्राणाम तेषां पक्षे जनार्दन:* जो पांडू पुत्र है उनकी जय होंगी , विजय होंगी क्योंकि उनके पक्ष में जनार्दन है , जनार्दन के पक्ष में पांडव है , पांडव के पक्ष में जनार्दन है , उनका मिलकर एक पक्ष है , कृष्ण पक्ष! कृष्ण पार्टी ! जो भी कृष्ण पार्टी को जॉइन करेगा *विजय स्थू पांडु पुत्राणाम* विजय निश्चित है। *जथो धर्म तथ विजय* यह भी वचन है , जो भी धार्मिक है , कृष्ण भावना में है उनकी भी विजय निश्चित है । हरि हरि। *तस्मान्नन्दात्मजोऽयं ते नारायणसमो गुणैः । श्रिया कीर्त्यानुभावेन गोपायस्व समाहितः ॥१ ९ ॥* *श्रीमद्भागवत10.8.19* *अनुवाद:- अतएव हे नन्द महाराज , निष्कर्ष यह है कि आपका यह पुत्र नारायण के सदृश है । यह अपने दिव्य गुण , ऐश्वर्य , नाम , यश तथा प्रभाव से नारायण के ही समान है । आप इस बालक का बड़े ध्यान से और सावधानी से पालन करें ।* यह जो बालक हैं , यह नारायण हैं ऐसे नही कह रहे हैं , सीधे नारायण है ऐसे नही कहा गया है । ऐसा कहते हो तो नंद महाराज का जो वात्सल्य भाव है उसमें कुछ बिगाड़ आजाता । नंद महाराज अपने आत्मज से अपने पुत्र को नारायण या भगवान नही मानते बल्कि यह मेरा पुत्र है , यह मेरा पुत्र है , उनका ईश्वर भाव नहीं है। भगवान या कन्हैया नंद नंदन हैं । यह भगवान है , यह महान है , यह सर्वशक्तिमान है यह बात गर्गाचार्य ने जानबूझकर नहीं कही है । ऐसा कहा की , नारायण सम गुण , नारायण जैसे गुणों से युक्त है । नारायण है ऐसे नहीं कह रहे हैं ,इसमें नारायण जैसे गुण है ऐसा कह रहे हैं । हरि हरि । प्रार्थना जारी रखिए। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।* प्रार्थना है , मदद की आवश्यकता है । सभी संसार को मदत की आवश्यकता है । और जो भगवान के भक्त हैं , कृष्ण के भक्त हैं पर दुख दुखी यह उनकी पहचान भी है । पर दुख दुखी , ओरों को दुखी देखकर स्वयं दुखी हो जाते हैं। हरि हरि । भगवान के भक्त परोपकार के लिए भी प्रसिद्ध होते हैं और भगवान मदत करेंगे । हम सभी के उद्धार, सुख, शांति, मांगल्य मंगलमय जीवन की प्रार्थना करेंगे , भगवान उसको सुनेंगे तब भगवान सहायता करना चाहेंगे । जो भगवान की चाह हैं , भगवान की सहायता हैं वह फिर भक्तो के माध्यम से भक्तों को निमित्त बनाकर निमित्त मात्रम या फिर जैसे कहा गया कि , हे अर्जुन तुम केवल निमित्त मात्र बनो ऐसे कहा और आगे कहते है कि , *करता करविता मैं ही हूं* मैं स्वयं ही युद्ध खेल सकता हूं। हरि हरि । और फिर विराट रूप में भगवान दिखा भी रहे थे की शत्रु सैनिक का विनाश हो रहा है। ऐसा भविष्य दिखा भी दिया और कहा कि निमित्य बनो , निमित्य बनो सिर्फ निमित्य बनो । भगवान जो सहायता करना चाहेंगे , पूरी मानव जाति की सहायता, सभी की सहायता सहायता वह भक्त के माध्यम से जो भी भगवान के एजेंट होंगे वितरक या डिस्ट्रीब्यूटर होंगे भगवान की ओर से उस सहायता को , उस मदद को ओरो तक पहुंचाने वाले है । कृष्ण की ओर से ऐसे मददगार आपको होना है , ऐसे वितरक आपको होना है और जो भी आपके पास है , जो कुछ भी हो जो आप कर सकते हो वह करो और यही प्रीति का लक्षण भी है। *श्लोक ४* *ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति । भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीति - लक्षणम् ॥ ४ ॥* *अनुवाद :- भाषांतर दान देणे , दान स्वीकारणे , विश्वासाने आपल्या मनातील गोष्ट प्रकट करणे , गुह्य विषयांसंबंधी विचारणा करणे , प्रसाद ग्रहण करणे आणि प्रसाद देणे ही एका भक्ताची दुसऱ्या भक्ताबरोबर असलेली प्रेमाची सहा लक्षणे आहेत .* कोई मदद देना , कोई मदद लेना यह जो आदान-प्रदान है यह प्रीति का , प्रेम का लक्षण है और याद रखना कि हमको केवल भगवान से ही प्रेम नहीं करना है , भगवान के भक्तों से भी प्रेम करना है । प्रेम केवल आई लव यू कह कर ही नहीं करना है कुछ प्रैक्टिकल करना है , कुछ सहायता करनी है , कुछ मदद करनी है । जो परिस्थिति निर्माण हुई है इसमें मदद की जरूरत है , यह आपातकालीन परिस्थिति है । जाग जाओ । अब हम जानते हैं कि लॉकडाउन भी है जहा जहां मदद चाहिए वहा आप दौड़ नहीं सकते लेकिन घर बैठे बैठे ही ऑनलाइन या एन केन प्रकारेण आप सभी ओरो को मदद कर सकते हो और यही आवश्यकता है। केवल स्वार्थी नहीं बनना है , हमको स्वार्थी बनना ही नहीं है । परमार्थ ओरो का सोचो , ओरो की मदद करना , ओरो की सहायता करना और उसके साथ उनके लिए प्रार्थना भी करना और केवल प्रार्थना ही नहीं जो भी आप कर सकते हो वह करो । आप सोचो , आप जहां हो वहां से या वैसे इस कॉन्फ्रेंस के अंत में भी आपको कई सारे रिपोर्ट दिए जा रहे हैं । कई सारे फोरम , मंच है उनके माध्यम से आपको पता चलता ही है। अपने अपने क्षेत्र के आप क्षेत्रज्ञ बनो , जानो, कीस प्रकार के सहायता की आवश्यकता है? देखो किसको भोजन चाहिए? किसको ऑक्सीजन चाहिए? किसको धनराशि की आवश्यकता है ? किस को और ऐसे किस की क्या आवश्यकता है , किसको ट्रांसपोर्टेशन की आवश्यकता है , औषधि या दवाई की आवश्यकता है यहां और कुछ कंसलटेंसी है । कीसकी आवश्यकता है या कुछ सहानुभूति की आवश्यकता है । सहानुभूति व्यक्त करने की आवश्यकता है । सतर्क रहिए , सावधान रहिए ओरो पर नजर रखिये , इस प्रकार का लेनदेन बोध यन्ता परस्पर भी हैं या को-ऑपरेशन हैं । ठीक है । *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* आप भी बता सकते हो कि कैसे आप सहायता कर रहे हो या आप क्या कर सकते हो । आपके कोई सुझाव हैं जैसे प्रसाद वितरण हैं , हमारे इस्कॉन एन.सी.आर में और कई सारे मंदिर हैं गुरुग्राम मंदिर और दिल्ली में द्वारका हैं बाहोत बड़ा क्षेत्र हैं , बोहोत बड़ी मात्रा में प्रसाद वितरण हो रहा हैं , होम डिलीवरी हो रही हैं । जो पूरे परिवार ही बीमार है तो कौन प्रसाद बनाएगा या फिर प्रेग्नेंट लेडीज है या वृद्ध है लोग भूखे मर रहे हैं तो वहां प्रसाद पोहोचाया जा रहा हैं। भक्तिवेदांत हॉस्पिटल के डॉक्टर दवाई पहुंचा रहे हैं । उनके रिसर्च चल रहे हैं , वह औषधि बना रहे है जो रामबाण उपाय हो , कई सारे प्रयास हो रहे हैं। आप क्या कर सकते हो सोचो और करो भी । ठीक है । आप सोचिए। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे*। *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे*।।

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