Hindi

अपने औज़ारों को तेज़ कीजिये यहाँ उत्सव को संपन्न करने के लिए अभी हम मीटिंग कर रहे हैं। प्रभुपाद घाट का उद्घाटन , पदयात्रा का उद्घाटन तथा ७० वीं व्यास पूजा का उत्सव। हम यहाँ पंढरपुर में एक नए गुरुकुल की स्थापना भी कर रहे हैं। चुँकि यह संख्या ७० हैं अतः यहाँ ७०० तथा ७००० की संख्या के विषय में चर्चा चल रही हैं। अतः मैं सोच रहा था कि व्यास पूजा के समय तक हमें इस कांफ्रेंस में जप करने वालों की संख्या को ७०० तक पहुँचाना हैं। ७००० भगवद गीता का वितरण होगा तथा ७००० प्लेट प्रसाद का वितरण होगा। यह हमारा लक्ष्य हैं। हमें ७०० प्रतियोगियों की संख्या के लक्ष्य तक भी पहुँचना हैं, क्योंकि अधिक प्रतियोगियों का अर्थ हैं अधिक संग। एक साथ जप करके हमें साधु संग प्राप्त होता हैं। मैं अभी भी यहाँ पंढरपुर में हूँ। मैंने कल कहा था कि धाम साधकों के लिए एक उच्च आसन के समान कार्य करता हैं। भगवान का स्मरण प्राकृतिक रूप से तथा स्वतः ही होता हैं। हरे कृष्ण का जप करने का अंतिम लक्ष्य हैं कृष्ण का स्मरण होना। आप भगवान के नाम , धाम , रूप , लीलाओं तथा कृष्ण के भक्तों के विषय में स्मरण कर सकते हैं , क्योंकि भक्तों के बिना कृष्ण लीला संपन्न नहीं हो सकती हैं। वे कृष्ण लीला में बड़े प्रतिभागी हैं। वे कृष्णभावनामृत के अंग हैं। विशेष रूप से आप नामाचार्य हरिदास ठाकुर तथा उनके जैसे भक्तों के विषय में स्मरण कर सकते हैं। तब निश्चय ही हम कृष्ण का स्मरण करेंगे। हम भगवान के सुन्दर विग्रह का स्मरण कर सकते हैं। सुन्दर ते ध्यान , ऊभे विटेवरी, कर कटावरी ठेऊनियाँ। तुलसी हार गळा , कासे पीताम्बर , आवड़े निरन्तर तेची रूप।। मकर कुण्डले , तळपती श्रवणी , कण्ठी कौष्तुभमणी विराजितः। तुका म्हणे माझे हेची सर्व सुख , पाहिन श्रीमुख आवडीने।। (तुकाराम महाराज द्वारा रचित भजन ) यहाँ पंढरपुर में भगवान का श्री विग्रह ईंट पर स्थापित हैं। तुका म्हणे माझे हेची सर्व सुख , पाहिन श्रीमुख आवडीने अनुवाद : मैं भगवान के उस सुन्दर रूप का ध्यान  करता हूँ जो ईंट पर खड़ा हैं तथा जिनके दोनों हाथ अपने कमर पर रखे हुए हैं। जिनके गले में तुलसी की माला हैं , तथा जिनके अंगों पर पीताम्बर पहना हुआ हैं , मैं भगवान के उस सुन्दर रूप से अटूट प्रेम करता हूँ। उनके कानों में मकराकृत दिव्य कुण्डल पहने हुए हैं तथा जिनके गले में बहुमूल्य तथा अद्भुत कौस्तुभ मणी शोभायमान हैं।  तुकाराम कहते हैं जब मैं उनके सुन्दर श्रीमुख का स्नेह तथा अनुराग के साथ ध्यान करता हूँ , तभी मुझे वास्तविक प्रसन्नता होती हैं। तुकाराम महाराज कहते हैं यह मेरा सर्वप्रिय कार्य हैं। मैं भगवान के दर्शन करना चाहता हूँ तथा स्मरण करना चाहता हूँ। उनके मुखारविंद के दर्शन करना चाहता हूँ, उनके उन हस्त कमलों के दर्शन करना चाहता हूँ जो कमर पर रखे हुए हैं , मैं उनके चरण कमलों के दर्शन कर उनका आस्वादन करना चाहता हूँ। पाहिन श्रीमुख आवडीने। अत्यंत प्रेम तथा स्नेह के साथ मैं भगवान के उस सुन्दर मुखारविंद का दर्शन करना चाहता हूँ। हमारी चर्चा का दूसरा भाग हैं , अपने उपकरणों की धार को तेज़ करना , जिसके बारे में हर कोई वर्णन करता हैं। यदि आप अपने कार्य को कुशलता पूर्वक करना चाहते हैं तो आपको अपने उपकरणों की धार को तेज़ करना होगा। किसी सेमिनार में उदाहरण के रूप में इसकी चर्चा की जाती हैं। दो व्यक्ति एक लम्बे और मजबूत लकड़ी के गट्ठे के दोनों ओर बैठे हुए थे। उनके हाथ में एक आरी थी जिसका एक एक सिरा उन दोनों ने पकड़ रखा था तथा वे उस लकड़ी के गट्ठे को काटने का प्रयास कर रहे हैं। परन्तु वह आरी बहुत भोथरी थी तथा उसकी धार तेज़ नहीं थी। वे इस एक गट्ठे को काटने में पूरा दिन लगा रहे थे। आसपास के व्यक्ति उन्हें सलाह दे रहे थे कि उन्हें यह कार्य बंद कर देना चाहिए , क्योंकि वे सुबह से एक लकड़ी के गट्ठे को ही काटने में लगे हुए थे, तथा उन्हें सलाह दे रहे थे कि उन्हें कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे उनका कार्य आसानी से हो जाए। परन्तु वे ऐसा कुछ नहीं कर रहे थे। अंततः ज्ञान प्रबल हुआ तथा उन्होंने अपने आरी की धार को तेज़ करना प्रारम्भ किया। धार तेज़ होने के पश्चात जब उन्होंने काटना प्रारम्भ किया तो कुछ ही समय में उन्होंने लकड़ी का एक और गट्ठर काट दिया। वह कार्य जिसे करने में पूरा दिन लग गया , अब उसे बिना किसी कठिनाई के अत्यंत आसानी से संपन्न कर दिया गया। अतः इसके मध्य ऐसा क्या हुआ ? उन्होंने अपने उपकरणों की धार को तेज़ किया। अतः हरे कृष्ण का जप करते समय हमें भी अपने उपकरणों  की धार को तेज़ करना चाहिए , जिससे हम ठीक प्रकार से तथा ध्यानपूर्वक जप कर सकें। जप करके हम क्या प्राप्त करना चाहते हैं ? अतः यदि आप अपने लक्ष्य " कृष्ण प्रेम " को प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको अपने उपकरणों की धार तेज़ करनी होगी। हम कई उपकरण काम में लेते हैं , जिनमे से बुद्धि भी एक उपकरण हैं। मुझे नहीं पता कि आप उसका उपयोग करते हैं अथवा नहीं परन्तु हमें हरे कृष्ण का जप करते समय बुद्धि का उपयोग अवश्य करना चाहिए। हमें उस उपकरण को बेहतर बनाना चाहिए तथा उसकी धार को तेज़ करना चाहिए। चूँकि हमारे पास इस कांफ्रेंस में समय का अभाव होता हैं अतः मैं आपसे अन्य उपकरणों के विषय में चर्चा नहीं कर सकूँगा।हम इस बुद्धि नामक उपकरण पर ही चर्चा करेंगे जो हमारे जप में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यदि हम अपने जप के परिणाम को शीघ्रताशीघ्र प्राप्त करना चाहते हैं तथा एक के बाद एक जन्म तक प्रतीक्षा नहीं करना चाहते हैं तो हमें अपने उपकरणों की धार को तेज़ करना चाहिए।  यदि हम जप करते समय अपने उपकरणों की धार को तेज़ नहीं करते हैं तो कौन जानता हैं कि उसके पश्चात भी हमें वह लक्ष्य प्राप्त होगा अथवा नहीं। भागवतम में भी वर्णन आता हैं : कृष्ण वर्णम त्विस्क्रिष्णम , संगो पांगाास्त्र पार्षदं। यज्ञेनः संकीर्तन प्रायेर, यजन्ति ही सु मेधसा।। कलियुग में बुद्धिमान व्यक्ति सामूहिक संकीर्तन द्वारा भगवान के उस अवतार की आराधना करते हैं , जो निरन्तर हरिनाम का कीर्तन करते हैं। यद्यपि उनका वर्ण श्याम नहीं हैं तथापि वे स्वयं कृष्ण हैं। वे अपने भक्तों , सेवकों , अस्त्र - शस्त्र तथा निजी पार्षदों द्वारा घिरे रहते हैं। (श्रीमद भागवतम ११.५.३२) बुद्धिमान व्यक्ति जप करते हैं। यहाँ एक शब्द का प्रयोग हुआ हैं " सुमेधसा " अर्थात तीव्र बुद्धि। इस तीव्र बुद्धि की सहायता से हम अपने मन का उपयोग कर ध्यानपूर्वक जप कर सकते हैं। कृष्ण कहते हैं : व्यवसायित्मिका बुद्धिर , एकेह कुरु नंदन। बहुशाखा हय अनन्तश्च , बुद्ध्यो व्यवसायिनम।। जो इस मार्ग पर चलते हैं वे प्रयोजन में दृढ रहते हैं तथा उनका लक्ष्य भी एक होता हैं।  हे कुरुनन्दन ! जो दृढ़प्रतिज्ञ नहीं हैं उनकी बुद्धि अनेक शाखाओं में विभक्त रहती हैं। (भगवद्गीता २.४१) कृष्ण कहते हैं व्यवसायित्मिका बुद्धिर अर्थात तीव्र बुद्धि , तत्पश्चात कहते हैं एकेह कुरुनन्दन , तब वह बुद्धिमान व्यक्ति केवल एक पर ही ध्यान केंद्रित करेगा तथा वह केंद्र हैं : भगवान श्री कृष्ण। हमें श्रवण पर ध्यान देना चाहिए। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। मन एक और उपकरण हैं।  हमें इस उपकरण को अपने वश में करना चाहिए। आप अपने अनियंत्रित मन को केवल बुद्धि की सहायता से ही वश में कर सकते हैं। इस पर और अधिक चिंतन कीजिये। मैं केवल आपको कुछ संकेत दे रहा हूँ। आपको इन विषयों पर और अधिक अध्ययन तथा चिंतन करना चाहिए। यह केवल आपके विचारों के लिए आहार हैं। किस प्रकार हम बुद्धि की सहायता कर सकते हैं ? किसीने कहा कि पुस्तकें पढ़ने से कोई बुद्धिमान हो सकता हैं। बुद्धि क्या हैं तथा इसके क्या कार्य हैं इस पर एक पूरा सेमिनार बन सकता हैं। बुद्धि एक तत्व हैं। मन भी उसी प्रकार का एक तत्व हैं तथा इसी प्रकार अन्य भी कोई तत्व हो सकते हैं। एकांत में हम इस पर और अधिक चिंतन कर सकते हैं। भुमिर आपो अनलो वायुः , खं मनो बुद्धिरेव च। अहँकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।। पृथ्वी , जल , अग्नि , वायु ,आकाश, मन , बुद्धि तथा अहंकार - ये आठ प्रकार से विभक्त मेरी भिन्ना प्रकृतियाँ हैं। (भगवद्गीता ७.४) भगवान ने आठ प्रकार की प्रकृतियों का वर्णन किया हैं। बुद्धि इन में से एक हैं जिससे हमारा सुक्ष्म शरीर बनता हैं। आज के सत्र को विराम देने से पहले मैं आप सभी को यहाँ आमंत्रित करता हूँ। यह मेरी इच्छा हैं कि आप में से प्रत्येक को यह निमंत्रण व्यक्तिगत रूप से मिले। हमारे साथ एकलव्य प्रभु हैं , जो स्वागत समिति के सदस्य हैं। वे आप सभी को आमंत्रित करना चाहते हैं। एकलव्य प्रभु : हरे कृष्ण ! मैं सर्वप्रथम गुरु महाराज तथा आप सभी के चरणों में प्रणाम करता हूँ।    मैं आप सभी को इस अद्वितीय आषाढ़ी एकादशी का निमंत्रण देना चाहता हूँ जिसका उत्सव ९ जुलाई से १५ जुलाई तक हैं। इसी उत्सव में प्रभुपाद घाट का उद्घाटन समारोह भी सम्मिलित हैं। यह चन्द्रभागा नदी के तट पर निर्मित एक अत्यंत मनोहर घाट हैं। पिछले दिन जब मैं गुरु महाराज तथा लगभग ५० अन्य भक्तों के साथ घाट पर गया तब मैंने देखा कि किस प्रकार गुरु महाराज उन सभी के साथ घाट के निर्माण कार्य का अत्यंत बारीकी से निरीक्षण कर रहे थे। उस समय मेरे मन में एक विचार आया , " यह घाट वास्तव में अत्यन्त विशाल हैं। " अतः इसके माध्यम से गुरु महाराज श्रील प्रभुपाद की महिमा को सम्पूर्ण महाराष्ट्र में वितरित कर रहे हैं। मैं इस घाट के विषय में मंदिर अध्यक्ष प्रह्लाद प्रभुजी से चर्चा कर रहा था। मैंने कहा ," प्रह्लाद ! यह घाट बड़ा हैं। " इसके प्रत्युत्तर में उन्होंने कहा , " बड़ा नहीं , यह विशाल हैं।" इस प्रकार का घाट न भूतो न भविष्यति के समान हैं। मैंने इस प्रकार का घाट न तो पहले कभी देखा हैं तथा हो सकता हैं भविष्य में भी नहीं देखने को मिले। अतः ७०वीं व्यास पूजा के दौरान हम इसका उद्घाटन करेंगे जिसमे कई भक्त तथा VIP अतिथि उपस्थित रहेंगे। हम इस बार लगभग ७००० भक्तों के आगमन का अनुमान लगा रहे हैं। इसके और भी कई पहलु हैं जिन पर चर्चा की जा सकती हैं परन्तु मेरा मानना हैं कि जीवन छोटा हैं तथा समय निरन्तर जा रहा हैं अतः हमें इसका समापन करना चाहिए। अतः हम आप सभी को इस कार्यक्रम में आने के लिए आमंत्रित करते हैं। कृपया आप यहाँ पधारिये तथा हमें आपकी सेवा का मौका दीजिये तथा यहाँ पंढरपुर में आपके संग का लाभ प्रदान कीजिये। इसमें सबसे महत्वपूर्ण हैं कि हमें गुरु महाराज का सानिध्य प्राप्त होगा। धन्यवाद। व्यासपूजा महामहोत्सव की जय ! श्रील प्रभुपाद की जय ! हरे कृष्ण !!

English

3rd April 2019 SHARPEN YOUR TOOLS! We had been having meeting here to plan out the Festival. Inauguration of Prabhupada ghat, Padayatraand 70 Vyasa Puja. We are also starting a new gurukul in Pandharpur. The point is 70 of this and 700 hundred of that and 7000 of that, like that talk is going on. So I was thinking till Vyasa Puja time we should have 700 participants on the conference. 7000 Bhagavada-Gitas will be distributed and 70000 plates of prasada will be distributed. That's the target. We should also aim for 700 participants. Because more participants means more association. We have sadhu sanga by chanting together. I am still here in Pandharpur. I said yesterday that dhama works as better asana for the chanter. Remembrance of the Lord becomes natural and easier. While chanting Hare Krishnawe have to end up remembering Krsna. You could remember name, form, pastimes, dhama and even devotees of Krsna because Krsna lila can't take place without the participation of devotees. They are a big part of Krsna lila. They are part of Krsna consciousness. Specially you could remember , Namacarya Haridas Thakura and devotees like him. Then certainly we will end up remembering Krsna. Remembrance of the beautiful form of the Lord. Sundar te dhyaan ubhe witewari Kar kataawari thhewoniya Tulasi haar gala, kaanse pitaanbar Awade nirntar techi rup Makarakundale talapati shrawani Knthhi kaustubhamani wiraajit Tuka mhane maajhe hechi sarw sukh Paahin shrimukh awadine( Bhajan by Tukaram Maharaja) Form of the Lord here in Pandharpur standing on the brick. Tuka mhane maajhe hechi sarw sukh Paahin shrimukh awadine TRANSLATION: Beautiful. He is the object of my meditation standing on a brick, hands placed on waist A garland of Tulasi leaves adorns His neck. Yellow silken cloth wrapped around His waist. I adore this image unceasingly. Crocodile shaped earrings shine brilliantly by His ears. A precious stone called Kaustubha regally adorns the necklace. Tuka says this is my only happiness I will visualize His lotus face with all affection or fondness Tukaram Maharaja says this is my favourite activity. I love to see the Lord, remember the Lord. See His Lotus Face, see His Hands kept on the waist and would also relish watching His Lotus Feet. Paahin shrimukh awadine. With great pleasure, and affection, I would like to relish the beauty of the Lotus face of the Lord. The other part of the talk was that everybody talks about sharpening the tools. If you want to get the job done efficiently then you have to sharpen the tool. To give an example in seminars they talk of this . Two persons are sitting on either side of the log or piece of wood. They have a saw, and they are holding it on either side of the log and trying to cut the log. But the saw is very blunt, not sharp. They may spend the whole day cutting that log. People are advising stop doing this,why are you taking so long to cut one log?Do something so that you could do the job faster. But they are not doing that. So finally wisdom prevailed and they accepted the advice, to sharpened their saw. Then they started cutting and then very fast in no time they could cut another piece of wood. Something which had taken whole day now they manage it in no time. So what had happened? They sharpened their tool. So while chanting Hare Krishna we should also sharpen our tool , for better results or more efficient chanting. What do we want to achieve by chanting? So if you want to get that Krsnaprema faster, then we have to sharpen the tool. We use many tools, out of that intelligence is one of the tools. I don't know whether you are using it, but we have to use our intelligence while chanting Hare Krishna. We have to develop, sharpen that tool. I am not going to talk about other tools as time doesn't permit us. We will focus on intelligence as tool which has big role to play, during our chanting. Our tool must be sharpened if we wish to get the results of chanting, faster, not after many, many lifetimes. Who knows even after that whether we will get it or not. If we don't sharpen our tools while chanting. Bhagavatam also says kṛṣṇa-varṇaṁ tviṣākṛṣṇaṁ sāṅgopāṅgāstra-pārṣadam yajñaiḥ saṅkīrtana-prāyair yajanti hi su-medhasaḥ “In the Age of Kali, intelligent persons perform congregational chanting to worship the incarnation of Godhead who constantly sings the name of Kṛṣṇa. Although His complexion is not blackish, He is Kṛṣṇa Himself. He is accompanied by His associates, servants, weapons and confidential companions.”(CC Ādi 3.52) Intelligent people will take up chanting. There also it is said that sumedhasa which means sharp intelligence. With the help of this sharp intelligence then we could focus the mind, attentively on chanting. Krsna says vyavasāyātmikā buddhir ekeha kuru-nandana bahu-śākhā hy anantāś ca buddhayo ’vyavasāyinām Those who are on this path are resolute in purpose, and their aim is one. O beloved child of the Kurus, the intelligence of those who are irresolute is many-branched.( BG. 2.41) Krishna said vyavasāyātmikā buddhir which means sharpen intelligence. Then ekeha kuru-nandana. Then the intelligent person will focus on one thing, that is Krsna. Focus on hearing HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE HARE Mind is another tool. We should control this tool favourably. You control your uncontrolled mind with the help of intelligence only. Think more on this. I am just giving you certain hints. Study about these matters or topics. This is just food for thought. How to help intelligence. Someone said that by reading books one could be ntelligent. There could be a whole seminar on what is intelligence, what is it's functions etc. Intelligence is one of the element. Mind is yet anotherand like that there could be another. In solitude we can concentrate better. bhūmir āpo ’nalo vāyuḥ khaṁ mano buddhir eva ca ahaṅkāra itīyaṁ me bhinnā prakṛtir aṣṭadhā Earth, water, fire, air, ether, mind, intelligence and false ego – all together these eight constitute My separated material energies.( BG. 7.4) Lord mentioned eight types of Prakritis . Buddhi is one of the element of that, with which our subtle body is made. Before we stop today, we will like to extend our invitation to all of you. It was my desire that each one of you should get a personal invitation. We have Ekalavya Prabhu here , who is the part of a team and reception committee. He will extend the invitation to all of you. Ekalavya Prabhu: Hare Krishna! I would like to offer my obeisance to Guru Maharaja and all of you. I would like to extend the invitation to this wonderful Asadhi Ekadasi Festival from July 9 to July 15. This Festival will feature is opening of Prabhupada ghat. This is the beautiful ghat on the banks of ChandrabhagaRiver. The other day when we all and GuruMaharaja arrived on the ghat,and I saw Guru Maharaja with around 50 devotees reviewing the construction of the ghat. One thought came to my mind is 'This ghat is really big. In Pandharpur there is nothing as big as this. This ghat is called 'Srila Prabhupada ghat’. So through this Guru Maharaja is spreading the glories of Prabhupada throughout Maharashtra. I was discussing the ghat with temple president Prahalad Prabhuji. I told him ‘ Prahalad this ghat is big!! He said, “It's not big. It’s huge, gigantic”. This ghat is 'na bhuto na bhavishyati’. Never before have I seen a ghat like this and may be will never see one like this. So on occasion of 70th Vyasa Puja we will have a grand opening of this with VIPs and devotees. We are expecting around 7000 devotees. There are many more aspects of this, but I feel life is short, and time is going onso we should conclude. So we offer our invitation to all of you. Please come and join us and give us opportunity to serve you and benefit by your association here in Pandharpur. The most important thing is we will all get association of Guru Maharaja. Thank you very much. Vyasa Puja maha mahotsav ki Jai! Srila Prabhupada ki Jai! Hare Krishna!!

Russian

Джапа сессия 03.04.2019 ЗАТОЧИТЕ СВОИ ИНСТРУМЕНТЫ! Мы собирались здесь, чтобы спланировать фестиваль. Торжественное открытие Прабхупада Гхата, Падаятры и 70 Вьяса Пуджи. Мы также открываем новую гурукулу в Пандхарпуре. Цель из  70 - 700 – 7000 - 70000 станет ясно по мере продолжения этой беседы. Я подумал, что до времени Вьяса-пуджи у нас будет 700 участников на конференции. Будет распространено 7000 Бхагавад-Гит и 70000 тарелок с прасадом. Это цель. Мы также должны стремиться к 700 участникам. Потому что больше участников означает больше общения. У нас есть садху-санга, когда мы воспеваем вместе. Я все еще здесь, в Пандхарпуре. Вчера я сказал, что Дхама это лучшая асана для воспевающего. Помнить о Господе, в Дхаме становится естественно и легко. Повторяя Харе Кришна, мы должны помнить Кришну. Вы можете вспомнить имя, форму, игры, дхаму и даже преданных Кришны, потому что Кришна-лила не может проходить без участия преданных. Они большая часть Кришны лилы. Они являются частью сознания Кришны. Особенно вы могли вспомнить, Намачарью Харидаса Тхакура и таких преданных, как он. Тогда мы непременно вспомним Кришну. Воспоминание о прекрасной форме Господа. Sundar te dhyaan ubhe witewari Kar kataawari thhewoniya Tulasi haar gala, kaanse pitaanbar Awade nirntar techi rup Makarakundale talapati shrawani Knthhi kaustubhamani wiraajit Божество Господа здесь, в Пандхарпуре, стоит на камне. Tuka mhane maajhe hechi sarw sukh Paahin shrimukh awadine (бхаджан Тукарам Махараджа) ПЕРЕВОД: Прекрасный. Он - объект моей медитации, стоящий на камне, руки на талии Гирлянда из листьев Туласи украшает Его шею. Желтая шелковая ткань обернута вокруг Его талии. Я неустанно могу созерцать эту форму. Серьги в форме крокодила ярко сияют в Его ушах. Драгоценный камень Каустубха царственно украшает ожерелье. Тука говорит, что это мое единственное счастье. Я буду представлять Его лотосное лицо со всей любовью и нежностью. Тукарам Махарадж говорит, это мое любимое занятие. Я люблю смотреть на Господа, помнить Господа. Видеть Его Лотосное Лицо, видеть, как Его Руки лежат на талии, а также с наслаждением смотрю на Его Лотосные Стопы Паахин Шримух Авадин. С большим удовольствием и любовью я бы хотел наслаждаться красотой Лотосного Лица Господа. Другая часть разговора была о том, что все говорят о затачивании инструментов. Если вы хотите, чтобы работа была выполнена эффективно, вам нужно заточить инструмент. Приведу пример, как об этом говорится на семинарах.  Два человека сидят по обе стороны от бревна или куска дерева. У них есть пила, и они держат ее по обе стороны от бревна и пытаются распилить бревно. Но пила очень тупая, не наточенная. Они могут потратить целый день на распиливание этого бревна. Люди советуют прекратить делать это:«почему вы так долго пилите одно бревно, сделайте что-то, чтобы вы могли сделать работу быстрее». Но они не делают этого. В итоге разум победил, они приняли совет, и заточили свою пилу. Затем они начали пилить, и  очень быстро, за короткий срок, они смогли отпилить еще один кусок дерева. То, на что они потратили целый день, сейчас они сделали за одно мгновение. Так что же произошло? Они наточили свой инструмент. Поэтому, повторяя Харе Кришна, мы также должны оттачивать свой инструмент для достижения лучшего результата или более эффективного воспевания. Чего мы хотим достичь, воспевая? Если вы хотите получить Кришна прему быстрее, тогда вы должны оттачивать инструмент. Мы используем много инструментов, из которых один из инструментов - это разум. Я не знаю, используете ли вы его, но мы должны использовать наш разум, повторяя Харе Кришна. Мы должны развить, отточить этот инструмент. Я не буду говорить о других инструментах, поскольку время нам не позволяет. Мы сосредоточимся на разуме как инструменте, который играет большую роль во время нашего воспевания. Наш инструмент должен быть отточен, если мы хотим получить результат повторения быстрее, не после многих, многих,  многих жизней. Кто знает даже после этого, получим ли мы его или нет. Если мы не точим наши инструменты во время воспевания. Бхагаватам также говорит кршна-варнам твишакршнам сангопангастра-паршадам йаджнаих санкӣртана-прайаир йаджанти хи сумедхасах «В век Кали разумные люди, собираясь вместе, славят Господа и поклоняются Его воплощению, непрестанно поющему имя Кришны. Хотя цвет Его тела не темный, это Сам Кришна. С Ним всегда Его личные спутники, слуги, оружие и приближенные». (чч Āди 3.52) Разумные люди займутся воспеванием. Там также сказано, что сумедхаса означает острый разум. С помощью этого острого разума мы могли бы сфокусировать разум, сосредоточиться на воспевании. Кришна говорит вйавасайатмика буддхир экеха куру-нандана баху-шакха хй ананташ ча буддхайо ’вйавасайинам Идущие этим путем решительны и целеустремленны, и у них одна цель. О потомок Куру, многоветвист разум тех, кто нерешителен.(БГ 2.41). Кришна сказал вйавасайатмика буддхир, что означает заточи разум. Тогда экеха куру-нандана. Тогда разумный человек сосредоточится на одной цели - на Кришне. Сосредоточится на слушании Харе Кришна Харе Кришна Кришна Кришна Харе Харе Харе Рама Харе Рама Рама Рама Харе Харе Ум - это еще один инструмент. Мы должны контролировать этот инструмент, сделать его благосклонным. Вы управляете своим неконтролируемым умом только с помощью разума. Подумай больше об этом. Я просто даю вам некоторые советы. Изучите эти вопросы или темы. Это просто пища для размышлений. Как наточить разум. Кто-то сказал, что, читая книги, можно наточить разум. Можно провести целый семинар о том, что такое разум, каковы его функции и т. д. Разум является одним из элементов. Ум еще один. В одиночестве мы можем сосредоточиться лучше. бхӯмир апо ’нало вайух кхам мано буддхир эва ча аханкара итӣйам ме бхинна пракртир аштадха Земля, вода, огонь, воздух, эфир, ум, разум и ложное эго — эти восемь элементов составляют Мою отделенную материальную энергию. (БГ 7.4). Господь упомянул восемь видов пракрити. Буддхи является одним из элементов того, из чего состоит наше тонкое тело. Прежде чем мы остановимся сегодня, мы хотели бы передать наше приглашение всем вам. Я хотел, чтобы каждый из вас получил личное приглашение. У нас есть Экалавья Прабху, который является частью команды и комитета по встрече гостей. Он передаст приглашение всем вам. Экалавья Прабху: Харе Кришна! Я предлагаю почтительные поклоны Гуру Махараджу и всем вам. Я хотел бы передать приглашение на этот замечательный фестиваль Ашадхи экадаши с 9 по 15 июля. На этом фестивале состоится открытие Прабхупада гхата. Это прекрасный гхат на берегах реки Чандрабхага. На днях, когда мы все и Гуру Махарадж прибыли на Гхат, и я увидел Гуру Махараджа с примерно 50 преданными, которые рассматривали строительство Гхата. Одна мысль пришла мне в голову: «Этот гхат действительно большой. В Пандхарпуре нет ничего большего, чем это. Этот гхат называется «Шрила Прабхупада гхат». Таким образом, благодаря этому Гуру Махарадж распространяет славу Прабхупады по всему  штату Махараштра. Я обсуждал Гат с президентом храма Прахаладом Прабхуджи. Я сказал ему: «Прахалад, этот гхат большой!» он сказал: «Он не большой.  Он огромный, гигантский». Это гхат "на бхуто на бхавишйати". Никогда раньше я не видел подобного гхата, и, возможно мы больше никогда не увидим такого. Поэтому по случаю 70-й Вьяса-пуджи у нас будет торжественное открытие с участием VIP- персон и преданных. Мы ожидаем около 7000 преданных. Есть много других аспектов, но я чувствую, что жизнь коротка,  время идет, мы должны принять решение. Мы передаем наше приглашение всем вам. Пожалуйста, приезжайте и присоединяйтесь к нам, дайте нам возможность служить вам и получать пользу от вашего общения здесь, в Пандхарпуре. Самое главное, мы все получим общение Гуру Махараджа. Большое спасибо. Вьяса пуджа маха махотсав ки джай! Шрила Прабхупада Ки Джай! Харе Кришна!!