Hindi

जप करते समय भगवान के साथ आदान प्रदान कीजिये मैं अभी पंढरपुर में हूँ। आज पापमोचनी एकादशी हैं अतः निरंतर जप तथा श्रवण करते रहिये। एक भक्त पूछ रहा था , "क्या हम हरिनाम पर ध्यान केंद्रित करें अथवा और कुछ सेवा करें। हरिनाम पर ध्यान किस प्रकार केंद्रित किया जाता हैं ?"  हमें जप करना चाहिए : हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। इस हरिनाम के माध्यम से हम भगवान का सम्बोधन करते हैं। जब हम कृष्ण कहते हैं तो हम हरिनाम का सम्बोधन करते हैं। कल मैं चैतन्य चरितामृत में कृष्ण दास कविराज गोस्वामी द्वारा वर्णित आध्यात्मिक सेवाओं के विषय में पढ़ रहा था। उनमे से एक विशेष बात जिसपर मेरा ध्यान आकृष्ट हुआ वह हैं : हमें भगवान के विग्रह तथा भगवान के समक्ष अपने ह्रदय को खोलना चाहिए। जैसा कि  हम कहते हैं : ददाति प्रतिगृह्णाति , गुह्यं अख्याति प्रछति। भुंक्ते भोजयते चैव षड विधिम प्रीति लक्षणं।। उपहार देना ,उपहार स्वीकार करना ,अपने मन की बात कहना , दूसरे के मन की बात सुनना ,प्रसाद ग्रहण करना तथा प्रसाद वितरण करना , ये प्रेम के छः लक्षण हैं , जिन्हे भक्त आपस में एक दूसरे के साथ करते हैं।    (उपदेशामृत श्लोक ४) भगवान को अपना सुख - दुःख बताइये। रूप गोस्वामी ने इसका वर्णन किया हैं तथा कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने पुनः इसको बताया हैं। वे बताते हैं कि हमें भगवान के श्री विग्रह के समक्ष अपने ह्रदय को खोलना चाहिए परन्तु श्री विग्रह तथा हरिनाम में कोई भेद नहीं हैं। रूप तथा नाम अभिन्न हैं। इसलिए श्री विग्रह के समक्ष अपने ह्रदय की बात कहना अथवा हरिनाम के समक्ष कहना दोनों एक समान हैं। जब जब हम हरे , कृष्ण कहते हैं ये सभी सम्बोधन हैं , जिसके माध्यम से हम भगवान का आव्हान करते हैं। ओह राधे ! ओह कृष्ण ! इस प्रकार हम १६ बार भगवान का सम्बोधन करते हैं। जब हम ओह राधे ! ओह कृष्ण ! कहकर उनका सम्बोधन करते हैं तो राधा कृष्ण हमारे समक्ष प्रकट होते हैं। नाहं वसामी वैकुण्ठे , योगिनां हृदयं न च। मद भक्त यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारदः।। न तो मैं वैकुण्ठ में रहता हूँ और न ही योगियों के ह्रदय में। हे नारद ! जहां मेरे भक्त मेरे नामों तथा गुणों का गान करते हैं मैं वहीँ रहता हूँ। जहाँ मेरे भक्त जप तथा कीर्तन करते हैं , मैं वहीँ रहता हूँ।  वही मैं स्वयं को प्रकट करता हूँ। यह भगवान का वचन हैं। अतः भगवान वहां प्रकट हो गए हैं , वे अभी आपके समक्ष ही हैं। तत्पश्चात भगवान कहते हैं , " ओह ! तुम्हे  क्या चाहिए ? तुमने मुझे यहाँ क्यों बुलाया ? तुम्हारे मन में क्या हैं ? कृपया अपने हृदय की बात मुझे बताओ। " वे ऐसा भी कह सकते हैं , " क्या मैं आपकी कुछ सहायता कर सकता हूँ ?" तब आप अपने ह्रदय की बात उनके समक्ष प्रकट कर सकते हैं। मंच तैयार हो चूका हैं , आप भी वहीँ उपस्थित हैं तथा भगवान भी वहीं उपस्थित हैं। यह आपके तथा हरिनाम के रूप में भगवान के मध्य योग , आपस में आदान प्रदान तथा विनिमय करने का समय हैं। अतः किस प्रकार हम अपने ह्रदय को भगवान के समक्ष प्रकट कर सकते हैं ? इसके विषय में हमारे आचार्यों ने निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने हरिनाम पर टिकायें भी दी हैं। भवबन्धनात मोचे। जब हम प्रथम बार हरे कहकर सम्बोधन करते हैं , तब श्रीमती राधारानी कहती हैं , " आपको क्या चाहिए ?" तब आप अपना मन तथा ह्रदय श्रीमति राधारानी के समक्ष प्रकट करते हैं। कृपया हमें इस भौतिक जगत के कष्टों से मुक्त कीजिये। तत्पश्चात हम कहते हैं : कृष्ण। गोपाल गुरु स्वामी कहते हैं : " स्वमाधुर्येन मत्तचित्तं आकर्षयः "हे भगवान ! आप अत्यंत मधुर हैं। आप अत्यंत आकर्षक हैं , कृपया मेरे मन को अपनी ओर आकर्षित कीजिये। इस प्रकार हम १६ बार इन्हे इस प्रकार से समझते हैं। इन सभी सोलह नामों में से प्रत्येक नाम पर अलग अलग टिका हैं। जब हम १ महामन्त्र बोलते हैं तो हम १६ बार राधा कृष्ण को सम्बोधित करते हैं : " सेवयोग्यं कुरुः " हम कहते हैं , " हे प्रभु ! कृपया मुझे आपकी सेवा के योग्य बनाइये। " श्रील प्रभुपाद सदैव हरिनाम पर टीका के इस वाक्य को दोहराते थे , " मैं आपका हूँ , कृपया मुझे अपनी सेवा में संलग्न कीजिये। " सेवा अधिकार दियो कर निज दासी , तुलसी महारानी को हम इस प्रकार प्रार्थना करते हैं। हम अपने आध्यात्मिक गुरु से भी प्रार्थना करते हैं कि हमें उनकी सेवा मिले। अथवा हम मंदिर अध्यक्ष से प्रार्थना करते हैं ," कृपया मुझे आपकी सेवा में संलग्न कीजिये। " तुलसी महारानी कृष्ण का प्रतिनिधित्व करती हैं , आध्यात्मिक गुरु भी कृष्ण का प्रतिधिनित्व करते हैं , इसी प्रकार हमारे जीबीसी , मंदिर अध्यक्ष , मैनेजर आदि हमारी परम्परा का प्रतिनिधिनित्व करते हैं। प्रभुपाद ने विशेष रूप से जीबीसी के विषय में कहा कि उनकी स्थिति आचार्य के समान हैं। इसलिए हम उनसे प्रार्थना कर सकते हैं जिससे वे हमें कुछ सेवा दे सकें। ललिता विशाखा आदि जत सखी वृन्द आज्ञाय क़रीबो सेवा चरणारविन्द। जब अन्य गोपियाँ तथा मंजरियाँ भगवान कृष्ण की सेवा करना चाहती हैं तो वे सीधा राधा - कृष्ण के पास नहीं जाती हैं , उन्हें ललिता विशाखा तथा इस प्रकार पुरे अनुक्रम के माध्यम से जाना होता हैं। वहां गोपियों की अध्यक्षा युवतेश्वरी नियुक्त रहती हैं। गोपियों के दल को युवतेश्वरी कहा जाता हैं। इसलिए हमें उनके माध्यम से जाना होता हैं। हमारी प्रार्थना इस प्रकार होनी चाहिए , " हे भगवान ! कृपया मुझे आपकी सेवा में संलग्न कीजिये। " यह उचित प्रकार हैं जिसके माध्यम से हम भगवान के समक्ष अपने मन तथा ह्रदय को प्रकट करते हैं तथा प्रार्थना करते हैं ," कृपया मुझे अपनी सेवा में संलग्न कीजिये। " यह एक माध्यम हुआ। प्रभुपाद अपनी टीका में एक स्थान पर लिखते हैं , " सेवा योग्यं कुरुः " हे राधे , हे कृष्ण कृपया मुझे आपकी सेवा के योग्य बनाइये। इस प्रकार सभी सोलह नामों पर जीव गोस्वामी तथा अन्य आचार्यों की टिकाएं हैं। 'हरे कृष्ण ' का जप करते हुए किस प्रकार हमारे मन तथा ह्रदय को भगवान के समक्ष प्रकट किया जा सकता हैं। राधा तथा कृष्ण को, जो हरिनाम के रूप में आपके सम्मुख प्रकट हैं , क्या तथा किस प्रकार कहा जा सकता हैं ? इसप्रकार ये प्रार्थनाएं हैं जप , श्रवण तथा स्मरण तत्पश्चात समाधी , ये सभी ' अभ्यास ' हैं। आज भी हम यहाँ दीक्षा समारोह का आयोजन करेंगे। हम दीक्षा का प्रथम भाग अभी संपन्न कर रहे हैं। अभी हमने जो कहा वह दीक्षा समारोह के प्रवचन का अंग था। अब दीक्षार्थियों को माला तथा उनके आध्यात्मिक नाम प्रदान किये जाएंगे। हमारे साथ इटली से नंदलाल की धर्मपत्नी साधना हैं , जो दीक्षा लेना चाहती हैं। नन्दलाल हमारे प्रारम्भिक शिष्यों में से एक हैं , जिन्होंने लगभग २५ वर्ष पहले दीक्षा  ली थी। १९७१ में श्रील प्रभुपाद ने क्रॉस मैदान में एक विवाह समारोह का आयोजन किया था। इसमें दूल्हे थे मेरे गुरुभाई वेगवान जो स्वीडन से थे तथा दुल्हन ऑस्ट्रेलिया से थी एवं प्रभुपाद उनका विवाह भारत में संपन्न करवा रहे थे। यह दीक्षा तथा विवाह समारोह का एक साथ आयोजन था। प्रभुपाद ने कहा , यह आध्यात्मिक जगत का संयुक्त राष्ट्र हैं। (गुरु महाराज ने मॉरिशियस से एक माताजी को दीक्षा दी तथा उनके साथ थोड़ी बातचीत की ) पंढरपुर में एकादशी के पावन दिन चन्द्रभागा नदी के तट पर , राधा पंढरीनाथ मंदिर में ब्रह्म मुहूर्त के समय हमारी जोन के वरिष्ठ वैष्णवों से  घिरे हुए तथा सम्पूर्ण विश्व से ४७० भक्तों के मध्य आप दीक्षा ग्रहण कर रहे हैं। वे सभी भी इस कांफ्रेंस के माध्यम से इस दीक्षा समारोह को देख रहे हैं। क्या आपके परिवार के सदस्य भी इसे देख रहे हैं ? मॉरिशियस से लगभग ४० - ५० सदस्य इसे देख रहे हैं। आपका नाम हैं , " शारदीय रास देवी दासी " जप करते समय आप अपने नाम पर चिन्तन कर सकती हैं। कुछ समय पश्चात यज्ञ होगा , कुछ भक्त आज ब्राह्मण दीक्षा भी ग्रहण कर रहे हैं। हम इसे यहीं विराम देंगे। हरे कृष्ण !

English

2nd April 2019 LOCAL CALL! Hare Krishna to you all , who all are sitting here, as well as all those who are on conference there. We had 446 participants today. Pandharpur Dhama ki jay! I am doing my chanting in Pandharpur. I am also happy to chant with all the devotees and leaders from the IMPM zone and presidents of many temples who have assembled here. Their presence have also made me happy. One of the five principles of Devotional service is Dhamavas. When we chant our japa HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE HARE Then that Dhama becomes part of your asana. Out of time ,place , circumstances these are all part of asana, which we have been talking from time to time. Yam Niyam asana pranayam these are part of Japa-yoga process. Chanting 'Hare Krishna’ in Dhama , which has been described by one of the devotee, I heard it somewhere. When we chant in Dhama it is like ‘making a local call’. Local calls are more cheaper and more clear then other long distance call. You can talk clearly and there will be clearer response from the party to whom you are calling. It is easier. When you are chanting Hare Krishna you are calling the Lord. Of course, You are remembering the Lord. śrī-prahrāda uvāca śravaṇaṁ kīrtanaṁ viṣṇoḥ smaraṇaṁ pāda-sevanam arcanaṁ vandanaṁ dāsyaṁ sakhyam ātma-nivedanam iti puṁsārpitā viṣṇau bhaktiś cen nava-lakṣaṇā kriyeta bhagavaty addhā tan manye ’dhītam uttamam Prahlāda Mahārāja said: Hearing and chanting about the transcendental holy name, form, qualities, paraphernalia and pastimes of Lord Viṣṇu, remembering them, serving the lotus feet of the Lord, offering the Lord respectful worship with sixteen types of paraphernalia, offering prayers to the Lord, becoming His servant, considering the Lord one’s best friend, and surrendering everything unto Him (in other words, serving Him with the body, mind and words) — these nine processes are accepted as pure devotional service. One who has dedicated his life to the service of Kṛṣṇa through these nine methods should be understood to be the most learned person, for he has acquired complete knowledge.( SB.7.5.23- 24) You could remember Lord in that Dhama. You could remember pastimes in that Dhama. May be a place where you are sitting could be a pastime place. You know who all are there in the pastimes. Lord is standing on the brick, with His hands on His waist, waiting for Pundalik to finish his business, so that he can meet Him. By doing sravan kirtana we go nearer to our goal, that is smartavyaḥ satataṁ viṣṇur vismartavyo na jātucit sarve vidhi-niṣedhāḥ syur etayor eva kiṅkarāḥ " 'Kṛṣṇa is the origin of Lord Viṣṇu. He should always be remembered and never forgotten at any time. All the rules and prohibitions mentioned in the śāstras should be the servants of these two principles.’(CC Madhya Llia, 22.113) Remember like the gopis never forget Krsna. By doing this type of remembering of the Lord , while chanting, you could more easily remember the Lord, the form the Deities, which are there in Dha-ma and pastimes in that Dhama like that. This is how coming to the Dhama and chanting there be-comes a local call, much easier because you have nice asana and are properly situated. This morning while doing japa I was thinking , what to speak in the japa-talk. I was thinking,I will say, chanting in dhama is like a local call and in the dhama , remembrance of Lord is easy. I was thinking Lord is just across the river and He is standing and it's morning hours, It's Lord's Abhishek time. I was thinking how it's easier to remember and as I was thinking, that I would share all these things with you at that moment Abhiram Thakur Prabhuji came running along with Govinda Prabhuji and said, Guru Maharaja here is caranamrta for you. We were there for mangala-aarti and ab-hiseka of Lord Vitthal. We have brought caranamrta and Tulasi garland of Lord for you. Then I was thinking, my local call was heard by the Lord. Lord heard my call. He made the communication, and here was his response, “ I am sending these items to you.” So it is just further confirmation that by coming to dhama and chanting in the dhama is another different experience. Everything is favourable for your chanting and it goes smooth. Hence we should take advantage of these dhamas. Come to Dhama. Wherever you are chanting, the dhama is also waiting for you. You can come in July for Vyasa Puja and opening of Prabhupada ghat. All the leaders sitting around here , preachers from my management zone are here to organize that Festival for you in the month of July. You could come and experience yourself. We have 70 managers or preachers yesterday, and we will try to make 700 chanters on the confe-rence in relation to 70th Vyasa pua. This fragrance of the Tulasi garland is amazing. Fragrance of Tulasi is very strong, out of this world. This fragrance is Krsna. When we smell it, it's original fra-grance comes from the earth, then that is Krsna right? He has declared that in Bhagavata-Gita. puṇyo gandhaḥ pṛthivyāṁ ca tejaś cāsmi vibhāvasau jīvanaṁ sarva-bhūteṣu tapaś cāsmi tapasviṣu I am the original fragrance of the earth, and I am the heat in fire. I am the life of all that lives, and I am the penances of all ascetics. (BG. 7.9) … the fragrance in the earth is Me! When the fragrance of the earth reaches the flowers like in this Tulasi garland, there are many flowers and some leaves also. So this fragrance is the Lord himself. This is the Lord. Specially when that gandha, fragrance, those leaves and manjaris are offered to the Lord, then what to say about it's glories. That fragrance is spiritualized. This is experiencing the Lord, realising the Lord. We are experiencing that. Once in Juhu during a lecture, Prabhupada was saying that the taste in water is Krsna. raso ’ham apsu kaunteya prabhāsmi śaśi-sūryayoḥ praṇavaḥ sarva-vedeṣu śabdaḥ khe pauruṣaṁ nṛṣu O son of Kuntī, I am the taste of water, the light of the sun and the moon, the syllable oṁ in the Vedic mantras; I am the sound in ether and ability in man. ( BG. 7.8) Lord was talking raso ’ham apsu kaunteya taste in water is aham. Prabhupada was explaining that the taste in water, characteristic of the water ,'rasa’ is Lord. There was a glass of water lying there. Prabhupada took that glass and he drank that water. He said , ‘Whenever you drink water remem-ber that this taste is Krsna! This is what we have to do. This is Krishna consciousness. This will make you Krishna conscious.” Fragrance is speciality or characteristics of the earth. So whenever we smell the fragrance of the earth through the medium of leaves, flowers or some herbs also , if that time we could remember, this fragrance is Krsna, you will become Krishna conscious. We were blessed this morning, that Lord came Himself to us in form of fragrance in Tulasi and ca-ranamrta. Panduranga! Panduranga!! So now everyone will get caranamrta , not all those on con-ference. That's the only thing you cannot do. Otherwise everything else is possible. This went around, Panduranga appeared and while you were calling, doing a local call. He came, “ What do you want?” HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE HARE Okay we will stop here. Hare Krishna!!

Russian

Джапа сессия 02.04.2019 МЕСТНЫЙ ЗВОНОК! Харе Кришна всем, кто здесь сидит, а также всем, кто находится на конференции. У нас было 446 участников сегодня. Пандхарпур Дхама Ки Джай! Я воспеваю в Пандхарпуре. Я также рад воспевать со всеми преданными и лидерами из зоны IMPM ( ISKCON Maharashtra Preaching Ministry- Министерство проповеди Махараштра, Махараштра - это зона Гурудева в Индии, поэтому Гурудев создал такую группу, чтобы лидеры в этой зоне могли легко общаться с ними) и президентами многих храмов, которые собрались здесь. Их присутствие также сделало меня счастливым. Один из пяти принципов преданного служения - это дхамаваc. Когда мы повторяем джапу Харе Кришна Харе Кришна Кришна Кришна Харе Харе Харе Рама Харе Рама Рама Рама Харе Харе эта Дхама станет частью вашей асаны. Вне времени, места, обстоятельств - все это является частью асаны, о которой мы говорим время от времени. Йама нияма асана пранаям это часть процесса джапа-йоги.  Поэтому воспевайте «Харе Кришна» в Дхаме. Как говорил кто-то из преданных, я где-то слышал это  - когда мы воспеваем в Дхаме, это похоже на «местный звонок». Местные звонки более дешевые и более понятные, чем междугородние звонки. Вы можете говорить четко, и от стороны, которой вы звоните, будет более четкий ответ.Так легче. Когда вы повторяете Харе Кришна, вы зовете Господа. Конечно, вы помните Господа. шри-прахлада увача шраванам киртанам вишнох смаранам пада-севанам арчанам ванданам дасйам сакхйам атма-ниведанам ити пумсарпита вишнау бхактиш чен нава-лакшана крийета бхагаватй аддха тан манйе ’дхӣтам уттамам Махараджа Прахлада сказал: Слушать трансцендентное святое имя Господа Вишну и описания Его облика, качеств, окружения и деяний, рассказывать и помнить о них, служить лотосным стопам Господа, поклоняться Ему, используя атрибуты шестнадцати видов, возносить Господу молитвы, быть Его слугой, считать Его своим лучшим другом и всего себя отдавать Господу (то есть служить Ему телом, умом и речью) — таковы девять методов чистого преданного служения. Тот, кто служит Кришне, применяя эти методы, и посвящает служению всю свою жизнь, — самый образованный человек, ибо он обрел полное знание. (ШБ 7.5.23-24) Вы можете помнить Господа в этой Дхаме. Вы можете помнить игры Господа в этой дхаме. Может быть место, где вы сидите, было местом лил Господа. Вы знаете всех кто был в играх Господа? Господь стоит на камне, положив руки на талию, ожидая, когда Пундалик завершит свои дела, чтобы встретиться с ним. Выполняя шраван киртан, мы приближаемся к нашей цели, то есть смартавйах сататам вишнур висмартавйо на джатучит сарве видхи-нишедхах сйур этайор эва кинкарах „Кришна — источник Господа Вишну. Надо всегда помнить о Нем и не забывать Его ни при каких обстоятельствах. Все предписания и запреты, упомянутые в шастрах, должны служить этим двум принципам“. (ЧЧ Мадхья Лила, 22.113) Помните, как гопи никогда не забывают Кришну. Смаранам. Когда вы повторяете Харе Кришна вам легче помнить о Господе, помнить о Божествах, которые есть в Дхаме и об лилах которые происходили в этой Дхаме. Приходить в Дхаму и воспевать там – это как будто приходит местный звонок. Так гораздо легче, потому что у вас хорошая асана и вы правильно располагаетесь. Этим утром во время джапы я думал, что говорить в Беседе о джапе. Я думал, скажу, воспевание в дхаме - это как местный звонок. В дхаме легче помнить о Господе. Особенно в Пандхарпуре.  Я думал, что Господь недалеко, за рекой, Он стоит на алтаре, и сейчас утро - время  Абхишеки Господа. Я думал о том, что так легче помнить о Господе, и когда я думал, что поделюсь с вами всеми этими вещами, в тот момент прибежал Абхирам Тхакур Прабхуджи вместе с Говиндой Прабхуджи и сказал: «Гуру Махараджа здесь - чаринамрита для вас». Мы были там на Мангала- арати и абхишеке  Господа Виттала. Мы принесли вам чаринамриту и  гирлянду из туласи от Господа. Тогда я подумал, Господь услышал мой местный звонок. Господь услышал мой звонок. Он отправил сообщение, и вот его ответ: «Я посылаю эти предметы для вас».  Это еще одно подтверждение того, что нахождение в дхаме и воспевание в дхаме - это другой необычный опыт. В Дхаме все благоприятно для вашего воспевания, здесь нет препятствий. Следовательно, мы должны воспользоваться преимуществами  Дхамы. Приезжайте в Дхаму! Где бы вы ни воспевали, дхама всегда ждет вас! В июле вы можете приехать на Вьяса-пуджу и открыть Прабхупада-гхат. Все лидеры, сидящие здесь, проповедники из моей административной зоны, находятся здесь, чтобы организовать этот фестиваль для вас в июле месяце. Вы могли бы приехать и почувствовать сами. Вчера у нас было 70 руководителей или проповедников, и мы постараемся собрать 700 участников на конференции, посвященной 70-й Вьяса-пудже. Этот аромат гирлянды из туласи удивителен. Аромат Туласи очень сильный он не из этого мира. Этот аромат - это Кришна. Когда мы чувствуем этот запах, это изначальный аромат который исходит от земли, получается что это Кришна!, правильно? Он говорил об этом в Бхагавата-гите. пунйо гандхах пртхивйам ча теджаш часми вибхавасау джӣванам сарва-бхӯтешу тапаш часми тапасвишу Я изначальный аромат земли, и Я жар огня. Я жизнь всего живого и аскетизм всех аскетов. (БГ 7.9) ... аромат земли - это Я! Когда аромат земли передается цветам, как в этой гирлянде из Туласи, здесь много цветов и листьев. Этот аромат и есть сам Господь. Это Господь. Особенно когда эта гандхах- аромат, эти листья и манджари предлагаются Господу, как можно описать это великолепие. Этот аромат одухотворен. Это ощущение Господа, осознание Господа. Мы чувствуем это. Однажды в Джуху во время лекции Прабхупада сказал, что вкус воды - это Кришна. расо ’хам апсу каунтейа прабхасми шаши-сӯрйайох пранавах сарва-ведешу шабдах кхе паурушам нршу О сын Кунти, Я вкус воды, свет солнца и луны, и Я слог ом в ведических мантрах. Я звук в эфире и талант в человеке. (БГ 7.8) Господь говорил: «’хам апсу каунтейа»: вкус воды - это ахам. Прабхупада объяснял, что вкус воды, характерный для воды, «раса» - это Господь. Там стоял стакан воды. Прабхупада взял этот стакан, и выпил эту воду. Он сказал: «Каждый раз, когда вы пьете воду, помните, что этот вкус это Кришна! Это то, что мы должны делать. Это сознание Кришны. Это сделает вас сознающим Кришну». Аромат - это особенность или свойство земли. Поэтому всякий раз, когда мы чувствуем запах земли через листья, цветы или травы, в этот момень мы можем вспомнить, этот аромат – Кришна. Тогда вы станете сознающим Кришну. Сегодня утром мы были благословлены тем, что Господь явился к нам в форме аромата Туласи и в чаринамрите. Пандуранга! Пандуранга !! Сейчас все смогут попробовать чаринамриту, кроме вас,тех кто находится на конференции. Это единственное, что вы не можете сделать. Все остальное возможно. Пандуранга появился, и пока вы звонили, делали местный звонок. Он пришел и спросил: «Чего бы вы хотели?» Харе Кришна Харе Кришна Кришна Кришна Харе Харе Харе Рама Харе Рама Рама Рама Харе Харе Хорошо, мы остановимся здесь. Харе Кришна!! Увидимся завтра!!