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23 August 2020 विषय – भौम वृन्दावन में राधा कृष्ण के प्राकट्य का कारण 770 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। जय श्री राधे मुकुंद माधव‌‌, राधे राधे, राधे श्याम। यह राधे श्याम के दिन है। राधा के दिन है, कुछ ही समय में राधा जन्मोत्सव संपन्न होगा। राधा अष्टमी महोत्सव की जय। सभी उसकी प्रतीक्षा में है, (पूछ्ते हूए) बताओ आप लोग हो कि नहीं। आप सभी अत्यंत आतुरता से राधा रानी के दिव्य प्राकट्य की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वैसे तो श्रीमती राधारानी रावल गांव में प्रकट हुई थी, परंतु हम सभी अपने हृदय प्रांगण में राधारानी को प्रकट करवा कर उनका दर्शन करना चाहते हैं। राधा रानी के भाव का प्राकट्य ही वास्तव में राधा रानी का प्राकट्य है। राधा रानी की करुणा हमें प्राप्त हो। करुणा कुरु मयी करुणा भरीते सनक सनातन वरणित चरिते (रूप गोस्वामी द्वारा रचित राधिकास्तव से) अर्थ – हे करुणामयी श्री मति राधिका आप अत्यंत दयालु हैं, आपके गुणों का वर्णन सनक, सनातन आदि ऋषि मुनि करते हैं। आप कृपया मुझ पर कृपा करें। राधा रानी के चरित्र का वर्णन हम पामर क्या कर पाएँगे। राधा रानी की कृपा और करुणा के लिए हम प्रार्थना कर रहे हैं। हे राधा तुम करुणा की मूर्ति हो, सागर हो मुझ पर करुणा करो, कृपा करो। करुणा का प्राकट्य भी हमारे जीवन में, ह्रदय प्रांगण में, मन में राधा रानी ही है। राधा रानी अपने गुणों से अलग नहीं हैं। हम ऐसा नहीं कह सकते कि राधा रानी की करुणा तो प्राप्त हुई पर राधा रानी प्राप्त नहीं हुई। राधा रानी की करुणा प्राप्त हुई अर्थात राधा रानी प्राप्त हुई। राधा रानी अपने विग्रह के रूप में तो दर्शन देती ही हैं, राधा रानी की लीलाओं का हमने श्रवण किया जिससे कुछ लीला समझ में आ रही है तो हमें यह मानना चाहिए कि राधा रानी हमारे जीवन में, हमारे लिए प्रकट हुई है। राधा रानी के सहस्त्र नाम है। उन नामों का प्रतिदिन श्रवण करते हैं, हरे हरे कह कर। हरे नाम का अर्थ राधा है। हरे का नाम लिया हमने। हमने प्रेम से राधा रानी को पुकारा तथा सुना प्रार्थना पूर्वक हरे को ध्यान पूर्वक सुना। कहने को राधा के साथ कृष्ण है, राधा अकेली नहीं होती है। जहाँ कृष्ण है वह राधा हैं । उनके नामों को पुकारते जाइए, यह एक विधि भी हैं। हरेर नाम हरेर नाम हरेर नाम इव केवलं कलो नास्तेव नास्तेव नास्तेव गतिर अन्यथा (चैतन्य चरित्रामृत आदिलीला 7.76) अर्थ – केवल हरी का नाम, केवल हरी का नाम, केवल हरी का नाम इस कलयुग में मुक्ति प्राप्त करने का अन्य कोई साधन नहीं हैं, नहीं हैं, नहीं हैं। राधा की प्राप्ति, राधा की करुणा की प्राप्ति जब हम हरे हरे कहते हैं तो हे हरे ! स्व प्रेष्ठेन सह स्वाभिष्ट लीलाम श्रव्या (गोपाल गुरु गोस्वामी द्वारा हरे कृष्ण महामंत्र पर भाष्य) अर्थ – हे हरे (राधिके) आप मुझ पर कृपा कीजिये, जिससे में आपके और श्री कृष्ण की दिव्य लीलाओं का श्रवण कर सकूँ। गोपाल गुरु गोस्वामी का हरे कृष्ण महामंत्र के ऊपर भाष्य में यह वर्णन हैं। हम राधे से प्रार्थना करते हैं कि हे राधे मुझे ऐसा अवसर प्रदान करे कि जिससे में आपकी कृष्ण के साथ संपन्न लीलाओं का श्रवण कर सकूं। कृष्ण के साथ अपनी नित्य लीला का दर्शन कराओ यह भी प्रार्थना हम राधा रानी से करते है। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे हम जैसे ही हरे कहते हैं अर्थात राधा का नाम पुकारते हैं तो राधे के साथ वाले कृष्ण प्रसन्न हो जाते हैं कि मेरी राधा का कोई नाम ले रहा है। जब हम हरे के बाद कृष्ण कहते हैं तो राधा रानी इस बात से प्रसन्न हो जाती हैं कि मेरे कृष्ण का कोई नाम पुकार रहा हैं। इस प्रकार जब राधा कृष्ण दोनों जब एक दुसरे के नाम सुनते हैं (जब कोई पुकारता है) तो दोनों हर्षित होते हैं। जो लोग जप कर रहे हैं, पुकार रहे है उन पर भी वे अति प्रसन्न होते हैं। नाम तो पवित्र है इसकी पवित्रता बनाए रखते हुए, अपराधरहित चर्चा होती रहती हैं। अपराध शुन्य हइया लहो कृष्ण नाम कृष्ण माता कृष्ण पिता कृष्ण धन प्राण (नदिया गोद्रुमें नित्यानंद महाजन भजन से) अर्थ – हमें अपराध शुन्य होकर भगवान का नाम लेना चाहिए तथा कृष्ण ही हमारे माता, पिता तथा प्राण धन हैं ऐसा भाव हमें रखना चाहिए। ऐसा पुकारा हुआ नाम, वैष्णवों के चरणों में अपराध नहीं, वैष्णव चरणों में सेवा अन्य जीवो के प्रति दया, नाम में रुचि, वैष्णव सेवा से नाम में रुचि बढ़ती है। जीवे दया, नामें रूचि, वैष्णव सेवन इहां छाड़ धर्म नाहीं सुन सनातन (चैतन्य भागवत आदि खंड 1.1 तात्पर्य) अर्थ – हे सनातन सुनों जीवों पर दया, हरी नाम में रूचि तथा वैष्णवों की सेवा के अलावा यहाँ पर अन्य कोई धर्म नहीं हैं। अपराध छोड़ कर वैष्णव की सेवा करो, जीवों पर दया करो। वैष्णव की सेवा के बिना, जीवों पर दया के बिना राधा कृष्ण, नाम प्रभु प्रसन्न नहीं होंगे। राधा कृष्ण गोलोक वृंदावन में नित्य निवास करते हैं। राधा कृष्ण लीला गोलोक वृन्दावन में संपन्न होती है। मथुरा द्वारिका में नहीं केवल वृंदावन में संपन्न होती हैं। एक दिन गोलोक वृंदावन में ऐसी योजना बन चुकी थी राधा को कृष्ण मिलने वाले थे किंतु राधा राह देख रही थी परन्तु श्री कृष्ण नहीं आए, राधा रानी राह देखती ही रही कि कृष्ण क्यों नहीं आ रहे हैं तब राधा जी ने अपने जासूस, दूतों से पता लगाया कि कृष्ण क्यों नहीं आ रहे हैं, मेरे प्राणनाथ किस कार्य में व्यस्त हैं। कुछ ही समय में दूतों ने बताया कि कृष्ण अति व्यस्त हैं, वे विरजा के साथ मिलानोत्सव मना रहे थे। इधर राधा रानी विरह व्यथा से मा रही हैं उधर विरजा कृष्ण के अंग संग का आनंद लुट रही हैं। जब यह समाचार राधा रानी को मिला तो राधा रानी क्रोधित हुई उनका प्रणय क्रोध जागृत हुआ। जिस कुन्ज में कृष्ण विरजा से मिल रहे थे (विरजा राधा रानी का ही विस्तार है, वैसे तो सभी गोपियाँ राधा से ही उत्पन्न होती हैं, परन्तु यह विरजा थोड़ी विशेष गोपी है, उनका गोलोक में थोडा विशेष स्थान हैं) । जिस कुंज में कृष्ण उस विरजा के साथ लीला संपन्न कर रहे थे राधा रानी उस कुंज में जाकर कृष्ण डांटना चाहती थी, या अपनी नाराजगी व्यक्त करना चाहती थी इस विचार से जब वे उस कुंज पर जा रही थी तो उस कुंज पर श्रीदामा चौकीदार रूप में थे। उनको कृष्ण का आदेश का था कि मेरे आदेश के बिना किसीको प्रवेश नहीं दिया जाए। राधा तथा अन्य सखियाँ, गोपियाँ वहां जाना चाहती थी जहां कृष्ण विरजा के साथ थे परन्तु श्रीदामा ने उन्हें रोक दिया कि आप वहाँ नहीं जा सकती। जब श्रीदामा ने उन्हें नहीं जाने दिया तो उनकी श्रीदामा के साथ लड़ाई शुरू हुई, वे आपस में वाक बाण चलाने लगे, परंतु श्रीदामा ने उनकी बात नहीं मानी उन्होंने कहा कि मुझे कृष्ण का आदेश प्राप्त है उनकी बिना अनुमति आप अन्दर नहीं जा सकती हैं। राधा तथा सखियां अति क्रोधित हो लाठी लाती हैं, फिर भी श्रीदामा उन्हें जाने नहीं देते। कुछ समय पश्चात राधा रानी ने वहां अन्दर प्रवेश कर ही लिया तथा देखा कि कृष्ण कुंज में से ही सब देख सुन रहे थे। अन्य गोपियां लाठियां लेकर आती हैं और श्रीमती राधारानी कहती हैं कि इसे गिरफ्तार करो इसको पीटो। किन्तु श्रीधामा रोके रहे सब को । लेकिन राधा रानी और अन्य गोपियों ने कुछ समय बाद सबने प्रवेश कर लिया और जब वे आगे कुंज में पहुंची। श्री कृष्ण कुंज से ही सब कुछ सुन रहे थे जो यह बाहर कोलाहल हो रहा है और उनको पता था कि श्रीमती राधारानी और उनकी सखियां सब मेरे कुंज की ओर आ रही हैं। तो कन्हैया कहते हैं विरजा को कि आप रुक जाओ तो विरजा झट से नदी बन जाती हैं। वैसे विरजा नदी ही है ही। विरजा नाम की प्रसिद्ध नदी है। इस प्रकट जगत का और अप्रकट जगत का जो विभाजन हुआ है वह विरजा नदी के कारण ही हुआ है। तो आप सबने विरजा का नाम सुना ही होगा यह बहुत बड़ा नाम है विरजा एक विशेष नदी है। यह भौतिक संसार और दिव्य संसार को विभाजित करने वाली नदी है। और फिर कृष्ण वहां से पलायन कर जाते है। जब श्रीमती राधारानी और अन्य गोपियाँ आती हैं तो श्री कृष्ण और विरजा का कुछ पता नहीं चलता है और फिर राधा रानी अपने कुंज में जाकर रूठ जाती है। बैठ जाती है निराश होके। फिर कुछ समय उपरांत कन्हैया आ जाते है । और साथ में श्रीधामा भी पीछे-पीछे आ रहे हैं। राधा रानी ने जब देखा कि कन्हैया विलीन भाव के साथ आ रहे हैं। और क्षमा याचना मांगने के उद्देश्य से भी। माफ करना मुझे देरी हुई। मुझे कुछ कहना था मिलना था पर जैसे ही श्रीकृष्ण कुछ और कहते हैं श्रीमती राधा रानी ने कहा कि चले जाओ यहां से। विरजा के पास जाओ उसी को चाहते हो ना। और फिर खरी खोटी राधा ने सुनाई। और डांट फटकार के कहा तूम लंपट हो ऐसे हो वैसे हो। विश्वासघात करने वाले तुम हो। और यह सब बातें चलती रहती हैं लेकिन हां यह सारी दिव्य बातें हैं। अल्लोकिक बाते है। प्रेम का वर्धन करने वाली बात है। इसमें प्राकृतिक या मायावी बात नहीं होता। यह हमारे लिए समझने वाली बात होती है। और जो बध जीव है जब जो क्रोधित होते हैं और बाकी भी जो चीजें होती रहती हैं इस संसार में चलता ही रहता है। आत्मवान मन्यते जगत ऐसे कहा जाता है। मैं जैसा हूं जैसे यह संसार वाले हैं ऐसे ही श्री कृष्ण और राधा रानी हैं जो हमारे संबंध है वैसे ही उनका भी संबंध है तो ऐसी बात बिल्कुल भी नहीं है। जो भी हमें संसार में अनुभव करते हैं यह सब छाया है यह उसका प्रतिबिंब है मायावी बाते है। और जो भी यह सारा वाद-विवाद है क्रोध है यह प्रेम है यह एक दिव्य प्रेम है। हमें इस लीला तत्व को समझना होगा। नहीं तो फिर पुनः प्राप्त करेंगे हम। इस संसार के बध जीव को जो सबसे कठिन बात समझ में आती है वह है राधा कृष्ण का संबंध। राधा कृष्ण का जो संबंध है विप्रयलंब अलाहधनी शक्ति है । राधा कृष्ण की लीला को सुनके तुरंत बध जीव दोषारोपण करने लगता है। इस संसार में ऐसा होता है वैसे होता है तो जैसे ही जैसा यह संसार है वैसे ही भगवान है। ये लंपट है ये है वोह है। इसीलिए वैसे ये जो प्रसंग है यह गोपनीय है । इसलिए सावधान। कई सारी बातें सुनने के उपरांत यह सुनी होती है। श्री कृष्ण की लीला और उसमें फिर माधुर्य लीला यह दसवें स्कंध में उसको स्थापित किया है। और कथाएं लीलाएं या तत्व, सिद्धांत , नाम रूप गुण लीला इन सबको बताया जाता है ताकि हम राधा कृष्ण की लीलाओं को समझ पाए। तो जो राधा रानी कह रही थी सत्य कह रही थी और जो भी कह रही थी वो प्रेम की भाषा ही है। उनका इतना सारा प्रेम है कृष्ण से इसीलिए जब उनके मिलन में थोड़ी देरी हुई कुछ बाधा उत्पन्न हुई तो इसलिए वह क्रोधित हुई है। तो यह क्रोध है कामत क्रोध विजायते गीता में श्री कृष्ण ने कहा है। जब काम वासना में देरी होती है तो हम सहन नहीं करते तो फिर हम क्रोधित होते हैं। तो ऐसे ही प्रेमात क्रोध विजायते। तो जब प्रेम में देरी हुई, मिलन में जब बाधा उत्पन्न हुई, या कोई व्यक्ति आ गया। जैसे विरजा आ गई । तो इस बात से राधा रानी को दुःख होता है। यह प्रेम से उत्पन्न हुआ क्रोध है और यह दिव्य लीला ही है। जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन || ९ || ( भगवद गीता ४.९ ) ( अनुवाद :- हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है |) तो राधा रानी जो भी सुना रही थी कृष्ण को वह सब श्रीधामा सुन रहे थे। श्रीधामा वैसे राधा रानी के भाई ही है और उनसे सहा नहीं गया। और श्री राधा रानी और श्रीधामा में संवाद वाद विवाद शुरू हुआ। यहां तक कि वह एक दूसरे को श्राप देने लगे। वह एक दूसरे को कोसने लगे। तो श्रीधामा वकालत कर रहे थे कृष्ण की। कृष्ण के पक्ष में बोल रहे थे। तो राधा को लगा कि यह पक्षपाती है। श्रीधामा ने कहा कि तुम जानती हो कि तुमने जो यह उल्टी सीधी बातें करी, कृष्ण का अनादर किया तुम इसका परिणाम भोगोगी। इसका फल भोगना पड़ेगा। नहीं तो तुम को गोलोक को त्यागना होगा और धरातल पर प्रकट होना होगा। और जब वहां तुम पहुंचेगी तब 100 सालों तक विरह की व्यथा भौगोगी तुम। श्री कृष्ण तुमसे कुछ घंटों के बाद ही मिले और तुमने विरह सहन किया और अब जो तुमने जो जो भी कहा वह मैंने सुना तो इसका परिणाम यह होगा कि तुम 100 सालों तक विरह कि व्यथा से व्यतीत होगी और राधा रानी ने जब यह सुना तो उन्होंने भी श्रीधामा को शाप दिया। यह जो तुम्हारी राक्षस प्रवती है मैं भी तुमको श्राप देती हूं कि जब तुम कृष्ण की लीला में प्रकट होगे तो तुम राक्षस बनोगे। तो जो यह राधा कृष्ण का प्राकट्य हुआ 5000 वर्ष पूर्व उसके पीछे का जो घटनाक्रम है यह है वह इतिहास। यह घटना कारण बनी है और फिर राधा कृष्ण प्रकट हुए हैं। राधा रानी ने यह भी कहा है कि मैं वहां नहीं जाऊंगी जहां वृंदावन नहीं है और मैं वहां भी नहीं जाऊंगी जहां जमुना भी नहीं बेहती हैं, मैं वहां नहीं जाऊंगी जहां गोवर्धन पर्वत नहीं है। तो कृष्ण ने कहा कि सब होगा। तो ऐसा कहा जाता है कि भगवान ने स्वयं के प्राकट्य से पहले अपने धाम को प्रकट किया। गोकुल को प्रकट किया और फिर राधा-कृष्ण भी प्रकट हुए। वैसे हमें यह भी समझना चाहिए कि धाम का कभी प्राकट्य नहीं होता। ऐसा कभी नहीं था कि धाम नहीं था और अब प्रकट हुआ यह सब लीलाओं की बातें हैं। धाम का प्राकट्य यानि लीलाओं का प्राकट्य होता है । तो राधा कृष्ण प्रकट हुए श्री कृष्ण गोकुल में प्रकट हुए और राधा रानी रावल में प्रकट हुई। श्रीधामा दो भागों में प्रकट हुए एक वन में राक्षस के रूप में और एक राधा रानी के भाई के रूप में गोलोक वृंदावन में भी श्रीमती राधारानी के भाई थे तो अभी गोकुल वृंदावन में भी श्रीमती राधारानी के वह भाई बने है। और उनकी लीलाएं आगे बढ़ी हैं। हरी हरी। गौर प्रेमानंद हरी हरी बोल। जय जय राधे जय जय श्याम जय जय श्री वृंदावन धाम। सभी गाइए। जय जय श्री वृन्दावन धाम। जय राधे जय कृष्ण जय वृंदावन धम। अब आप इस लीलाओं का स्मरण करते हुए भी जब कर सकते हैं। यह जो लीलाएं हैं इसको आप इतिहास कह सकते हैं घटनाएं हैं । यह घटनाएं गोलोक में घटी हुई घटनाए हैं, गोलोक का इतिहास है। एक थे राजा जो कि कृष्ण है और एक थी रानी जोकि राधा है। श्रीमती राधा रानी का इतिहास है यह। और इस इतिहास को हम लीला कहते हैं। लीलाओं का ही इतिहास होता है। धन्यवाद। हरे कृष्ण।

English

23 August 2020 Day 4 - Setting the scene for appearance in Bhaum Vrindavan Hare Krsna! Chanting is taking place from 772 locations. Gaur Premanande Haribol! Jai Sri Radhe Shyam! These are the days dedicated to Radha and Shyam. Radhastami is approaching. Radhastami Mahotsav ki jay. We are all excited and are eagerly waiting for Radhastami. Radharani appeared in Raval, but we should all wish that She appears in the courtyard of our hearts. The emotion of Radharani is equal to the appearance of Radharani. We pray, “Oh Srimati Radharani, who is mercy personified, please have mercy on me.” karuṇāḿ kuru mayi karuṇā-bharite sanaka-sanātana-varṇita-carite Translation: O You who are filled with compassion! O You whose divine characteristics are described by the great sages Sanaka and Sanatana! O Radha, please be merciful to me![Radhe Jaya Jaya Madhava Dayite song verse 3 by Rupa Goswami] We are praying to get the mercy of Radharani. Attaining Srimati Radharani's mercy is as good as attaining Srimati Radharani. Srimati Radharani is non-different from Her mercy. We get Srimati Radharani's mercy. We are getting to hear about Her pastimes. It means that Srimati Radharani has appeared in our lives, in our hearts. Srimati Radharani also has 1000 names. We recite them daily by saying Hare Hare. We must attentively chant the names of Radha and Krsna/Hare and Krsna. Of course, where there is Radha there is Krsna. Keep on reciting their names. This is the only way in Kaliyuga. harer-namaiva kevalam When we say Hare Hare, we have a mood that, “Oh Radharani have mercy that I can hear, see and relish your pastimes with Krsna. When we say Hare, Hare ... sva-presthena saha svabhista-lilam sravaya Translation: Oh Hara, Radha! Give me the opportunity to hear about your own favourite pastimes with Your beloved Lord.[ Meaning of Hare Krsna Mahamantra by Gopal Guru Goswami] he hare, sva-presthena saha svabhista-lilam darsaya Translation: Oh Hara, Radha! Reveal to me your intimate pastimes with Your beloved Lord.[ Meaning of Hare Krsna Mahamantra by Gopal Guru Goswami] This is the prayer that we must do when we are chanting the maha-mantra. Hare Krsna Hare Krsna Krsna Krsna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare As soon as we say Hare, the name of Radha, automatically Krsna becomes pleased that this devotee is chanting the name of My Radha. Similarly when we say Krsna then Srimati Radharani becomes pleased. They are pleased by the chanter. The holy name is most pure, and maintaining its purity, we must chant. Maintaining its purity means offenseless chanting. aparadha-sunya hoye loha Krsna-nama Translation: Chant Krsna's name without offense.[Nadiya Godrume Song verse 3 by Bhaktivinoda Thakura] Such Chanting of the name, which does not lead the offense to devotees... jive-doya, name-ruchi, vaisnava-sevana We develop interest and attachment for the holy name when we show mercy on other entities and when we do Vaishnava Seva-serving the Vaishnavas. Without seva Radha and Krsna don't become happy. Only then we can develop that attraction for the holy name. The pastimes of Radha Krsna are going on only in Goloka Vrindavan, not in Goloka Mathura or Goloka Dvaraka. One day, Radha and Krsna were going to meet each other. Their meeting was already planned. But Srimati Radharani kept waiting for Him very long patiently, and Krsna didn't come. Then she sent one of Her servants to find out where Krsna was so busy that He forgot or could not come to meet Srimati Radharani. The spy servant went and returned with unpleasant news. She said that Krsna was busy meeting another gopi named Viraja. Pastimes of Krsna and Viraja gopi were going on. Radharani was extremely angry now, and she decided to intrude in the Kunja where Krsna and Viraja were playing pastimes. When Srimati Radharani reached there, Sridama was guarding the entrance there. He stopped Srimati Radharani from entering. But since She was so furious, they started quarrelling. Both were firm on their parts, Srimati Radharani was so angry that she asked the Gopis to bring sticks and asked them all to beat and arrest Sridama. Still, he was firm, but then somehow Srimati Radharani succeeded in entering the Kunja. Well, Krsna was listening to this conversation between Srimati Radharani and Sridama. He got to know that She was anyhow going to enter so He asked Viraja to take her form of a river. Viraja is a river, a very huge and popular river. She separates the material world from the spiritual world. When Radharani entered She could not find Viraja. She searched, but Viraja had turned into a river so She couldn't find her. She returned. She was still angry and returned to her Kunja. Now Krsna was going to Radharani's Kunja and Sridama also followed Him. He was coming with some plans to convince Srimati Radharani and pacify Her anger, but before He could utter a word She started asking Him to leave. She said, “You go to Viraja. You love her, so go to her.” It was transcendental, love conversation. It's not material anger. This is not material love like people experience in this material world. It is difficult to understand. We are fallen, souls. We compare these with us. atmavan-manyate jagat Translation: Everyone thinks the whole world is like him. The love of Radha and Krsna is not at all like this. This to be made clear. Misunderstanding should not be there, else we will end up committing offenses. One has to understand that this is transcendental love. The materialistic, less intelligent people see this as ordinary mundane love. This topic is considered to be confidential and is not discussed with all. Such pastimes of conjugal love- Madhurya pastimes are discussed in the 10th Canto. We are prepared in the first 9 cantos. First, we have to know the name, form, qualities, and pastimes of the Lord, so that we can rightly understand the love of Radha and Krsna. Here this anger of Srimati Radharani is transcendental. dhyayato visayan pumsah sangas tesupajayate sangat sanjayate kamah kamat krodho 'bhijayate Translation: While contemplating the objects of the senses, a person develops attachment for them, and from such attachment lust develops, and from lust anger arises.[ BG 2.2] When our desire is not fulfilled or takes too long to get fulfilled, then we become angry. Whatever Srimati Radharani was saying to Sri Krsna was out of this transcendental love. janma karma ca me divyam This was being heard by Sridama, who is the elder brother of Radharani. They started quarrelling. Sridama was advocating for Krsna, and Srimati Radharani thought he was being biased so she got angry with him. They started cursing each other. Here Sridama said, “Just because Krsna delayed meeting You, You are overreacting in such a way then I curse You that You have to leave this Goloka Vrindavan and go to the material world and be away from Krsna for 100 years. In response, Srimati Radharani cursed Sridama, “Since you are behaving like a demon, you shall go and become a demon when Krsna will play his pastimes on earth.” So like this setting the scene takes place. This incident became the cause of the appearance of Srimati Radharani and Krsna. She also said, “I won't go to a place where there is no Vrindavan, no Yamuna, no Govardhan.” Krsna manifested all of them from Goloka to this place in Vrindavan before They came to play Their pastimes here. We should also understand that the Dhama is eternal. It's not like it is manifested. Everything is Lila [Prakat Lila] of theLord. Radha and Krsna appeared. Krsna appeared in Gokul and Radharani in Raval. These curses were fulfilled 5000 years ago when Krsna and Radha played Their pastimes on this planet. Sridama became a demon called Shankhacuda and he also appeared as the brother of Srimati Radharani as he is in Goloka Vrindavan. You shall chant remembering these pastimes. This is history. You shall remember Them while chanting. You got to know more pastimes to remember and to think upon - do manan. Hare krsna!.

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