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जप चर्चा –14 जून, 2020 श्री गुरु गौरांग जयतः श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्री अद्वैत गदाधर श्री वासआदि गौर भक्त वृन्द ।। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
अनंतशेष प्रभु एक सूचना देना चाहते हैं आज हम उससे शुरुवात करते हैं। अनन्तशेष प्रभुजी : हरे कृष्ण दंडवत प्रणाम गुरु महाराज ! सभी भक्तों के चरणों में दंडवत प्रणाम। सभी भक्तों का धन्यवाद जिन्होंने महाराज श्री की व्यास पूजा के लिए बड़ी संख्या में शब्दांजलि लिख कर भेजी हैं परन्तु अभी भी आप सभी को जानकर हर्ष होगा कि आज अंतिम दिवस है जब आप अपनी शब्दांजलि को भेज सकते हैं। ये विशेष अवसर हैं। कई भक्तों ने अपनी जिज्ञासा प्रकट की थी कि कैसे लिखे तो आप lokanathswamiofferings.com
इस वेबसाइट पर जा सकते हैं जहाँ पूर्व शब्दांजलियाँ लिखी गई है। कई शिष्य अभी बाकी है जिन्होने अभी तक लिखा नहीं हैं । यहाँ लगभग 783 प्रतिभागी हैं आप सभी से अनुरोध हैं कि आप श्रीधर माधव प्रभु को अपनी1 शब्दांजली भेज सकते हैं।हम शांताराम प्रभु से अनुरोध करते हैं कि श्रीधर माधव प्रभुजी का नम्बर चैट पर अवश्य भेज दे। आज रात्रि से पूर्व अच्छा हैं कि आप प्रसाद ग्रहण करने से पूर्व आप अपनी शब्दांजलि अवश्य लिखे। नागपुर में लगभग 300 से अधिक दीक्षित भक्त हैं। सोलापुर में बहुत बड़ी संख्या में दीक्षित भक्त हैं पुना में हैं परन्तु अपेक्षाकृत उतने भक्तों ने अभी अपनी शब्दांजली नहीं लिखी हैं। अभी लोकडाउन में सभी अपने अपने घरों पर हैं तो प्रयास करें कि सभी शब्दांजलि लिखे ताकि हम बहुत बड़ी संख्या में इस बार महाराज श्री का गुणगान वर्णन कर सके। सभी भक्तों का धन्यवाद ।
गुरुदेव : हरे कृष्णा। श्रील प्रभुपाद की जय ! 50 वर्ष पूर्व श्रील प्रभुपाद अपने शिष्यों के साथ जिनमें अधिकतर विदेश के ही थे भारत लौटे तथा भारत वर्ष में कई स्थानों पर हरे कृष्ण उत्सव संपन्न कर रहे थे। ऐसा एक उत्सव 50 वर्ष पूर्व सूरत में भी संपन्न हुआ और संभावना हैं शायद या ऐसा कहा जा सकता हैं उन उत्सवों में अधिक यशस्वी उत्सव सूरत में मनाया गया था। सूरत के भक्त भी उस बात को सुन रहे हैं। श्रील प्रभुपाद के शिष्यों ने सूरत में जो नगर संकीर्तन किया, उन भक्तों का नगर भर में जो स्वागत हुआ, पुष्प वृष्टि हुई माल्यार्पण हुआ, सारी नगरी हरे कृष्ण महामंत्र से गूंज उठी। सूरत के स्कूल उन दिनों बंद कर दिए गए ताकि सभी नगरवासी संकीर्तन में सम्मिलित हो सके। श्रील प्रभुपाद के व्याख्यान भी साथ में चल रहे थे उसमें बड़ी संख्या में लोग उपस्थित होते थे। उस उत्सव की स्वर्ण जयंती महोत्सव सूरत इस्कोन मना रहा है। प्रातः स्मरणीय श्रील प्रभुपाद की जय ! उनका स्मरण सूरत में विशेष इन दिनों में हो रहा हैं। उसी के उपलक्ष्य में इस्कोन सूरत में कीर्तन मेले का आयोजन किया हुआ है। श्रील प्रभुपाद का सूरत में आगमन, श्रील प्रभुपाद का हरे कृष्ण महोत्सव, नगर संकीर्तन, श्रील प्रभुपाद के कथामृत, इसकी याद या स्मृति में उत्सव मनाया जा रहा हैं , कीर्तन मेला संपन्न हो रहा हैं तो दिन भर कीर्तन होगा।
वहां कई दिनों से कीर्तन चल रहा हैं। मुझे भी कीर्तन करने का आदेश हुआ हैं। आज शाम 5:00 से 6:00 बजे तक हम भी श्रील प्रभुपाद जी की प्रसन्नता, गौरव के लिए कीर्तन करेंगे। अगर आप को समय हैं तो आप भी हमारे साथ शाम 5 बजे जुड़िये। उस समय तो नगर संकीर्तन हुआ था पर अब ऑनलाइन कीर्तन मेला हो रहा हैं। उस समय प्रभुपाद के साथ उपस्थित भक्तों ने कीर्तन किया तथा अब उस कीर्तन को आगे बढ़ा रहे हैं इस्कोन सूरत के भक्त। उस समय जो कीर्तन नहीं कर पाए तो आप अब कीर्तन कर सकते हो। 820 स्थानों से आप सुन रहे हैं। आपका स्वागत है। कुछ प्रश्न उत्तर भी कर लेते हैं आपके प्रश्न और हमारे उत्तर समय बचता है तो और चर्चा होगी।
प्रश्न - श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम है। कृष्ण भगवान पूर्ण पुरुषोत्तम है। चैतन्य महाप्रभु प्रेम पुरुषोत्तम कहलाते हैं। क्या चैतन्य महाप्रभु श्री कृष्ण से ऊपर हैं ? क्या प्रेम रस से ऊंचा है? उत्तर - नहीं हैं। प्रेम से ऊंचा नहीं है रस ही प्रेम है प्रेम ही रस है। बस दो नाम है माधुर्य रस कहो या माधुर्य प्रेम कहो। साख्य रस कहो या साख्य प्रेम कहो या साख्य भाव कहो या साख्य भक्ति कहो । प्रेम ही रस हैं। कृष्ण रसमय है, या फिर प्रेम मय हैं कृष्ण। चैतन्य महाप्रभु कृष्ण से भिन्न हैं, बड़े हैं , उनका स्थान ऊँचा है, इस सम्बन्ध में आपका क्या कहना हैं? मेरा क्या कहना हैं। श्री कृष्ण चैतन्य ही राधा कृष्ण है वे दो नहीं हैं वे एक ही हैं।
श्री कृष्ण चैतन्य राधा कृष्ण नहीं अन्य
एक गौर सुंदर है तथा दूसरे श्याम सुंदर है। यह दोनों सुंदर हैं। एक गौर सुन्दर हैं वे गौर वर्ण के हैं। श्री कृष्ण भी सुन्दर हैं और वे श्याम सुन्दर हैं। दोनों गोलोक निवासी हैं परंतु दोनों अलग-अलग विभागों में रहते हैं, रहते नहीं हैं अपनी लीला नित्य संपन्न करते रहते हैं। एक वृंदावन में तथा दूसरे मायापुर में अपनी लीला संपन्न करते हैं । मायापुर भी गोलोक हैं और वृन्दावन तो गोलोक हैं ही । एक माधुर्य लीला दूसरी कृष्ण माधुर्य लीला। उन का धाम गोलोक ही है लेकिन जहां कृष्ण लीला करते हैं उसे माधुर्य धाम कहा हैं तथा जहां चैतन्य महाप्रभु लीला करते हैं उसे औदार्य धाम कहते हैं। श्रीकृष्ण वृन्दावन माधुर्य धाम में मधुर लीला संपन्न करते हैं। उन्ही लीलाओं का रसास्वादन तथा वितरण चैतन्य महाप्रभु मायापुर में करते हैं। नमो महावदान्य और इसी के साथ वह महावदान्य बन जाते हैं तो माधुर्य धाम तथा औदार्य धाम। कृष्ण के मुखारविंद से भगवत गीता जन्मी या उत्पन्न हुई। उसी दिन को हम गीता जयंती के रूप में मनाते हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने केवल 8 श्लोकों की रचना की जिसे हम शिक्षाष्टकम कहते हैं
चेतो दर्पण मार्जनम, भव महादावाग्नि निर्वापणम।
श्री कृष्ण की देन हैं 700 श्लोक वाली भगवत गीता परंतु चैतन्य महाप्रभु ने 8 श्लोकों वाला शिक्षाष्टकम दिया संसार को। दोनों ही कल्प अवतार हैं । इनमें भेद नही है। भेद हैं भी परन्तु वे भी आध्यात्मिक भेद हैं। उसमें काम अधिक तो नहीं होते। चैतन्य महाप्रभु श्री कृष्ण से बड़े नहीं होते वह भिन्न होते हैं। दोनों कल्प अवतार हैं। युगवतार नहीं है दोनों अवतार नहीं हैं वे तो अवतारी है। जब कल्प अवतार (ब्रह्मा के 1 दिन में) द्वापर युग में कृष्ण प्रकट होते हैं तो कलयुग के 1 दिन में चैतन्य महाप्रभु प्रकट होते हैं। श्रीकृष्ण भी दयालु है।
हे कृष्ण करुणा सिंधु दीनबंधू जगतपते । गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोस्तुते ।।
श्री कृष्ण दयालु है वे भगवान भगवान कैसे हो सकते हैं जो दयालु न हो। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने जो श्री कृष्ण ही हैं अपनी दया का विशेष प्रदर्शन किया तथा उन लोगों पर दया दिखाई कलयुग के जीवों पर जो अधिक पतित होते हैं द्वापर युग में उतने पतित नहीं होते हैं जितने कलयुग में होते हैं। कलयुग के सभी शुद्र बन जाते हैं सतयुग से ब्राह्मण हुआ करते थे त्रेता में क्षत्रिय तथा द्वापर में वैश्य का प्रधान था कलयुग में अधिकतर शूद्र होते हैं।
कलौ शुद्र संभव शुद्र अर्थात पतित अतः कलियुग के ऐसे पतित जीवों के उद्धार के लिए श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट हुए तथा दोनों ने धर्म की स्थापना की। श्री कृष्ण भगवान् ने धर्म की स्थापना की है ।
परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।(भगवद गीता 4.8)
अनुवाद : साधुओं को आनंद देने, दुष्टों का विनाश करने तथा पुनः धर्म की स्थापना करने के लिए मैं प्रत्येक युग मे प्रकट होता हूँ ।
कभी कभी विद्वान कहते है धर्म क्या है ? भगवद गीता , धर्म क्या है ' इसका उत्तर प्रभुपाद बताते है भगवान के कानून। भगवद गीता में भगवान् के निधि विषेध है। भगवद गीता का पहला शब्द कौनसा है:- "धर्म" और 18 वे अध्याय का 78 श्लोक का अंतिम शब्द है :- "मम" । भगवद गीता क्या है (पूछते हुए ) मम धर्म मेरा धर्म भगवन का धर्म है। कृष्ण के द्वारा दिया गया धर्म। कृष्ण ने दिया धर्म और फिर उसकी स्थापना की। और फिर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने भी धर्म संस्थापना की। कलियुग का धर्म हरी नाम संकीर्तन है उसकी स्थापना की। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के भावो से, विचारो से अधिक स्पष्ट होता है कि वह सारे संसार के जीवो के कल्याण , उद्धार की बात सोच रहे है। इसिलए वह कहते है :- पृथ्वीते आछे यत नगर आदी ग्राम ।
सर्वत्र प्रचार होइबे मोर नाम।। (चैतन्य चरितामृत मध्यलीला 25.264) अनुवाद : इस पृथ्वी के प्रत्येक नगर तथा ग्राम में मेरे नाम का प्रचार होगा ।
हर नगर में हर ग्राम में होगा इस पृथ्वी पर और ऐसा किसने कहा हैं ? चैतन्य महाप्रभु ने । उन्होंने अपनी महान वदान्यता प्रकट की है । मह वदान्य , लेकिन वे कृष्ण ही है :-
नमो महावदान्याय कृष्ण-प्रेम-प्रदाय ते। कृष्णाय कृष्ण-चैतन्य-नाम्ने गौरत्विषे नमः।।
परम् दयालु है, जो कृष्ण प्रेम प्रदान करते हैं हम नमस्कार करते है प्रणाम मंत्र में भी चैतन्य महाप्रभु को। हम कहते है प्रणाम मंत्र के रूप में नमस्कार करते है कौनसे कृष्ण को ( पूछते हुए ) कृष्णाय कृष्ण-चैतन्य नाम्ने , कृष्ण चैतन्य नाम वाले को मै नमस्कार करता हु। आप सभी और सोचिये। चैतन्य महाप्रभु कृष्ण से ऊपर है या नहीं। ये प्रश्न पुछा गया है। उसका मेने प्रश्न किया है। श्रीला प्रभुपाद कहते थे की चैतन्य महाप्रभु न बड़े है ना छोटे है वह कृष्ण से भिन्न है। जो यह प्रश्न पूछ रही थी प्रभुपाद से वह इस बात को मान नहीं पर रही थी की औरत कमजोर् है। प्रभुपाद ने कहा की नहीं नहीं बड़े और छोटे की बात नहीं है वह भिन्न है। वो अलग अलग है। उसी प्रकार श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु और स्वयं श्री कृष्ण वे एक ही है और साथ ही साथ भिन्न भी है। अचिन्त्य भेदा भेद। ये तत्व अच्छा है कई जगह लागु होता है यह। इसी के साथ सामाधान भी होता है। जीव और भगवान् में क्या भेद है फिर (पूछते हुए ) भेदा भेद है। मै यही सोच रहा था की आप सोचो की श्री कृष्ण और चैतन्य महाप्रभु कैसे भिन्न है। अभेद है और भेद है। ज्यादा सोचिये। यह आपके लिए गृहकार्य है। मै जब आपके प्रश्नों के जवाब देता हु तो पूरा प्रवचन ही हो जाता है। कोई कह रहे थे की भक्ति चैतन्य महाराज जब प्रश्न उत्तर कर रहे थे तो उन्होंने आधे घंटे में 20 प्रश्नों के उत्तर दे दिए।
प्रश्न :- क्या हमे चार सम्प्रदायों के बारे में जानकारी मिल सकती है।
गुरुदेव :- हम पहले चार सम्प्रदायों के बारे में बता चुके है आप उस से जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
बहुत समय पहले की बात है पुरुशोत्रय स्वामी महाराज ने जो की मेरे गुरु भाई ही है उन्होंने वृन्दावन में इस पर सेमीनार दिए थे चार सम्प्रदायों के बारे में। उन्होंने इस पर एक छोटी पुस्तक भी बनाई है इसको भी आप प्राप्त कर सकते हो। कभी जानकारी या सिद्धांत या पुनः कैसे उसमे भेद है ये सब विस्तार से चर्चा की हुई है। और आप कहेंगे तो मै आपको इसकी एक सॉफ्ट कॉपी भेज सकता हु।
प्र्शन्न :- चार सम्प्रदायों का क्या महत्व है। गुरुदेव :- बहुत महत्व है , माया मुग्ध जीवेर नाहीं कृष्ण ज्ञान । जीवेर कृपा कैला कृष्ण वेद पुराण।
जब मोह माया ग्रस्त जो जीव है इस संसार में उनको मुक्त करना है उस उदेश्य से भी इस संसार की सृष्टि हुई है। बाहिर मुख होके जीव जब भोग वांछा करना चाहता है तो उसके भोग विलास की इस ब्रह्माण्ड में सुविधाएं मिलती है। भोगी बने ईश्वर अहम , अहम भोगी, अहम बलवान , अहम सुखी , ये जो भोगियो के रोगी होते है उनके लिए भी सृष्टि बनी है और दूसरा उदेश्य है उनको मुक्त करने के लिए भक्त बनाने के लिए भगवान् के सामने ले आने के लिए सम्मुख करना है जो विमुख थे। भगवान् ने कृपा करके शास्त्रों की रचना की और इन् शास्त्रों को पढ़ाने के लिए अध्यापक भी तो चाहिए। इन सम्प्रदायों के आचार्यों को अध्यापक बनाया भगवान् ने। आचार्यवान पुरुषो वेद।
वे व्यक्ति ज्ञानी बनेंगे , सीखेंगे , समझेंगे जिन्होंने आचार्य को अपनाया है। वे स्वयं ज्ञान वान होंगे। ये चार संप्रदाय भगवान् की व्यवस्था है। विचारो का स्कूल है भगवान् का। सम्प्रदाय मन्त्र असते विफला मतह। ये भगवान् ने ही कहा है। सम्प्रदायों के आचार्यो से ही मंत्र या शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। संप्रदाय के बहार विफल होगा लेकिन संप्रदाय के आचार्यो से ज्ञान प्राप्त करेंगे तो फिर जीव सफल होगा। गीता में भगवान् ने कहा एवम् परम्परा-प्राप्तम् इमम् राजर्षयः विदुः यह संप्रदाय कहो या परंपरा कहो एक ही बात है। ये संप्रदाय महत्वपूर्ण है और ये सम्प्रदाय ये व्यवस्था भगवान् ने की है। इसका पूरा लाभ उठाना चाहिए और फिर चार संप्रदाय है तो पांचवा कहो जो की श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के द्वारा निर्माण करा। गौड़ीय वैष्णव परंपरा :- की जय। जो चार सम्प्रदायों ने नहीं दिया था उसको महाप्रभु ने दिया। विश्रम्भ रस का जो भक्ति का प्रकार है ये प्रदान करने के लिए श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने माधवेन्द्र पूरी को प्रेरणा देकर और एक शाखा बना दी।
प्रशन्न :- भागवत ग्रन्थ को विस्तार से समझाए। गुरुदेव :- उसके लिए तो भागवत कथा करनी पड़ेगी और वैसे कथा में हर चीज नहीं दी जा सकती इसलिए कहा है क्या करो । नित्यं भागवत सेवया।
हर रोज प्रतिदिन भागवत पढ़ो तभी आप बन जाओगे गौड़ीय वैष्णव। चैतन्य महाप्रभु भी श्रवण किया करते थे। आपके पास ग्रन्थ है श्रीला प्रभुपाद द्वारा दिए हुए उसको पढियेगा और व्यक्ति भागवत के बारे में जानना चाहते है तो द्वादश महाजन के बारे में विस्तार से जानना चाहते है तो ग्रन्थ पढ़िए। प्रभुपाद कहते है भागवत दो प्रकार के है एक ग्रन्थ भागवत दूसरा व्यक्ति भागवत। वैसे ग्रन्थ भागवत तो भगवान् ही है और व्यक्ति भागवत भक्त है आचार्य है महात्मा जो है उनको व्यक्ति भागवत कहते है। उनको व्यक्ति भागवत कहते है जो भगवान को लेकर चलते है , सोचते है , खाते सोते नाम लेते है। व्यक्ति भागवत ही कृष्ण भावना भावित होते है । जिन्होंने भागवत के मर्म को जाना है वे है व्यक्ति भागवत और उन् भागवतो में श्रीला प्रभुपाद भागवत है महा भागवत भी कहा जाता है श्रीला प्रभुपाद को। इन् भागवतो ने द्वादश भागवत , द्वादश व्यक्ति प्रसिद्ध है
स्वयंभू, नारद , शम्भू , कुमार , कपिलो मनु , प्रह्लाद जनको विष्णु, बलिर व्यासखीर वयम
ये द्वादश भागवत है। यमराज भी भागवत है उन्होंने कहा की धर्मस्तु साक्षात् भगवत प्राणितम। उन्होंने कहा की भगवान् स्वयं धर्म को देते है और गीता भागवत के रूप में दिया है भगवान् ने धर्म को। और इसके जो ज्ञाता है जो इसको जानने वाले है , तत्व वेत्ता है। गीता भागवत के रूप में अगर तत्व उपलब्ध है तो उसको जाने के लिए तत्व वेत्ता भागवत होते है। ये ऐसी अथॉरिटी है। भागवत का श्रवण कीर्तन महाभागवत भक्त व्यक्ति भागवतो की सेवा ऐसा करने से नित्य भागवतम की सेवा होती है।
ग्रन्थ राज श्रीमद भागवतम की जय श्रील प्रभुपाद की जय निताई गौर प्रेमानन्दे हरी हरी बोल परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज की जय
English
14 June 2020
Zooming in: Question & Answer session
jaya sri-krsna-chaitanya prabhu nityananda sri-advaita gadadhara srivasadi-gaura-bhakta-vrinda
Translation: I offer my respectful obeisances unto Sri Caitanya Mahaprabhu, Lord Nityananda, Sri Advaita, Gadadhara Pandit, Srivas Thakur, and all the devotees of Lord Caitanya.
Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare
Let's start with the announcement. Ananta Sesa Prabhu wants to make an announcement.
An announcement by Ananta Sesa Prabhu: I want to thank all of those who have sent their Vyasa puja offerings. You will be happy to know that today also you can send the offerings. Today is the last day. You can visit www.lokanathswamiofferings.com to get an idea of how to write offerings. So many disciples are there who have not sent their offerings. Around 783 participants are there now. I request all the devotees to send their offerings to Sridhar Madhav Prabhu by the end of the day. I request Santarama Prabhu to share the contact number of Sridhar Madhav Prabhu in the chatbox. Around 300 initiated devotees are there in Nagpur, and also in Solapur and Pune. But the num-ber of offerings we have received, is not as per our expectations. Lockdown is going on and eve-ryone is in their respective homes. Try to write the offerings so that we can glorify Guru Mahara-ja in big numbers. Thank you very much. Hare Krishna.
Gurudev Uvaca: Srila Prabhupada ki jay!
50 years ago Srila Prabhupada returned to India along with his foreign disciples and organised Hare Krishna festivals. One such festival took place in Surat. It can be said that among all such festivals, the most successful festival was organised in Surat. The devotees of Surat are also lis-tening to this. The disciples of Srila Prabhupada did Nagar sankirtana there. They were wel-comed by the showering of flowers and flowers were offered to them. The whole city was buzz-ing with the Hare Krishna maha-mantra. The schools closed so that all the students could partici-pate in Nagar Sankirtana. A lecture series of Prabhupada was also organized. ISKCON Surat is celebrating the 50th Anniversary of that Festival. Srila Prabhupada ki Jay! The devotees of Surat are remembering Srila Prabhupada by organizing a Kirtana mela. In the memory of that Hare Krishna Festival, Nagar Sankirtan, and the lectures of Srila Prabhupada, ISKCON Surat is cele-brating this festival. Kirtana is happening for many days. I was also requested to do kirtana. For the pleasure of Srila Prabhupada and to glorify Him, I will be doing kirtana from 5:00 to 6:00 pm. This is also one more announcement. If you are free, you can join us. At that time Nagar Sankirtan was organised, but now online kirtana mela is happening. Now ISKCON Surat is car-rying forward that Kirtana. If you cannot join at that time then do join this time. Gaur Prema-nande!
Devotees from 820 locations are hearing this. Welcome to you all. Now let's have some questions and answers. Your questions and our answers.
Question 1: Lord Sri Ram is Maryada Purushottam. Lord Sri Krishna is Purna Purushottam. Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu is Prema Purushottam. Is Prema higher than rasa? Is there any specific comments on Caitanya Mahaprabhu's place being higher than Krsna?
Gurudev Uvaca: No, it is not higher. Rasa is prema and prema is rasa. They are just two different names. It can be Madhurya Rasa or Madhurya Prema or Sakhya Rasa or Sakhya Prema or Sakhya bhava or Sakhya bhakti. Prema is rasa.
raso vai sah rasam hy evayam labdhvanandi bhavati
Translation: “He is that rasa (ananda or bliss). One who drinks that rasa becomes full of bliss.”(Taittiriya Upaniṣad 2.7)
Krsna is rasamoya or premamoya and same with Caitanya Mahaprabhu. Is Caitanya Mahaprabhu higher or greater than Krsna?
sri-krsna-caitanya radha-krsna nahe anya
Sri Krsna Caitanya is Radha Krsna. They are not two. They are one. One is Gaura sundar and another is Shyamsundar. They are both beautiful. One is of Golden complexion and the other is blackish. Both of Them are residents of two different parts of Goloka and spend Their time there. They keep on doing Their pastimes. One is in Vrindavan and the other in Mayapur. Maya-pur is also Goloka and Vrindavan is also Goloka. Vrindavan is called Madhurya Dhama and Ma-yapur is called Audarya Dhama. Some difference is there. Sri Krsna plays Madhurya Lila in Vrindavan. Caitanya Mahaprabhu relishes the same pastimes in the Mayapur part of Goloka.
namo maha-vadanyaya krishna-prema-pradaya te krishnaya krishna-chaitanya- namne gaura-tvishe namah
Translation: O most munificent incarnation! You are Krsna Himself appearing as Sri Krsna Caitanya Ma-haprabhu. You have assumed the golden color of Srimati Radharani, and You are widely distrib-uting pure love of Krsna. We offer our respectful obeisances unto You.
Hence he becomes maha-vadanyaya.
skande avanti-khande sri-vyasoktau – gita sugita kartavya kim anyaih sastra-vistaraih ya svayam padma-nabhasya mukha-padmad vinihsrta
Translation: In the Skanda-purana, Srila Vyasadeva says, “Memorize and sing sweetly this Bhagavad-gita. What need is there to elaborate on other scriptures? She has descended directly from the lotus mouth of Lord Padmanabha.”[Hari-bhakti-vilasa ]
Bhagavad Gita was spoken from the mouth of the Lord. We celebrate Gita Jayanti. Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu composed the 8 slokas of Sri Siksastakam.
ceto-darpana-marjanam bhava-maha--davagni-nirvapanam
Lord Krsna contributed the Bhagavad-Gita which has 700 slokas. But Sri Krsna Caitanya Ma-haprabhu has only contributed the 8 slokas of Siksastakam. Both of them are Kalpa Avatars. We are talking about bheda-bheda tattva.They are one and different. Spiritually they are different. This doesn't make Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu greater than Krsna. He is different. They are Kalpa avataras, but not Yuga avataras. sambhavami yuge yuge. We can say that both of Them are not an avatar. They are avatari. Krsna appears once in a day of Brahma in Dvapara and next to that Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu appears in Kalyuga. It's not that Krsna is not merciful.
he krsna karuna-sindhu dina-bandho jagat-pate gopesa gopika-kanta radha-kanta namo 'stu te
What kind of Lord is that who is not merciful? But Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu who is Krsna displayed His mercy and showed His mercy to the fallen souls of this Kaliyuga. In Dvapa-ra Yuga, people are not so fallen. In Kaliyuga all become sudra. In Satyayuga brahmans were prominent and in Tretayuga Ksatriyas were prominent. In Dvapara Vaisya were a higher class.
kalau sudra sambhavah
Sudra means fallen. To deliver the fallen people of Kaliyuga Sri Caitanya Mahaprabhu ap-peared. Both of Them have established dharma.
paritrāṇāya sādhūnāṁ vināśhāya cha duṣhkṛitām dharma-sansthāpanārthāya sambhavāmi yuge yuge
Translation: To protect the righteous, to annihilate the wicked, and to reestablish the principles of dharma I appear on this earth, age after age. (BG 4.8)
What is dharma? Prabhupada says Dharma means the laws of the Lord. In Bhagavad - Gita there are laws. There are rules and regulations, as well as do’s and don’ts.The first word of Bha-gavad-Gita is dharma and the last word is mama. The last word of the 18th chapter, verse 78 is mama. “Mama dharma” means “the dharma which I have given.” Krsna gave dharma and Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu established Harinama Sankirtana.
kali-kalera dharma—hari-nama-sankirtana
The dharma of Kaliyuga is harinama sankirtana and Caitanya Mahaprabhu established it. It has been proven from His bhava and thoughts that Caitanya Mahaprabhu is thinking about the deliv-erance of the people of Kaliyuga. Hence He says...
pṛthivīte āche yata nagarādi grāma sarvatra pracāra haibe mora nāma
Translation: "In every town and village, the chanting of My name will be heard."(CC Madhya Lila 25.264)
By saying this his maha-vadanyata is proved.
namo maha-vadanyaya krishna-prema-pradaya te krishnaya krishna-chaitanya- namne gaura-tvishe namah
In the pranam mantra of Caitanya Mahaprabhu, we address Him as mahavadanyaya. We offer obeisances to Krsna whose name is Krsna Caitanya. You can think about this. I said a few things on this question. I said he is not higher, but different. Just like Srila Prabhupada said that there is no such thing as superior or inferior between man and woman, but they're different. In the same way, Sri Krsna and Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu are not higher and lower, but they are differ-ent. This acintya-bheda-bheda tattva is good and it applies in many instances. In the jiva and the Lord also there is bheda-bheda. You can think about this. More discussion could have taken place but you can think about how Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu is different. Think more and harder. This is your homework. This question-answer session is happening like a lecture. I heard that Bhakti Caitanya Swami Maharaja was doing a Question & Answer session and in half an hour he answered 20 questions.
Question 2: Can we get information about the 4 sampradayas? Gurudev Uvaca: One time we have given this information about the 4 sampradayas. You can get more information. Purushottam Swami Maharaja has given a seminar in Vrindavan and has written a book on it. You can get that book. If you write to me then I can forward the soft copy to you.
Question 3: What is the importance of the 4 sampradayas? Gurudev Uvaca: They are so important.
māyā-mugdha jīvera nāhi svataḥ kṛṣṇa-jñāna jīvere kṛpāya kailā kṛṣṇa veda-purāṇa
Translation: “The conditioned soul cannot revive his Kṛṣṇa consciousness by his own effort. But out of cause-less mercy, Lord Kṛṣṇa compiled the Vedic literature and its supplements, the Purāṇas.[ CC Madhya 20.122]
To free the conditioned jivas from Maya, this world has been created. When the jiva become ba-hir mukha and tries to enjoy, then he gets the facility so that he can become bhogi. This is one purpose for which the world has been created. Another purpose is to free the jivas by making them devotees, making them sanmukh from vimukh. For that the Lord created scriptures. For teaching scriptures, teachers are needed. The Lord created these 4 sampradayas. The 4 acaryas of these sampradayas become the teachers.
acaryavan purusho veda - The person will become wise and learned when he follows in the foot-steps of the acarya. These 4 sampradayas are given by the Lord which is called the school of thought.
sampradaya-vihina ye mantras te nisphala matah
In Padma Purana, it is said that we have to learn within the sampradaya. Without sampradaya, the mantra will be viphala.
evaṁ paramparā-prāptam imaṁ rājarṣayo viduḥ sa kāleneha mahatā yogo naṣṭaḥ parantapa
Translation: This supreme science was thus received through the chain of disciplic succession, and the saintly kings understood it in that way. But in course of time the succession was broken, and therefore the science as it is appears to be lost.[ BG 4.2]
Sampradaya is very important.This arrangement has been made by the Lord and we need to take full advantage of this. There are four sampradayas. By Caitanya Mahaprabhu's arrangement, an-other sampradaya was created as it was an emergency. Gaudiya Parampara ki Jay.
anarpita-carīṁ cirāt karuṇayāvatīrṇaḥ kalau samarpayitum unnatojjvala-rasāṁ sva-bhakti-śriyam hariḥ puraṭa-sundara-dyuti-kadamba-sandīpitaḥ sadā hṛdaya-kandare sphuratu vaḥ śacī-nandanaḥ
There were many previous incarnations of the Supreme Personality of Godhead, but none were so generous, kind and magnanimous as Śrī Caitanya Mahāprabhu, for He distributed the most confidential aspect of devotional service, namely, the conjugal love of Rādhā and Kṛṣṇa. There-fore Śrī Rūpa Gosvāmī Prabhupāda desires that Śrī Caitanya Mahāprabhu live perpetually in the hearts of all devotees, for thus they can understand and relish the loving affairs of Śrīmatī Rādhārāṇī and Kṛṣṇa. [Śrīla Rūpa Gosvāmī ]
Caitanya Mahaprabhu appeared to give the topmost rasa which was not given earlier within these 4 sampradayas. Caitanya Mahaprabhu wanted to give this Prema Rasa. What kind of Prema? One is mixed with Aiswarya and another is Vishrambha. So to give vishrambha madhurya sakhya, vatsalya this sampradaya was established by Caitanya Mahaprabhu.
Question 4: Please explain in detail about the Grantha Bhagavat? Gurudev Uvaca: For that we have to do a Bhagavata Katha, but in that also the whole Katha won't cover it. For this, we need to read Srimad Bhagavatam daily. Then you will become a Gaudiya Vaisnava. Caitanya Mahaprabhu also heard Bhagavatam. You are asking me detailS. Read the books of Bhagavatam. You also want to know about the person Bhagavat and the 12 Mahajans.
There are two types of Bhagavat, one is grantha Bhagavat and another is person Bhagavat. Srila Prabhupada says that Grantha Bhagavat is the Lord Himself and the person Bhagavat is the bhakta, a high-class devotee. The person Bhagavat always thinks about the Lord. He is always Krishna consciousness. The person Bhagavat is one who has understood the essence of Bha-gavatam. Srila Prabhupada is also a Bhagavat. There are 12 Maha-bhagvatas.
vayambhur naradah sambhuh kumarah kapilo manuh prahlado janako bhismo balir vaiyasakir vayam
Yamaraja said that the Lord Himself gives dharma.
dharmaṁ tu sākṣād bhagavat-praṇītaṁ na vai vidur ṛṣayo nāpi devāḥ na siddha-mukhyā asurā manuṣyāḥ kuto nu vidyādhara-cāraṇādayaḥ
Translation: Real religious principles are enacted by the Supreme Personality of Godhead. Although fully sit-uated in the mode of goodness, even the great ṛṣis who occupy the topmost planets cannot ascer-tain the real religious principles, nor can the demigods or the leaders of Siddhaloka, to say noth-ing of the asuras, ordinary human beings, Vidyādharas and Cāraṇas.[ SB 6.3.19]
One who understands dharma given in form of Gita and Bhagavatam is Vyakti [Person] Bha-gavat. By serving both, we can serve Bhagavatam.