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*जप चर्चा* *11 अप्रैल 2021,* *पंढरपुर धाम* हरे कृष्ण, 778 स्थानों से भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं। आप सभी का स्वागत है। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* इस महामंत्र का जप करने में आपका स्वागत है। यह प्रसन्नता का विषय है कि आप जप कर रहे हो और आप करते रहो। *हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम् । कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ॥२१ ॥* (चैतन्य चरित्रामृत 17.21) *अनुवाद* – इस कलियुग में आत्म - साक्षात्कार के लिए भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन , भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन , भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है , अन्य कोई उपाय नहीं है , अन्य कोई उपाय नहीं है । *हरेर्नामैव केवलम्* जो कहा है वह सत्य ही है। उसके अलावा और कोई तरीका नहीं है। दूसरा उपाय नहीं है। वैक्सीन कोई उपाय नहीं है। ऐसा भी हम संबंध जोड़ सकते हैं। कोई दूसरा उपाय नहीं है। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* *इति षोडशकं नाम्नां कलिकल्मष* *नाशनम्।* *नातः परतरोपाय सर्व वेदेषु दृश्यते ।।* (कलि संतरण उपनिषद) ऐसा ब्रह्मा ने कहा है। ब्रह्मा का पद जानते हो?हरि हरि। ब्रह्मा आचार्य हैं। *आचार्यवान पुरुषों वेद* जब हम हमारे जीवन में आचार्य को स्वीकार करते हैं , फिर हम भी ज्ञानवान बनते हैं। हमको फिर ज्ञान होता है, हम ज्ञानवान बनते हैं यह बात भी उन्होंने नारद जी से कही थी। कलि संकरण उपनिषद की बात है , क्या उपाय है? क्या उपाय है? ऐसा नारद जी पूछ रहे थे। जब कलयुग आ धमका, नाराद जी भ्रमित हो गए। *कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान् गुण: ।* *कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्ग: परं व्रजेत् ॥ ५१ ॥* (श्रीमद् भागवत 12.3.51) *कलेर्दोषनिधे राजन्न* कलि के दोष ही दोष, इतने सारे दोष! व्यक्ति का दिमाग चकरा जाता है। हरि हरि। नारद मुनि भी जानना चाहते थे कि अब क्या होगा? ऐसी परिस्थिति में क्या होगा? लोग इतना सारा पापाचार, भ्रष्टाचार, वैभिचार, अनाचार में व्यस्त हैं। अब क्या होगा? इन लोगों को कैसे बचाया जाए? आपके मन में भी ऐसे विचार आते होंगे, आने भी चाहिए। नारद मुनि के मन में दया उत्पन्न हुई और होती ही है, नहीं तो वैष्णव कैसे हुए? अगर आप स्वयं को वैष्णव कहते हो और दया नहीं है, तो कैसे वैष्णव? नाम के वैष्णव हुए, तथाकथित वैष्णव हुए। जिनमें कारुण्य नहीं है। हरि हरि। नारद मुनि ने जो पूछा तब ब्रह्मा ने उत्तर दिया और कहा। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।* ब्रह्मा उत्तर दे रहे हैं। ब्रह्मा है कि नहीं? हमारी शुरुआत यहां से होती है। ब्रह्मलोक है, ब्रह्मा है। हरि हरि। वह हमारे अचार्य हैं। उन्होंने कहा *इति षोडशकं नाम्नां कलिकल्मष* *नाशनम्।* कलि के जितने सारे कल्मष है, उसका बस एक ही उपाय है। *षोडशकं नाम्नां* का मतलब 16 है । 16 नाम वाला जो मंत्र है, यही उपाय है। *कलिसंतरणोपनिषद् ५-६ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥५ ॥ इति षोडशकं नाम्नां कलिकल्मषनाशनं । नातः परतरोपायः सर्व वेदेषु दृश्यते ॥६ ॥* सोलह नाम - हरे कृष्ण , हरे कृष्ण , कृष्ण कृष्ण , हरे हरे । हरे राम , हरे राम , राम राम , हरे हरे विशेष रूप से कलि के कल्मषों का नाश करने वाले हैं । कलि के दोषों से मुक्ति पाने के लिए इन सोलह नामों के कीर्तन के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं है । समस्त वैदिक साहित्य में खोजने के पश्चात इस युग के लिए , हरे कृष्ण के कीर्तन से अधिक उत्कृष्ट कोई अन्य धर्म - विधि नहीं मिलेगी । ( श्री ब्रह्मा श्री नारद को उपदेश देते हैं । ) सभी शास्त्रों में, पुराणों में, इतिहासो में और कोई उपाय नहीं है। ऐसा ब्रह्मा ने कहा। ब्रह्मा जो कहते हैं सच ही कहते हैं , सच के अलावा ब्रह्मा और कुछ नहीं कहते हैं। ब्रह्मा जी की ऐसी पहचान भी है। मुझे और कुछ कहना था। हरि हरि। कोरोना वायरस आ गया। अद्वैत आचार्य आ गया। आता है, जाता है, पुनः आता है, पुनः जाता है। कोरोना आता है, फिर और कुछ आता है, फिर और कुछ आता है, आता जाता रहता है। कोरोना अब कहीं अवतारों में प्रकट हो रहा है। पिछले साल का कोरोना अब नहीं रहा। कई सारे विभिन्न लक्षणों के साथ, मैंने कुछ सुना 90 प्रकार के कोरोना वायरस प्रकट हो चुके हैं या अवतार ले चुके हैं। इसी से लोग चिंतित भी है। हमने जो वैक्सीन लिया हो, कोरोना वायरस 19 का था, लेकिन अब तो यह वायरस अलग है। हरि हरि। प्रिवेंशन इस बैटर देन क्यूर (इलाज से बेहतर रोकथाम है) अंग्रेजी में कहते हैं। अंग्रेज कहते हैं , क्या कहते हैं? इलाज से बेहतर रोकथाम है, मतलब बीमार हो जाओ फिर कुछ उपाय ढूंढो, कुछ वैक्सीन ढूंढो, औषधि ढूंढो और फिर ठीक हो जाओ। इससे क्या अच्छा है? बीमार ही नहीं होना अच्छा है। है कि नहीं? हमने ठीक कहा कि नहीं? बीमार नहीं होना ही अच्छा है या बीमारी टालना ही अच्छा है। बीमार होकर हम अस्पताल में भर्ती हो जाए। उससे अच्छा है, हम स्वस्थ रहें। हरि हरि। अब अस्पतालों में पलंग नहीं मिल रहे हैं। पहले सिनेमाघर हाउसफुल होते थे। बाहर बोर्ड लगाते थे सिनेमाघर हाउसफुल। अब अस्पताल हाउसफुल होने लगे हैं और लोग कतार में खड़े रहते हैं। भारत में कहो, मुंबई में कहो या नागपुर में कहो या ब्राजील में कहो, अलग-अलग देशों में ऐसा हाल है। हरि हरि। हमारा यही हाल है। हम सभी का मिलकर ऐसा हाल है, ऐसी परिस्थिति है। इतनी सारी समस्या है। कहा जाता है या हमने कह तो दिया – इलाज से बेहतर रोकथाम है। बीमार होकर उपाय ढूंढो, उससे अच्छा है कि बीमार नहीं होना। लेकिन बीमार नहीं होना हमारे हाथ में नहीं है। यह दूसरी समस्या है। बीमार नहीं होना हम टाल सकते हैं, मास्क पहनकर, सोशल डिस्टेंसिंग रखकर लेकिन यह वायरस इतना चालाक है और उसको हम अदृश्य शत्रु कहते हैं। शत्रु जब सामने हो तो निशाना बना सकते हो लेकिन यह शत्रु भी है और अदृश्य रहता है और फिर हमला करता है। हरि हरि। ठीक है । अगर इस बीमारी से बच गए लेकिन दूसरी बीमारी तो पकड़ने वाली ही है। आज नहीं तो कल सही। कल करे सो आज कर। आज नहीं तो कल बीमारी आएगी और कल भी नहीं आई तो फिर परसों आएगी लेकिन आने वाली है। कोरोना है या और कोई है , क्योंकि नियम क्या है ? या हकीकत क्या है? *शरीरम् व्याधि मंदिरम्* शरीरम् क्या है? व्याधि का मंदिर शरीर है। इस शरीर में व्याधि नामक विग्रह की स्थापना करके ही हमको यह शरीर मिलता है। ले लो यह शरीर ले लो। इसके साथ टैग सलंगन है या संपूर्ण पैकेज है। शरीर के साथ क्या है? व्याधि होगी ही। शरीर है तो व्याधि है जैसे मंदिर है तो विग्रह है या मूर्ति है। इस शरीर में व्याधि नामक मूर्ति की स्थापना कर के हमको शरीर मिलता है। इस शरीर में व्याधि की, रोग की, बीमारी की प्राण प्रतिष्ठा होती है और फिर मजा चख लो । हम उल्लू के पट्ठे है। हमको माया ठगाती है। हरि हरि। हम ऐसे शरीर का सेल्फी लेते रहते हैं और आईने में हम अपने सौंदर्य को निहारते हैं और क्या-क्या करते हैं। ऐसी देहात्मबुद्धि का क्या कहना? इस समय जिस मे हम फंसे हैं और पूरा संसार फंसा हुआ है , यह कोरोना वायरस भी माया ही है। *दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया |* *मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते || १४ ||* (श्रीमद्भगवद्गीता 7.14) भावार्थ – प्रकृति के तीन गुणों वाली इस मेरी दैवी शक्ति को पार कर पाना कठिन है | किन्तु जो मेरे शरणागत हो जाते हैं, वे सरलता से इसे पार कर जाते हैं | कृष्ण ने गीता में कहा है। इसका अनुभव सारा संसार कर रहा है , हमें मानना पड़ेगा। कोरोना वायरस सारे संसार की महा शक्तियों को झुका रहा है। कोरोना वायरस माया का एक प्रदर्शन है। *मम माया दुरत्यया* माया का उल्लंघन करना कठिन है। हरि हरि। यह कहते कहते मुझे यह भी कहना था कि इलाज से बेहतर रोकथाम है। अब तो यह शरीर मिल चुका है। मिल चुका है कि नहीं? शरीर तो है अभी। इस शरीर के साथ कुछ बीमारियां होने वाली ही है। आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, नहीं तो नरसो। जब जवान थे तब बीमारी नहीं हुई, तो बीमारी बुढ़ापे में होगी , बीमारी पीछा नहीं छोड़ेगी। उसे टालने का, उससे बचने का, हर व्यक्ति को प्रयास करना चाहिए। इसीलिए सारी मेडिकल व्यवस्था है, डॉक्टर है, अस्पताल है, चिकित्सा महाविद्यालय है, मेडिकल शॉप है, दवा उद्योग है , कितनी सारी व्यवस्था है। इस बीमारी के संबंध में कितनी सारी व्यवस्था है । यह सारी व्यवस्था को हमने एक रक्षात्मक प्रतिक्रिया बनाया है । जन्म मृत्यु जरा व्याधि एक बात है और आहार निद्रा भय मैथुन यह दूसरी बात है इसमें जो भय है , भय का अर्थ है रक्षा करना । और जन्म मृत्यु जरा व्याधि में से जो व्याधि है उस व्याधि से बचने के लिए रक्षण के लिए मनुष्य जातियों ने रक्षात्मक प्रतिक्रिया तैयार करके रखी हुई है। इस प्रकार आप भय को समझ सकते हो। हम सब इन चार कामों में , आहार , निद्रा , भय , मैथुन में व्यस्त है। यह मुख्य कार्य है। जब हम भयभीत होते है तो उस भय से बचने के लिए रक्षा करते है। जैसे रक्षा मंत्रालय भी होता है। यह एक प्रकार का रक्षण है ऐसे ही अनेक प्रकार है। बीमारी से बचने के लिए कितनी सारी व्यवस्था इस संसार में है इसको रक्षण कहा गया है। बीमारी से बचने के लिए कितना सारा दिमाग , अर्थ व्यवस्था , मनुष्य समाज कितना प्रयास करता है । इस समय कोरोना वायरस से बचने के लिए कितने सारे रक्षात्मक प्रतिक्रिया कर रहे है। इस समय शरीर प्रपात हुआ है तो रक्षात्मक प्रतिक्रिया बनाने की आवश्यकता है। ऐसी आवश्यकता सतयुग , त्रेता और द्वापर युग में नहीं थी पर समय के साथ यह बढ़ती है। स्वयं को बचाए, इस शरीर की रक्षा करो जब तक यह शरीर है लेकिन दूसरी बात यह है की पुनः अगर हमने जन्म लिया तो फिर क्या होगा? *शरीर्म व्याधि मंदिरम।* शरीर कैसा होगा ? व्याधियों का मंदिर होगा । भगवान कोई पक्षपात नहीं करते। कितनी सारी योनियां है। सभी में जन्म मृत्यु जरा व्याधि है। इसमें कोई अफवा नही है। प्रभुपाद लिखते है की एक छोटे से कीटाणु से लेकर जितनी भी योनियां है उन सभी योनियां में जो भी आपका शरीर होगा । अगर शरीर लिया है तो उस शरीर में मरना ही होगा। जन्म लिया है तो फिर कुछ समय के लिए कुमार आयु रहेगी , जैसे कुमार चींटी है कुमारी चींटी है, वह सदा के लिए कुमार नहीं होने वाली है , बूढ़ी भी होगी , ऐसे ही हाथी भी बूढ़े होने वाले है। व्यक्ति बूढ़ा होता है , कभी सोचा है आपने? हर योनि में बीमारी है , रोग है । हमने पुनः जन्म लिया । बीमार होने से बचने की बात चल रही है , तो क्या करना होगा? आप कल्पना कर सकते हो की इलाज से बेहतर बचाव है के बारे में आप क्या कहोगे? बहुत कुछ मेने कह दिया अब आपकी बारी है। क्या बचाव करना चाहिए? किस बात से बचना चाहिए? पुनः जन्म लेने से बचो , अब और जन्म नही। जन्म लिया है तो मरना तो होगा ही , यह नियम है। जन्म लिया है तो बूढ़ा होना पड़ेगा। इलाज से बेहतर बचाव है। *पुनः जन्म न विध्यते।* अगर ऐसा हम कर सकते है। अब और जन्म नही, मृत्यु नही, बुढ़ापा नही, कोरोना नही , सिर्फ करुणा को ही प्राप्त करेंगे। इसी को ही श्रेयस और प्रेयस कहा है। कुछ लोग प्रेयस में कहते है की अब इससे कैसे बचना चाहिए। उनके जीवन में प्रोएक्टिव नही होते है सिर्फ रिएक्टिव होते है। जब समस्या कढ़ी होती है तभी रिएक्ट करते है और फिर भागम भाग करते है। इस समस्या से लड़ना चाहिए । यह प्रेयस कहलाता है , कुछ क्षण के अंदर सोचते है। लेकिन जो श्रेयस वाले है , अर्जुन ने कहा भगवदगीता के पहले अध्याय में *न श्रेयस अनुपाश्यमि ।* प्रेयस की बाते चल रही है इसमें श्रेयस कहा है। श्रेयस क्या है ? जिससे रक्षण हो सके , भविष्य में होने वाले जन्म का, पुनः जन्म न लेना पड़े। ऐसा विचार हमारे जीवन का हो , ऐसी दूर दृष्टि हमारे जीवन की हो और इसके अनुसार फिर योजना बनानी होगी, उस प्रकार का तत्व ज्ञान कहो, या फिर उस प्रकार का संग कहो, उस प्रकार के मंत्र कहो और हमारा मंत्र है , *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। *जीव जागो।* शरीर सोया है , शरीर को जगाओ। वास्तव में आत्माओं को जगाना है क्योंकि लोगो के शरीर तो जग जाते है पर आत्मा सोती रहती है। दिन में भी आत्मा सोती है इसलिए आत्मा को जगाना है। केवल प्रेयस में ही अपना समय बिताना नही है , कुछ कुछ प्रेयस की आवश्कता होती है, परंतु आत्मा का क्या? आत्मा के लिए हम क्या कर रहे है? आत्मा के दुख, कष्ट को कौन जानता है? और क्या क्या उपाय है? उपाय तो है। कृष्ण ने भगवद गीता में कहा है *जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः ।* *त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ॥* *अनुवाद:* हे अर्जुन ! मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं- इस प्रकार जो तत्त्वसे जान लेता है, वह शरीर छोडनेके पश्चात् जन्मको प्राप्त नहीं होता, किंतु मुझे ही प्राप्त होता है । *त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन।* गीता भी पढ़ो । सुन रहे हो लेकिन आपको सुनी और पढ़ी हुई बातो को ध्यान में भी रखना होगा , उसका हृदयांदम करना होगा औरो के साथ बाटना होगा , यह सत्य है। जैसे ब्रह्मा ने वो बात नारद को कही। जो भ्रमण करके सर्व शक्ति का प्रचार करते है उसी प्रकार हम उनके भक्त है। श्रील प्रभुपाद की जय। श्रील प्रभुपाद ने सत्य का प्रचार किया और यह प्रचार आप तक पोहोंचाना है। आप तक यह संदेश क्यों पोहोंचाना है ? ताकि आप इस संदेश को औरों तक पोहोंचा सके। प्रचार प्रसार करना ही परम कल्याण है । इन बातो में , सत्य में देश का , मानव जाति का कल्याण है । दुनिया संक्रमित है जैसे अर्जुन कुछ समय के लिए संक्रमित हुए थे और यह सत्य को जब सुना , भगवान उवाच जब हुआ, तब अर्जुन ने कहा अब मुझे कोई संदेह नहीं रहा। अब मैं मुक्त हो गया। आपके आदेश का पालन करने के लिए अब मैं तैयार हूं। हमको भी उसी परंपरा में सत्य का साक्षात्कार करना है और फिर उसका प्रचार करना है। जैसे पूरी दुनिया कोरोना पीड़ित है , यदि आप किसी प्रकार की सहायता कर सकते हो तो जरूर करो। कुछ क्षण के लिए कल्याण प्रेयस कहलाता है पर जो मानव का कल्याण सदा के लिए हो वो श्रेयस कहलाता है। हमे कृष्ण भावना का प्रचार प्रसार करना होगा। कृष्ण के विचारो का, सत्य तथ्य का प्रचार करना होगा और इसी में हम सभी का श्रेयस है। सदा के लिए लाभ है। *निताई गौर प्रेमानंदे हरी हरी बोल।*

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