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जप चर्चा 12 दिसंबर 2020 हरे कृष्ण! आज इस कॉन्फ्रेंस में 865 स्थानों से प्रतिभागी सम्मिलित हैं। आपका स्वागत है। हम केवल आपको याद दिलवा रहे हैं कि कल उत्पन्ना एकादशी थी और आज द्वादशी है। आपको पारण का समय याद है ना? आप जपा टॉक के साथ व्यस्त हो जाओगे। पारण का समय जप चर्चा के बीच में है अर्थात पारण का समय ६.५० से लेकर ७.०२ मिनट के बीच का है।आपको अन्नप्रसाद ग्रहण करना है। आप इस बात को समझते हो? आप इसको फॉलो( अनुसरण) करते हो या नहीं? एकादशी करना जितना महत्वपूर्ण है वैसे ही पारण के समय एकादशी को तोड़ना(भी कहते है) भी महत्वपूर्ण है। आप उपवास कर रहे हो, इसलिए आप तैयारी करके रहना, अन्न ग्रहण करना होगा। घड़ी की और देखना होगा। ६.५०से ७.०२ के मध्य में पारण करना है। हर एकादशी को ऐसा ही होता है।आज थोड़ा कम समय है। हर द्वादशी को व्रत खोलने अथवा पारण के लिए कभी कभी २-३ घंटे की भी अवधि होती है। हरि! हरि! एक पारण होता है और दूसरा पारायण होता है। रामायण का पारायण होता है। कथा का पारायण होता है। एक परायण भी होता है। भगवान भगवतगीता में कहते हैं चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिताः। कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्र्चिताः।। आशापाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः। ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान् ।। ( श्री मद् भगवतगीता १६.११-१२) अनुवाद:-उनका विश्र्वास है कि इन्द्रियों की तुष्टि ही मानव सभ्यता की मूल आवश्यकता है | इस प्रकार मरणकाल तक उनको अपार चिन्ता होती रहती है | वे लाखों इच्छाओं के जाल में बँधकर तथा काम और क्रोध में लीन होकर इन्द्रियतृप्ति के लिए अवैध ढंग से धनसंग्रह करते हैं। कलियुग में लोग कामक्रोधपरायणाः हैं। काम और क्रोध में बड़े परायण होते हैं अर्थात बड़े कुशल होते हैं। वैसे हमें भक्ति परायण होना चाहिए। यह सही है, यह अच्छा है। यह अलग अलग जो शब्द हैं, हमें इसके भेद, अर्थ अथवा इसके उच्चारण को भी सीखना, समझना चाहिए। एक है पारण। पदमावती, इसे समझ रही हो? तुम अनुवाद पढ़ रही हो? क्या हमारे अनुवादक तैयार हैं? कृपा इस हिंदी जप चर्चा के अंग्रेजी अनुवाद को पढ़ो। ठीक है। एक शब्द पारण हैं, दूसरा है पारायण, तीसरा परायण। भ्रमित मत होइए। ऐसे अन्य कई शब्द हो सकते हैं। ये तीन तो हैं ही। कल एकादशी थी, दो सप्ताह के बाद फिर एकादशी आएगी वैसे हर दो सप्ताह के बाद एकादशी आती रहती है। कल की उत्पन्ना एकादशी हल्की थी।अगली एकादशी मोक्षदा एकादशी होगी, हम मोक्षदा एकादशी को गीता जयंती भी कहते हैं या गीता जयंती के रुप में मनाते हैं। जयंती मतलब जन्म। उस दिन गीता का जन्म हुआ था अर्थात उस दिन गीता का जन्म दिवस है। जैसे स्वयं श्री कृष्ण भगवान् का जन्म दिवस होता है अर्थात कृष्णजन्माष्टमी होती है। वैसे गीता का भी जन्म दिवस होता है। उसे गीता जयंती कहते हैं। *गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः। या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्मादि्वनिः सृता।।* ( गीता महात्मय ४) गीता को जन्म देने वाले स्वयं श्रीकृष्ण ही हैं। यह गीता, कृष्ण से जन्मी है अथवा यह गीता कृष्ण से ही उत्पन्न हुई है। गीता महात्मय में कहा है कि 'या' गीता अर्थात जो गीता अथवा या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्मादि्वनिः सृता .. बातें तो सरल है। गीता महात्मय कहता है कि या स्वयं पद्मनाभस्य... स्वयं कौन? पद्मनाभ। गीता की भाषा अथवा शैली ऐसी है कि सीधी बात नहीं होती अथवा कृष्ण का सीधा नाम नहीं लिया जाता। लिया जाता भी है और अधिकतर नहीं भी लिया जाता। पद्मनाभ भी भगवान का ही नाम है अर्थात कृष्ण का ही नाम है।'या स्वयं पद्मनाभस्य'- जो भगवतगीता स्वयं पद्मनाभ के कमल सदृश मुख से निकली है, ऐसे उनकी नाभि को भी पद्मनाभ कहा जाता है। नाभि भी कमल सदृश है, उनका मुख भी कमल सदृश है। उनके मुख से जो वचन निकले अर्थात श्री भगवान उवाच- वह भगवतगीता है। पद्मनाभ श्री कृष्ण, कुरुक्षेत्र में वे पार्थसारथी बने थे अर्थात पार्थ के सारथी बने थे। इस प्रकार भगवान के कई सारे हजारों लाखों नाम हैं। पार्थसारथी भी उनका एक नाम हुआ। भगवान, पार्थ के सारथी बन कर कुरुक्षेत्र के मैदान में रथ को हांकते हुए पहुंचे थे। ततः श्र्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ | माधवः पाण्डवश्र्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः।। ( श्री मद् भगवतगीता १.१४) अनुवाद:-दूसरी ओर से श्र्वेत घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले विशाल रथ पर आसीन कृष्ण तथा अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाये। कल हम बता चुके हैं कि भगवतगीता महाभारत में है। कहा जाए कि यह महाभारत में लिखा है या भगवतगीता के प्रथम अध्याय में लिखा है। ततः श्र्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ पारण का समय हो चुका है। मैं आपको दिखा कर सिखा भी रहा हूँ। ऐसे प्रसाद लेना होता है। ऐसे पारण को तोड़ना होता है अथवा पारण का पालन करना होता है। वहाँ गीता और महाभारत में लिखा है। “ततः श्र्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ" वैसे पार्थ और पार्थसारथी दोनों रथ में विराजमान है। पार्थ को पांडव कहा है एवं पार्थसारथी को माधव कहा है। माधवः पाण्डवश्र्चैव - पांडव मतलब अर्जुन और माधव मतलब श्रीकृष्ण है। ये दोनों "महति स्यन्दने स्थितौ" ये दोनों ही स्यन्दने अर्थात रथ में विराजमान है। यह बहुत ही महान् अथवा विशेष रथ है अथवा बड़ा ही सुंदर रथ है। इस रथ को श्वेत वर्ण के हय अर्थात घोड़े जब खींच रहे हैं। कैसे घोड़े हैं? सफेद वर्ण के हैं। हयै बहुवचन में कहा है। सफ़ेद वर्ण के घोड़े इस रथ को खींच रहे हैं। इस रथ में पांडव (अर्जुन) और माधव ( श्रीकृष्ण) दोनों विराजमान हैं। तत्पश्चात उन्होंने "दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः" उन्होंने दिव्य शंख ध्वनि की। एक कृष्ण का शंख है और एक अर्जुन का शंख है। दोनों ने अपने अपने शंखों को बजाया। पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः| पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः || ( श्री मद् भगवतगीता १.१५) अनुवाद:- भगवान् कृष्ण ने अपना पाञ्चजन्य शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त शंख तथा अतिभोजी एवं अतिमानवीय कार्य करने वाले भीम ने पौण्ड्र नामक शंख बजाया। अर्जुन ने जिस शंख को बजाया, उस शंख का नाम देवदत्त है।'देवदत्तं धनञ्जयः', यहाँ अर्जुन कह सकते थे, लेकिन अर्जुन नहीं कहा अपितु उन्हें धनञ्जयः कहा है। पहले अर्जुन को पांडव कहा था और अब धनञ्जयः कहा है। धनञ्जयः ने देवदत्त नामक शंख को बजाया। पाञ्चजन्यं हृषीकेश:- यहाँ श्रीकृष्ण को श्रीकृष्ण नहीं कहा अपितु हृषीकेश कहा है। हृषीकेश ने जिस शंख को बजाया , वह शंख पाञ्चजन्य था। याद रखिए कि कृष्ण के शंख का नाम पाञ्चजन्य है। तत्पश्चात अन्यों ने भी अपने अपने शंख बजाए। शंख बजाने के बाद कुछ और घटनाक्रम का वर्णन भगवतगीता के प्रथम अध्याय में है। एकादशी का दिन है, प्रात: काल का समय होना चाहिए। भगवान ने भगवतगीता कितने बजे सुनाई थी। उत्तर क्या होना चाहिए? हरि! हरि! यह सब उस दिन का वर्णन है। वैसे यह युद्ध का पहला दिन है, अठारह दिन युद्ध चलने वाला है। मोक्षदा एकादशी यह पहला दिन होगा। भगवान स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्मादि्वनिः सृता। भगवान अर्जुन को भगवतगीता सुना कर भ्रम से मुक्त करने वाले हैं और अर्जुन ने भी गीता का प्रवचन सुनने के उपरांत कहा कि “अर्जुन उवाच | नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत | स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव ।। ( श्रीमद् भगवतगीता १८.७३) अनुवाद:-अर्जुन ने कहा – हे कृष्ण, हे अच्युत! अब मेरा मोह दूर हो गया | आपके अनुग्रह से मुझे मेरी स्मरण शक्ति वापस मिल गई | अब मैं संशयरहित तथा दृढ़ हूँ और आपके आदेशानुसार कर्म करने के लिए उद्यत हूँ। मैं मोह से मुक्त हुआ। इसलिए इस एकादशी का नाम मोक्षदा एकादशी अर्थात मोक्ष देने वाली एकादशी हुआ। एकादशी ने किसको मोक्ष दिया? एकादशी ने उस दिन अर्जुन को मोक्ष दिया अथवा अर्जुन मुक्त हुए। भगवान ने भगवतगीता का उपदेश अर्जुन को सुनाया, तब अर्जुन मुक्त हो गए। यहाँ यह भी दर्शाया जा रहा है कि जो भी भगवतगीता का श्रवण करेगा, वह भी मुक्त होगा, वह भी भक्त होगा। हरि! हरि! इसलिए हमें भगवतगीता पढ़नी चाहिए। भगवान ने इसलिए भगवतगीता सुनाई ताकि गीता को सुनकर पढ़कर भविष्य की जनरेशन मुक्त अथवा भक्त हो सकें। हरि! हरि! मैं यह जो कह रहा हूँ और कहता ही आ रहा हूँ कि यह गीता का महीना है। यह दिसम्बर का महीना, गीता का महीना है। यह गीता की महिमा भी है, इसी महीने में भगवान ने अर्जुन को गीता सुनाई थी। केवल अर्जुन को नहीं सुनाई अपितु आपको, मुझे अर्थात मेरे लिए भगवान् ने भगवतगीता सुनाई। वैसे भी १०-११ दिन बीत चुके हैं लेकिन अभी हमारे साथ 20 दिन बाकी हैं ही। वैसे यह भी हो सकता है कि आप प्रारंभ से ही 1st सितंबर से ही आप इस मूड़ में आ पहुंचे हो। यह महीना, समय, सीजन भगवतगीता के अध्ययन का है। भगवतगीता को सुनने और सुनाने का, पढ़ने एवं भगवतगीता के वितरण का है। यथासंभव आप कृष्ण उपदेश भी कर सकते हो। यार देख , तारे कह ' कृष्ण ' - उपदेश । आमार आज्ञाय गुरु हजा तार ' एइ देश ॥ ( श्री चैतन्य चरितामृत ७.१२८) अनुवाद " हर एक को उपदेश दो कि वह भगवद्गीता तथा श्रीमद्भागवत में दिये गये भगवान् श्रीकृष्ण के आदेशों का पालन करे । इस तरह गुरु बनो और इस देश के हर व्यक्ति का उद्धार करने का प्रयास करो । " इसको भी समझिए। कृष्ण उपदेश मतलब भगवतगीता है। यारे देख, तारे कह ' कृष्ण ' - उपदेश अर्थात आप जिनको भी मिलते हो, अपने प्यारे दुलारे या जीवे दया अर्थात जीवों पर दया दिखाना चाहते हो। आपको दया आ रही है, लोगों का दुख देखकर आप यार देख , तारे कह ' कृष्ण ' - उपदेश करो। तब आप कृष्ण का उपदेश सुनाओ, भगवतगीता का वितरण करो। जब हम भगवान के गीत लोगों को सुनाएंगे, तब हम उन्हें भगवतगीता ही देंगे, भगवतगीता यथारूप का वितरण करेंगे। हमनें उनको कृष्ण को ही दे दिया। भगवतगीता कृष्ण ही है। या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्मादि्वनिः सृता। भगवान ने जब भगवतगीता के वचन को कहा तब वे वचन भी भगवान ही हैं। जो भी उन वचनों को सुनेगा, उनको अंततोगत्वा भगवत प्राप्ति होगी। भगवतगीता अध्ययन करना मतलब कृष्ण को प्राप्त करना है। सर्वस्य चाहं ह्रदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च | वेदैश्र्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् ।। ( श्रीमद् भगवतगीता १५.१५) अनुवाद:-मैं प्रत्येक जीव के हृदय में आसीन हूँ और मुझ से ही स्मृति, ज्ञान तथा विस्मृति होती है | मैं ही वेदों के द्वारा जानने योग्य हूँ। निस्सन्देह मैं वेदान्त का संकलनकर्ता तथा समस्त वेदों का जानने वाला हूँ। भगवान स्वयं ही भगवतगीता में कहते हैं कि वेदैश्र्च सर्वैरहमेव वेद्यो। हरि! हरि! हम वेदों का अध्ययन क्यों करें। भगवान् कहते हैं कि मुझे जानने के लिए वेद है एवं वेदों का अध्ययन करोगे तो मुझे जानोगे और् मुझे प्राप्त करोगे। अहम एव - इस प्रकार हम छोटी छोटी संस्कृत भी थोड़ी सीख सकते हैं। हरि! हरि! यह सारगर्भित शब्द होते हैं। भगवान जो संस्कृत भाषा बोलते हैं, इसको देव भाषा भी कहते हैं अर्थात इसे देवता बोलते हैं। अंग्रजों की भाषा तो म्लेच्छ भाषा है। संसार की अन्य भाषाएं भी ऐसी ही हैं लेकिन कोई भाषा यदि मूल भाषा अथवा जननी भाषा है अथवा सभी भाषाओं की जननी है तो वह संस्कृत भाषा है। अहम एव वेदा- निश्चित ही मैं ही जानने योग्य हूं या आप मुझे ही जान जाओगे। वेदैश्र्च सर्वैरहमेव वेद्यो। भगवान कहते हैं कि वेदों के अध्ययन से मुझे जानोगे। यदि आप भगवान को जानना चाहते हो, तो आप भगवतगीता पढ़िए। यदि हम भगवान को नहीं जानेंगे तब हम भगवान् से प्रेम कैसे करेंगे या भगवान की प्रेममयी सेवा कैसे करेंगे ? हम लोग भगवान को जानते ही नहीं हैं, मानते भी नहीं, उनका स्मरण नहीं करते। हम भगवान को जानते नहीं हैं इसलिए हम उनकी शरण में नही आते, हम भगवान को जानते नहीं हैं इसलिए हम उनकी सेवा नहीं करते। जबकि भगवान् ने यह व्यवस्था की है। भगवान् व्यवस्था करके ही अपने स्वधाम लौटे थे। हरि! हरि! भगवान ने भगवतगीता एक बार कुरुक्षेत्र के मैदान में सुनाई थी और दूसरी अपने धाम लौटने से पहले पुनः भगवतगीता सुनाई। कृष्णे स्वधामोपगते धर्मज्ञानादिभिः सह कलौ नष्टृशामेष पुराणाकोऽधुनोदितः ॥ ( श्री मद्भगवतम १.३.४३) अनुवाद:-यह भागवत पुराण सूर्य के समान तेजस्वी है और धर्म, ज्ञान आदि के साथ कृष्ण द्वारा अपने धाम चले जाने के बाद ही इसका उदय हुआ। जिन लोगों ने कलियुग में अज्ञान के गहन अन्धकार के कारण अपनी दृष्टि खो दी है, उन्हें इस पुराण से प्रकाश प्राप्त होगा। एक श्रीमद् भगवतगीता है, जो उन्होंने कुरुक्षेत्र में सुनाई थी। भगवान ने इस भगवतगीता को पुनः दोहराया है। पूरा कुछ वैसे नहीं है, कुछ वही बातें हैं, कुछ अधिक बातें भी हैं जोकि भगवान ने उद्धव को सुनाई थी। तब एक औऱ गीता बन गयी, वह उद्धव गीता के नाम से प्रसिद्ध हुई। यह उद्धव गीता भगवान् के अंतिम वचन हैं, इसके उपरांत भगवान कुछ नहीं बोले हैं।जब भगवान 125 वर्षों से इस धरातल पर थे, तब देवता भी आए थे। भगवान् श्रीकृष्ण ने इस संसार के लोगों के लिए जो भी किया, उसके लिए उन्होंने भगवान का आभार माना। हरि! हरि! देवताओं ने कहा कि "यदि आप चाहते हो, तो आप अपने धाम लौट अथवा प्रस्थान कर सकते हो"। सभी 33 कोटि के देवता द्वारका में आए, ब्रह्मा, शिव , इंद्र आए हैं। सूत उवाच यं ब्रह्मा वरुणेन्द्रुब्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- बैदैः साङ्गपदक्रमोपनिषदैगायन्ति यं सामगाः । ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥ ( श्री मद् भागवतम १२.१३.१) अनुवाद:- सूत गोस्वामी ने कहा : ब्रह्मा , वरुण, इन्द्र, रुद्र तथा मरुत्गण दिव्य स्तुतियों का उच्चारण करके तथा वेदों को उनके अंगों, पद-क्रमों तथा उपनिषदों समेत बाँच कर जिनकी स्तुति करते हैं, सामवेद के गायक जिनका सदैव गायन करते हैं, सिद्ध योगी अपने को समाधि में स्थिर करके और अपने को उनके भीतर लीन करके जिनका दर्शन अपने मन में करते हैं तथा जिनका पार किसी देवता या असुर द्वारा कभी भी नहीं पाया जा सकता- ऐसे भगवान् को में सादर नमस्कार करता हूँ। उन्होंने भगवान का स्तुति गान किया। भगवान् ने स्वधाम लौटने का मन बना लिया। भगवान ने अपने धाम लौटने से पहले पुनःअपना संदेश/उपदेश सुनाया, वह संदेश उद्धव गीता कहलाता है। उस संदेश के उपरान्त भगवान कुछ नहीं बोले व उन्होंने प्रस्थान किया। इस प्रकार भगवान ने दो बार गीता का उपदेश सुनाया है ताकि हम इस गीता को पढें और सुने और अन्यों को सुनाएँ। भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश सुनाया। वही श्री कृष्ण जब चैतन्य महाप्रभु के रुप में प्रकट हुए, तब उन्होंने हमें अर्थात इस सारे संसार को स्मरण दिलवाया कि *यार देख , तारे कह ' कृष्ण ' - उपदेश । आमार आज्ञाय गुरु हजा तार ' एइ देश ॥* ( श्री चैतन्य चरितामृत ७.१२८) अनुवाद " हर एक को उपदेश दो कि वह भगवद्गीता तथा श्रीमद्भागवत में दिये गये भगवान् श्रीकृष्ण के आदेशों का पालन करे । इस तरह गुरु बनो और इस देश के हर व्यक्ति का उद्धार करने का प्रयास करो । " मैंने जो कृष्ण रुप में कुरुक्षेत्र व द्वारिका में उपदेश सुनाया था, उन दोनों ग्रंथों का अध्ययन करो। गीता का अध्ययन करो, तत्पश्चात भागवतं का अध्ययन करो। भागवतम का अध्ययन करते करते जब हम ग्यारहवें स्कन्ध में पहुंच जाएंगे। तब हम उद्धव गीता को पढ़ेंगे, वैसे शुकदेव गोस्वामी ने भी जो भागवतम कथा सुनाई है, उस कथा का समापन उद्धव गीता के साथ ही होता है। उद्धव गीता के उपरांत शुकदेव गोस्वामी ने स्वयं ही आगे नहीं कहा, क्योंकि ग्यारहवें स्कन्ध के 29 अध्याय तक यह उद्धव गीता जारी रहती है। तत्पश्चात थोड़ा ही संवाद आगे चला है। 12वें स्कन्ध के प्रारंभ में ही 6 वें अध्याय में शुकदेव गोस्वामी कुछ सुनाते हैं। तत्पश्चात कथा का समापन होता है। वैसे श्रीमद् भागवतम का उपसंहार या निष्कर्ष या समापन भी भगवतगीता के साथ ही होता है। कृष्ण ने जो गीता सुनाई, उसी गीता को पढ़ो, पढ़ाओ, सुनाओ। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कूर्म ब्राह्मण को भी ऐसा ही आदेश दिया अर्थात हम सभी को आदेश दिया है। यार देख , तारे कह ' कृष्ण ' - उपदेश । यह उपदेश श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का है- आइए हम इस महीने के बचे हुए दिनों में गीता का अध्ययन करते हैं अथवा उसको पढ़ते हैं। यदि भगवतगीता यथारूप आपके पास नही है, उसे प्राप्त कीजिये। आपके पास भगवतगीता अवश्य होनी चाहिए। हरि! हरि! साथ ही साथ आपको इस गीता के ज्ञान का प्रचार भी करना है। हमें श्रील प्रभुपाद की प्रसन्नता के लिए गीता का वितरण करना है। श्रील प्रभुपाद जब देखते थे कि भगवान् के ग्रंथों का जिनकी रचना भगवान् की और से उन्होंने की थी, उन ग्रंथों का वितरण देखकर बड़े प्रसन्न होते थे। वे यह भी कहते थे कि जब तक मेरे ग्रंथों का वितरण हो रहा है - मैं मरूँगा नहीं, ग्रंथों के रुप में मैं जीवित रहूँगा। श्रील प्रभुपाद ने ही वैसे बुक डिस्ट्रीब्यूशन ( ग्रंथ वितरण) का कार्यक्रम का प्रारंभ किया और बढ़ाया भी। प्रभुपाद ने अपने जीवन काल में लाखों- करोडो़ का वितरण देखा और करवाया। वे अपने शिष्यों को प्रेरित करते रहे। आप भी उनके पर- शिष्य बने हो। वे आपको भी प्रेरित कर रहे हैं। श्रील प्रभुपाद की ओर से अब हम आपको प्रेरित कर रहे हैं कि आप भी श्रील प्रभुपाद के ग्रंथों का और इस महीने में विशेषकर भगवतगीता का वितरण करो। यह श्रील प्रभुपाद का आदेश हम सभी के लिए है। श्रील प्रभुपाद को प्रसन्न करें, श्री कृष्ण को प्रसन्न करें। हम भी प्रसन्न हो जाएंगे। निश्चित है आपकी आत्मा भी प्रसन्न होगी। स वै पुंसां परो धर्मों यतो भक्तिरधोक्षजे । अहैतुक्यप्रतिहता ययात्मा सुप्रसीदति ॥ ६॥ ( श्रीमद् भागवतं १.२.६) अनुवाद:-सम्पूर्ण मानवता के लिए परम वृत्ति (धर्म) वही है, जिसके द्वारा सारे मनुष्य दिव्य भगवान् की प्रेमा-भक्ति प्राप्त कर सकें। ऐसी भक्ति अकारण तथा अखण्ड होनी चाहिए जिससे आत्मा पूर्ण रूप से तुष्ट हो सके। यह भगवतगीता के अध्ययन और वितरण का महीना है, मैराथन है। लगे रहिए। हम इन्ही वचनों के साथ समाप्त करते हैं। यदि इस सम्बंध में आपका कोई संकल्प है, आप लिख सकते हो। वैसे बातें तो सरल ही थी। यदि कोई प्रश्न या भ्रम है तो आप उसे भी लिख सकते हो। कुछ समय के लिए चैट सेशन खुला रखेंगे। हरे कृष्ण!

English

12 December 2020

Please Srila Prabhupada - distribute Bhagavad Gita AS IT IS

Hare Krsna. Devotees from 865 locations are chanting with us right now. Yesterday was Utpanna Ekadasi. Today is Dvadasi. Reminder for Parna time as it clashed with our Japa talk. So be prepared. The duration is short - 6:50-7:02 am.

Parana means fast-breaking. Parayan means the complete reading of scriptures like Ramayana, Mahabharata or Srimad Bhagavatam. So both are different. One should be absorbed in devotion. Next Ekadasi is Moksada Ekadasi. We celebrate Gita Jayanti on this Ekadasi. Jayanti means appearance day. Just like there is Janmastami, the birthday of Krsna, this day is the appearance day of the Bhagavad Gita. Sri Krsna gave birth to the Gita.

gita su-gita kartavya, kim anyaih shastra-vistaraih ya svayam padmanabhasya, mukha-padmad vinihsrita

Translation: Because Bhagavad Gita is spoken by the Supreme Personality of Godhead, one need not read any other Vedic literature. One need only attentively and regularly hear and read Bhagavad-gita. In the present age, people are so absorbed in mundane activities that it is not possible for them to read all the Vedic literatures. But this is not necessary. This one book, Bhagavad-gita, will suffice, because it is the essence of all Vedic literatures and especially because it is spoken by the Supreme Personality of Godhead.[Bhagvat Gita Mahatmya (Glories) by Adi Sankaracarya]

Gita means song. It is the song of the Lord. The song of Lord Padmanabh, Who has appeared from His lotus mouth. In Bhagavad Gita, there are many qualitative names of the Lord. These are the names according to His qualities or pastimes. He has become the chariot driver for Arjuna in Kuruksetra, so He is called Parthasarathi. I just broke my fast. You can also see and learn how to break your Ekadasi vrata.

tataḥ śvetair hayair yukte mahati syandane sthitau mādhavaḥ pāṇḍavaś caiva divyau śaṅkhau pradadhmatuḥ

Translation On the other side, both Lord Kṛṣṇa and Arjuna, stationed on a great chariot drawn by white horses, sounded their transcendental conchshells. [ BG 1.14]

In the first chapter of Bhagavad Gita, it is mentioned that Arjuna and Krsna are called Pandav and Madhav. In this verse, They are placed on a special chariot that is being pulled by 4 beautiful white horses. They blew their divine conch shells.

pāñcajanyaṁ hṛṣīkeśo devadattaṁ dhanañ-jayaḥ pauṇḍraṁ dadhmau mahā-śaṅkhaṁ bhīma-karmā vṛkodaraḥ

Translation: Lord Kṛṣṇa blew His conchshell, called Pāñcajanya; Arjuna blew his, the Devadatta; and Bhīma, the voracious eater and performer of herculean tasks, blew his terrific conchshell, called Pauṇḍra. [ BG 1.15]

Arjuna named Dhananjay here, blew the Devadatta conch shell. You can see how different names have been mentioned. Krsna, called Hrisikesh, blew the Pāñcajanya conch shell. Then others from both sides of the battle blew their powerful conch shells. It is the morning of the day of Moksada Ekadasi. This is the first day of the 18 day-long battle. The Lord frees Arjuna from all sorts of illusions and Arjuna will say that he has become free from any illusion and that he is liberated. This is Moksada Ekadasi - Moksada means the giver of liberation. So here Arjuna is being liberated by the Lord.

How can we get liberated? We must read or listen to Bhagavad Gita. That is why Krsna spoke the Bhagavad Gita so that the future generations can read or hear it and get liberated. This entire month of December is the month of Gita. This is the month when Krsna spoke the Bhagavad Gita to Arjuna which is not only to Arjuna, but also to all of us. We should make efforts to serve Bhagavad Gita not only by reading, but also by spreading its knowledge by preaching and distributing Bhagavad Gita to whoever you may come across. You may pledge to distribute Bhagavad Gita. It is non-different from Krsna. Giving Bhagavad Gita to someone means giving Krsna. Whoever will read it will certainly get free from Maya and attain the eternal highest abode of the Lord.

arvasya cāhaṁ hṛdi sanniviṣṭo mattaḥ smṛtir jñānam apohanaṁ ca vedaiś ca sarvair aham eva vedyo vedānta-kṛd veda-vid eva cāham

Translation I am seated in everyone’s heart, and from Me come remembrance, knowledge and forgetfulness. By all the Vedas, I am to be known. Indeed, I am the compiler of Vedānta, and I am the knower of the Vedas. [BG 15.15]

Krsna says to know the Vedas is to know Me. By reading the Vedas one can understand Krsna. Sanskrit is the language of the Gods. It is the mother of all languages. Krsna says I am only the knowable by the study of Vedas. If you want to know the Lord then read Bhagavad Gita. How can we love the Lord, serve the Lord without knowing Him? We don't engage in devotional service because we don't know Him well. One is this Bhagavad Gita that he narrated to Arjun on the battlefield of Kurukshetra.

Then there is Uddhava Gita, which was narrated to Uddhava just before he was preparing for his apparent departure from the material world. Many points are repeated and many are new points in the Uddhava Gita. 330 million demigods have come to Dvaraka headed by Brahma, Indra, and they are praying and glorifying Krsna and they thank Krsna for everything and propose that the Lord wind up His pastimes. The Lord has made up His mind to wind up His pastimes in the material world and before doing so, He is instructing Uddhava. When He appears as Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu, He instructs everyone to study these instructions of Bhagavad Gita and Srimad Bhagavatam which includes Uddhava Gita in 11th Canto. There is very little conversation between Sukadeva Goswami and King Pariksit after the Uddhava Gita. You must read and study these scriptures and teach and preach to everyone.

Let us study Bhagavad Gita as it is December. We also have to distribute Bhagavad Gita books. When Srila Prabhupada saw the distribution of his books he was extremely pleased. He said, “Till my books are being printed and distributed, I will not die. I will stay alive in the form of my books.” He always encouraged all of his disciples to do so and now we, on behalf of Srila Prabhupada, are encouraging you all to distribute books. Srila Prabhupada will be very pleased. We will also be pleased and your soul will also certainly be blissful, So study and preach the knowledge of Bhagavad Gita.

You all can write your doubts, questions and comments.

Thank You. Hare Krsna

Russian

Наставления после совместной джапа-сессии 12.12.2020г.

Харе Кришна

Прямо сейчас с нами воспевают преданные из 865 мест.

Вчера был Утпанна экадаши. Сегодня Двадаши.

Напоминание о времени Параны (Время выхода из поста), которое совпало с нашим разговором о Джапе.

Так что будьте готовы. Продолжительность небольшая - 6: 50-7: 02.

Это время IST.

Эта парана быстро проходит.

Парайан означает полное чтение священных писаний, таких как Рамаяна Махабхарата или Шримад Бхагватам.

Первое — Парайан означает поглощенный

Нужно быть поглощенным преданностью

Следующий экадаши - это Мокшада экадаши.

Мы празднуем Гита Джаянти. Джаянти означает день явления.

Также как есть Джанмаштами, день рождения Кришны, этот день - день явления Бхагавад Гиты.

Сам Шри Кришна родил Гиту.

Гита означает песнь. Это песнь Господа.

Песнь Господа Падманабха, вышедшая из его лотосных уст.

В (Бхагавад Гите) БГ есть много хороших имен Господа.

Это имена в соответствии с его качествами или играми. Он стал колесничим для Арджуны, поэтому его называют ПартхаСаратхи.

Я только что прервал пост. Вы также можете увидеть и узнать, как прервать экадаши врата.

В первой главе БГ упоминается, что Арджуна и Кришна, называются Пандавом и Мадхавой, они в этом стихе сели на особую колесницу, которую тянут 4 прекрасных белых коня.

Они затрубили в свои божественные раковины.

Арджуна, которого здесь зовут Дхананджай, затрубил в раковину Девадатта. Вы можете видеть, как упоминались разные имена.

Кришна, которого зовут Хришикеша, затрубил в раковину Панчджанья.

Затем другие с обеих сторон битвы запустили свои собственные мощные раковины.

Это утро дня Мокшада экадаши.

Это первый день 18-дневной битвы.

Сам Господь освобождает Арджуну от всех видов иллюзий, и Арджуна скажет, что он освободился от своей иллюзии, она была уничтожена, а он освобожден /очищен.

Это Мокшада Экадаши - Мокшада означает дарующий освобождение. Итак, здесь Арджуна освобождается самим Господом.

Как мы можем освободиться? Надо читать или слушать БГ.

Вот почему Кришна рассказал БГ, чтобы будущие поколения могли прочитать или услышать это и получить освобождение.

Весь этот декабрь - месяц БГ.

Это месяц, когда Кришна рассказал БГ Арджуне. Не только Арджуне, но и всем нам.

Мы должны прилагать усилия, чтобы служить БГ, не только читая ее, но и распространяя ее знания, проповедуя и распространяя БГ всем, с кем вы можете столкнуться.

Вы можете взять на себя обязательство распространять БГ. Б.Г. неотлична от самого Кришны. Итак, дать кому-то БГ означает дать Кришну.

Кто бы ни прочитал ее, непременно освободится от Майи и достигнет вечной высшей обители Господа.

Кришна говорит, что Веды знают меня. Читая Веды, можно понять Кришну.

Санскрит - это язык богов. Это мать всех языков.

Кришна говорит, что меня можно познать только путем изучения Вед.

Если вы хотите познать Господа, прочтите БГ.

Как мы можем любить Господа, служить Господу, не зная Его? Мы не занимаемся преданным служением, потому что плохо его знаем.

Итак, первое - это БГ, которую он рассказал Арджуне на поле битвы Курукшетра.

Далее есть Уддхава Гита, которая была рассказана Уддхаве как раз перед тем, как он готовился к своему явному уходу из материального мира.

Многие моменты повторяются, и есть многие - новые моменты в Уддхава Гите.

33 миллиона полубогов пришли в Двараку во главе с Индрой, и они молятся и прославляют Кришну, они благодарят Кришну за все и предлагают Господу поклоны завершающему Свои игры.

Итак, Господь решил завершить свои игры в материальном мире.

и перед этим он дает наставления Уддхаве.

Когда он появляется как Шри Кришна Чайтанья Махапрабху, он наставляет всех изучить эти наставления БГ и ШБ (Шримад Бхагаватам, включая Уддхава Гиту в 11-й песни)

После Уддхава Гиты разговоров между Шукадева Госвами и царем Парикшитом очень мало.

и тогда ШБ подходит к концу.

Итак, вы должны читать и изучать БГ и ШБ, учить и проповедовать всем.

Итак, давайте изучать БГ в этом месяце декабре. Мы также должны распространять книги БГ.

Когда Шрила Прабхупада видел распространение своих книг, он был чрезвычайно доволен. Он сказал, что пока мои книги не будут напечатаны и распространены, я не умру. Я буду жить в форме моих книг.

Он всегда вдохновлял на это всех своих учеников, и теперь мы, от имени Шрилы Прабхупады, призываем всех вас распространять книги.

Шрила Прабхупада будет очень доволен. Нам тоже будет приятно, и ваша душа тоже будет Счастливой

Так что изучайте и практикуйте знания БГ.

Вы все можете писать свои сомнения, вопросы и комментарии.

Вы также можете написать свои реализации сессий в зум (Zoom) здесь или на нашей странице Фэйсбук.

(Перевод Кришна Намадхан дас)