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हरे कृष्ण जप चर्चा पंढरपुर धाम से, 13 दिसंबर 2020

हरे कृष्ण! श्रीरामपुर के भक्त पंढरपुर पहुंचे है, तो उन भक्तों का स्वागत है। और आप सभी का स्वागत है! हरि हरि। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! जप करने के लिए आपका स्वागत है।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे। राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

तो यह महामंत्र का जप करने के लिए आपका स्वागत है! तो यह जपा टॉक जो आप सुनते हो वैसे हर रोज तो नहीं सुनते हो और आज रविवार है तो और भी कुछ कम सुन रहे है। जो कल हमारे साथ थे वह आज नहीं है। यह संसार ऐसा ही है यहां पर कुछ भी शाश्वत नहीं है! हरि हरि।

पार्थसारथी कृष्ण की जय! कौनसे श्री कृष्ण की जय? पार्थ के सारथी कृष्ण की जय! और अभी तो गीता जयंती का महीना है जो अभी आ ही रही है, इसीलिए हम भगवतगीता का भी स्मरण कर रहे है। भगवतगीता का स्मरण यानी भगवान का, पार्थसारथी का स्मरण करने जैसा है। हमें भगवान का धन्यवाद करना चाहिए। पाश्चात्य देशों में लोग भगवान का धन्यवाद देते है, वहां पर धन्यवाद समारोह जैसे उत्सव मनाए जाते है। Thank you God! भगवान आपका धन्यवाद! ऐसा वह बोलते है। कृष्ण नहीं कहते, क्योंकि उनको पता नहीं है। भगवान है इतना तो जानते है, भगवान पर विश्वास भी करते है। लेकिन उनका नाम कृष्ण है यह नहीं जानते, उनके काम भी नहीं जानते, वे पृथ्वी पर आ सकते है, सम्भवामि युगे युगे यह भी नहीं जानते। और हिंदू लोग भी नहीं जानते या नहीं मानते। महात्मा गांधी भी नहीं जानते, उन्हें पता नहीं है कि भगवान सच में आए थे उन्होंने भगवत गीता का उपदेश सुनाया और अर्जुन को युद्ध करने के लिए प्रेरित किया तो महात्मा गांधी कहते हैं कि भगवान ऐसे नहीं हो सकते जो हिंसा करने के लिए प्रेरित कर रहे है। नहीं नहीं! गीता का सार तो अहिंसा है। महात्मा गांधी जो तथाकथित महात्मा है, भगवान को तो समझे नहीं! तो उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई मुझे सिद्ध करके बताएगा कि भगवान है तब में हिन्दू धर्म का इस्तीफा दे दूंगा और मैं घोषित करूंगा कि मैं हिंदू नहीं हूं। अगर आप कहते हो कि हिंदू धर्म के भगवान कुरुक्षेत्र में आए थे और उन्होंने अर्जुन को उपदेश सुनाया और उद्देश्य के अंतर्गत उन्होंने कहा,

तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च | मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयः || भगवत गीता ८.७

अनुवाद:- अतएव, हे अर्जुन! तुम्हें सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिन्तन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्तव्य को भी पूरा करना चाहिए | अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमें स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे |

मामनुस्मर युध्य च मेरा स्मरण करके युद्ध करो! तो अगर ऐसी घटना घटी है और भगवान आए थे तो यह मुझे सिद्ध करके दिखाया तो मैं हिंदू धर्म का इस्तीफा दे दूंगा, ऐसे धर्म से मुझे कुछ लेना देना नहीं है! ऐसे बहुत सारे लोग हैं उसमें महात्मा गांधी भी एक थे। वैसे महात्मा कहना नहीं चाहिए। भगवान ने तो कहा है कि,

महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः | भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम् || भगवतगीता ९.१३

अनुवाद:- हे पार्थ! मोहमुक्त महात्माजन दैवी प्रकृति के संरक्षण में रहते हैं | वे पूर्णतः भक्ति में निमग्न रहते हैं क्योंकि वे मुझे आदि तथा अविनाशी भगवान् के रूप में जानते हैं |

महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः महात्मा में है जिन्होंने भगवान की देवी प्रकृति का आश्रय लिया हुआ है। महात्मा गांधी तो भगवान की देवी प्रकृति को समझे ही नहीं थे! ना तो उन्होंने राधा रानी का आश्रय लिया ना परंपरा के आचार्य से ज्ञान लिए थे।

एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदः | स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप || भगवतगीता ४.२

अनुवाद:- परंपरा के साथ अपने सम्बन्ध का विज्ञान, योगविद्या; नष्टः- छिन्न-भिन्न हो गया; परन्तप- हे शत्रुओं को दमन करने वाले, अर्जुन | इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा | किन्तु कालक्रम में यह परम्परा छिन्न हो गई, अतः यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता है।

एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदः ऐसा भी भगवान भगवतगीता में कहे हैं। तो कौन थे महात्मा गांधी के आचार्य और गुरु? तो यह सब चलता रहता है। भगवान ने कही हुई गीता पर अपने अपने भाष्य सुनाते रहते है, गीता का सार है अहिंसा या गीता का सार है कर्मयोग तो फिर वह गीता भगवतगीता नहीं रह जाती! वह गीता गांधी गीत बन जाता है, या लोकमान्य तिलक गीत बन जाता है! तो भगवान जो कहे है वह उद्देश्य लोगों तक पहुंचता ही नहीं! तो श्रील प्रभुपाद जो गीता लिखे हैं वह कई सारे भाषाओं में उपलब्ध है। ठीक है! अर्जुन ने तो भगवतगीता सीधे कृष्ण से सुनी, और यह कई बार बताया है और अर्जुन बोले भी की,

अर्जुन उवाच | नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत | स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव || भगवतगीता १८.७३

अनुवाद:- अर्जुन ने कहा – हे कृष्ण, हे अच्युत! अब मेरा मोह दूर हो गया | आपके अनुग्रह से मुझे मेरी स्मरण शक्ति वापस मिल गई | अब मैं संशयरहित तथा दृढ़ हूँ और आपके आदेशानुसार कर्म करने के लिए उद्यत हूँ |

स्थितोऽस्मि गतसन्देहः अब मैं स्थिर हो गया अब कोई संदेह नहीं रहा! अब क्या करूंगा? करिष्ये वचनं तव आपकी आज्ञा का पालन करने के लिए तैयार रहूंगा! तो अर्जुन भक्त बन गए, अर्जुन ने भगवान की शरण ली और भगवान के आदेश उपदेशानुसार वे कार्य करने लगे। तो भगवतगीता के वचनों ने अर्जुन को भक्त बनाया! तो ऐसा होते हुए तो नहीं देखा गया था। हम पढ़ रहे थे या भारत में भी लोग पढ़ते रहते है, या फिर गीता के प्रवचन सुनते रहते है लेकिन ये लोग गीता के प्रवचन और भाष्य पढ़ने वाले या लिखने वाले भगवान का पता नहीं लगने देते! जब वे खुद ही भगवान को समझे नहीं हो तो! यह कुरुक्षेत्र ही शरीर जैसा है, कौरव मतलब हममें जो दुर्गुण होते हैं और पांडव मतलब हमारी इंद्रियां है, और महाभारत का युद्ध मतलब अच्छाई और बुराई के बीच का संघर्ष है ऐसा कहते है। महाभारत मतलब इतिहास है। इतिहास मतलब घटी हुई घटना है! एक समय था जो जब वो दिन था, मोक्षदा एकादशी का दिन था और, अक्षौहिणी सेना खड़ी हुई थी।

१८ अक्षौहिणी सेना, ११ दुर्योधन की और ७ अर्जुन और पांडवों की ओर से इतनी सेना और विश्वभर के सैनिक या राजा महाराजा वहां पहुंच गए थे। वह जागतिक महायुद्ध था! तो सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थाप्य मेऽच्युत मेरे रथ को दोनों सेनाओं के मध्य में लेकर खड़ा करो! वह स्थान आज भी है। जब श्रील प्रभुपाद 1971 की बात हो सकती है, जब वे अमृतसर से दिल्ली अपने विदेशी शिक्षकों के साथ आ रहे थे तो श्रील प्रभुपाद ट्रेन से यात्रा कर रहे थे और ट्रेन जब कुरुक्षेत्र स्टेशन पर रुकी तो प्रभुपाद उंगली करके दिखा रहे थे, वहां पर! वहां पर! यह कुरुक्षेत्र है! यहां युद्ध हुआ था! और वहां स्थान भी है जहां पर दोनों सेना के मध्य में कृष्ण अर्जुन के रथ को खड़ा किए थे! तो प्रभुपाद ऐसा समझा रहे थे जैसे कि सचमुच 5000 वर्ष पूर्व यहां पर भगवान आए थे और सब सेना थी और युद्ध हुआ था, और मोक्षदा एकादशी के दिन प्रातःकाल में ही, धर्म युद्ध था तो धर्म युद्ध सूर्योदय के समय प्रारंभ होता है और सूर्यास्त को समाप्त होता है, पूरे दिन भर युद्ध चलता रहता है। तो महाभारत एक इतिहास है! किस दिन यह युद्ध प्रारंभ हुआ? और कहां पर हुआ? कौन-कौन इस युद्ध में थे? कौन-कौन सी घटनाएं घटी? कौन किस दिन मरे? या दसवें दिन क्या हुआ? भीष्म पितामह बाणों की शैया पर अर्जुन द्वारा लिटाए गए। और फिर दुर्योधन के सेनापति कौन बने? द्रोणाचार्य बने, उनकी भी हत्या हुई और फिर उनके बाद कौन बने? तो ऐसे ही 18 दिन का सारा वृतांत यह सब लिखा गया है! तो अधिकतर लोग, जो गीता का उपदेश सुनाते हैं या लिखते है उनका विश्वास नहीं होता है कि, यह घटनाएं सचमुच घटी है! कृष्णा वहां पर थे और उन्होंने गीता का उपदेश सुनाया!

गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः। या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्मादि्वनिः सृता।। गीता महात्म्य श्लोक 3 पद्मनाभ! श्री कृष्ण के मुखारविंद से निकले हुए वचन ही भगवतगीता है। भगवत गीता की जय! तो यहां पर भगवान बोले हैं श्री भगवान उवाच! बोले तो अर्जुन के लिए लेकिन उनका उद्देश्य था कि, उनके वचन या उपदेश सभी जोवों तक पहुंच जाए! इसीलिए उन्होंने व्यवस्था भी की हुई है, और उसी भगवत गीता के उपदेश में कहा भी है कि, एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदः हे अर्जुन यह संदेश जो मैं अब तुम्हें सुना रहा हूं, इसको परंपरा में समझना होता है!

श्री भगवानुवाच इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् | विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् || १ || भगवतगीता ४.१

अनुवाद भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा – मैंने इस अमर योगविद्या का उपदेश सूर्यदेव विवस्वान् को दिया और विवस्वान् ने मनुष्यों के पिता मनु को उपदेश दिया और मनु ने इसका उपदेश इक्ष्वाकु को दिया |

इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् | चतुर्थ अध्याय श्लोक एक। कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं मैंने गीता का संदेश सुनाया इमं विवस्वते सूर्यदेव विवस्वान् को मैंने गीता का उपदेश सुनाया था। विवस्वान्मनवे प्राह जो उपदेश विवस्वान ने मुझसे सुना था वही उपदेश विवस्वान ने मनवे प्राह प्राह मतलब भूतकाल में कहा भली-भांति मनु को सुनाया प्रोक्तवान मतलब कहा। अब्रवीत् मतलब कहा। एक ही श्लोक में प्रोक्तवान,प्राह,अब्रवीत् कहे। इनका अर्थ एक ही है कि है कहा कहा कहा। पहले मैंने कहा फिर विवस्वान ने मनु को सुनाया। मनु ने फिर इक्ष्वाकु राजा सूर्यवंश के महान राजा को सुनाया। एवं परम्पराप्राप्तमिमं एवं मतलब इस प्रकार परंपरा में जान को प्राप्त करना चाहिए।

एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदः | स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप || २ || भगवत गीता ४.२

परमेश्र्वर के साथ अपने सम्बन्ध का विज्ञान, योगविद्या; नष्टः- छिन्न-भिन्न हो गया; परन्तप- हे शत्रुओं को दमन करने वाले, अर्जुन |

इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा | किन्तु कालक्रम में यह परम्परा छिन्न हो गई, अतः यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता है |

भगवान कह रहे है कालांतर में होता क्या है काल बीतता है तो स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप गीता की बात है भक्ति योग की बात है उसमें कुछ दोष आ जाता है। उसको अच्छादित किया जाता है, भाष्यकार अपनी दिमाग की बात उसमें डाल देते हैं। उट पटांग बातें कहते रहते हैं, मुझे लगता है मेरा विचार है ऐसा कह कह के। मेरी जो वाणी है वह शुद्ध पवित्र जैसी थी, वह नहीं रहती इसीलिए फिर भगवान ने कहा मैं पुनः हे अर्जुन तुमको यह ज्ञान सुना रहा हूं। मैंने पहले जो उपदेश सुनाया था अब तुम समझ सकते हो। पुनः भगवान सुनाएं 5000 वर्ष पूर्व। लाखों वर्ष पूर्व उन्होंने विवस्वान देवता को उपदेश सुनाया था वही गीता मैं पुन: तुम्हें सुन रहा हूं। कोई कहेगा गीता कितनी पुरानी हूं और उतर मिलेगा 5000 वर्ष वह झूठ है। गीता तो लाखों वर्ष पुरानी है विवस्वान देवता को सुनाई थी। तो यह भी झूठ है। गीता के वचन शाश्वत हैं। गीता के वचन सत्य हैं और ये त्रिकाल अभादित सत्य है। परंपरा में जो प्रचार होता है वह सत्य सदा के लिए बना रहता है, सत्य होता ही है। सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलयुग में वही सत्य रहता है। दूसरा चक्र आ गया चतुर युगी युग का इस तरह। यह भगवत गीता के वचन सत्य हैं, शाश्वत है। ऐसा समय नहीं था जब भगवत गीता के वचन नहीं थे। क्योंकि भगवान शाश्वत हैं कृष्ण शाश्वत हैं उनके संबंध का ध्यान और फिर जीव के संबंध का भी ध्यान शाश्वत है।

देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा | तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति || १३ || भगवत गीता २.१३

अनुवाद जिस प्रकार शरीरधारी आत्मा इस (वर्तमान) शरीर में बाल्यावस्था से तरुणावस्था में और फिर वृद्धावस्था में निरन्तर अग्रसर होता रहता है, उसी प्रकार मृत्यु होने पर आत्मा दूसरे शरीर में चला जाता है | धीर व्यक्ति ऐसे परिवर्तन से मोह को प्राप्त नहीं होता |

भगवत गीता की द्वितीय अध्याय में भगवान कहते हैं हम जो आत्मा हैं उसका उल्लेख भगवान करते हैं देहिनोऽस्मिन् मतलब इस देह में यथा देहे रहता है देह मतलब आत्मा। कौमारं यौवनं जरा भगवान प्रारंभिक महत्वपूर्ण बात बता रहे हैं तुम्हारे शरीर में परिवर्तन होता है लेकिन तुम जो हो उसमें परिवर्तन नहीं होता। तुम देही हो आत्मा हो। तो शरीर कभी कुमार या कुमारी हो गया, कुमार युवक हो गया जरा बूढ़ा हो गया तो देहांतर हो रहा है ना। देहांतर तो हर क्षण होता है। लेकिन मोटा मोटा कहे तो तुम्हारा बच्चे का शरीर था अब युवक का शरीर हो गया है। तो आत्मा का देहांतर हुआ बालक के शरीर से युवक के शरीर से वृद्ध शरीर में प्रवेश होता है। और फिर बहुत बड़ा अंतर आ जाता है शरीर को तुम त्यागते हो और फिर दूसरे शरीर में प्रवेश करते हो। तुम्हारा इस जीवन में देहांतर हो ही रहा था लेकिन जब मृत्यु होती है तब एक बहुत बड़ा देहांतर होता है। जब मृत्यु होती है पुनः जन्म होता है पुनर्जन्म होता है। नए योनि में नए शरीर में प्रवेश करते हैं। र्धीरस्तत्र न मुह्यति जो धीर गंभीर आत्मतत्व के ज्ञाता जो है यह जो परिवर्तनशील जगत है शरीर है इस परिवर्तनों से वह प्रभावित या विचलित नहीं होते। वे स्थिर रहते है क्योंकि वह जानते हैं कि मैं आत्मा हूं, इसमें तो कोई अंतर नहीं आ रहा है। यह मुख्य ज्ञान की बात है भगवत गीता में। वे भगवान कौन है बताने से पहले बता रहे हैं जीव तुम कौन हो, भगवान बता रहे है जीव को आत्मा को। तुम आत्मा हो। हरि हरि। तो भगवत गीता यथारूप महत्वपूर्ण है।

श्रील प्रभुपाद की जय। श्रील प्रभुपाद ने ब्रह्मा मध्व गौडीय वैष्णव परंपरा के आचार्य बनकर भगवत गीता का परंपरा में प्रचार किया या ग्रंथ भी लिखें, भगवत गीता पर भावार्थ लिखें। जिस भगवत गीता का प्रकाशन हुआ श्रील प्रभुपाद उसका नाम रखें भगवत गीता यथारूप, जो भावार्थ और तात्पर्य लिखें है उसके कारण ये भगवत गीता यथारूप, भगवान के वचन जैसे भी है जो भाव, सत्यको जो प्रकाशित कर रहे हैं कृष्ण उस भाव को बनाए रखते हैं भावार्थ या तात्पर्य जो श्रील प्रभुपाद लिखें हैं भगवत गीता में। तो ऐसे भगवत गीता का हमें अध्ययन श्रवण करना चाहिए भगवत गीता यथारूप का। और मैं जैसा कह रहा था अब बन गए भगवान के भक्त। ऐसे अर्जुन ने भगवत गीता सुनी और बन गए भक्त। जब से भगवत गीता यथारूप प्रकाशित हुई है और लोग सुन रहे हैं, पढ़ रहे हैं भगवत गीता यथारूप। अब तब हजारों लाखों भक्त बने हैं और भी बनने वाले हैं। आप भी जो इस जपा टॉक को सुन रहे हो भगवत गीता का प्रवचन कहो कथा कहो। तो यह सुनकर भी आप भक्त बन रहे हो या भक्त बने हो क्योंकि आप परंपरा के साथ जुड़ रहे हो और फिर अर्जुन जैसे भक्त बने गीता का श्रवण करके। मैं आप और विश्व के लोग इसमें आश्रय ले रहे हैं। विश्व के पतित जीव भी कृष्ण भक्त बन रहे हैं। तो यह भी सबूत है कि भगवत गीता यथारूप होनी चाहिए भगवान ने जैसे सुनाया जिस उद्देश्य से सुनाई भगवत गीता जो भाव भगवान के थे, जो भगवान के विचार से, जो भगवान का उदेश्य था भगवत गीता सुनाने के पीछे का बनाए रखना और ऐसे भगवान का प्रतिनिधित्व करते हुए जब भगवत गीता भाष्य लिखे जाते हैं फिर कहीं भी जाती है सुनाई जाती है तो उसे वैसा ही लाभ होगा जैसा अर्जुन को भगवत गीता सुनकर जो लाभ हुआ। हरि हरि।

English

13 December 2020

Bhagavad Gita establishes identity of Jiva as Pure soul

Hare Krishna Devotees from 772 locations are chanting with us right now. All of you are welcome to the morning Japa session. Some devotees from Srirampur have arrived here in Pandharpur. They are also welcome. Some devotees are absent because of Sunday. There were present yesterday and today they are absent. Everything is temporary in this world. This is the season of Gita Jayanti.

We are discussing Bhagavad Gita for a few days. Remembering Bhagavad Gita means remembering Parthasarthi.

In America and Europe, there is a thanksgiving ceremony. They thank other people for their material contributions. But we must thank Krsna for the Bhagavad Gita. They also thank God for different things. They are not aware that Krsna is the Supreme Lord. Many people don't know that the Lord comes here.

paritranaya sadhunam vinasaya ca duskrtam dharma-samsthapanarthaya sambhavami yuge yuge

Translation: In order to deliver the pious and to annihilate the miscreants, as well as to reestablish the principles of religion, I advent Myself millennium after millennium. [ BG 4.8]

Even many Hindus are not aware. Mahatma Gandhi also did not understand properly what Krsna said and he interpreted it wrongly to support non-violence.

Many people say if someone proves that Krsna came to the battle of Kuruksetra and encouraged Arjuna to fight then he will give up Hinduism because God encourages violence. So well there are people with many different mindsets. This is not a Mahatma mindset. Krsna gives a different explanation for Mahatma.

mahatmanas tu mam partha daivim prakrtim asritah bhajanty ananya-manaso jnatva bhutadim avyayam

Translation: O son of Prtha, those who are not deluded, the great souls, are under the protection of the divine nature. They are fully engaged in devotional service because they know Me as the Supreme Personality of Godhead, original and inexhaustible.[BG 9.13]

He didn't understand the divine nature of the Lord. He didn't understand Radharani. Or he didn't receive the knowledge through disciplic succession.

evaṁ paramparā-prāptam imaṁ rājarṣayo viduḥ sa kāleneha mahatā yogo naṣṭaḥ parantapa

Translation: This supreme science was thus received through the chain of disciplic succession, and the saintly kings understood it in that way. But in course of time the succession was broken, and therefore the science as it is appears to be lost.[ BG 4.2]

Wrongly interpreted Bhagavad Gita to promote non-violence, Jnana Yoga or Karma Yoga are not Bhagavad Gita As It Is. Prabhupada said that there are more than 400 editions of Bhagavad Gita available. But does anyone become a devotee by reading the book written by Lokmanya Tilak and Radhakrishnan. Arjuna became very clear, free from all illusion after listening to Krsna. He became a devotee.

naṣṭo mohaḥ smṛtir labdhā tvat-prasādān mayācyuta sthito ’smi gata-sandehaḥ kariṣye vacanaṁ tava

Translation: Arjuna said: My dear Kṛṣṇa, O infallible one, my illusion is now gone. I have regained my memory by Your mercy. I am now firm and free from doubt and am prepared to act according to Your instructions. [ BG 18.73]

But reading and listening to Bhagavad Gita by such speculative preachers does not benefit the people. They don't let people know about Krsna. Some people say that Mahābhārata is just an imaginary story in which Kuruksetra is our body, the Kauravas are our bad habits and the Pandavas are our senses. Mahābhārata is the struggle between the senses and bad habits. But no, Mahābhārata is history. It was the day of Moksada Ekadasi, where the armies of both the parties were assembled. It was a world war. You can go and visit those places even now. You can see Kuruksetra.

In 1971, Srila Prabhupada was on a train with some western disciples and the train stopped at Kurukshetra station. Srila Prabhupada showed his disciples that this was the place where the battle took place. Everything is mentioned in detail day wise. Who participated, where they came from, how they were related, who became the commander in chief, who died, and who was killed on which day of the war? This is factual. Bhagavad Gita is a compilation of words that have come from the lotus mouth of Sri Krsna.

ya svayam padmanabhasya, mukha-padmad vinihsrita

He spoke to Arjuna, but He was speaking to all of us. Krsna told Arjuna, “This knowledge that I am giving you right now is to be received through a bonafide disciplic succession.”

imaṁ vivasvate yogaṁ proktavān aham avyayam vivasvān manave prāha manur ikṣvākave ’bravīt

Translation: The Personality of Godhead, Lord Śrī Kṛṣṇa, said: I instructed this imperishable science of yoga to the sun-god, Vivasvān, and Vivasvān instructed it to Manu, the father of mankind, and Manu in turn instructed it to Ikṣvāku. [ BG 4.1]

This means it is for all. He says, “I was the first to say this and Sun-god Vivasvan was the first one to receive it from me.” He then gave it to Manu. Manu gave it to Ikshvaku. In a single sentence different synonymous verbs are used for 'said'.He says thus, in this way this knowledge is to be received. In a bonafide disciplic succession, this knowledge is received as it is. But some foolish people interpret and speculate on their own and preach the wrong meaning of the Bhagavad Gita.

sa kāleneha mahatā yogo naṣṭaḥ paran-tapa

The teachings of the Gita are eternal and true. No one can say how old it is. The Lord is eternal, so the teachings based on Him are also eternal. As our soul is eternal, so the teachings based on the living entity are also eternal.

dehino 'smin yatha dehe kaumaram yauvanam jara tatha dehantara-praptir dhiras tatra na muhyati

Translation: As the embodied soul continually passes, in this body, from boyhood to youth to old age, the soul similarly passes into another body at death. The self-realized soul is not bewildered by such a change. [BG 2.13]

The body passes from childhood to youth to old-age. This is a change in the phase of the life of the body. It is a different body of a child and that of a youth then a different body in old-age. Then you give it up at death and get a new body. During life there are changes and after death, there is a new body. There is another birth where we get a new body. But the knowledgeable devotees are situated in the fact that we are the soul and not the body. They are not bewildered by these changes. Bhagavad Gita As It Is is very important. Srila Prabhupada became an Acarya in the Brahma Madhva Gaudiya Vaisnava Sampradaya and wrote commentaries on these important books and published them. He named this Bhagavad Gita with his purports Bhagavad Gita As It Is.

Srila Prabhupada had elaborated on the meaning of what Krsna is speaking. Since the Bhagavad Gita as it is has been published, people are reading and listening to it and becoming devotees. Their lives are transformed.

This Japa talk is also based on Bhagavad Gita As It Is. You are all studying Bhagavad Gita and are becoming devotees. It is not only limited to Indians, but also many other people from different countries are taking shelter unto Krsna. Mleccha, Yavana, Khasa, etc, are becoming devotees of Krsna. Whenever Bhagavad Gita As It Is is read, heard, or sung then it will have the same impact on you it had on Arjuna in the battlefield of Kurukshetra.

We shall enable the chat session for a few minutes and you are free to write in short. You may write doubts, questions, queries, comments, and/or realizations.

Russian

Наставления после совместной джапа-сессии 13.12.2020г.

Харе Кришна

Прямо сейчас с нами воспевают преданные из 772 мест ...

Добро пожаловать на утреннюю сессию джапы.

Некоторые преданные из Шрирампура прибыли сюда, в Пандхарпур. Они тоже приветствуются.

Есть некоторые преданные, которые отсутствуют из-за воскресенья. Вчера были, а сегодня их нет.

В этом мире все временно.

Вся Слава Кришне и Арджуне.

Мы обсуждаем Бхагад Гиту (БГ) уже несколько дней.

В Америке и Европе есть церемония благодарения. Они благодарят других людей за материальный вклад.

Но мы должны благодарить Кришну за БГ.

Они также благодарят Бога за разные вещи. Они не знают, что Кришна - Верховный Господь.

Даже многие индуисты не знают. Махатма Ганди также не понимал должным образом того, что сказал Кришна, и неверно истолковал это как поддержку ненасилия.

Многие люди говорят, что если кто-то докажет, что Кришна пришел на битву на Курукшетре и вдохновил Арджуну на битву, я откажусь от индуизма, потому что Бог поощряет насилие.

Так что есть люди с разными взглядами

Это не образ мышления Махатмы Ганди.

Кришна дает другое объяснение (взглядов) Махатмы Ганди.

Неправильно интерпретируемая БГ как пропаганда ненасилия, Гьяна-Йога или Карма-Йога не являются в БГ как таковыми.

Доступно очень много изданий БГ.

Комментарии Ганди, Тилака или Сарвапалли Радхакришнана и др. Доступны.

Но разве кто-нибудь станет преданным, прочитав их?

Арджуна стал очень чистым, свободным от всех иллюзий после того, как выслушал Кришну. Но чтение и прослушивание БГ таких спекулятивных проповедников не приносит людям пользы.

некоторые люди говорят, что Махабхарата - это просто придуманная история, в которой Курукшетра на самом деле является нашим телом, Кауравы - нашими вредными привычками, а Пандавы - нашими чувствами. Махабхарата - это борьба между чувствами и вредными привычками и всем ...

Но нет, Махабхарата - это история. Вы можете пойти и посетить это место уже сейчас. Вы можете увидеть Курукшетру.

В 1971 году Шрила Прабхупада ехал в поезде с некоторыми западными учениками, и поезд остановился на станции Курукшетра.

Итак, Шрила Прабхупада показал своим ученикам, что это было место, где произошла битва.

Все подробно описано по дням. Кто участвовал, откуда они пришли, как они связаны, кто стал главнокомандующим, кто погиб и кто был убит в какой день войны?

Итак, БГ - это сборник наставлений, исходящих из лотосных уст Шри Кришны.

Он говорил с Арджуной, но на самом деле он говорил это за всех нас

Кришна сказал Арджуне, что это знание, которое я даю тебя прямо сейчас, должно быть получено через авторитетную ученическую преемственность.

Это значит, что это для всех. Он говорит, что я был первым, кто сказал это, а бог Солнца Вивасван был первым, кто получил это от меня.

Затем он передал его Ману. Ману передал его Икшваку.

В одном предложении для слова «передал» используются разные синонимичные глаголы.

Он говорит, что таким образом должно быть получено это знание.

В истинной ученической преемственности это знание принимается как есть. Но некоторые глупцы интерпретируют и рассуждают сами по себе и проповедуют неправильное значение БГ.

Эта БГ вечна. Этому (знанию) не только 5000 лет. Ему тоже не сотни тысяч лет. Оно вечное и не зависит от прошлого, настоящего и будущего.

Также как душа также вечна и не подвержена влиянию.

Кришна объяснил во 2-й главе, что это тело является домом для воплощающейся души, на которую не влияют никакие внешние факторы.

Организм меняется со временем и другими внешними факторами.

тело переходит от детства к юности к старости. Это смена этапа жизни тела.

На самом деле это другое тело ребенка и юноши

Потом другое тело в старости.

а затем вы полностью меняетесь после смерти и получаете новое тело.

В течение жизни происходят изменения, а после смерти появляется новое тело.

Есть еще одно рождение, в котором мы получаем новое тело.

Но знающие преданные считают, что мы душа, а не тело, поэтому эти изменения не сбивают их с толку.

Так что БГ, как она есть, очень важна. Шрила Прабхупада стал ачарьей Брахма Мадхва Гаудия Вайшнава Сампрадаи, написал комментарии к этим важным книгам и опубликовал их. В своих комментариях он назвал эту БГ «Бхагавад Гита как она есть».

Шрила Прабхупада подробно разъяснил значение того, что говорит Кришна.

С тех пор, как БГ была опубликована, люди читают, слушают и становятся преданными. их жизни трансформируются.

Эта беседа о джапе также основана на БГ.

Вы все изучаете БГ и становитесь преданными.

Не только индийцы, но и многие другие люди из разных стран принимают прибежище у Кришны.

Млеччха, Явана, Кхаса и т. д. Становятся преданными Кришны.

Таким образом, всякий раз, когда БГ читается, слушается или поется, она оказывает такое же влияние, как и на Арджуну на поле битвы Курукшетра.

Хорошо, мы будем поддерживать сеанс чата в течение нескольких минут,поэтому вы можете писать вкратце.

Вы можете писать сомнения, вопросы, запросы, комментарии и/или реализации.

Это также напоминание о марафоне БГ для преданных, чтобы они с энтузиазмом участвовали в распространении книг.

(Перевод Кришна Намадхан дас)