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जप चर्चा 19 अक्टूबर 21 नोएडा से 858 स्थानो से भक्त जप कर रहे है | यहाँ कृष्ण है और यहाँ आप भी हो। गौर प्रेमानन्द हरि हरि बोल। नोएडा की जय, नोयडा भक्त वृंद की जय हो और आप सब की जय हो | जो जो जप करते है, उनकी जय कहो या ना कहो, उनकी जय विजय होती ही है | अंत लीला 20.12 चेतो - दर्पण - मार्जनं भव - महा - दावाग्नि - निर्वापणं श्रेय : -कैरव - चन्द्रिका - वितरणं विद्या - वधू - जीवनम् । आनन्दाम्बुधि - वर्धनं प्रति - पदं पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्म - स्नपनं परं विजयते श्री - कृष्ण - सङ्कीर्तनम् ॥१२ ॥ अनुवाद भगवान् कृष्ण के पवित्र नाम के संकीर्तन की परम विजय हो , जो हृदय रूपी दर्पण को स्वच्छ बना सकता है और भवसागररूपी प्रज्वलित अग्नि के दुःखों का शमन कर सकता है । यह संकीर्तन उस वर्धमान चन्द्रमा के समान है , जो समस्त जीवों के लिए सौभाग्य रूपी श्वेत कमल का वितरण करता है । यह समस्त विद्या का जीवन है । कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन दिव्य जीवन के आनन्दमय सागर विस्तार करता है । यह सबों को शीतलता प्रदान करता है और मनुष्य को प्रति पग पर पूर्ण अमृत का आस्वादन करने में समर्थ बनाता है । ' "परम विजयते श्री कृष्ण संकीर्तन" की गारंटी है, गौरांग महाप्रभु के द्वारा विजय की गारंटी है | बस आप जप करते जाइए l महामंत्र ही हमारा भगवान है, कृष्ण है, राधा है | और फिर जहां कृष्ण है वहां पर आप भी हो | BG 18.78 “यत्र योगेश्र्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः | तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवो नीतिर्मतिर्मम || ७८ ||” अनुवाद जहाँ योगेश्र्वर कृष्ण है और जहाँ परम धनुर्धर अर्जुन हैं, वहीँ ऐश्र्वर्य, विजय, अलौकिक शक्ति तथा नीति भी निश्चित रूप से रहती है | ऐसा मेरा मत है | यह गीता का अंतिम श्लोक है | गीता के अंतिम श्लोक में भी भगवान ने यही कहा है | इस श्लोक मे संजय उवाच चल रहा है | जहां कृष्ण है, वहां आप भी हो या आप जप कर रहे हो या जप करके आप भगवान को अपने पास बुलाते हो | या स्वयं को भगवान के पास पहुंचाते हो | यही विजय है | भगवान कहते हैं जहां मेरे भक्त मेरा कीर्तन करते हैं, वहां मैं रहता हूँ | नाहं तिष्ठामि वैकुण्ठे योगिनां हृदयेषु वा । तत्र तिष्ठामि नारद यत्र गायन्ति मद्भक्ताः ॥ " हे नारद ! न तो मैं अपने निवास वैकुण्ठ में रहता हूँ , न योगियों के हृदय में रहता हूँ । मैं तो स्थान में वास करता हूँ जहाँ मेरे भक्त मेरे पवित्र नाम का कीर्तन करते हैं और मेरे रूप , लीलाओं गुणों की चर्चा चलाते हैं। जो भक्त मेरा गान करते हैं, वहां मैं रहता हूँ | भगवान का उद्देश्य तो वही है, हमारा उद्देश्य भगवान की सानिध्य प्राप्ति है | जहाँ हम विमुख हुए है पर सनमुख होना है , उनके मुखारविंद के सन्मुख, उनको पुकारेंगे | अपनी जिह्वा पर भगवान के नाम का आस्वादन करेंगे | रूप गोस्वामी नामाष्टक में कहते हैं - कल मैं पढ़ रहा था, नाम को ही प्रार्थना कर रहे है। इसका मतलब है कृष्ण को ही प्रार्थना कर रहे हैं- हे कृष्ण!आपका नाम रसेना का जो रस है और जो आस्वाद है, आपका नाम स्वादिष्ट है, मेरी जिह्वा आपके नाम का आस्वादन सदा सदा के लिए करें, ऐसी आपसे प्रार्थना है | ऐसी प्रार्थना करते हुए भी हम जप कर सकते हैं | इस उत्कंठा के साथ कि कब होंगे भगवान प्रकट, कब होंगे | जप करते रहिए | जप साधना को आगे बढ़ाइए | साधन भक्ति फिर भाव भक्ति फिर प्रेम भक्ति यह भक्ति के प्रकार और भक्ति के स्तर हैं | और साधन बिना सिद्धि नहीं मिलती | एक कृपा सिद्धि भी होती है, किसी किसी को होनोरी डिग्री कोई विश्वविद्यालय देता है लेकिन वह बहुत दुर्लभ है | सामान्य तौर पर सभी को अभ्यास साधना करते हुये फिर परीक्षा में उत्तीर्ण होना होता है ग्रेजुएशन फिर पोस्ट ग्रेजुएशन | अर्थात साधना से सिद्ध होना है | ग्रेटर नोएडा के भक्त यहां बैठे हैं | मेरी बंगाल की और मायापुर की यात्रा के संबंध में आपको बताता हूँ | वैसे तो हम प्रतिदिन कुछ खबर आप तक पहुंचा रहे थे और आपको पता चल रहा था | मायापुर यात्रा के उपरांत हम 1 दिन के लिए पदयात्रा भी गए | श्री श्री निताई गौर सुंदर ने अपनी यात्रा मायापुर से प्रारंभ की है, मायापुर में जब महाप्रभु ने संयास लिया, सन्यास तो वैसे कटवा में लिया जो गंगा के तट पर ही है | वहां से श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ पुरी गए | जाना तो वृन्दावन चाहते थे परंतु शची मैया ने कहा कि तुम जगन्नाथपुरी जाओ | श्री चैतन्य महाप्रभु मायापुर से शांतिपुर होते हुए जगन्नाथपुरी गए वैसे ही अब निताई गौर सुंदर वही जा रहे हैं | उनकी लीला की पुनरावृति हो रही है | उन दिनों में तो हेटे-हेटे यानी पैदल चलकर यात्रा कर रहे थे | और अब तो रथ में निताई गौर सुंदर विराजमान है | हरि नाम चल रहा है और भगवान जगन्नाथ पुरी की ओर बढ़ रहे हैं | यह एक नई पदयात्रा है और हम उनसे मिलने गए थे | मैं इस पद यात्रा से मेछेदा नमक स्थान में मिला, यह कोलकाता से 2 घंटे की दूरी पर है और मायापुर से 4 घंटे की दूरी पर है | इतनी ज्यादा विस्तार पूर्वक बताएं जाने की जरूरत नहीं है | हमें मुद्दे की बात पर आना चाहिए | पदयात्रा का बंगाल में खूब स्वागत हो रहा है | मैंने पदयात्रा में कहा भी कि ओर भी पदयात्राये चल रही है ऑल इंडिया पदयात्रा, यूपी पदयात्रा, महाराष्ट्र पदयात्रा, राजस्थान में भी एक पद यात्रा चल रही है सुहाग महाराज के शिष्य वहां पर समय-समय पर यात्रा करते रहते हैं, इन पदयात्राओं की तुलना में बंगाल की पदयात्रा में सबसे अधिक लोग जुट रहे हैं | दिन भर और सायं कालीन जब उत्सव होता है, पदयात्रा में हर दिन एक उत्सव है, हर दिन ही नहीं, हर कदम डग डग पर उत्सव होते रहते हैं, कीर्तन भी होता है, नृत्य भी होता है, प्रसाद भी बटता है, ग्रंथ वितरण भी होता है और कई सारे लोग भागे दौड़े आते हैं या जो रास्ते में अपने यात्राएं कर रहे होते हैं वह अपने वाहनों को रोक देते हैं, अपनी बस को पार्क कर देते हैं और बस की यात्री नीचे उतरते हैं, गौर निताई गौर सुंदर का दर्शन करते हैं फिर पदयात्री कहते हैं कि हाथ ऊपर करो हाथ ऊपर करो और फिर सबको हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे का जाप करवाते हैं, फिर चरणामृत देते हैं | जंगल में भी मंगल पदयात्राएं कर देती हैं | काफी भक्त बुक वितरण भी कर रहे हैं, मेरे साथ अपना स्कोर भी शेयर कर रहे थे, 1 महीने में उन्होंने 12000 छोटी पुस्तकें वितरित की हैं, बंगाल पदयात्रा की उम्र अभी एक महीने भी नहीं हुई है, नई पदयात्रा है, 1 महीने में उन्होंने 12000 छोटी पुस्तकें, 600 भगवत गीता और फिर बड़ी पुस्तकें और फिर वृहद पुस्तकें बड़ी पुस्तकों का भी वितरण किया है, चैतन्य चरित्रामृत के सेट का भी वितरण बंगाल मे हो रहा है और श्रीमद्भागवतम के सेट भी वितरित किए जा रहे हैं, हरि नाम तो होता ही है फिर प्रसाद भी होता है | प्रभुपाद ने मुझे कहा था जब हम पदयात्रा प्रारंभ किए थे कि कीर्तन, प्रसाद वितरण, पुस्तक वितरण यही पदयात्रा में सर्व प्रमुख है | यह दो तीन प्रमुख गतिविधियां हैं -- हरि नाम का कीर्तन करना है, प्रभुपाद के ग्रंथों का वितरण करना है और प्रसाद का वितरण करना है और फिर उत्सव तो होते ही रहते हैं | बंगाल पदयात्रा का इतना स्वागत हो रहा है, संख्या की दृष्टि से भी और लोगों के भाव भक्ति की दृष्टि से भी | काफी आतिथ्य हो रहा है | जब हमने पूछा की पदयात्रा का रसोईया कुक कौन है, तो इशारा करके दिखाया गया कि ये कुक है | उन्होंने मुझे बताया कि पदयात्रा के साथ बर्तन है गैस है रसोईया है राशन है परंतु पिछले 1 महीने में एक बार भी उन्होंने रसोई नहीं बनाई, ये एक रिकॉर्ड ब्रेक हुआ, ब्रेकफास्ट लंच डिनर वहां बंगाल के नगरवासी, बंगाल के वासी, ग्राम वासी पहले तो निताई गौर सुंदर को भोग लगाते हैं और फिर पद यात्रियों को भरपेट प्रसाद ग्रहण करवाते हैं | हम कोलकाता भी आए, परसों की रात और कल हम कोलकाता में थे, कल प्रातः काल का जप और जपा टॉक भी वही से हुआ और पूरा दिन लगभग वही बिताएं | वहां के आचार्य रत्न प्रभु इस्कॉन कोलकाता के लीडर मुझसे एक बात ये कह रहे थे जो सच है और सच के अलावा कुछ नहीं है वरना वह कहते ही नहीं क्योंकि वे भगवान के भक्त हैं, इस्कॉन कोलकाता भारत में इस्कॉन का पहला मंदिर है, जब वह कह रहे थे तो मुझे स्मरण हुआ अप्रैल 1971 का बॉम्बे का हरे कृष्णा पंडाल जहां से मैंने इस्कॉन जॉइन किया था और उसके बाद प्रभुपाद ओर एक हरे कृष्णा फेस्टिवल के लिए कोलकाता गए थे उसके उपरांत उन्होंने 3, अल्बर्ट रोड जहां पर अभी कोलकाता का मंदिर है उस प्रॉपर्टी का नेगोशिएशन और उस प्रॉपर्टी की खरीद किए थे, श्री श्री राधा गोविंद देव की जय, इस प्रकार राधा गोविंद देव की प्राण प्रतिष्ठा और इस्कॉन का भारत में पहला मंदिर इस्कॉन कोलकाता बना और 3 अल्बर्ट रोड इस्कॉन कोलकाता में आज प्रभुपाद का क्वार्टर भी है, प्रभुपाद वहां रहते थे | आचार्य रत्न प्रभु मेरे साथ शेयर कर रहे थे कि कोलकाता का एक हिस्सा है जिसका नाम है वराह नगर | शायद आपने सुना या पढ़ा होगा | शास्त्रों मे भक्ति विनोद ठाकुर वराह नगर के बारे में लिखते हैं | कोलकाता कोई साधारण स्थान या शहर नहीं है | 500 वर्ष पूर्व श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कोलकाता आये थे और इस वराह नगर में भागवत आचार्य नामक चैतन्य महाप्रभु के पार्षद निवास करते थे, वे नित्यालीला मे एक मंजरी थे | वे भागवत कथा किया करते थे, भागवत सुनाएं करते थे | एक समय श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु वराह नगर आए और भागवत आचार्य से भागवत कथा का श्रवण कर रहे थे, जब कथा प्रारंभ हुई और महाप्रभु कथा का आस्वादन करने लगे तो महाप्रभु के लिए बैठना मुश्किल हुआ और महाप्रभु खड़े होकर नृत्य करने लगे और कथा भी सुन रहे थे और कथा के अनुसार अपने भाव भी व्यक्त कर रहे थे और भाव विभोर होकर नृत्य कर रहे थे, महाप्रभु सारे भाव महा भाव प्रकट नहीं करते | महा भावा राधा ठाकुरानी ही श्री चैतन्य महाप्रभु बने थे, कथा भी हो रही थी उसी के साथ चेतन्य महाप्रभु कथा का श्रवण भी कर रहे थे और नृत्य भी हो रहा था , अश्रु धारा भी बह रही थी | मराठी में कहते हैं लोटांगम, लोट रहे थे , यह सब चलते रहा कोलकाता में | भक्ति विनोद ठाकुर कह रहे हैं कि ये कोलकाता साधारण नहीं है, ये वृंदावन है, यह वृंदावन का एक कुंज है, निकुंज हैं क्योंकि एक मंजरी ही यहाँ भागवताचार्य के रूप में निवास कर रही है | वराह नगर की जय | भागवत आचार्य की जय | Ad 4.69 महाभाव-स्वरूपा श्री-राधा-ठाकुराणी। सर्व-गुण-खनि कृष्ण-कान्ता-शिरोमणि ॥ 69॥ अनुवाद श्री राधा ठाकुराणी महाभाव की मूर्त रूप हैं। वे समस्त सदृणों की खान हैं और भगवान् कृष्ण की सारी प्रियतमाओं में शिरोमणि हैं। भक्ति विनोद ठाकुर लिखते हैं कि हम खोज कर रहे हैं, हम अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त कर रहे है, अलग-अलग स्थानों के संबंध में या महाप्रभु के अलग-अलग परिकर कहाँ रहे और उनकी गतिविधियां और इतनी जानकारी हमने अभी तक प्राप्त की है | हमारा प्रयास और जानकारी प्राप्त करने के तरफ रहेगा | जब मैं सुन रहा था तो मुझे याद आया कि कैसे हमारे पूर्ववती आचार्य प्रमुखतः भक्ति विनोद ठाकुर ने कितना सारा प्रयास किया, कितनी खोजबीन की और मानो भगवान को ही खोज रहे थे | यह लीला यहां हुई यह ली ला वहां हुई यह परिकर यहां थे, यह परिकर वहां थे, यह गतिविधि वह गतिविधि इस प्रकार भक्ति विनोद ठाकुर 150 साल पहले चैतन्य चरितामृत को खोज रहे थे, 150 साल पहले भक्ति विनोद ठाकुर मायापुर, नवदीप, बंगाल और उड़ीसा में थे | वे खोज रहे थे खोज रहे थे और लिख रहे थे लिख रहे थे, सूचनाएं एकत्रित कर रहे थे, उसका कंपाइलेशन, एडिटिंग और प्रिंटिंग कर रहे थे | वही प्रयास आगे श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर के रहे थे और फिर हमारे प्रभुपाद ने उसे जारी रखा | अब मैं कुछ मिनटों में इसके बारे में बताऊंगा | BRT यानी भक्तिवेदांत रिसर्च सेंटर कोलकाता में है | वहां भी मैं गया था | उसके पहले मैं कटहलतला भी गया, जहां श्रील प्रभुपाद का 125 वर्ष पूर्व जन्म हुआ था | इसीलिए प्रभुपाद का इस वर्ष हम 125th बर्थ एनिवर्सरी मना रहे हैं | कटहल के पेड़ के नीचे प्रभुपाद का जन्म हुआ यह हम पिछले 50 सालों से सुन तो रहे थे किन्तु कल अंततः मैं वहां पहुंच ही गया | मैं इस्कॉन कोलकाता के अधिकारियों का अभिनंदन कर रहा था आभार प्रकट कर रहा था | उस स्थान को प्राप्त करने के लिए उनको बहुत प्रयास करना पड़ा | प्रभुपाद वैसे चाहते थे इस्कॉन को यह कटहलतला ले लेना चाहिए | उन्होंने संकर्षण प्रभु को एक पत्र भी लिखा था जो प्रभुपाद के शिष्य भी थे और प्रभुपाद के ब्लड रिलेशन में भी थे, वे आज भी है और मैं उनसे 2 दिन पहले मिला था| इस्कॉन कोलकाता में राधा रमन प्रभु है, उनके और भक्तों के प्रयासों से ही और ममता बनर्जी के योगदान से यह संभव हुआ कि वह स्थान अब इस्कॉन के साथ है, इस्कॉन के हाथ में है, इस्कॉन की संपत्ति है | वहां मैं गया और प्रभुपाद की गुरु पूजा की, कई सारे भक्त वहां इकट्ठे हुए थे | वह कटहल का पेड़ प्रभूपाद के जन्म का साक्षी है, उस वृक्ष का मैंने आलिंगन किया, गले लगाया, नमस्कार किया, प्रदक्षिणा की | खोज रहा था कि उस समय का कोई और भी वहां होगा परंतु कोई मुझे दिखा नहीं, सिर्फ वह पेड़ ही था या हैं, 125 साल या उससे भी अधिक पुराना | मायापुर में जब उत्सव हो रहा था, "प्रभुपाद आ रहे हैं, प्रभुपाद आ रहे हैं" | उस उत्सव का नाम प्रभुपाद वैभव दर्शन उत्सव दिया था | TOVP मे प्रभुपाद की मूर्ति का अभिषेक हुआ | उस दिन एक वृक्षारोपण भी हुआ, एक वृक्ष का रोपण हुआ, कटहल के वृक्ष का रोपण भी हुआ और मुझे भी उस वृक्षारोपण में सहयोग करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | मैं भी एक वृक्षरोपण करने वाला था | वह कटहल का पौधा प्रभुपाद के जन्म स्थान के कटहल के वृक्ष के फल के बीज से उगाया गया था, मायापुर में TOVP मंदिर के आंगन में ही उस बड़े कटहल के वृक्ष के बच्चे का रोपण हुआ | तो मैंने कहा कि इस वृक्ष का नाम प्रभुपाद वृक्ष होगा | फिर हम कोलकाता में प्रभुपाद जन्म स्थान से भक्ति वेदांत रिसर्च सेंटर गए और वहां हमने देखा, जो कहीं पर भी नहीं देखा और कभी भी नहीं देखा, ऐसा वहां देखा और सुना | वहां महाप्रभु की हस्तलिखि देखी, भक्त मुझे चैतन्य महाप्रभु की हैंडराइटिंग दिखा रहे थे, भक्ति विनोद ठाकुर, भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर और प्रभुपाद के हैंडराइटिंग देखी | चैतन्य महाप्रभु और चैतन्य महाप्रभु के परिकरो के सारे शास्त्र हैंड रिटेन पांडुलिपिया देखी जो पत्तों पर लिखी हुई | यह सब वहां पर संग्रहित किया हुआ है | मैं उनका स्पर्श भी कर रहा था, यह बड़ा रोमांचकारी अनुभव रहा | वहां एक बहुत वृहद संग्रह है जो जीबीसी की इनीशिएटिव से हुआ है | हरिसोरी प्रभु प्रभुपाद के शिष्य है, उन्होंने ये कार्य किया | श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर की व्यक्तिगत लाइब्रेरी उनके तिरोभाव के उपरांत उनके एक ज्येष्ठ विद्वान शिष्य के पास थी, उनके कब्जे मे थी वो दे नहीं रहे थे, फिर उन्होंने किसी को श्रील भक्ति बिवुध बोधयान महाराज को सौप दिया | उन्होंने विशेष कृपा की फिर भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर की पूरी लाइब्रेरी आज भक्ति वेदांत रिसर्च सेंटर में है | मैंने कल जपा टॉक में कहा था कि भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने वृहद मृदंगम नामक मैगजीन बनाई थी और वह छापते भी थे, मैंने इसे कई बार पढ़ा भी था | मैं सोच रहा था कि यह डेली न्यूज़ पेपर कुछ दिन के लिए ही छपा होगा, या कुछ महीनों तक | लेकिन कल मैंने अपनी आंखों 5000 न्यूज़पेपर देखे | यह न्यूज़ पेपर रोज छपते थे और उनका खुद का एक प्रिंटिंग प्रेस भी था| यह 8 पन्ने का डेली न्यूज़ पेपर हुआ करता था, जिसका नाम वृहद मृदंग था और यह बंगला भाषा में था क्योंकि कोलकाता में इसका पब्लिकेशन होता था | यहाँ प्राचीन ग्रंथ और पांडुलिपिया, हैंडराइटिंग आदि का संग्रह है और बहुत कुछ संग्रह करना जारी है | बहुत बड़ा खजाना वहाँ है | इस्कॉन के भक्तों के लिए वहां जाकर स्टडी और रिसर्च करने के लिए फैसिलिटी भी है | मुझे भी आमंत्रित कर रहे थे कि आप आइए यहां रहिए और कुछ रिसर्च और पठन-पाठन कीजिए | इस सेंटर का कई विश्वविद्यालयों के साथ भी एफीलिएशन हो रहा है | इसकी कई शाखाएं भी स्थापित हो रही हैं | इसका विस्तार भी हो रहा है | भक्त वहां उन स्थानों का नाम ले रहे थे जहां पर भक्ति वेदांत रिसर्च सेंटर का विस्तार की स्थापना होगी | कलेक्शन, उसका प्रिजर्वेशन, प्रोपेगेशन, शेयरिंग और पब्लिकेशन यह सब इनका कार्य है | Books are the basis. यहां गौड़ीय वैष्णव ग्रंथ, वैदिक वांग्मय भी बहुत मात्रा में है | इस सेंटर से हम और अधिक धनी हो गए हैं | हमें और अधिक गंभीर होना चाहिए यह जानकर कि हमारे आचार्यों ने क्या-क्या नहीं किया, शास्त्रों की रचना, रिसर्च, पुस्तके लिखना ताकि हमारी परंपरा जीवित रहे, पुनर्जीवित हो और उसका प्रकाशन हो | मुख्य तौर पर भक्ति वेदांत रिसर्च सेंटर के दर्शन से मैं काफी प्रभावित हुआ हूँ | देखते हैं इस प्रभाव से आगे क्या होता है, स्वभाव में कुछ अंतर आता है क्या? हरे कृष्णा

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