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हरे कृष्ण जप चर्चा पंढरपुर धाम से 7 फरवरी 2021 हरे कृष्ण। गौरांग! आज हमारे साथ 708 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। गौर प्रेमानंदे हरी हरीबोल! तो आज रविवार है, और यह छुट्टी का दिन है। जो छुट्टी कुछ लोगों ने पहले ही ले ली है! आज संख्या कम है, जो हर रविवार को होती है और हमारे जो क्रिश्चियन भाई हैं, उनकी एसी समझ है कि, भगवान ने 6 दिन में सृष्टि का निर्माण किया और 7 वे दिन उन्होंने विश्राम किया और जिस दिन भगवान ने विश्राम किया, वह दिन रविवार था! उनका आचरण करते हुए, भगवान के चरणों का अनुसरण करते हुए लोग भी रविवार को छुट्टी ले लेते हैं। हरि हरि। वैसे यह समझ तो ठीक नहीं है, भगवान ने कैसे सृष्टि का निर्माण किया यह समझने के लिए आपको भागवतम पढ़ना होगा या वैदिक वाङ्गमय में आपको इसकी जानकारी मिलेगी कि भगवान ने कैसे सृष्टि का निर्माण किया और वैसे भगवान तो कभी विश्राम लेते ही नहीं! आराम क्या है? हराम है। आराम हराम है! और यहां पर हराम की अनुमति नहीं है। उसका निषेध है। हरी हरी। तो रविवार को भी छुट्टी लेनी है तो आप अपने ऑफिस के काम से छुट्टी ले सकते हो लेकिन, भक्ति के कार्यो के लिए जैसे कि, विशेषकर महामंत्र का जप करने में हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। इसका जप करने के लिए विश्राम नहीं ले सकते! हरि हरि। ठीक है। तो यह बातें हैं ही और भी बातें करेंगे वह भी ऐसे ही बातें हैं। कल हम नित्यानंद प्रभु के बारे में बात कर रहे थे, जो नित्य आनंद, कब-कब आनंद? नित्यानंद! नित्य आनंद यानी सदा के लिए आनंद! नित्यानंद प्रभु! जो सदा मस्त रहते हैं। इसीलिए उनका नाम है नित्यानंद! वैसे वह आनंद की मूर्ति तो है ही और यह मूर्ति सदा के लिए यानी शाश्वत है और इस गीत में जिसमें नरोत्तम दास ठाकुर की यह रचना है, कोटी चंद्र की चतुराई इसी गीत के अंत में सुख और आनंद की चर्चा हो रही है, नरोत्तम दास ठाकुर लिख रहे हैं, नरोत्तम दास ठाकुर जो स्वयं एक महान आचार्य रहे। हरि हरि। नित्यानंद प्रभु तो स्वयं भगवान हैं, बलराम हैं! कृष्ण के प्रकाश हैं। सबसे पहले की उत्पत्ति हुई थी। भगवान के यानी कृष्ण के कई सारे विस्तार हैं, एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् । इन्द्रारिव्याकुलं लोकं मृडयन्ति युगे युगे ॥ (श्रीमद भागवत १.३.२८) अनुवाद:- उपर्युक्त सारे अवतार या तो भगवान् के पूर्ण अंश या पूर्णांश के अंश ( कलाएं ) हैं , लेकिन श्रीकृष्ण तो आदि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं । वे सब विभिन्न लोकों में नास्तिकों द्वारा उपद्रव किये जाने पर प्रकट होते हैं । भगवान् आस्तिकों की रक्षा करने के लिए अवतरित होते हैं । भगवान के कई सारे विस्तार या अंशाश अंश या अंशांशअंश हैं। अंश के अंश के अंश के भी अंश हैं। लेकिन पहला विस्तार तो बलराम ही हैं और श्रील प्रभुपाद लिखते हैं एक स्थान पर कि, कृष्ण संपूर्ण भगवान हैं! 100% भगवान हैं, बलराम कितने भगवान हैं? 98% परसेंट भगवान हैं, यह 19-20 का फर्क है। कृष्ण और बलराम में कोई भिन्नता नहीं है। हरी हरी। इसीलिए रासक्रीडा खेलने वाले केवल यह दो ही भगवान हैं। एक कृष्ण भगवान हैं जो रासक्रीडा खेलते है, और दूसरे हैं बलराम! तीसरे कोई नहीं जो रासक्रीडा खेलते हैं। राम भी नहीं खेलते और वराह या नृसिंह भी नहीं खेलते। कोई भी ऐसी क्षमता नहीं रखते! उन हर एक के पास अपनी खुद की लक्ष्मी है और उनसे वे प्रसन्न हैं। हर विस्तार या अवतार की अपनी-अपनी एक लक्ष्मी होती है। लेकिन कृष्ण और बलराम की कितनी लक्ष्मी हैं? लक्ष्मीसहस्रशतसम्भ्रमसेव्यमानं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ॥ (ब्रह्मसंहिता २९) अनुवाद-जहाँ लक्ष-लक्ष कल्पवृक्ष तथा मणिमय भवनसमूह विद्यमान हैं, जहाँ असंख्य कामधेनु गौएँ हैं, शत-सहस्त्र अर्थात् हजारों-हजारों लक्ष्मियाँ-गोपियाँ प्रीतिपूर्वक जिस परम पुरुष की सेवा कर रही हैं, ऐसे आदिपुरुष श्रीगोविन्द का मैं भजन करता हूँ। हर वैकुंठ में भगवान के एक एक अवतार हैं और उनके साथ उनकी लक्ष्मी या उनकी अर्धांगिनी या उनकी आल्हादिनी शक्ति है। किंतु वृंदावन में लक्ष्मीसहस्रशतसम्भ्रमसेव्यमानं लाखों-करोड़ों, असंख्य गोपिया हैं, जिनको लक्ष्मी कहते हैं लेकिन उन्हें वृंदावन में गोपी कहते हैं। कृष्ण कि तो अपनी गोपियां हैं ही, लेकिन बलराम के भी अपनी अलग गोपियां हैं, जिनके साथ वे वृंदावन में रामघाट पर (जब द्वारका से वृंदावन 2 महीने के लिए) आए थे तब बलराम जी ने रासक्रीडा खेली और वैसे कई स्थानों पर भी खेली है। ऐसे बलराम हैं, बलराम के ही बने हैं नित्यानंद प्रभु! एक हैं बलराम भगवान जो आचार्य की भूमिका निभाते है, जो कि आदिगुरु हैं। तो बलराम होईले निताई तो नित्यानंद प्रभु भी आदिगुरु की भूमिका निभाते हैं। उनके समक्ष नरोत्तम दास ठाकुर बोल रहे हैं कि, नरोत्तम बडो दुखी यह नरोत्तम आपसे जो निवेदन कर रहा है या आपके समक्ष है तो यह नरोत्तम कैसा है? नरोत्तम बडो दुखी, निताई मोर कर सुखी तो हे नित्यानंद प्रभु इस दुखी नरोत्तम को सुखी कीजिए! नरोत्तम दास ठाकुर की यह विनम्रता है इसीलिए वह कह रहे हैं कि मैं दुखी हूं, जो कि वह दुखी नहीं हो सकते और हमें वह सिखा रहे हैं जो कि सचमुच दुखी है यानी हम जो कभी मान्य नहीं करते कि हम दुखी हैं। लेकिन नरोत्तमदास ठाकुर अपने व्यवहार से या इन वचनों से हमें सिखा रहे हैं कि, हमे प्रामाणिक रहना चाहिए! हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि, हम बड़े दुखी हैं और निताई मोर सुखी और हमारे जो गुरुजन हैं जो नित्यानंद प्रभु का प्रतिनिधित्व करते हैं, या फिर नरोत्तम दास ठाकुर का प्रतिनिधित्व करता है, हमें उनके चरणों में पहुंचकर उनसे प्रार्थना करनी चाहिए या आप कह सकते हो कि, हम दुखी हैं! हरि हरि। शायद आप या हम हमारे दुख का कारण नहीं जानते किंतु नित्यानंद प्रभु के, या उनके परंपरा में आने वाले (जो नित्यानंद प्रभु के परंपरा में आने वाले) आचार्य या गुरुजन जानते हैं! अगर हम दुखी हैं, यहां पर अगर मगर की बात ही नहीं है! क्योंकि हम दुखी हैं ही! हरि हरि। वह हमें बताएंगे कि हमारे दुख का कारण क्या है जैसे कि बिजनेस में दिवाला निकल गया, यह हुआ वह हुआ किसके कारण हम दुखी हैं ऐसा हम मानते हैं और ऐसे कई सारे कारण बन जाते हैं! हर रोज नए नए कारण बनते हैं, सुबह एक दुख का कारण तो दोपहर में अलग या फिर रात्रि में कोई अलग कारण बन जाता है। ठीक है! क्योंकि दुख का कारण है सुख! ऐसा संबंध इस संसार में कौन जानता है? अगर आप दुखी होना नहीं चाहते हो तो इस संसार में सुखी होने का विचार छोड़ दो! हरि हरि। तो सुख का परिणाम है दुख! ये हि संस्पर्शजा भोगा दु:खयोनय एव ते | आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः || (भगवतगीता ५.२२) अनुवाद : बुद्धिमान् मनुष्य दुख के कारणों में भाग नहीं लेता जो कि भौतिक इन्द्रियों के संसर्ग से उत्पन्न होते हैं | हे कुन्तीपुत्र! ऐसे भोगों का आदि तथा अन्त होता है, अतः चतुर व्यक्ति उनमें आनन्द नहीं लेता | यहां पर भगवान श्री कृष्ण कह रहे हैं, अब यहां पर तत्वज्ञान शुरू हुआ। अब नरोत्तम दास ठाकुर के इस गीत को हम गा के, सुना के समझाना चाहते थे। ये हि संस्पर्शजा भोगा दु:खयोनय एव ते | लेकिन हमारी इंद्रियां इस संसार के इंद्रियों के विषयों के संपर्क में जब आती हैं संस्पर्श, कैसा स्पर्श? संस्पर्श! नजदीक का स्पर्श! होता है तो क्या होता है? हमारी इंद्रियां या इंद्रियों के विषय में होता है दु:खयोनय एव ते योनि मतलब स्रोत। जिसने आपको या जिस चीज ने आपको कुछ क्षणों के लिए आपको सुखी किया वही आपके दुख का कारण बन जाएगा या बनता ही है! एक्शन का होता है रिएक्शन! ऐसा हमने भौतिकशास्त्र में पढ़ा है, यहां पर यह बात समझ में आती है। लेकिन एक्शन का जो रिएक्शन है यह दुष्परिणाम निकलता है और दुख , कृष्ण आगे कह रहे हैं कि, आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः सुख अभी शुरू हो ही रहा था, उसका अंत भी हुआ और दुख की शुरुआत भी हो गई। सुख का शुरुआत और उसका अंत और उसका अंत यानी दुख कि शुरूवात। मतलब यह ही दुख का कारण बनता है इस बात को कब समझेंगे हम? भगवान कह रहे हैं आंख बंद करके तर्क मत कीजिए। इसमें शंका की कोई बात होनी ही नहीं चाहिए। भगवान ऐसा कहा भी है। अज्ञश्र्चाद्यधानश्र्च संशयात्मा विनश्यति | नायं लोकोSस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः || (भगवत गीता 4.40) भावार्थ- किन्तु जो अज्ञानी तथा श्रद्धाविहीन व्यक्ति शास्त्रों में संदेह करते हैं, वे भगवद्भावनामृत नहीं प्राप्त करते, अपितु नीचे गिर जाते हैं | संशयात्मा के लिए न तो इस लोक में, न ही परलोक में कोई सुख है | मैं जो कहता हूं उसमें अगर आपका संशय है तो फिर आपका विनाश होगा। श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः |ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति || (भगवत गीता 4.39) भावार्थ- जो श्रद्धालु दिव्यज्ञान में समर्पित है और जिसने इन्द्रियों को वश में कर लिया है, वह इस ज्ञान को प्राप्त करने का अधिकारी है और इसे प्राप्त करते ही वह तुरन्त आध्यात्मिक शान्ति को प्राप्त होता है | श्रद्धावान श्रद्धा के साथ जो मैंने ज्ञान दिया है गीता के रूप में भागवत के रूप में भी वेद है पुराण है। जीवरे कृपया कैला कृष्ण वेद पुराण जीवो के कल्याण के लिए भगवान ने यह वेद, पुराण, गीता, भागवत कहे या इसकी रचना की। श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं जो श्रद्धावान है उनको ज्ञान प्राप्त होगा, यहां नरोत्तम दास ठाकुर निवेदन कर रहे हैं नित्यानंद प्रभु के चरणो में। यह नरोत्तम तो दुखी है निताय कोरो मोरे सुखी। नित्यानंद प्रभु इस दुखी नरोत्तम को सुखी बनाइए। हां हां प्रभु नित्यानंद प्रेमानंद सुखी कृपा अवलोकन कोरो आमी बड़ा दुखी। नरोत्तम दास ठाकुर की एक और रचना श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु दया करो मोरे यह जो गीत है। वहां पर एक एक पंचतत्व के गुण गाए हैं। नित्यानंद प्रभु की बात वह कहना चाहते थे, वहां पर उन्होंने कहा है। हे नित्यानंद प्रभु आप तो प्रेम आनंद के सागर में गोते लगाते रहते हो। आप स्वभाव से ही आनंद में हो। आप आनंद की मूर्ति हो, आपका जो स्वरुप है वह आनंद का स्वरुप है। किंतु मैं दुखी हूं। इसीलिए कृपा करो, हे नित्यानंद प्रभु। हमारे लिए भगवान की व्यवस्था है भगवान उनके प्रतिनिधि को भेजते हैं। जनता को कहते हैं कि आप इनके पास जाओ। तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया |उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः || (भगवत गीता 4.34) भावार्थ- तुम गुरु के पास जाकर सत्य को जानने का प्रयास करो , उनसे विनीत होकर जिज्ञासा करो और उनकी सेवा करो | स्वरुपसिद्ध व्यक्ति तुम्हें ज्ञान प्रदान कर सकते हैं, क्योंकि उन्होंने सत्य का दर्शन किया है | आप सीधा बलराम या नित्यानंद प्रभु से नहीं मिल सकते, पहले किस को मिलो? बलराम या नित्यानंद प्रभु के प्रतिनिधि को मिलो। हरि हरि। एक ही बात है नित्यानंद प्रभु का या कृष्ण बलराम का, गौर निताई का वह प्रतिनिधित्व करते हैं। आपको भगवत गीता यथारूप सुनाएंगे। कृष्ण ने जैसी सुनाई गीता ऐसी ही सुनाएंगे यह सारे आचार्य गुरुवृन्द। एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदु:। स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप || (भगवत गीता 4.2) भावार्थ- इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा | किन्तु कालक्रम में यह परम्परा छिन्न हो गई, अतः यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता है | श्रील प्रभुपाद ने गीता पर भाष्य लिखा और उसको प्रकाशित किया और उसको कहा भगवत गीता यथारूप। ऐसा कहने वाले, लिखने वाले, छापने वाले प्रभुपाद हुए। हर आचार्य जो परंपरा के आचार्य होते हैं, वह भगवत गीता कैसी कहते हैं भगवत गीता यथारुप कहते हैं। श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने भगवत गीता को भगवत गीता यथारूप कहा। उनसे पहले श्रील भक्ति विनोद ठाकुर कह रहे थे भगवत गीता यथारूप। यह परंपरा की खासियत है, परंपरा के आचार्यों का ऐसा उत्तरदायित्व है ऐसी जिम्मेदारी है भगवान के वचनों को यथावत, जैसे वह हैं इसीलिए श्रील प्रभुपाद कहा करते थे। हमारे जो गुरुजन हैं परंपरा के आचार्य हैं, उन्हीं के टीम के प्रचारक होते हैं। शिक्षा गुरु होते हैं, दीक्षा गुरु होते हैं। उन सभी को भी भगवत गीता यथारूप ही कहनी होती है। यदि आप नहीं कहोगे तो आप बाहर जा सकते हो। हरि हरि। हम चार नियमों का पालन करते हैं। इसमें एक है जुआ नहीं खेलना। इसका मतलब जुआ,स्टॉक एक्सचेंज, घुड़दौड होते हैं। इस प्रकार का जुआ तो चलता ही रहता है। बिंगो कुछ होता है क्या ? जुआ सुप्रसिद्ध तो है ही। लेकिन दूसरा एक और भयानक जुआ है खतरनाक सावधान। जुआ कहो या ठगाई कहो, फंसाना कहो। हम फंसे हैं ही और फंस जायेंगे। संसार में सब बुरी तरह से फंसे हुए हैं, बद्ध हैं। जुए से हम और बढ़िया से फंस जायेंगे। वह जुआ है जो परंपरा का प्रचार नहीं करेंगे। परंपरा का यथारूप प्रचार करने के बजाए मेरा विचार, मेरा खयाल, मुझे लगता है उसको हम दूसरे शब्दों में मनोधर्म कैसा धर्म मनोधर्म, हर एक मन का धर्म। जितने मत हैं उतने पथ हैं। ऐसा कहना सारा जुआ है, ठगाई है। धोकेबाज और धोखा देना, ऐसा प्रभुपाद कहा ही करते थे। इस संसार में यह चलता रहता है। अधर्म के क्षेत्र में तो यह खूब चलता रहता है। जुआ, जुगाढ़ या मनोधर्म क्षेत्र में यह चलता रहता है। जितना जुआ इस क्षेत्र में होता है उतना तो कोई नहीं कर सकते। कलयुग में जुआ और गुमराही और बढ़ जाती है। इसीलिए भागवत में कहा है मंद: सुमंदमतयो। एक तो लोग मंद और नीरस हैं, उसका लाभ कौन उठाते हैं सुमंदमतयो। मती का बहुवचन हुआ मतया। मंदबुद्धि के लोग हैं या मंदमती भागवत के प्रथम स्कंद में कहा है। यह कलयुग के लक्षण हैं। सुमंदमतयो - सुमंद मती जिनकी है, इसे आसान हो जाता है लोगों को ठगाना, लोग मंद है। गुमराह सभ्यता - श्रील प्रभुपाद ने कहै है समाज बिना सिर के है, यह सिर कौन है आचार्य। एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदु: | ऐसे आचार्य नहीं हैं या हैं तो उनको सुनेंगे नहीं हम। उस परंपरा से जुड़ेंगे नहीं हम। हरि हरि। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हमें नित्यानंद प्रभु के गौर नित्यानंद के परंपरा में आने वाले गौड़ीय वैष्णव को ढूंढना चाहिए उनके पास पहुंचना चाहिए। ऐसा नरोत्तम दास ठाकुर अपने दिल की बात कह रहे हैं। हम दुखी हैं और आप सुखी हो, यह तो सही नहीं है आप सुखी और हम दुखी।आप हमें भी सुखी बनाइए और फिर आपके पास कृष्ण हैं हम ऐसा कह सकते हैं ऐसी समझ होनी चाहिए। आपके पास कृष्ण हैं और आप मुझे कृष्ण दे सकते हो ऐसा निवेदन होना चाहिए। ऐसी अभिलाषा और तीव्र इच्छा के साथ ही मैं आपके पीछे-पीछे या आपकी ओर दौड़ रहा हूं। दौड़ के आया हूं कृपया करके मुझे कृष्ण दीजिए। उस कृष्ण को मुझे दीजिए या कृष्ण का परिचय दीजिए। कृष्ण के साथ मेरा भी संबंध स्थापित कीजिए। गौड़िय वैष्णव परंपरा के आचार्य, गुरुजन ,प्रचारक, शिक्षा गुरु फिर कहेंगे हरे कृष्ण महामंत्र का जप कीजिए। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे और खुश रहिए।तुम कह रहे थे तुम बड़े दुखी हो और कह रहे थे मुझे भी सुखी बना दो, तुम इस तरह खुश रहोगे। भगवान कृष्ण के नाम का उच्चारण हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करो, जप करो और सुखी रहो। यह ज्ञान क ख ग है और यह पी.एच.डी स्तर का भी ज्ञान है। हरे कृष्ण हरे कृष्ण का कीर्तन जप और खुश रहिए। ऐसा बच्चों को कहते हैं जब हम क ख ग सीखेंगे तब हम खुश रहेंगे। आप भी बच्चे हो और थोड़े कच्चे भी हो। हरे कृष्ण जप कीजिए। हरे कृष्ण।

English

7 February 2021 Not following Scriptural injunctions is dangerous gambling Hare Krsna. Gauranga! Devotees are chanting from 708 locations. Today is Sunday and it's a holiday. Today's number is less. This is usual on every Sunday. Our Christian brothers think that out of 7 days in a week, the Lord was engaged for 6 days in creation, and on the 7th day He rested. Following the Lord, people also started taking rest on a Sunday. But this understanding is not true. To understand this you have to study Bhagavatam. The Lord does not rest. You can take a holiday from the office, but not from devotional service. Let's continue with our previous topic. We were discussing Lord Nityananda. Lord Nityananda is the personification of ananda [bliss]. We were discussing the song Nitai pada kamala. nitāi-pada-kamala, koṭi-candra-suśītala je chāyāy jagata jurāy heno nitāi bine bhāi, rādhā-kṛṣṇa pāite nāi dṛḍha kori' dharo nitāir pāy Translation: The lotus feet of Lord Nityananda are a shelter where one will get the soothing moonlight not only of one, but of millions of moons. If the world wants to have real peace it should take shelter of Lord Nityananda. Unless one takes shelter under the shade of the lotus feet of Lord Nityananda, it will be very difficult for him to approach Radha-Krsna. If one actually wants to enter into the dancing party of Radha-Krsna, he must firmly catch hold of the lotus feet of Lord Nityananda. [ Nitai Pada Kamala verse 1 by Narottama Dasa Thakura] In the last lines, Narottama Dasa Thakura who was an acarya in our disciplic succession states… narottama boro dukhī, nitāi more koro sukhī rākho rāńgā-caraṇera pāśa Translation: This Narottama Dasa is very unhappy, therefore I am praying to Lord Nityananda to make me happy. My dear Lord, please keep me close to Your lotus feet. [Nitai Pada Kamala verse 4 by Narottama Dasa Thakura] There are several expansions of Krsna. ete cāṁśa-kalāḥ puṁsaḥ kṛṣṇas tu bhagavān svayam indrāri-vyākulaṁ lokaṁ mṛḍayanti yuge yuge Translation: All of the above-mentioned incarnations are either plenary portions or portions of the plenary portions of the Lord, but Lord Śrī Kṛṣṇa is the original Personality of Godhead. All of them appear on planets whenever there is a disturbance created by the atheists. The Lord incarnates to protect the theists. [SB 1.3.28] Srila Prabhupada writes if Krsna is 100 percent God then Balarama is 98 percent. That's also the reason why only these two, Krsna and Balarama performs the pastime of Rasa Lila. No one else performs Rasa Lila. Even Rama does not. All incarnations have only one single Laksmi, but Krsna and Balarama have unlimited Laksmis. lakshmi-sahasra-shata- sambhrama-sevyamanam govindam adi-purusham tam aham bhajami Translation: I worship Govinda, the primeval Lord, the first progenitor who is tending the cows, yielding all desire,in abodes built with spiritual gems, surrounded by millions of purpose trees, always served with great reverence and affection by hundreds of thousands of lakshmis or gopis. [Brahma Samhita verse 2] In Vaikuntha, each incarnation has one Laksmi but Krsna and Balarama have unlimited Gopis. Even Lord Rama has just one Sita Devi, but in Vrindavan, there are unlimited Gopis or Laksmis. In VrindavanLord Balarama performs Rasa Lila pastimes at Rama-ghata. Balarama or Nityananda is also Adi-Guru. He is the spiritual master. To such Nityananda, Narottama Dasa Thakura is revealing his heart. I am very grief-stricken, please help me. But actually, Narottam Dasa Thakura is an Acarya, a pure devotee. He can't be grief-stricken. But out of humility, he is teaching us. He is representing us and also teaching us that Nityananda knows you are grief-stricken, and you can express this grief to him. We may not know, that we are in grief. But Acaryas in Nityananda Prabhu's disciplic succession know why we are in grief! We may think that we are sad because we had a loss in our business, or due to some other reason, but actually, you are grieving because you wanted to be happy in this world. Who could understand this? We become sad because we wanted to be happy in this world. The result of happiness is sadness. ye hi saṁsparśa-jā bhogā duḥkha-yonaya eva te ādy-antavantaḥ kaunteya na teṣu ramate budhaḥ Translation: An intelligent person does not take part in the sources of misery, which are due to contact with the material senses. O son of Kuntī, such pleasures have a beginning and an end, and so the wise man does not delight in them. [BG 5.22] When our senses come in contact with sense gratification objects, we express some pleasure. When those objects are taken away from us then we feel distressed. It is like action and reaction, as explained in physics. It's a cycle of happiness and distress. It goes and on. When are we going to understand this? Lord has explained this in Bhagavad Gita, Why we don’t believe! It is said in Bhagavad Gita. If you doubt this, then there is no hope for you. But if you accept with faith, then you will understand everything. In another Song, Narottam Dasa Thakura says, hā hā prabhu nityānanda, premānanda sukhī kṛpābalokana koro āmi boro duḥkhī Translation: My dear Lord Nityananda, You are always joyful in spiritual bliss. Since You always appear very happy, I have come to You because I am most unhappy. If You kindly put Your glance over me, then I may also become happy.[ Sri Krsna Caitanya Prabhu Doya Koro More by Narottama Dasa Thakura] Narottama Dasa Thakura is saying, Nityananda Prabhu, you are the personification of Ananda/Bliss... kṛpābalokana koro āmi boro duḥkhī He is praying, please be merciful to me, I am very much in grief. We cannot approach Balarama directly but we can approach the representative of the Lord Balarama, the spiritual master, and other devotees. tad viddhi pranipatena pariprasnena sevaya upadeksyanti te jnanam jnaninas tattva-darsinah Translation Just try to learn the truth by approaching a spiritual master. Inquire from him submissively and render service unto him. The self-realized soul can impart knowledge unto you because he has seen the truth.[ BG 4.34] If you approach the representative then, they will speak from Bhagavad Gita As It Is. evam parampara-praptam imam rajarsayo viduh Srila Prabhupada wrote Bhagavad Gita As It Is and it's the responsibility of the Acaryas coming in the line of disciplic succession to present Bhagavad Gita As It Is. Srila Bhaktivinoda Thakur and Srila Bhaktisiddhanta Saraswati also did the same. Siksa Guru and Diksa Guru should speak from Bhagavad Gita As It Is. One has to repeat what Krsna has said, but if we deviate then we are out. We hear, one of the regulative principles is "No Gambling". What do you think is gambling? You may think, horse race, bingo, etc but if you preach, what you think, your mind, your perception then this is also gambling. In Kaliyuga, especially in the case of spiritual matter, this type of gambling often takes place. In Kaliyuga, people are very less intelligent, and they are misguided. prāyeṇālpāyuṣaḥ sabhya kalāv asmin yuge janāḥ mandāḥ sumanda-matayo manda-bhāgyā hy upadrutāḥ Translation O learned one, in this iron age of Kali men have but short lives. They are quarrelsome, lazy, misguided, unlucky and, above all, always disturbed.[SB 1.1.10] This makes gambling easier. There are cheaters and the cheated. This society is headless. Acaryas are the head of any society, but such acaryas are very rare and even if they are there, we won't hear from them. We should search and approach a bonafide spiritual master, coming in the disciplic succession of Lord Nityananda Prabhu. As Narottama Dasa Thakur is praying to Nityananda "You are blissful and I am so sad, this is not fair". krishna se tomara, krishna dite paro, tomara sakati ache ami to’ kangala, ‘krishna’ ‘krishna’ boli’, dhai tava pache pache Translation: Krsna is yours; you have the power to give Him to me. I am simply running behind you shouting, "Krsna! Krsna!”[ Ohe! Vaisnava Thakura verse 4] Narottama Dasa Thakura sings. You have Krsna, please make me also happy, please give me Krsna. Then the spiritual master tells you to chant.... Hare Kṛṣṇa Hare Kṛṣṇa Kṛṣṇa Kṛṣṇa Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare And he will then say chant and be happy. Hare Krsna

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