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11 अक्टूबर 2020 आज हमारे साथ 651 स्थानों से भक्त जब कर रहे है। हरि हरि बोल! कल रात हम सब विश्व हरिनाम महोत्सव का कार्यक्रम देख रहे थे। जय श्रीकृष्णचैतन्य प्रभु नित्यानंद। श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौर भक्तवृंद ।। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। भजहुँ रे मन श्रीनन्दनन्दन, अभय चरणारविन्द रे। इस गीत को हम पढ़ रहे है, गा तो नहीं रहे पढ़ के कुछ सुना रहे है। सुनो और आप और किसी को सुना सकते हो। इस भजन को लेकर आप प्रवचन भी दे सकते हो, कथा कर सकते हो! आपको भगवतगीता के श्लोक याद नहीं आ रहे है तो इस गीत को ही याद करो या कंठस्थ करो या फिर वैष्णव गीत या गीतावली सामने रख भी सकते हो और फिर प्रवचन दो, या कथा करो! श्रील प्रभुपाद भी इस गीत को गाया करते थे और इस गीत से उदाहरण दिया करते थे भजहुँ रे मन श्रीनन्दनन्दन इस का सार है! और सारी बातें इसमें कह जा रही है भजहुँ रे मन श्रीनन्दनन्दन मतलब नंदनंदन को भेजो! नंदन नंदन कैसे है? अभय चरणारविन्द रे चरणारविंद, नंद नंदन के चरणारविंद यानी अभयदान देने वाले चरन। आप निर्भय बनोगे जब आप नंदनंदन का भजन करोगे! कृष्ण भी कितने प्यारे है! आप इस चित्र में देख रहे हो कि, भगवान अपने सर पर नंद बाबा का जूता उठाए हुए है, ऐसे है कृष्ण, अद्भुत कृष्ण! हरि हरि। तो यही सब हम पिछले 2 दिनों से कह रहे थे या सुना रहे थे। दुर्लभ मानव-जनम सत्संगे... या ए धन, यौवन, पुत्र परिजन, इथे कि आछे परतीति रे। हम कभी सुखी तो कभी दुखी,कभी जवान तो कभी बूढ़ा होते है! हरि हरि। कमलदल-जल, जीवन तलमल, भजहुँ हरिपद नीति रे अनुवाद:- यह जीवन कमल के पत्ते पर पड़ी पानी की बूँद के समान अस्थिर है। अतः तुझे सदैव भगवान् श्रीहरि की सेवा एवं उनका भजन करना चाहिए। अब तक गोविंद दास इस गीत में जो बता रहे थे यह सुनकर और गाके यह निष्कर्ष निकाला होगा कि, कमल वाला जल! जीवन ऐसा ही है कैसा है! जब कमल के पुष्प पर जल का बिंदु कभी कभी आ जाता है तो थोड़ी हल्की सी हवा के झोंके के साथ वह जलबिंदु गिर जाता है और थोड़े क्षण के लिए या क्षण भर के लिए ही कमल पर, कमल के दल पर जल का बिंदु रह पाता है या टिकता है। ऐसा ही है हमारा जीवन इसलिए कहा गया है जीवन तलमल हम अशाश्वत है जिसको भगवान कहे है! और इसीलिए यह आगे लिखते है भजहुँ हरिपद नीति रे इस संसारमें आने देता है। यह जीवन अनित्य है, तलमल है। तो क्या करना है? भजहुँ हरिपद नीति रे है मन, भगवान को भज लो! और कब-कब भजो? सब समय भगवान का भजन करो, भगवान की सेवा करो! और भगवान की सेवा ही है जिसको भक्ति कहते है! भगवान के चरण कमलों की सेवा को भक्ति कहते है। और यही भक्ति ही तुम्हारा धर्म भागवत धर्म है। धार्मिक बनो! हे मनुष्य, है जीव या है मन संसार के अनित्य कर्मों में या प्रासंगिक कर्मों में अगर तुम व्यस्त हो या तल्लीन हो तो यह त्यागो और इसके बजे नित्य कर्म करो! इस संसार में पहुंचकर जीव बहिरमुख होकर कई सारे अनित्य या प्रासंगिक कृतियों में उलझ जाता है, फस जाता है। तो यह कृत्य मन के स्तर पर होते है, लेकिन तुम बुद्धि, शरीर या मन नहीं हो! और ना तो तुम देह हो, तुम आत्मा हो! आत्मा बनो और तुम आत्मा हो इस बात का साक्षात्कार करो! (जीव) कृष्णदास, ए विश्वास, कर्’ ले त’ आर दुःख नाइ -राधा कृष्ण बोल बोल बोलो रे सबाइ वैष्णव गीत और यह जीव या हम सब जो जीव है या कम से कम मनुष्य शरीर में जो है वो जीव कृष्णदास बन सकते है! मनुष्य शरीर में जो जीव है वह जीव कृष्ण दासत्व या कृष्ण दास बन सकते है! और यदि ऐसा करोगे तो (जीव) कृष्णदास, ए विश्वास, विश्वास के साथ! पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ अगर तुम भक्ति करोगे तो तुम्हारा सारा दुःख समाप्त होगा! विश्वम पुर्नम सुखायते.. इस संसार को तो भगवान ने दुःखालयम घोषित किया है! किंतु तुम भगवान की भक्ति करोगे तो तुम्हारे लिए यह संसार सुखालय बनेगा! यह सारा विश्व विश्वम पुर्नम सुखायते.. राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् | प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम् || भगवतगीता ९.२ अनुवाद:- यह ज्ञान सब विद्याओं का राजा है, जो समस्त रहस्यों में सर्वाधिक गोपनीय है। यह परम शुद्ध है और चूँकि यह आत्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति कराने वाला है, अतः यह धर्म का सिद्धान्त है। यह अविनाशी है और अत्यन्त सुखपूर्वक सम्पन्न किया जाता है। सुसुखं कर्तुमव्ययम् ऐसे भगवान गीता में कहे है कृष्णभावना हकीकत कैसे किए जा सकते है? सुसुखं सुख पूर्वक! तो इतना कहने पर आगे या अंत में गोविंद दास कहते है, "ठीक है ठीक है! मैं भक्ति करना चाहता हूं, मुझे समझ में आया कि मैं भगवान का दास हूं! तो बताइए मैं क्या कर सकता हूं? कैसे भक्ति कर सकता हूं? या किसे भक्ति कहा जाता है?" तो इसके उत्तर में इस गीत में आगे लिखा है कि, श्रवण, कीर्तन, स्मरण, वन्दन, पादसेवन, दास्य रे। पूजन, सखीजन, आत्मनिवेदन, गोविन्द दास अभिलाष रे।। अनुवाद:- गोविन्द दास की यह चिर अभिलाषा है कि वह नौ विधियों से युक्त भक्ति द्वारा भगवान् की सेवा में संलग्न हो, जो इस प्रकार है - श्रवण, कीर्तन, स्मरण, वंदन, पादसेवन, दास्य, पूजा-अर्चना तथा आत्मनिवेदन। जो गोविंद दास इस गीत के रचयेता है, वे भी कह रहे है कि, "यह मेरी अभिलाषा है कि, है प्रभु! मैं भी चाहता हूं कि आप मुझे भक्ति दान दीजिए, मुझसे भक्ति करवाइए!" कौन-कौन सी भक्ति? श्रवणम, कीर्तनम् या जिन भक्तियों का या भक्ति के प्रकार का उल्लेख हुआ है, जिसको शास्त्र में कहा गया है नवविधाभक्ती भगवत गीता का सार है भक्ति योग, सभी योगियों में श्रेष्ठ होते हैं भक्ति योगी! योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना | श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः || भगवतगीता ६.४७ अनुवाद:- और समस्त योगियों में से जो योगी अत्यन्त श्रद्धापूर्वक मेरे परायण है, अपने अन्तःकरण में मेरे विषय में सोचता है और मेरी दिव्य प्रेमाभक्ति करता है वह योग में मुझसे परम अन्तरंग रूप में युक्त रहता है और सबों में सर्वोच्च है | यही मेरा मत है | गीता के ६ अध्याय के अंतिम श्लोक में भगवान कहते है, कर्मयोगी का उल्लेख हुआ, ज्ञानयोगी का उल्लेख हुआ और अष्टांग योगी का उल्लेख करने के उपरांत भगवान कह रहे है, इन सभी योगियों में भक्तियोगी श्रेष्ठ है! तो भगवतगीता का सार है भक्तियोग! कर्मयोग नहीं! हरि हरि। सारे संसार को गुमराह करने के लिए ऐसे भाष्य लिखने हुए भी कुछ कम नहीं है, लेकिन जब भगवतगीता को यथारूप समझे हुए परंपरा के आचार्यवृंद उनसे जब हम सुनते है तो समझ में आता है कि, गीता का सार भक्तियोग है! हरि हरि। जो सातवें अध्याय से सातवां, आठवां, नोंवा, दसवां, ग्यारहवां, बाहरवा इन 6 अध्याय में भक्तियोग का वर्णन हुआ है। तो भगवतगीता के मध्य वाले जो अध्याय है जिसमें भक्ति के महिमा का ज्ञान हुआ है और इसका गान करने वाले भगवान ही है! तो वह भक्ति या भक्तियोग, योग का मतलब भगवान के साथ हमारा जो संबंध, जो पुनः जागृत करना और पुनः स्थापना करना यह तो है! यही तो है भक्तियोग! भक्तियोग से कर्मयोग फिर कुछ थोड़ा सा संपन्न हुआ ज्ञानयोग उससे और थोड़ा हुआ तो अष्टांगयोग और फिर थोड़ा हुआ लेकिन भक्तियोग से वह संबंध पूर्ण होता है! पूर्णतया स्थापित हुआ भक्तियोग से भक्ति का रस का अनुभव किया जा सकता है! हरी हरी। विश्वम पुर्नम सुखायते.. पूर्ण सुख भक्ति योग से ही संभव है! हरी हरी। तो ऐसे इस गीत में नवविधाभक्ती का उल्लेख है,श्रवण, कीर्तन, स्मरण, वंदन, पादसेवन, दास्य, पूजा-अर्चना तथा आत्मनिवेदन तो यह भक्ति के 9 प्रकार हुए। इसलिए इसको नवधा भक्ति कहा गया है। नवधा भक्ति! और भक्त करता है भक्ति और किसकी भक्ति करता है? तो भक्त भगवान की भक्ति करता है! तो हम साधक बनके इस नवविधा भक्ती को अपनाते है, इसका अवलंबन करते है। और नवविधाभक्ती के माध्यम से हम भगवान को प्रसन्न करते है। हमारी भक्ति अधिकाधिक शुद्ध होगी। शुरुआत में कुछ अपराध भी होंगे लेकिन इस नवविधाभक्ती करने का अभ्यास करते जाएंगे तो यह तो चेतोदर्पण-मार्जनं ही होगा, अनर्थ निवृत्ति होने वाली है या नामाभास या भक्ति के आभास का अनुभव होगा। मतलब भक्ति विकसित हो रही है, लेकिन पूर्ण विकास नहीं हुआ, अब सूर्य उदय होने का समय हुआ है लेकिन सूर्योदय अभी तक नहीं हुआ। अभी तक उषःकाल या भोर का समय इस समय भी सूर्य का प्रकाश होता है किंतु, कम प्रकाश होता है! तो इसी को नामाभास या भक्त्याभास यानी भक्ति के आभास का अनुभव होता है या फिर भाव भक्ति श्रद्धा से प्रेम तक पोहाेंच जाती है। तो कुछ रूचि बढ़ रही है आसक्ति बढ़ रही है, भक्ति के बिना क्या जीना ऐसा हम अनुभव करके जी रहे है या ऐसा अनुभव करके कुछ भाव उदित हो रहे है तो फिर अंततोगत्वा अपनी साधना में जब हम सिद्ध होंगे, साधन सिद्ध होंगे तो भक्ति में जो पूर्ण सुख है इसी पूर्ण सुख को तो प्रेम कहा गया है! तो प्रेम प्राप्ति होगी, कृष्णप्राप्ति होगी, भगवत प्राप्ति होगी और उसी के साथ प्रेमप्राप्ति तो होगी ही गई! भगवान प्रेम की मूर्ति है भगवान सभी रसों के स्रोत है, रसराज है! रसों के राजा है। हरी हरी! तो यह नवविधाभक्ती है! हम साधन सिद्ध हो गए, हम मुक्त हुए या भक्त हुए अब हम भगवान के नित्य दास बन गए वैसे है ही लेकिन भक्ति करते करते हुए जब हम सिद्ध हुए और अब हम भगवान के नित्य सेवा या सदा के लिए सेवा करते रहेंगे,तो फिर देहांत भी हो जाए फिर भी इस सेवा का अंत नहीं होगा। अभी जो जीव भक्ति कर रहा है वैसे वह जीवन मुक्त हो चुका है, अब भी वह इस शरीर में है या इस संसार में है किंतु जो इस अवस्था को प्राप्त किया है इस नवधा भक्ति का अवलंबन करते हुए जिसके भक्ति का पूर्ण विकास हुआ है ऐसे व्यक्ति को कहा जाता है जीवनमुक्त! वे जीवन मुक्त हुए और फिर एक दिन जब शरीर का जन्म हुआ है तो अंत भी होगा देहांत होगा देह का अंत होगा! लेकिन आत्मा का तो अंत होने वाला नहीं है! न जायते म्रियते वा कदाचिन् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः | अजो नित्यः शाश्र्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे || भगवतगीता २.२० अनुवाद:- आत्मा के लिए किसी भी काल में न तो जन्म है न मृत्यु | वह न तो कभी जन्मा है, न जन्म लेता है और न जन्म लेगा | वह अजन्मा, नित्य, शाश्र्वत तथा पुरातन है | शरीर के मारे जाने पर वह मारा नहीं जाता | न जायते म्रियते वा कदाचिन् आत्मा कैसा है? न जायते आत्मा जन्म नहीं लेता, म्रियते नाआत्मा की मृत्यु नहीं होती। जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन || भगवतगीता ४.९ अनुवाद:- हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन जो भगवान को प्राप्त करता है? भगवान जहां रहते हैं वहां जाना है और वहां जाकर क्या करोगे? श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्। अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ इस प्रकार की भक्ति वह भगवत धाम में, वैकुंठ में, द्वारिका में,मथुरा में, वृंदावन में, नवद्वीप में जीव सदा के लिए करता रहेगा! इसीलिए कहा जाता है कि, यह नवविधा भक्ती जिसके अंतर्गत श्रवन है, कीर्तन है, स्मरण भी है तो यह करते करते वंदन, पादसेवन, अर्चन, दस्याम तथा आत्मनिवेदन है। आत्मनिवेदन करते करते ही हम भगवत धाम लौटेंगे! और वहां जाकर सेवा समाप्त होगी ऐसा नहीं होगा, भगवान की सेवा हम सदा के लिए जारी रखेंगे! वहां गोपिया क्या करती है? भगवान को कभी नहीं भूलती, चरण सेवा करती है या अन्य सेवाएं भी करती है। भगवान के लिए मालाएं बनाती है तो यह भी अर्चना हुई। तो इस भक्ति में जो नवविधा भक्ती है जो आप देख रहे हो, जैसे प्रल्हाद महाराज अपने मित्रों को उपदेश दे रहे है। वैसे एक समय जब पिताश्री हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि, "बेटा आओ आओ! (गोद में लेकर उसको पूछे कि) तुम गुरुकुल में क्या सीखे?" तो प्रल्हाद महाराज ने उस समय कहा था कि' "पिताश्री आप पूछ रहे हो कि, मैं क्या सीखा? तो फिर उन्होंने कहा कि, श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्। अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ तो यह नवविधा भक्ती है और ऐसी भक्ति हम सभी को करनी चाहिए! यह बात मैंने सीखी!" वैसे प्रश्न पूछा था, गुरुकुल में क्या सीखा और प्रल्हाद महाराज उत्तर में यह कहें, लेकिन उस गुरुकुल में यह बात नहीं सीखे थे, उस गुरुकुल के गुरु थे शंड और अमर्क और प्रल्हाद महाराज यह नवविधा भक्ती अन्य गुरु से सीखे थे, और वह गुरु थे या है भी साक्षात नारदमुनि! जो स्वयं महाभागवत है और जब प्रल्हाद महाराज अपने मां के गर्भ में थे उसी समय नारदमुनि से यह नवविधा भक्ती सीखे थे। तो यह नवधा भक्ति जिसका भागवत में उल्लेख है प्रल्हाद महाराज जो स्वयं महा भागवत है, भागवत में जो द्वादश भागवत है जेसे, स्वयम्भूर्नारदः शम्भुः कुमार : कपिलो मनुः । प्रह्लादो जनको भीष्मो बलिर्वैयासकिर्वयम् ॥ २० द्वादशैते विजानीमो धर्म भागवतं भटाः । गुह्यं विशुद्धं दुर्बोधं यं ज्ञात्वामृतमश्नुते ॥ २१ श्रीमद भागवत स्कंद ६ अध्याय ३ श्लोक २०-२१ अनुवाद:-ब्रह्माजी , भगवान् नारद , शिवजी , चार कुमार , भगवान् कपिल ( देवहूति के पुत्र ) , स्वायंभुव मनु , प्रह्लाद महाराज , जनक महाराज , भीष्म पितामह , बलि महाराज , शुकदेव गोस्वामी तथा मैं असली धर्म के सिद्धान्त को जानने वाले हैं । हे सेवको ! यह अलौकिक धार्मिक सिद्धान्त , जो भागवत धर्म या परम भगवान् की शरणागति तथा भगवत्प्रेम कहलाता है , प्रकृति के तीनों गुणों से अकलुषित है । यह अत्यन्त गोपनीय है और सामान्य मनुष्य के लिए दुर्बोध है , किन्तु संयोगवश यदि कोई भाग्यवान् इसे समझ लेता है , तो वह तुरन्त मुक्त हो जाता है और इस तरह भगवद्धाम लौट जाता है । जिसमें प्रह्लाद महाराज है, नरादमुनी है, शंभू है, कुमार है, कपिल यह और इसे द्वादश भागवत है। और इन द्वादश भागवत में से नारद मुनि एक है जो नवविधाभक्ति सिखाएं। और फिर प्रह्लाद महाराज आगे इस को समझाएं और फिर नवविधाभक्ति का उल्लेख होता है उससे किसी विशेष आचार्य का नाम जुड़ा है एक भक्ति के साथ और वह है, जब श्रवण की बात करते है तो इसके लिए राजा परीक्षित प्रसिद्ध है, राजा परीक्षित श्रवण के लिए प्रसिद्ध है। और कीर्तन के आचार्य या है संत शिरोमणि सुखदेव गोस्वामी। फिर स्मरण के आचार्य या भक्त है प्रल्हाद महाराज। और पादसेवन कि आचार्या कहना होगा वो है लक्ष्मी, लक्ष्मी देवी की जय! तो भगवान के पादसेवनम के लिए लक्ष्मी देवी प्रसिद्ध है। और दस्यम, रामदास राम भक्त हनुमान की जय! दास हो तो हनुमान जैसा हो! रामदास यह हनुमान का एक नाम है। रामदास कौन है? हनुमान है! दास्य भक्ति के आचार्य कौन है? हनुमान है। और फिर अर्चना के आचार्य शक्त्यावेश अवतार भी है और है पृथु महाराज! और सखा है अर्जुन! स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः | भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् || भगवतगीता ४.३ अनुवाद:- आज मेरे द्वारा वही यह प्राचीन योग यानी परमेश्र्वर के साथ अपने सम्बन्ध का विज्ञान, तुमसे कहा जा रहा है, क्योंकि तुम मेरे भक्त तथा मित्र हो, अतः तुम इस विज्ञान के दिव्य रहस्य को समझ सकते हो। भक्तोऽसि मे सखा चेति भगवान ने कहा, है अर्जुन तुम मेरे भक्त हो सखा हो! तो सखा हो तो अर्जुन जैसा! और फिर अंततोगत्वा क्या करना होता है? मामेकं शरणं व्रज मानस-देह-गेह, यो किछु मोर। अर्पिलु तुया पदे, नन्दकिशोर!॥ वैष्णव गीत श्रील भक्तिविनों ठाकुर अनुवाद:- हे नन्द महाराज के पुत्र, मेरा मन, शरीर, मेरे घर का साज-सामान तथा अन्य जो कुछ भी मेरा है, मैं आपके चरणकमलों पर अर्पित करता हूँ। यहीं तो है आत्मनिवेदन और इस आत्मनिवेदन के आचार्य या भक्त है जो विश्व प्रसिद्ध है और वे है, बलि महाराज! उन्होंने सब कुछ अर्पित किया। हरि हरि। तो ऐसा है यह गीत भजहुँ रे मन श्रीनन्दनन्दन, अभय चरणारविन्द रे इस गीत को आप याद कर सकते हो, गा सकते हो, गा कर सुना भी सकते हो और गीत को सुनाते सुनाते उसको समझा भी सकते हो! और यह जब करोगे तो फिर यारेे देख तारे कह कृष्ण उपदेश आप कर बैठोगे। हरि हरि, निताई गौरप्रेमानंदे हरि हरि बोल!!! किसी का कोई प्रश्न है? अब हमारे साथ 747 भक्त जुड़े हुए है! ठाने से माधवीगोपी माताजी:- दंडवत प्रणाम गुरु महाराज, जैसे आपने अभी बताया कि अर्जुन साख्य भक्ति के भक्त है, लेकिन जैसे हम हमेशा सुनते है वृंदावन के गोपसखा जो विश्रम्भ साख्य के भक्त है उनका साख्यभाव ज्यादा ऊंचा माना जाता है फिरभी साख्य भक्ति के लिए अर्जुन का उदाहरण क्यों दिया जाता है? श्री लोकनाथ स्वामी महाराज:- असामान्य ज्ञान तो यही है, गोलोक की भक्ति और वृंदावन की भक्ति न्यारी है और अधिक प्यारी भी है! लेकिन अधिकतर हम लोग वैकुंठ के भक्ति की चर्चा करते है या, वैकुंठ का भी उल्लेख होता है तो वैकुंठ के स्तर पर या द्वारिका के स्तर पर या हस्तिनापुर के स्तर पर अर्जुन श्रेष्ठ है। भगवान के गोलोक के या वृंदावन के सखा यह सब अति गोपनीय बातें है और इसकी जब चर्चा होगी तब तो मधुमंगल, श्रीदामा, सुदामा इन सब की चर्चा होगी। अति प्रिय नर्म शाखा सखा ऐसे कई सखाओंके उल्लेख है। तो वहां पर अलग से उल्लेख होगा! यह तो राजगुह्य या अधिक गोपनीय है, यह सब सामान्य ज्ञान की बात जब हम करते है तो भगवान के सखा अर्जुन और फिर इस सूची में पादसेवन है तो लक्ष्मी का नाम आया है, तो आप कहोगे राधा कुछ कम है? राधा का नाम क्यों नहीं? लक्ष्मी का नाम क्यों आया है? तो ऐसे ही दो सूचियां हो सकती है जहां तक स्मरण की बात है तो प्रल्हाद महाराज का नाम आ गया लेकिन स्मरण के लिए तो गोपिया की प्रसिद्ध है गोपियों जैसा स्मरण और किसी को करने नहीं आता तो वृंदावन के स्तर की बाते नहीं हो रही है यहां पर। ठीक है! उदयपुर से मायापुरधाम प्रभु:- हरे कृष्ण! दंडवत प्रणाम महाराज! मेरा यह प्रश्न था कि, ब्रह्मा जी के एक दिन में एक हजार चतुर्युग होते है, तो नारद जी 1 दिन के लिए प्रकट होते है या फिर ब्रह्मा जी की जितना जीवनकाल है उतना ही नारादजी का भी है? श्री लोकनाथ स्वामी महाराज:- नारद तो शाश्वत है! नारद जी तो सदा के लिए है। वैसे नारद जी के अलग-अलग जन्म भी बताए गया जब भागवत के प्रारंभ में ही पढ़ते है तो नारद मुनि अपना जीवन चरित्र की संक्षिप्त में कहते है, में एक दासी का पुत्र था और तो भगवान कहे थे नाराज जी को की बस मैं इस जन्म में दूंगा पुनः दर्शन नहीं दूंगा तो अगला दर्शन अगले जन्म में होगा। तो ऐसा कुछ समझ में आता है कि, नारद मुनि समय-समय पर जन्म लिए है वैसे नारद जी तो ब्रह्मा के मानस पुत्र है। ब्रह्मा जी के कई मानस पुत्र है। जो मन से उत्पन्न हुए है जैसे हिमालय में मानससरोवर है वह भी ब्रह्मा जी के मन से उत्पन्न हुआ है, तो ब्रह्मा जी के मन से कई सारे पुत्र जन्म लेते है या उत्पन्न होते है उसमें नारद मुनि अग्रगण्य है। तो नारद मुनि का जन्म जब ब्रह्मा जी का जन्म हुआ तभी हुआ और ब्रह्मा जी ने जिनको जन्म दिया उसमें से प्रथम तो नारद मुनि ही है। तो यह क्या बात है? एक कल्प या ब्रह्मा का एक दिन एक कल्प होता है और पूरा जीवन महाकल्प होता है तो शुरुआत में नारद मुनि का जन्म हुआ है तो नारद मुनि तो शाश्वत है सदा के लिए है। वे तो महा भागवत है! हरि हरि! संगीता महाजन माताजी:- महाराज जप में आसक्ति कैसे निर्माण की जा सकती है? श्री लोकनाथ स्वामी महाराज:- भजन करने से उसका फल मिलता है, अनर्थ से हम मुक्त हो जाते है और जब हम उससे मुक्त होते तो हमारी श्रद्धा दृढ़ होती है और उसको नाम दिया गया है नित्यम भागवत सेवया! शुरुआत में हमारी श्रद्धा होती है फिर जब श्रद्धा दृढ़ होती है उसका नाम है निष्ठा, तो निष्ठावान भक्त भक्ति करता है तो उसे रुचि यानी प्रेम आनंद का वह अनुभव करता है और उसके बाद का स्तर है उसका नाम है आसक्ति! फिर हम आसक्त होते है। तो यह सब करने के बाद जेसे पहले श्रद्धा फिर साधु संग, भजन क्रिया, अनर्थ निवृत्ति, उसके बाद निष्ठा, रुचि और उसके बाद भाव निर्माण होगा और कृष्ण प्रेम प्राप्त होगा! यह सब आप सुनते हो ना? या फिर भक्तिरसामृतसिंधु पढ़ो! पहले शास्त्रों का अध्ययन करो! गीता- भागवत, चैतन्य चरितामृत, उपदेशामृत, भक्तिरसामृतसिंधु नाम का ग्रंथ है, यह सब ग्रंथ है और ग्रंथ यही हमारे गुरु है ऐसे मराठी में कहा जाता है, तो हमारे गुरु का या शास्त्रों का मार्गदर्शन प्राप्त करो यह प्रश्न इतना कठिन नहीं है! हम स्वयं कुछ प्रयास नहीं करते अध्ययन नहीं करते। अध्ययन करो यह सब बताया जाता है लेकिन हम भूल जाते है,आप उसे लिखकर नहीं रखते हो या याद में नहीं रखते हो, आप उसका अभ्यास नहीं करते हो, लेकिन सवाल करते रहते हो। शास्त्रों का अध्ययन करना जरुरी है। महाराज इंक्वायरी काउंटर नहीं है! आप भी कुछ पढ़ो, समझो। हरी हरी!

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Наставления после совместной джапа сессии 11 Октябрь 2020 г. БХАДЖАХУ РЕ МАНА (МОЛИТВА УМУ, ЧАСТЬ 3) Харе Кришна! Прямо сейчас с нами воспевают преданные из 650 мест. Вчера у нас была большая церемония благодарения за проведение Всемирного фестиваля святого имени в Индии. шри-кршна-чаитанйа прабху-нитйананда шри-адваита гададхара шривасади-гаура-бхакта-вринда Харе Кришна Харе Кришна Кришна Кришна Харе Харе Харе Рама Харе Рама Рама Рама Харе Харе бхаджаху ре мана шри-нанда-нандана Мы обсуждали эту песню. Хотя мы не поем эту песню, мы подробно обсуждаем ее смысл. Вы также можете читать лекции по этой песне. Если вам сложно запомнить шлоки Гиты и Бхагаватам, вы можете выучить наизусть эту песню и читать по ней лекции. Шрила Прабхупада часто пел эту песню и давал отрывки из нее много раз во время классов. Она имеет большое и глубокое значение. Мы обсуждаем, как Кришна прекрасен и удивителен. Его лотосные стопы - прибежище бесстрашия. Господь носит на голове туфли Махараджа Нанды. Последние два дня мы это обсуждали. дӯрлабха ма̄нава джанама сат-сан̇ге тарохо э бхава-синдху ре Перевод: Обретя редкое человеческое рождение, общайся со святыми и ты пересечешь океан материального существования. (Бхаджаху ре мана, стих 1 из песни Говинды Даса Кавираджа) Иногда мы становимся счастливыми, иногда - печальными, иногда становимся молодыми, а иногда стареем. камала-дала-джала, джӣвана т̣аламала бхаджаху̐ хари-пада нити ре Перевод: Эта жизнь так же непостоянна, как капля воды на лепестке лотоса. Поэтому всегда служи и поклоняйся божественным стопам Господа Хари! (Бхаджаху ре мана, стих 3 из песни Говинды Даса Кавираджа) Следующая строчка Говинды даса в этой песне говорит, что жизнь нестабильна, как капля воды на лепестке лотоса. Один порыв ветра - и вода ушла. Вода остается там всего на несколько мгновений. Жизнь сравнивают с каплей воды на лепестке лотоса. Это не только временно, но и неопределенно. Что же тогда делать? бхаджаху̐ хари-пада нити ре Бхаджан - это решение, всегда оказывайте служение Господу и Его лотосным стопам. Это бхакти. Откажитесь от любых других мирских занятий и займитесь служением Кришне. Вы не тело, ум или разум. Вы душа, поэтому займите это тело, ум и разум служением Кришне. (джив) кришна-дас, э бишвас, корле то' ар духкхо наи Перевод: Но когда ты обретешь веру в то, что душа - вечная служанка Кришны, все твои страдания исчезнут без следа. (Радха Кришна бол бол, стих 2 из "Гитавали" Бхактивиноды Тхакура) Осознай и поверь в то, что душа - слуга Кришны, - тогда все печали прекратятся. вишвам пурна-сукхаяте Перевод: Когда человек по милости Господа Чайтаньи становится сознающим Кришну, весь мир кажется ему счастливым, и ему не к чему стремиться. (Прабодхананда Сарасвати) Хотя этот мир был объявлен домом, полным печали. Если вы погрузитесь в сознание Кришны, вы почувствуете, что это дом, полный блаженства. су-сукхам картум авьйаям В конце Говинда Дас говорит: «Я готов признать, что я слуга Кришны, и что мне теперь делать?» ш́раван̣а, кӣрттана, смаран̣а, вандана, па̄да-севана, да̄сйа ре пӯджана, сакхӣ-джана, а̄тма-ниведана говинда-да̄са-абхила̄ш̣а ре Перевод: Великая мечта и стремление Говинды Даса — посвятить себя девяти видам бхакти: слушанию о славе Господа Хари, воспеванию этой славы, постоянному памятованию о Нем и предложению молитв Ему, служению Его лотосоподобным стопам, служению Господу в качестве слуги, поклонению Ему цветами, благовониями и другими подношениями, служению Ему в качестве друга и полному вручению себя. (Бхаджаху ре мана, стих 4 Говинды Даса Кавираджа) Он говорит: «Я хочу, чтобы Ты привлек меня к служению Себе. Какое служение? Здесь упоминается нава-видха-бхакти, девять форм оказания преданного служения. йогина̄м апи сарвеша̄м̇ мад-гатена̄нтар-а̄тмана̄ ш́раддха̄ва̄н бхаджате йо ма̄м̇ са ме йуктатамо матах̣ Перевод Шрилы Прабхупады: А из всех йогов тот, кто всегда погружен в мысли обо Мне, пребывающем в его сердце, и, исполненный непоколебимой веры, поклоняется и служит Мне с любовью, связан со Мной самыми тесными узами и достиг высшей ступени совершенства. Таково Мое мнение. (Б.Г. 6.47) Из «Бхагавад-гиты как она есть» мы узнаем, что Бхакти-йога является высшей. В главах 7, 8, 9, 10, 11, 12 объясняется Бхакти-йога. Сам Господь объяснил славу бхакти-йоги. Карма-йога устанавливает небольшие отношения с Господом, гьяна-йога - еще лучше, аштанга-йога еще лучше, но бхакти-йога - совершенная и лучшая. В этом стихе объясняются 9 составляющих преданного служения. Итак, сначала это Шраванам, а затем Киртанам, Смаранам, Ванданам, Арчанам, Сакхьям, Ватсальям, Дасйам, Атманиведанам. Девять форм Бхакти, это постепенный процесс. Мы делаем Господа счастливым, участвуя в этих 9 формах преданного служения. Сначала мы будем обижаться, а затем постепенно наши сердца очистятся. И анартха ниврити тоже случится. А затем мы перейдем к стадии нама-бхасы, и тогда мы сможем получить реализации. Ночь скоро закончится. Мы на правильном пути. Но еще не утро. Еще рассвет. Это переживание начала стадии бхакти. Сначала, это номинальная вера, а затем она питается общением с чистыми преданными. Затем происходит очищение. Вера укрепляется, вы развиваете интерес и привязанность. Вырабатывается правильное настроение и, наконец, вы достигаете стадии чистой любви. Это высшая форма преданного служения. Джива выходит за рамки понимания телесного уровня. Даже смерть не может остановить это преданное служение. Поскольку это тело рождается, оно должно умереть. Но душа? Она никогда не рождается и никогда не умирает. на джайате мрийате ва кадачин После смерти преданный, в зависимости от его настроения, продолжит оказывать свое служение на Голоке, Навадвипе, Сакете, Вайкунтхе и Двараке. Поэтому мы никогда не должны прекращать эту связь. Гопи глубоко поглощены мыслями о Кришне. Когда они оказывают какое-либо служение, делают гирлянды или другое служение, они думают только о Кришне. Когда Хираньякашипу спросил Прахлада Махараджа, что он узнал? Итак, он сказал, что я изучил девять форм Бхакти. Хотя он не учился этому в своей школе под руководством учителей Шанда и Амарка. Но он научился этому от своего учителя Шри Нарады Муни, когда он был в утробе своей матери. Нарада Муни - один из 12 величайших преданных Кришны. Их всего 12, но есть ачарьи различных форм Бхакти. Парикшит Махарадж известен своим слушанием. Шукадева Госвами известен Киртаном. Прахлада Махарадж известен благодаря Вишну Смаранам. Лакшми Деви известна своей Пада-севанам. Хануман известен Дасья-бхакти. Рама-дас - одно из его имен. Притху Махарадж известен Арчаной. Арджуна известен своей Сакхьям - дружбой. са эва̄йам̇ майа̄ те ’дйа йогах̣ проктах̣ пура̄танах̣ бхакто ’си ме сакха̄ чети рахасйам̇ хй этад уттамам Перевод Шрилы Прабхупады: Сегодня Я открываю тебе эту древнюю науку о взаимоотношениях живого существа и Верховного Господа, ибо ты Мой преданный и Мой друг и потому способен проникнуть в тайну этой божественной науки. (Б.Г. 4.3) Бали Махарадж известен своей Атма ниведанам. Такова эта песня, Бхаджаху ре мана. Спойте эту песню, постарайтесь изучить и понять ее значение, запомнить ее и обсудить с другими. Впитывай от этого... Гаура Премананде Хари Хари бол!! Вопрос [Мадхави Гаури Матаджи из Тхана] Дандават пранам Гуру Махарадж. Как вы сейчас сказали, Арджуна известен своей сакхайей, но мы всегда слышим, что гопи во Вриндаване находятся в настроении вишрамбха-сакхайи. Их сакхая бхава известна как высшая. Но тогда почему Арджуна известен своим сакхьям бхакти. Гуру сказал: Преданность Голоки и Вриндавана уникальна и даже более любима! Но в основном мы говорим о преданности Вайкунтхи или, если также упоминается Вайкунтха, Арджуна превосходит уровень Вайкунтхи или уровень Двараки или Хастинапура. Обсуждение сакхьи Голоки и Вриндавана очень сокровенно. Обсуждение Мадхумангала, Шридамы и Судамы происходит, когда мы говорим о Голоке и Вриндаване. Обычно, когда мы обсуждаем сакхьям, приходит (как образец) Арджуна, а если мы говорим о пада севанам, то образцом выступает Лакшми. Тогда вы бы сказали, что Радха немного меньше? Почему не имя Радхи? Почему появилось имя Лакшми? Так что таких образцов может быть два. Что касается памятования, то пришло имя Прахлада Махараджа, но гопи известны своей памятью. Никто не может делать смаранам так, как гопи. Итак, об уровне Вриндавана здесь не говорится. Вопрос [Маяпур Дхам Прабху из Удайпура] Если у Брахмаджи за один день тысяча чатурюг, тогда на один день появляется Нарададжи, такая же жизнь Нарады, как и Брахмы? Гуру сказал: Нарада вечен! Нарададжи есть всегда. Кстати, рассказывались и о разных рождениях Нарады. Когда мы изучаем начало Бхагавата, Нарада Муни кратко рассказывает о своей жизни. Он говорит: «Я был сыном служанки». Господь также сказал Нараде, что если Я не дам снова даршан, следующий даршан будет в вашей следующей жизни. Понятно, что время от времени рождается Нарада Муни, а Нарада - сын Брахмы. У Брахмы много духовных сыновей. Те, кто произошли от ума, как Мана-саровар в Гималаях, также произошли от ума Брахмы. Многие сыновья рождаются из ума Брахмы, Нарада Муни находится в авангарде. Нарада Муни родился только тогда, когда родился Брахма, и первым, кого родил Брахма, был Нарада Муни. Так в чем дело? Кальпа, или день Брахмы, - это одна кальпа, а вся жизнь - это Маха-кальпа, поэтому Нарада Муни рождается в начале, и Нарада Муни вечен. Он великий Бхагават! Вопрос [Сангиты Махаджан Матаджи] Как можно создать привязанность в воспевании? Гуру сказал: Когда мы совершаем бхаджан, мы освобождаемся от анартх, а когда мы освобождаемся от них, наша вера укрепляется, и она называется Нитьям Бхагават Севайя! Вначале у нас есть шрадха. Когда вера крепка, мы выходим на уровень ништхи. И когда этот преданный совершает бхакти, тогда он ощущает вкус и выходит на стадию асакти. Выполнив все это, в первую очередь, шрадха, затем садху санга, бхаджана-крийа, анартха ниврити, затем ништха, ручи и затем бхава, а затем мы получим кришна-прему. Вы все это слышите? Прочтите Бхакти Расамрита Синдху. Изучите такие писания, как Гита, Бхагаватам, Чайтанья Чаритамрита, Упадешамрита. Священные Писания - наш Гуру. Получите руководство нашего Гуру или священных писаний. Это не такой уж и сложный вопрос! Мы все это не читаем. Я все это говорю, но вы забываете. Вы не храните это в письменной форме или в памяти. Вы не практикуете это, но продолжаете задавать вопросы. Необходимо изучать Священные Писания. Вы тоже что-то читаете и понимаете. Харе Кришна!