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हरे कृष्ण
जप चर्चा
पंढरपुर धाम से
14 अप्रैल 2021
आज हमारे साथ 568 स्थानों से भक्त जप कर रहे है। आज जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज का तिरोभाव तिथि है। जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज की जय! तो उन्होंने जो यह अफवाह फैली हुई थी चैतन्य महाप्रभु की जन्मस्थली के संबंध में उसको साफ किया और उन्होंने सबको बताया कि,कहां पर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का जन्म हुआ था। और वह सज्जनों में प्रिय थे और वैष्णव में श्रेष्ठ थे प्रसिद्ध थे! और गौड़ीय संप्रदाय के रक्षक थे। वैसे नवदीप पहुंचने से पहले उनका वृंदावन वास होता था, ब्रजमंडल में बरसाना क्षेत्र में रहा करते थे। कई लोग भी वहां पर रहते है, वैसे रहना भी चाहिए लेकिन वहां रहकर हम क्या करते है यह महत्वपूर्ण है! तो वे हरे कृष्ण महामंत्र का खूब जप करते थे!
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
कभी-कभी वे जप करते तो 3 दिन और 3 रात तक व अखंड जाप करते। जैसे हमारे व वक्रेश्वर पंडित आप नाम सुने होगे ना? महाप्रभु के लीला में उनका नाम आता है। तो जब महाप्रभु कीर्तन करते थे, तो वक्रेश्वर पंडित 72 घंटे नृत्य करते थे। जिसको 24 प्रहर कहा जाता है। आठ पहर का एक रात और 1 दिन होता है तो वैसे तीन रात और 3 दिन व वक्रेश्वर पंडित अखंड नृत्य किया करते थे। और वैसे ही जगन्नाथ बाबा जी 3 दिन तक अखंड जप करते थे! हम लोग तो 3 मिनट में सोने लगते है। यहीं बैठे बैठे यानी मंदिर में बैठे बैठे ही सो जाते है। मंगल आरती होने के बाद जप करने बैठते ही सो जाते है। तो जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज जो, मधुसूदन दास बाबा जी महाराज के शिष्य थे। जो मधुसूदन महाराज उद्धव दास बाबा जी महाराज के शिष्य थे। और उद्धव दास बाबा जी के गुरु बलदेव विद्याभूषण जो गौड़िया वेदांताचार्य है उनके शिष्य थे। उन दिनों में अधिकतर बाबाजी महाराज हुआ करते थे, जो वैरागी होता थे उनको बाबाजी करके पदवी मिलती थी।
बाद में श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर महाराज ने गोस्वामी या ठाकुर ऐसा नामकरण किया। लेकिन पहले बाबा जी ऐसे हुआ करता था भक्तिविनोद ठाकुर भी बाबाजी ही थे। जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज सिद्ध पुरुष थे! कई सारे सिद्ध पुरुष होते हैं जिनको कोई सिद्धि प्राप्त होती है, जो भक्त नहीं होते लेकिन सिद्ध पुरुष होते है। लेकिन जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज भगवान के शुद्ध भक्त भी थे और उसी के साथ उन्हें कई सारी सिद्धि भी प्राप्त थी! उन्होंने भक्ति विनोद ठाकुर के पुत्र को चर्म रोग हुआ था, तो उन्होंने कुछ मंत्र फूंका और भक्ति विनोद ठाकुर के पुत्र को चर्म रोग से मुक्त किया। एक समय वह नवदीप में थे 1880 में भक्ति विनोद ठाकुर वृंदावन आए हुए थे तो जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज को मिले। कैसे नहीं मिलते? गौड़ीय वैष्णव परंपरा के आचार्य तो थे ही। तो भक्ति विनोद ठाकुर ने उनके संघ को प्राप्त किया और उनके आश्रम में रहे उन से शिक्षा प्राप्त की और इस प्रकार भक्तिविनोद ठाकुर जगन्नाथ दास बाबा महाराज के शिष्य बने, लेकिन दीक्षा नहीं हुई। तो भक्ति विनोद ठाकुर के थे गुरु थे जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज वैसे भक्तिविनोद ठाकुर के शिक्षा गुरु थे लेकिन जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज दीक्षा गुरु नहीं थे। तो फिर उसी साल यानी 1880 की बात है जब यानी जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज 150 या 200 साल इस धरातल पर रहे। तो 1880 में वे बंगाल गए वैसे तो वह वर्धमान में रहा करते थे तो वहां से बंगाल में पहुंचकर अपनी साधना भक्ति की और प्रचार प्रसार करते थे। और उनका एक विशेष कार्यक्रम 11 दिनों तक चलता रहा। जगन्नाथ दास बाबा जी का सत्संग बड़ा प्रसिद्ध हुआ!
सब जगह से यानी पूरे नवदीप से लोग वहां पहुंच गए थे। फिर वर्धमान से जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज पुलिया गए चैतन्य महाप्रभु की लीला में पुलिया गए जहां पर चैतन्य महाप्रभु ने कई पापियों को मुक्त किया। आप में से कोई पापी है? पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नम: तो उस पुलिया में जो आजकल में नवद्वीप शहर है, नवद्वीप धाम भी है। कुलिया में एक कोल द्वीप है। मतलब यह आजकल का नवदीप शहर है। वहां वर्धमान से कुलिया गए। उस समय कुलिया ही कहलाता था। अब वह नवदीप शहर हुआ। तो वहां जाकर अपना साधन भजन करने लगे और वह स्थान आज भी है। जब हम नवद्वीप मंडल परिक्रमा में जाते हैं। तो फिर हम लोग नाव में बैठकर नवद्वीप शहर पहुंचते हैं। जो वहां हम सर्वप्रथम स्थान जाते हैं, वो जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज का भजन स्थली और समाधि स्थल भी है। वहां पर वह रहते थे और उनके कई सारे शिष्य थे। कुछ तो वृंदावन से ही जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज के साथ स्थांतरित हुए थे। जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज और उनके शिष्य नवद्वीप गए।
गौराविर्भाव-भूमेस्त्वं निर्देष्टा सज्जनप्रियः
वैष्णव-सार्वभौमः श्रीजगन्नाथाय ते नमः
( श्रील जगन्नाथ प्रणति)
उन दिनों में जगन्नाथ दास बाबाजी का बहुत बड़ा नाम था। जगन्नाथ दास बाबाजी अपनी भक्ति के लिए, कृष्ण भावना के लिए, उनकी नाम में जो रुचि थी उसके लिए वह प्रसिद्ध थे। वैराग्यवान भी थे, ध्यानवान भी थे और भक्ति मान भी थे। वह 135 वर्ष जीते रहे। हम लोग तो मुश्किल से 35 वर्ष जीएंगे(हंसते हुए)। तो वह 135 साल के थे, वृद्धावस्था भी थी, उसके कारण चलना बड़ा ही कठिन हो रहा था और उनकी आंखें उनके शिष्य खोलते थे ताकि वह देख सके। वह पलके अपने आप नहीं खोल पाते थे। वैसे उनको इन चक्षुओं से देखने की आवश्यकता भी नहीं थी। वह अंत: चक्षुओं से दर्शन कर ही रहे थे। हरि हरि। तो व्यक्ति बुढ़ापे के कारण अंधा बन जाता है तो उसको क्या करना चाहिए? ऑपरेशन करने की बजाए, अंतः चक्षु को खोलना चाहिए। दांत गिर रहे है तो क्या करना चाहिए? जूस पीना चाहिए।
इसी तरह हम तो उस समय भी खिचड़ी खाना चाहते हैं या गन्ना चूसना चाहते हैं, रस नहीं पीना चाहते। हरि हरि। वहां कुलिया में रहते थे, आजकल के नवद्वीप में जहां जगन्नाथ दास बाबाजी की भजन स्थली और अब वहां समाधि भी है। वहां से फिर वह कोल द्वीप गए, वराह भगवान की आराधना करी। कोल मतलब वराह, वराह भगवान की जय। कोल द्वीप जहां नवद्वीप शहर है, इसको कुलिया भी पहले कहा कहते थे और आज भी कहते हैं। वहां से जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज स्वानंद सुखद कुंज गए। जहां भक्ति विनोद ठाकुर रहते थे। कृष्णनगर के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट बने थे। उनकी कोठी सरस्वती जलंगी के तट पर थी। तो वहां जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज जाने लगे और वैसे भक्ति विनोद ठाकुर, जगन्नाथ दास बाबाजी को कुलिया में जाकर मिलते थे। उनके शिक्षा गुरु ही थे। तो फिर एक समय भक्ति विनोद ठाकुर खोज कर रहे थे। जो कार्य षठ गोस्वामी ने वृंदावन में किया।
अब वही कार्य भक्ति विनोद ठाकुर सातवें गोस्वामी नवद्वीप में कर रहे थे। वह खोज का कार्य था। तो जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज की मदद से खोज कर रहे थे। उन दिनों में जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज को उनके शिष्य विपिन बिहारी टोकरी में ढो लेते थे। फिर एक समय भक्ति विनोद ठाकुर भी साथ में जा रहे थे। आजकल का जो योगपीठ है, चलते-चलते जाते–जाते वहां पहुंच गए। तो वहां पर जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज को ऐसी स्फूर्ति मिली। बड़े हर्ष और उल्लास के साथ, जोश के साथ गौरंग गौरंग गौरंग गौरंग पुकारने लगे और टोकरी में नाचने लगे। गौराविर्भाव-भूमेस्त्वं निर्देष्टा सज्जनप्रियः इस प्रकार उन्होंने संकेत किया, स्पष्ट किया कि जगन्नाथ मिश्रा और शच्ची माता का भवन और निमाई का जन्म स्थल यही है। उसको जगन्नाथ दास बाबाजी निर्धारित किए या उनकी मदद से भक्ति विनोद ठाकुर निर्धारित किए। तो ऐसे जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज के तिरोभाव तिथि महोत्सव की जय! हरे कृष्ण।