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जप चर्चा, 12 मार्च 2021, पंढरपुर धाम. हरे कृष्ण, 747 स्थानोसे भक्त जप के लिए जुड़ गए हैं। *ब्रह्मा बोले चतुर्मुखी कृष्ण कृष्ण हरे हरे, महादेवा पंचमुखी राम राम हरे हरे* महाशिवरात्रि महोत्सव की जय! कईयों ने तो कल ही मनाई है।हम वैष्णव आज महाशिवरात्रि मना रहे हैं। मायापुर में जगन्नाथ मंदिर है इस्कॉन राजापुर जगन्नाथ, वहां आज महाशिवरात्रि महोत्सव संपन्न होगा। और अगर आज हम मायापुर में होते तो हम भी पहुंच जाते वहां। पिछले वर्ष हम थे वहां, वहां पर जयपताका स्वामी महाराज भी आ गए और भक्तिपुरुषोत्तम स्वामी महाराज भी आ गए। वह शिव जी का स्थान है और पार्वती का भी स्थान है। वह सीमांत द्वीप कहलाता है। कहलाता क्या , है ही सीमंत द्वीप आज के दिन हम वहां महाशिवरात्रि उत्सव मनायेंगे। कृष्ण पक्षा के त्रयोदशी चतुर्दशी हर महीने शिवरात्रि होती है, किंतु आज या साल में एक बार महाशिवरात्रि। आज की रात्रि को विवाह महोत्सव संपन्न हुआ शिव और पार्वती का विवाह महोत्सव। जो पर्वत की पुत्री रहे हिमालय पर्वत की पुत्री जिनका नाम है पार्वती। पार्वती और शिव का विवाह उस दिन का या रात का महोत्सव है। शिव पार्वती की जय! दंपत्ति हो तो शिव पार्वती जैसे। *निम्न गाना यथा गंगा* देवानाम अच्यतो यथा। *वैष्णवानांं यथा शंभो* *पुरानाम इदम् तथा।।* (श्रीमदभागवत 12.13.16) श्रीमद्भागवत में ऐसा कहां है सभी नदियों में श्रेष्ठ नदी है गंगा, निम्नगानां यथा गंगा और सभी वैष्णव में श्रेष्ठ है वैष्णवानाम यथा शंभू, शिव सभी वैष्णवो में श्रेष्ठ है। देवानाम अच्युतो यथा और सभी देवो में अच्यूत श्रेष्ठ है। और फिर कहां है सभी पुराणों में इदम, इदम् मतलब यह यह जो भागवत है श्रेष्ठ है। ऐसा श्रीमद्भागवत में उल्लेख है। शिव जी महाभागवत है। *स्वयंभू नारद शंभू कुमार कपिल मनु* श्रीमद्भागवत के छठे स्कंध में तृतीय अध्याय होगा, यहां यमराज में द्वादश भागवत का उल्लेख किया है। यहां पर भी शिवजी का नाम है। शिवजी का उल्लेख होता है। शिव जी द्वादश भागवत ओं में से एक है। मतलब यह परंपरा से है। इनके नाम से रुद्रा संप्रदाय भी चलता है। अवतार भी है। गुण अवतार ब्रह्मा विष्णु महेश यह तीनों गुण अवतार है। तमगुघ के अवतार हैं शिव जी। मतलब वह स्वयं तम गुणी नहीं है। शिव तो शिव है। शिव मतलब मंगल। मांगल्य से पूर्ण है। ओम नमः शिवाय कहते हैं। जब नमस्कार की बात आती है तो उनके तो कई नाम है। उनमें श्रेष्ठा नाम है, यह एक विशेष नाम है शिव। शिव मतलब पवित्र। ओम नमः शिवाय हरि हरि, यहां इस सीमंत द्वीप में शिव और पार्वती पहुंच गए। पहले जब अपने कैलाश में ही रहते थे तो एक समय यह सब समय चलता ही रहता था। शिव जी गौरंगा गौरंगा गौरंगा अपने तांडव नृत्य केेे साथ गा रहे है। मस्ती मेंं आकर गौरंगा गौरंगा गौरंगा। तो पार्वती पूछती है कौन है यह गौरांग, शिव जी कहते हैं चलो चलते हैं, आपको दिखाते हैं गौरांग। गौरांग के धाम चलते हैं। वे नवद्वीप पहुंचते हैं। वहां पर तपस्या करते हैं। विशेषकर पार्वती विशेष तपस्या करती है। वह भी गौरांग के नाम का उच्चारण, कीर्तन करती हैं। शिवजी भी कीर्तन करते हैं। इसीलिए हमने वह गाया, *ब्रह्मा बोले चतुर्मुखी कृष्ण कृष्ण हरे हरे,* अपने चारों मुखो से ब्रह्मा बोलते हैं हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। पंचमुखोसे शिवजी कहते हैं हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* मतलब दोनों भी कीर्तन करते हैं। वैसे आचार्य हैं ब्रह्मा और शिव जी, यह दोनों की भगवान के नामों का उच्चारण करते हैं। उन्होंने खूब तपस्या की। यह वाणी की तपस्या ही है। जब हम भगवान के नामों का उच्चारण करते हैं, हम तपस्या करते हैं। यह वाणी की तपस्या है। शरीर से तपस्या होती है। वाणी की तपस्या होती है। मन से तपस्या होती है। मन से तपस्या होनी चाहिए। शिव और पार्वती की तपस्या से और भक्ति भाव से गौरांग प्रसन्न हुए, और गौरांग महाप्रभु ने दर्शन दिया। और उस समय यह दोनों नतमस्तक हुए गौरांग महाप्रभु के चरणों में। और पार्वती ने गौरांग महाप्रभु के चरणों की धूलि अपने मस्तक में धारण की। जैसे कुमकुम लगाती है माताएं विवाहित स्त्रियां वैसे ही किया पार्वती ने। तो यह कुमकुम लगाना या फिर बालों को बीच में से दोनों तरफ करना उसको सीमंत कहते हैं या फिर भांग भी कहते हैं मराठी में, या फिर सीमांत कहते हैं। तब से पार्वती का दूसरा नाम हुआ सीमंतिणी। अभी कुछ वर्ष पुर्व यह जो सीमंत द्वीप कहां हमने जहां पर जगन्नाथ जी का मंदिर है वहां पर पार्वती के विग्रह की स्थापना हुई। उसे सीमंतिणी कहते हैं। और उस द्वीप का नाम है सीमांत द्वीप। नवद्वीप में से एक है सीमंत द्वीप। अगर हम क्रम से जाएंगे तो उसे प्रथम द्वीप कहेंगे और वह है सीमांत व्दीप। यह सब लीला वहां संपन्न होनी थी। शिव पार्वती का आगमन होना था और फिर उनकी तपस्या फिर उसका फल फिर दर्शन गौरांग महाप्रभु का। और फिर पार्वती में अपने मस्तक पर गौरांग महाप्रभु की चरण धूलि धारण की पार्वती के पति शिवजी तो है ही और फिर सभी के पति कृष्णा है। यह पार्वती भगवान की शक्ति है। बहिरंगा शक्ति, दुर्गा है, काली है, कई सारे नाम है। शिव जी रूद्र कहलाते हैं। भागवत में वह 11 संख्या में है। ग्यारह रूद्र है। ग्यारह रूद्र है तो ग्यारह रुद्राणीया भी हैं। रूद्र की होती है रुद्राणी। ग्यारह रूद्र है तो ग्यारह रुद्राणीया है। और यह सब भगवान की बहिरंगा शक्ति है। *छायेवयस्य भुवनानि विभर्ति दुर्गा* *इच्छानुरूपम यस्य चेष्टतेषां* *गोविंदं आदि पुरुषं तमहम भजामि* ब्रह्म संहिता में कई सारे तत्व सिखाए हैं। समझाएं हैं। यह शक्ति तत्व है। जो शक्ति के उपासक हैं, उनको शाक्त भी कहते हैं। शिव के पुजारी है शैव कहते हैं। शाक्त और शैव कौन सी शक्ति यह दुर्गा शक्ति के पुजारी किंतु यह भगवान की ही शक्ति हैं। वैसे कृष्ण की शक्ति है, इसीलिए ब्रह्मा जी ने कहा है छायेवयस्य भुवनानि यह कृष्ण की छाया है। कृष्ण की माया है। और यहां महामाया है। गोलोकमें अध्यात्म जगत में योगमाया भौतिक जगत में महामाया। फिर ऐसा भी कह सकते हैं और वह सही भी है, गोलोक में है राधारानी और भौतिक जगत में दुर्गा देवी, पार्वती, शिवजी की अर्धांगिनी। हरि हरि, वैसे शिवजी और पार्वती को समझना थोड़ा कठिन जाता है। कई शिव जी के पुजारी है। वह कहते हैं, शिवजी श्रेष्ठ है। शिवज ही सब कुछ है। यह बात तो सही नहीं है लेकिन शिवजी एक विशेष व्यक्ति है। वह भगवान है लेकिन वह परम भगवान नहीं है। हां भगवान तो है भगवान कह सकते हैं। वैसे नारद मुनि भी भगवान हैं। शुकदेव गोस्वामी को भी भगवान कहते हैं। भगवान कहिए कैसे भगवान, भगवन जिनके पास ऐश्वर्य है। भग है, फिर किसी के पास ऐश्वर्य का, सौंदर्य का, ज्ञान का, वैराग्य का ऐश्वर्य है। शिवजी भी वैराग्य की मूर्ति है, हो गए भगवान। फिर ज्ञान वैराग्य ऐश्वर्यच एवं वैराग्य एक वैभव है। और शिवजी वैराग्य की मूर्ति है। वह अनासक्त है और वह शमशान भूमि में ही रहते हैं। कितने विरक्त महात्मा है शिवजी। हरि हरि राजा परीक्षित ने पूछा कि, शिवजी तो स्वयं निर्धन के जैसे ही रहते हैं लेकिन उनके जो पुजारी है शिव जी के धनी होते हैं। और जहां तक विष्णु और कृष्ण की बात की जाए तो वह सारे संपत्ति के मालिक होते हैं। भोक्तारं यज्ञ तपस्या सारे भोग भोंगते हैं। उनके जो पुजारी होते हैं, कृष्ण के पुजारी गरीब बेचारे होते हैं। अकिंचन निष्किंचन होते हैं। शिवजी स्वयं निर्धन जैसे रहते हैं लेकिन उनके पुजारी बड़े धनी होते हैं। वैसे कुबेर भी शिवजी के पुजारी है। वह देवता है। हरि हरि ,लोग धन प्राप्ति के लिए शिवजी की पूजा करते हैं। वैभव प्राप्ति के लिए पूजा करते हैं। धन में वैभव में शिव जी को रुचि नहीं है। उनको तो रुचि भगवान में ही हैं। इस प्रकार शिवजी के पुजारी ठग जाते हैं। वो धन को ही प्राप्त करते हैं भगवान को नहीं। लेकिन कृष्ण के भक्त राम के भक्त भगवान के भक्त बड़े बुद्धिमान होते हैं। चालाक होते हैं। एक दृष्टि से वैराग्यवान होते तो है सही, लेकिन धनवान भगवान को प्राप्त करते हैं। भगवान को अपना धन समझते हैं। *जेई कृष्ण भजे सेई बड़ा चतुर* जो कृष्ण का भजन करता है *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* करता है चतुर कहलाता है और चालाक कहलाता है। लेकिन शिव जी के भक्त तो ठग जाते हैं उनको तो माया ही मिलती है। माया को प्राप्त करना चाहते हैं ।संसार की धन दौलत को प्राप्त करना चाहते हैं।हरि हरि गरीब बेचारे वह शिव जी के भक्त। जहां तक आराधना की बात है तो शिव जी से पूछो ना किस की आराधना करनी चाहिए? आराधना तो कई सारे शिवजी केेेेेेेेेेेेे करते हैं ताकि क्या हो जाए क्या हो जाए धनम देहि, जनम देहि। ताकि सब धन संपदा प्राप्त हो इसीलिए शिवजी केेेेे पुजारी बनते हैं, बड़े-बड़े यज्ञों का आयोजन होता है। लेकिन शिवजी से पूछोगेेे तो.. वैसे पूछने की अलग से आवश्यकता नहीं है उन्होंने कह दिया हैैैै पहले से ही। और शिव जी का एक बार कहना पर्याप्त है। उन्होंने यह बात पार्वती से भी कही थी *आराधनानाम सर्वेशाम विष्णोर आराधनम परम* हे देवी पार्वती देवी नोट करो उसने तो नोट किया है ही। आराधना करनी है तो किसकी आराधना करो *विष्णोर आराधनम परम* विष्णु की आराधना सर्वश्रेष्ठ आराधना है, ऐसा कहना है महाभागवत शिव जी का कहना है। और पार्वती को उन्होंने कह दिया है पहले से ही कह दिया है। आकाशवाणी एक बार ही होती है बारंबार नहीं होती एक बार कह दिया तो बस हो गया। तो उन्होंन जो भी कहा है सत्य ही कहा है सत्य के सिवा और कुछ नहीं कहते शिवजी। तो हे दुनिया वालों शिवजी को सुनो भगवान शिव उवाच। हरि हरि। यह दोनोंं शिव और पार्वती कृष्ण के भक्त हैं। इनको आप पाओगे कृष्ण लीला में इनका प्रवेश है जब कृष्ण प्रकट होते हैं तो शिव पार्वती वहां है। रामलीला रामायण है तो वहां आपको शिव-पार्वती मिलेंगे। गौरांग महाप्रभ के रूप में कृष्ण प्रकट हुए नवद्वीप में तो नवद्वीप में सारे लगभग सभी द्वीपोंं में शिवजी का स्थान है। शिव जी की कई भूमिका हैं शिव जी के साथ श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने आदान-प्रदान किया है या तो शिवजी सर्वत्र सभी स्थानों में मायापुर धाम है या वृंदावन धाम है या अयोध्या धाम है इन धामों के दिग्पाल कहलातेेे हैं, दिग्पाल या क्षेत्रपाल कहलाते हैं। फिर वह गोपेश्वर महादेव है या चक्रेश्वर महादेव तो इस तरह यह महादेव इन धामों में रखवाली करते हैं। वैसे योगपीठ में हमारी जो परिक्रमा प्रारंभ होती है नवद्वीप मंडल परिक्रमा तो वहां भी वृद्ध शिव जी का स्थान है। सर्वप्रथम उनको नमस्कार और प्रार्थना की जाती है ताकि नवद्वीप परिक्रमा मेंं भक्त सुरक्षित रहे क्योंकी नवद्वीप धाम के क्षेत्रपाल स्वयं शिवजी हैै। तो और क्या कहा जाए और हमको कुछ कहने भी नहींं आता ज्यादा कुछ समझते तो है नहींं और कौन समझ सकता है शिवजी और पार्वती को। उनका अपना एक तत्व भी हैं एक हैैै जीव तत्व, तो शिव जीव नहीं है वे जीव तत्व नहीं है। और साथ ही साथ वे विष्णु तत्व भी नहीं है जिसको भगवान कहे *संभवामि युगेे युगे* और *अद्वैतम अच्युतम अनादि अनंंत रूपम* मेरे कई सारे रूप है तो यह सब विष्णु तत्व कहलाते हैं। *नानावतारमकरोद् भुवनेषु किन्तु* यह सारे विष्णु तत्व है लेकिन शिव ना तो जीव तत्व है ना तो विष्णु तत्व है शिव का अपना ही खुद तत्व है शिव तत्व है। जिसको ब्रह्मा पुनः कहे *क्षीरं यथा दधि विकारविशेषयोगात्* कृष्ण क्षीर या दूध है और शिव जी दधि दही है। दूध से दही बनता है दही स दूध बनता है क्या? राखी माताजी दही स दूध बना सकती हो? नहीं संभव ही नहीं लेकिन दूध से दही बन सकता है। श्री ब्रह्मा जी ऐसा समझा रहे हैं हमको तो भगवान कृष्ण है, राम है, नरसिंह है, वराह है यह दूध है और शिवजी है दही दोनों का भी उपयोग है। दूध भी आवश्यक है दही भी आवश्यक है। दूध अपना काम करेगा दही अपना काम करेगा। *शम्भुताम गतः* ऐसे ब्रम्हा कहे मतलब भगवान ही बने हैं, शंभू बने हैं शिव जी बने हैं। नवद्वीप में हरिहर क्षेत्र आता है वहां आप जाओगे परिक्रमा में तो हरिहर हरि और हर दोनों मिलके एक रूप है। एक दृष्टि से वैसे वे अद्वैत भी है दोनों को अलग नहीं किया जा सकता ऐसा घनिष्ठ संबंध है, कृष्ण का, गौरंग का या शिव जी का और वैसेे सदाशिव ही तो बने अद्वैत आचार्य। *(जय) श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभुनित्यानन्द* *श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि – गौरभक्तवृन्द* तो अद्वैत आचार्य शिव जी है या सदाशिव है या वे महाविष्णु है ऐसा भी हम सुनते हैं। और वह भी बात सही है क्योंकि वैसे महाविष्णु से ही सदाशिव उत्पन्न होते हैं और सदाशिव का अपना लोक है। यह ब्रह्मांड तो दुर्गा का लोक है दुर्गा देवी का देवी धाम है। ऐसा यह ब्रह्मांड देवी धाम है *देवीमहेशहरिधामसु तेषु तेषु* और *गोलोकनाम्नि* तो वैसे सर्वोपरि है गोलोक और सबसे नीचे है यह देवी धाम दुर्गा का धाम पार्वती का धाम कहो। इसके ऊपर दुर्गा धाम या देवी धाम के ऊपर है शिव जी का धाम उसको महेश धाम कहां है। यह महेश धाम वैसे आधा वैकुंठ में है यह वैकुंठ की तरह ही है उसके नीचे का जो भाग है महेश धाम का शिव धाम का वह भौतिक जगत में है। फिफ्टी फिफ्टी। तो नीचे का जो भाग है महेश धाम का वहा कालभैरव इत्यादि जो शिवजी के रूप है जो इस सृष्टि के प्रलय के कारण बनते हैं जो विनाशकारी है या तमोगुण के जो अधिष्ठाता है वे शिव के रूप निवासी है महेश धाम के नीचे का जो भाग है। और ऊपर है सदाशिव जो लगभग विष्णु जैसे। जैसे विष्णु लोको में या वैकुंठ लोको में अन्य रूप है। तो वह सदाशिव अद्वैत आचार्य के रूप में और वह पंचतत्व अभी-अभी वे शिव तत्व थे। अद्वैत आचार्य अभी वे पंचतत्व बने हैं। *पञ्चतत्त्वात्मकं कृष्णं भक्तरूपस्वरूपकम्* *भक्तावतारं भक्ताख्यं नमामि भक्तशक्तिकम्* तो पांच तत्व है, पंचतत्व। उसमें से अद्वैत आचार्य यह महाविष्णु है सदाशिव है वे दोनों भी है महाविष्णु भी है और सदाशिव भी है अद्वैत आचार्य। इस प्रकार यह तत्व कुछ कठिन जाता है समझने में और अधिकतर हिंदुओं को यह ज्ञान है भी नहीं। हरी हरी। वे आशुतोष है हमारी आशा की पूर्ति करते रहते हैं इसीलिए हम पूजा करते हैं। कोई धनवान बनना चाहते हैं, तो सुंदर पति भी चाहिए तो चलो शिव जी के पास पहुंचते हैं। उनकी कृपा से पति भी प्राप्त होंगे इस प्रकार संसार के कामना वाले अपनी कामना की पूर्ति करने वाले या भगवान वैसे शिव जी के रूप में ही रहते शिव पार्वती के रूप में। कृष्ण स्वयं व्यवहार नहीं करना चाहते हैं इन दुनिया वालों के साथ और उनकी जो मांगे होती है। *आशापाशशतैर्बद्धा:* इस संसार के लोग कई सारी आशा लेकर बैठते हैं। शिव जी होते हैं आशुतोष आशु मतलब जल्दी से लोगों को संतुष्ट करते हैं। क्या चाहिए तुमको ले लो, तुम्हें चाहिए ले लो चले जाओ निकल जाओ मुझे जप करने दो। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।* शिव जी को भक्ति करना पसंद करते हैं। तो जब कोई आता है मुझे यह चाहिए यह देहि, वह देहि, धनं देहि ठीक है ले लो हमको भजन करने दो। तो ऐसे सबको निपट लेते हैं फिर लोग ठग जाते हैं। वैसे शिवजी संकर्षण के पुजारी है, महाविष्णु से उनकी उत्पत्ति भी है। महाविष्णु वैसे संकर्षण से महाविष्णु होते हैं। शिवजी जो ध्यान करते हैं संकर्षण का ध्यान करते हैं संकर्षण के पुजारी है शिवजी। शिव जी के गले में जो सर्प है वह भी संकर्षण का ही प्रतीक है वह साधारण सर्प नहीं है। उसी को गले में धारण किए हैं जो प्रिय होता है उसी को गले में धारण करते हैं हम। शिवजी को संकर्षण भगवान प्रिय है तो उनका एक रूप सर्प या अनंतशेष उन्हीं को धारण किए हैं अपने गले में। तो शिवजी और पार्वती यह पति-पत्नी वैसे क्या करते रहते हैं? खूब कथा करते रहते हैं भागवत की कथा। श्रीमद् भागवत महात्म्य में कहां है स्कंद पुराण में शिव और पार्वती सदैव कथा करते रहते हैं और एक दूसरे को सुनाते रहते हैं। यह नहीं कि केवल शिव जी की कथा करते हैं, पार्वती भी कथा करती है फिर शिवजी सुनते हैं। शिवजी कथा करते हैं तो पार्वती सुनती है। ऐसी कथा जब शिवजी कर रहे थे तब आ गए ना आपने पहले सुना होगा, एक तोता आगया पीछे बैठकर सुन रहा था। वे शुकदेव गोस्वामी भविष्य में बनने वाले शुकदेव गोस्वामी सुन रहे थे वह कथा। तो यह आदर्श दंपत्ति है इनका आदर्श अपने सामने रखो। कथा कीर्तन करते रहो, कृष्ण का, राम का, गौरांग महाप्रभु का। हा शिवजी की भी कई लीलाएं, कथाएं दिव्य है किन्तु वे तमोगुण के अधिष्ठाता है। या विनाश करना उनकी एक सेवा है लीला है उत्तरदायित्व है। लेकिन शिवजी उतने से ही सीमित नहीं है उनसे संबंधित कई सारे तत्व, सिद्धांत, लीला या घटनाएं है, जो दिव्य है, अलौकिक है। ऐसे शिवजी बड़े दयालु है जब सूर असुर मंथन कर रहे थे समुद्र मंथन तो सर्व प्रथम क्या उत्पन्न हुआ? हलाहल विष उत्पन्न हुआ और सर्वत्र फैल गया। उसी समय विनाश होना था इस संसार का तो सभी देवता पहुंच गए शिव जी के पास। बचाओ बचाओ संसार को बचाओ संसार के जीवो को बचाओ। तो शिव जी ने क्या किया? शिवजी सारा विष पी गए युक्ति पूर्वक उस जहर को उन्होंने पेट तक नहीं पहुंचाया, उसको कंठ में ही धारण किया। तो रक्षा हो गई संसार की और उसके उपरांत एक के बाद एक कई सारे रत्न उत्पन्न होने लगे समुद्र से। प्रथम जहर निकला और शिवजी पिए उसको गले में धारण किए। तो जहर का जो रंग होता है, काला, नीला शिवजी का कंठ ही हुआ नीले रंग का। फिर उनका नाम हुआ नीलकंठ नीले कंठ वाले शिव जी। तो वह नीला कंठ स्मरण दिलाता है शिव जी का, शिव जी के दया का, शिव जी ने की हुई जो कृपा सारे संसार के ऊपर उसका। इस तरह जब गंगा को भगीरथ जी लाना चाहते थे इस पृथ्वी पर तो शिव जी अगर अपनी जटा में धारण करने के लिए तैयार नहीं होते, गंगा तो स्वर्ग में ही रह जाती, पृथ्वी पर नहीं आती। तो शिव जी तैयार हो गए और गंगा को धारण किए वहां से आगे बढ़ी गंगा, वहां से बहने लगी। अगर शिवजी वह सेवा नहीं करते तो गंगा का भी अवतरण नहीं होता। शिव जी ने धारण किया गंगा को अपनी जटाओं में तो हो गए वह गंगाधर नाम से जानने लगे। शिव जी का एक नाम है गंगाधर, गंगा को धारण करने वाले। और फिर जब समुद्र मंथन हो ही रहा था तब सर्वप्रथम जो रत्न उत्पन्न हुआ वह चंद्र था। चंद्र शीतलता को प्रदान करता है, शिव जी अभी-अभी पिए थे जहर को गरमा गरम उनको शीतलता प्रदान करने के लिए वह रत्न शिव जी को दिया गया और उन्होंने अपने जटा में धारण किया। तब से शिवजी चंद्रमौली नाम से जानने लगे। चंद्र को धारण किए वह चंद्र कहां से आया उसी समुद्र से उत्पन्न हुआ। हरि हरि। ऐसी कई सारी लीलाएं कथा है सारे पुरान भरे पड़े हैं। भागवत महापुराण में भी शिव जी की कथाएं हैं लेकिन वे अधिकतर कृष्ण के भक्त हैं, राम के भक्त हैं, विष्णु के भक्त हैं, गौरांग के भक्त हैं ऐसी लीला कथा का ही ज्यादा प्राधान्य है। और उस रूप में ही हमें समझना चाहिए। इसीलिए कहां है *वैष्णवानाम यथा शम्भू* एक वैष्णव के रूप में हम उनकी आराधना करते हैं। दुनिया की और कुछ समझ है उसको भी थोड़ा समझाया है आप को, तो ठगना नहीं। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।

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