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9 अक्टूबर 2019 जपा टॉक हरे कृष्ण आज हमारे साथ 510 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। आज एकादशी है कई भक्त अपनी ग्रीटिंग्स भेज रहे हैं। एकादशी के उपलक्ष में आपको यह बताते हुए मुझे हर्ष हो रहा है कि हमारी पदयात्रा जो नोएडा से वृंदावन जा रही है वह कल ब्रज मंडल वृंदावन में प्रवेश कर गई है। हमारी जो पदयात्रा महाराष्ट्र में चल रही है वह भी बहुत सुंदर तरीके से चल रही है और दिल्ली मंदिर में कल विजयदशमी के उपलक्ष्य में कीर्तन मेला रखा गया था। कल रात मैंने भी वहां कीर्तन किया था और इसके अतिरिक्त भिवंडी में भी भक्तों ने कीर्तन मेला किया है। ये सभी समाचार जपा के संबंध में हैं, हरिनाम के संबंध में हैं जो हमें अति प्रसन्नता देने वाले हैं जो मैं आपको बताना चाह रहा हूं। कल जब मैं अपनी भागवतम क्लास में भक्तों को बता रहा था कि किस प्रकार भगवान राम ने रावण को मारा था, हमें भी भगवान से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें भी मार दे क्योंकि भगवान के हाथों मरना भी बहुत महत्वपूर्ण है अर्थात भगवान किसी का वध भी करते हैं तो उससे उसका उद्धार हो जाता है। मैं यह बता रहा था कि भगवान राम के समय एक विशालकाय रावण उपस्थित था। इसी प्रकार हम सभी के अंदर भी छोटे छोटे रावण हैं क्योंकि हम सभी के अंदर ऐसी प्रवृत्तियां हैं जो भगवान राम के विरुद्ध है एंटी राम व एंटी कृष्ण की जो हमारी प्रवृत्तियां है वही छोटे-छोटे रावण हमारे अंदर हैं। इस प्रकार हम भगवान राम, कृष्ण, चैतन्य महाप्रभु के चरणों में यह प्रार्थना कर सकते हैं कि वह हमारे अंदर के इन रावणों का वध करें। जो हमारे हृदय में बड़े-बड़े अनर्थ हैं , जो अवांछित इच्छाएं हैं वह रावण का ही रूप है क्योंकि अनर्थ आसुरी गुणों का रूप है। इस प्रकार हम भगवान से प्रार्थना कर सकते हैं कि वह हमारे अंदर की आसुरी प्रवृत्तियों को समाप्त करें। ऐसा करने के लिए भगवान आतुर हैं अर्थात हमारी आसुरी प्रवृत्तियां नष्ट करने के लिए भगवान हर समय तैयार हैं। भगवान का नाम वह अस्त्र है वह एक प्रकार की औषधि है। जिस प्रकार कहते है "चेतोदर्पण मार्जनम्" अर्थात हमारे मन में जो आसुरी प्रवृत्तियां हैं गंदगी भरी है उसका मार्जन करता है भगवान का नाम स्मरण। इस प्रकार जब हम भगवान के नाम का जप करते हैं तो वह हमारे अंदर की आसुरी प्रवृत्ति को नष्ट कर देता है ऐसी भगवान के नाम की शक्ति है। इस प्रकार यदि हम एकाग्रता पूर्वक जप कर सकते हैं तो हम अपने चित् रूपी दर्पण का मार्जन कर सकते हैं। हमारे अर्नथों की पूरी तरह निवृत्ति हो सकती है, अगर हम एकाग्रता पूर्वक जप करते हैं। एकाग्र का अर्थ भी यही है कि एकाग्र हम अपने को एक ही तरफ अग्रसर करें अर्थात केवल भगवान नाम की ओर जो कि भगवान से अभिन्न है। हमें भगवान के उस हरिनाम की तरफ पूर्ण रुप से ध्यान पूर्वक जप करना चाहिए। जैसा कि भगवान कहते हैं कि "बहु शाखा आनंदतस्य" जैसे की हमारे विचार बहुत सारी शाखाओं में बैठे हुए हैं उन्हें हमें हरिनाम पर केंद्रित करना होगा, एक साथ लाना होगा। जिसके विषय में हम वार्ता कर रहे हैं यह ज्ञान हो सकता है तो हमें इस ज्ञान को विज्ञान में बदलना होगा, यह केवल अभ्यास द्वारा संभव है अभ्यास सरल नहीं है लेकिन हमें ध्यान को केंद्रित करके ऐसा करना होगा। मैं विज्ञान में होने वाले एक प्रयोग के बारे में सोच रहा था कि किस प्रकार से सूर्य की जो बिखरी हुई किरणें हैं अगर उन्हें प्रिज्म से पास कराया जाता है तो सारी किरणें एकाग्र होकर एक शक्तिशाली किरण निकलती है और वह जिस बिंदु पर पड़ती है वहां कागज को जला देती है। इस प्रकार सूरज की किरणें अलग-अलग हैं तो प्रकाश देती हैं लेकिन प्रिज्म से गुजरने पर एक होकर वे एक पॉइंट को जला डालती है इस प्रकार यह प्रिज्म है यह वह विभिन्न उपकरण है जो हम जप करते हुए इस्तेमाल करते हैं, ये यंत्र हैं हमारी जीवा, हमारे होंठ, कान, मन व बुद्धि। ये हमारे यंत्र हैं जब हम जप करते हैं इस प्रकार इन सब को एकाग्र करके एक साथ करके जब हम जप करते हैं तो उसका क्या परिणाम होगा। ऐसा करने से हमारे अंदर जो अनर्थ हैं आसुरी प्रवृत्तियां है वह जलने लगती हैं, भस्म हो जाती है। कल जब मैं कीर्तन मेला के लिए जा रहा था तब मैंने आवाज सुनी व रावण के पुतले को जलते हुए देखा तब मैं यह सोच रहा था कि अगर हम ध्यान पूर्वक हरि नाम पर केंद्रित होकर जप करें तो हम अपने अंदर उस जलन का अनुभव कर सकते हैं जिसके परिणाम स्वरूप हमें भी भगवत प्राप्ति होगी। यहां भक्त बता रहे हैं कि वह कोनवेक्स लेंस होता है जिससे सूर्य की किरणों को केंद्रित करके कागज को जलाया जाता है। ये दोनों कोनवेक्स लेंस व प्रिज्म है जो यह एक जैसा काम करते हैं। इस प्रकार यह भी एक उदाहरण था जिसके द्वारा मैं आपको बता रहा था कि किस प्रकार हम ध्यान पूर्वक जप कर सकते हैं। आज हम यहां पर विराम देंगे। जय श्रील प्रभुपाद।

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