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जप चर्चा पंढरपुर धाम से दिनांक ०८.०३.२०२१ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे हरे राम राम राम हरे हरे गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।। 737 भक्त जप कर रहे हैं। जयतां सुरतौ पोर्मम मन्द-मतेर्गती। मत्सर्वस्व-पदाम्भोजी राधा-मदन-मोहनौ ॥ (चैतन्य चरितामृत आदि लीला 1.15) अनुवाद:-सर्वथा 'दयालु राधा तथा मदनमोहन की जय हो! मैं पंगु तथा कुबुद्धि हूँ, फिर भी वे मेरे मार्गदर्शक हैं और उनके चरणकमल मेरे लिए सर्वस्व हैं। दीव्यद्वन्दारण्य-कल्प-द्रुमाधः- श्रीमद्लागार-सिंहासनस्थौ। श्रीमद्राधा-श्रील-गोविन्द-देवी प्रेष्ठालीभिः सेव्यमानौ स्मरामि॥ (चैतन्य चरितामृत आदि लीला 1.16) अनुवाद:- श्री श्री राधा-गोविन्द वृन्दाबन में कल्पवृक्ष के नीचे रत्नों के मन्दिर में तेजोमय सिंहासन के ऊपर विराजमान होकर अपने सर्वाधिक अन्तरंग पार्थदों द्वारा सेवित होते हैं। मैं उन्हें सादर नमस्कार करता है। श्रीमानरास-रसारम्भी वंशीवट-तट-स्थितः। कर्षन्वेणुस्वनैर्गोपीर्गोपी-नाथः श्रियेऽस्तु नः ॥ (चैतन्य चरितामृत आदि लीला 1.17) अनुवाद:- रासनृत्य के दिव्य रस के प्रवर्तक श्री श्रील गोपीनाथ वंशीवट के तट पर खड़े हैं और अपनी प्रसिद्ध बाँसुरी की ध्वनि से गोपियों के ध्यान को आकृष्ट कर रहे हैं। वे हम सबको अपना आशीर्वाद प्रदान करं। आप यह ३ प्रार्थना सुनते रहते होगें जो मैंने अभी आपको सुनाई हैं।यह प्रार्थना चेतनयचरितामृत के आदि लीला के प्रथम परिच्छेद में लिखी गयी हैं।और यह कृष्ण दास कविराज गोस्वामी के द्वारा लिखित हैं। आप सभी को ही यह प्रार्थनाएं आनी चाहिए।क्योंकि वो लिख रहे हैं- एड् तिन ठाकुर गौड़ीयाके करियाछेन आत्मसात् । ए तिनेर चरण वन्दों, तिने मोर नाथ ॥ (चैतन्य चरितामृत आदि लीला 1.19) अनुवाद:- वृन्दावन के इन तीन विग्रहों (मदनमोहन, गोविन्द तथा गोपीनाथ) ने गौड़ीय वैष्णवों (चैतन्य महाप्रभु के अनुयायियों) के हृदय एवं आत्मा को निमम्न कर दिया है मैं उनके चरणकमलों की पूजा करता हूँ, क्योंकि वे मेरे हृदय के स्वामी हैं। यह तीन विग्रह हम गोडिय़ वैष्णवों के प्राण हैं- राधा मदन मोहन, राधा गोविंद देव और राधा गोपीनाथ। आराध्यो भगवान् व्रजेशतनयस्तद् धाम वृंदावनं रम्या काचीदुपासना व्रजवधूवर्गेण या कल्पिता । श्रीमद भागवतं प्रमाणममलं प्रेमा पुमर्थो महान् श्रीचैतन्य महाप्रभोर्मतामिदं तत्रादशे नः परः ।। (चैतन्य मंज्जुषा) अनुवाद : भगवान व्रजेन्द्रन्दन श्रीकृष्ण एवं उनकी तरह ही वैभव युक्त उनका श्रीधाम वृन्दावन आराध्य वस्तु है । व्रजवधुओं ने जिस पद्धति से कृष्ण की उपासना की थी , वह उपासना की पद्धति सर्वोत्कृष्ट है । श्रीमद् भागवत ग्रन्थ ही निर्मल शब्दप्रमाण है एवं प्रेम ही परम पुरुषार्थ है - यही श्री चैतन्य महाप्रभु का मत है । यह सिद्धान्त हम लोगों के लिए परम आदरणीय है । यह तीनों विग्रह ही हम गोडिय वैष्णवो के लिए आराध्य हैं और इन तीन विग्रहों के तीन आचार्य भी रहे हैं।एक-एक विक्रह के एक-एक उपासक आचार्य।हर विग्रह के लिए अलग-अलग आचार्य।राधा मदन मोहन के उपासक सनातन गोस्वामी,राधा गोविंद के उपासक आचार्य रूप गोस्वामी ओर राधा गोपीनाथ के आचार्य हैं मधु पंडित।चैतन्य महाप्रभु के समय तीनों विग्रह की उपासना वृंदावन में होती थी।किंतु अब यह विग्रह स्थानांतरित हो चुके हैं या कह सकतें हैं कि इन्हें स्थानांतरित करना पड़ा।राधा गोविंद देव और राधा गोपीनाथ तो जयपुर में है और राधा मदन मोहन भी राजस्थान में हीं है राजस्थान के उस स्थान का नाम है नीम करोली,जोकि जयपुर से कुछ ही दूरी पर हैं।जयपुर में दो विग्रह हैं और नीम करोली में एक विग्रह हैं राधा मदन मोहन।उन विग्रहों के स्थान पर जिन विग्रहों की पूजा होती है जिसे प्रतिभू मूर्ति कहते हैं,वह वृंदावन में ही हैं।वृंदावन में है मतलब एक पंचकोसी वृंदावन है जहां केशी घाट है और षढ़ गोस्वामियों के विशेष मंदिर भी वहां प्रसिद्ध हैं जिसे सप्त मंदिर भी कहा जाता है।जहां हमारा कृष्ण बलराम मंदिर है या जहां लोई बाजार है उस वृंदावन में भी श्री राधा गोविंद देव मदन गोपाल और राधा गोपीनाथ की आराधना होती है। 500 वर्ष पूर्व इन विग्रहों की मुसलमानों के आक्रमण से रक्षा के लिए (भगवान को तो बचाने का कोई प्रश्न होता नहीं है लेकिन फिर भी आप समझ सकते हो कि रखवाली तो करनी पड़ती हैं)पंचकोसी वृंदावन से राधा कुंड में पहुंचाया गया।वहां पर भी विग्रह सुरक्षित नहीं थे,तो वहां से इन विग्रहों कामवन में ले जाया गया। वहां पर कुछ समय के लिए आराधना हुई उन विग्रहों की पर वह भी कोई सुरक्षित जगह नहीं थी।तो वहां से इन विग्रहों को जयपुर स्थानांतरित किया गया।और विग्रह नीम करोली भी पहुंच गए।वृंदावन में,राधा कुंड के तट पर और कामवन में इन तीनों विग्रहो की प्रतिभू मूर्तियां हैं। यह तीनों विग्रह हम गोडिय वैष्णवों के लिए विशेष है।इनमें से राधा मदन मोहन को संबंध विग्रह कहते हैं। यह भी समझने की बात हैं।हरि हरि। यह सोने का समय नहीं है,जो सोएगा वह खोएगा।एक संबंध होता है एक अभिधेय होता है और एक प्रयोजन होता है। यह हमारी भक्ति के स्तर या अवस्थाएं हैं।शुरुआत संबंध से होती है।वैसे हर चीज की शुरुआत ही संबंध से होती है। अगर संबंध नहीं है तो फिर कुछ नहीं होता। चाहे भगवान की सेवा करनी हो या अंतोतगतवा भगवद् धाम लौटना हो,तो उसके लिए भगवान के साथ संबंध होना जरूरी है। हम भगवान के कुछ लगते हैं और फिर उनके साथ कौन सा संबंध है यह भी बाद में पता चलेगा।जब संबंध हम स्थापित करते हैं तो उस अवस्था में राधा मदन मोहन जी की आराधना करते हैं। यहां आपको यह बताना चाहेंगे कि राधा गोविंद राधा मदन मोहन से अलग नहीं है और आधार मदन मोहन राधा गोपीनाथ से अलग नहीं है कृष्ण तो एक ही हैं। तीनों तो एक ही है किंतु हम भक्तों के साथ अलग-अलग प्रकार से व्यवहार करते हैं या भिन्न-भिन्न प्रकार से आदान-प्रदान करते हैं। संबंध की अवस्था में कृष्ण हमसे अलग तरीके से आदान प्रदान करते हैं और जब अभिधेय के स्तर पर पहुंचते हैं तो कृष्ण अलग प्रकार से आदान-प्रदान करते हैं या भिन्न-भिन्न प्रकार से अपनी सेवा में लगाते हैं।किंतु वे तीनों एक ही हैं और उनके तो और भी कई सारे नाम है,जैसे राधा दामोदर। राधा दामोदर क्या राधा गोविंद से अलग हैं?नहीं।जब उन्हीं कृष्ण ने गिरिराज धारण किया तो उनका नाम पड़ गया राधागिरिधारी।या कुंज बिहारी। अब कुंज बिहारी भगवान क्या अलग है? उनका गिरधारी से कोई संबंध नहीं है क्या?एक समय गिरिराज को धारण किया तो गिरधारी और कुंजो में तो वो विहार करते ही रहते हैं तो नाम पड़ गया कुंज बिहारी।एक समय गिरिराज को धारण किया और कुंजो में तो वो विहार करते ही रहते हैं तो नाम पड़ गया कुंज बिहारी।वह तो अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं।उनका मुरली धारी भी एक नाम है,उनका रासबिहारी भी एक नाम है। तो यह भगवान अलग अलग नहीं हैं। कृष्ण तो एक ही है।उनके नाम अनेक है।उनकी लीलाएं अनेक है। उनकी लीलाओं के ही अनुरूप उनके नाम अलग-अलग है। नित्योSनित्यानां चेतनश्चेतनानामेको बहूनां यो विदधाति कामान्। तमात्मस्थं येSनुपश्यन्ति धीरास्तेषां शान्ति: शाश्वती नेतरेषाम्।। कठोपनिषद् 2.2.13 अनुवाद: - जो अनित्य पदार्थों में नित्य स्वरूप तथा ब्रह्मा आदि क्षेत्रों में चेतनोंमें चेतन है और जो अकेला ही अनेकों की कामनाएं पूर्ण करता है, अपनी बुद्धि में स्थित उस आत्मा को जो विवेकी पूर्व देखते हैं उन्हीं को नित्य शांति प्राप्त होती है औरोंको नहीं कृष्ण एक हैं और हम सब अनेक हैं।इस सभा में ही कितने सारे हैं। लगभग 750 हैं।और वह एक अकेले। एकले ईश्वर कृष्ण, आर सब भृत्य। यारे यैछे नाचाय, से तैछे करे नृत्य॥ चैतन्य चरितामृत आदि लीला 5.142 अनुवाद:- एकमात्र भगवान् कृष्ण ही परम नियन्ता हैं और अन्य सभी उनके सेवक हैं। वे जैसा चाहते हैं, वैसे उन्हें नचाते हैं। कृष्ण एक हैं,अकेले हैं।और हम सब उनके भृत्य हैं,उनके सेवक हैं।या मित्र है ,तो मित्रों के हिसाब से भिन्न भिन्न व्यवहार होता है।और कुछ तो उनके माता-पिता बनकर प्रकट होते हैं। तो उनके साथ भगवान का अलग व्यवहार,लेनदेन या रस होता है। तो इसी से कृष्ण कितने सारे नामों से जाने जाते हैं।भगवान हमसे अलग अलग ढंग से व्यवहार करते हैं या हमारी अलग-अलग इच्छाओं की पूर्ति करते हैं। उन लीलाओं से या उन नामों से भगवान जाने जाते हैं तो यहां जो चर्चा हो रही है जिसका कृष्ण दास कविराज गोस्वामी ने उल्लेख किया है तीन विग्रह हैं उनके 3 नाम भी हैं राधा गोपीनाथ राधा मदन मोहन तथा राधा गोविंद तो इन तीन ग्रहों के माध्यम से तीन प्रकार से भगवान हमारे साथ व्यवहार करते हैं यह हमारी इच्छा की पूर्ति करते हैं संबंध ज्ञान मतलब भगवान के साथ जब हमारा संबंध प्रारंभिक अवस्था में जुड़ता है फिर वह मदन मोहन बनते हैं वैसे तो वह है ही मदन मोहन लेकिन हमारे लिए मदन मोहन बनते हैं और मदन मोहन के रूप में मदन को मोहित करते हैं।मदन कौन है?मदन है कामदेव।या कामदेव को कंदर्प भी कहते हैं। वेणुं क्वणन्तम् अरविन्ददलायताक्षम् बर्हावतंसमसिताम्बुदसुन्दराङ्गम् कन्दर्पकोटिकमनीयविशेषशोभं गोविन्दमादिपुरुषंतम् अहं भजामि (ब्रह्म संहिता 5.30) कृष्ण इतने सुंदर है कि कोटि-कोटि कंदरपो को भी अपनी ओर आकर्षित करते हैं।कामदेव से आप समझ सकते हो कि कौन है कामदेव। जो हमारे अंदर कामवासना उत्पन्न करते हैं वह देव कामदेव है। या वह मदन भी कहलाते हैं।कृष्ण मदन को अपनी और मोहित करते हैं। इससे हमें भगवान के साथ हमारा संबंध स्थापित करने में मदद मिलती है क्योंकि कामदेव के प्रभाव से हमारा संबंध इस दुनिया से या माया से स्थापित होता है ।जब कामवासना जागृत होती है तो हमको कृष्ण नहीं दिखते,हम माया को खोजते हैं। बलं मे पश्य मायाया: स्त्रीमय्या जयिनो दिशाम् । या करोति पदाक्रान्तान्भ्रूविजृम्भेण केवलम् ॥ (श्रीमदभागवतम 3.31.38) कपिल भगवान अपनी माता को बता रहे हैं कि भगवान ने इस संसार में स्त्री को माया का रूप बनाया है। चिंता मत करो केवल स्त्रियां ही माया का रूप नहीं है और भी माया के रूप है। आप यह सोचेंगे कि हमें ही केंद्रित कर रहे हैं ।नहीं ।आप अकेली नहीं हो। ओर फिर इसको भी हमेशा याद रखो कि आज के पुरुष कल की स्त्रियां भी हो सकती हैं।बारी बारी से स्त्रिया पुरुष बन जातीं हैं और पुरुष स्त्री बन जातें हैं। केवल ये दो ही तो है। इस संसार में सभी योनियों में ही स्त्री और पुरुष होते हैं ।केवल मनुष्य योनियों में ही नहीं कुत्ता है तो कुत्तिया भी होती ही हैं और गधा है तो गधी भी होतीं ही है। भगवान ने इस संसार में इस प्रकार के द्वंद की व्यवस्था की हैं। इस प्रकार जब कामदेव अपने बाणो से प्रहार करते हैं तो हमारा दिल घायल हो जाता है ।फिर इसी तरह हमारा संबंध माया के साथ स्थापित्त होता है इसीलिए हम राधा मदन मोहन कि आराधना करते हैं।जब कृष्ण कि हम मदन मोहन के रूप में आराधना करते हैं तो कृष्ण,मदन जो हम को अपनी और आकर्षित करता रहता है उसे अपनी और आकर्षित करते हैं। या मदन को हटाते हैं कि चलो निकलो यहां से‌। यहां क्या कर रहे हो? यह भक्त, यह साधक मुझ से प्रार्थना कर रहा है। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। यह महामंत्र कहकर मेरे साथ वह अपना संबंध स्थापित करना चाह रहा है अकाम: सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधी: । तीव्रेण भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परम् ॥ (श्रीमदभागवतम २.३.१०) और इसकी भक्ति बड़ी तीव्र है हमारी तीव्र भक्ति को देखकर हमारी इच्छा को जानकर भगवान मदन को हटाते हैं मदन को कामदेव को कंदर्प को जिसको अनंग भी कहा गया है जिसका अंग नहीं है शिव जी जब ध्यान अवस्था में थे तब काम थे वहां पहुंच गया यह कामदेव शिवजी की ध्यान अवस्था में विघ्न डालने का हर प्रयास कर रहा था शिव जी को क्रोध आ गया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खुली जिससे अग्नि उत्पन्न हुई और उसी के साथ कामदेव जलकर भस्म हो गया उसका अंग नहीं रहा तब से कामदेव को आनंद भी कहते हैं आनंद जिसका अंग नहीं है अंग हीन वह तो सही लेकिन उसका जो रूप था वह अब नहीं रहा ऐसे कामदेव के कई नाम है राधा मदन मोहन की आराधना करने से हमारा भगवान के साथ संबंध स्थापित होता है यही हर चीज की शुरुआत है अगर संबंध ही नहीं है तो फिर कुछ भी नहीं है आप आगे बढ़ ही नहीं सकते जयतां सुरतौ पोर्मम मन्द-मतेर्गती। मत्सर्वस्व-पदाम्भोजी राधा-मदन-मोहनौी ॥ (चैतन्य चरितामृत आदि लीला 1.15) अनुवाद:- सर्वथा 'दयालु राधा तथा मदनमोहन की जय हो! मैं पंगु तथा कुबुद्धि हूँ, फिर भी वे मेरे मार्गदर्शक हैं और उनके चरणकमल मेरे लिए सर्वस्व हैं। आप पहले यह प्रार्थना समझो और फिर सीखो। समझोगे तो सीखने में आसानी रहेगी।सीखोगे तो फिर इसका कुछ भाव भी समझ में आएगा कि इसका भाव क्या है,भावार्थ या शब्दार्थ। तब यह प्रार्थना हृदय में बैठेगी।कंठ में तो बिठा लिया,लेकिन कंठ में बिठाने से पूरी मदद होने वाली नहीं है,इसे हृदय में बिठाना होगा। इस प्रार्थना को पढ़ो और इसका शब्दार्थ देखो। मैं पंगु,असहाय हूं और मेरी मति भी मंद है, इसलिए हें मदन मोहन,आपके चरण कमल सदृश हैं।मैं आपके चरण कमलों कि वंदना करता हूं। आप ही मेरे सब कुछ हो। एक राधा है और दूसरे मदन मोहन हैं इसलिए राधा मदन मोहनो। आज केवल इतना ही कहेंगे क्योंकि समय हो गया है और कई प्रार्थनाएं है लेकिन यह तो सबसे पहले स्तर,संबंध स्थापित करने के लिए राधा मदन मोहन के चरणों में प्रार्थना हैं। फिर अभिधेय और अभिधेय के विग्रह है राधा गोविंद देव और प्रयोजन यानी लक्ष्य है कृष्ण प्रेम प्राप्ति या कृष्ण की प्राप्ति,गोलोक की प्राप्ति ।तो फिर उसके लिए राधा गोपीनाथ की प्रार्थना है। वैसे कल तो कभी आता नहीं है इसलिए कल करे सो आज कर, आज करे सो अब लेकिन अब आज आगे नही कर पाएंगे। हरि हरि ।।इन तीन विग्रहों का चेतनयचरितामृत के बिल्कुल शुरुआत में भी उल्लेख हुआ हैं।जैसे हम अभी यहां पढ़ रहे हैं आदि लीला प्रथम परिछेद। Ant 20.142 - 143 श्री-राधा-सह 'श्री-मदन-मोहन। श्री-राधा-सह 'श्री-गोविन्द'-चरण ।142॥ श्री-राधा-सह श्रील 'श्री-गोपीनाथ। एड तिन ठाकुर हय 'गौड़ियार नाथ' ॥ 143॥ (चैतन्य चरितामृत अंत: 20.142-143) अनुवाद वृन्दावन में श्रीमती राधारानी के साथ मदनमोहन, श्रीमती राधारानी के साथ गोविन्द तथा श्रीमती राधारानी के साथ गोपीनाथ के अर्चाविग्रह गौड़ीय वैष्णवों के प्राण हैं। इन तीनों के चरणों की मैं वंदना करता हूं और यह तीनों मेरे नाथ हैं। तो यह बात चैतन्य चरित अमृत के शुरुआत में आई है और चेतनयचरितामृत के अंत में आई हैं।चैतन्यचरित्रामृत के अंत में अर्थात अंतिम लीला के अंतिम अध्याय में अंतिम लीला में 20 अध्याय हैं।चेतनयचरित्रामृत के अंत में कृष्ण दास कविराज गोस्वामी ने उल्लेख किया है चैतनयचरित्रामृत के शुरुआत में भी कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने इन तीन विग्रहो को गोडिय वैष्णवों के नाथ कहां है और इसके समापन में भी तीनों विग्रहों का स्मरण करते हुए कह रहे हैं कि यह तीन ठाकुर गोडिय वैष्णवो के नाथ हैं। यह राधा मदन मोहन राधा गोविंद देव और राधा गोपीनाथ हम गोडिय वैष्णवों के प्राणनाथ है।अब यहां रुकेंगे। हरे कृष्णा।

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