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हरे कृष्ण, जप चर्चा पंढरपुर धाम से 7 मार्च 2021 पंढरपुर धाम की जय! वैसे आज हमारे साथ पंढरपुर से भी भक्त जप कर रहे है। आप सभी का स्वागत है! आज हमारे साथ पहेली बार ठाणे, जुहू, जोगेश्वरी और हैदराबाद ऐसे कई स्थानों से पूरे ब्रह्मांड भर से कह सकते हो ब्रह्मांड भ्रमिते कोण भाग्यवान जीव तो पंढरपुर में आकर जो भी हमारे साथ सम्मिलित हुए है और ऐसा आप करोगे तो आपका स्वागत होगा। हम कल का ही विषय आगे बढ़ाते है, स्वयं की खोज! आत्मा की खोज! या फिर आत्मसाक्षात्कार का विज्ञान कह सकते हो। तो आत्मा के संबंध में हम कल चर्चा कर रहे थे यह आत्मा समझ में आसान नहीं है। जल, मिट्टी हवा उसकी खोज आसान है क्योंकि यह सब स्थूल है। किंतु आत्मा सूक्ष्म है अति सूक्ष्म है। इतना सूक्ष्म है कि आपका सूक्ष्मदर्शक यंत्र से भी आप नहीं देख सकते और दिखाई नहीं देता इसलिए आप ऐसा नहीं कह सकते कि आत्मा है ही नहीं! हवा को देख सकते हो क्या? लेकिन हवा है ना! अगर हवा को दिखा नहीं सकते तो हवा नहीं है। बाप दाखव नाहीतर श्राद्ध कर ऐसा मराठी मे कहा जाता है जिसका मतलब है, अपने बाप को दिखाओ और अगर नही दिखा सकते तो उनका श्राद्ध कर डालो। तो भगवान गीता में कहे हैं, आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन-माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः। आश्चर्यवच्चैनमन्यः शृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्॥ भगवतगीता 2.29 अनुवाद:- कोई आत्मा को आश्चर्य से देखता है, कोई इसे आश्चर्य की तरह बताता है तथा कोई इसे आश्चर्य की तरह सुनता है, किन्तु कोई-कोई इसके विषय में सुनकर भी कुछ नहीं समझ पाते। आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन जब हम आत्मा के बारे में सुनते हैं तो आश्चर्यचकित हो जाते है। और कुछ लोग आश्चर्य के साथ बोलते रहते है। वह ताजमहल ही केवल आश्चर्य नहीं है जो दुनिया के सात अजूबों में से एक है। तो जब वह जाते है तो बड़े आश्चर्य के साथ उसको देखा करते है। आश्चर्यवच्चैनमन्यः शृणोति और सुनने वाले भी बड़े अचरज के साथ सुनते रहते हैं तो फिर भगवान कहते हैं कि, सुनने के उपरांत भी यह आत्मा के संबंध में रहस्य बना रहता है। अंततोगत्वा यह अनुभव की ही बात है। किसी ने कहा कि हम बड़े दुखी हैं तो दूसरे ने कहा कि दुख दिखाओ तो दुख ऐसा है कि, जो दिखाया नहीं जा सकता केवल अनुभव किया जा सकता है। तो वही बात आत्मा की भी है। आत्मा है, परमात्मा है, भगवान है यह दिखाने के और दिखाने की चीज तो है, लेकिन यह अनुभव की बात है इसी को आत्मसाक्षात्कार या भगवतसाक्षात्कार कहते है। तो तर्क वितर्क के दृष्टि से सोचा जाए तो प्रभुपाद कहते है की,वह किसी को खड़ा करते थे और पूछते थे कि आप यह हाथ है क्या? आप हाथ हो तो व्यक्ति कहता है की, मैं हाथ नहीं हूं, यह मेरा हाथ है! यह मेरी संपत्ति है! मेरा सिर है लेकिन मैं सिर नहीं हूं! तो शरीर के कई सारे अवयव है और उनके संबंध में कहते रहते हैं कि, यह मेरा है लेकिन यह नहीं है। यह मेरा है। वैसे मैं होता है इसीलिए मैं का मेरा होता है! तो यह मेरा है, मेरा है कहने वाला कौन है? कोई है शास्त्र में कहां है की, अहम ममेती शास्त्रों के केवल 2 शब्दों में कहा जा सकता है कि अहम मम। अहम ममेती हो गया! तो यह मम तो चलता रहता है। लेकिन ममता किसी की होती है अहम कोन हे? वह है आत्मा! यह संसार में माया भी लोग कहते रहते हैं कि तो उनका उनका अहंकार होता है, अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते॥ अहंकार के भी दो प्रकार है एक भौतिक और दूसरा प्राकृतिक। एक मायावी अहंकार है और दूसरा हे दिव्य अलौकिक और अप्राकृतिक! जो आत्मा है, मैं आत्मा हूं, तो हम समझ सकते हैं कि आत्मा इतना सूक्ष्म है इसीलिए कृष्णा कहें। क्या आप हवा को काट सकते हो? नहीं क्योंकि हवा इतनी सूक्ष्म है कि उसे कहता नहीं जा सकता। नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥ भगवतगीता 2.23 अनुवाद :- यह आत्मा न तो कभी किसी शस्त्र द्वारा खण्ड-खण्ड किया जा सकता है, न अग्नि द्वारा जलाया जा सकता है, न जल द्वारा भिगोया या वायु द्वारा सुखाया जा सकता है। तो जो पंचमहाभूत है उनमें से चार भूतों का कृष्ण यहां उल्लेख करके कह रहे हैं कि यह 4 पृथ्वी, आकाश, वायु का उल्लेख करते हुए बोलते हैं कि नैनं छिंदंति शस्त्राणि और शस्त्र किस का बनता है? पृथ्वी का बनता है। नैनम दहति पावक, पावक मतलब अग्नि जिसे जला नहीं लेना और इसको जल्दी आ नहीं सकता और पानी को गिला नहीं कर सकता तो यह संसार के जो पांच महाभूत है इससे आत्मा प्रभावित नहीं होता है। बद्ध होता है लेकिन आत्मा पर इन पंचमहाभूत का प्रभाव नहीं होता! हरि हरि। तो मैं सोच रहा था कि, ऐसे कुछ पेड़ होते हैं जिसको काट के लगाने से अलग वृक्ष बनता है। तो क्या हुआ? अपने वृक्ष को काट लिया क्या? नहीं! हर शरीर में आत्मा है। वृक्ष के शरीर में भी आत्मा है। तो बड़ा रूप से है इसलिए उसमें 5-10 आत्मा नहीं होता। एक ही आत्मा होते है। चींटी में भी एक ही होता है और हाथी में भी एक ही आत्मा होता है। तो होता क्या है, जब हम शाखा काटते हैं और उसको दूसरी जगह पर लगाता है, तो दूसरी आत्मा उसमें प्रवेश करती है। एक अलग आत्मा उसमें प्रवेश करती है। और फिर अलग से एक वृक्ष बन सकता है। और बढ़ता है तो आत्मा को काटा नहीं जा सकता। तो टेस्ट ट्यूब बेबी या ऐसा कुछ दिमाग लगाते रहते है। ऐसी कुछ व्यवस्था करते है। या प्रयास करते है और भगवान ने जो घोषणा की है, या निसर्ग व्यवस्था है की, स्त्री के अंदर बालक बढ़ेगा और बाहर जन्म लेगा। तो टेस्ट ट्यूब बेबी तो आप प्रयास कर रहे हो लेकिन, यह भगवान के साथ स्पर्धा चल रही है। तो यह कैसा चल रहा है कि, भगवान नहीं है, भगवान की कोई आवश्यकता नहीं है। हम भी लेबोरेटरी में बालक उत्पन्न कर सकते है। गर्भ के स्थान पर टेस्ट ट्यूब यूज करते हैं। टेस्ट ट्यूब तो है लेकिन जब तक आत्मा वहां पर प्रवेश नहीं करेगी, अंडकोश में वीर्य नहीं जाएगा और यह जब नहीं होगा तो यह सब गर्भ में ही होता है। ठीक है, स्त्री पुरुष का मिलन हुआ किंतु जब तक भगवान आत्मा को पहुंचाते नहीं तो आप कितने भी प्रवेश प्रयास करो बालक का जन्म नहीं होगा! जो टेस्ट ट्यूब बेबी इसका विलाप है। तो टेस्ट ट्यूब बेबी में आत्मा का प्रवेश नहीं होगा तो बालक या बालिका का जन्म ही नहीं होगा! शरीर से पहले आत्मा होता है और बाद में शरीर होता है जैसे कि पहले आप घर बनाते हो और बाद में घर में प्रवेश करते हो। निवास में निवासी बाद में आता है तो देही मतलब आत्मा। नौ द्वारों का यह नगर है, शरीर है तो इसमें जो निवासी रहता है वह आत्मा है! तो घर बनाने से पहले घर बनाने वाला होता है।और फिर वह घर बनने के उपरांत घर में रहता है वैसे ही आत्मा पहले होता है शरीर से पहले होता है। और फिर वह शरीर में प्रवेश करता है। शुरुआत में छोटा सा स्वरूप धारण करता है तो उस ने जन्म ले लिया है। अभी-अभी जन्म हुआ तो हम कहते हैं कि, आप कितने बड़े हो? तो हम बताते है कि एक महीना हुआ। तो एक महीना पहले बालक ने जन्म लिया है तो उसमें 10 महीने और 10 दिन जोड़ने होंगे 10 महीने पहले बालक ने गर्भ में जन्म लिया हुआ था और अस्पताल में 1 महीने पहले जन्म लिया लेकिन 10 महीने पहले ही उसने जन्म ले लिया था तो जन्म लेने के उपरांत कोई बालक की हत्या करता है तो उसको उसका दंड अवश्य मिलेगा। जब बालक गर्भ में ही होता है, तब सब मिलकर डॉक्टर्स और माता–पिता उसकी हत्या की योजना बनाते हैं। वे बच्चे को गर्भ में मार देते है जो अच्छा नहीं है। हरि हरि। ऐसे कर्म कलयुग में चलते रहते हैं। हरि हरि। तो जानने के लिए, पहचानने के लिए यह मनुष्य जीवन है। हम तो आईने में देख लेते हैं और समझ लेते हैं कि यह मैं हूं। लेकिन इतना सस्ता और आसान नहीं है खुद को देखना और घोषित करना कि मैंने खुद को देख लिया। हम जब आईने में देखते हैं तो हमें वैसे कहना चाहिए और सोचना चाहिए। तो यह सब चलता रहता है। आपकी पहचान(आईडी) क्या है? हम लोग पहचान पत्र दिखाने के लिए क्या करते हैं? हमारी फोटो दिखाते हैं। लेकिन वह पहचान क्या है? यह परिवर्तित(चेंज) भी होती रहती है। बालक थे तो एक प्रकार की आईडी, युवक हुआ, वृद्ध हुआ, तो अलग प्रकार की आईडी यह हमेशा परिवर्तनशील पहचान है। सब समय पहचान बदलती रहती है। कौन जड़ भरत थे? पहले जन्म में तो राजा भी थे। राजा भरत अगले जन्म में कौन बन गए? हिरण बन गए। उसके अगले जन्म में जड़ भरत बन गए। तो कौन सी पहचान रही? अभी भी तो तुम हिरण थे उस पहचान का क्या हुआ? अभी भी तुम बालक थे, उसके बाद बालक से युवक बने उस आईडी का क्या हुआ? एक चीज होती है एवर चेंजिंग (हमेशा बदलती) और एक चीज होती है नेवर चेजिंग (कभी नहीं बदलती)। शरीर में हर समय, हर क्षण परिवर्तन होता है। लेकिन आत्मा ऐसा जिसमें कभी भी बिल्कुल परिवर्तन नहीं होता। इसीलिए अव्यय भी कहा गया है ,आत्मा अव्यय होता है। व्यय मतलब खर्च होना या कुछ घटना या कम होना। व्यय अलग है , अपव्यय अलग है। आत्मा में कोई परिवर्तन नहीं होता। ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः | मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति || ७ || भावार्थ– इस बद्ध जगत् में सारे जीव मेरे शाश्र्वत अंश हैं । बद्ध जीवन के कारण वे छहों इन्द्रियों के घोर संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें मन भी सम्मिलित है । (श्रीमद्भगवद्गीता 15.7) आपका क्या पहचान है? यह हमारी पहचान है कि हम जीवात्मा है और हम किनके हैं? हम लोग तो नाम जोड़ देते हैं। हमारे नाम के साथ पहले तो पिता का नाम जुड़ता है जब हम स्कूल जाते हैं। फिर आगे पति का नाम आ जाता है। वैसे सही क्या होगा रेवती रमण कृष्ण दास। रेवती रमण फिर पिता का नाम, दास फिर उपनाम हुआ क्या? कोई पाटिल है तो कोई पटेल है। हमारा उपनाम तो दास या दासी है। हमारे नाम के साथ कृष्ण का नाम होना चाहिए क्योंकि हम कृष्ण के हैं। त्वमेव माता कहो त्वमेव पिता कहो त्वमेव बंधु त्वमेव सखा। इस संसार में हम लोग अपने पिता या पति का नाम, तो हमारी सही पहचान यही होगी कि हमारे नाम के साथ कृष्ण का नाम और जोड़ते हैं यही सत्य हैं। यह हमारी पहचान है, यह हमारी आईडी है कि हम आत्मा है। निरोधोऽस्यानुशयनमात्मन: सह शक्तिभि: । मुक्तिर्हित्वान्यथारूपं स्वरूपेण व्यवस्थिति: ॥ ६ ॥ (श्रीमद् भागवत 2.10.6) ऐसा भागवत कहता है, मुक्तिर्हित्वान्यथारूपं हित्वा मतलब त्याग कर, छोड़कर या ठुकरा कर कहो। हित्वा अन्यथा रूपम हमारे अन्य अन्य रूप जो रहे। पहले के भी रहे और अब भी हैं। इस जन्म में भी है, बचपन में जो हमारा रूप रहा और जो अब भी है। स्वरूपेण व्यवस्थिति: वैसे यह भी संकेत होता है स्वरूपेण। एक तो स्व है और वह स्व आत्मा है। स्वयं हम आत्मा है और क्या है स्वरूपेण ? उस आत्मा का रूप है। एक आत्मा है और शरीर भी है, अन्यथारुपम और और जो रूप है और और जो शरीर हमारे रहे, भूल जाओ उसको या इस जीवन में अब भी हैं। मुक्तिर्हित्वान्यथारूपं स्वरूपेण व्यवस्थिति: अपने रूप में स्थित हो जाओ और फिर उस रूप को भगवान के चरणों में बैठाओ और स्थापित करो। यही जीवन की पूर्णता है और जब तक हमको स्वयं का पता ही नहीं है। उस स्वरूप में हम स्थित नहीं हुए। हम जब तक आत्मसाक्षात्कारी नहीं होते, तब तक फिर इस संसार में हमारा यह भ्रमण चलता रहता है। पुनरपि जननं पुनरपि मरणं,पुनरपि जननी जठरे शयनम्। इह संसारे बहुदुस्तारे,कृपयाऽपारे पाहि मुरारे ॥२१॥ (भज गोविन्दम - आदि शंकराचार्य छंद - २१) तो आप थके हो कि नहीं? मेरा मतलब आप इस जन्म मरण से थके हो या नहीं? बहुत हो गया ना कितनी बार जन्म, मृत्यु, जरा, व्याधि, कोरोना वायरस, ये वायरस ,वो वायरस। लेकिन यह बातें अगर आप नहीं मान लोगे, तो फिर लात मिलती जाएगी। लात खाते जाओ, मृत्यु की लात है, बीमारी की लात है, ठोकर है। अच्छा है कि हम थोड़े जग जाए। यह केवल मनुष्य जीवन में ही व्यक्ति जग सकता है। भगवान की कृपा से, व्यवस्था से, इस वक्त हम मनुष्य बने हैं। बने क्या है? मतलब मनुष्य रूप तो है, मनुष्य का शरीर तो है। मनुष्य बने है या नहीं यह बता नहीं सकते। मनुष्य का रूप होना एक बात और मनुष्य होना दूसरी बात। अधिक लोग तो दानव ही है। मानव तो बहुत कम है, दानवीय प्रवृत्ति का इतना प्रभाव, बोलबाला या प्रचार है, आसुरी प्रवृत्ति रही है l इसका लाभ उठाना चाहिए। श्रीप्रह्राद उवाच कौमार आचरेत्प्राज्ञो धर्मान्भागवतानिह । दुर्लभं मानुषं जन्म तदप्यध्रुवमर्थदम् ॥ १ ॥ (श्रीमद्भागवत 7.6.1) तदप्यध्रुवमर्थदम् मनुष्य जीवन प्राप्त हुआ है। सारे जीवन और यह मनुष्य जीवन भी अशाश्वत है अध्रुव्म। ध्रुवम मतलब निश्चित, अध्रुवम मतलब कोई भरोसा नहीं है, अनिश्चित है। प्रहलाद महाराज कहे हैं यह मनुष्य जीवन अध्रुवम् तो है और अनिश्चितता उसके साथ जुड़ी हुई। तो भी अर्थदम, यह अर्थपूर्ण है। जब जीवन में कोई अर्थ आ जाता है। तब हम प्रेम प्राप्ति के लिए, कृष्ण प्रेम प्राप्ति के लिए जीवन जीते हैं तो फिर उसका कोई अर्थ है, अर्थ पूर्ण जीवन है। हरि हरि! बिफले जनम गोङाइनु मनुष्य-जनुम पाइया, राधा-कृष्ण ना भजिया, जानिया शुनिया बिष खाइनु (इष्ट-देवे विज्ञप्ति) –नरोत्तम दास ठाकुर तो दो प्रकार के लोग हैं। एक तो जानबूझकर है जो विष खाने वाले, बॉलीवुड मूवी देखने वाले, सिनेमा संगीत शादी पार्टी में। वह एक समय शादी पार्टी में भारत में लोग नाचते हैं और शराब पीते होंगे और फिर मस्ती में नाचते हैं, डीजे भी चलाते हैं। कितना विनाशकारी है। कितनी अशांति पार्टी यह शब्द है। तो यही है जानिया शुनिया बिष खाइनु। उनके स्थान पर यह भगवान का नाम है या भगवान के संबंधित हर बात है, मधुर है। मधुराधिपते अखिलम मधुरम भगवान माधुरय के पति है। अखिलम मधुरम पंढरपुर धाम भी मधुर है। यहां के विठ्ठल भी मधुर है।प्रेम से राधा कृष्ण की दर्शन कर सकते हो। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। मधुर है, चरणामृत भी है। चैतन्य चरित्रामृत है, भगवान अमृत है, प्रसाद अमृत है। प्रसाद जैसा भोजन है नहीं, खाने की चीज है, बार-बार खाओ। दिन में तीन बार तो खाओ। अन्ना अमृत पाओ, और फिर राधा कृष्ण गुण गाओ। यह करते करते फिर पकड़ ढीली पड़ जाती है और फिर आत्मा पकड़ में आ जाता है। मैं यह शरीर नहीं हूं और मैं एक आत्मा हूं। यही करने के लिए तो मनुष्य जीवन है। ऐसा नहीं किया तो हम हमारा जीवन व्यर्थ में गवा देंगे। कंप्यूटर साइंस जानते हो? नौका वाले ने कहा नहीं मैं नहीं जानता। साइंटिस्ट ने कहा 25% तुम्हारी लाइफ व्यर्थ चली गई है। कोलकाता से एक साइंटिस्ट आया था। उसको नवदीप आ गया हरे कृष्ण मंदिर जाना था। बीच में गंगा आ गई नाव पर बैठा हुआ था। चलाते-चलाते हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। यह साइंस जानते हो? नहीं मैं नहीं जानता। तुम्हारा 50% जीवन व्यर्थ हो गया है। अच्छा यह जानते हो ? नहीं, तो 75% पर व्यर्थ हो गया। ऐसा साइंटिस्ट कह रहा था। इतने में आंधी तूफान शुरू हुई नाव डगमगाने लगी और फिर बारी थी नौका चलाने वाले की। तैरना जानते हो? नहीं जानते। इतने में नौका पलटी खा गई उसका 100% जीवन व्यर्थ हो गया। एक तो हरे कृष्ण कहते कहते तर गया। दूसरा गंगासागर में बहते हुए बह गया। हरि हरि।

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