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जप चर्चा, 30 जुलाई 2021 पंढरपुर. हरि हरि, 888 स्थानोसे भक्त जप के लिये जुड गये है।! हरिबोल ओम नमो भगवते वासुदेवाय समाश्रिता ये पदपल्लवप्लवं महत्पदं पुण्ययशो मुरारेः । भवाम्बुधिर्वत्सपदं परं पदं पदं पदं यद्विपदां न तेषाम् ॥ (श्रीमदभागवत10.14.58) अनुवाद: दृश्यजगत के आश्रय एवं मुर राक्षस के शत्रु मुरारी के नाम से प्रसिद्ध भगवान् के चरणकमल रूपी नाव को जिन्होंने स्वीकार किया है उनके लिए यह भव सागर बछड़े के खुर चिन्ह में भरे जल के समान है । उनका लक्ष्य परं पदम् अर्थात् वैकुण्ठ होता है जहाँ भौतिक विपदाओं का नामोनिशान नहीं होता , न ही पग पग पर कोई संकट होता है । ब्रह्मा उवाच श्रीमदभागवत के व्दितीय स्कंध के चौदाह्वे अध्याय में या वैसे पुरा चौदाह्वा अध्याय ब्रह्मा उवाच। भगवान कि स्तुति है या इन स्तुति में से एक स्तुती मै ये आपको सुना रहा हुं। समाश्रिता ये पदपल्लवप्लवं महत्पदं पुण्ययशो मुरारेः । भवाम्बुधिर्वत्सपदं परं पदं पदं पदं यद्विपदां न तेषाम् यह अच्छा है ना परं पदं पदं पदं यद्विपदां न तेषाम् पदपल्लवप्लवं महत्पदं पदं पदं यह एक मधुर प्रार्थना है। मधुर भी है और इसके अर्थ भावार्थ बडे गंभीर और उच्च है। भाव या विचार एक विशेष प्रार्थना। मुझे बहोत प्रिय है स्तुति। ब्रह्मा कि स्तुति इसीलिये आपको बता रहा हुं आज या परीकामा में हम जाते है तो वहा बताते वृंदावन में कहा स्तुति की ब्रम्हा ने कृष्ण कि। वृंदावन में चौमुहा नामक स्थान है। हम जब दिल्ली से आते है, आग्रा जाते समय छाता आ गये, वृंदावन में प्रवेश किये। छाता और छटीकरा जहासे हम कृष्णबलराम मंदिर के लिये दाये मुडते है, मतलब छाता और छटीकरा के बीच में एक चौमुहा नामक स्थान आता है। बिलकुल हायवे पर है। चौ मतलब चार मुह मतलब मुह चार मुह वाले कौन है? ब्रह्माजी। चौमुहा मतलब जहा ब्रम्हाने स्तुति की कृष्ण कि। वही पर चतुर्मुखी ब्रम्हाने भगवान कि स्तुति की। ऐसे ब्रज मे कई सारे या अधिकतर या कहो सभी जो नाम है ऐसेही नाम दिये हुए है। वहा कौनसी लीला हुई इत्यादी इत्यादी कारण बनते है और ब्रजमंडल के सारे नाम या वहाके स्थानोके नामकरण हो जाते है। यह चौमुहा, एक समय लीला हुई है ब्रम्हविमोहन लीला भगवान जो खेले। ब्रम्हा को ही मोहित किये। बम्हाने जो विचार किया चलो मै मोहित करता हुं, भ्रमित करता हुं, इस बालकृष्ण को। ब्रम्हा ने कृष्ण के जो बालमित्र उनके बछडे है उनकी चोरी की थी। छुपाके आ गये देख रहे है, तो कोई अंतर नही पडा। दिनचर्या हररोज कि तऱह चल रही है कृष्ण कि। मित्र है। बछडे है। कृष्ण तो है ही। तो लौटा दिये ब्रम्हाने जिनको उन्होने सोचा था कि मैने इनकी चोरी कि है कृष्ण के मित्र और बछडोकी लौटा दिये। उस समय भगवान कि स्तुति की है। वह स्तुति यहा श्रीमदभागवत के दसवे स्कंध के चौदाह्वे अध्याय में है। भागवत में कई सारे स्तुतिया है उसमे से यह एक महत्वपुर्ण प्रार्थना है। ब्रम्हा कि प्रार्थना ब्रम्हा जो हमारे परम्परा के प्रथम आचार्य भी है। तो क्या प्रार्थना, वैसे पुरा अध्याय ही प्रार्थना है। उसके अंत का ये में आपको सुना रहा हुं। क्या सुना या कह रहे है ब्रम्हा? समाश्रिता ये पदपल्लवप्लवं आपके चरणकमलोका जो आश्रय लेता है, समाश्रिता भलीभान्ति जिन्होने आश्रय लिया आपकी चरणकमलोका। और आप कौन यशो मुरारी और आप कौन हो, पुण्ययशो मुरारी मूर आरी जो आपके लिये बन गया शत्रु आप बन गये उसके शत्रु। ऐसे पुण्ययशो मुरारी पदपल्लवप्लवं वृक्ष पल्लवित हो जाते है। नये नये पत्ते आ जाते है फिर धीरे धीरे कुछ पुष्पित हो जाते है। आपके चरणकमल पल्लव जो भी समाश्रिता आश्रय लेंगे आपके चरणकमलोका पदपल्लवप्लवं वाशह चरणकमल बन जायेंगे नौका। नौका है तो पानी होना चाहिये। पानी तो है ही। भवाम्बुधि हम सारे संसार के जीव तो है ही भवाम्बुधि में डूब रहे है। भवसागर है भवाम्बुधि तो बचने के लिये नौका चाहिये। या बेडा पार कराने के लिये, किनारे पहुचने के लिये नौका चाहिये। हा है यह भवाम्बुधि भवसागर किन्तु जो आपके चरणोका कोई आश्रय लेता है तो आपके चरण बन जाते है नौका। और जैसेही आप उस नौका में चढ जाते हो हमने चरणकमल का आश्रय लिया है, चरणकमल बन गये नौका। ऐसा करनेसे यह जो भवाम्बुधि वह बन जायेगा वत्सपदम पदपल्लवप्लवं आपके जो चरणकमल उसका आश्रय याह जो भवसागर जो विशाल है। उसकी जो लम्बाई चौडाई उसको कौन नाप सकता है और यह भवसागर मतलब हिंद महासागर या पँसिफिक महासागर नही है। यह सारा संसार, ब्रम्हांड भवसागर है। इसमे स्वर्ग भी आ गया, नर्क भी आ गया, इतना विशाल सागर है। भवाम्बुधि उसका क्या होगा, वत्सपदं छोटा बन जायेगा। संकीर्ण बन जायेगा वत्सपदं। बछडे जब चलते है या मिट्टी का पगदंडी रास्ता है, गाये बछडे चरती है खेतमे वह जब चलती है तो अपने खुर का निशाण बना लेती है मिट्टी में। और वह वर्षा के दिन अगर है हमने खुद अनुभव किया है। हम जब छोटे थे हम खुद भी गाये भैसो को चराने ले जाया करते थे। वह बछडा जैसेही पैर उठा लेता निशाण बना लेता हैं अपने खुर से पैर से जहा वह ढस गया वहा गढ्ढा वह तुरंत भर भी जाता है। वर्षा के दिनोमे पानी तो होता ही है। फिर यह सारा भवाम्बुधि आकार लेगा वत्सपदं। फिर क्या समस्या है, आपके चरणकमल बन गये है नौका बन गये है। वैसे नौका इस पानी में, यह वत्सपदं वत्स के पद से खुर से बना हूआ जो गढ्ढा और उसमे नौका है, आपके चरणकमल रुपी जो नौका है वैसे नौका रखने के लिये भी स्थान नही है। नौका ने इस भवसागर को पार कर भी लिया। क्योकी भवसागर को चरणकमल का आश्रय लेने से भवसागर बन गया वत्सपदं। फिर आप तो पहुंच ही गये। परं पदं पद का एक अर्थ पदवी या स्थान भी होता है। आप पहुंच गये अपने अंतिम लक्ष्य पर। गीता में कृष्ण ने कहा है न परां गतिम् न सुखं जो शास्त्रो कि बातोंको स्वीकार नही करता न सुखं वाप्नोती उसको सुख प्राप्त नही होगा। न परम गती। श्रील प्रभूपादने अपने शिष्य को नाम दिया है परमगती। तो परम गती क्या है, परम धाम, वैकुंठ धाम, भगवदधाम, गोलोक धाम परम गती है। यहा ब्रम्हाजी कहे है, परं पदं वहा व्यक्ति पहुंच जायेगा निश्चितरुपसे। और वहा जो स्थान है भगवदधाम परं पदं पदं पदं यद्विपदां न तेषाम् वहा क्या नही है, विपदा। इस संसार में पग पग पर विपदा है। एक संपदा होती है और दुसरी विपदा। संपदे विपदे ऐसे भक्तीविनोद ठाकूर एक गीत में लिखे है। जीवन कि दो अवस्थाये होती है संपदा धन संपदा और विपदा संकट है, या कोई आपत्ती होती है हम निर्धन हो गये दिवाला निकल गया विपदा। यहा पदं पदं यद्विपदां इस संसार में पग पग पर समस्या है। कष्ट है। लेकीन तेषां भगवदधाम में ऐसा नही है। वैकुंठ में ऐसा नही है। वै मतलब मुक्ती और कुंठ मतलब चिंता या समस्या चिंता का कारण या समस्या का कारण। तो वैकुंठ चिंता से मुक्ती वहा कोई चिंता नही है। वहा जन्म नही है। मृत्यू नही है। करोना वायरस नही है। और कोई कभी बुढा होता भी नही है। वहा के सभी जन अजर है। अमर है। अजर मतलब जरा कोई जरा नही। अमर मतलब कभी मरते नहीँ “न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः.......केवल जीवात्मा ही है। आत्मा का लक्षण है न जायते म्रियते न जन्म आत्मा का जन्म नही होता। तो जन्म नही होता तो मृत्यू भी नही है। “जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु कोई जन्म लेता है तो, मृत्यू होती है। शरीर का जन्म है तो, शरीर का मृत्यू भी निश्चित है। आत्मा का जन्म नही होता तो आत्मा कभी मरता भी नही। तो वहा ऐसी स्थिती है। हम अपने स्वरूप स्थिती को क्तिर्हित्वान्यथारूपं स्व - रूपेण व्यवस्थितिः और और रूप जो बहुरूपिया हम जो बनते थे। इस संसार में 84००००० योनियो में भ्रमण करते करते करते करते अंततः हमे यह मानव जीवन मिलता हैं। दुर्लभ मानव सत्संगे, दुर्लभ मानव जीवन अगर हम सत्संग में व्यतीत करते है, तो फिर क्या होता है तर हय भवसिंधु रे जो भवसागर है इसको पार करते है। तर हय भवसिंधु रे तरह पुनः बात आ गई, इस भवसागर कि इसको हम पार करते हैं तरते हैं। हरि हरि हमारे पांडुरंग पांडुरंग पांडुरंग पांडुरंग वह भी ऐसा दिखाते हैं। समझाते हैं। विट्ठल भगवान ने अपने कमर पर हाथ रखे हैं। "कर कटावरी ठेवूनिया" कमर पर हाथ रखकर। जो भी दर्शनार्थी आते हैं, उनके दर्शन के लिए। तो भगवान उनको कहते हैं, "तुमने तो पार कर लिया यह जो भवसागर है, तुमने उसे पार कर लिया।" तुम जो मेरे दर्शन के लिए आए हो। तुमने तो कर लिया। यह भवसागर पार कर लिया। तुम जो मेरे दर्शन के लिए आए हो, मेरे पास आए हो, मेरा दर्शन कर रहे हो यहां पर यह तो सागर का तट या किनारा ही है। या ज्यादा जल नहीं है। कितना जल है, कमर पर हाथ रख कर बताते हैं। कमर के इतना जल है। इतने जल में तो कोई डूब के मर ही नहीं सकता। समाश्रिता ये पदपल्लवप्लवं महत्पदं पुण्ययशो मुरारेः । भवाम्बुधिर्वत्सपदं परं पदं पदं पदं यद्विपदां न तेषाम् ॥ बहुत ही अच्छा है यह स्तुति सुनने के लिए। जो काव्य कहते हैं, परं पदं पदं पदं यद्विपदां न तेषाम् पदपल्लवप्लवंमहत्पदं मुरारेः भवाम्बुधिर्वत्सपदं इसमें सौंदर्य भी है। सुनने के लिए मधुर है यह स्तुति। और इसका श्रवण का जो फल है वह भी मधुर है। या जो भी उसमे कहा है, भगवान के समाश्रिता ये जो भी उनका आश्रय लेंगे उसी को तो भगवान ने कहा है, "सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज" मेरी शरण में आओ मेरा आश्रय लो। फिर मा श्रुचः फिर कोई चिंता की बात नहीं है। डरने की कोई बात नहीं। तुम सिर्फ़ यहां पर आओ फिर कोई डर नहीं ओ मेरे प्रिय । तुमको डर किस बात का है तुम सिर्फ यहां पर आ जाओ ऐसा ही कुछ कृष्ण कह रहे हैं तो सुनिए कृष्ण को यहां ब्रह्मा को सनिए उनके साक्षात्कार को सुनिए "नामाश्रय करि जतन तुमि ताक आपन काजे" भगवान के नाम का आश्रय ही हो गया भगवान के चरणों का आश्रय। अब अगर चरणों का आश्रय लिया तो हो गया क्या कृष्ण का आश्रय? भगवान के चरण ही भगवान है। अंगानि यस्य सकलेन्द्रियवृत्तिमन्ति पश्यन्ति पान्ति कलयन्ति चिरं जगन्ति । आनन्दचिन्मयसदुज्ज्वलविग्रहस्य गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ॥३२ ॥ भगवान के नाम का आश्रय भगवान के चरणों का आश्रय है या भगवान का आश्रय है। फिर भगवान के धाम का आश्रय भी भगवान का आश्रय है। तो भगवान बन जाते हैं, उनको धाम बनाना चाहते हैं। वृंदावन धाम की जय! तो बन गया वृंदावन धाम, वृंदावन धाम भगवान है। भगवान की लीलाएं भगवान है। गंगे! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति! नर्मदे! सिंधु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु इत्यादि इत्यादि सात पवित्र नदियां है। जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु हे जल गंगाजल, जमुना जल, सरस्वती जल यहां पहुंच जाओ यहां में स्नान कर रहा हूं। तो वह गंगा जमुना का जल भगवान ही है, भगवान के चरण का अमृत है। तो वे भगवान ही है। भीमा आणि चंद्रभागा तुझ्या चरणीच्या गंगा तो पंढरपुर में ऐसा भी एक गीत गाते हैं। हे गंगा, चंद्रभागा भीमा भी एक नाम है चंद्रभागा का। भगवान के चरणों की यह गंगा है। या ऐसा भी एक समझ है कि भगवान का दिल द्रविभूत होता हे। भगवान को आती है दया, हम पर दया। हम को देखते हैं, जब हमारी स्थिति को देखते हैं तो दया द्र दया के कारण आद्रता आ जाती है भगवान के ह्रदय में। आद्र मतलब गीलापन कुछ विशेष सीजन में घास के ऊपर छोटे से जल के बिंदु होते हैं उसे आद्रता कहते हैं आद्र। तो भगवान का दिल भी, कृष्ण का दिल पिघल जाता है और वही गंगा और जमुना के रूप में बहता है। भगवान ही बन जाते हैं यह गंगा-जमुना का जल। फिर भगवान ग्रंथ बनना चाहते हैं, गीता भागवत के रूप में यह भगवान ही है। कृष्णधामोपगते कलौ नष्टृशामेष पुराणाकोऽधुनोदितः ऐसा भागवत में लिखा है। कलयुग आ गया, तो लोगों की हो गई दृष्टि नष्ट हो गई। तो भगवान सभी को दृष्टि देने के लिए, ज्ञान देने के लिए, अपना संग देने के लिए, यह पुराणअर्क सूर्य जिसको प्रभुपाद लिखते हैं जो सूर्य के समान तेजस्वी है श्रीमद् भागवत उदित हुआ, प्रकट हुआ। कृष्ण गए स्वधामोपगते अपने धाम लौटे और वह जो हुआ उसी के साथ उसी समय भगवान इस संसार में प्रकट भी हुए ग्रंथ राज श्रीमद्भागवत के रूप में। ग्रंथ राज श्रीमद्भागवत भी भगवान है भगवान से अभिन्न है। यह भगवान की वांग्मयी मूर्ति है, वाक्य। वाक्य से भरा हुआ, कई सारे वाक्य है, कई सारे वचन है और यह वचन ही भगवान का रूप धारण करते हैं। या यह वचन ही तो है फिर हरि सर्वत्र गियते आदौ, मध्ये, अंते हरि का सर्वत्र गान है या हरि के नाम का, रुप का, गुण का, लीला का, धाम का। तो ग्रंथराज श्रीमद् भागवत स्वयं भगवान है। तो यह सब अलग-अलग रूप भगवान धारण करते हैं। और फिर और भी है लेकिन महत्वपूर्ण तो कलि काले नाम रूपे कृष्ण अवतार। कृष्ण प्रकट होते हैं हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे।। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। नामाश्रय करे जतने तुम्ही। यह ब्रह्मा कह तो रहे हैं समाश्रिता ये जिन्होंन आश्रय लिया हुआ है पुण्ययशो मुरारेः भगवान का आश्रय लिया हुआ है, तो इन सब का आश्रय हम ले सकते हैं। नाम का आश्रय तो प्रधान आश्रय है कलयुग में। लेकिन नाम के साथ धाम का आश्रय, गंगा जमुना का आश्रय या ग्रंथों का आश्रय भगवान की विग्रहों का आश्रय। भगवान के विग्रह भगवान है कि नहीं?.. वह स्वयं भगवान ही है। अर्चविग्रह.. या भगवान अवतार लेते हैं अपने विग्रह के रूप में। भगवान के विग्रह का आश्रय, तो यह सब भगवान है। और इन सब का हमें आश्रय लेना है इन सब का कहां है तो सब का मतलब एक आश्रय भागवतम है, दूसरा हरि नाम है और तीसरा गंगा जमुना का पवित्र जल और चौथा धाम है। ऐसा भी नहीं है कि एक, दो, चार यह अनेक नहीं है एक ही है यह सब एक ही है। फिर भगवान के अलग अलग स्वरूप है स्वरूप उनका अपना रूप। तो इन सारे स्वरूपों में प्रकट होकर भगवान हम सब पर कृपा कर रहे हैं। हम जो बहिर्मुख और फिर भोग वांछा करें और भोग की वांछा जब हो जाती है, वांछा मतलब इच्छा। तो निकटस्त माया तारे झपटिया धरे पास में ही माया है वह झपट लेती है, हमारा गला पकड़ लेती है। फिर आदिदैविक, आदिभौतिक अध्यात्मिक तापत्रय हमको परेशान करते हैं। तो फिर भगवान आ जाते हैं यहां उपस्थित होते हैं ताकि हम पटरी पर आ सके। वैसे ब्रह्मा भी थोड़ा कुछ भ्रमित संभ्रमित में थे लेकिन वह पटरी पर आ गए। तो हमको भी जितना जल्दी हो सके पटरी पर आना चाहिए, हर दिन हम कुछ पटरी पर आ सकते हैं। हमारी गाड़ी जो डीरेल, जब एक्सीडेंट होता है तो पटरी से डिब्बे या गाड़ी गिर जाती है हट जाती है फिर आगे बढ़ने का नाम नहीं है। फिर जब वह पटरी पर आ जाती है, फिर आगे बढ़ सकते हैं। तो बहुत समय से यह डीरेलिंग हो चुका है हमारा। भगवान और भगवान की यह जो व्यवस्था है परंपरा के रूप में एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः यह सारी व्यवस्था भगवान ने की हुई है चैतन्य महाप्रभु के आंदोलन में। चैतन्य महाप्रभु ने प्रारंभ किया फिर श्रील प्रभुपाद इसकी स्थापना किए। हर देश इस पटरी से जुड़ा हुआ है और इस पटरी का गंतव्य स्थान क्या है? सोलापुर, कोल्हापुर नहीं या नागपुर नहीं गोलोक गंतव्य स्थान है। बीच में नहीं उतरना, यह एक्सप्रेस है। अगर आप मुसीबत में वापस आ गए तो इस ट्रेन से नहीं कुदना तो। हरि हरि। भवाम्बुधिर्वत्सपदं परं पदं याद रखिए गंतव्य स्थान गोलोक है। गोलोक जाइए, गोलोक फिर से आइए और गोलोक कैसा है? वहा पदं पदं यद्विपदां न तेषाम् वहां विपदा नहीं है वहां केवल संपदा ही है। विपदा तो यहां है तो सावधान। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। ठीक है कुछ प्रश्न है तो पूछ लीजिए। प्रश्न - यदि ब्रह्मा हमारे परंपरा के पहले आचार्य है तो वह कैसे मोहित हो जाते हैं? गुरु महाराज द्वारा उत्तर.. ब्रह्मा मोहित हो गए तो वह भी जीव है तटस्थ है। तो ऐसे मोहित हुए ब्रह्मा कि अपने पुत्री के पीछे ही भाग रहे थे ऐसा वर्णन आता है भागवत में। लेकिन कभी आचार्य संभ्रमित हो जाते हैं तो इसको हमें ऐसा भी समझना चाहिए कि भगवान उनका उपयोग करते हैं। देखो देखो यदि ब्रह्मा का ऐसा हाल हो सकता है तो आपके बारे में क्या कहे। तुमको तो और भी सावधान होना चाहिए। या जैसे फिर अर्जुन के संबंध में भी अर्जुन तो भगवान का पार्षद है, विश्व प्रसिद्ध योद्धा है। लेकिन जब वे वहां पहुंचे तो भगवान ने उनको संभ्रमित किया है। और फिर वे युद्ध करने के लिए तैयार नहीं है फिर भगवान को अवसर प्राप्त हुआ उनको उपदेश करने के लिए। लेकिन वह उपदेश करने के लिए तो भगवान ऐसी कोई भी स्थिति परिस्थिति आचार्यों के जीवन में उत्पन्न कर सकते हैं। ब्रह्मा के जीवन में की या अर्जुन के जीवन में की। तो भगवान जो अपनी लीलाओं का प्रदर्शन करना चाह रहे थे। ऐसा नहीं होता.. वैसे ब्रज वासियों ने तो बहुत आभार माने होंगे ब्रह्मा के आभार। धन्यवाद ब्रह्मा जी धन्यवाद आपने जो चोरी की। क्योंकि ब्रह्मा ने जो चोरी की मित्रों की और बछड़ों की, तभी तो भगवान बन गए ना स्वयं बछड़े भगवान बन गए सारे मित्र भगवान बन गए और सारे ब्रजवासी माताएं वृद्ध गोपिया चाह रही थी कि कृष्णा जैसा ही नहीं क्या हमको कृष्णा प्राप्त हो सकते हैं पुत्र रूप में। तो हो गई उनसे उनकी इच्छा की पूर्ति हो गई। ब्रह्मा ने उनके पुत्रों को तो चोरी करके रखा है, उनके स्थान पर भगवान आए हैं और स्तनपान सीधे दूध पी रहे हैं। यशोदा च महाभागा पपौ यस्याः स्तनं हरिः तो यशोदा भाग्यवान है स्वयं भगवान सीधे उनका स्तनपान करते हैं। ऐसा भाग्य का उदय हुआ सारे गोपियों का वृंदावन में और सारे बछड़े भी उन गायों का.. तो गायें भी चाहती थी क्या कृष्णा स्वयं आकर हमारे स्तनों से दूध पी सकते हैं? फिर पूरे साल भर के लिए कृष्ण वही कर रहे थे। तो ब्रह्मा ने की चोरी पर सारा ब्रज लाभान्वित हुआ है। वे मौज उड़ा रहे हैं, वे बहुत प्रसन्न है, उनका समय बहुत अच्छा चल रहा थ है। ठीक है, फिर अपराध भी हुआ, ब्रह्मा ने अपराध किया चोरी करके। तो फिर उन्होंने तपस्या भी की है अपने शुद्धिकरण के लिए मायापुर में अंतरद्वीप में। चैतन्य महाप्रभु से मांग की है या कृष्ण से आप प्रकट होने वाले हो तो मुझे भी प्रकट कराइए। मैं भी आपके साथ रहना चाहता हूं आपका संग चाहता हूं। कुछ चुंक भूल के लिए माफ करना। भगवान ने ब्रह्मा की इस प्रार्थना को सुना और फिर ब्रह्मा जन्मे ब्रह्म हरिदास के रूप में। नामाचार्य हरिदास ठाकुर स्वयं ब्रह्मा ही है। और फिर रट रहे हैं जप कर रहे हैं 300000 नाम जप। फिर पुनः आचार्य नाम के आचार्य हो गए हैं। तो यह भी उसी के साथ जुड़ा हुआ है अगर यह चोरी का धंधा नहीं करते वृंदावन में, तो मायापुर में तपस्या, क्षमा याचना और मांग की मुझे आपका संग प्राप्त हो जब आप गौर भगवान के रूप में प्रकट होंगे। तो कुछ गलती के कारण कई और घटनाक्रम घटते हैं, औरो का फायदा होता है। तो हम को दोष नहीं देखना चाहिए। आचार्य होते हुए कैसे उन्होंने अपराध किया? या इसमें इसके पीछे भगवान का भी हाथ हो सकता है भगवान की भी इच्छा होती है। ऐसा भी हम को समझना चाहिए और दोषों को ढूंढना नहीं चाहिए। ब्रह्मा जैसे व्यक्तिमत्व है या शिव है या द्वादश भागवत है या श्रील प्रभुपाद है। उनको को तो दोष बुद्धि नहीं करनी चाहिए। लगता तो है कुछ अपराध किया। हरि हरि।

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