Hindi

जपा टॉक 28 अक्टूबर 2019 हरे कृष्ण! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! आज हम पुनः दिवाली मना रहे हैं। कईयों ने कल दिवाली मनाई थी। गौड़ीय वैष्णव आज भी दिवाली मना रहे हैं। दिवाली के शुभ अवसर पर आप सभी जपकर्ताओं को हमारी शुभेच्छा व शुभकामनाएं। हैप्पी दिवाली! वैसे आज केवल 424 स्थानों से ही जप हो रहा है इसलिए हम सोच रहे थे कि हम कैसे दिवाली मनाएं? हमारी संख्या तो घट चुकी है। दिवाली अर्थात हर्ष का दिन या हर्ष का उत्सव परंतु आज जप करने वाले कम हैं तो हम कैसे दिवाली मनाएंगे और कैसे अपना हर्ष व्यक्त करेंगे? हो सकता है कि वे जप नहीं कर रहे हो, केवल दिवाली मना रहे हो। हरि! हरि! गौरंगा! दीपावली महोत्सव लाखों वर्ष अर्थात कम से कम दस लाख वर्ष पुराना है।ऐसा कहा जा सकता है कि लगभग दस लाख वर्ष बार दिवाली मनाई जा चुकी है या यह कहा जा सकता है कि दस लाख साल से एक और वर्ष ऊपर अर्थात निश्चित दस लाख वर्ष ही नही, ऊपर नीचे हो सकता है, लगभग दस लाख वर्ष पूर्व त्रेता युग में राम की लीला हुई थी। श्रीराम ने वन के लिए प्रस्थान किया था। हरि! हरि! 14 वर्ष के वनवास के उपरांत आज के दिन से लगभग 2 सप्ताह पहले राम विजयदशमी (दशहरा) मनाया गया थी। राम श्रीलंका में थे। "वे बोले पूर्वे रावण वध लीला ..( गाते हुए)। यह सत्य ही कथा है वह बोले पूर्वे रावण वध लीला.. दशहरे के दिन रावण का वध हुआ था और राम की विजय हुई थी। जय श्री राम! भगवान, वानर सेना की मदद से जीत गए थे और पुनः सीता को प्राप्त किया था। राम के लिए वही दिवाली थी। राम सीता मिलन। तत्पश्चात श्री राम ने सीता, लक्ष्मण, हनुमान, सुग्रीव, विभीषण और अन्य कईयों को साथ लेकर पुष्पक विमान में विराजमान या आरूढ़ होकर अयोध्या के लिए प्रस्थान किया। आज के दिन श्रीराम अयोध्या पहुंचे। अयोध्याधाम की जय! अयोध्यावासी चौदह वर्षों से विरह की व्यथा से ग्रसित थे। कौशल्या का तो क्या कहना। अन्य माताएं,भरत, शत्रुघ्न, मंत्रिमंडल व सारे अयोध्यावासी अर्थात पूरा चर और अचर राम की प्रतीक्षा में था कि कब 14 सालों का वनवास पूरा होगा और कब राम लौट कर आएंगे। आज के शुभ दिन व शुभ घड़ी में राम अयोध्या वापिस लौटे थे। यह दिवाली का महोत्सव मिलन महोत्सव है। राम के साथ मिलन, किन का मिलन? सारे अयोध्या वासियों का मिलन। जब यह मिलन हुआ तब हर्ष- उल्लास की कोई सीमा ही नहीं रही। सबने हर्षोल्लास और मिलन का उत्सव मनाया। वही मिलन उत्सव ही दीपावली उत्सव बन गया। केवल सारे अयोध्यावासी स्वयं ही सजे-धजे नहीं अपितु उन्होंने सारी नगरी को भी सजाया। उन्होंने उस सजावट अर्थात साज-श्रृंगार में उस नगरी को दीपों से भी सजाया अर्थात सर्वत्र दीपक जलाए। दीप ही दीप। दीपों की आवली अर्थात दीपावली। सारी अयोध्या नगरी जगमगा रही थी। रामायण और भागवत में वर्णन हैं कि सारे अयोध्या निवासी नृत्य कर रहे थे। हरि! हरि! वे नाच रहे थे, वे राम और एक दूसरे को गले लगा रहे थे और राम को पहले मिठाई/ मिष्ठान्न खिलाकर तत्पश्चात सभी का मुख मीठा करते व खिलाते हुए और स्वयं भी ग्रहण कर रहे थे। वे मिठाइयां बांटकर एवं हर्षोल्लास के साथ उत्सव मना रहे थे। आज के दिन राम और अयोध्यावासी मिलन उत्सव मनाया गया। हरि! हरि! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! संयोगवश या देवयोग या कृष्ण कन्हैया के आयोजन से कहिए कि इसी दिन त्रेता युग में लगभग दस लाख वर्ष पूर्व श्री राम अयोध्या लौटे जिसे हम दीवाली कहते है, उसी दिन लगभग पांच हज़ार वर्ष पूर्व जब श्री कृष्ण गोकुल में थे वे बोले पूर्व रावण वघीला गोलोके वैभव लीला प्रकाश कैलि ..( गाते हुए) वही राम अब श्री कृष्ण बन गोलोक की लीलाओं को गोकुल में प्रकाशित कर रहे हैं। भगवान उन लीलाओं के अंतर्गत बाल सुलभ लीला और माखन चोरी की लीला आदि लीलाएं कर रहे हैं। माखन चोर कन्हैया लाल की जय! यह लीला गोलोक में भी होती रहती है। यह नित्य लीला है। भगवान गोकुल में माखन चोरी की लीला खेल रहे थे। आज के दिन भगवान ने माखन की चोरी अपने घर पर ही की थी। हो सकता है कि राम या नरसिंह भगवान को यह इतना पसंद नहीं होगा लेकिन कन्हैया का सभी 56 व्यंजनों/ पकवानों / छप्पन भोगों में सबसे अधिक प्रिय व्यजंन माखन है अर्थात कृष्ण को माखन सबसे अधिक पसंद है। मैया मोही माखन भावे ... कभी-कभी वह रो रो कर भी कहते - "मैया! मुझे माखन खिलाया करो ना। 'मेवा, पकवान कहती तू, मोहे रुचि नहीं आवे' मुझे क्या क्या खिलाती रहती हो, मेवा, पकवान, छप्पन भोग लेकिन मुझे उन पकवानों में रुचि नहीं आती, मुझे तो माखन अच्छा लगता हैं, मुझे तो माखन खिलाया करो।" कन्हैया माखन के प्रेमी हैं। उन्होंने आज दिवाली के दिन अपने घर में ही माखन की चोरी की। फिर चोरी की तो चोर को दंड भी मिलना चाहिए। यशोदा ने, जिसके घर पर चोरी हुई थी, उस चोर को ढूंढ निकाला और चोर को पकड़ भी लिया। तत्पश्चात चोर को डोरी से ऊखल के साथ बांध भी दिया। ऊखल को भी बांध दिया। यशोदा मैया ने ऊखल को भी दंडित किया। यशोदा ने सोचा कि इस चोर को मदद करने वाला ऊखल ही है। यदि ऊखल मदद नहीं करता तब कृष्ण कन्हैया उस ऊखल पर नहीं चढ़ते और छींके से लटके हुए माखन के घड़े तक निश्चित ही नहीं पहुंच सकता था। यह ऊखल भी चितचोर का मित्र है, इसको भी दंड मिलना चाहिए। यशोदा ने अपने कन्हैया और ऊखल दोनों को डोरी से बांध दिया। दाम अर्थात डोरी, उदर अर्थात पेट। कन्हैया के पेट और कमर को डोरी से ऊखल के साथ बांध दिया। उस दिन से कन्हैया का एक और नाम दामोदर कहलाया। आज के दिन ही कन्हैया एक और नाम से विख्यात हुए। दामोदर अर्थात आज दीवाली के दिन जिनका उदर डोरी से बांध दिया। शुकदेव गोस्वामी, दामोदर लीला का श्रीमद्भागवतम के 10वें स्कन्ध के 9 वें अध्याय के प्रारंभ में वर्णन करते हुए कहते हैं कि एकदा गृहदासीषु यशोदा नंदगेहिनी। कर्मान्तरनियुक्तासु निर्ममन्थ स्वयं दधि।। शुकदेव गोस्वामी जी कहते हैं- 'एकदा' एक समय की बात है या एक दिन की बात है। कौन सी तिथि और कौन सा महीना या वर्ष था?उन्होंने इसका उल्लेख नहीं किया है लेकिन हमारे आचार्यों ने इस एकदा का भावार्थ प्राप्त किया है। हमें अपनी टीकाओं के माध्यम से समझाते हैं कि एकदा अर्थात दिवाली के दिन, कार्तिक मास में ही दिवाली आती है। दस लाख वर्ष पूर्व अयोध्या में जो दीवाली संपन्न हुई थी, उसी कार्तिक मास में दिवाली के दिन यशोदा ने 'एकदा गृहदासीषु' अपनी घर की दसियों को 'कर्मान्तरनियुक्तासु' अर्थात अन्य सेवाओं में लगा दिया। निर्ममन्थ स्वयं दधि अर्थात स्वयं ही दही मंथन करना प्रारंभ कर दिया। हर रोज दासियाँ मंथन करती थी। यशोदा ने सोचा "मेरा लाला जो माखन की चोरी करता है, हो सकता है कि यह दासियाँ मेरे घर का माखन इतना मीठा नहीं बनाती हो, चलो आज स्वयं ही मंथन करूंगी।" उस दिन यशोदा ने स्वयं ही दही मंथन करना प्रारंभ किया। उस दिन प्रातः काल को 'उठी उठी गोपाला' नहीं हुआ। यशोदा का पहला कार्य कन्हैया को जगाने का हुआ करता था। लेकिन 'एकदा' इस दिवाली के दिन कृष्ण को जगाया ही नहीं ,सीधे ही दही मंथन प्रारंभ कर दिया। शुकदेव गोस्वामी यशोदा मैया के सौंदर्य व उनके दही मंथन कर, विशेष माखन निकालने के परिश्रम का बहुत ही सुंदर वर्णन करते हैं। उस दिन कन्हैया स्वयं ही जगे और जगते ही उनको खाने की याद आई। यशोदा कुछ दूध पिलाया करती थी या माखन खिलाया करती थी। यशोदा ने जगाया ही नहीं, कन्हैया खोजने लगे- मम्मी, मम्मी, मैया कहां हो? वह नंद भवन में यशोदा को खोज रहे थे। फिर उन्होंने देखा कि यशोदा मैया तो व्यस्त हैं। उसने कन्हैया की कोई केयर (देखभाल) ही नहीं की। उसने कन्हैया को जगाया भी नहीं, कुछ खिलाया पिलाया भी नहीं और अपने घरेलू कामों में व्यस्त है। कन्हैया को यह बात अच्छी नहीं लगी। हरि! हरि! यशोदा का ध्यान अपने गृह कार्यों में है, मेरी और तो उसका ध्यान ही नहीं है। कन्हैया गए और थोड़ा समय रुके रहे। जब मंथन हो रहा था, वह आगे बढ़े और उन्होंने मथनी को पकड़ लिया। इसी के साथ मंथन का कार्य ठप्प और बंद हो गया। यशोदा समझ गई। इतने में कन्हैया छलांग मारकर यशोदा की गोद में चढ़ गए। उनका ध्यान यशोदा मैया के स्तनों की तरफ ही था। वह यशोदा के स्तनों से दुग्ध पान करना चाहते थे। यशोदा मैया कन्हैया को गोद में लिटा कर दूध पिला रही थी, इतने में यशोदा को रसोई घर से कुछ आवाज सुनाई दी कि दूध चूल्हे पर उफ़न रहा है। उफ़न कर् सारा दूध खराब ना हो जाए इसलिए यशोदा मैया दूध के पात्र को साइड पर रखने के लिए रसोईघर में गई और कन्हैया को वहीं पटक दिया। कन्हैया यशोदा से पहले ही थोड़े नाराज थे और उनका पेट भी नहीं भरा था, अभी अभी दूध पीना प्रारंभ ही किया था। जब यशोदा ने वहीं उसे पटक कर अपने गृह कार्यों में दूध को बचाने के लिए रसोई घर में चली गयी तब कन्हैया ने उस दही मंथन के घड़े को फोड़ दिया और सारा कक्ष दही, छाछ और कुछ माखन से भर गया। उसे पता था कि यशोदा कुछ क्षणों में पुनः वापस लौटने वाली है, भगवान वहां से भागे। उनको भूख तो लगी ही थी, वह नंद भवन के कक्ष में माखन खोज रहे थे। उन्होंने नंद भवन के एक कक्ष में माखन का मटका देखा, वहां ऊखल भी था तब उसको मटके के नीचे खड़ा कर दिया और उस पर चढ़ गए। वह स्वयं माखन खा रहे थे, अपना पेट भर लिया।इतने में वानर भी आ गए और उन वानरों को भी खिलाया। वैसे रामलीला में यह वानर (जय श्री राम) लंका के युद्ध के योद्धा वानर सैनिक थे और अब वे वृंदावन के वानर बने हैं। कृष्ण ने सोचा- "इन वानरों ने मेरे लिए बहुत मेहनत, वीर्य, शौर्य और पराक्रम दिखाया है परंतु मैंने तो इनके लिए कुछ किया ही नहीं। मैंने इन्हें कोई पुरस्कार, भेंट इत्यादि नहीं दी। मैं तो कृतध्न रहा। इन वानरों ने मुझ पर जो उपकार किया एवं मेरी सहायता की, मुझे भी बदले में कुछ करना चाहिए था। चलो, अब तक तो नहीं किया, अब करता हूं।" ऐसा सोचकर भगवान ने बंदरों को माखन देते हुए कहा, "थैंक्यू (धन्यवाद) वानर आप सब ले लो, प्लीज ले लो, आपने रामलीला में रावण युद्ध में जो सहायता की थी, उसके लिए थोड़ा सा पुरस्कार ले लो।" इस भाव से कन्हैया वानरों को माखन खिला रहे थे। इतने में मैया यशोदा इस चोर को खोजती/ ढूंढती हुई वहां पहुंच गई ।उसके हाथ में छड़ी थी। कन्हैया तिरछी नजर से देख ही रहे थे कि यशोदा अब आ सकती है, अब आ सकती है और यशोदा आ ही गई, उसके हाथ में छड़ी है। कन्हैया, यशोदा को देखते ही उस ऊखल से नीचे उतरे। यशोदा ने पीछा करना शुरू किया और फिर कुछ समय के उपरांत कन्हैया पकड़ में आ गए। मैया डोरी से बांधना चाहती थी। डोरी भी दो उंगली कम पड़ रही थी। हरि! हरि! अंततोगत्वा कृष्ण यशोदा की जिद/ संकल्प कि आज तो बांधकर ही रहेगी व परिश्रम देख कर बंधन में आ गए। भगवान ने अपनी कृपा ऐड ( मिला) दी। यशोदा का प्रयास और संकल्प और कृष्ण की कृपा से जो दो उंगली छोटा पड़ रहा था वह पूरा हो गया। इसी के साथ कृष्ण बंध गए, यशोदा ने कन्हैया को डोरी के साथ उदर व ऊखल को बांध दिया। हो गयी दामोदर लीला। त्रेता युग में दिवाली के दिन श्री राम अयोध्या लौटे थे तब वह दीपावली उत्सव हो गया था। उसी दिन जब 5000 वर्ष पूर्व कन्हैया ने विशेष लीला का प्रदर्शन किया और वात्सल्य रस में सभी को डुबो दिया। इतीद्दक्‌स्वलीलाभिरानंद कुण्डे इस प्रकार दामोदर लीला करके सारे वृंदावन को आनंद से भर दिया। इस लीला से वृंदावन आनंदमय हो गया आनंद का सागर, आनंद का कुंड अर्थात इतीद्दक्‌स्वलीलाभिरानंद कुण्डे। आज दिवाली के दिन त्रेता युग में अयोध्यावासी आनंदमय मिलन उत्सव में गोते लगा रहे थे और आज के दिन गोकुल/ ब्रज मंडल में भी बृजवासी या अयोध्यावासी इस वात्सल्य रस का आनंद लेते हैं। अब तक वैसे वात्सल्य रस ही चल रहा था। सांख्य रस व बाकी रस भी बाद में आएंगे। कृष्ण अभी छोटे हैं। वृंदावन की लीलाएं वैसे वात्सल्य रस से प्रारंभ होती हैं फिर सांख्य रस आता है, अन्ततोगत्वा माधुर्य रस आता है। सर्वप्रथम वात्सल्य रस होता है। इसमें रस ही रस होता है। रस से ही रास होता है। इतने अधिक रस को रास कहते हैं। माधुर्य रस यह भी एक तरह का रास है। यह एक दूसरे प्रकार का रास हैं। जय श्री राम! जय श्री अयोध्या धाम! जय अयोध्यावासी! जय कृष्ण कन्हैया लाल की जय! जय यशोदा मैया! जय गोकुल निवासियों की जय! जय ब्रज वासियों की जय हो आज के आनंद की जय हो! आप सबकी भी जय जो इस आनंद को लूट रहे हो। मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं मुझे अभी ब्रज मंडल परिक्रमा में जाना है। और वहां भी लीला कथा होगी। लगभग 8:00 बजे, पता नहीं आप सुन पायोगे या नहीं। अच्छा होता यदि आप भी परिक्रमा में उस लीला कथा को सुनते और आप भी आनंद लूटते। आज के दिन या पूरे मास में ब्रजमंडल में होना या कल गोवर्धन पूजा में वृन्दावन/ गोवर्धन या बरसाने में आकर भक्तों के साथ गोवर्धन पूजा मानाना और भी आनंद दायक होता। आपको नहीं पता कि आप क्या मिस कर रहे हो। आप आ जाइए, आजकल में आ जाइए। कुछ दिनों के उपरांत प्रभुपाद का तिरोभाव महोत्सव भी है। वैसे आप में से कई ऐसे समाचार दे रहे हैं कि मैं आ गया हूं या मैं पहुंच रहा हूं। आपने देखा भी कि कई सारे अपने नगरों , शहरों, ग्रामों में जप कर रहे थे, अब वृन्दावन आ पहुंचे हैं। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!

English

Russian