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जप टॉक 28 जून हरे कृष्ण!!! सर्वप्रथम हम केशव प्रभु का धन्यवाद देते हैं जो कुशलता पूर्वक दिण्डी का आयोजन करते हैं। हम उनके अत्यंत आभारी हैं। इस दिण्डी पद यात्रा में इस्कॉन के लगभग 400 से 500 भक्त सम्मिलित होते हैं। वे पैदल पदयात्रा करते हुए हरिनाम का प्रचार प्रसार करते है और पंढरपुर पहुंचते हैं। इस दिण्डी पद यात्रा में ब्रह्मचारी, मन्दिर के भक्त ,वृद्ध ,युवा तथा गृहस्थ सभी इसमें सम्मिलित होते हैं। इस वर्ष दिण्डी पद यात्रा में विशेष रूप से चीन से भी तीन भक्त आये हैं और साथ ही साथ माधवी सीता माताजी न्यू जर्सी, अमेरिका से इस दिण्डी पद यात्रा में सम्मिलित होने के लिए आई हैं। इसी प्रकार अन्य कई देशों से, अन्य राज्यों से भी कई भक्त संकीर्तन करते हुए इस दिण्डी पद यात्रा में सम्मिलित हो रहे हैं। श्रील प्रभुपाद ने मुझे पदयात्रा प्रारंभ करने का निर्देश दिया था। अतः मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ कि लगभ ग 500 से भी अधिक भक्त इसमें सम्मिलित हो रहे हैं एवं संकीर्तन करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। इनमें से अधिकांश भक्त रात्रि में बाहर ही विश्राम करते हैं। कुछ भक्त अपने स्थान पर वापिस आकर विश्राम करते हैं और प्रातः पुनः सम्मिलित हो जाते हैं। इस प्रकार लगभग 18 दिनों तक भक्त अपने घरों के बाहर ही रहते हैं।इस पदयात्रा में दो रथ हैं जो बैलों द्वारा खींचे जा रहे हैं जिनमें भगवान निताई गौरांग और निताई गौर सुंदर के श्री विग्रह भी हैं। अत: यह पदयात्रा नहीं, चलायमान मन्दिर हैं। अत: हम कह सकते हैं कि ये भक्त निताई गौरांग और निताई गौरसुंदर के साथ पदयात्रा कर रहे हैं।निताई गौरांगा, हरिबोल हरिबोल की धुन करते हुए जा रहे हैं और आगे बढ़ रहे हैं।केवल हमारे इस्कॉन भक्त ही इस दिण्डी पदयात्रा में शामिल नहीं हो रहे हैं।हमारी संख्या केवल 500 ही है परंतु इसके अलावा इस दिण्डी यात्रा में लगभग 5 लाख भक्त सम्मिलित होते हैं और वह 18 दिन की दिण्डी पद यात्रा करते हुए पंढरपुर पहुंचते हैं। इस प्रकार भक्त पूरे मार्ग में कीर्तन, नृत्य करते हैं और एक स्थान पर बैठ कर हरि कथा का श्रवण करते हैं। वहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं। हमारे भक्त पुस्तक वितरण , प्रसाद वितरण भी करते हैं।वे धीरे धीरे इस दिण्डी पद यात्रा में चलते हुए पांडुरंग विठ्ठल के चरण कमलों के समीप पहुंचते हैं। मुझे अभी भी स्मरण है बहुत समय पहले मेरे पिताजी भी इस दिण्डी पद यात्रा में सम्मिलित होते थे।वे भी पद यात्रा करते हुए भगवान विठ्ठल के दर्शन करने जाते थे। मैं इसी संस्कृति में पला बढ़ा हूँ।मैंने बचपन से ही दिण्डी पद यात्रा देखी है और मैं इससे अत्यंत प्रभावित भी हुआ हूँ। जिस प्रकार बंगाल और उड़ीसा से कई भक्त जगन्नाथ पुरी में रथयात्रा में सम्मिलित होने के लिए आते हैं और चातुर्मास के चार महीने जगन्नाथ पुरी में ही रहते हैं। दिण्डी पद यात्रा भी उसी के समान है, जहाँ महाराष्ट्र के भक्त भी पंढरपुर धाम की तरफ जाते हैं। चैतन्य चरितामृत में इन लीलाओं का वर्णन है। दिंडी उत्सव में भक्त संकीर्तन करते हुए पंढरपुर धाम की ओर जाते हैं। शयनी एकादशी से एक दिन पहले जब चातुर्मास शुरू होता है, वे पंढरपुर पहुंचते हैं।आषाढ़ी एकादशी ,जो शयनी एकादशी कहलाती भी है, उस दिन भगवान शयन के लिए जाते हैं। उसके अगले चार महीने तक का समय चातुर्मास कहलाता है। भक्तों का यह भाव रहता है कि भगवान के शयन पर जाने से पूर्व हम भगवान के दर्शन कर पाए। अतः पहले सभी पंढरपुर धाम पहुंचते हैं एवं सभी भगवान के चरणकमलों का स्पर्श करते हैं।इससे उन्हें अत्यंत पसन्नता का अनुभव होता है। सैकड़ों वर्ष पहले जो भक्त इस पद यात्रा में जाते थे ,वे भगवान से गले लगते थे। विग्रहों को हृदय से लगाते थे अर्थात भगवान और भक्त एक दूसरे का आलिंगन करते थे। दिण्डी यात्रा में जो भक्त सम्मिलित होते हैं उनका एक मात्र लक्ष्य पाण्डुरंग विट्ठल ही हैं। वह ही उनका एकमात्र आकर्षण है जो उन्हें प्रोत्साहित करता है कि वो इस दिंडी यात्रा में सम्मिलित हो। उस एक ही दिन में दस लाख भक्त भगवान का दर्शन करते हैं।ऐसा नहीं हैं कि सिर्फ एक हजार या पांच हजार भक्त एक साथ दर्शन करें अपितु वहाँ प्रत्येक भक्त एक के बाद एक जाता है, भगवान के सम्मुख होकर दर्शन करता है। उसके पश्चात ही अगले की बारी आती है। एक ही दिन में दस लाख भक्त दर्शन करते हैं। हरि हरि गौर हरि! मुझे इससे एक लीला का स्मरण हो रहा है।पहले भी कई बार यह लीला मैं आपको सुना चुका हूँ।एक बार संत तुकाराम का स्वास्थ्य ठीक नहीं था। वह इस दिंडी यात्रा में सम्मिलित नहीं हो पाए परन्तु उनके हृदय में भगवान पांडुरंग के दर्शन की प्रबल लालसा थी। उन्होंने भगवान के नाम एक पत्र लिखा और अपने मित्र को दिया और कहा ,"जब तुम भगवान का दर्शन करने उनके सम्मुख जाओ तो मेरा यह पत्र पढ़कर सुनाना।" उन्होंने उसमें लिखा कि "मेरे प्रिय भगवान!स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण मैं आपके दर्शन करने नहीं आ सका परन्तु क्या आप यहाँ पधार कर मुझे दर्शन दे सकते हैं।" संत तुकाराम महाराज के मित्र दिण्डी यात्रा में शामिल होकर लगभग 18 दिन की पैदल यात्रा कर पंढरपुर धाम पहुंचे और जब वे भगवान पाण्डुरंग के सम्मुख उनका दर्शन करने गए तो उन्होंने तुकाराम महाराज का वह पत्र पाण्डुरंग विट्ठल को पढ़कर सुनाया। जैसे ही भगवान ने सुना कि मेरा भक्त तुकाराम स्वास्थ्य खराब होने के कारण मेरे दर्शन को नही आ सकता। भगवान स्वयं ही उनको दर्शन देेने के लिए जाने का विचार करने लगे। रुक्मिणी जी को भगवान के इस विचार का जब पता चला तब उन्होंने आपत्ति जताई और कहा," यहाँ आपके लाखों भक्त आए हुए हैं, आप तुकाराम को दर्शन देने कैसे जा सकते हो? यदि आप केवल एक भक्त को दर्शन देने चले जाओगे , यहाँ इन सभी भक्तों का क्या होगा, ये सभी आपके दर्शन की लालसा लेकर आए हैं।" इस प्रकार से भगवान की पत्नी रुक्मिणी महारानी ने आपत्ति व्यक्त की और उन्हें जाने से रोका।तब भगवान ने रुक्मणी महारानी जी से पूछा,"अब आप ही कोई उपाय बताइये। तुकाराम चाहते हैं कि मैं वहाँ आकर उन्हें दर्शन दूँ। क्या आपके पास इस समस्या का कोई समाधान है,कोई उपाय है?" तब रुक्मणी महारानी ने सोच कर कहा "प्रभु आप एक काम कीजिए, अपने वाहन गरुड़ को तुकाराम महाराज के पास भेज दीजिये। तुकाराम महाराज का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, वे पैदल चल कर नहीं आ सकते परन्तु गरुड़ पर बैठ कर तो आ सकते हैं।गरुड़ उन्हें यहाँ लेकर आ जायेंगे तब वो आपके दर्शन भी कर सकते हैं और आप दोनों मिल भी सकते हो"। भगवान को यह सुझाव अत्यंत पसन्द आया और उन्होंने गरुड़ को आदेश दिया कि तुकाराम महाराज को लेकर आओ। उधर देहू में तुकाराम महाराज अत्यंत उत्सुकता से भगवान के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे।जब उन्होंने देखा कि गरुड़ पधार रहे हैं, वो अत्यंत हर्षित हुए और उन्होंने सोचा कि भगवान विठ्ठल गरुड़ की पीठ पर विराजमान हो मुझे दर्शन देने आ रहे हैं। जब गरुड़ जी वहाँ पहुंचे, तब तुकाराम ने देखा कि वास्तव में गरुड़ की पीठ पर कोई नहीं हैं, गरुड़ अकेले ही आए हैं। गरुड़ ने भगवान का संदेश तुकाराम जी को सुनाया कि भगवान चाहते हैं कि तुकाराम जी उनकी(गरूड़) पीठ पर बैठकर पंढरपुर चले और भगवान के दर्शन करें। तुकाराम महाराज ने जब यह सुना तो बोले," नहीं-नहीं, मैं कैसे चल सकता हूँ? यह गरुड़ वाहन, मेरे भगवान का स्थान है। मैं आपकी पीठ पर बैठकर नहीं चल सकता। कृपा आप वापिस जाकर पाण्डुरंग को यह सन्देश दीजिए कि मैं गरुड़ की पीठ पर नहीं बैठ सकता। आप स्वयं आकर मुझे दर्शन दीजिए।" तुकाराम महाराज जी ने गरुड़ देव को मना कर दिया। गरुड़ देव जी व्यथित होकर पुन: पंढरपुर धाम पहुंचे और पाण्डुरंग को तुकाराम महाराज का संदेश कह सुनाया।अब तक लगभग सभी भक्त भगवान का दर्शन कर चुके थे तो भगवान ने पुन: रुक्मिणी महारानी से पूछा कि तुकाराम तो आए नही,अब उन्हें क्या करना चाहिए।रुक्मिणी महारानी ने कहा ," यद्यपि अधिकांशत: भक्तों ने आपके दर्शन कर लिए हैं, अब आप तुकाराम महाराज को दर्शन देने जा सकते हैं और मैं भी आपके साथ चलूँगी।" इस प्रकार दोनों गरुड़ देव की पीठ पर बैठे और शीघ्र ही गाँव देहू पहुंच गए। तुकाराम महाराज ने भगवान का दर्शन किया , यह मिलन, उनका दर्शन, उनका अंग मिलन अत्यंत अद्भुत था।तुकाराम जी अत्यंत प्रसन्न होकर कभी उनका आलिंगन करते, कभी भूमि पर उनके चरणों में लोट जाते। इस प्रकार वह भगवान का आभार प्रकट कर रहे थे कि आप मुझे दर्शन देने देहू पधारे।तुकाराम महाराज अपने प्रेम को व्यक्त कर रहे थे एवं उनमें सभी अष्ट सात्विक विकार प्रकट हो रहे थे। तुकाराम महाराज भगवान के एक अत्यंत विशिष्ट भक्त थे जो निरन्तर भगवान के नामों का कीर्तन करते थे और उनकी लीलाओं का वर्णन करते थे। संत तुकाराम महाराज जी ने लगभग चार हजार भजन लिखे हैं, जिन्हें अभंग के नाम से जाना जाता रहा है।इस अभंग में भगवान के नाम, रूप,गुण, धाम,लीलाओं आदि का वर्णन है । सन्त तुकाराम जी ने जो साधना की, भगवान का स्मरण एवं गुण गान किया, उसका फल यह मिला कि अंत में उन्हें भगवान का मिलन प्राप्त हुआ, भगवान का दर्शन प्राप्त हुआ। अत: यह लीला अत्यंत प्रेरणा दायक है।हमें भी संत तुकाराम महाराज जी के पदचिन्हों का अनुसरण करना चाहिए।ध्यान पूर्वक जप करना चाहिए। कृष्ण भावनामृत के सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए। यदि हम गम्भीरता पूर्वक इनका पालन करेंगे तो एक दिन हमें भी यही फल प्राप्त होगा और हमें भी भगवान के दर्शन मिलेंगें| हरे कृष्ण!!! श्यामलंगी माताजी ने संदेश भेजा था, वह मै सही प्रकार से पढ़ नही पाया। समय का अभाव है, अभी उस विषय में चर्चा नहीं कर पाएँगे। आज इस कॉन्फ्रेंस में 622 भक्त सम्मलित हुए है। पदम्माली प्रभु इसका रिकॉर्ड रख रहे है, कौन कौन भक्त निरंतर जप कर रहे हैं। हमारा लक्ष्य है इस माह के अंत 700 तक पहुंचने का, जो कि कठिन लग रहा है। आप सब व्यास पूजा तक इस लक्ष्य तक पहुंचने का प्रयास कीजिये। आप पंढरपुर पधारिये। वहाँ हम एक साथ बैठ कर जप करेंगे। हरे कृष्ण! निताई गौर प्रेमानंदे, हरि हरि बोल।

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