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जप चर्चा,
23 मार्च 2020
621 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। जब हम जप या संर्कीतन करते हैं,तो इसका लाभ सारे संसार को होता हैं।
हरि हरि। जप करने वाले भी लाभान्वित होते हैं और जो अगल-बगल में सुन रहे हैं, उनका भी लाभ होता हैं। वैसे जप तो सभी को सुनाने के लिए नहीं होता लेकिन कोई भी सुन सकता हैं, जप तो हम स्वयं के लिए करते हैं लेकिन उस जप से भी दूसरों का फायदा होता हैं। जब हम मृदंग और करताल के साथ मैदान में उतरते हैं, तो उसका तो कहना ही क्या।और मैं अभी जहां हूं,मेरे साथी भी जो यहां हैं,मेरे असिस्टेंट बालकनी पर हैं,वह बालकनी से नीचे उतरे और उन्होंने मृदंग और करताल के साथ कीर्तन किया।हरि हरि।जय पताका महाराज ने भी कहा था कि 5:00 बजे मृदंग और करताल के साथ कीर्तन करो।तो हमने भी कीर्तन किया और आप में से कई भक्तों ने भी कीर्तन किया। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे का कीर्तन करके भगवान से प्रार्थना की हैं। कीर्तन भी एक प्रार्थना हैं। यह एक प्रार्थना ही हैं, हरे कृष्णा अर्थात संबोधन! इसके जरिए हम भगवान को संबोधित करते हैं, हे कृष्ण! कहते हैं। या हे राम!कहते हैं।इसको भी याद रखिए।आपको भी तो पता होना चाहिए कि हम करते क्या हैं।हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहते हैं या जब जप करते हैं या कीर्तन करते हैं, तो हम कह क्या रहे हैं? हम प्रार्थना कर रहे हैं।
भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं।कई प्रार्थना हैं या कई भाव व्यक्त किए जा सकते हैं।हमारे आचार्यो ने दिशा-निर्देश भी दिए हैं।गोपाल भट्ट गोस्वामी और औरों ने भी महामंत्र पर भाषय लिखे हैं। भगवान के दिव्य नाम पर भाषय लिखे हैं।जब हम हरे कहते हैं तो क्या कहते हैं और कृष्ण कहते हैं तो क्या कहते हैं? हरे जब हमने कहा तो हम कह रहे हैं और किसी को संबोधित कर रहे हैं। हम किसी का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।किसी का अर्थात कोई तो हैं, निराकार नहीं हैं। हवा का ध्यान या अकाश का ध्यान आकर्षित नहीं कर रहे हैं। हम प्रार्थना करके पुकार के साक्षात भगवान राधा कृष्ण का ध्यान हमारी ओर आकर्षित कर रहे हैं। उनको पुकार रहे हैं।कुछ कह रहे हैं या कुछ प्रार्थना कर रहे हैं। उनका ध्यान कर रहे हैं। उनकी आराधना कर रहे हैं।
कृष्णवर्णं त्विषाकृष्णं साङ्गोपाङ्गास्त्रपार्षदम् ।
यज्ञै: सङ्कीर्तनप्रायैर्यजन्ति हि सुमेधस: ॥ ३२
श्रीमद भागवतम 11.5.32
भागवतम में कहा गया हैं कि जब हम जप करते हैं या कीर्तन करते हैं,जैसे आप में से कई भक्तों ने कई नगरों और कई देशों में कल कीर्तन किया, तो यह यज्ञ हैं और यज्ञनति मतलब पूजा करना।हम यज्ञ करके इस कलयुग में भगवान की आराधना करते हैं और ऐसी आराधना करने वालों को सुमेधस: कहां हैं। यही लोग बुद्धिमान हैं। वह लोग बुद्धिमान हैं, जो भगवान की आराधना करते हैं।भगवान की प्रार्थना करते हैं, कैसे प्रार्थना करते हैं?यह संकीर्तन यज्ञ करके। इसको संकीर्तन यज्ञ कहिए या श्री कृष्ण ने भगवतद्गीता में कहा हैं
महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् ।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालय:।।
भगवत गीता 10.25
सभी यज्ञों में भगवान जप यज्ञ हैं। जब हम जप करते हैं तो कुछ आहुति चढ़ाते हैं।तो भगवान ने कहा कि वह जो आप आहुति चढ़ा रहे हो,वह जो आप यज्ञ कर रहे हो,वह जप मैं हूं।तो यह जप प्रार्थना हैं।
सेवा योग्यं कुरू
श्रील प्रभुपाद भी यही कहा करते थे, इसका अर्थ हैं कि मुझे सेवा के योग्य बना दो। मैं आपका दास हूं। मुझे अपनी सेवा के योग्य करो।
अयि नन्दतनुज किंकरं पतितं मां विषमे भवाम्बुधौ।
कृपया तव पादपंकज-स्थितधूलिसदृशं विचिन्तय॥५॥
शिशष्टाष्टक 5
चैतन्य महाप्रभु भी ऐसी प्रार्थना किया करते थे,कि मैं आपके चरणों की धूल हूं। मुझे अपने चरणों का किंकर बना दो। यह प्रार्थना हमें चैतन्य महाप्रभु ने भी सिखाई हैं। तो जब हम हरे कृष्ण हरे कृष्ण का जप करते हैं तो हम प्रार्थना करते हैं,कि मुझे अपनी सेवा में लगाए। मैं आपके चरणों का किनकर हूं, हे प्रभु! मुझे इस संसार से ऊपर उठाइए और इस जन्म मृत्यु के चक्कर से बचाइए।मुझे अपनी सेवा में लगाइए। हरि हरि।अभी पूरा भाषण सुनाने का समय तो नहीं है ।मैं समय-समय पर आप को समझाता रहता हूं और आपको यह समझाने का प्रयास कर रहा हूं कि यह जो हरे कृष्ण महामंत्र का हम कीर्तन करते हैं,इससे हम प्रार्थना करते हैं। हम भगवान को प्रार्थना करते हैं। भगवान को संबोधित करते हैं और यह प्रार्थना जब करते हैं तो हम स्वयं के कल्याण के लिए नहीं करते हैं।औरों के हित और कल्याण के लिए भी करते हैं।तो यह कोई स्वार्थ पूर्ण प्रार्थना नहीं हैं। इसमें तो परमार्थ भी हैं। औरों का हित भी हैं।
संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः।
ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः।।12.4।।
श्रीमद्भगवद्गीता १२.४
जो महात्मा हैं, वह औरों के कल्याण के लिए अपना जीवन जीते हैं।
संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः।
ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः।।12.4।।
सर्व भूत अर्थात सारे जीवो के हितों के लिए जीते हैं।रता: मतलब तल्लीन रहते हैं।भगवान में लीन रहते हैं और कृष्ण भावनाभावित रहते हैं और कृष्ण भावनाभावित होकर क्या करते हैं? सभी जीवो के हित की बात करते हैं। सभी की सेवा की बात सोचते भी हैं, कहते भी हैं और करते भी हैं। औरों के हित के लिए करते हैं। कैसे औरों का हित करते हैं? यह नाम संकीर्तन करके।हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे यह प्रार्थना संसार के सभी कोरोनावायरस से ग्रस्त जीवो के लिए हैं या जो कोई भी कतार में हैं, कोई भी हो सकता हैं। अगला नंबर आपका भी हो सकता हैं। मेरा भी हो सकता हैं। ऐसा भी संभव हैं। कुछ भी परिस्थिति हो सकती हैं। 500 लोग पहले थे।कोरोनावायरस के कारण,आज नहीं रहे।आज कोई और 500 की बारी होगी और कल,आने वाले कल में और लोगों को भी कतार में खड़े होकर इंतजार करना होगा।हमारी प्रार्थना, हरे कृष्ण महामंत्र द्वारा की गई प्रार्थना सभी के लिए हैं। केवल भारतीय,हिंदुओं के लिए प्रार्थना नहीं करते,हम लोग सभी जीवो, आत्माओं के हित के लिए प्रार्थना करते हैं।
आत्मा तो हिंदू नहीं हैं, क्रिश्चन नहीं हैं, मुस्लिम नहीं हैं, इटालियन नहीं हैं और स्पेनिश नहीं हैं।आत्मा तो आत्मा ही हैं और आत्मा तो इस जगत की नहीं हैं, इसलिए इस संसार की उपाधि आत्मा को नहीं दी जा सकती।जो आत्मा वैकुंठ की हैं या भगवान की हैं उस आत्मा को अब कैसे कह सकते हो कि यह अमेरिकन हैं या यह हिंदू हैं या भारतीय हैं या यह काली आत्मा हैं या यह स्त्री आत्मा हैं या गरीब आत्मा हैं या यह धनी आत्मा हैं। कुछ भी नहीं हैं। आत्मा तो केवल आत्मा हैं। हम तो कई सारी उपाधियां देते हैं, लेकिन यह आत्मा इन सब उपाधियों से परे हैं। यह जवान आत्मा हैं या यह बुरी आत्मा हैं। ऐसा तो नहीं कहा जा सकता।यह तो अज्ञान हैं। आत्मा तो आत्मा ही हैं
और हमारी प्रार्थना तो सभी आत्माओं के लिए है वैसे भी हम भक्तों की जो विजन हैं, वह सभी जीवो के लिए हैं। हम यह सोचते हैं वसुदेव कुटुंबकम।पृथ्वी पर जितने भी लोग हैं, यह मेरा ही परिवार हैं। यह कोरोना वायरस का जो सीजन या जमाना हैं या जो उसने वातावरण उत्पन्न किया हैं, यह सब को सोचने पर मजबूर कर रही हैं कि हमें अपना पराया नहीं सोचना चाहिए। हम लोग अपने पराए हैं ही नहीं।हम लोग सब अपने ही हैं।ऐसा नहीं है कि इंडिया में जो आत्मा हैं या भारत में जो आत्मा हैं,यह अपनी आत्मा हैं, लेकिन जो इटली में आत्मा हैं, या जो चाइना में आत्मा हैं, वह अपनी आत्मा नहीं हैं।हम कृष्ण के बन रहे हैं या फिर कह सकते हैं कि हम गोडिय वैष्णव बन रहे हैं।श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद ने समझाया हैं कि जो विष्णु के उपासक होते हैं,वह वैष्णव कहलाते हैं। और गोलोक पति कृष्ण की आराधना करने वाले को क्राष्ण कहते हैं और जो राधा की आराधना करते हैं उन्हें गोडिए वैष्णव कहते हैं। हरि हरि।गोडिय वैष्णव की अलग निशानी होती हैं,कि वह राधा की आराधना करते हैं। राधा भाव में या गोपी भाव में आराधना करते हैं।
हमारी खासियत यह भी हैं कि हम बड़े दिल वाले लोग हैं। बड़े दिलवाले क्यों हैं? क्योंकि इस दिल में भगवान विराजमान हैं।जो भी अनुभव करते हैं कि मेरे हृदय प्रांगण में भगवान विराजमान हैं वह बड़े दिलवाले हो जाते हैं। उनका दिल भी बड़ा हो जाता हैं और विचार उच्च हो जाते हैं। और दूर दृष्टि से भी वह मुक्त हो जाते हैं।छोटे हृदय वाले नहीं होते और नीच नहीं होते। हम नीच नहीं बनते क्योंकि हम भगवान के सानिध्य में आते हैं और भगवान की आराधना करते हैं।हमारे हृदय में भगवान हैं, इसका हम अनुभव करते हैं।इसी के साथ हमारा जो दृष्टिकोण हैं, हमारी सोच हैं उसमें परिवर्तन होता हैं।
जो परिवर्तन हैं, उसका स्वागत हैं। हरि हरि। तो प्रार्थना करते रहिए। अध्ययन भी एक प्रार्थना हैं, ग्रंथों का, या शास्त्रों का अध्ययन भी एक प्रार्थना ही हैं और भगवान के नामों का जप भी एक प्रार्थना हैं और फिर आप औरों को भी पढ़ने के लिए या शास्त्रों का अध्ययन करने के लिए प्रेरित कर सकते हो और हरे कृष्ण महामंत्र का जप करने के लिए और प्रसाद खाने के लिए। या प्रसाद पहले स्वयं खा सकते हैं। दान की शुरुआत घर से ही होती हैं।पहले स्वयं खाएं, फिर दूसरों को भी खाने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं।जब स्वयं खाओगे तो सोचोगे कि इतना स्वादिष्ट प्रसाद हैं, मुझे यह दूसरों के साथ बांटना चाहिए और इतने मीठे भगवान हैं।
"अधरम मधुरम वदनम मधुरम मधुराधिपते रखिलम मधुरम"
भगवान की हर चीज मधुर हैं। जब हम इस मधुरता का आस्वादन करेंगे तो हम खुद सोचेंगे कि मैं क्यों ना इसको दूसरों के साथ बांटु। जैसे कि चीटियां होती हैं,किसी एक चींटी को भी अगर शक्कर का एक भी दाना मिलता हैं, तो थोड़ा सा आस्वादन करने पर वह सोचती हैं, अरे यह तो बहुत मीठी हैं, बहुत अच्छी हैं। वह तुरंत उसे खाना बंद कर देती हैं और उसके ऊपर चिंतन करने लगती हैं और दूसरों को खोजती हैं और सबको बुलाती हैं कि चलो चलो चलो कृपया आओ, कृपया आओ, तो जहां भी वह शक्कर का कन गिरा होगा कुछ ही मिनटों में या घंटों में वहां कई सारी चीटियां एकत्रित हो जाती हैं। पहले तो एक चींटी को ही वह कन मिला था फिर उसने दूसरों के साथ बांटा। वैसे ही हम हरे कृष्णा भक्तों को भी होना चाहिए।क्या आप जप करके सुखी हो? आपको आनंद आ रहा हैं या नहीं आ रहा? पीड़ा में हो या आप इसका आनंद ले रहे हो? सच कहो। अगर आपको आनंद आ रहा हैं तो मतलबी मत बनो। आप अकेले सुखी मत होओ। औरों को भी सुखी करो। इस सुख को दूसरों के साथ बांटो। हरि नाम का वितरण करो और सारे संसार को सुखी होने दो। आनंदम बुद्धि वर्धनम। आप जब भी इस आनंद को बांटोगे तो ऐसा चिंता मत करना कि यह खत्म हो जाएगा। यह खत्म होने वाला नहीं हैं, बल्कि यह बढ़ेगा। यह आनंद तो बढ़ता ही रहता हैं।यह तो असीम हैं, आनंद का ऐसा सागर जिसकी कोई सीमा ही नहीं हैं। ऐसा चैतन्य महाप्रभु ने कहा हैं,
"सर्व आत्मा स्नप्नम परम विजयते श्री कृष्ण संकीर्तन"
(शिष्टाष्टक)
हरि हरि
तो ऐसे आनंद के सागर में गोते लगाओ और औरों की भी डुबकी लगवाओ और उनको भी तैरने दो। उनको भी आनंद लूटने दो। हरि हरि और एक बात हैं, अंत में जो मैं कहना चाहूंगा।एक बार एक सर्वे किया गया और वह सर्वे था की कई लोग जो हस्पताल में मरीज थे या बीमार थे या रोगी थे तो कुछ लोगों के लिए प्रार्थना की जा रही थी और ऐसे भी मरीज थे जिनके लिए प्रार्थना नहीं की जा रही थी और उस सर्वे का नतीजा यह निकला कि जिनके लिए प्रार्थना की जा रही थी वह लाभान्वित हो रहे थे। उनकी बीमारी कम हो रही थी। उन्हें फायदा मिल रहा था उन प्रार्थनाओं का और जिनके लिए प्रार्थनाएं नहीं की जा रही थी उनका दम घुट रहा था, टेंपरेचर बढ़ रहा था, उनका स्वास्थ्य खराब हो रहा था।तो यह प्रूव हो चुका हैं, ऐसा एक निरीक्षण हुआ, तो यह बात सिद्ध हो चुकी हैं। इसलिए आप प्रार्थना करते रहो, स्वयं के लिए भी और सारे संसार के लिए भी खासकर उनके लिए जो दुनिया भर के कोरोनावायरस से पीडित लोग हैं । हमारे ही भाई और बहन हैं।हमें ऐसी भावना होनी चाहिए कि वह भी हमारे ही हैं, हमारे ही भगवान के हैं। हमारे कृष्ण के ही हैं। हमारे अल्लाह के ही हैं। आपकी प्रार्थना खाली फोकट नहीं जाएगी या फायदेमंद ही होगी। इसलिए प्रार्थना करते रहें,अधिक से अधिक जप करते रहिए,अध्ययन करते रहिए और प्रचार करते रहिए।
इस परिस्थिति में हमें प्रचार करने के नए तरीकों को खोजना होगा।आमने सामने मिल नहीं सकते तो कोई और तरीका निकालो। आप देखो कि ऐसी परिस्थिति में आप जारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश कैसे कर सकते हो। इंटरनेट का प्रयोग कर सकते हैं,सोशल डिस्टेंसिंग तो ठीक हैं,लेकिन सोशल मीडिया का अधिक प्रयोग कर सकते हो और सोशल डिस्टेंसिंग को मेंटेन करो।व्यक्तिगत रूप से पास जाने के बजाय,आप सोशल मीडिया जैसे कि फेसबुक आदि आदि का प्रयोग कर सकते हैं। जूम कॉन्फ्रेंस का भी प्रयोग कर सकते हैं।अब आपको देखना हैं, प्रभुपाद ने भी कहा हैं, यूटिलिटी इस द प्रिंसिपल। अब आप देखो कि जो संपर्क के साधन हैं उनका किस प्रकार से पूर्णत: प्रयोग कर सकते हो।सोशल मीडिया के माध्यम से तो एक ही साथ कई सारे लोगों से संपर्क संभव हैं। इसका फायदा उठाइए। ज्यादा से ज्यादा एक्टिव बनिए। यह खाली बैठकर आराम करने का समय नहीं हैं। अलर्ट बनो और एक्टिव बनो और इसके लिए अब आपके पास समय भी हैं, यातायात के साधन भी उपलब्ध नहीं हैं। सारे भारत की ट्रेन कैंसिल हो चुकी हैं,रद्द हो चुकी हैं,मेट्रो भी नहीं चल रही हैं और लोकल ट्रेन भी नहीं चल रही हैं। कम और ज्यादा सारे संसार की यही हालत हैं। अभी मुवमेंट संभव नहीं हैं,लेकिन हमें खाली नहीं बैठना हैं।शब्दों को कैसे मूव कर सकते हो यह देखो।इससे फैला दो।इस तरह से हम चलते रहेंगे। ठीक हैं।आपसे पुनः मिलेंगे।हरे कृष्णा।