Hindi
15 अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण!
आज हमारे इस जप कॉन्फ्रेंस में जप करने वाले भक्तों की संख्या बढ़ी है। यह एक खुशखबरी है। हमारे साथ लगभग 600 भक्त जप कर रहे हैं। जैसे जैसे यह संख्या बढ़ती जाएगी, मुझे और अधिक प्रसन्नता होगी एवं आप सभी को भी उसका लाभ प्राप्त होगा। आप सभी इस जपा कॉन्फ्रेंस पर अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों, इत्यादि को भी जॉइन करवा सकते हैं और फेसबुक के पेज letschanttogether पर प्रश्न पूछ सकते हैं या कोई समीक्षा, टीका या टिप्पणी आदि भी कर सकते हैं।
बैंगलोर से भक्त गणेश, मुझे नहीं पता कि वह अन्य लोगों से भी जप करवाएंगे या नहीं लेकिन उन्होंने स्वयं संकल्प लिया है कि वे इस कार्तिक मास में 1200 राउंड्स जप करेंगे। उसके साथ ही वह प्रतिदिन भगवतगीता और कृष्णा पुस्तक का भी अध्ययन करेंगे एवं भगवान को दीप अर्पित करेंगे।
उकर्शिया से देवऋषि नारद प्रभु, मंदिर में प्रतिदिन भक्तों के साथ मिलकर दामोदरअष्टक तथा दीप दान कर रहे हैं। वह हमारे साथ यूरोप से जुड़े हुए हैं,हमें इसकी काफी प्रसन्नता है।
ग्रेटर नोएडा से मानसी गर्ग माताजी लिख रही हैं कि वह अमृत सागर में गोते लगा रही हैं। मुझे यह पढ़ कर स्मरण हो रहा है और जैसा की दामोदर अष्टकम के तीसरे श्लोक में भी लिखा है
"इतीदृक्स्वलीलाभिरानंद कुण्डे
स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्।"
भगवान दामोदर किस प्रकार से अपनी लीलाओं के माध्यम से ब्रजवासियों को आनंद के सागर में गोते लगवाते हैं। मानसी गर्ग माताजी भी शायद इसलिए आनंद के सागर में गोते लगा रही हैं। उन्होंने कल लगभग 60 वृद्धों और युवाओं को दीप दान करवाया, हमें आशा है कि वह आगे भी इसी प्रकार से दीप दान की सेवा में संलग्न रह अन्य लोगों से दीप दान करवाती रहेंगी।
पुणे से जय पांचाली माताजी अपना खेद प्रकट कर रही हैं कि वह इस बार ब्रजमंडल परिक्रमा में नहीं जा पा रही हैं परंतु वह कहती है कि वह इस विषय पर ज़्यादा नहीं सोचती। वह पुणे में रुकी हुई है और वहाँ वह प्रतिदिन मंगला आरती और भगवान दामोदर को दीपदान कर रही है। साथ ही साथ उन्होंने प्रतिदिन ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक का एक अध्याय पढ़ने का भी संकल्प लिया है।
साथ ही साथ उन्होंने एक अन्य रिपोर्ट भी दी है कि जलगांव में उनके माता पिता ने अपने निवास स्थान पर दीपदान प्रोग्राम का आयोजन करवाया जिसमें लगभग 300 भक्तों ने भाग लिया और भगवान दामोदर को दीप दान अर्पित किया। यह बहुत ही सुंदर विषय है और सुनने में भी बहुत ही अच्छा लग रहा है।
नागपुर मंदिर से परमात्मा प्रभु ने हमें जलगांव की रिपोर्ट दी है, उन्होंने नागपुर की रिपोर्ट नहीं दी है। यद्यपि वह अधिकांश समय नागपुर में ही रहते हैं, फिर भी उन्होंने जलगांव की रिपोर्ट दी है। यह भी बहुत अच्छा है
हमें वृंदावन से भी निरंतर खबरें प्राप्त हो रही हैं। मैं इस बात से निश्चित हूं कि वहाँ पर भक्तों ने अच्छी तरह से मैनेज किया है और उन्होंने तीस दिवसीय सारणी भी निकाली है। आज प्रातः वे कृष्ण बलराम मंदिर से अब से लगभग 40 मिनट पूर्व अपनी परिक्रमा के लिए निकल चुके हैं। वे प्रतिदिन संभवतः
छः बजे अपना कैम्प छोड़ते हैं, आज वे वृंदावन धाम से श्रीकृष्ण भूमि की ओर परिक्रमा करेंगे और रास्ते में वे यज्ञपत्नी स्थल, अक्रूर घाट, बिड़ला मंदिर स्थानों पर जाएंगे। सुबह का प्रसाद वे बिड़ला मंदिर पर लेंगे, मैं वृंदावन की परिक्रमा से एक वियोग का अनुभव कर रहा हूँ। आज मैं जी.बी.सी. मीटिंग के लिए तिरुपति में हूं परंतु मैं प्रत्येक क्षण वृंदावन और उन भक्तों का स्मरण कर रहा हूँ जोकि वृंदावन की परिक्रमा में हैं। आप लोग जहाँ पर भी हैं, वहाँ आप ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक में से द्वितीय अध्याय 'वृंदावन से मथुरा' की परिक्रमा का अध्ययन अच्छी तरह से करिए ।
हमारे नोएडा मंदिर के भक्तों , काँग्रेशन मेम्बेर्स, इस्कॉन युथ फोरम के भक्तों ने मिलकर नोएडा से वृंदावन की पदयात्रा निकाली थी। यह पदयात्रा, दो सप्ताह पहले शुरू हुई थी और कल वृंदावन (ब्रज) में इसका समापन हुआ। उन्होंने इस पदयात्रा के दौरान श्रील प्रभुपाद की चार हजार से अधिक पुस्तकों का वितरण किया । यह बहुत ही सुंदर खबर है। प्रभुपाद जी को पुस्तक वितरण सबसे प्रिय था। जब श्रील प्रभुपाद जी की पुस्तकें वितरित होती हैं तब श्रील प्रभुपाद जी निश्चित रूप से प्रसन्न होते हैं। वे इससे अत्यंत प्रसन्न हुए होंगे। कल नोएडा में लगभग 300 भक्तों ने दामोदर आरती और दीपदान में भाग लिया।
लगता है कि बंगलोर से गणेश प्रभु की बात सुन कर नागपुर से परमकरुणा प्रभु बहुत ही उत्साहित हुए हैं। उन्होंने अभी अभी 2100 माला हरे कृष्ण महामंत्र जप करने का संकल्प लिया है।
हरिबोल!
महालक्ष्मी माताजी, कहाँ से हैं ? मुझे ठीक से नहीं पता परंतु उन्होंने कल 75 भक्तों से दीपदान करवाया जो कि बहुत ही सुंदर और उत्साह वर्धक खबर है।
अभी बहुत ही सुंदर मौसम/ ऋतु अर्थात कार्तिक मास चल रहा है। कार्तिक मास एक प्रकार की ऋतु/ सीजन है जिसमें हम अपनी भक्तिपूर्ण कृत्यों को अधिक से अधिक बढ़ा सकते हैं और इससे बहुत लाभ प्राप्त कर सकते हैं। संसार में कई प्रकार की ऋतुएं मनाई जाती हैं अर्थात मौसम आते हैं जैसे कि यदि बरसात का मौसम होता है तब छतरियां बहुत बिकती हैं। इसी प्रकार से जब अन्य मौसम आते हैं, तब अन्य कई प्रकार की वस्तुओं की बिक्री होती है और मुनाफा भी होता है। यह कार्तिक मास उत्सवों का मास है और हम गौड़ीय वैष्णवों के लिए यह कार्तिक मास सबसे उत्तम ऋतु और सीजन है। हम इस मास में अपने भक्तिपूर्ण कृत्यों को करके बहुत अधिक लाभ और मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। हम अधिक से अधिक जपा और दीप दान कर सकते हैं, श्रवण और कीर्तन में अपने को संलग्न कर सकते हैं। श्रीकृष्ण, श्रीमद् भागवतम, ब्रजमंडल दर्शन इत्यादि पुस्तकों का गहनता से अध्ययन कर सकते हैं। हम अन्य लोगों से भी अधिक मात्रा में दीप दान करवा सकते हैं और हम इस कार्तिक मास का अधिक से अधिक लाभ उठा सकते हैं।
आप लोग इस मास में अधिक से अधिक श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का भी वितरण कीजिए। आप ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक भी खरीद सकते हैं। यह इस पुस्तक का विशेष सीजन है अर्थात ऋतु है जिसमें आप इस पुस्तक को खरीद और पढ़ सकते हैं एवं अधिक से अधिक वितरण भी कर सकते हैं। जैसा कि श्रील प्रभुपाद कहते थे कि प्रसादम वितरण के बिना हमारा कोई भी आध्यात्मिक कार्यकम अधूरा रहता है। इस मास में हम जो भी कार्यक्रम करते हैं, उसमें हम अधिक से अधिक लोगों को कृष्ण प्रसादम भी वितरण कर सकते हैं।आप अपने मित्रों, स्वजनों को अपने घर पर आमंत्रित कर सकते हो, जिस प्रकार से जय पांचाली माताजी के पिता जी प्रधुम्न प्रभु ने जलगांव में परिवारजनों, मित्रों को आमंत्रित करके 300 लोगों के साथ दीप दान किया। आप भी ऐसा प्लान कर सकते हैं, आप भी अपने घर में सप्ताह के दिनों में या सप्ताह के अंत में जब भी आपको समय मिलता है, तब आप इस प्रकार के कार्यकम का आयोजन करके अपने इष्ट मित्रों को दीप दान आदि सेवा में संलग्न कर सकते हैं।
श्री हरिभक्ति विलास जोकि श्रील सनातन गोस्वामी प्रभुपाद के द्वारा लिखा हुआ ग्रंथ है, इसमें वह इस बात की संस्तुति करते हैं कि इस दामोदर मास में दामोदर अष्टकम का पाठ/ जप व दीप दान नियमित रूप से किया जाना चाहिए। वे कहते हैं कि जो भी इस प्रकार से करता है, वह करुणासिंधु, दीनबंधु भगवान दामोदर की कृपा व करुणा को आकर्षित करता है और उस कृपा को पाने के लिए उनका पात्र बनता है।
दामोदर अष्टक बहुत ही सुंदर अष्टक है जिसका वर्णन पदम पुराण में भी आता है। सत्यव्रत मुनि ने अपनी वार्ता में नारद मुनि के साथ इस अष्टक का गान किया है। यह अति दिव्य प्रार्थना है जो कि पूर्णरूप से भक्ति से ओतप्रोत है। दामोदर अष्टकम के माध्यम से सत्यव्रत मुनि बहुत ही दीन भाव से भगवान दामोदर की कृपा के लिए याचना कर रहे हैं। इस मास में हम दामोदर अष्टक/प्रार्थना गाते हैं।
नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं
लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानम्
( गाते हुए)
जैसा कि मैंने आपको पहले भी सुझाव दिया था कि आप सभी अपने आप को इस दामोदर अष्टक के अर्थ से अवगत करवाएं। आप सभी को इस अष्टक का गुह्य भाव और अर्थ भी पता होना चाहिए इसलिए आप सभी भावार्थ को समझने का प्रयास कीजिए।
उन्होंने "नमामीश्वरं" अर्थात सबसे पहले ईश्वर को प्रणाम किया अथवा उनके प्रति नमस्कार अर्पित किया। कौन से ईश्वर ? सच्चिदानंदरूपं अर्थात वे भगवान का सत चित आनंद स्वरूप अर्थात विग्रह को प्रणाम करते हैं। यह अष्टक यहाँ से प्रारंभ होता है।
वह भगवान दामोदर की उस लीला का स्मरण कर रहे हैं, जिस में वे गोकुल के वृंदावन में अपने घर नंदभवन से माखन चुराते हैं । इस प्रकार से उनका स्मरण भगवन को उस दिव्य लीला का स्मरण करवा रहा है जहां भगवान अपने ही घर पर माखन चोरी की लीला कर रहे हैं। फिर वे वर्णन करते हैं कि भगवान ने जो कुंडल अर्थात लसत्कुण्डलं पहने हुए हैं, वे किस प्रकार से झिलमिला रहे हैं,हिल रहे हैं और उनसे प्रकाश निकल रहा है। भगवान किस प्रकार से यशोदा मैया से दूर भाग रहे हैं और उनके कानों में जो शोभायमान कर्ण फूल हैं, वे झिलमिला रहे हैं। इस प्रकार से वह इस अष्टक को आगे बढ़ाते हैं। आप सभी भी भागवतम के दसवें स्कंध के आठवें अध्याय में जहाँ पर शुकदेव गोस्वामी ने इस लीला का वर्णन किया है, वहां इस लीला के विषय में और अधिक गहराई से पढ़ सकते हैं।
सत्यव्रत मुनि आगे वर्णन करते हैं "यशोदाभियोलूखालाभद्धावमानं" भगवान अपने ही घर में माखन की चोरी कर रहे थे और स्वयं भी खा रहे थे व बंदरो को भी खिला रहे थे, जब उन्होंने माता यशोदा को हाथ में एक बड़ी छड़ी लिए अपनी ओर आते देखा तब भगवान दामोदर इतना डर गए कि वह ऊखल से एकदम कूद गए और भयभीत होकर भागने लगे। माता यशोदा किसी प्रकार से भगवान को पकड़ने में सफल हो जाती है। सत्यव्रत मुनि आगे लिखते हैं:-
रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तं
कराम्भोज-युग्मेन सातङ्कनेत्रम्।
जब भगवान पकड़े जाते हैं तो वह किस प्रकार से डर के मारे भयभीत और कम्पित हो रहे हैं और रो रहे हैं। वे अपने दोनों कर कमलों से अपनी दोनों आँखों को भीच भींच कर रगड़ रगड़ कर रो रहे हैं। सत्यव्रत मुनि ने बहुत ही सुंदर वर्णन किया है किस प्रकार से नंदनंदन भगवान कृष्ण माता यशोदा से भयभीत हो गए हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वह क्या करें। वे सोच रहे हैं कि अब पकड़े जाने पर उनके साथ कैसा व्यवहार होगा अर्थात उनकी किस प्रकार से प्रताड़ना की जाएगी। यह सोच कर के वह भयभीत हो गए हैं।
सत्यव्रत मुनि आगे लिखते हैं कि भगवान की श्वास किस प्रकार से ऊपर नीचे हो रही हैं।
मुहुःश्वास कम्प-त्रिरेखाङ्ककण्ठ
स्थित ग्रैव-दामोदरं भक्तिबद्धम
भगवान की श्वास डर के मारे तेजी से चल रही थी। उनके पूरे शरीर में कम्पन हो रहा था, उनके होंठ भी डर के मारे कांप रहे थे। सत्यव्रत मुनि ने देखा कि भगवान के सुंदर कंठ में तीन रेखाएं हैं। वे भगवान के बहुत सुंदर विग्रह और सुंदर श्रीअंगों की विशेषता का वर्णन कर रहे थे। उनके कंठ में एक माला है जिसमें एक लॉकेट भी पड़ा है जो कि हिल रहा है। भगवान का पूरा शरीर हिल रहा और कांप रहा है। भगवान के होंठ हिल रहे हैं। इस प्रकार भगवान का पूरा शरीर कंप रहा है।
यहां पर वर्णन आता है कि यह जो बंधन लीला है जिसमें यशोदा मैया ने भगवान को ऊखल से बांधा है। "भक्तिबद्धम" यशोदा माई अपने दुलारे, अपने लाडले पुत्र को जिससे वह इतना प्यार करती हैं, उसे बांध रही हैं। वह उन्हें भक्ति के द्वारा बांध पा रही है अर्थात वह भगवान के प्रति निष्ठा के कारण ही उनको बांध पा रही हैं।
इतीदृक्स्वलीलाभिरानंद कुण्डे
स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्।
सत्यव्रत मुनि अगले श्लोक में बताते हैं कि भगवान इन लीलाओं के माध्यम से अपने ब्रजवासियों, पार्षदों, भक्तों
को आनंद के कुंड में गोते लगवा रहे हैं। आप इस लीला के विषय में और अधिक पढ़िए और स्मरण कीजिए एवं इस पर ध्यान कर अपने ध्यान को और अधिक प्रगाढ़ बनाइए।
हरे कृष्ण!