Hindi

अभी जप रोकिये और श्रवण कीजिए। आपके जप में बाधा उत्पन्न करने के लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ परन्तु मुझे आज दिल्ली के लिए निकलना हैं, इस कारण हमने आज यह कांफ्रेंस जल्दी शुरू की और इसे जल्दी समाप्त करेंगे। मैंने अवलोकन किया कि आप मे से कुछ भक्त देरी से इसमें सम्मिलित हो रहे थे। मैंने इस बात का ध्यान रखा हैं कि हमारा जप सत्र सामान्यतया भारतीय समयानुसार सुबह ६ बजे से ७ बजे तक हो। अतः इसका पूर्ण लाभ उठाने के लिए समय पर सम्मिलित होइए। पहले हम एक साथ जप करते हैं तत्पश्चात जप पर चर्चा करते हैं।
इस्कॉन युथ फोरम नागपुर और गोपालपुर बेस से भी भक्त आज इस कांफ्रेंस में सम्मिलित हुए हैं। हम उनका स्वागत करते हैं। हम इस कांफ्रेंस में अधिक से अधिक प्रतियोगियों को सम्मिलित करना चाहते हैं। यदि हम एक साथ सामूहिक जप करें तो वह संकीर्तन बन जाता हैं।
सतयुग में एक गुफा में एक ही साधू रहता था। यदि एक गुफा में २ साधू हो तो इसे बहुत अधिक समझा जाता था। उस समय ध्यान और समाधी के लिए ये नियम थे। परन्तु कलियुग में हम जितनी अधिक मात्रा में हो उतना ही उत्तम हैं। यदि आप अकेले होंगे तो आप सो जाएंगे। जैसे ही हम अकेले होते हैं हमारा ध्यान विचलित हो जाता हैं और हम जप करने की बजाय और कुछ करने लग जाते हैं। भक्तों के संग में जप करना हमारे लिए अनुकूल हैं और इससे हमारे जप की गुणवत्ता सुधारने में सहायता होती हैं। आपको संग का लाभ मिलता हैं। जब आप जप करते हैं , और विशेष रूप से जब आप भक्तों के संग में जप करते हैं तब तक आप माया के चंगुल से बचे रहते हैं तथा अभक्तों के संग से भी दूर रहते हैं। आप अपने परिवार के सदस्यों के साथ भी जप कर सकते हैं। इस कांफ्रेंस के माध्यम से आप यह आभास कर सकते हैं कि यद्यपि वास्तव में आपके साथ कोई भी नहीं बैठा हैं जो जप कर रहा हैं तथापि आप ३०० - ४०० भक्तों के साथ जप करते हैं। हो सकता हैं कि आप हमें केवल मोबाइल स्क्रीन पर ही देखें और उनमे भी अधिकतर भक्तों को नहीं देख सकें परन्तु मैं अपने लैपटॉप की स्क्रीन पर सैकड़ों भक्तों को देख सकता हूँ जो मुझे घेरे हुए हैं और जपकर रहे हैं , इस प्रकार जब मैं स्वयं को भक्तों से घिरा हुआ पाता हूँ तो सुरक्षित महसूस करता हूँ। यह एक प्रकार से स्वयं के चारों ओर भक्तो की बाड़ के समान हैं.
मैं स्वयं को अकेला महसूस नहीं करता हूँ। आपको भी इस प्रकार भक्तों के संग का अनुभव करना चाहिए। आपको यह समझना और अनुभव करना चाहिए कि इस कांफ्रेंस के माध्यम से आपको भक्तों का एक सशक्त संग प्राप्त हो रहा हैं। "संगे शक्ति कलियुगे " अर्थात कलियुग में संग में शक्ति हैं। जब हम साथ होते हैं तब उसमे शक्ति निहित होती हैं। इस कांफ्रेंस में हमें उसका अनुभव होता हैं। अतः आप इस जप सत्र का पूर्ण लाभ लीजिए।
मैं देख रहा हूँ कि गौरांग अपने छोटे भाई के साथ फ्लोरिडा से जप कर रहा हैं। इस दोनों छोटे भाइयों को एक साथ जप करते हुए देखकर मुझे चतुष्कुमारों का स्मरण होता हैं जिनमे से ये दो कुमार लग रहे हैं । उस दोनों को हमारे साथ जप करते हुए देखकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता होती हैं। जैसा कि मैंने कल कहा था इस कांफ्रेंस में हमारे साथ कुमार , युवा और वृद्ध सभी उम्र के भक्त हैं। यहाँ कुमार , युवा और वृद्ध सभी एक साथ जप करते हैं। जब मैं सभी को जप करते हुए देखता हूँ तो मुझे अत्यंत हर्ष होता हैं। मैं स्वयं को सुरक्षित महसूस करता हूँ और मैं अत्यंत उत्साहित होता हूँ। अतः यह अवश्य ही करने योग्य कार्य हैं। जब हम देखते हैं कि बहुत से व्यक्ति एक समान कार्य कर रहे हैं तब हम सोचते हैं कि अवश्य ही यह कार्य करणीय हैं इसीलिए इतने अधिक लोग इसे कर रहे हैं। यह एक प्रकार का मनोविज्ञान हैं।
इसमें आप अकेले नहीं हैं यह अनुभव हैं। ऐसा नहीं है कि केवल भारतीय ही जप कर रहे हैं , अमेरिकी भक्त भी जप कर रहे हैं। उनके साथ ही साथ यूक्रैन और मॉरिशियस के भक्त भी जप कर रहे हैं। अतः यह अवश्य ही सबसे उत्तम करणीय कार्य हैं, क्योंकि सम्पूर्ण विश्व से भक्त जप कर रहे हैं। मैं केवल एक ही मुर्ख नहीं हूँ जो यहाँ बैठकर जप कर रहा हूँ। क्या मेरे साथ कुछ गलत हैं? नहीं आप मुर्ख नहीं हैं अपितु आप सबसे बुद्धिमान हैं क्योंकि आप जप कर रहे हैं। आप संकीर्तन यज्ञ के सदस्य हैं जिसकी महिमा का वर्णन निम्न प्रकार से हुआ हैं :
" कृष्ण वर्णनम त्विसकृष्णम , सान्गोंपांगास्त्र पार्षदम। यज्ञैः संकीर्तन प्रायैर , यजन्ति: सु मेधसा : ।। (श्रीमद भागवतम ११.५.३२ )
श्रीमद भागवतम यह घोषणा करती हैं कि बुद्धिमान व्यक्ति इस हरिनाम के जप को स्वीकार करते हैं। वे यज्ञ करते हैं , किस प्रकार का यज्ञ ? संकीर्तन यज्ञ। संकीर्तन यज्ञ संपन्न करना बुद्धिमान तथा चतुर व्यक्तियों का कार्य हैं।
कृष्ण येई भजे, सेइ बड़ो चतुर (चैतन्य चरितामृत अन्त्य लीला ४.६७) ,यदि आप यह प्रमाणित करना चाहते हैं कि आप बुद्धिमान तथा चतुर हैं तो इस हरे कृष्ण महामन्त्र का जप कीजिए। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो आप मुर्ख हैं। इस प्रकार चूँकि आप बुद्धिमान हैं अतः आप जप करते हैं और जब हम अन्य भक्तों को भी जप करते हुए देखते हैं तो हम और अधिक आश्वश्त होते हैं और ध्यान पूर्वक जप करते हैं। परम भगवान - श्री चैतन्य महाप्रभु की सदैव जय हो , जिनकी यह भविष्यवाणी हैं तथा हमसे अपेक्षा भी हैं।सम्पूर्ण विश्व के प्रत्येक गाँव और शहर में इस हरिनाम का प्रचार होगा तथा वहां व्यक्ति जप और कीर्तन करेंगे। श्रील प्रभुपाद ने अत्यंत करुणा करकेहमारी चेतना को परिवर्तित करने के लिए इस आन्दोलन को प्रारम्भ किया। उन्होंने इस हरिनाम को प्रत्येक स्थान पर उपलब्ध करवाया। हमें रूस से रिपोर्ट मिली कि वहां पर सबसे तेज़ी से उभरने वाला धर्म हैं " हरे कृष्ण धर्म " जो वहां जंगल के आग की तरह अत्यंत तीव्रता से फ़ैल रहा हैं। कुछ समय पहले रूस में जिस धर्म पर पाबन्दी लगा दी गई थी आज उसी देश में लगभग ७ लाख हरे कृष्ण भक्त हैं। अतः यह निश्चित रूप से सर्वश्रेष्ठ करने योग्य कार्य हैं। सम्पूर्ण विश्व में बहुत अधिक मात्रा में भक्त इस हरे कृष्ण महामन्त्र को स्वीकार कर रहे हैं तथा इसका जप और कीर्तन कर रहे हैं। वे भगवद गीता को स्वीकार करते हैं तथा उसके अनुरूप जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
अब देरी हो रही हैं अतः मैं आप सभी को जप करते हुए छोड़ रहा हूँ तथा मुझे एयरपोर्ट के लिए निकलना हैं। श्रील प्रभुपाद ने इस हरिनाम का प्रचार किया तथा हम सभी के लिए इसे उपलब्ध करवाया। अब इस हरिनाम का प्रचार तथा प्रसार करना हमारा कर्तव्य हैं तथा प्रमुख कार्य हैं। इस हरिनाम को दूसरे भक्तों को उपलब्ध करवाइये। इस हरिनाम रुपी उपहार को अपने घनिष्ठ मित्रों तथा सम्बन्धियों को दीजिए। चैतन्य महाप्रभु की वाणी में :
जारे देखो तारे कहो , कृष्ण उपदेश (चैतन्य चरितामृत ७.१२८)
यह कीजिए , केवल इसीसे संतुष्ट मत होइए। अरे ! मैं तो जप कर रहा हूँ अतः मैं प्रसन्न हूँ। आपसे " नामे रूचि जीवे दया वैष्णव सेवा " की भी उम्मीद की जाती हैं, यदि आप श्रील भक्तिविनोद ठाकुर द्वारा बताई गई अन्य दो बातें करते हैं तो आपको नाम में रूचि आती हैं। नाम में रूचि उत्पन्न करने के लिए आपको जीवों पर दया और वैष्णव सेवा करनी चाहिए। आपको वैष्णवों की सेवा प्रारम्भ करनी चाहिए तथा वैष्णव अपराध से स्वयं को बचाना चाहिए। अतः सबसे उत्कृष्ट हैं : वैष्णवों की सेवा करना। ' षडविधिम प्रीती लक्षणम ' (उपदेशामृत श्लोक ४) जिस प्रेम रुपी आदान - प्रदान का रूप गोस्वामी यहाँ वर्णन कर रहे हैं , हमें उससे यह देखना चाहिए कि मैं कितनी अधिक मात्रा में वैष्णवों की सेवा और उनसे प्रीत कर सकता हूँ, यह एक कार्य हैं, इसके अतिरिक्त दूसरा महत्वपूर्ण कार्य हैं - जीवों पर दया। जो कोमल श्रद्धा रखते हैं उन्हें कृष्ण की ओर आने में सहायता कीजिए। जीवों पर दया करके हरे कृष्ण का जप कीजिए। उन्हें हरिनाम के रूप में कृष्ण दीजिए। इस प्रकार आप जीवे दया - वैष्णव सेवा कर पाएंगे।
मैं आशा करता हूँ कि हरिनाम में आपकी रूचि , प्रीत तथा आकर्षण दिन प्रतिदिन बढ़े यही हमारा आंदोलन हैं। मैं यहीं अपनी वाणी को विश्राम देता हूँ आप सभी से किसी अन्य दिन पुनः भेंट होगी।
हरे कृष्ण …….

English

Stop chanting now and listen. Sorry to interrupt your meditation but I have to leave for Delhi very soon. Because of this we started earlier and ended earlier. My observation is some of you are joining late. I have taken note of the fact that our japa session is by and large from about 6.00 am to 7.00 am. IST. So try to be on time to get full benefit. We first chant together, and then we talk about Japa for few minutes.
IYF Nagpur and Gopalpur BACE have also joined today. They are welcomed. We want bigger participation. If we chant congregationally , then it becomes sankirtana.
In Satya-yuga, there was one meditator in one cave. If there were two yogis in one cave, it would be considered too many. Those were the conditions for dhyana or meditation. But in age of Kali, the bigger the number the better. If you are alone, you may fall asleep. As soon as you are by yourself , you will get distracted doing this and that. Chanting in association of devotees is favourable and beneficial for chanting. You get benefit of association. You remain away from the association of non-devotees, ie. the influence of Maya is cut off as soon as you are chanting and chanting specially in the association of devotees. You could also chant with your family members. On this conference you should realize, even if there are no devotees next to you, still there are three to four hundred devotees chanting with you on this conference. You may be just watching us on the mobile screen, and may not be able to see so many of them. But on the laptop screen I am able to see hundreds of you surrounding me and I feel protected as devotees are surrounding me. It is a kind of fencing. I don't feel alone. You also should feel that way. You should understand and realize, this is powerful association of devotees on this conference. Sange saktihi kaliyuge (an old Sanskrit proverb) says that in Kaliyuga there is strength in sanga or big numbers. They congregate and exhibit their power or 'Shakti’. We get that experience on this conference. So take advantage of these chanting sessions.
I see little Gauranga with his younger brother chanting together from Florida. Two little boys. They are two Kumaras not four Kumaras. It's very pleasing to see them chanting together. As I said yesterday, we have Kumaras , Yuva and older people - all generations. Children are chanting, youths are chanting and old folks are chanting. I see everybody chanting and I feel happy. I feel protected. I feel enthusiastic also. So this must be the right thing to do. When we see so many are doing it then it stresses on the mind that this must be the right thing to do. That's a kind of psychology. You are not the only one. That is the experience. It's not that only Indians who are chanting. Even Americans are chanting. Devotees from Toronto are chanting. Devotees from Mauritius are chanting. So this must be the right thing to do. People from all over the world are chanting. I am not the only fool here chanting. Is there something wrong with me? No you are not a fool. You are wise because you are chanting.
as follows, with special reference to the saṅkīrtana-yajña:
kṛṣṇa-varṇaṁ tviṣākṛṣṇaṁ sāṅgopāṅgāstra-pārṣadam yajñaiḥ saṅkīrtana-prāyair yajanti hi su-medhasaḥ (Bhāgavatam 11.5.32)
In the declaration of Bhagavatam it is stated, intelligent people will take to the chanting. They will take to yajna, which yajna? Sankirtana yajna. Performing sankirtana yajna is a job of intelligent, or smart people.
Krsna yei bhaje sei bada catura:( Krsnadas Kaviraj in CC Anya Lila 4.67) if you want to prove you are wise, chant Hare Krishna. If you do not you are a fool. So you are chanting and you are wise and we get further convinced when we see others are also chanting. This was the prediction and expectation of Supreme personality of Godhead - Caitanya Mahaprabhu. All glories to Him. People in every town and village will take up to this chanting. Srila Prabhupada kindly began this revolution in consciousness. He made this holy name available everywhere. We are seeing devotees chanting everywhere. We get the reports from Russia that , “ ‘Hare Krishna’ is a fastest growing religion and is spreading all over Russia like wildfire.” Something that was banned in Russia some time back and there are reports that there are 700000 followers of Hare Krishna in Russia. So this must be the right thing to do. So many people globally are accepting Hare Krishna. They are accepting Bhagavad-Gita and following it.
It is getting late and I better leave you with your chanting and proceed to the airport. Keep chanting. Srila Prabhupada propagated the holy name and made the holy name available to all you chanters. Now it is our duty and obligation to propagate and spread this holy name. Make this available to others. Give this gift of the holy name to your near and dear ones - your friends and relatives and neighbours. In the words of Caitanya Mahaprabhu
jare dakho tare Kaho Krishna upadesh. (CC Madhya 7.128)
Do this. Don't just be content. O! I am Chanting, I am happy. You are also expected to - name ruchi jive daya vaishnav seva(Caitanya Bhagavata - Madhya khanda 28.28) You will develop more ruci if you do two things as explained in the song of Srila Bhakti Vinod Thakur. name ruci in order to develop ruci in nama you should do Vaisnava seva and jive daya. You have to serve Vaisnavas. Stop offending Vaisnavas. Best thing is to serve Vaisnavas. Sadvidhim preeti laxanam. ( Nectar of Instruction, Verse 4) The loving dealings Rupa Goswami has talked about , see how you can do all that in a loving manner and service attitude. That's one thing. Also there should be jive daya - compassion. Those who are little faithful, give them an opportunity to come to Krsna. Chant Hare Krishna. ‘ Jive daya’ - be kind to them. Hand over the holy name to them. So jive daya - vaisnava seva.
May your Ruci , your liking , your attraction for the holy name increase day by day. That is our mission. We will stop here. See you another day.
Hare Krishna!

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