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आज भी हमारे इस कांफ्रेंस में सम्मिलित होने वाले भक्तों की संख्या ३०० से ऊपर हैं। आज दमन से कुछ युवा भक्त भी इस कांफ्रेंस में सम्मिलित हुए हैं।
हम कहते हैं कि आपको आज के जप की तैयारी पिछले दिन से ही करनी चाहिये। इस प्रकार हमने कल जो किया वह सब हमारे आज के जप के लिए तैयारी हैं। कल यहाँ सुबह पहले राधा गोविन्द देव जी का महा अभिषेक हुआ ततपश्चात पुष्प अभिषेक हुआ और दोपहर में अद्भुत जगन्नाथ रथयात्रा संपन्न हुई। इस रथयात्रा के सबसे प्रमुख हिस्सा था कि हमने कई टन प्रसाद वितरित किया। कई बार हम कह देते हैं कि कई टन प्रसाद वितरित हुआ परन्तु ऐसा होता नहीं हैं , परन्तु कल वास्तव में हमने २ टन फल प्रसाद का वितरण किया, जिसमे सभी प्रकार के फल सम्मिलित थे। जिस प्रकार मैंने कल रथ से कई घण्टों प्रसाद वितरण किया उस प्रकार का प्रसाद वितरण मैंने पहले कभी नहीं किया। लोग जगन्नाथ की कृपा प्राप्त करने के लिए लड़ तथा जूझ रहे थे। मैं सभी को प्रसाद के रूप में जगन्नाथ देकर अत्यंत प्रसन्न था। वे "अन्न परब्रह्मं " कहते हैं अर्थात वह अन्न जो जगन्नाथ या कृष्ण को अर्पित किया जाता हैं वह परब्रह्म बन जाता हैं अर्थात उस प्रसाद में परब्रह्म के गुण आ जाते हैं। इस प्रकार हम कृष्ण भावनामृत के प्रचार और प्रसार के लिए प्रयास करते हैं। इसके साथ ही साथ लगभग ६०० पुस्तकों का वितरण भी हुआ। कीर्तन और नृत्य करने में युवा भक्त अत्यंत उत्साहित थे। कुछ भक्त कृष्ण - बलराम तथा गौर - निताई का वेश किये हुए थे। एक हष्टपुष्ट प्रभु हनुमान के वेश में गदा हाथ में लिए हुए थे। यह अद्भुत अनुभव था।
हमें उत्सवों में भाग लेना चाहिए ऐसा रूप गोस्वामी हमें निर्देश देते हैं। भक्ति रसामृत सिंधु में यह एक बात हैं जिस पर बल दिया जाता हैं। यह हमें प्रेरित करता हैं। आज जब हम जप करने के लिए बैठे तो वे विचार हमारे मस्तिष्क में आ रहे थे। यह जप के लिए अनुकूल हैं। यह कांफ्रेंस जप - कांफ्रेंस हैं। आज हमारे लिए एक अन्य उत्सव - नित्यानन्द त्रयोदशी हैं। इस्कॉन भी गोलोक की भाँती उत्सवों से भरा हुआ हैं। वहां कदम - कदम पर उत्सव हैं , प्रत्येक शब्द संगीत हैं। जब हम हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे , हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे , का जप करते हैं तो क्या यह उत्सव नहीं हैं ? जब आप हरे कृष्ण महामन्त्र का जप करते हैं तो वह भी उत्सव ही हैं। जब हम उत्सव की बात करते हैं तो हमें स्वादिष्ट प्रसाद का स्मरण होता हैं। यदि स्वादिष्ट प्रसाद न हो तो कैसा उत्सव ? प्रसाद के बिना कोई उत्सव नहीं होता। इस प्रकार यदि जप भी एक उत्सव हैं तो यहाँ भी दावत होनी चाहिए। जब हम हरिनाम का उच्चारण करते हैं तो हमारी जिव्हा के लिए दावत हैं , जब हम हमारी तुलसी माला के रूप में तुलसी महारानी के चरण कमलों का स्पर्श करते हैं तो वह हमारी अँगुलियों के लिए दावत हैं, चूँकि हम जप करते समय भगवान के रूप पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं अतः यह हमारी आँखों के लिए भी दावत के समान हैं। इस प्रकार की दावत के लिए बहुत अधिक प्रयास की आवश्यकता हैं।
इस प्रकार जप करने वाले साधक को बहुत अधिक तपस्या करनी होती हैं और अन्ततः वह मन की उस अवस्था में पहुँच जाता हैं जहाँ वह रुदन करते हुए, जैसा चैतन्य महाप्रभु शिक्षाष्टकम के कहते हैं , कहता हैं ," हे कृष्ण ! वह दिन कब आएगा ?"
प्रेमान्जन छुरित भक्ति विलोचनेन , सन्त: सदैव हृदयेश विलोकयन्ति (ब्रह्म संहिता श्लोक १०)
जब किसी भक्त के नेत्रों में भगवद प्रेम रुपी अश्रु हो तब वह उनका साक्षाद दर्शन अपने ह्रदय में करता हैं, और वही हमारा लक्ष्य हैं। परन्तु उस लक्ष्य तक पहुँचने के लिए हमें प्रयास करना होगा - और वह प्रयास हैं उत्साह तथा दृढ निश्चय के साथ जप करना।
आज यहाँ नित्यानन्द त्रयोदशी हैं , अतः मैं आज का जप नित्यानन्द प्रभु को समर्पित करने के विषय में सोच रहा था। आज हमें उनके चरण कमलों का स्मरण करना चाहिए , उनकी लीलाओं तथा उनके द्वारा की गई क्रियाओं का स्मरण करते हुए जप करना चाहिए। इसलिए मैं अपना जप नित्यानन्द प्रभु को समर्पित करने के विषय में सोच रहा हूँ। नित्यानन्द प्रभु आदि - गुरु हैं। "कृष्ण वन्दे जगतगुरुम " (श्रीमद भगवद्गीता ध्यानम - श्लोक ५) इसी प्रकार नित्यानन्द वन्दे जगतगुरुम। नित्यानन्द प्रभु मूल आध्यात्मिक गुरु हैं। यदि वे प्रसन्न हो जाएंगे तो भगवान स्वयं प्रसन्न हो जाएंगे , " यस्य प्रसादात भगवद प्रसादौ। " (गुर्वाष्टकम) जप एक प्रार्थना हैं। आज मैं नित्यानन्द प्रभु से प्रार्थना करने में सक्षम होने के लिए प्रार्थना कर रहा हूँ। गौर - नित्यानन्द , जो इस हरे कृष्ण आंदोलन के जनक हैं , एक साथ हैं।
आजानुलम्बित भुजौ कनकावधातौ , संकीर्तन कपी तरौ कमलायताक्षौ। विश्वम्भरो द्विज -वरो युग धर्म पालौ , वन्दे जगत प्रिय करो करुणावतारौ।।
मैं श्री चैतन्य महाप्रभु और नित्यानन्द प्रभु को प्रणाम करता हूँ जिनके आजानुलम्बित हाथ हैं , जिनकी तप्त स्वर्णिम अंग कान्ति हैं , तथा जिन्होंने हरिनाम के सामूहिक संकीर्तन का प्रचार किया। उनकी आँखे कमल के पंखुड़ियों के समान हैं , वे सभी जीवों के पालक हैं , वे ब्राह्मणों में सर्वश्रेष्ठ हैं , इस युग में वे धर्म की रक्षा करते हैं, वे सम्पूर्ण जगत के संरक्षक हैं ,तथा सभी अवतारों में सबसे दयालु अवतार हैं। (चैतन्य भागवत १.१.१)
विशेष रूप से जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु अपनी अंतिम लीला का जगन्नाथ पूरी में प्रदर्शन कर रहे थे तब वे राधा भाव में थे। राधा भाव दुति सूरे वलितम (चैतन्य चरितामृत १.५) जब श्री कृष्ण , राधा रानी के साथ होते हैं तब बलराम वहां से अनुपस्थित रहते हैं। इसी प्रकार नित्यानन्द प्रभु के साथ भी यही हैं। यह और अधिक गूढ़ समझ हैं। चैतन्य महाप्रभु ने नित्यानन्द प्रभु से कहा कि आप अपने पार्षदों के साथ जाइए और बंगाल में प्रचार कीजिए। इसलिए नित्यानन्द प्रभु ने अपनी बलराम लीला से द्वादश गोपों को साथ लिया , जो नित्यानन्द प्रभु की लीला में पुनः अवतरित हुए थे , तथा बंगाल में प्रचार के लिए प्रस्थान किया। नित्यानन्द प्रभु को आदेश मिला , " आप यहाँ से चले जाइए , यहाँ अब मैं राधा - रानी के संग में रहूँगा। "नित्यानन्द प्रभु वहां से पानीहाटी चले गए जहाँ उन्होंने लीला संपन्न की तत्पश्चात सम्पूर्ण बँगाल में हरिनाम का प्रचार किया।
भक्ति विनोद ठाकुर लिखते हैं , " नदिया गोद्रुमे नित्यानन्द महाजन , पातियाछे नाम हट्ट जीवेर कारण। " नदिया एक जिला हैं जहाँ नित्यानन्द प्रभु ने यह नाम हट्ट शुरू किया था। भक्ति विनोद ठाकुर सभी को वहां आमन्त्रित करते हैं , हे भाग्यवान ! हे श्रद्धावान जीवों ! आइये , नित्यानन्द प्रभु इस हरिनाम का दान दे रहे हैं। जिस प्रकार गुरु हमें हरिनाम देते हैं उसी प्रकार नित्यानन्द प्रभु भी इस हरिनाम को सभी जीवों को प्रदान कर रहे हैं। उनके साथ प्रचार के लिए एक अन्य सहभागी भी सम्मिलित हुए। नित्यानन्द प्रभु स्वयं बलराम हैं तथा उनके साथ ब्रह्मा के अवतार हरिदास ठाकुर सम्मिलित हो गए। इस प्रकार वे दोनों हरिनाम के प्रचारक हैं। एक दिन उन दोनों की भेंट जगाई - मधाई से हो गई। नित्यानन्द प्रभु तथा हरिदास ठाकुर यवनों , म्लेच्छों , तथा शूद्रों को प्रचार कर रहे थे। इस प्रकार नित्यानन्द प्रभु इस कलियुग के सबसे निम्न श्रेणी के जीवों को हरिनाम का प्रचार कर रहे थे। उसमें बहुत अधिक बाधाएँ भी थी। वे किसी प्रकार से इस हरिनाम रुपी अमृत को जगाई तथा मधाई को पान करवाना चाहते थे। वे दोनों भाई इसका विरोध कर रहे थे , तथा इस हरिनाम को स्वीकार नहीं करना चाहते थे और प्रतिशोध में नित्यानन्द प्रभु तथा हरिदास पर पत्थर , शराब की टूटी हुई बोतलें तथा मिट्टी के ठेले फेंक रहे थे। जब उनके भक्तों का अपमान होता हैं तो स्वयं गौरांग महाप्रभु को वहां आना पड़ता हैं। गौरांग , श्री कृष्ण हैं , इसे सहन नहीं करते हैं। नित्यानन्द प्रभु एक भक्त तथा प्रचारक की भूमिका में हैं।
यहाँ पर नित्यानन्द प्रभु का अपमान हुआ था , तब चैतन्य महाप्रभु सुदर्शन का आव्हान करते हुए उस स्थान पर आए। वे जगाई तथा मधाई का सर धड़ से अलग कर देना चाहते थे , परन्तु वे उन दोनों पर दूसरे रूप में करुणा कर रहे थे। ऐसा नहीं हैं कि चैतन्य महाप्रभु उन पर दयालु नहीं थे परन्तु वे दूसरे रूप में उन पर करुणा कर रहे थे। भगवान इस कलियुग में कल्कि अवतार में अपने हाथ में तलवार रखेंगे। इस प्रकार वे अपनी दया सभी को प्रदान करेंगे। जब भगवान किसी का वध करते हैं तो वह भी उनकी उस जीव पर करुणा हैं, परन्तु कलियुग में दया प्रदान करने का यह तरीका नहीं हैं। अब नित्यानन्द प्रभु और अधिक दयालु हैं। नहीं नहीं ! यह अस्त्र नहीं दूसरा अस्त्र लीजिये। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे , हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। उनकी कृपा अत्यन्त गहन हैं। इससे -जगाई मधाई का हृदय परिवर्तित हो गया। उनकी करुणा अत्यंत विशेष थी। नित्यानन्द प्रभु जगाई - मधाई तथा महाप्रभु के मध्य में आ गए और उन दोनों भाइयों को बचा लिया। उस प्रकार से नहीं अपितु "हरेर नाम इव केवलं" अर्थात केवल हरिनाम के द्वारा। उन्होंने चैतन्य महाप्रभु को स्मरण करवाया कि इस कलियुग में हम बद्ध - जीवों की हरिनाम के जप तथा कीर्तन द्वारा रक्षा करेंगे। जगाई तथा मधाई का नाम जगदानन्द तथा माधवानन्द था और वे दोनों ब्राह्मण परिवार से थे। इसलिए " निताई बिने भाई , राधा कृष्ण पाइते नाई " (निताई पद कमल भजन , नरोत्तम दास ठाकुर द्वारा रचित नित्यानन्द निष्ठा - भजन १ , मनः शिक्षा )
नित्यानन्द प्रभु की कृपा के बिना हमें राधा कृष्ण की कृपा प्राप्त नहीं हो सकती हैं। आपको हरे कृष्ण हरे कृष्ण की प्राप्ति भी नहीं होगी जो स्वयं राधा कृष्ण हैं। यह मन्त्र हमें बताता हैं कि नित्यानन्द प्रभु की कृपा के बिना हम इसका जप नहीं कर सकते हैं। नित्यानन्द प्रभु और गौर - नित्यानंद की परम्परा में आने वाले आध्यात्मिक गुरु हमें इस महामन्त्र को प्रदान करते हैं। नित्यानन्द प्रभु के प्रतिनिधि के रूप में आध्यात्मिक गुरु हमें इस हरे कृष्ण महामन्त्र के रूप में राधा - कृष्ण प्रदान करते हैं।
अतः हमें जप तथा प्रार्थना करनी चाहिए अथवा प्रार्थना करते हुए जप करना चाहिए। आप जप और प्राथना करते रहिये तथा नित्यानन्द प्रभु के चरण कमलों में प्रार्थना कीजिए। राधा - कृष्ण को प्राप्त करने के लिए उनकी दया प्राप्त कीजिये। यह केवल नित्यानन्द प्रभु की करुणा से ही संभव हैं। निताई पद कमल।, कोटि चन्द्र सुशीतल - नित्यानन्द प्रभु नित्य उपस्थित रहते हैं वे काल्पनिक नहीं हैं। वे वहां उपस्थित थे और तत्पश्चात वे वायु तथा भाप बन गए और अब भी उपस्थित हैं। परन्तु जो भाग्यवान जीव हैं केवल वे उनका दर्शन कर सकते हैं।
यद्यपि लीला करे गौर राय , कोण कोण भाग्यवान देखिबारे पाय अर्थात आज भी नवद्वीप तथा मायापुर में गौर - नित्यानन्द की लीलाएँ संपन्न हो रही हैं परन्तु जो बुद्धिमान तथा भाग्यवान हैं केवल वे ही उनके दर्शन कर सकते हैं। वे आज भी गौरांग तथा नित्यानंद के साक्षाद दर्शन कर सकते हैं। नित्यानन्द एक गुरु हैं वे जीव गोस्वामी को नवद्वीप धाम की परिक्रमा में ले गए गुर , आध्यात्मिक गुरु , धाम गुरु तथा पंडों ने इसी से सीखा हैं। अतः वे जीव गोस्वामी के समक्ष नवद्वीप धाम को प्रकट कर रहे थे। उनके प्रति अपराध करना धाम के प्रति अपराध हैं। जो आपके समक्ष धाम को प्रकट करे उनके प्रति अपराध करना भी एक धाम अपराध हैं। नित्यानन्द प्रभु हम सभी के समक्ष धाम को प्रकट कर रहे हैं।
इस प्रकार मैं आज यहाँ उपस्थित सभी भक्तों को कुछ बताना चाह रहा था , राधा गोविन्द मंदिर आपके चिंतन तथा मनन के लिए और कुछ बताएंगे। जिससे आप प्रेरणा ले सके तथा निरन्तर जप कर सके -
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
ध्यान तथा भक्तिपूर्वक जप कीजिए , तथा अत्यंत दयालु हरिनाम के प्रति सभी अपराधों से बचिए।
हरे कृष्ण

English

Today also we have crossed the mark of 300 participants. Today youths from Daman have also joined.
We had been saying that for today's chanting you have to prepare form the day before. So what we did yesterday was also a kind of preparation. In the morning there was maha-Abhishek of Radha-Govind Dev then pushpa abhishek and then in the afternoon we a had wonderful Ratha-yatra. A special feature was that we distributed tons of prasada. Normally we say tons, but we don't actually do it. But yesterday we distributed 2 tons of fruit prasada. All different kinds of fruits. I have never distributed so much prasada on Ratha-yatra the way I did yesterday for hours from cart. People were really fighting, grappling and battling to get the mercy of the Jagannath. I was very happy to give Jagannatha to others in form of prasada. They say ‘anna parabramha’ ( Prasna Upanishad) - Anna i.e. food that is offered to Jagannatha, Krishna becomes 'parabramha’ i.e. develops the qualities of parabrahma. So we attempted those activities. We tried to spread Krishna consciousness. Also 600 books were distributed. Youths were also very enthusiastic in their kirtanas and dancing. Some devotees were dressed like Krishna-Balaram and also Gaur-Nitai. One well built prabhu was also dressed like Hanuman with club and tail at the back. It was a wonderful experience.
We have to take part in festivals, this is recommendation of Rupa Goswami. In Bhakti Rasamrita Sindhu this is one of the points which is stressed. This inspires us. Today as we sit down and chant , those thoughts come to mind. It is favourable in chanting . This conference is a Japa conference. For us today is Nityananda Trayodasi , yet another festival. ISKCON is full of festivals. Goloka is also full of festivals. Everywhere and every step there is a festival. Every word is a song. As you chant Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare, Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare - isn't it a festival? As you chant Hare Krishna , do japa that is also a festival. When we say festival, we are reminded of a feast. What is a festival, if there is no feast, isn't it? No festival is without feast. So chanting is also a festival, so there must be the feast. There is feast for our tongue, feast for our fingers, as we touch Tulasi beads,Tulasi’s lotus feet. Feast for our eyes because meditatively we want to visualize , see the form of the Lord. That kind of feast requires a lot of endeavor. The chanter has to go through lots of austerities, so eventually there is a state of mind, and then there could be tears, “ Oh! When will that day come?” Sri Caitanya Mahaprabhu says in Siksastakam
premanjanchhurita bhakti vilochanen santaha sadiva hrudayeshu vilokyanti. (Brahma Samhita Verse 10)
Then that saintly person sees the Lord, when his eyes are decorated with tears of love. And that is our goal. But to do so we have to practice with chanting - chanting with enthusiasm and determination.
Today being Nityanand Appearance Day over here, I was, thinking, I am dedicating this chanting unto Nityananda Prabhu today. It's time to remember His Lotus Feet, some of his pastimes and some of his activities and chant. That's why I was attempting to dedicate my chanting to Nityanand Prabhu. Nityanand Prabhu is adi-guru. Krishna vande jagatgurum. ( Srimad Bhagavad Gita - dhyanam verse 5) Nityanand vande jagatguru. Nityanand Prabhu is original spiritual master. If he is pleased then yasya prasadaat bhagvata prasadao (Gurvastakam) Chanting is a prayer. I was praying to continue to pray unto Lord Nityanand today. Gaur-Nityanand they are together, founder of this Hare Krishna movement.
ajanu-lambita-bhujau kanakavadhatau sankirtanaika-pitarau kamalayataksau visvambharau dvija-varau yuga-dharma palau vande jagat-priyakaro karunavatarau
I offer my respects unto Sri Caitanya Mahaprabhu and Sri Nityananda Prabhu, whose arms extend down to Their knees, who have golden yellow complexions, and who inaugurated the congregational chanting of the Holy Names. Their eyes resemble the petals of a lotus; They are the maintainers of all living entities; They are the best of brahmanas, the protectors of religious principles for this age, the benefactors of the universe, and the most merciful of all incarnations. (Caitanya-bhagavata 1.1.1)
Specially Sri Krishna Caitanya Mahaprabhu when he was absorbed in his antim (final) Lilas in Jagannatha Puri, he was absorbed in Radha Bhava. radha bhav duti sure valitam. (CC adi 1.5) He did not want Nityanand Prabhu around while Caitanya Mahaprabhu is around Radharani. When Radha and Krishna are together Balaram stays away. This is also the same with Nityanand Prabhu. This is still deeper understanding. Caitanya Mahaprabhu told Nityanand Prabhu to go and preach in Bengal and to take some of his associates with Him. So Nityanand Prabhu had taken his dwadas (12) Gopalas - cowherd boys from Balaram's pastimes. They had also appeared in Nityanand's pastimes. Nityanand Prabhu was ordered, “Go! Don't be here. I am going to be with Radharani.” Nityanand Prabhu had gone to Panihati and performed pastimes there and then all over Bengal propagating the holy name.
Bhakti Vinod Thakur writes - nadiya godrume nityanand mahajan , patiyache nama-hata jivera karan. Nadiya is a district and Nityanand Prabhu has started Namahatta there. Bhakti Vinod Thakur is inviting everyone. Bhagyavan (Lucky), Sraddhavan (faithful) people come, come! Nityanand Prabhu is distributing the holy name of the Lord. He functioned as Guru handing out the holy name. Some others also joined and they were preaching partners. Balaram is Nitai and Brahma had become Brahma Haridas. So they were propagators of the holy name. One day they encountered Jagai and Madhai. They were preaching yavanas , mlechhas and sudras. The low class Kali-yuga folks were being preached to by Nityanand Prabhu. There were lots of inconveniences. Somehow He was trying to push the holy name down the throats of Jagaii and Madhai. They were protesting, not willing and throwing rocks, wine bottles and clay pots. Then Gauranga has to come when His devotees are offended. Gauranga - Sri Krishna does not tolerate. Nityanand was playing a role of a devotee, preacher. He was offended. Then Caitanya Mahaprabhu had come on the scene calling Sudarsan! He was ready to cut the throats of Jagai and Madhai into pieces. He was merciful to Jagai and Madhai in a different way. Not that Gauranga Mahaprabhu wasn't merciful, but he was showing the mercy in a different way. Lord is going to come in the age of Kali with a sword. So that way He also expresses His Mercy. When the Lord kills somebody, that is also the mercy of the Lord. But in the age of Kali, that is not the way to show the mercy. Now Nityanand Prabhu was more merciful. No No!! Not this weapon, another weapon. Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare . His mercy was so profound . Jagai and Madhai’s hearts melted. His kindness was special. Nityanand Prabhu came in the middle of Jagai - Madhai and Mahaprabhu and saved them. Not this way! Hare namaiva kevalam. ( SB. 11.2.38) Only Harinama is the way. He was reminding Caitanya Mahaprabhu. In the age of Kali we save the fallen souls by chanting the holy names. Jagai and Madhai’s names were Jagadanand and Madhavanand. They were brahmins.
So Nityanand Prabhu - nitai vine hai Radha Krishna paite nai. (Song Name: Nitai Pada Kamala Official Name: Nityananda Nistha Song 1; Mana Siksa, by Narottama Dasa Thakura)
Without the mercy of the Nityanand Prabhu, you can't get the mercy of the Radha and Krishna. You cannot get Hare Krishna Hare Krishna which is Radha Krsna. This mantra explains we will not be able to chant without the mercy of Nityanand Prabhu. Nityanand Prabhu and spiritual Masters in parampara of Gaur-Nityanand give mahamantra. On behalf of Nityanand Prabhu they give Radha Krsna. Hare Krishna mahamantra.
So we need to chant and pray or make chanting a prayer. Keep chanting and praying and offering our prayers to the Divine Lotus Feet of Nityanand Prabhu. Get His Mercy to get Radha and Krsna. It is only possible by the mercy of Nityanand Prabhu. Nitai pada kamala koti Candra susitala - Nityanand Prabhu exists eternally. It is not fictitious. He was there and He became air or vapour. He continues to exist and those who are fortunate get to see.
adyapiha lila kare gaura rai ,kon kon bhagyavan dekhe vari pai. Even today the pastimes of Gaur- Nityanand are taking place in Navadwip - Mayapur. Those who are fortunate, intelligent , for them They become visible. Even today they can see. Gauranga!! Nityanand!! Nityanand is a Guru. He took Jiva Goswami on a tour to Navadwip. Gurus ,Spiritual Masters, or dham gurus or pandas learned do this. So he was revealing Navadwip dham unto Jiva Goswami. Offending Him is offending dham. It is one of the dham aparadhs. Offending the personality who reveals the dham. Nityanand Prabhu reveals the dham unto us.
So like this I wanted to say somethings to devotees assembled here. Radha Govinda mandir will explain few more things for your kind consideration, contemplation. So that you take inspiration. Continue to chant.
HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE.
Chant with attention and devotion. Avoid all the offenses against the merciful holy name.
Hare Krishna!

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