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आज अधिकतर भक्त एक साथ बैठकर समूह में जप कर रहे हैं, क्योंकि वे मंदिर में या बेस (BACE) में हैं। यहाँ तक कि बच्चे भी जप कर रहे हैं। लीला माधुरी माताजी अपने पोते और पोतियों के साथ जप कर रही हैं। मैं इस कांफ्रेंस में अपने भाई और शिष्य श्री राम को मेरे गांव से जप करते हुए देखकर अत्यंत आश्चर्यचकित हो गया। हम सभी नए भक्तों का स्वागत करते हैं , क्योंकि उनसे इस कांफ्रेंस में सम्मिलित होने वाले भक्तों की संख्या में वृद्धि हुई हैं। इसको परस्पर संवादात्मक बनाने के लिए हम कुछ प्रश्न लेंगे और उनका उत्तर देंगे
ओजस्विनी माताजी : कुछ दिनों पहले आपने चर्चा की थी कि हमें जप के लिए तैयारी करनी चाहिए। जप करने से पहले मंगल आरती में सम्मिलित होना चाहिए ,तुलसी पूजा करनी चाहिए , शिक्षाष्टकम और हरिनाम के प्रति दस अपराधों को पढ़ना चाहिए , हरिदास ठाकुर से प्रार्थना करनी चाहिए और उसके पश्चात बैठकर जप करना चाहिए। हमें भारतीय समयानुसार ६ बजे इस कांफ्रेंस में भाग लेने हेतु यहाँ रात्रि में २:३० बजे उठना पड़ता हैं। अतः इतना जल्दी उठकर कॉन्फ्रेंस में सम्मिलित होना हमारे लिए अत्यंत कठिन हैं , यदि हम इस तैयारी के विषय में सोचें तो हमें पता नहीं कब उठना पड़ेगा। अतः हमें इसे किस प्रकार इसका प्रबंध करना चाहिए।
गुरु महाराज : मैंने जो कुछ भी कहा उनका पालन सामान्य परिस्थितियों में करना चाहिए। भारत में रहने वाले भक्त उनका पालन कर सकते हैं, परन्तु विदेशों में रहने वाले भक्तों को ये सभी इस कांफ्रेंस से पूर्व करने की आवश्यकता नहीं हैं। आप जप के पश्चात मंगल आरती कर सकते हैं, अथवा जप और मंगल आरती के मध्य आप थोड़ा विश्राम कर सकते हैं , क्योंकि मैंने एक दिन कहा था कि यदि आप पर्याप्त नींद नहीं लेते हैं तो आप योगी या भक्त नहीं बन सकते हैं। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जो बहुत अधिक या बहुत कम सोता हैं , जो बहुत अधिक या बहुत अल्प भोजन करता हैं , वह योगी नहीं बन सकता हैं। अतः आप सुनिश्चित करें कि आप पर्याप्त विश्राम कर रहे हैं। यूक्रैन और रूस के भक्तों को जल्दी सोने के लिए जाना चाहिए जिससे वे इस कांफ्रेंस में सम्मिलित होने के लिए समय पर उठ सकें। " जल्दी सोना और जल्दी उठना मनुष्य को बुद्धिमान और स्वस्थ बनाता हैं " अतः आपको भी बुद्धिमान होना चाहिए। आपको ९:०० बजे सो जाना चाहिए जिससे आप समय पर सुबह उठ सकें। आपको कट्टर अनुयायी अथवा अंध भक्त नहीं बनना हैं। प्रत्येक मनुष्य और प्रत्येक शरीर की अलग अलग आवश्यकताएं , रुचियाँ होती हैं। मैं एक सन्यासी परमपूज्य भक्ति वैभव स्वामी महाराज को जानता हूँ जो मात्र ३ - ४ घंटे सोते हैं और उनका विश्राम सम्पूर्ण हो जाता हैं। परन्तु मैं जानता हूँ कि इतनी कम नींद से में कार्य नहीं कर सकता हूँ। इस प्रकार यह आप के लिए भी लागू होता हैं।
मैं बार बार कहता हूँ कि यदि आप जप करने के लिए अपने सुविधा क्षेत्र से बाहर आकर असुविधाओं का सामना करते हैं तो इससे आपका श्रेय और अधिक बढ़ जाता हैं। इससे आपको और अधिक लाभ होता हैं। भगवान आपसे भारतीय भक्तों की अपेक्षा अधिक प्रसन्न होते हैं। जब हम किसी असुविधा को स्वीकार करते हैं तो आध्यात्मिक भाषा में उसे ही " तपस्या " कहा जाता हैं और तपस्या से सदैव शुद्धता आती हैं - यस्मात शुद्धे ब्रह्म सौक्यम तू अनन्तम अर्थात कोई जान बूझकर असुविधाओं को स्वीकार करता हैं जिससे उन्हें आनंद की प्राप्ति होती हैं। आप सदैव प्रसन्न रहते हैं। आप जब पैदल चलते हैं , तब आपको शारीरिक कष्ट होते हैं यही परिक्रमा के रूप में तपस्या हैं। तब हम कहते हैं कि इस दुःख से आनंद की प्राप्ति होती हैं। आप उन सभी तकलीफों को सहन करते हुए भी पैदल परिक्रमा करते हैं तब अंततः आपको दिव्य आनंद की प्राप्ति होती हैं। रूस और यूक्रैन के भक्तों को समय की व्यवस्था किस प्रकार करनी चाहिए उसके बारे में माधव नन्दिनी माताजी और अधिक बता सकती हैं। शरीर , मन और आत्मा - जो हमारे शरीर के मुख्य भाग हैं , उनकी ठीक प्रकार से देखभाल करनी चाहिए।
गणेश : कृपया हमें शिक्षाष्टकम के श्लोकों के विषय में समझाइये।
गुरु महाराज : जैसा कि मैं बताता हूँ कुछ पाठ्य पुस्तकें , शाश्त्र और सन्दर्भ सामग्री हैं जो हमें और अधिक जप करने के लिए प्रेरित करते हैं। आपको जप करते समय एकाग्र होने में सहायता करते हैं और जप के समय ध्यान लगाने में भी सहायक हैं। अब मैं आपको उन शास्त्रों और निर्देशों के विषय में बताता हूँ। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं शिक्षाष्टकम का अध्ययन करने के लिए निर्देश दिए हैं। आप चैतन्य चरितामृत के अन्त्य लीला में २० वे अध्याय " शिक्षाष्टकम " में इसके बारे में पढ़ सकते हैं , जिसमे भगवान चैतन्य के ८ निर्देशों के विषय में बताया गया हैं। यदि आप इस अध्याय को पढ़ते हैं तो इससे आपको शिक्षाष्टकम के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होगी, क्योंकि उसमे महाप्रभु पहले उन आठ श्लोकों को बताते हैं और तत्पश्चात उन सभी श्लोकों पर अपनी स्वयं की व्याख्या देते हैं। जिस प्रकार श्रील व्यासदेव ने सभी वेदांत सूत्र लिखे और अंत में उन सभी के भाष्य के रूप में श्रीमद भागवतम का संपादन किया, उसी प्रकार भगवान चैतन्य ने भी शिक्षाष्टकम के ८ श्लोक दिए और उनपर स्वयं की व्याख्या देकर उन्हें समझाया । इसीलिए श्रील प्रभुपाद भी कहते हैं कि श्रीमद भागवतम वेदांत सूत्रों पर उसी लेखक द्वारा की गई व्याख्या हैं। यह व्याख्या बहुत बड़ी नहीं हैं अपितु संक्षेप में हैं। पहले आपको उसे पढ़ना चाहिए तत्पश्चात श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर और श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने भी शिक्षाष्टकम पर विस्तृत व्याख्या " सम्मोहिनी भाष्य " नामक ग्रन्थ में दिया , जिसका हमें अध्ययन करना चाहिए। यदि हम उन पर चर्चा करेंगे तो इसमें बहुत समय लगेगा और हमारे मंदिर के भक्तों को श्रृंगार आरती के लिए भी देर हो रही होगी। मैं कभी भविष्य में " शिक्षाष्टकम " पर अवश्य चर्चा करूँगा।
मुरली मोहन प्रभु अहमदाबाद में १७ फरवरी को १ दिन की पदयात्रा करने के लिए आशीर्वाद मांग रहे हैं। वे प्रत्येक दिन अपने पुरे परिवार के साथ इस कांफ्रेंस में सम्मिलित होते हैं। मैं उन्हें आशीर्वाद देने के लिए अत्यंत प्रसन्न हूँ। अन्य भक्त भी इस प्रकार पदयात्रा की व्यवस्था करते हैं तो मैं अत्यंत प्रसन्नता पूर्वक आप सभी को इसकी सफलता के लिए आशीर्वाद देना चाहता हूँ। इस प्रकार आप भी १ दिन के लिए पदयात्रा तथा नगर संकीर्तन और सामूहिक संकीर्तन का आयोजन कर सकते हैं। हरिदास ठाकुर के अनुसार यदि कोई उच्च स्वर में बोलकर जप या कीर्तन करता हैं तो उसे १०० गुना अधिक फल मिलता हैं। यही - " परम विजयते श्री कृष्ण संकीर्तन " हैं। अतः वे हमें सामूहिक संकीर्तन करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
हरे कृष्ण ……..

English

Today many of the participants were chanting together. As they are from temples or BACE. Even kids are chanting. Lila Madhuri Mataji is chanting with her grand son and her daughter, Radhika. I am surprised to see my disciple and my blood brother Sri Ram from my village on the conference chanting. We welcome all the new devotees. As this will increase our numbers and increase our association. To make it little interactive , we will take up some questions.
Ojasvini Mataji: A few days ago I discussed about preparation for chanting. Before chanting attend mangal-aarti, Tulsi Pooja, recite Siksastakam and ten offenses, pray to Haridas Thakur and then take a seat and chant. So question is we have to get up at 2.30am , which is 6.00am here in India. So it's big struggle to get up and chant on conference. Then what to speak of all the preparatory part.So how it should be managed?
Guru Maharaja : Whatever I mentioned should be done in normal circumstances. May be devotees in India can do it. But for devotees from overseas, you don't have to follow all that. You can do mangal-aarti after chanting. Or take some rest in between. Because I also mentioned on one of the days that you cannot be Yogi or Bhakti Yogi if you don't sleep enough. Krsna says too much or too little cannot be Yogi. One who eats too much or too little can't be Yogi. So make sure you have well rested. Devotees from Ukraine and Russia have to go to bed early. 'Early to bed, early to rise makes man healthy wealthy and wise.' So you should also be wise. Sleep at 9.00pm, so that you can get up early. Don't just be a fanatic follower, or follow things blindly. Each person, each body has its own needs, interests and concerns. I know one of the sannyasi's HH Bhakti-Vaibhav swami Maharaja sleeps for 3 - 4 hours and he is done with his rest. I know I can't manage with that less sleep. So this applies to you also.
I keep saying this things from time to time that if you take some trouble, undertake some inconveniences , go out of your way to chant, then that increases your credit. You get more benefit. Lord is more pleased with you , more than with devotees from India. When we undergo some inconveniences, then it's a ‘ tapasya’ in spiritual language. Any tapasya is purifying -yasmat suddhe brahma saukyam tu anantam one willingly undergoes some inconveniences, which results in happiness. You derive pleasure. You walk on your feet, you get distressed physically, so that is a Parikrama tapasya. Then we say “ From blisters to Bliss”. You tolerate those blisters, and still continue walking which ultimately brings bliss, or Madhavnandini Mataji can further advise on how to organize your schedule for devotees from Russia and Ukraine. Body, mind and soul - which constitutes ourselves, has to have some well being.
Ganesh: Please enlighten us on the verse of Siksastakam.
Guru Maharaja: I have been saying, there is some study materials, scriptures, reference material which will help and inspire you to chant. Help you to concentrate while chanting. Make your chanting meditative. I have been talking of literatures and instructions. Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu himself said to study Siksastakam. You will find a chapter entitled Siksastakam in Caitanya Caritamrita, Antya Lila, Chapter 20 which are the 8 instructions of Caitanya Mahaprabhu. If you read and study that chapter it will give you detailed understanding. Because he gives those 8 verses and then gives his own commentary. As Srila Vyasdev wrote Vedant- sutra and then gave commentary on it, which is Srimad Bhagavatam. That is why Prabhupada also writes, Srimad Bhagavatam is a natural commentary on Vedanta-sutra, by the same author. So likewise he gave 8 instructions on Siksastakam and then he gives his commentary on each of those. Not very long or elaborate, but a short commentary. You should read or study that and then Srila Bhaktisiddhanta Saraswati Thakur as well as Srila Bhakti Vinod Thakur have written a commentary of Siksastakam named “ Sammohini Bhasya”. Study that. Because having a session on it will become too long and our temple devotees have to get ready for greeting the Deities. I will make some comments on Siksastakam , sometime in future.
Murali Mohan Prabhu from Ahamdabad is seeking blessings for conducting Padayatra in Ahmedabad on 17th. He joins our session every single day with his family. I extend my blessings for same. Others also could take this up and I am very ready, eager to bless them also. That is a public chanting, chanting congregationally on Nagar-sankirtana on a one day Padayatra. According to Haridas Thakur, one gets hundred times more benefit, by chanting out loud compare to Japa. That is - param vijayate sri krshna sankirtanam (Siksastakam verse 1) So he is promoting that we should do congregational chanting.
Hari! Hari! Gaur Premanande Hari Hari bol !

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