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जप चर्चा पंढरपुर धाम से 2 नवम्बर 2020 हरि हरि..... *जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः* *श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि* *दयित दृश्यतां दिक्षु तावका-* *स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते* आज हमारे साथ 851 स्थानों से भक्त जब कर रहे। *दामोदर मास की जय.....* *कार्तिक व्रत की जय....* कार्तिक व्रत संपन्न करते हुए हमें वृंदावन पहुंचना है या वृंदावन पहुंचकर हमें कार्तिक व्रत को पूरा करना है। इस महीने हरे कृष्ण महामंत्र का जप भी करते हैं तो यह महामंत्र हमको वृंदावन पहुंचा ही देता है क्योंकि इस मंत्र के देवता है राधा कृष्ण मंत्र के देवता होते हैं हर मंत्र के आराध्य देव होते है। इस मंत्र के उच्चारण से इस मंत्र के जप से इस मंत्र के श्रवन कीर्तन से हम उस मंत्र देवता की आराधना कर रहे। हरे कृष्ण महामंत्र के आराध्य है राधा और कृष्ण और कृष्ण के कई सारे नाम हैं राधा श्याम सुंदर या फिर राधा के भी कई सारे नाम हैं लाडली लाल भी कहते हैं बरसाने में वृषभानु नंदिनी की से एक है नंद नंदन श्री कृष्ण राधा रानी है वृषभानु नंदिनी उनके यह विशेष नाम है। एक होता है सामान्य नाम एक है विशेष नाम या भगवान को त्रिलोकीनाथ कहना ऐसे कुछ भी नाम है वह सामान्य नाम है साधारण नाम है साधारण कह के उसका हम महत्व कम तो नहीं कर रहे हैं और नहीं होता वैसे एक मुख्य नाम और गौण नाम ऐसा उल्लेख आता है शास्त्रों में कृष्ण नाम नामों से या राधा रमन रमन एक नाम हुआ श्यामसुंदर एक नाम हुआ वृंदावन बिहारी लाल एक नाम हुआ यशोदा दुलाल एक नाम हुआ ऐसे रासबिहारी उनका नाम है वैसे यह सभी नाम उनके लीलाओं के कारण हैं और भक्तों के साथ उनके संबंध के कारण होते हैं और कुछ नाम तो उनके गुणों के कारण होते हैं भक्तवत्सल भगवान का 1 नाम है भक्तवत्सल भगवान की भक्तवत्सलता के कारण भगवान का नाम भक्तवत्सल नाम हुआ। या फिर श्यामसुंदर नाम क्यों हुआ वह सुंदर तो हैं लेकिन वह श्याम सुंदर है घन एवं श्याम है जब मानसून बादल का जो कलर है उस रंग के कृष्ण हैं इसलिए उनका नाम श्याम सुंदर है। भगवान के अनेक नाम और विशेष नाम है जब हम इन नामों का उच्चारण करते हैं हरे कृष्ण महामंत्र का उच्चारण करते हैं तब हम वृंदावन पहुंचते हैं हरे कृष्ण महामंत्र के देवता आराध्य वो वृंदावन वासी है अयोध्यावासी राम तो वृंदावन वासी श्री कृष्ण उनके नामों का उच्चारण करते हैं तब हम वहां पहुंच जाते हैं या फिर यह भी कहा जाता है कि जब हम उनके नामों का उच्चारण करते हैं तो फिर वह वहां आते हैं जहां आप उनके नामों का उच्चारण कर रहे हैं और वहां भगवान पधार ते हैं जहां आप जप कर रहे हो तो हो गया वृंदावन या तो फिर आप गए वृंदावन उनका स्मरण करते करते उनका नामस्मरण करते करते हैं या तो आप उन वंदावन पहुंच गए या वृंदावन बिहारी लाल भक्तवत्सल दीनदयाल है भगवान का और एक नाम है दीनादयाल नाथ एक तो लोकनाथ त्रिभुवन नाथ और एक नाम है लेकिन फिर भगवान का और एक प्रकार से नाथ कहना दीनदयाल नाथ तो दीन जो दीनदुखी है जो हम बध्द जीव हैं वह दीन है। गरीब बेचारे दीन है। *दीनहीन यत छिल,* *हरिनामे उद्धारिल* *ता’र साक्षी जगाइ-माधाइ* *जो व्रजेंद्रनन्दन कृष्ण हैं, वे ही कलियुग में शचीमाता के पुत्र (श्रीचैतन्य महाप्रभु) रूप में प्रकट हुए, और बलराम ही श्रीनित्यानंद बन गये। उन्होंने हरिनाम के द्वारा दीन-हीन, पतितों का उद्धार किया। जगाई तथा मधाई नामक महान पापी इस बात के प्रमाण हैं।* भगवान ऐसे दीनादयालद्र जब भगवान हम जैसे दीनों को भगवान देखते हैं या भगवान की दृष्टि हमारी और होती है हम पर होती हैं तो फिर क्या होता है कुछ होता है दयालद्र वह दीनानाथ है। भगवान को दीनानाथ भी कहा जाता है दीनों के नाथ *दीनबंधु दीनानाथ मेरी डोरी तेरे हाथ* दीनानाथ एक दिन है एक दीन है दिन मतलब दिवस और दीन मतलब गरीब बेचारा जय दो शब्द है तो दीनदयाल जब दिनों की ओर देखते हैं और फिर क्यों होता है उनके हृदय में आद्रता उत्पन्न होती हैं। *तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः* *नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता* *भगवद्गीता 10.11* *अनुवाद:-* *मैं उन पर विशेष कृपा करने के हेतु उनके हृदयों में वास करते हुए ज्ञान के प्रकाशमान दीपक के द्वारा अज्ञानजन्य अंधकार को दूर करता हूँ |* *तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः* अनुकम्प भगवान का हॄदय हैं आद्रता दिख जाता है दयादत्रा के कारण खासकर हम प्रातकाल में देखते हैं। कई बार हम देखते हैं उद्यान में या खेत में पेड़ों के पत्ते हैं उस पर दवबिंदू उसको आद्रता कहते हैं तो वैसा ही होता है भगवान के हॄदय में आद्रता उत्पन्न होती है। वह है दीन दयालअद्र् भगवान ने कहा है अनुकंपात या भगवान का व्रत है एक कंपपीत होता है। अपने ही जीव की स्थिति को जब वो देखते हैं। इसी लिए भी तो वह अवतार लेते हैं। *लोकांनाम त्राणकारणांत गोलोकंच परित्यज्य लोकांनाम त्राणकारणांत* लोगों को या बद्ध जीव जो परेशानियां झेल रहे हैं उसका कुछ निवारण करने के लिए कुछ इन को राहत देने के लिए या उन को उठाओ बंधन से मुक्त करने के लिए भगवान *गोलोकंच परित्यज्य लोकांनाम त्राणकारणांत* भगवान प्रकट होते हैं। भगवान इस के लिए विख्यात है दीनदयालद्र नाथ नाम से साथ ही जो माधवेन्द्र पूरी की प्रार्थना है उसमें ऐसे हो प्रार्थना करते हैं कि..... हे दीनदयाल नाथ,मथुरा नाथ, कदा अवलोक्यसे..... राधारानी का ये भाव है या वचन हैं वृंदावन को माधवेन्द्रपुरीपाद ने व्यक्त किया उनकी उनके प्रार्थना के लिए वह प्रसिद्ध है। इन दिनों में उनके प्रार्थना और को पुनः पुनः वह कह रहे हैं हे दीनदयाद्र्रनाथ हे मथुरा नाथ कब दोगे दर्शन यह दीनदयालद्र नाथ और मथुरा नाथ हमारी ऑनलाईन परिक्रमा मथुरा पोहोच गई या पोहोच रही हैं। भगवान बन गए मथुरानाथ मथुरा वासी बन गए वृंदावन को छोड़ा... सोडुनिया गोपीया कृष्ण मथुरेसि गेला वृंदावन को छोड़े और अक्रूर ले गए हैं कृष्ण बलराम को मथुरा मथुरा वासी बने कृष्ण और बिचारी गोपियां वीरह के मारे मर रही है। तब उनके यह वचन है कब दर्शन देंगे कब दर्शन देंगे तो यह उच्च भाव यह गोपी भाव है माधवेन्द्र पूरी ऐसी प्रार्थना किया करते थे राधा रानी के भाव है। वैसे यह भाव इतना ऊंचा है चैतन्य चरितामृत में लिखा है इस प्रार्थना के संबंध में से प्रार्थना केवल तीन व्यक्ति ही जानते थे वह थे माधवेंद्र पुरी तो है ही और फिर दूसरे राधा रानी और तीसरे श्री कृष्ण चौथा कोई नहीं था इस प्रार्थना का जो भाव भावार्थ सार है जाननेवाला फिर मथुरा में कृष्ण ने जन्म लिया था परिक्रमा में देख रहे हो या देखोगे सुनोगे मथुरा सोफा गोस्वामी रहे हैं मथुरा के लिए वैकुंठ से भी श्रेष्ठ है मथुरा क्योंकि भगवान का वैकुंठ में जन्म नहीं होता जन्म लेने के लिए वह मथुरा हो जाते हैं वह जन्म मथुरा में लेते हैं। जन्म लेते या प्रकट होते हैं वसुदेव देवकी का पुत्र बनकर विशेष रसास्वादन होगा वात्सल्य रस का आस्वादन कृष्ण भी करेंगे वसुदेव देवकी भी करेंगे ऐसा रसास्वादन और जन्म में लेने की लीला वसुदेव और देवकीनंदन को मथुरा में ही होते हैं बैकुंठ में नहीं इसीलिए वैकुंठ से विशेषताएं मथुरा मथुरा धाम की जय और फिर आगे रुपगोस्वामी कह रहे हैं मथुरा से भी श्रेष्ठ है ब्रजमंडल श्रेष्ठ है *व्रज मंडल की जय.....* जहां द्वादश कानन है और फिर जिस द्वादष कानन में भगवान ने लीला की थी इसलिए ब्रजमंडल मथुरा से श्रेष्ठ हैं। मथुरा से भी श्रेष्ठ है तो गोवर्धन श्रेष्ठ हैं आप इस स्क्रीन में देख रहे हो गिरिराज गोवर्धन की जय...... वैसे गो-वर्धन आप गायों को भी देख सकते हो आप गिन रहे हो कितनी गाय हैं। वन टू थ्री...... गो-वर्धन गो मतलब गाय और वर्धन का मतलब उसका विस्तार या विकास उसकी पुष्टि जो गायकी करता है वह गोवर्धन इसी के साथ इसका नाम गोवर्धन फिर वहां का जो जल है कहां की घास है कंदमूल पर है उनके पिता है गोवर्धन ब्रजमंडल में गोवर्धन श्रेष्ठ हैं। और गोवर्धन से भी श्रेष्ठ है राधा कुंड क्योंकि वह राधा का कुंड है और भगवान को राधा कुंड उतना ही प्रिय है जितनी राधा उनको प्रिय है। वैसे और कोई व्यक्तित्व है जो कृष्ण को अधिक प्रिय होगा पहला क्रमांक राधा से और कोई प्रिय नहीं है राधा जितने प्रिय है उतना ही राधा कुंड कृष्ण को प्रिय है राधा सर्वोपरि तो राधा का कुंडली सर्वोपरि है राधा कुंड से और कोई स्थान श्रेष्ठ नहीं है और मथुरा की अपनी महिमा है ही कृष्ण का जन्म स्थान मथुरा सारे ब्रह्मांड में एक स्थान है जहां भगवान श्री कृष्ण जन्म लिया और वह है मथुरा धाम की जय जन्मे तो मथुरा से उन्होंने प्रस्थान भी किया और फिर गोकुल में और अन्य वनों में गोकुल महाबन है गोकुल को महाबन कहते हैं गोकुल में भी रहे कुछ वर्ष और वीर यमुना को पार किए अकेले नहीं सारे यमुना वासी दिवाली के दिन दामोदर लीला नंद भवन में ही संपन्न हुई डोरी से बांध दिया उखल से वह दिवाली का दिन था। श्रीशुक उवाच एकदा गृहदासीषु यशोदा नन्दगेहिनी । कर्मान्तरनियुक्तासु निर्ममन्थ स्वयं दधि ॥१ ॥ यानि यानीह गीतानि तद्बालचरितानि च । दधिनिर्मन्थने काले स्मरन्ती तान्यगायत ॥२ ॥ *श्रीमद्भागवत 10.9* *श्रीशुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा : एक दिन जब माता यशोदा ने देखा कि सारी नौकरानियाँ अन्य घरेलू कामकाजों में व्यस्त हैं , तो वे स्वयं दही मथने लगीं । दही मथते समय उन्होंने कृष्ण की बाल - क्रीड़ाओं का स्मरण किया और स्वयं उन क्रीड़ाओं के विषय में गीत बनाते हुए उन्हें गुनगुनाकर आनन्द लेने लगीं* *श्रीशुक उवाच एकदा गृहदासीषु यशोदा नन्दगेहिनी* एकदा मतलब 1 दिन की बात है दिवाली का दिन था गोकुल वासी वृंदावन के लिए प्रस्थान किया तो फिर वृंदावन में और अन्य वनों में लीला संपन्न हुई और फिर जब कृष्णा बस 11 वर्षों की हो गए तब लगभग वो किशोर अवस्था को प्राप्त कर रहे हैं अब तक उनकी वृंदावन में वात्सल्य में पुर्ण लीला उस माधुर्य लीला थीं वैसे लीला के तीन प्रकार है या रस है। यह तीन प्रकार के लीलाएं संपन्न हुई यह गोकुल में प्राधान्य था वात्सल्य रस का जब वहां से प्रस्थान किया शक्तावर्त स्थान पर छटीकरा आजकल तो छटीकरा है वहां का साख्य रस संपन्न हुआ है। और वहां पर गोचरण लीला भी हुई है और फिर अंततोगत्वा कृष्णा और बड़े हुए हैं और फिर साधा के साथ और फिर गोपियों के साथ रास क्रीड़ा शरद पूर्णिमा के दिन महारास सम्पन हुआ वो लीलायें भी संपन्न होती है भिन्न भिन्न प्रकार की लीलाओं की संपन्न होने के उपरांत और फिर कंस ने अक्रूर को भेजा था कृष्ण बलराम को लाने के लिए और फिर अक्रुर ले आए वैसे कहना तो आसान है कि अक्रूर ले आएं एक वाक्य में कहां अक्रुर ले आएं परंतु सुखदेव गोस्वामी पूरा अध्याय अक्रूर का वृंदावन के लिए प्रस्थान और उनके सारे भाव कई सारे अनुभव बता रहे हैं वृंदावन में आगमन मतलब नंदग्राम में आगमन उनका नंदग्राम में स्वागत हुआ एक रात वहां बिताने के उपरांत दूसरे दिन की प्रात काल को वहां से प्रस्थान किया उसका बहुत सुंदर वर्णन है अक्रूर जो कृष्ण बलराम को ले आए तब कृष्णा कुछ वर्षों के थे वहां पहुंचने के उपरांत फिर अन्य लीलाएं है मथुरा में प्रवेश वहां पर कई सारे मित्र और ब्रजवासी भी है नंद बाबा और धनुर यज्ञ संपन्न कर रहे हैं मथुरा नरेश कंस इस सब का बहाना बनाकर कृष्ण को बलराम जी को वहां बुलाया था। और फिर कुश्ती का जंगी मैदान भी खड़ा किया कंस ने कुश्ती खेलते खेलते खिलवाते हुए कृष्ण को मारेंगे वे बड़े बड़े पैलवांन कृष्ण को मारना है कृष्ण का वध करना है। लेक़िन वध हुआ कंस का मथुरा में ब्रंग टीला है जहा ब्रंगेश्वर महादेव मथुरा में पिपलेश्वर गोकर्णेश्वर और रंगेश्वर ऐसे चार स्थान है वहां शिवजी निवास करते हैं। उन्हें दिगपाल कहते हैं चारो दिशा में अलग अलग दिगपाल हैं और मथुरा की रखवाली करते हैं रंगेश्वर महादेव के पास एक रंग महल बना था वहीं पर कृष्णा कंस का वध किया हरि हरि यह मथुरा की बहुत बड़ी घटना रही उन दिनों की कृष्ण के समय की हरी हरी और कृष्ण अनन्त है और कृष्ण की लीलाएं भी अनंत है। प्ररिक्रमा को आप जॉइन करते रहिए औरों को प्रेरित कीजिए और उनसे भी व्रत करवाइए कार्तिक व्रत पहले सम्भव नही हुआ था कोई कारण के बजह से वो कहते रहते हैं मरने के लिए समय नहीं है हम कहा जाएंगे परिक्रमा करने लेकिन अभी तो यह कोरोना वायरस की कृपा से भी कह सकते हैं वह भी एक कारण बना है धाम को प्रत्येक घर में पहुंचाया जा रहा है। ऑनलाइन परिक्रमा के माध्यम से आपका काम आसान किया जा रहा है उसका फायदा उठाइए हरि हरि और रही है राधा कृष्ण की मूड में वृंदावन के मूड में या को फायदा करेगा मानसिक परिक्रमा में ठीक है वैसे आप कई भक्त हमें लिख रहे हैं हां हां हमें परिक्रमा पसंद आ रही है थैंक यू धन्यवाद जो ब्रज मंडल परिक्रमा के आयोजक वैसे उनको धन्यवाद तो हमारे जो पूरी टीम है ऑनलाइन परिक्रमा की प्रोडक्शन किया है। आपको आभार तो उनके मानने चाहिए हमारे महात्मा विदुर और स्वरूपानंद प्रभु और कई भक्तों के प्रयास से यह कार्य हो रहा है वृंदावन मंदिर के अध्यक्ष श्री वह भी योगदान दे रहे हैं अंग्रेजी कॉमेंट्स दे रहे हैं। पंचगोड़ प्रभु दे रहे हैं महादेवी माता जी मेरी गुरु बहन उनका भी योगदान दिनांक दिनानुकम्पा माताजी बोहोत बड़ा योगदान हैं और ऐसे कई सारे भक्त हैं साथ ही जो आर्थिक मद्त कर रहे भक्त उनका भी आभार और साथ ही हम परिक्रमा के आखरी दिन सारे नाम दिखाए जायेगे और दिखा भी रहे हैं आप उनके भी आभार मानिये.... *और साथ ही बोहोत आभार श्रील प्रभुपाद जी का* *श्रील प्रभुपाद की जय.....* *राधा श्याम सुंदर,कृष्ण* *बलराम,* *श्री श्री निताई गौर सुंदर की जय.....* *गौर प्रेमानन्दे हरि हरि बोल.....*

English

2 November 2020 Jaya rādhe, jaya kṛṣṇa, jaya vṛndāvan śrī govinda, gopīnātha, madana-mohan Translation All glories to Radha and Krsna and the divine forest of Vrndavana. All glories to the three presiding Deities of Vrndavana--Sri Govinda, Gopinatha, and Madana-mohana. ( Verse 1, Shri Vraj Dham Mahimarita ) gopya ūcuḥ jayati te 'dhikaṁ janmanā vrajaḥ śrayata indirā śaśvad atra hi dayita dṛśyatāṁ dikṣu tāvakās tvayi dhṛtāsavas tvāṁ vicinvate Translation The gopīs said: O beloved, Your birth in the land of Vraja has made it exceedingly glorious, and thus Indirā, the goddess of fortune, always resides here. It is only for Your sake that we, Your devoted servants, maintain our lives. We have been searching everywhere for You, so please show Yourself to us. (SB 10.31.1) You are all welcome, who are chanting from 851 locations. Damodar mas ki Jai!! Kartik mas ki Jai. !! We are supposed to reach Vrindavan by accomplishing Kartik months vows. Or we should complete our Kartik vows by reaching Vrindavan. When we chant Hare Krishna mahamantra, this chant delivers us to Vrindavan. Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Ram Hare Ram Ram Ram Hare Hare Because the deity of this chant is Radha Krishna. Each chant has a significant mentioned dejty. Through the chanting & hearing of a mantra we worship a particular form of Lord. Lord of Hare Krishna mahamantra is Radha Krishna. Hari Hari Krsna has many many other names also. Like Radha Shyamsunder. And Radha also has many other names. In Barsana they are called as Ladli -lal. She is also known as Vrishbhanu Nandini. And Krsna is known as Nand Nandan. There are many other special names for both of them. There are ordinary names and special names also. Lord is also known as Trilokinath, who is the owner of three planets. This is a special name. And ordinary names are also there. We are not degrading them by calling ordinary names. They are never degraded. In scriptures few special names and few ordinary names are mentioned. Like Radha Raman , Shyam Sunder, Vrindavan Bihari Lal are also name. Yashoda Dulal is also a name. Ras Bihari is another name. Few names are assigned due to some specific past time. And few names are assigned for special qualities. As Lord is popular for his unlimited kind compassion towards devotees so he is known as Bhakta Vatsala. Or why Lord is called as Shyam Sunder. ? Because he is very beautiful and his colour is like monsoon clouds so he is known as Shyam Sunder. Like this Lord has various names and has special names also. Hari Hari!. When we call these various names or we call Hare Krishna mahamantra then we immediately reach Vrindavan. Lord of Hare Krishna mahamantra is one who resides in Vrindavan. Lord Ram resides in Ayodhya and Krishna resides in Vrindavan. When we call these specific names then we reach that place respectively. And we can also claim that when we call upon their Lordship’s names then Lord personally arrives wherever his names are being called. And when Lord arrives at the place where you are chanting his name then that place immediately transforms in Vrindavan. Either you are delivered to Vrindavan by remembering Lord and chanting Lord’s names or Vrindavan Biharilal , Deen Dayal or Bhakta Vatsal arrives there. Lord’s one more name is Deen Dayadra Nath and Loknath and Tribhuvan Nath also. Lord is also known by a special name as Deen Dayadra Nath. Deena means fallen conditioned souls or poor helpless and Dayal means merciful. Papi tapi yat chilo Harinaam e uddharilo The Lord looks upon fallen poor conditioned people like us then something happens. Since he is Deena Nath he showers mercy upon us. Deen Bandhu Deena Nath Meri Dori tere hath. There are two meanings of word 'Deena' . One is known as a day time. The other is fallen or forsaken. When the Lord looks upon a helpless soul is approaching him then his heart melts with compassion. tesam evanukampartham aham ajnana-jam tamah nasayamy atma-bhava-stho jnana-dipena bhasvata Translation Out of compassion for them, I, dwelling in their hearts, destroy with the shining lamp of knowledge the darkness born of ignorance.(BG 10.11) Lord’s heart fills with compassion. We see morning dews in gardens or fields or on leaves of trees and creepers; they create dampness and moisture. Such type of dampness does not happen in Lord’s heart. The Lord's heart melts with mercy when he knows the condition of the poor soul. That is why he advents in many forms. golokam ca parityajya lokanam trana-karanat kalau gauranga-rupena lila-lavanya-vigrahah Translation "In the Kali-Yuga, I will leave Goloka and, to save the people of the world, I will become the handsome and playful Lord Gauranga." (Markendaya Pūrana) The conditioned souls are going through miseries so to relieve them from such pains and to deliver them from this material world Lord appears in this world and leaves his Goloka Dham. Therefore he is popular as Deen Dayadra Nath. Hari Hari! Madhvendra Puri is praying like this He Deen Dayadra Nath ayi dina dayadra natha he mathura natha kadavalokyase hrdayam tvad aloka kataram dayita bhramyati kim karoty aham Translation "0 compassionate Lord of the poor and humble! 0 Lord of Mathura! When shall I see You again? Without seeing You, My heart has become very much afflicted. Oh My beloved, I am overwhelmed. What shall I do now?" (Caitanya-caritamrta Madhya 4.197) This mood was expressed by Madhvendra Puri Pad. Madhevendra Puri used to pray again in this verse in his last days. Repeatedly he is saying that He Deen Dayadra Nath , He Mathura Nath when will I see you. ? Our Parikrama also reached Mathura yesterday. So Lord started residing in Mathura by leaving Vrindavan. Soduniya gopina Krishna Mathure se gela Translation Krsna left for Mathura and he left Gopis behind. (Marathi Abhang) Lord left Gopis in Vrindavan. Akrūra escorted Krsna and Balram. Now Krsna becomes a citizen of Mathura and the Gopis are very sad in separation from him. At that time Gopis said these words when we will see you ? This prayer is in a higher superior mood of separation. It is a Mood of Gopi’s. Madhvendra Puri also used to pray like this. Radha Rani also has a similar mood. It is a very superior personal prayer that it is mentioned in Chaitanya Charitamrita only 3 people knew about this prayer. One is Madhvendra Puri and second is Radharani and third is Krsna. There was no fourth person who knew the deep mood of this prayer. Hari Hari! Lord took birth in Mathura. You will see and hear about Mathura in Parikrama. Mathura is better than Vaikuntha. Because Lord never takes birth in Vaikuntha. He goes to Mathura to take birth. He appeared as son of Vasudev and Devaki and relished some special loving exchanges with them. That is known as Vatsalya Bahv. He will perform past times like taking birth and became Vasudev Nandan and being Devaki Nandan. He does such past times in Mathura only and not in Vaikuntha. Therefore Mathura is better. Mathura Dham ki Jai! Srila Rup Goswami explains in Upadesh Amrit that Braj Mandal is better than Mathura. Braj mandal ki Jai. !! There are 12 forests in Braj Mandal. Lord has performed many past times in these 12 forests. Therefore Braj Mandal is better than Mathura. Govardhan is better than them. Giriraj Govardhan ki Jai !! You can see cows in the picture. There are three cows in the picture. Go means cow and Vardhan means to take care and to help to progress or prosper. One who satisfies cows is known as Govardhan. Govardhan provides water, grass, fruits and shelter to cows. Therefore Govardhan is better than Vraj Mandal. And Radha Kund is even better than Govardhan. Because it belongs to Radha so it is dearmost to Lord. Radha Kund is as dear to Lord as much as Radha. Is there any other personality who is more dear to Krsna than Radha ? No. She is the number one. No one else is dearer than Radha. Krsna loves Radha Kunda just the same way as Radha. Radha is sarvato pari. Therefore Radha Kund is also sarvo pari. There is no other place better than Radha Kund. Hari Hari! Mathura has a lot of importance as Lord took birth there. It is not an ordinary thing. Mathura is Birthplace of Krsna. In whole universe there is only one place where Shri Krsna took birth and that is Mathura. Mathura Dham ki Jai ! Immediately after birth he departed for Gokul on the same night. Gokul is also known as Mahavan. For a few years he stayed in Gokul. Then he crossed the Yamunā river along with all residents of Gokul on the day of Diwali. It is the day of Damodar Lila. In Nand Bhavan Damodar Lila has taken place. Lord was tied with the wooden mortar. It was the day of Diwali. śrī-śuka uvāca ekadā gṛha-dāsīṣu yaśodā nanda-gehinī karmāntara-niyuktāsu nirmamantha svayaṁ dadhi yāni yānīha gītāni tad-bāla-caritāni ca dadhi-nirmanthane kāle smarantī tāny agāyata Translation Śrī Śukadeva Gosvāmī continued: One day when mother Yaśodā saw that all the maidservants were engaged in other household affairs, she personally began to churn the yogurt. While churning, she remembered the childish activities of Kṛṣṇa, and in her own way she composed songs and enjoyed singing to herself about all those activities. ( S.B. 10.9.1-2) Srila Sukh Dev Goswami has said once upon a time on that day residents of Gokul departed for Vrindavan. They crossed the Yamunā. And then in Vrindavan and in other forests also Krsna performed various past times. And then when Krsna was 10 or 11 years old it means in early teenage till that time Krsna relished loving exchanges in various past times enjoying Vatsalya bhava, Sakhya bhava with friends and also Madhurya lila pasttimes . In Gokul Vatsalya mood was dominant and then when he left Gokul he stayed in Chatikara. There he relished the sakhya mood. In this cowherd past times also took place. And at last when Krsna was little more older at the age of eight or nine years he began to meet Radha and other Gopis. And then Ras Dance past time took place on Sharad Poornima. These past times took place in Vrindavan. After completion of such various past times Kamsa sent Akrūra to escort Krsna and Balram. Akrūra brought them. It is very easy to say that Akrūra brought them but Sukhdev Goswami has dedicated a whole chapter on Akrūra leaving for Vrindavan then the mood of Akrūra and his experiences. His arrival in Nand gram you will understand it in Parikrama. His welcome in Nandgram. He stayed for one night there and then the next morning he departed from there. It is very beautifully explained. Akrūra brought Krsna and Balram. And there are other pastimes in Mathura. Like entering Mathura with his cowherd friends. Residents of Braj like Nand baba also reached there. The king of Mathura, Kamsa is performing Dhanur Yagna. He called Krsna and Balaram on pretext of inviting them for Yagyana. Huge ground was established for wrestling. And there was a plan to kill Krsna while wrestling. It would have been done through great wrestlers. But this never happened. They wanted to kill Krsna but Kamsa was killed. In Mathura there is Rang-tila or Rang Manch. Rangeshwar Mahadev is close to this in Mathura. Pipeleshwar, Bhuteshwar, Go(karneshwar and Rangeshwwar are four places where Shivji resides. He is known as Dikpal. Dik means directions. In all four directions Shivji is residing and taking care of Mathura. Rang manch is close to Rangeshwar Mahadev. Krsna's killing of Kamsa was a great incidence in Mathura . Hari Hari! Krsna is unlimited and his pastimes are also unlimited. Take part in Parikrama. And inspire others to join it. You can make it as a Kartik Vrat. Earlier it was not possible because of lack of time and busy schedule. But now due to Coronavirus the Parikrama is available at home in the form of Virtual Parikrama. Thus it has been made very easy for you. Take full advantage of this. Hari Hari! It will develop devotion for Radha Krsna and Vrindavan’s mood in your mind. Okay. Many devotees are writing that they liked the Parikrama very much. Thank you maharaj who arranged Braj mandal please. But we should be grateful to the team of virtual Parikrama team. Our Mahatma Vidur Prabhu , Swaroopanand Prabhu, President of Vrindavan temple is also contributing in English commentary. Panch Gaouda Prabhuji is also there. My god sister Mahadevi mataji is also contributing. And Dinanikampa mataji has a major role. Like that many others. Everyday at the end of Parikrama credits are displayed. You can read them and express your thanks to them. And ultimately thank Prabhupada. Srila Prabhupada ki Jai. !! Radha Shyamsunder, Krishna Balram and Gaur Nitai ki Jai !! Gaur Premanande Hari Hari Bol

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