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जप चर्चा 1 अप्रैल 2021 780 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। शीर्षक 1.'कुंभ - अमृत का महोत्सव 2.प्रयागराज - वह स्थान जहा भगवान की दिव्य लीलाएं और उनके भक्तों की लीलाएं संपन्न हुई हैं । 3. 'कुंभ-मेले' की असली झलक वैष्णवों के लिए प्रकट होती हैं, क्योंकि इसमें परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज महंत बने हैं। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ! यह पढ़ सकते हो ? (परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज अपने हाथों में एक किताब पकड़े हुए हैं और पूछ रहे हैं क्या आप यह पुस्तक का शीर्षक पढ़ सकते हो ?) क्या कोई हैं ? क्या नाम हैं इस किताब का ? क्या लिखा है ? यह हिंदी में हैं (गुरु महाराज एक और दूसरी किताब दिखा रहे हैं जो उसी किताब का पंजाबी में प्रस्तुतीकरण है ) और यह पंजाबी में है । इस्कॉन पदयात्रा प्रेस के प्रयासों से मैंने पहले यह किताब अंग्रेजी में लिखी थी और कई भाषा में अनुवाद होते होते, अंग्रेजी से हिंदी , अंग्रेजी से रूसी,अंग्रेजी से गुजराती और अभी यह पंजाबी भाषा में हैं। अब पंजाब भर में लोग कुंभ मेला इतिहास का वर्णन पढ़ेंगे । गौड़िय वैष्णवो के दृष्टिकोण मैं कुंभ या गौड़िय वैष्णवो की समझ इस कुंभ के संबंध में कुछ भीन्न हैं।इसके अनुसार 4 स्थानों पर कुंभ मेला होता हैं, क्योंकि कुंभ से 4 स्थानों पर अमृत गिरा था।प्रयागराज में ,हरिद्वार में , उज्जैन और नासिक में। इसीलिए उन चार स्थानों पर हर १२ बरसों के उपरांत पुनः वह अमृत प्रकट होता हैं।आप सब दौड़ते हो उस अमृत को प्राप्त करने के लिए या नही?उसको पान करने के लिए ही तो कुंभ मेला संपन्न होता हैं । इस समय हरिद्वार में कुंभ मेला हो रहा हैं ,और इस्कॉन का महंत जो कि मैं हूं यहीं बैठा हूं,पंढरपुर में। लेकिन मेला तो हरिद्वार में हो रहा हैं। इस्कॉन का तंबू भी लगा हुआ हैं।हरिद्वार कुंभ मेले में सबका स्वागत हैं।हर कुंभ मेले के अलग अलग स्थल हैं जिनकी महिमा इस ग्रंथ में लिखी हैं।कुंभ मेले का इतिहास तो पहले ही लिखा जा चुका हैं।कुंभ का वर्णन, श्रीमद्भागवत में 8 स्कंध में आप पढ़ सकते हो। सूर-असुर संग्राम और उसी के संबंध में आप पढ सकते हो।हरि हरि ।कैसे सुर और असुर लड़ रहे थे।उसके पहले और कई सारे इतिहास हैं । यह कोरी कल्पना नहीं हैं । हरि हरि ! तो यह इतिहास हैं । कैसे समुद्र का मंथन हो रहा था।इसको श्रीमद्भागवतम् में संक्षिप्त में आप पढ़ सकते हो।कुंभ मेले के संबंध में जो लीलाएं हैं और जो घटनाएं हैं, इसका हम वर्णन हैं। जब सुर और असुर ने मिल कर मंथन करना प्रारंभ किया तब मंदराचल पर्वत डूब रहा था, तो भगवान कछुवा रूप में अवतरित हुए। *क्षितिर् इह विपुलतरे तिष्ठति तव पृष्ठे* *धरणि- धारण-किण चक्र-गरिष्ठे* *केशव धृत-कूर्म-शरीर जय जगदीश हरे* *अनुवाद :- हे केशव ! जय जगदीश ! दिव्य कछुवे के रूप में आपने* *अपनी विशाल पीठ पर मंदार पर्वत को धारण किया और क्षीरसागर* *के मंथन में देव-दानव की सहायता की । विशाल पर्वत को अपनी* *पीठ पर धारण करने से आपकी पीठ पर एक चक्र का चिन्ह बन* *गया जो अत्यंत सुंदर है । कछुवे का रूप धारण करने वाले हैं* *आपकी जय हो!* *( छंद -२, श्री दशावतार-स्तोत्र , "गीत गोविंद" श्री जयदेव गोस्वामी* इस कुंभ मेले के साथ या अमृत प्राप्ति के प्रयास के साथ भगवान के अलग-अलग अवतार प्रकट होते हैं।कछप् ( कुर्म ) रूप और फिर धनवंतरी रूप।जब धनवंतरी कुंभ को लेकर प्रकट हुए,तब सुर और असुर लड़ने लगे।लड़ाई को बंद करने के लिए या फिर असुरों को ठगने के लिए भगवान मोहिनी रूप में प्रकट होते हैं, तो इस प्रकार कई सारे भगवान के अवतार इस कुंभ से हुए हैं । और कई रत्न भी इस कुंभ से प्राप्त हुए हैं,इस कुंभ से 14 रत्न प्राप्त हुए हैं। पहले तो जहर प्राप्त हुआ, जो कि 14 रत्न से अलग हैं और शिव जी ने उस जहर को पान किया और वह नीलकंठ हो गए । फिर बालचंद्र भी उत्पन्न हुए।वह भी एक रत्न हे जो शिवजी को दिया गया और वह चंद्र-मौली हो गए ।इससे कामधेनु भी प्राप्त हुई और उसको ब्राह्मणों को दिया गया । हरि हरि । बली महाराज को 'उच्छेश्रव ' घोड़ा प्राप्त हुआ,इससे ऐरावत हाथी उत्पन्न हुआ और वह इंद्र को मिला।लक्ष्मी का प्राकट्य इस समय पर हुआ हैं , समुद्र के मंथन के समय उतपन्न होने वाले 14 रत्नों में से एक रत्न लक्ष्मी हैं।वैसे लक्ष्मी के 8 प्रकार भी होते हैं।जो अष्ट लक्ष्मी के रूप में प्रसिद्ध हैं।और यह लक्ष्मी आठवां रत्न थी। और ध्यान से सुनो जो में कहना चाह रहा हूं, भागवतम् के 8 वे स्कंध मे 8 वे अध्याय का 8 वा श्लोक ,8 वे रत्न के बारे मे है जो कि लक्ष्मी हैं और फिर भगवान विष्णु को लक्ष्मी प्राप्त हुई। *कंठी कौस्तुभ मणी विराजित।* 14 रत्नों में से कौस्तुभ मणी भी एक रत्न प्राप्त हुआ और यह भगवान को दिया गया। इस प्रकार आप और भी ढूंढो कि कौन-कौन से रत्न प्राप्त हुए ,इसके लिए कुंभ मेला ग्रंथ आपको पढ़ना होगा या भागवत /पुराण को पढ़ सकते हों । कुंभ मेले के संपन्न होने पर जितने लोग वहां इकट्ठे हो जाते हैं, उतने लोग इस पृथ्वी पर और किसी स्थान पर या उद्देश्य से इकट्ठे नहीं होते । इस कुंभ मेले के समय इस पृथ्वी पर सबसे बड़ा समूह होता हैं।ऐसी खासियत हैं, इस कुंभ मेले की।मैं 1977 में कुंभ मेला गया।वहां पर श्रील प्रभुपाद भी पहुंचे हुए थे। तो हमारा अच्छा मिलन संगम हुआ और वहां त्रिवेणी संगम भी हैं ।वैसे वहां सत्संग होते रहते हैं।वहां साधु समागम भी होते रहते हैं।वह भी मिलन ही हैं। या वह संगम ही हैं। तो 1977 मे श्रील प्रभुपाद के सानिध्य और दर्शन का लाभ प्राप्त हुआ । हरि हरि। वैसे श्रील प्रभुपाद 1971 मैं पहली बार जब विदेशी भक्तों के साथ भारत लौटे थे,तो प्रभुपाद ने एक कुंभ मेला उत्सव का 1971 में भी आयोजन किया था ,उसके उपरांत 1977 से अब तक इस्कॉन की ओर से कुंभ मेले में हम लोग इस्कॉन का भी पंडाल प्रस्तुति कर रहे हैं। चारों स्थानों पर कुंभ मेला जब लगता है तो इस्कॉन का पंडाल वहां जरूर होता हैं। मैं भी 1977 से इस्कॉन कुंभ मेला महोत्सव में सम्मिलित होता रहा हूँ लेकिन तब मैं इस्कॉन का महंत नहीं था। हरि हरि ! लोग समझतें थे कि इस्कॉन कोई विदेश का संगठन हैं या यह वृंदावन का मंदिर अंग्रेजो का हैं और ये CIAS(केंद्रीय खुफिया एजेंसी /संस्था)के हैं, ऐसे ही कई सारी गलत धारणाएं थी कि यह हिप्पी हैं।लोग ऐसा समझतें रहे,बहुत समय बीत गया हम को समझाते बुझाते हुए और फिर अंत में 2004 मे वह समझ गए।कुंभ मेले अखाड़ों के महंतो की जो यह समाज या समिति हैं उस समिति में इस्कॉन को महंत बनाने के लिए हमारे दीनबंधु प्रभु और सार्वभोम प्रभु के प्रयास 10-20 सालों तक चलते रहे और अंत में 2004 में उज्जैन में उन्होंने इस्कॉन को महंत बनाने का निर्धारण किया और इस्कॉन की ओर से मुझे चुना गया। इस्कॉन और प्रभुपाद की ओर से 2004 में उज्जैन कुंभ मेले के समय हम मैं ही महंत बन गया। इस किताब में यह फोटोग्राफ यदि आप देख सकते हो,मुझे जो इस महान उत्सव का महंत मनाया गया उसकी तस्वीर आप देख रहे थे । इस किताब में ऐसा भी वृतांत हैं जब चैतन्य महाप्रभु प्रयागराज गए थे तो वो कुंभ मेला का समय नहीं था, वह माघ मेले का समय था । जब चैतन्य महाप्रभु वृंदावन से जगन्नाथ पुरी लौट रहे थे, तो रास्ते में प्रयागराज आ गया। महाप्रभु ने माघ मेले में गंगा के तट पर कीर्तन किया।माघ मेले का समय था यानी जनवरी-फरवरी का समय। उस समय पर गंगा में जल कम होता हैं धारा तो होती हैं, लेकिन जल कम होता हैं, किंतु चैतन्य महाप्रभु ने वहां पर अपने कीर्तन के द्वारा बाढ़ ला दी। हरि नाम की बाढ। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे* *हरे।* और क्योंकि सारे लोग वहां माघ मेले के लिए एकत्रित हुए थे तो वहां पर जितने भी लोगे एकत्रित थे सब लोग उस कीर्तन से आकर्षित हुए। ना सिर्फ कीर्तन से बल्कि चैतन्य महाप्रभु के सौंदर्य और उनके नृत्य से भी ।सभी लोग आकर्षित होकर उनके पीछे पीछे जा रहे थे। उस समय चैतन्य महाप्रभु वेनुमाधव के दर्शन के लिए जा रहे थे। तो तभी वहां पर रूप गोस्वामी और उनके भ्राता सनातन उन्हें मिले।उनका दूर से दर्शन करते ही उन्होंने प्रणाम किया और फिर मिलन भी हुआ।हरि हरि।। *॥ नमो महावदान्याय कृष्णप्रेमप्रदाय ते* *कृष्णाय कृष्णचैतन्यनाम्ने गौरत्विषे नमः ॥* अनुवाद : - हे सबसे महान करुणामई अवतार! आप स्वयं कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट हो रहे हैं।आपने श्रीमती राधारानी के सुनहरे रंग को ग्रहण किया है, और आप कृष्ण के प्रेम को व्यापक रूप से वितरित कर रहे हैं।हम आप के प्रति हमारे सम्मानजनक दंडवत प्रणाम करते हैं। (श्री कृष्णा चैतन्य महाप्रभु प्रणाम मंत्र रूप गोस्वामी के द्वारा । ) यह सब चैतन्य चरितामृतम में वर्णित हैं कि चैतन्य महाप्रभु किस प्रकार रूप गोस्वामी को 10 दिनों तक उपदेश दे रहे थे और इन ही सब बातों का हमने उल्लेख किया।यह सब आपको कोई नहीं बताएगा की गोडिय वैष्णवो का कुंभ मेले के प्रति क्या दृष्टिकोण हैं जिसका उल्लेख इस ग्रंथ में हुआ हैं। जब श्रील प्रभुपाद गृहस्थ थे वह प्रयाग में रहते थे और प्रयाग में प्रयाग फार्मासी चला रहे थे और गौडिय मठ से जुड़े हुए थे और उसकी सहायता करते थे।वह गोडिय मठ श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद का था। श्रील प्रभुपाद वहां पर कई सालों तक थे। श्रील प्रभुपाद भी कुंभ मेले में सम्मिलित हुआ करते थे,उसका भी वर्णन इसमें हैं और श्रील प्रभुपाद की दीक्षा भी 1932 -1933 में प्रयाग में ही हुई और वानप्रस्थ भी श्रील प्रभुपाद ने प्रयाग में ही लिया।यह सब आपको बातें पता होनी चाहिए। उनकी धर्म पत्नी ने ,उनको पत्नी कहे या क्या कहें उन्होंने श्रील प्रभुपाद के मोटे मोटे भागवतम ग्रंथ के सैट को बेच दिया था ।जैसे हम कबाड़ी लोगो को हमारी रद्दी का ढेर बेचते हैं , वैसे ही उन्होंने वह बेच के कुछ पैसे लेकर चाय -बिस्किट खरीदें थे। चाय के साथ बिस्किट खाने के लिए । जब श्रील प्रभुपाद को यह पता चला ,तो प्रभुपाद ने उनसे पूछा,बोलो क्या चाहती हो?"चाय या फिर में",तुम चाय चाहती हो या मुझे चाहती हो ? तो उन्होंने थोड़ा हंसी मजाक में कहा था निश्चित ही चाय !! I तो फिर प्रभुपाद ने कहा कि ठीक हैं।अब पुनः नहीं मिलेंगे। प्रभुपाद ने तुरंत वहां से प्रस्थान किया, सीधे झांसी की ओर। पहले भी वह झांसी जाया करते थे। वैसे श्रील प्रभुपाद की प्रयाग फार्मेसी पूरे उत्तर भारत मे थी और उसके डिस्ट्रीब्यूटर(वितरक) भी थे ,जो उनकी दवाएं बेचते थे। इस बार जब प्रभुपाद घर से गए तो यहां से उनके वानप्रस्थ आश्रम की शुरुआत हुई। इसी के साथ हमने संक्षिप्त में प्रयाग और कुंभ के मेले का वर्णन किया हैं। नासिक में भी चैतन्य महाप्रभु कुंभ के मेले में गए थे और उन्होंने गोदावरी में स्नान किया था। नासिक का कुंभ का मेला गोदावरी के तट पर होता हैं और प्रयाग का कुंभ का मेला गंगा यमुना सरस्वती तीनों के संगम पर होता हैं। उज्जैन का कुंभ का मेला शिप्रा नदी के तट पर होता हैं। जहां एक समय कृष्ण और बलराम संदीपनी मुनि के आश्रम के गुरुकुल में रहा करते थे। उज्जैन , नासिक ,हरिद्वार एवं प्रयाग जैसे स्थानों कि महिमा इसमें लिखी हई हैं। हमारा इस्कॉन अब इन चारों स्थानों पर हैं। जैसे कि इस्कॉन प्रयागराज है , इस्कॉन हरिद्वार है , इस्कॉन नासिक है और इस्कॉन उज्जैन भी है । हमने इन सभी चारों इस्कॉन मंदिरों का वर्णन इस पुस्तक में किया हैं, इन मंदिरों, स्थानों और जिन विग्रहो कि सेवा वहा की जाती हैं, उन सभी का चित्र आप देख पाओगे । इस प्रकार यह ग्रंथ पंजाबी भाषा में उपलब्ध हो चुका है । यदि कोई आपका पंजाबी मित्र है तो आप उसको यह दे सकते हैं और यह भी देखना कि आपके पास यह ग्रंथ हैं कि नहीं। अभी तक मराठी भाषा में अनुवाद नहीं हुआ हैं । वह भी करना हैं ,उसको भाषांतर करने के लिए हमें अनुवादकों की जरूरत हैं ताकि मराठी जनता का भी कल्याण हो। मैं अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रहा हूं की कुंभ मेला ग्रंथ और एक भाषा में प्रकाशित हो चुका है और पंजाब भर में लोग इसको पढ़ेंगे । राधिका बल्लभ दास ब्रह्मचारी प्रभु ने प्रयास किया हैं।वह पहले अरावडे में रहते थे और अब वह नोएडा मे हैं । उन्होंने ही भाषांतर की सेवा भी की और इसको उन्होंने चंडीगढ़ मैं छपवाया और वे इसके वितरण कि योजना बना रहे हैं ,और यह भी कह रहे हैं कि पूरे पंजाब में पदयात्रा करते हुए सभी ग्रामों और नगरो में जाकर इस ग्रंथ का वितरण करने की उनकी योजना है । हरि हरि ! गोर प्रेमानंदे हरि हरि बोल !!

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