Hindi

*हरे कृष्ण* *जप चर्चा पंधरपुर धाम से* *दिनांक 25 मई 21* जय नरसिंह , श्री नरसिंह , जय जय नरसिंह । प्रल्हादेश । ओम नमो भगवते नरसिंहाय । वैसे ओम नमो भगवते वासुदेवाय होता है वैसे ओम नमो भगवते नरसिंहाय आज है , या वासुदेव ही बनते हैं । वासुदेव सर्वमिदी , वासुदेव ही नरसिंह बनते हैं फिर ओम नमो भगवते नरसिंहाय । राम आदि वासुदेव ही बनते है , सर्वमेस्ष्ट नाना अवतार , वासुदेव कृष्ण के कई सारे अवतार है । वह सभी भगवान है । ओम नमो भगवते मतलब भगवान , भगवान को नमस्कार । नमः भगवते , भगवते नमः , भगवान को नमस्कार । आज प्रकट होने वाले भगवान नरसिंह देव , नरसिंह चतुर्दशी महोत्सव की जय । उनको हमारा प्रणाम , आप भी प्रणाम करना चाहोंगे , कोई जबरदस्ती तो नहीं है लेकिन , हरि हरि । भगवान को नमस्कार कीजिए । ओम नमो भगवते नरसिंहाय , जैसे हम कहते हैं वैसे हमको करना चाहिए । जैसे हम कहते हैं वैसे हमको सोचना चाहिए और वैसे हमको करना चाहिये । फिर क्या होगा ? *एवं कायेन मनसा वचसा च मनोगतम् । परिचर्यमाणो भगवाम्भक्तिमत्परिचर्यया ॥५१* ॥ *पुंसाममायिनां सम्यग्भजतां भाववर्धनः ।* *श्रेयो दिशल्यभिमतं यद्धादिषु देहिनाम् ॥ ६ ॥* (श्रीमद्भागवत 4.8.59) *अनुवाद :* इस प्रकार जो कोई गम्भीरता तथा निष्ठा से अपने मन , वचन तथा शरीर से भगवान् की भक्ति करता है और जो बताई गई भक्ति - विधियों के कार्यों में मग्न रहता है , उसे उसकी इच्छानुसार भगवान् वर देते हैं । यदि भक्त भौतिक संसार में धर्म , अर्थ , काम भौतिक संसार से मोक्ष चाहता तो भगवान् इन फलों को प्रदान करते हैं । वाचा से कहा फिर मन पूर्वक कहा , *मनो मध्ये स्थितो मंत्र मंत्र मध्ये स्थितं मन मनो मंत्र समायुक्तम येतधी जप लक्षण ।* मंत्र को मन में स्थित किया और फिर काया उससे भी कुछ सिर को झुकलिया या साष्टांग दंडवत प्रणाम किया , यह फिर कायेन मनसा वाचा हुआ । जैसे हम कहते हैं वैसा ही हम सोचे या सोचना और कहना , या कई बार हम कहते तो है लेकिन सोचते नही । कहते एक है और कहीं सोचते और ही है , ऐसा भी कई बार होता है । हरि हरि । यह अभी थोड़ी देर आपको शिक्षा या स्मरण दिलाया जा रहा है । वैसे मैंने यह सोचा तो नहीं था कि यह सब कथा के अंतर्गत होगा लेकिन अब यह सब भगवान ही प्रेरणा देते हैं और कुछ बातें बुलवाते है । केवल हमने कहा ही नहीं है , ओम नमो भगवते नर्सिंहाय और उनके कई सारे नाम है । वैसे नरसिंह सहस्त्र नाम भी हैं , नरसिंह के हजार नाम है लेकिन नरसिंह कृष्ण ही है तो नरसिंह के भी नाम है । जो इन नामों का उच्चारण करेंगे , वह कहते ही है ओम नमो भगवते नरसिंहाय , इत्यादि इत्यादि नाम कहेंगे फिर नमः कह ही रहे हैं । नमस्कार भी हमने किया । *“मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु |* *मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे || ६५ ||”* (भगवद्गीता18.65) अनुवाद सदैव मेरा चिन्तन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो | इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे | मैं तुम्हें वचन देता हूँ, क्योंकि तुम मेरे परम प्रियमित्र हो | यह जो कृष्ण ने गीता में कहा है उसको भी हमको आज करना है । उनका स्मरण करना है , आज नरसिंह भगवान का स्मरण करना है आज उनका दिन है , उनके प्राकट्य का दिन है । *मन्मना भव मद्भक्तो* उनके भक्त बनना है । प्रल्हादेश , भगवान का एक नाम है । आपने सुना है? *प्रल्हादेश* जय नरसिंह श्री नरसिंह , जय जय नरसिंह । प्रल्हादेश मतलब क्या? प्रह्लाद जमा ईश , प्रल्हाद के ईश आप ईश हो , ईश्वर हो , परमेश्वर हो किनके ? प्रह्लाद के , प्रल्हादेश । प्रह्लाद के ईश तो फिर हमारे भी है । *मन्मना भव मद्भक्तो* हमको नरसिंह भगवान का भक्त बनना है वैसे यह कोई नई बात नहीं है , चलो आज भगवान के भक्त बनते हैं , हम सदा के लिये ,सदैव ही हम भगवान के भक्त हैं , आज स्मरण दिलाया जा रहा हैं । हां , हा , आप भगवान के भक्त हो ही , नित्य दास हो । *मन्मना भव मद्भक्तो* उनका स्मरण करना है, उनका भक्त बनना है और मध्य आदि उनकी आराधना करनी है इसलिए आज यज्ञ भी है , यह आराधना ही है । इस यज्ञ के माध्यम से हम आराध्या करेंगे , प्रार्थना करेंगे , नरसिंह भगवान की आराधना करेंगे , स्वागत करेंगे , उनकी अर्चना करेंगे उनका स्वागत करेंगे और प्रणाम करेंगे । *मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु |* नमस्कार भक्ति का अंग है । *नमस्ते नरसिम्हाय प्रह्लाद आल्हाद दायिने* प्रतिदिन हम ऐसी प्रार्थना करते हैं , श्रील प्रभुपाद ने हमको यह प्रार्थना सिखाई है । हमने कल या परसों कहा था कि श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु नरसिंह भगवान को जगन्नाथपुरी मंदिर में यह प्रार्थना करते थे जो प्रार्थना हम करते रहते हैं , नमस्ते नरसिंहाय प्रह्लाद अल्लाह दायिने । प्रल्हाद को अल्लाह देने वाले , दायिने मतलब मेरा प्रणाम , शुरुआत में नमः है ना ? नमः सब जगह जुड़ेगा । नमस्ते नरसिंहाय । नमस्ते प्रल्हाद आल्हाद दायिने । नमस्ते शीलटंका नखालये, यह थोड़ा संस्कृत का ज्ञान हुआ , शुरुवात में कहा है ।नरसिंह भगवान की जय । वह विघ्नहर्ता है । वैसे हम गणेश के बजाय , वैसे गणेश विघ्नहर्ता है , हम वैष्णव नरसिंह भगवान की शरण लेते हैं उनके आश्रय में जाते हैं और उन्हीं से हमारे विघ्न का विनाश करवाते हैं । वैसे अंततोगत्वा तो वही करते हैं , हम गणेश जी के पास जाते हैं या हम सीधे ही जाते हैं । बीच में कोई व्यक्ति नहीं , हम सीधे नरसिंह भगवान के पास जाते हैं और वह प्रसिद्ध भी है , भक्तिविघ्न विनाशक नरसिंह भगवान की जय । यह भगवान का नाम भी है और यह भगवान का विशिष्ठ भी है । भक्ति विघ्न विनाशक , भक्ति के विघ्नों का नाश करने वाले , जैसे प्रल्हाद महाराज के भक्ति में विघ्न बन रहे थे तो हिरण्यकश्यपु का ही विनाश किया । उस विघ्न को हटाया मिटाया , हिरण्यकशिपु को मिटा दिया । हरि हरी । संभावना है , निश्चित ही है वह हिरण्यकशिपु हम ही है , छोटे मोटे हम हिरण्यकशिपु है । यह नही की उंगली करके दिखाये वह हिरण्यकश्यपु । हमें भी हिरण्यकशिपु छुपा हुआ है , हमारे भाव में , हमारे कार्यकलापों में , यही प्रार्थना करे कि नरसिंह भगवान प्रगट होकर हममें जो कुछ हिरण्यकशिपु का अवशेष बचा है , दुनियावाले हिरण्यकशिपु को हीरो बनाते रहते हैं । बॉलीवुड का कोई हीरो भी हिरण्यकशिपु ही होता है । हिरण्यकशिपु मतलब ? हिरण्य मतलब सोना , जो सोना चांदी चाहता है , संपत्ति जुटाना चाहता है तो वह हो गया हिरण्यकशिपु या हिरण्य मतलब सोना । बॉलीवुड हीरो भी होते हैं वह धन जुटाना चाहते हैं और कश्यपू मतलब पलंग या बेड जिस पर हम सोते है । वहीं पर , *निद्रया हियते नक्तं व्यवायेन च वा वयः । दिवा चार्थेहया राजन् कुटुम्ब भरणेन वा ॥ ३ ॥* (श्रीमद्भागवत 2.1.3) ऐसे ईर्ष्यालु गृहस्थ ( गृहमेधी ) का जीवन रात्रि में या तो सोने या मैथुन में रत रहने तथा दिन में धन कमाने या परिवार के सदस्यों भरण - पोषण में बीतता है । हम सब , दुनियावाले हिरण्यकशिपु के चेले , शुकदेव गोस्वामी ने कहा है आप मुझे आप दोष नहीं देना । श्री शुकदेव गोस्वामी उवाच , उन्होंने कहा हिरण्यकशिपु की परिभाषा वह भी सुना रहे है , कौन है यह हिरण्यकशिपु ? *निद्रया हियते नक्तं* रात्रिको गवाते है और *व्यवायेन च वा वयः* वय मतलब आयु , तुझ वय काय बाबा? आयु। व्यवायेन मतलब स्त्री पुरुष संघ में, स्त्री संग में पुरुष संग में अपना जीवन , अपनी आयु अपनी रात बिताते रहते हैं । हरि हरि । ऐसे लोग ही हमारे हीरो होते हैं । हरि हरि । मुझे जल्दी बताना होगा , सात दिनों की कथा तो नहीं है । सात दिवस की कथा तो नहीं है लेकिन अब हमारी प्रार्थना यह होनी चाहिए कि हमें जो हिरण्यकशिपु है , *“परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |* *धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे || ८ ||”* (भगवद्गीता 4.8) अनुवाद भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ | परित्राणाय साधुनाम आप प्रगट होते हो । मुझे पहले साधु तो बना दो , अगर हम साधु है तो फिर हमारी रक्षा होगी । हम सोच रहे हैं कि हमारी भगवान रक्षा क्यों नहीं कर रहे ? क्यों नहीं कर रहे? क्यों नहीं कर रहे? तुम साधु नहीं हो इसलिए रक्षा नहीं कर रहे हैं , साधु बनकर तो देखो । *सत्यं विधातुं निजभृत्यभाधित व्याप्ति च भूतेष्वखिलेषु चात्मनः ।* *अदृश्यतात्यद्भुतरूपमुद्द्वान् स्तम्भे सभायां न मगं न मानुषम् ॥* (श्रीमद्भागवत 7.8.17) अपने दास प्रहाद महाराज के वचनों को सिद्ध करने के लिए कि वे सत्य हैं - अर्थात यह सिद्ध करने के लिए कि भगवान् सर्वत्र उपस्थित हैं , यहाँ तक कि सभा भवन के खभे के भीतर भी हैं - भगवान् श्री हरि ने अपना अभूतपूर्व अद्भुत रूप प्रकट किया । यह रूप न तो मनुष्य का था , न सिंह का । इस प्रकार भगवान् उस सभाकक्ष में अपने अद्भुत रूप में प्रकट हुए । भागवत में कहा है *स्तम्भे सभायां न मगं न मानुषम्संभ्रमा* भगवान प्रकट हुए , स्तंभ से प्रकट हुए और कैसे थे ? नर भी नही थे , पूरे पशु जैसे भी नहीं थे और मनुष्य जैसे भी नहीं थे । नरहरि थे , *केशवधृत नरहरि रूप* नर मतलब मनुष्य हरि मतलब सिंह , नरहरी जो भगवान का नाम है । हरि मतलब क्या होता है ? हरि मतलब सिंह होता है ।हरि इस शब्द का एक मतलब या शब्दार्थ सिंह होता है । हरी मतलब सिंह तो नरहरी मतलब नर्सिंग । हिरण्यकश्यपु ने भी देखा उस स्तंम्भ से भगवान प्रकट हुए और उन्होंने क्या किया ? *परित्राणाय साधुनाम* प्रल्हाद महाराज की जय । प्रल्हाद की रक्षा की , कैसे रक्षा की ? *विनाशाय च दुष्कृताम् |* उस दृष्ट हिरण्यकश्यपु का संहार करकेब। हमारी प्रार्थना होनी चाहिए कि भगवान हममें या संसार में जहां कहा यह हिरण्यकशिपु छुपा हुआ है ,यह वायरस है ,कोरोनावायरस है । क्या कोरोनावायरस को मारें भगवान की हिरण्यकश्यपु को मारे ? आप क्या चाहोगे? आपकी प्रार्थना क्या होगी? हरि हरि । अरे भाई कितने वायरस को मारेंगे , कितने सारे वायरस है । एक को मार दिया तो दूसरा पैदा हो जाता है , तीसरे को मारा तो चौथा पैदा होता है कुछ ब्लैक फंगस उत्पन्न हुआ तो किसको किसको मारोगे? मैं ऐसे नही मरूँगा ,अंदर नहीं मारना , बाहर नही मारना , पशु नही मारेगा , मनुष्य नही मारेगा , यह वायरस नही मारेगा , यह जन्तु नही मारेगा ,तो क्या हम मृत्यु से बचेंगे? मृत्यु से बचना नही है , मृत्यु तो होनी ही है, एक बार तो मृत्यु होनी ही है । *“जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च |* *तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि || २७ ||”* (भगवद्गीता 2.27) अनुवाद जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के पश्चात् पुनर्जन्म भी निश्चित है | अतः अपने अपरिहार्य कर्तव्यपालन में तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए | सर्वोत्तम बात यह है कि हम में जो हिरण्यकशिपु है या हममे जो काम है , लोभ हैं , क्रोध है , मद है , मोह है , मत्सर्य है इन शत्रुओका नरसिंह भगवान विनाश करें और हमें भगवान भक्त बना दे । हमें भगवान भक्ति दे, हिरण्यकशिपु शीलटंका नखालये अपने नखों को उन्होंने शीला बनाया । नखालये , नख आप जानते है ? मिश्रा जी ? नख , नाखून । आलय मतलब कई सारे बड़े तिष्ण नाखून है नरसिंह भगवान के , इसलिए नरसिंह भगवान का एक नाम नखालये है । ऐसे नखालये को मेरा नमस्कार । जिन नाखूनों से , नाखून उस सूची में नहीं था ना? मैं ऐसे नहीं मारा जाऊंगा , मैं वैसे नहीं मारा जाऊंगा तो नाखून उसमें नहीं था इसलिए नाखून । हिरण्यकशिपु का पता नहीं किस को ठगाने का प्रयास चल रहा था लेकिन ठग के लिये यहां भगवान महा ठग बने हैं । महा ठग नरसिंह भगवान की जय । (हसते हुए )है , वह ठग है तो भगवान उन ठगों के लीडर हैं । चोर है तो फिर वह उनके भी , चोरों के भी लीडर है । हरी हरी। *इतो नरसिंह ततो नरसिंह , यतो यतो यामी ततो नरसिंह* भगवान नरसिंह सर्वत्र हो , यहां हो , वहां हो , अंदर हो , बाहर हो , *बहिर नरसिंह , हृदये नरसिंह , नरसिंहाम आदि शरणम प्रपद्ये* ऐसे नरसिंह भगवान के में शरण में जाता हूं , उनको बारंबार प्रणाम करता हूं । यह प्रार्थना है जो अभी हमने आपको सुनाई । नमस्ते नरसिंहाय से लेकर शरणं प्रपद्ये प्रपद्ए तक और एक प्रार्थना हम उसीके साथ गाते हैं , प्रभुपाद ने हमको सिखाई है , वह है जय जगदीश हरे । यह दशावतार स्त्रोत्रों में से एक स्त्रोत्र है । *तवकर कमलवरे नखम अद्भुत श्रृंगम दलित हिरण्यकश्यपु तनु भृंगम केशव ध्रुता नरहरि रूपा जय जगदीश हरे , जय जगदीश हरे* यह गीत गोविंद में यह दशावतार स्तोत्र आता है। कवि जयदेव गोस्वामी की यह रचना है , यह प्रार्थना हम प्रतिदिन करते ही हैं आज भी हमको करनी है । *केशव धृत नरहरि रूप* केशव धृत मतलब केशव ने धारण किया या केशव ही नरहरी बने । केशव धृत राम शरीर , केशव धृत कृम रूप ।10 अवतार के लिए कहा है शे केशव धृत , केशव धृत बुद्ध शरीर। यह केशव ही है जो कृष्ण से अलग नहीं है कृष्ण ही है इस रूप में , नरसिंह रूप में आज के दिन सतयुग में देखिए । कुछ 15 20 लाख वर्ष पूर्व की बात है और उस दिन भी जब यह वैशाख शुक्ल चतुर्दशी आ गई तो उस समय भी वैशाख मास चलता था और शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष चलता था और जब चतुर्दशी आ गई , आज चतुर्दशी है । यह इतिहास है , हमारे शास्त्र में पुराना इतिहास है । भागवत पुराण है तो ऐसी अचूक जानकारी और ध्यान देने वाले यह ग्रंथ है । भागवतम से पता चलता है वैसे सातवें स्कंध में भगवान नरसिंह की कथा है , कई अध्यायो में यह नरसिंह भगवान की कथा आती है । प्रारंभ से लेकर आठवां , नौवा इस तरह दसवां अध्याय , लगभग 10 अध्याय में नरसिंह भगवान की सप्तम स्कंध में कथा आती है । अधिक समय शुकदेव गोस्वामी ने नरसिंह भगवान के साथ बिताया है । नरसिंह भगवान की कथा फिर प्रल्हाद आ गए , प्रल्हाद का सब चरित्र आ गया तो उसका भी आपको अध्ययन करना है , पढ़ना है, सुनना है, सुनाना है । ठीक है अब मुझे रुकना है । क्योंकि यज्ञ का समय हो चुका है । ठीक है । बने रहिए । जप पूरा कीजिए मैं जहां हूं वहां से ही जब करते रहते हैं । जप में लगे हो अदृश्य मत हो जाओ । ठीक है । हम यही रुकते है । नरसिंह चतुर्दशी महोत्सव की जय । प्रल्हाद महाराज की जय । नरसिंह भगवान की जय। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।

English

Russian