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जप चर्चा, 26 मार्च 2021, पंढरपुर धाम. हरे कृष्ण, 668 स्थानों से भक्त जप के लिए जुड़ गए हैं। आप लोगों को पूर्व सूचना दी गई है उसके अनुसार कार्यक्रम में थोड़ा सा परिवर्तन, कुछ बदलाव हो रहे हैं। 6:30 बजे हैं जप चर्चा गौर कथा शुरू होगी। फिर दो दिन ही रह गए हैं गौर पूर्णिमा के लिए। आप सब उत्साहित हो, वह दिन दूर नहीं है। वह मंजिल भी दूर नहीं है। गौर पूर्णिमा महोत्सव संपन्न होना ही है। और यह कौन सा साल है 535 वा मैंने कुछ पढ़ा तो नहीं है, किंतु श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य का आपको पता होना चाहिए। 1486 में चैतन्य महाप्रभु प्रकट हुए। यह कोई काल्पनिक व्यक्ति नहीं है। यह एक ऐतिहासिक घटना है। श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु सचमुच प्रकट हुए। सचमुच प्रकट हुए। और मायावादी यह बात समझ नहीं सकते। मायावादी जो कृष्ण अपराधी हैं वह यह बात समझ नहीं सकते। श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु कृष्ण की तरह अजन्मा होते हुए भी जन्म लेते हैं। सची गर्भ सिंधु हरि इंदु अजनी ऐसा उल्लेख चैतन्य चरितामृत में है। ऐसा लिखा है सची गर्भ सिंधु शची माता के गर्भ को कहां है सिंधु। सागर से ही कई बार मानो चंद्र का उदय होता है। सिंधु से ही सागर से ही मानो चंद्र उदय होता है, ऐसा हम अनुभव करते हैं। शची माता के गर्भ सिंधु से अजनी मतलब जन्मे, कौन जन्मे में हरि इंदु। हरीशचंद्र चैतन्यचंद्र प्रकट हुए। गौर पूर्णिमा महोत्सव की जय! भगवान के प्राकट्य के पहले ही आज हम देख रहे हैं, हमारी पद्मसुंदरी जो अहमदनगर में है चैतन्य महाप्रभु का अभिषेक हो रहा है। मैं सोच रहा था भगवान कहां से कहां तक पहुंच गए। प्रकट हुए नवद्वीप में, मायापुर में, योगपीठ में, सचिनंदन के रूप में प्रकट हुए हैं। लेकिन वे मायापुर तक सीमित नहीं रहे। अब तो श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु पूरे संसार में प्रकट हो रहे हैं। संभावना है, कई लोगों के घर में। हमारा तो कोई घर नहीं है। हम तो संन्यासी है या ब्रह्मचारी हैं। लेकिन आप तो गृहस्थ हैं और आपके गृहिणी भी है। गृहस्थ, घर है आपका, घर क्या बंगला है, महल है, क्या क्या है या हो सकता है जो भी है। संसार भर के घरों में श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु अपने विग्रह के रूप में प्रकट हो रहे हैं। हम तो यहां बात कर रहे हैं श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु प्रकट होने वाले हैं। वैसे श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु प्राकट्य, प्रकट होने की लीला यह नित्य लीला है। हर गौर पूर्णिमा को वह प्रकट होते हैं। या फिर किसी ना किसी ब्रह्मांड में वह प्रकट होते रहते हैं। इस दृष्टि से भी यह जन्म के लीला नित्य लीला है श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु 1486 में प्रकट हुए हैं। महाप्रभु के प्राकट्य के पहले ही पृथ्वी पर देवता पहुंच गए। यं ब्रह्मा वरुणेंद्र रुद्र मरुत। स्तुनवन्ति दिव्यै स्तवै।। (SB12.13.1) ऐसा भागवत में कहा है और यह देवता ऐसा स्तुतिगान करते हैं। देवताओं के भगवान भी गौर भगवान है, कृष्ण भगवान है। यह देवता भगवान नहीं है। देवताओं को पूछो आप भगवान हो। गणेश आप भगवान हो। वह बोलेंगे, नहीं मैं तो कृष्णदास हूं। वह कौन है, ब्रह्मा कहेंगे अलग-अलग देवता कौन है। ब्रह्मा कहेंगे ईश्वर एकला कृष्ण आर सब भ्रत्य ईश्वर परमेश्वर अकेले कृष्ण है, बाकी सब देवी देवता। 33 करोड़ देवी देवता पहुंच जाते हैं नवद्वीप मायापुर और स्तुति गान करते हैं। गौरांग गौरांग गौरांग गान भी हो रहा है। अप्सराये नृत्य भी कर रहे हैं। गंधर्व गाते हैं। नगाड़े बजते हैं। पुष्प वृष्टि होती हैं। यह सब होते रहता है, जब-जब महाप्रभु प्रकट होते हैं नवद्वीप मायापुर धाम में। नवद्वीप मायापुर धाम की जय! ऐसे जब हम सुनते रहते हैं, तब हमें पता चलता है कि कौन-कौन है। गौरांग महाप्रभु कौन है और यह देवी देवता कौन है। उनका भगवान से क्या संबंध है। हरि हरि, तो ऐसे देवी देवता देवः अस्य रुपस्य नित्यम दर्शन कांक्षिणः (BG 11.52) कृष्ण ने स्वयं ही अर्जुन को सुनाया मेरे दर्शन के लिए देवता तरसते हैं। उनको जब पता चलता है कि, कृष्ण प्रकट होने वाले हैं, भगवान प्रकट होने वाले हैं, अवतार लेने वाले हैं, तो देवी देवता पहुंच जाते हैं। उनका प्राकट्य होते ही हम दर्शन करेंगे इस अभिलाषा से। क्योंकि भगवान तो वैकुंठ नायक है। यह महांवैकुंठ है गोलोक और गोलोक पति हैं वैकुंठ नायक। और यह बेचारे देवी देवता तो उसी ब्रह्मांड में स्वर्ग में रहते हैं। स्वर्ग में भगवान का दर्शन नहीं है या कभी-कभी कर सकते हैं लेकिन स्वर्ग भगवान का धाम नहीं है। स्वर्ग के निवासी नहीं है। भगवान गोलोक के निवासी है। गोलोकनाम्नि निज धाम्नि तलेच तस्य गोलोक नामक गोलोकनाम्नि मतलब गोलोक नाम का निज धाम है कृष्ण का और कृष्ण चैतन्य का। उस धाम से भगवान प्रकट हुए नवद्वीप मायापुर में, प्रकट होने वाले हैं उसके लिए तैयारियां चल रही है। जैसे देवता भी तैयारियां कर रहे थे। स्तुतिगान हो रहा है और वह उस दिन बताने के बदले आज बताते हैं। गौरांग महाप्रभु दिन में सायंकाल के समय सूर्यास्त के समय, सूर्यास्त हो रहा है पश्चिम दिशा में और यह पूर्णिमा का दिन है तो सूर्यास्त के समय ही चंद्रोदय होता है। चंद्र का उदय होता है पूर्व दिशा में। तो उस समय सूर्यास्त और चंद्रोदय का समय है। श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु का प्राकट्य समय है, उसके पहले ही दिन में यह गौरांग महाप्रभु की कृपा है वे महावदन्याय बनने वाले हैं। महावदन्यता दिन में ही प्रकट किए हैं। और कई पापियों को भी, मानव को, दानवों को श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु असुरों को भी गंगा के तट पर पहुंचाएं। जब भी ग्रहण होता है पवित्र स्थान पर पहुंच जाते हैं और वहां पर पवित्र कुंड नदी में स्नान करते हैं। चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य दिन पर भी ऐसे ही व्यवस्था चंद्रग्रहण होना था। श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु ने कईयों को प्रेरणा दी, दुष्ट भी कोलकाता के जहां-तहां के उनको भी भगाया दौड़ाया मायापुर नवद्वीप के ओर। दिन भर वे गंगा में स्नान करते हुए, हर हर गंगे, हर हर गंगे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। जाप कर रहे थे। मैं सोच रहा था हमको भी वही करना चाहिए। जो महाप्रभु के प्राकट्य के दिन 1486 में हो रहा था। 1486 में गौर पूर्णिमा के दिन, दिन में कीर्तन हो रहा था, और देवता स्तुतिगान कर रहे थे। हमें भी ऐसा ही करना होगा ताकि भगवान केवल नवद्वीप में प्रकट ना हो, केवल मायापुर में प्रकट ना हो, तो हमारे ह्रदय प्रांगण में भी प्रकट हो। क्या फायदा नवद्वीप में प्रकट हुए मायापुर में प्रकट हुए लेकिन हमारे ह्रदय प्रांगण में भगवान प्रकट नहीं हुए। तो क्या फायदा हमारा लक्ष्य तो हमारे लिए, मेरे लिए भगवान प्रकट हो। गौरांग महाप्रभु तो प्रकट हो ही गए नवद्वीप मायापुर में। लेकिन किसको पता चला देखिए तो लोग कोई परवाह नहीं है। उनको कोई चिंता नहीं है। प्रकट हुए हैं तो होने दो लोगों के तो काम चल ही रहे हैं। बद्धजीव अपने काम धंधे में व्यस्त है। मैं काम में हूं, गौर पूर्णिमा में नहीं आ सकता। मैं काम में हूं, हां हां तुम काम में हो हम जानते हैं हम तुमको प्रेम देना चाहते हैं। चैतन्य महाप्रभु तो प्रकट हुए लेकिन हमारे लिए मेरे लिए महाप्रभु कब प्रकट होंगे। मेरे लिए क्या है चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य में? वैसे तो मेरे लिए ही प्रकट हुए हैं लेकिन मुझे थोड़ा तैयार भी करना होगा स्वयं को। मन बनाना होगा इच्छा को जागृत करना होगा। मुझे जैसी इच्छा आकांक्षा एहसास भी होना चाहिए। फिर भगवान मेरे लिए प्रकट होंगे या मुझे साक्षात्कार होगा भगवान का। भगवान के रूप का, रूप माधुरी का, भगवान के गुण का, भगवान के नाम का रूप का, गुण का लीला का या भगवान के नाम रूप गुण लीला यह भगवान के स्वरुप है। भगवान के गुण भगवान है। भगवान की लीला भगवान है। और भगवान का धाम भी उनसे अभिन्न है। हरि हरि, चैतन्य महाप्रभु की प्राकट्य के पहले नवद्वीप में एक द्वीप है ऋतु द्वीप। छह ऋतु होते हैं। छह ऋतुओका निवास स्थान ऋतु द्वीप है। श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के पहले उनकी आपस में चर्चा चल रही थी। और चर्चा का विषय यह था कि अब महाप्रभु प्रकट होने वाले हैं। लेकिन कब प्रकट होने वाले हैं यहां किस ऋतु में प्रकट होंगे। हर ऋतु चाहता था कि मेरा जो कालावधी हैं, हर ऋतु का कालावधी होता है 2 मास का 12 मास में छह ऋतु होते हैं। उस समय वसंत ऋतु में कहा नहीं जानते हो क्या? ऋतुनाम कुसुमाकर कृष्ण ने ही कहा है भगवत गीता के 10 अध्याय मे, सभी ऋतुओ में, मैं कुसुमाकर वसंत ऋतु मैं हूं। जब सर्वत्र रंग-बिरंगे पुष्प खिलते हैं। सर्वत्र पुष्प ही पुष्प होते हैं। उसके कारण हवा भी सुगंधित रहती हैं। शीतल सुगंधित हवा बहती हैं। भगवान तो वसंत ऋतु में प्रकट होंगे ऐसी वसंत ऋतु की तीव्र इच्छा थी। और बसंत ऋतु ने कहा भी और फिर ऐसे ही हुआ। श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु वसंत ऋतु में प्रकट हुए। ठीक है, प्रकट तो हो गये लेकिन उससे पहले हम गौर कथा के अंतर्गत ही हम लोग सुन रहे थे। जैसे ब्रह्मा के 1 दिन में कृष्ण प्रकट होते हैं। और अवतार तो संभवामि युगे युगे अवतार लेते रहते हैं लेकिन कल्पे कल्पे एक तो युगे युगे हुआ कल्पे मतलब ब्रह्मा का एक दिन ब्रह्मा के 1 दिन में श्री कृष्ण प्रकट होते है। द्वापार युग के उसके बाद जो कलयुग आता है तो उस कलयुग में श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु प्रकट होते हैं। हरि हरि, बात यह है कि यह श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु 1486 में 535 वर्ष पूर्व जब प्रकट हुए तो पहली बार नहीं। ब्रह्मा के हर दिन में प्रकट होते हैं। पहली बार नहीं हर कलयुग में प्रकट होते हैं। हर कलियुग में कलि का धर्म है, कलिकाले धर्म हरिनाम संकीर्तन तो हर कलयुग में भगवान प्रकट होते हैं। और वह गौर नारायण कहलाते हैं। वह नारायण होते हैं या विष्णु होते हैं। लेकिन ब्रह्मा के एक दिन में एक बार एक कलयुग में, इस कलयुग में जो कि हम कलयुग के निवासी बन चुके हैं। उस वक्त जो कि कृष्ण प्रकट हुए हैं, 5000 वर्ष पूर्व उनके पश्चात श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु प्रकट हुए। और फिर यह सब गौड़िय परंपरा की स्थापना होती हैं। गौरांग महाप्रभु ही नहीं होंगे तो कहां होगी गौड़िय वैष्णव परंपरा, गौडिय वैष्णव सिद्धांत और कहां होगा यह अचिंत्य भेदाभेद तत्व और कहां होगा यह हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। महामंत्र की प्राप्ति। यह तो सारा श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु के प्रकट होने के बाद यह होता है और फिर परंपरा से आता है। श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु और माधवेंद्र पुरी की परंपरा में आते हैं हम। आज माधवेंद्र पुरी का तिरोभाव तिथि हैं। हम थोड़ी देर के बाद उनका संस्मरण करेंगे। यह सारी का गौड़िय वैष्णव परंपरा की स्थापना महाप्रभु करते हैं और फिर भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर जैसे आचार्य, फिर प्रकट होते हैं भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद और फिर श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु ने भविष्यवाणी की होती है। पृथ्वीतेआंछे नगरादीग्राम सर्वत्र प्रचार होईबे मोर नाम और फिर स्थापना होती है अंतरराष्ट्रीय श्रीकृष्ण भावनामृत संघ की। इसी के साथ गौरांग गौरांग गौरांग गौरांग सर्वत्र फैल जाते हैं नगरों में ग्रामों में और वही हम देख रहे हैं कि आज हम यहां गौर कथा सुन रहे हैं। यह कैसे संभव हुआ गौरांग महाप्रभु के कारण गौडिय वैष्णव परंपरा के आचार्य के कारण हम जहां भी हैं या जिस देश के हैं या पहले जिस धर्म के भी होंगे, सर्वधर्मानपरित्यज्य करके हम मांमेकमशरणं श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के शरण में आ रहे हैं। और यह कृपा ही है उस महावदन्याय महाप्रभु की हरे कृष्ण कीर्तन भी कर रहे हैं। और उनके विग्रह की आराधना भी कर रहे हैं। गौरांग नित्यानंद प्रभु और चैतन्यचरितामृत, चैतन्य भागवत का अध्ययन कर रहे हैं। पढ़ रहे हैं। सुन रहे हैं। सुना रहे हैं इस सबके पीछे गौरांग महाप्रभु है। गौरांग महाप्रभु का प्राकट्य, यह बात मुझें कहनी थी कि, हमारा जो जन्म है तो यह विशेष समय है। कृष्ण के बाद श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु और फिर उनके बाद हम प्रकट हुए हम जन्मे हैं। चैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन आंदोलन में हम आए हैं। अजानुलंबित भुजौ कणकावतादौ संकीर्तनैक पित्रो कमलायताक्षो विश्वंभरो द्विजवरो युगधर्मा पालो वंदे जगतप्रियकरो करुणावतारो आपको समझ में आया ही होगा मैंने जब कहा अवतारो, मैंने जब कहा तो इस और भी मैं आपका ध्यान आकृष्ट करता रहता हूं। इससे क्या संकेत होता है? यह दो व्यक्तियों की बात है। जैसे संकीर्तनैकपित्रो, कमलायताक्षो या द्विजवरो आप सुन रहे हैं ना, ध्यान से वैसे कितनी बार आपको बताया दिमाग में कुछ आ रहा है, बैठ रहा है, पल्ले पड़ रहा है। "आपल डोक खोक आहे" अपना दिमाग खाली बॉक्स तो नहीं। गौर नित्यानंद बोल हरि बोल हरि बोल गौरांग महाप्रभु नित्यानंद प्रभु प्रकट हुए और फिर यह विशेष समय है। यह हमारे भाग्य के उदय की बात है। नहीं तो हमारा इस समय जन्म नहीं होता मनुष्य रूप में। हम इस समय जन्मे नहीं होते गौरांग महाप्रभु की कृपा है। उन्होंने केवल हमको शरीर ही नहीं दिया है इस समय हमको श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु उनके संपर्क में लाए हैं। हरि हरि, उनका नाम हम तक पहुंच चुका है। और जब नाम हम तक पहुंचता है। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। तो फिर क्या बच गया भगवान नहीं पहुंचे, क्या भगवान का नाम पहुंचा तो क्या भगवान नहीं पहुंचे, पर आप नहीं समझते हो या ऐसा सोचते हैं भगवान का नाम तो पहुंचा है। लेकिन भगवान नहीं पहुंचे हैं तो फिर आप यह समझ में नहीं आया है। अभिन्नत्वात नामनामि नाम चिंतामणि चैतन्यरसविग्रहनित्यसिद्ध मुक्तः अभिन्नत्वात नामनामि भगवान का नाम और भगवान अभिन्न है। भगवान का नाम और भगवान अभिन्न है। हम तक अगर नाम पहुंचा है मतलब भगवान पहुंचे हैं। और फिर ऐसे भगवान या भगवान का नाम पहुंचता है। हम सब तो फिर क्या नाम से धाम तक। सभी नहीं कह रहे हैं। आपने सुना नहीं होगा पहले या फिर सुना होगा तो भूल गए। महत्वपूर्ण नहीं लगा होगा आपको महाराज कुछ कहते रहते हैं कहां होगा भूल गए आप। जैसे हम नाम ले रहे हैं तो हम धाम की ओर दौड़ रहे हैं। हमारा शरीर बैठा होगा थाईलैंड में लेकिन हमारे आत्मा तो जा रहे हैं धाम में। हम अधिक अधिक पास में पहुंच रहे हैं। नाम से धाम तक। हम जहां भी हैं वहां पहले नाम पहुंच जाता है। नाम रूप में भगवान पहुंच जाते हैं। नाम रूप में भगवान हमको ले जाते हैं। अगर भगवान ही हमको ले जाते हैं, ले आते हैं अपने धाम। उनका धाम ही हमारा धाम है। हम भी तो गोलोकवासी हैं। हम हिमाचल प्रदेश वासी नहीं हैं (गुरु महाराज कौन्फरन्स में भक्त को संबोधित करते है) हम भी तो गोलोकवासी हैं। वैकुंठवासी है। धामवासी हम भी तो हैं। वही देश हमारा भी तो है जहां गंगा जमुना बहती है, या गोवर्धन है। द्वादश कानन है या जहां नवद्वीप है। वहां के हम भी तो वासी है। हम ऐसे ही भूले भटके भटक रहे हैं और कभी हम चाइनीस बन जाते हैं तो कभी मॉरिशियस बन जाते हैं। कभी क्या बनते हैं तो कभी क्या बनते हैं। हरि हरि, तो इस मे से हम कुछ भी नहीं है, ना तो हम उस देश के हैं ,ना उस परिवार के हैं, ना उस घराने के हैं। कहिए तो बदमाशी है या बेवकूफी है या ज्ञान है ऐसा ज्ञान जिसको हम ज्ञान मानके बैठे हैं। इसीलिए चैतन्य महाप्रभु प्रकट होते हैं। ताकि फिर क्या हो जाए ओम अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानांनजन शलाकाय चक्षुरन्मिलीतन्मेन तस्मै श्रीगुरुवे नमः हो जाए ज्ञान अंजन आजकल के स्कूल कॉलेजों में तो क्या पढ़ाया जाता है। अज्ञान पढ़ाया जाता है। जो ज्ञान नहीं है उसको पढ़ाया जाता है। ज्ञान कहां पढ़ाया जाता है। ब्रह्मचारी गुरुकुले वसंतान्दो गुरोर्हीतम जब हम गुरुकुल जाते हैं या फिर जब हम हरे कृष्ण मंदिर जाते हैं। हरे कृष्ण मंदिर गुरुकुल विद्या मंदिर ही है और फिर वहां से पाठ्यपुस्तक भी हम खरीदते हैं। चैतन्य चरित्रामृत हैं। भगवत गीता है। भागवतम है। ईशोपनिषद है। इन ग्रंथों को हम घर ले आते हैं। पढ़ते हैं। अध्यायन भी करते हैं। तो फिर इसी के साथ क्या होता है ज्ञानांनजन शलाकाय। पुरुषोवीरो वह व्यक्ति जो आचार्यवान है। आचार्यवान पुरुषोवीरो ऐसा कहां है यह वेदवाणी है। क्या है वेद वाणी, जो व्यक्ति आचार्यवान, आचार्यवान मतलब क्या आचार्य नहीं जिसका आचार्य है, जिसने आचार्य को स्वीकार किया है। जिनके जीवन में आचार्य का प्रवेश हुआ है। ऐसा आचार्यवान पुरुष या आचार्यवान व्यक्ति जैसे ज्ञानवान जो ज्ञानी है, वह ज्ञानवान, जो गुणी है वह गुणवान, उसी प्रकार के आचार्य हैं आचार्यवान। आचार्यवान पुरुषो ऐसा व्यक्ति वेदः वह जानता है जानकार होता है, ज्ञानवान होता है, आचार्यवान ज्ञानवान होता है। तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया । उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्वदर्शिनः ॥ (B G 4.34) भगवत गीता में यह भी कहा है श्रीकृष्ण ने ही कहा है। कृष्णम वंदे जगत गुरु श्रीकृष्ण ही जगतगुरु है। फिर उन्होंने ही कहा है, जाओ जाओ शरण में जाओ। गुरु की शरण में जाओ। प्रणिपात करो, फिर जाकर क्या करें अथातो ब्रह्म जिज्ञासा ब्रह्म जिज्ञासु बनो, परीप्रश्नेन प्रश्न पूछो। वे आपके प्रश्नों के उत्तर देंगे और यह सब कैसे करो सेवयां सेवा भाव के साथ या विनम्रता के साथ विनम्र बनके जिज्ञासा करो। उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं वह आपको उपदेश करेंगे। आपको ज्ञान देंगे। क्यों वह तत्वदर्शी है, उन्होंने तत्व का दर्शन किया है। तत्व समझ गए हैं। वे आपको समझा सकते हैं। ज्ञान दे सकते हैं।श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु की जय! तो फिर कहां है, ब्रह्मा के हर एक दिन में गौरांग महाप्रभु प्रकट होते हैं। फिर जब गंगा प्रकट हुई पहले तो स्वर्ग में ही थी। फिर राजा भगीरथ उसको पृथ्वी पर ले आए। और फिर गंगाधर ने शिवजी ने धारण भी किया। और फिर वहां गोमुख से निकली हिमालय के शिखर पर की बात है। और फिर राजा भागीरथ गंगा को सागर तक पहुंचाना चाहते थे। ताकि उनके पूर्वजों के अस्थियों का विसर्जन हो। भगीरथ ला रहे थे गंगा को अपने रथ में लेकिन सब बातें विस्तार से नहीं बता सकते हैं। अभी बात यह है कि, गोलोक से सागर तक। गंगासागर जानते हो आप सभी लोग, सब तीरथ बार बार गंगासागर एक बार ऐसा कहते हैं। शायद जनवरी में गंगासागर को बहुत बड़ा मेला लगता है, मकर संक्रांति के वक्त। तो भगीरथ राजा को ले जाना था गंगा को सागर तक तो रास्ते में बीच में नवद्वीप आता है, और नवद्वीप मे आता है जान्हु मुनि का द्वीप। नवद्वीप में से जब गंगा को आगे बढ़ाया जा रहा था, ले जा रहे थे गंगा पीछे-पीछे आ रही थी। राजा भगीरथ अपने रथ को आगे आगे हाक रहे थे। उस समय जान्हु मुनि अपने संध्या वंदना करने में व्यस्त थे। उस समय गंगा अपने प्रवाह के साथ जान्हु मुनि का संध्या वंदना की जो कुछ सामग्री थी बहके जा रही थी। वह स्वयं ही गंगा में डूब के जा रहे थे मतलब विघ्न आया उनकी संध्या वंदन में विघ्न आया तो उनको पता चला यह किसकी करतूत किसके कारण यह सब कुछ हुआ है। यह गंगा बदमाश कहीं की ऐसा कुछ सोचा होगा उनको क्रोध आया और उसी के साथ जान्हू मुनि ने गंगा का प्राशन किया गंगा को पी लिए। एक बूंद भी बाहर नहीं बची तो राजा भगीरथ एक समय जब वो पीछे देखें गंगा नहीं आ रही है। तो लौट के रथ को पीछे मुड़ा के ले गए, जान्हू द्वीप ले गए तो समझ में आ चुका उनको कि यह करतूत जान्हू मुनि की है। गंगा का नहीं रहना या अदृश्य होना इसके पीछे जान्हू मुनि है। राजा भगीरथ ने अपनी गलती को समझ लिया मेरे कारण ही, मैं जब गंगा को यहां से इनके द्वीप से जब बहा रहा था। तो उन्होंने क्षमा याचना की जान्हू मुनि से पुनः मांग की गंगा को लौटाइए गंगा को लौटाइए। गंगा की हमें बहुत जरूरत है हमें गंगा चाहिए तो कृपया पुनः प्रकट कीजिए गंगा को। तो फिर जान्हू मुनि ने उनकी बात को स्वीकार किया और गंगा पुनः पूर्ववत प्रकट हुई। तो अब मुख्य बात तो यह है, यह कहानी तो आपको सुनाई.. लेकिन अब पुनः भगीरथ राजा गंगा को सागर की ओर ले जाना चाहते ही थे वहीं लक्ष्य था। इतने में गंगा को इस बात का पता चला कि गौर पूर्णिमा आ रही। गंगा मैया कई घोषणा सुनि या कुछ बैनर पढ़ा कि गौर पूर्णिमा महोत्सव कुछ ही दिनों में संपन्न होने जा रहा हैै। तो गंगा ने कहा नहीं मैं गौर पूर्णिमा महोत्सव में सम्मिलित होना चाहती हूं। गौर पूर्णिमा तक हम यहीं रहेंगे, मैं तो रहूंगी ही। मेरे स्वामी जिनके चरणों की में गंगा हूं या जिनके ह्रदय से मेंं प्रकट होती हूं वह मरे स्वामी गौरांग महाप्रभु के गौर पूर्णिमा महोत्सव में मैं जरूर रहूंगी। तो राजा भगीरथ जी मान लीए और दोनोंं ने गौर पूर्णिमा महोत्सव नवद्वीप मेंं संपन्न किया। अभी गौर कथा कर रह थे या हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। का गान और नृत्य कर रहे थेे, पहले भी कुछ दिन और गौर पूर्णिमा के दिन। गौर पूर्णिमा के दिन और भी कुछ उन्होंने तपस्या की ध्यान, धारणा, साधना की, उपवास किया, पूरा दिन उपवास किया। ऐसा सुनने में आता है कि गंगा ने निर्जला उपवास किया, गंगा ने जलपान नहीं किया, वह कैसे किया होगा वही जाने। तो गंगा वैसे केवल जल ही नहीं है, जलमय ही नहीं है अपना उसका रूप भी हैं, उसका अपना वाहन भी है जिस पर वह विराजमान रहती हैं। तो वह गंगा ने इस प्रकार गौर पूर्णिमा महोत्सव मनाया। कैसे पता चलता है कि गौर पूर्णिमा कब से मनाई जा रही है सब समय मनाई जाती ही रहती हैं। क्योंकि चैतन्य महाप्रभु ब्रह्मा के हर दिन मेंं एक बार प्रकट होते ही रहते हैं। तो गंगा ही कितने लाखों, करोड़ों, कई युगों के पहले, कई कल्पो के पहले गंगा प्रकट हुई। इस पृथ्वी पर और उसमें नवद्वीप मायापुर में जब वह थी तो उसने गौर पूर्णिमा महोत्सव मनाया, तो हम कल्पना कर सकते हैं। और भी इसी के साथ गौरांग महाप्रभु का महिमा भी है। गंगा तेरा पानी अमृत ऐसा महिमा है जिस गंगा का। लेकिन वह गंगा भी गौरांग की दासी है सेविका है गंगा भी आराधना करती है गौरांग महाप्रभु की। और वैसे भी गौरांग महाप्रभु अपने भक्त के रूप को जब धारण करते हैं तब गौरांग महाप्रभु गंगा को अपनी माता समझते हैं। एक उनकी सची माता है और दूसरी गंगा माता है। जब वे जगन्नाथपुरी में रहने लगे थे सन्यास के उपरांत.. यह भी आपको सुनाया है। कुछ दिन पहले श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु बंगाल गए दो माताओं के दर्शन के लिए एक तो सची माता के दर्शन के लिए और गंगा माता के दर्शन के लिए भी। और वैसे संन्यास लेने के एक दिन पहले भी श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु गंगा के तट पर पहुंचे थे मानो वे आशीर्वाद लेना चाहते थे, गंगा मैया से आशीर्वाद कहो या अनुमति कहो। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु अबकी बार जो प्रकट हुए और फिर अप्रकट भी हुए 48 वर्षों केेे उपरांत जगन्नाथपुरी में टोटा गोपीनाथ केे विग्रह में। टोटा गोपीनाथ के विग्रह में प्रवेश किए और वही अंतर्धान हो गए। फिर वह नरोत्तम दास ठाकुर थे जिन्होंनेे यह नया इतिहास कहो, याद कहो त्यौहार का पुनरुद्धार कहो। हमारी परंपरा में यह जो गौर पूर्णिमा उत्सव संपन्न होने की बात है इसका श्रेय जाता है नरोत्तम दास ठाकुर को। जिन्होंने चैतन्य महाप्रभु के अंंतर्धान होने के कुछ साल के उपरांत केतुरी ग्राम में जो उनका जन्मस्थान था। केेतुरी ग्राम में उन्होंंने बहुत बड़े गौर पूर्णिमा महोत्सव का आयोजन किया। और उस समय जो भी बचे थे गौड़िय वैष्णव या चैतन्य महाप्रभु के परिकर कहिए, जो जो थे विद्यमान उन सब को आमंत्रित किए थे नरोत्तम दास ठाकुर। इस उत्सव के लिए फिर जान्हवा माता भी थी और श्यामानंद भी थे और कई सारे थे वहां। विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा का महोत्सव संपन्न हुआ था वहां। बड़े विस्तार से वर्णन है की कैसी तैयारियां हुई और कैसे स्वागत हो रहा था। पद्मावती के तट पर यह उत्सव केतुरी गांव में संपन्न हो रहा था। इस उत्सव का नेतृत्व या प्रमुख संचालक नरोत्तम दास ठाकुर। नरोत्तम दास ठाकुर के चचेरे भाई जो अभी शिष्य बने थे उनके राजा थे नरोत्तम दास ठाकुर के चचेरे भाई जो नरोत्तम दास ठाकुर के शिष्य बने थे। तो वह भी संचालन कर रहे थे। उस उत्सव के समय जब नरोत्तम दास ठाकुर कीर्तन गान करने लगे, गाने लगे या भजन भी गाए होंगे, कुछ कीर्तन भी गाए होंगे श‍ृण्वन्ति गायन्ति गृणन्ति साधव: और यह गौर पूर्णिमा महोत्सव मतलब क्या श्रवण कीर्तन उत्सव ही तो होता है। श्रवणोत्सव, ज्यादा करके श्रवणोत्सव ही, लेकिन श्रवण के लिए कीर्तन चाहिए, तो फिर कीर्तन है तो श्रवण होगा। तो नरोत्तम दास ठाकुर कीर्तन कर रहे थे और नरोत्तम दास ठाकुर ने जैसे कीर्तन प्रारंभ किया.. जैसे हम पढ़ते तो रहते हैं, ज्यादा अनुभव तो हम नहीं करते। किंतु कृष्ण कहे वैसे यत्र मदभक्त गायन्ति तत्र तिष्ठामी नारद ना हम वसामी वैकुंठे योगिनाम ह्रदये न च मैं और कहीं नहीं रहता, वैकुंठ में भी नही रहता हूं। आप कहां रहते हो यत्र मदभक्त गायन्ति तत्र तिष्ठामी नारद जहां मेरे भक्त मेरा गान करते हैं वहां में रहता हूं। तो उस दिन नरोत्तम दास ठाकुर गायन कर रहे थे, असंख्य भक्त वहां एकत्रित तो थे ही और वे सब मिलकर श्रवण, कीर्तन उत्सव संपन्न हो रहा था। वैसे कीर्तनकार तो नरोत्तम दास ठाकुर बने थे और सभी वे भी गा रहे थे पीछे, सुन रहे थे, गा रहे थे श्रवण कीर्तन। ऐसे आदान-प्रदान सबका चल रहा था। तो उस गौर पूर्णिमा उत्सव में, जो संपन्न हो रहा था केतुरी ग्राम में उस उत्सव में श्री कृष्ण चैतन्य, प्रभु नित्यानंद, श्री अद्वैत, गदाधर, श्रीवास आदि गौर भक्त वृंद प्रकट हो गए। पुनः प्रकट हो गए यह सारे पंचतत्व अंतर्धान हो चुके थे। इस बात को भी सभी जानते थे कोथा गेला, कहां गए मतलब अप्रकट हो गए थे, लेकिन उस उत्सव में जो गौर पूर्णिमा उत्सव नरोत्तम दास ठाकुर मना रहे थे उस उत्सव में यह सारे पंचतत्व पुनः प्रकट हो गए। और प्रकट होकर जैसे श्रीवास ठाकुर के आंगन मेंं पंचतत्व् अनेक भक्तों के साथ जो संकीर्तन कीर्तन और नृत्य किया करते थे वैसा ही संकीर्तन अब केतुरी ग्राम में गौर पूर्णिमा महोत्सव के अंतर्गत संपन्न हो रहा था। देखिए ऐसे पॉवरफुल भक्त, ऐसे भक्ति की शक्ति से युक्त हमारे आचार्य। उनकी भक्ति और भक्ति का एक लक्षण हीं है कृष्ण आकर्षिनी। भक्ति का क्या लक्षण है? कृष्ण आकर्षिनी कृष्ण को आकृष्ट करती है भक्त की ओर। हरी हरी। तो वहां कृष्ण चैतन्य और पंचतत्व प्रकट हो गए। 1972 में श्रील प्रभुपाद यह उत्सव प्रारंभ किए सर्वप्रथम हरे कृष्ण उत्सव 1972 में हुआ। और उस समय से हो ही रहा है प्रतिवर्ष। श्रील प्रभुपाद तो हमारे 1977 तक रहे इन उत्सवों में उसके उपरांत भी उत्सव मनाए जा ही रहेे हैं। और उन सारे उत्सवों में 1973 से शुरू करके मैंने दो उत्सव मिस किए। एक तो 1972 का और दूसरा 2021 का जो अभी भी चल रहा है। और मैंं तो पंढरपुर में बैठा हूं मायापुर में नहीं दुर्भाग्यवश मैंने दो उत्सव मेंं मिस किए। तो इस उत्सव के अंतर्गत गौर पुर्णिमा फेस्टिवल जो इस्कॉन मायापुर के अंतर्गत मनाया जाता है, आज के दिन उत्सव में सम्मिलित हुए जो भक्त होते हैं, जो मायापुर आते हैं उत्सव के लिए तो वे सभी भक्त आज केेे दिन शांतिपुर जाते हैं। जो अद्वैत आचार्य की लीला स्थली भी रही। जब गोपाल के लिए चंदन जरूरी था तब गोपाल माधवेंद्र पुरी के सपने में आकर उनको बताएं। हमारा गौड़िय वैष्णव परंपरा या संप्रदाय माधवेंद्र पुरी से शुरू होता है। माधवेंद्र पुरी को जब वृंदावन से जगन्नाथ पूरी जाना था चंदन लाने के लिए बंगाल होते हुए ओडिशा उनको जाना था। तो बंगाल में वे शांतिपुर भी गए और अद्वैत आचार्य ने दीक्षा ली माधवेंद्र पुरी से। आप समझ सकते हो माधवेंद्र पुरी की महिमा। अद्वैत आचार्य जिन के शिष्य बन जाते हैं वेेेे माधवेंद्र पुरी या फिर नित्यानंद प्रभु भी शिष्य बन जातेेेेे हैं माधवेंद्र पुरी के। वैसे नित्यानंद प्रभु नेेेेे पंढरपुर में लक्ष्मीपति तीर्थ से दीक्षा ली यह भी बात चैतन्य भागवत में लिखी है, कही है। तो नित्यानंंद प्रभु लक्ष्मीपति तीर्थ के भी शिष्य थे और माधवेंद्र पुरी के भी शिष्य थे ऐसे दोनों उल्लेख मिलते हैं। ऐसे माधवेंद्र पुरी केे ज्यादा तो नहीं लेकिन जो भी शिष्य थेे उनका विशेष व्यक्तित्व था। उनके जो भी शिष्य थे वे वीआईपी या महान व्यक्तित्व थे। ईश्वर पुरी भी तो उनके शिष्य बने। ईश्वर पुरी के फिर शिष्य बने श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु। तो आज केेे दिन हरे कृष्ण भक्त शांतिपुर जाते हैं मायापुर से। मैंं भी जाता था समय- समय पर। माधवेंद्र पुरी का तिरोभाव उत्सव वहां मनाया जाता शांतिपुर में और प्रसाद वितरण होता है। माधवेंद्र पुरी तिरोभाव उत्सव का बहुत बड़ा अंग तो प्रसाद वितरण होता हैै और हज़ारों की संख्या में दस, बीस, तीस, चालीस हजार लोग वहां इकट्ठे होतेेे हैं। न जाने कहां कहां से आते हैं और प्रसाद ग्रहण करतेे हैं। और यह समझ है कि माधवेंद्र पुरी के तिरोभाव केेे दिन वहां जो जो प्रसाद ग्रहण करते हैं उनको कृष्ण प्रेम प्राप्त होता है। हरि हरि। आप को अचरज नहीं लगा.. तो वे माधवेंद्र पुरी इन्हीं से हमारा गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय प्रारंभ हुुआ। या वैसे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु स्वयं के प्राकट्य से पहले एक मंच बनाए कहीए। ताकि उस मंच पर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु प्रकट होंगे। और जिस उद्देश्य से श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को प्रकट होना था वह बातें भी बता चुके हैं। एक तो साधारण कार्य नियमित व्यवसाय, धर्मसंस्थापनार्थाय वाला धर्म की स्थापना। और दूसरा राधा को समझने का, राधा के भावों को समझने का, राधा के अंतरंग को समझने का या राधा रानी जब कृष्ण के संग का आस्वादन करती है उस समय राधा रानी के क्या भाव क्या विचार होते हैं इन को समझने के लिए श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु प्रकट हो रहे हैं। यह सब गोपनीय कारण जो कहां है आप सुन चुके हो। तो यह जो भाव है मतलब यह सब राधा भाव ही है। राधा भाव कहो या माधुर्य रस, श्रृंगार रस कहो। अनार्पित चरिम चिरात करुणयावतीर्णोह कलौ उन्नत उज्वल रस स्व-भक्ति-श्रीयाम तो यह उद्देश्य। अन-अर्पित मतलब ऐसा पहले कभी नहीं दिया था, बहुत समय पहले दिया था बहुत समय बीत गया। मतलब पहले कल्प मे ब्रह्मा के पहले दिन मे। बहुत बड़ा गैप हुआ तो पुन: अब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु प्रकट हो रहे हैं। करुणयावतीर्णोह कलौ इस कलयुग में अपनी करुणा से वे प्रकट हो रहे हैं। और क्या करेंगे प्रकट होकर? समर्पयितुम मतलब देने के लिए, समर्पित करने के लिए। क्या समर्पित करने के लिए? क्या देने के लिए? उन्नत उज्वल रस उन्नत मतलब ऊंचा उन्नत उज्वल सर्व रस सार परकीय भावे जहां ब्रजेते प्रचार तो उज्वल रस माधुर्य रस। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु स्वयं भी उसका आस्वादन करना चाह रहे थे और आस्वादन करके उसका वितरण भी करना चाह रहे थे। इस उद्देश्य से प्रकट हुए थे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु। तो मंच बनाने की बात है, तैयारी करनी है पूर्व तैयारी करनी है, सेटिंग द सीन है। उसके अंतर्गत यह माधवेंद्र पुरी यह बहुत बड़ी व्यवस्था महाप्रभु किए हैं। तो माधवेंद्र पुरी और उनके शिष्य बनेंगे ईश्वर पुरी और फिर उनके शिष्य बनेंगे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु। इस गुरु परंपरा में यह जो परंपरा के विचार है, भाव है, सिद्धांत है, रस हैं इसको श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु प्राप्त करने वाले हैं परंपरा में। लेकिन परंपरा की शुरुआत और इसके प्रथम आचार्य माधवेंद्र पुरी है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने अपने गुरु महाराज ईश्वर पुरी से, उनके गुरु महाराज ईश्वर पुरी के गुरु महाराज माधवेंद्र पुरी के संबंध में खूब सुना था गान सुने थे। माधवेंद्र पुरी के जीवन चरित्र और शिक्षाएं सुने थे चैतन्य महाप्रभु ईश्वर पुरी से सुने थे माधवेंद्र पुरी के संबंध में। ठीक है तो हम यह भी बताते हैं आपको.. श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने तो ले लिया संन्यास। पुन: शांतिपुर आए थे चैतन्य महाप्रभु सन्यास लेकर और उनको जाना था जगन्नाथ पुरी। जा ही रहे थे रास्ते में आ गया रेमुणा जहां क्षीरचोर गोपीनाथ मंदिर है। यहां जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु और चार भक्तों के साथ पहुंचे, एक नित्यानंद प्रभु साथ में थे और जगदानंद पंडित साथ में थे और दो भक्त साथ में थे मुकुंद साथ में थे। तो उनको बिठाए वहां श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु और उनको भी माधवेंद्र पुरी की कथा सुनाते हैं। यह बताना होगा कि रेमुणा में ही माधवेंद्र पुरी का तिरोभाव भी हुआ तिरोहित हुए। यहीं पर रहते थे माधवेंद्र पुरी अपने अंतिम दिनों में रेमुणा में। क्षीरचोर गोपीनाथ मंदिर जहां है ओड़ीसा में बंगाल का बॉर्डर है, बालेश्वर नाम का पास में एक शहर है। ईश्वर पुरी माधवेंद्र पुरी की सेवा भी कर रहे थे माधवेंद्र पुरी के अंतिम दिनों में। तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु इसी रेमुणा में उन भक्तों को जो उनके साथ चल रहे थे उनको माधवेंद्र पुरी की कथा सुनाएंगे। और यह है चैतन्य चरित्रामृत के मध्य लीला चौथे अध्याय में। तो जब चैतन्य महाप्रभु माधवेंद्र पुरी के चरित्र कथा लीला का वर्णन कर रहे थे तब उन्होंने कहा कि मैं जो आपको सुनाऊंगा यह सारी बातें मैंने ईश्वर पुरी से सुनी है, वही बात मैं आपको सुनाता हूं। पूरा विस्तार से चैतन्य महाप्रभु स्वयं गौरांग माधवेंद्र पुरी का चरित्र सुनाएं और अपने भक्त का ही चरित्र सुनाएं। इस भक्त का चरित्र सुनाने का कारण यह भी है कि उन्होंने ही इस गौड़ीय संप्रदाय को गौड़ीय संप्रदाय बनाया। माधुर्य लीला के आचार्य थे माधवेंद्र पुरी, यह सब चैतन्य महाप्रभु सुनाएं हैं। जैसे वृंदावन में माधवेंद्र पुरी.. हां काफी विस्तार से है तो हमारे पास समय नहीं है। वह कैसे गोवर्धन परिक्रमा किया करते थे और गोविंद कुंड पर कैसे वे जब बैठे थे तो एक बालक आया बाबा बाबा आपके लिए दूध। वे बालक भगवान थे और माधवेंद्र पुरी परिक्रमा किया करते थे। परिक्रमा मार्ग पर एक यतीपुर आता है आप सुने होंगे गोविंद कुंड से लोटा बाबा के दर्शन लेने जाते हैं और वहां से हम लोग टर्न लेते हैं, वहां पर एक स्थान आता है उसे यतीपुर कहते हैं। तो यतीपुर मतलब यह माधवेंद्र पुरी का ही एक नाम है यति मतलब सन्यासी को यति कहते हैं। तो यति पुर मतलब यह माधवेंद्र पुरी का ही पुर, मतलब उनके नाम से जाना जाता है। और फिर श्याम कुंड के तट पर माधवेंद्र पुरी बैठक भी है, राधा कुंड श्याम कुंड कि हम परिक्रमा करते हैं तो श्याम कुंड के तट पर, तो चैतन्य महाप्रभु यह सब सुनाए हैं। फिर माधवेंद्र पुरी चंदन लाने के लिए कैसे उड़ीसा पहुंच जाते हैं, क्षीर चोर गोपीनाथ पहुंच जाते हैं। और इसी माधवेंद्र पुरी के लिए गोपीनाथ ने क्षीर की चोरी की। फिर गोपीनाथ ने ब्राह्मण को जगाया पुजारी को जो सोए थे और फिर उस ब्राह्मण ने माधवेंद्र पुरी को ढूंढ के निकाला और उनको क्षीर दे दी। माधवेंद्र पुरी ने ग्रहण किया इस क्षीर को हरी हरी। और वहां पर यहां भी चैतन्य महाप्रभु कहे की माधवेंद्र पुरी सोच रहे थे की संभावना है, अगले दिन जब सुबह होगी तो सर्वत्र चर्चा होगी। माधवेंद्र पुरी के लिए गोपीनाथ ने चोरी की सर्वत्र बोलबाला होगा हो सकता है कि मीडिया के लोग आएंगे, टेलीविजन के लोग आ सकते हैं वह मेरा इंटरव्यू ले सकते हैं। तो यह सब टालने के लिए माधवेंद्र पुरी ने रातों-रात वहां से जगन्नाथपुरी के लिए प्रस्थान किया। यह सब चैतन्य महाप्रभु ने सुनाया यह सुनाने के पीछे इस गौरवगाथा की बात यह है कि.. तृणादपि सुनीचेन तरोरपि सहिष्णुना अमानिना मानदेन कीर्तनीयः सदा हरिः॥ अपना स्वयं का मान सम्मान वे नहीं करना चाहते थे। इसीलिए जब अंधेरी रात ही थी अंधेरी रात में ही वहां से प्रस्थान किए आगे बढ़े। किंतु हुआ क्या जब माधवेंद्र पुरी जगन्नाथ पुरी पहुंच गए तो वहां सभी और चर्चा हो रही थी की माधवेंद्र पुरी के लिए भगवान ने क्षीर की चोरी की। तो यह पी आर कौन कर रहा था जगन्नाथ भगवान या गोपीनाथ ही कर रहे थे। और जब भगवान ही अपने भक्त के चरित्र का वर्णन या गुण गाते हैं या प्रचार करते हैं तो उसे कौन रोक सकता है। तो ऐसे थे माधवेंद्र पुरी। माधवेंद्र पुरी के अंतिम दिन रेमुणा में ही बीत गए। वैसे उनको जाना तो था चंदन लेकर आए तो थे रेमूणा और चंदन था गोपाल के लिए। लेकिन गोपाल स्वप्न में आए और उन्होंने कहा कि मुझ में और गोपीनाथ में कोई अंतर नहीं हैं, मैं ही हूं गोपीनाथ। तो तुम वही सेवा करो गोपीनाथ को चंदन लेपन करो, चंदन घीसो तो वह सेवा मुझ गोपाल तक वृंदावन मे पहुंच जाएगा, तुम वहीं रहो, फिर माधवेंद्र पुरी वैसा ही किए। तो देखिए कैसे भगवान के साथ कितना घनिष्ठ संबंध है माधवेंद्र पुरी का। और भगवान भी कितना प्रेम करते हैं माधवेंद्र पुरी से और माधवेंद्र पुरी का कितना प्रेम है फिर कृष्ण के साथ। अपने अंतिम दिनों में माधवेंद्र पुरी इस श्लोक को पुनः पुनः कहां करते थे, गाया करते थे। जो वचन वैसे राधा रानी का ही है राधा रानी के ही भाव है। अयि दीन-दयारद्र नाथ हे मथुरा- नाथ कदावलोक्यसे मे यह सब विस्तार से बोल नहींं पाऊंगा पहले ही समय समाप्त हो चुका है। तो कृष्ण जब वृंदावन से मथुरा गए उस वक्त राधा और गोपियों की जो हालत होती है, मन: स्तिथि होती है, विरह की व्यथा से जब व्यथित होती है और उस समय जो बातें राधा रानी और गोपिया करती है, वही बात इस वचन मेंं भी व्यक्त है। अब कहां मिलोगे, कब मिलोगे हे दीन दयारद्र नाथ, उसी भाव में मग्न थे माधवेंद्र पुरी। और इन्हीं भावों के कारण ही तो वे बन गए गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के एक दृष्टि से संस्थापक या प्रथम आचार्य। तो माधवेंद्र पुरी का तिरोभाव महोत्सव आज पूरा संसार मना रहा है। माधवेंद्र पुरी तिरोभाव तिथि महोत्सव की जय। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।

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