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*जप चर्चा* *24 -11 -2021* *सोलापुर धाम से* हरे कृष्ण ! आज 881 स्थानों से भक्त जपा टॉप में सम्मिलित हैं और परिक्रमा के 800 डिवोटीज़ वह भी अपने प्रोग्राम में सम्मिलित हैं। जगन्नाथ पुरी यात्रा धाम की जय ! कितना अद्भुत दृश्य है जगन्नाथ पुरी धाम का। " उपयोगिता ही सिद्धांत है" (यूटिलिटी इज द प्रिंसिपल) यहां टेक्नोलॉजी का इंटरनेट का प्रयोग भी हो रहा है जगन्नाथ की सेवा में यहां साइंस टेक्नोलॉजी सेवा कर रहे हैं और इसी का परिणाम देखिए, गौर निताई की जय ! पता नहीं आप देख रहे हो कि नहीं लेकिन मेरी स्क्रीन में तो बहुत कुछ दिखाई देता है। क्योंकि आप पर तो लैपटॉप का स्क्रीन है किंतु टीवी सेट स्क्रीन पर जब आप भी देखते हो। गौर निताई पदयात्रा के गौर निताई जो अभी-अभी बृज मंडल परिक्रमा कर रहे थे। अभी वह जगन्नाथ मंडल परिक्रमा कर रहे हैं। श्री श्री निताई गौर सुंदर की जय हरि हरि ! और फिर परिक्रमा के भक्तों को आप देख रहे हो , ऐसे ऑफीशियली कुछ अनाउंसमेंट या रजिस्ट्रेशन कुछ नहीं हो रहा है किन्तु फिर भी इष्ट देव प्रभु बता रहे थे कुछ सात आठ सौ भक्त वहां जगन्नाथ पुरी में पहुंच चुके हैं जगन्नाथ पुरी धाम की परिक्रमा कर रहे हैं और हम उनका परिक्रमा का घर बैठे बैठे लाभ उठा रहे हैं कहीं आना है ना कहीं जाना है यहीं मरना है तो बस मरने के पहले यह सब दृश्य देख रहे हैं। यही है *ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान् जीव । गुरु - कृष्ण - प्रसादे पाय भक्ति - लता - बीज ।।*( सी सी 19.151) अनुवाद “ सारे जीव अपने - अपने कर्मों के अनुसार समूचे ब्रह्माण्ड में घूम रहे हैं । इनमें से कुछ उच्च ग्रह - मण्डलों को जाते हैं और कुछ निम्न ग्रह - मण्डलों को । ऐसे करोड़ों भटक रहे जीवों में से कोई एक अत्यन्त भाग्यशाली होता है , जिसे कृष्ण की कृपा से अधिकृत गुरु का सान्निध्य प्राप्त करने का अवसर मिलता है । कृष्ण तथा गुरु दोनों की कृपा से ऐसा व्यक्ति भक्ति रूपी लता के बीज को प्राप्त करता है । इस तरह महाप्रभु हम सभी को भाग्यवान बना रहे हैं और प्रातः काल में हमको जगा भी रहे हैं। प्रातः काल में जगना सीखा है और जगते ही हम जगन्नाथ पुरी धाम पहुंच गए और वहां के सभी दृश्य तो नहीं किन्तु कुछ सुन तो रहे थे कुछ महोदधि मतलब क्या? महा उदही, महासागर। सागर के तट पर ही है नीलाचल नीला + अचल ,नीले रंग का पर्वत वहां पर विराजमान है नीलाचल वासी जगन्नाथ कैसे हैं ? *नीलाचलनिवासाय नित्याय परमात्मने। बलभद्रसुभद्राभ्यां जगन्नाथाय ते नमः।।* अतः समुद्र के तट पर 'महोदधि" महा मतलब महान, उद मतलब जल वॉटर, हि मतलब बिग स्टोरीज महाउदधि, इस जल में वैसे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु प्रतिदिन स्नान के लिए भी जाया करते थे इसीलिए उदीहि सागर भी, (इट्स बे ऑफ बंगाल) हरि हरि ! यह सब देखना और सुनना भी संभव हो रहा है एक प्रकार से कुछ विराट रूप का दर्शन हम कर रहे हैं। अर्जुन ने देखा या भगवान ने दिखाया विश्वरूप दिखाया यूनिवर्सल फॉर्म जो हम देख रहे हैं यह सब वैसा ही कुछ विराट रूप है। कहां जगन्नाथ पुरी और कहां हम, कहां मैं और कहां आप बैठे हो कोई उनमें से अहमदाबाद कोई हेयर कोई देयर, एवरीव्हेयर। ९०९ लोकेशंस पर से हम एक ही दृश्य को देख रहे हैं या सुन रहे हैं कहां जगन्नाथपुरी कहां 909 स्थान में विराजमान भक्त कोई पंढरपुर में है तो कोई इस्कॉन हेयर कोई इस्कॉन देयर और यह सब परिक्रमा का अनुभव भी हम कर पा रहे हैं। आज परिक्रमा का दिन है विशेष दिन है। शंख का प्रकट दिन है इष्ट देव प्रभु कह रहे थे पांचजन्य ऋषिकेश भगवान के शंख का नाम है। पांचजन्य और वैसे जगन्नाथ पुरी धाम भी शंख के आकार का है। जगन्नाथ पुरी धाम का आकार शंख आकार का भी है और इस धाम में विराजमान है पुरुषोत्तम ! उत्तम पुरुष पुरुषोत्तम *गोविन्दम् आदि पुरुषं तम् अहं भजामि* आदि पुरुषोत्तम, पुरुषोत्तम जगन्नाथ स्वामी की जय !जगन्नाथ स्वामी ही है पुरुषोत्तम और इसका नाम भी है पुरुषोत्तम क्षेत्र, भगवान भी है पुरुषोत्तम और धाम का नाम भी है पुरुषोत्तम क्षेत्र कई नामों से जाना जाता है। इसको श्री क्षेत्र भी कहते हैं राधा रानी का क्षेत्र हुआ श्रीक्षेत्र, जगन्नाथपुरी गोलोक है. *गोलोकनाम्नि निजधाम्नि तले च तस्य देवीमहेशहरिधामसु तेषु तेषु। ते ते प्रभावनिचया विहिताश्च येन गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि।।* ( ब्रम्ह संहिता 5.43) अनुवाद: -जिन्होंने गोलोक नामक अपने सर्वोपरि धाम में रहते हुए उसके नीचे स्थित क्रमशः वैकुंठ लोक (हरीधाम), महेश लोक तथा देवीलोक नामक विभिन्न धामों में विभिन्न स्वामियों को यथा योग्य अधिकार प्रदान किया है, उन आदिपुरुष भगवान् गोविंद का मैं भजन करता हूं। जगन्नाथपुरी में एट लीस्ट थ्री इन वन, तीन धाम एक साथ है। यहां वृंदावन भी है जो गुंडीचा मंदिर है जगन्नाथ पुरी का एक स्लाइड में हम देख रहे थे चैतन्य महाप्रभु गुंडीचा मार्जन कर रहे हैं या रथ यात्रा में जगन्नाथ को कहां लाया जाता है गुंडिचा मंदिर अर्थात वृंदावन लाते है। कहां से लाते हैं? द्वारिका से या कुरुक्षेत्र से लाने का प्रयास लेकिन कुरुक्षेत्र आए कहां से? द्वारिका से आए। जहां जगन्नाथ स्वयं रहते हैं जिस मंदिर में बलदेव सुभद्रा है। द्वारिका, द्वारिका से बृजवासी भगवान को वृंदावन ले आते हैं। इस तरह जगन्नाथपुरी वृंदावन भी है द्वारिका भी है और नवद्वीप भी है। लेकिन वैसे गोलोकनाम्नि निजधाम्नि तले च तस्य जब कहते हैं या ब्रह्मा जी ने कहा जो हमारे आचार्य हैं। अर्जुन ने तो विश्वरूप को देखा यूनिवर्सल फॉर्म लेकिन ब्रह्मा ने देखा या ब्रह्मा को दिखाया भगवान ने यह सारे ब्रम्हांड यह सारे यूनिवर्स सारे विश्वरूप को भी या कहो कि भगवान ने ब्रह्मा को अपने दोनों साम्राज्य का दर्शन कराया ( मेटीरियल किंगडम एंड स्प्रिचुअल किंगडम ) आध्यात्मिक जगत और भौतिक जगत का या ब्रह्मा ने थोड़ा और देखा, ब्रह्मा को थोड़ा और दिखाया। इतना सारा अर्जुन को नहीं दिखाया जो ब्रह्मा को दिखाया या ब्रह्मा को ऐसे साक्षात्कार कराया भगवान ने। ब्रह्मा ने देखा अनुभव किया भगवान का पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण का, स्वयं भगवान का धाम कहां है और फिर भगवान के अलग-अलग अवतार कहां रहते हैं। कोई गोलोक में रहते हैं कोई सदाशिव में, सदाशिव लोक भी है पर भी कौन रहता है और फिर हम लोग भी कहां रहते हैं। यह ब्रह्मांड गोलोकनाम्नि निजधाम्नि तले च तस्य देवीमहेशहरिधामसु तेषु तेषु देवी, महेश्वर हरीधाम भूतेषु तेषु एनीवे यह सब दूसरी व्याख्या शुरू हो गई। अतः देवी धाम में हम हैं फिर महेश धाम, शिव जी का धाम है। आधा इस देवी धाम में है या महेश धाम, शिव जी का धाम या सदाशिव लोक कहिए वह आधा भौतिक जगत में है और आधा बैकुंठ लोक में है। हाफ एंड हाफ उससे ऊपर है हरी धाम और उससे ऊपर है गोलोकधाम अर्थात जगन्नाथपुरी है गोलोक धाम, वृंदावन के जैसे नवद्वीप है। वैसे जगन्नाथपुरी में वृंदावन भी है और वैसा ही है जहां गोलोक है ऐसा ही गोलोक जगन्नाथपुरी में है और गोलोक में भी दो विभाग हैं एक नवदीप पार्ट और दूसरा वृंदावन यह सब जैसा है वैसा ही वृंदावन है। आप जब वहां जाओगे फिर कहोगे हां ऐसा सुना तो था हमने जैसा सुना था वैसा ही है। अतः जगन्नाथपुरी वृंदावन भी है जगन्नाथपुरी नवद्वीप भी है और जगन्नाथपुरी गोलोक भी है फिर गोलोक में द्वारिका भी है और मथुरा भी है। इस तरह से जगन्नाथपुरी, यह विशेष धाम है। चार धामों में से यह जो बद्रिकाश्रम है, यहाँ बद्रिकाश्रम में नारायण रहते हैं। ये नारायण का स्थान है। बद्रीनारायण या बद्रिकाश्रम सतयुग में बद्री नारायण बद्री विशाल धाम की महिमा है फिर त्रेतायुग में है रामेश्वरम जहां राम भगवान भी पहुंचे और द्वापर युग में द्वारिका की महिमा है। समझ रहे हैं ना मैं ठीक कह रहा हूं? मैं जो भी कहता हूं सच ही कहता हूं या कहने का प्रयास तो होता है। इस प्रकार चार युगों में चार धाम की महिमा है। सतयुग में बद्रिकाश्रम त्रेता युग में रामेश्वरम और द्वापर युग में द्वारिका और कलयुग में जगन्नाथ पुरी धाम की जय! यह चार धाम चार युगों में जो चार अलग-अलग दिशाओं में भी हैं। हम जो कह रहे हैं या जो मैं कह रहा था कुछ देर पहले वैसे तुलना तो नहीं करनी चाहिए फिर तरोत्तम भी होती ही है या गुड बेटर बेस्ट की बातें एक समझ भी है इन सभी धामों में यह जो चार धाम की यात्रा प्रसिद्ध है। हिंदू समाज में भारत में चार धाम यात्रा तो उन चार धामों में जगन्नाथ पुरी धाम सर्वोपरि है। इट इज द बेस्ट क्योंकि वह गोलोक है और धाम बैकुंठ है या हरीधाम या महेश धाम किंतु जगन्नाथपुरी गोलोक है सर्वोपरि है। आज हमारा जगन्नाथ पुरी धाम पहुंचना संभव हुआ ,अभी चल ही रही है परिक्रमा,जो आप देख ही रहे हो, देखना मतलब परिक्रमा के दृश्य को देखना कि आप कहां हो ,जब हम परिक्रमा का दर्शन कर रहे हैं या ऐसा संभव हो रहा है यह सुन पाते हैं या हम कीर्तन भी सुन रहे थे तब हम कहीं और नहीं होते, हमारा शरीर कहीं हो सकता है हम ऑस्ट्रेलिया में हो सकते हैं हरी ध्वनि ऑस्ट्रेलिया में बैठी है। वैसे शरीर का कोई अस्तित्व नहीं है शरीर तो मिट्टी है, है कि नहीं है? शरीर नहीं के बराबर ही है मान लो कि शरीर है ही नहीं, है क्या? हम आत्मा हैं हम जड़ नहीं हैं। हम मिट्टी नहीं हैं जल पृथ्वी अग्नि वायु आकाश इनमें से हम कुछ भी नहीं हैं तो शरीर तो हम हैं ही नहीं, जहां भी हो, आपके घर में दीवार भी है, है कि नहीं या फिर कुर्सी पर बैठे हो व्हाट इज द डिफरेंस आप के बगल वाली दीवार और आप में क्या भेद ? या आप इस कुर्सी पर बैठे हो या आपके सोफे पर बैठे हो उसमें और आपके शरीर में क्या भेद है। हाथ पैर पेट में क्या अंतर है या प्रकृति में होती है विकृति और फिर हम धारण करते हैं आकृति, उसको शरीर कहते हैं। प्रकृति में होती है कुछ विकृति , कुछ अलग अलग रसायन एलिमेंट्स का मिश्रण होता है लेकिन है तो वे जड़ ही। शरीर कभी जीवित नहीं होता। शरीर डेड बॉडी ही होती है बॉडी इज ऑलवेज डैड, एनीवे थोड़ा विषयांतर होता ही रहता है। हम परिक्रमा के साथ हैं जगन्नाथ के साथ हैं या हम जगन्नाथ को जब देखते हैं जगन्नाथ का दर्शन भी कर रहे थे या रथ यात्रा के कुछ दृश्य देख रहे थे। पखंडी उत्सव को देख रहे थे या चैतन्य महाप्रभु डांसिंग इन फ्रंट ऑफ़ जगन्नाथ कार्ट, जगन्नाथ के समक्ष चैतन्य महाप्रभु का नृत्य और चैतन्य महाप्रभु और उनके प्रेम का उद्वेग भाव जो आंदोलित होते रहते हैं जैसे समुद्र में लहरें तरंगे आंदोलित होती हैं। चैतन्य महाप्रभु का भाव हरि हरि और वह भाव राधा का भाव है। चैतन्य महाप्रभु ने इस भाव का प्रदर्शन किया जगन्नाथपुरी में ही , दर्शन ही नहीं किया कोई एग्जिबिट नहीं बने हैं चैतन्य महाप्रभु। वैसे आप दर्शन करें या ना करें या दर्शन हो या ना हो, चैतन्य महाप्रभु तो स्वयं उसका अनुभव करने के उद्देश्य से जगन्नाथ पुरी पहुंचे थे या जगन्नाथ पुरी में राधा भाव, *राधा कृष्ण - प्रणय - विकृति दिनी शक्तिरस्माद् एकात्मानावपि भुवि पुरा देह - भेदं गतौ तौ । चैतन्याख्यं प्रकटमधुना तद्वयं चैक्यमाप्तं ब - द्युति - सुवलितं नौमि कृष्ण - स्वरूपम् ॥* (राधा - भाव आदि 1.5) अनुवाद " श्री राधा और कृष्ण के प्रेम - व्यापार भगवान् की अन्तरंगा ह्लादिनी शक्ति की दिव्य अभिव्यक्तियाँ हैं । यद्यपि राधा तथा कृष्ण अपने स्वरूपों में एक हैं किन्तु उन्होंने अपने आपको शाश्वत रूप से पृथक् कर लिया है । अब ये दोनों दिव्य स्वरूप पुनः श्रीकृष्ण चैतन्य के रूप में संयुक्त हुए हैं । मैं उनको नमस्कार करता हूँ , क्योंकि वे स्वयं कृष्ण होकर भी श्रीमती राधारानी के भाव तथा अंगकान्ति को लेकर प्रकट हुए हैं । " राधा भाव को अपनाएं हैं हरि हरि! उनके प्राकृटय के उद्देश्य का साफल्य जगन्नाथपुरी में हो रहा है। श्रीकृष्ण जो प्रकट हुए हैं पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में ही, *श्री-राधार भावे एबे गोरा अवतार हरे कृष्ण नाम गौर करिला प्रचार।।* (वासुदेव घोष भजन) अनुवाद- अब वही भगवान् श्रीकृष्ण राधारानी के दिव्य भाव एवं अंगकान्ति के साथ श्रीगौरांग महाप्रभु के रूप में पुनः अवतीर्ण हुए हैं और उन्होंने चारों दिशाओं में “हरे कृष्ण” नाम का प्रचार किया है। राधा भाव में वह कीर्तन कर रहे हैं राधा भाव में नृत्य कर रहे हैं चैतन्य महाप्रभु रथ यात्रा के समय मतलब राधा के प्रभु पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण जगन्नाथ स्वामी रथ में विराजमान हैं और राधा भावा ठाकुरानी चैतन्य महाप्रभु के रूप में समक्ष वहां सामने नृत्य कर रही हैं या जगन्नाथ का दर्शन कर रही हैं प्रार्थना कर रही हैं। *जगन्नाथ: स्वामी नयनपथगामी भवतु में* हे जगन्नाथ स्वामी ! क्या हो जाए? नयन पथ गामी आप बनिए , जगन्नाथ अष्टक भी प्रसिद्ध है। भाव क्या है जगन्नाथ स्वामी नयनपथ गामी भवतु , यू प्लीज विक्रम , मेरे आंखों के पथ पर आ जाओ, दर्शन दो, चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य का एक पर्सनल रीजन, बाकी रीजन *परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् | धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||* (श्रीमद भगवद्गीता 4.8) अनुवाद-भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ | ऐसा भगवत गीता के चौथे अध्याय में कृष्ण ने कहा है। वह भी उद्देश्य है किंतु इस समय एक एडिशनल उद्देश्य है एक विशेष उद्देश्य लेकर चैतन्य महाप्रभु या श्रीकृष्ण प्रकट हुए हैं और वह उद्देश्य है वे राधा को जानना चाहते हैं राधा की भाव भक्ति, राधा का प्रेम, इसीलिए और राधा ही बन गए, भगवान बन गए राधा, तभी तो वह जान सकते हैं जगन्नाथपुरी में चैतन्य महाप्रभु राधा बन गए *अन्तः कृष्णं बहिरं दर्शिताङ्गादि - वैभवम् । कलौ सङ्कीर्तनाद्यैः स्म कृष्ण - चैतन्यमाश्रिताः ॥* (आदि लीला 3.81) अनुवाद " मैं भगवान् श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का आश्रय ग्रहण करता हूँ , जो बाहर से गौर वर्ण के हैं किन्तु भीतर से स्वयं कृष्ण हैं । इस कलियुग में वे भगवान् के पवित्र नाम का संकीर्तन करके अपने विस्तारों अर्थात् अपने अंगों तथा उपागों का प्रदर्शन करते हैं | ओके निताई गौर प्रेमानन्दे ! हरि हरि बोल !

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