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16th july 2019 japa talk हरे कृष्णा तो आज हमारे साथ 487 स्थानों से भक्त लोग जप कर रहे हैं जिनकी संख्या लगभग 1000 है। तो यह हमारे जप करने का पूर्व अभ्यास होता है कि हम प्रत्येक सुबह जब जप करते हैं तो उसकी तैयारी हम पहले दिन की जो हमारा जीवन रहता है या जो भी हम करते हैं काफी बाध्य होता है। तो मैं यह बताना चाहता हूं कि जो हमने आज सुबह की जो तैयारी की है जप करने से पूर्व उसका जो तत्व है मुझे कल की जो तुकाराम महाराज के के जो गांव देहूगांव हम लोग गए थे तुकाराम महाराज के तो जैसे हमने वहां पर देहूगांव में जाकर विभिन्न स्थानों का भ्रमण किया। हमारे जो स्थान थे उन पर जाकर के तुकाराम महाराज के विषय में सुना और उनका जो ध्यान किया उनके विषय में हमने अधिक से अधिक उन स्थानों के विषय में और तुकाराम महाराज के जो वहां पर लीलाएं हुई उनके विषय में जब सुना तो आज सुबह का जो ध्यान के लिए तत्व है जप करते समय मुझे कल के ही जो देहूगांव कि हमने यात्रा की उससे मुझे प्राप्त हुआ। तो निश्चित रूप से यह भगवान की व्यवस्था है कि भगवान अपने शुद्ध भक्तों को भेजते हैं इस संसार में और जिस प्रकार से भगवान के शुद्ध भक्त व्यवहार करते हैं, आचार करते हैं खाते हैं सोते हैं, वह वास्तव में एक उदाहरण होता है और अन्य जीव आत्माओं के अनुकरण करने के लिए। तो कहीं बार हमारे मन में यह संदेह आता है कि क्या वैकुंठ है, कौन सा स्थान है जहां पर भगवान रहते हैं । तो जब हम उस स्थान पर गए देहु में जहां से तुकाराम महाराज सह शरीर वैकुंठ धाम गए थे, तब हमने वहां पर जो उन्होंने चार हजार अभंग अपने जीवन काल में लिखें उसमें से आखरी अभंग जो वे साक्षात गरुड़ के ऊपर आरुण हुए जब बैठ गए तब उन्होंने अपना आखिरी अभंग बोला ........... मैं अपने गांव जा रहा हूं और आप सब मेरा राम राम स्वीकार करिए, और इस प्रकार से सबके देखते-देखते वे वैकुंठ यान में बैठे और वह बैकुंठ यान वहां से जाने लगा, तो कुछ गांव वालों ने सोचा कि इनका गांव तो यही है, निश्चित रूप से यह है आकाश में कुछ भ्रमण करें के, सैर सपाटा करके वापस आ जाएंगे, परंतु वह उनका भ्रम था, क्यों क्योंकि तुकाराम महाराज तो अपने गांव, अपने वास्तविक घर चले गए थे और वहां वे घंटों इंतजार करते रहे, कुछ दिन इंतजार करते रहे, महीने इंतजार करते रहे लेकिन तुकाराम महाराज वापस नहीं आए। तो भी इस प्रकार से जो हमारा संदेह होता है कि क्या वैकुंठ है?, भगवान का कोई धाम है ? उसका प्रत्यक्ष प्रमाण इस प्रकार से देते हैं कि अपने शुद्ध भक्तों के माध्यम से कि हमने देखा तुकाराम महाराज सह शरीर भगवत धाम गए। देहु में उनकी कोई समाधि नहीं है, कि हमें कोई समाधि का दर्शन होता हो, तो वह अपने शरीर के साथ वैकुंठधाम चले गए। तो कीर्तनया सदा हरी, तो संत तुकाराम महाराज हमेशा जप करते रहते थे "पांडुरंग पांडुरंग जय जय राम कृष्ण हरि"। इस प्रकार से हमेशा हमेशा वह जप करते रहते थे भगवान के नाम का, और वास्तव में उनके लिए बहुत ही कठिन होता था जप को रोक पाना, जबकि हम लोगों के लिए अधिकांशतः जप करना बहुत कठिन हो जाता है। तो वे जब जप करते थे कीर्तन करते थे तो घंटों नृत्य करते थे, उच्च स्वर में कीर्तन करते थे और वह कभी कीर्तन रुकता नहीं था, जैसा गौरांग महाप्रभु चाहते थे कि कीर्तनया सदा हरि कि हमेशा हरि नाम का जप करते रहें। तो यह तुकाराम महाराज के जीवन से पूर्ण रुप से परिलक्षित था, दिख रहा था कि वह कभी हरि नाम का जब छोड़ते नहीं थे। तो एक सुबह एक सज्जन तुकाराम महाराज के निवास पर आए, सज्जन नहीं थे अपराधी थे तुकाराम महाराज के , तो वह जब घर आए तो इस प्रकार से आवाज लगाई तुकोबा तुकोबा कहां हो तुम? तुम कहां गए हो? तो तुकाराम महाराज के घर में किसी ने कहा कि आप बैठो वे अभी कहीं गए हैं, अभी थोड़ी देर में आएंगे। तो जब वह बैठे रहे वहां पर तब उन्होंने देखा कुछ समय पश्चात जब तुकाराम महाराज वापस आए तो उनके हाथ में लौटा था और वह शौच आदि क्रियाओं से निवृत्त होकर आ रहे थे। तब यह जो व्यक्ति थे जो कि वैष्णव अपराधी थे तुकाराम महाराज के अपराधी थे, उन्होंने उस लोटे को देख कर के कहा, क्या तुमने अभी तक स्नान नहीं किया है? और तुम नाम का जप कर रहे हो, तुम क्या इतने मूर्ख हो कि तुम्हें यह भी नहीं पता कि बिना स्नान के बिना सूची हुए नाम जप नहीं किया जाता है कोई धार्मिक क्रिया नहीं की जाती, तुमको इतना भी नहीं पता कि पहले स्नान आदि करना चाहिए तब हमें धार्मिक अनुष्ठान या क्रियाएं करनी चाहिए। तब तुकाराम महाराज ने कहा कि मेरे लिए बहुत कठिन हो जाता है यह बहुत कठिन है नाम जप कुछ छोड़ना और मुझे पता नहीं चलता है कि स्नान के बिना मैं अपने भगवान का स्मरण नहीं कर सकता या जप नहीं कर सकता या उनके नाम का कीर्तन नहीं कर सकता यह मेरे लिए बहुत कठिन है, बहुत ही मुश्किल है मेरे लिए इस प्रकार से रहना। तुकाराम महाराज ने कहा कि मुझसे जप बंद नहीं होता और यह मेरे वश की बात भी नहीं है कि मेरे भीतर से कुछ होता है कि मैं अनायास बिना प्रयास किए जप करता रहता हूं। तब जो वह पाखंडी अपराधी था उसने बलपूर्वक तुकाराम महाराज के होठों को बंद करा अपने हाथों से और उसने जोर से तुकाराम महाराज का एक प्रकार से मुंह बंद करने का प्रयास किया और तब उसने देखा कि तुकाराम महाराज के पूरे शरीर से हरि नाम जब निकल रहा था, उनकी एक एक रूम से हरि नाम का उच्चारण हो रहा था और तब उसने देखा कि तुकाराम महाराज वास्तव में खाली मुंह से ही जप नहीं कर रहे थे, उनका पूरा शरीर, उनकी आत्मा जप कर रही थी क्योंकि जो जप करती है वह आत्मा है ना कि यह शरीर है। तो तुकाराम महाराज का पूर्ण जो एक प्रकार से आत्मा है वह हर समय निरंतर जप करती थी। तो हमने कल सुना और हमने इस बात का स्मरण किया कि किस प्रकार से तुकाराम महाराज बिना कोई प्रयास किए बिना कुछ बल लगाए हरिराम का निरंतर जप करते रहते थे, जैसे गौरांग महाप्रभु ने कीर्तनया सदा हरी करने के लिए कहा, तो इसका हम...ek word smjh nae aya timing 27.05... प्रमाण देख सकते हैं तुकाराम महाराज के रूप में। तो हमने यह भी स्मरण किया था कि यह जो कर्म कांडी होते हैं, पाखंडी होते हैं , वैष्णव अपराधी होते हैं, तो इस प्रकार से व्यक्तियों का अपराध करते हैं। तो तुकाराम महाराज अत्यंत ख्याति प्राप्त कर रहे थे और सभी जो वहां निवासी थे उनके गांव के सब उनसे बहुत प्रेम किया करते थे और जिस प्रकार से हमने देखा कि नामाआचार्य श्रीला हरिदास ठाकुर के जीवन में हुआ कि जब उनसे बहुत लोग प्रेम करते थे तो कुछ लोगों को उनके प्रति बहुत ईर्ष्या होती थी। तो इसी प्रकार तुकाराम महाराज के जीवन में भी हुआ कि कुछ लोग बहुत उनसे ईर्ष्या करने लगे और उन्होंने एक वैश्या को तुकाराम महाराज को पथभ्रष्ट करने के लिए भेज दिया, अब हमने देखा कि जब तुकाराम महाराज के पास वह वैश्या आई जब हमने सुना कि किस प्रकार से तुकाराम महाराज निरंतर कीर्तन कर रहे थे "जय जय राम कृष्ण हरि जय जय राम कृष्ण हरि" और उनके पास उनका अंबोरा था और चिपड़ी थी चिपड़ी जो करताल की तरह होती है, और वह उसको बजा बजा कर बहुत ही अत्यंत अभाव के साथ हरिराम का कीर्तन कर रहे थे और नाच रहे थी तो वह बेचारी वेश्या वहां क्या करती, वह वहां बैठी थी और अपना कार्य कर रही थी, वह नाच रही थी वह उनका ध्यान तोड़ने के लिए प्रयास कर रही थी, परंतु तुकाराम महाराज तो पूर्ण रुप से ध्यान मे थे। उनके अंदर कोई ऐसा एक स्थान नहीं था, जहां पर की कोई बाहरय वस्तु या कोई बाहरी भाव प्रवेश कर सकें। इस प्रकार से उनके बीच में और उस वैश्या के बीच में कुछ वार्ता भी हुई, और उसने तुकाराम महाराज के समक्ष अपने को पूर्ण रूप से समर्पित किया, वह गिर गई उनके चरणों में। तो तुकाराम महाराज एक प्रकार से अच्युत थे, क्यों क्योंकि वह भगवान अच्युत के पूर्ण शरणागत थे इसलिए उन्हें संसार की कोई भी बाहरी शक्ति उनका पतन नहीं कर सकती थी। तो इस प्रकार से जिस प्रकार से नाम आचार्य श्री हरिदास ठाकुर के जीवन में हुआ वैसे ही हमने कल देहु गांव में संत तुकाराम महाराज के विषय में सुना की किस प्रकार से उन्हें भी इस प्रकार से माया ने अटैक किया वैश्या के रूप में और यह यहां से कुछ ही दूर देहु गांव में हुआ था। तो हम सब भी माया को पूर्ण रूप से परास्त कर सकते हैं, यदि हम हरिनाम में पूर्ण शरणागति लेते हैं, तो माया हमारा कुछ भी नहीं कर सकती है। जैसा भगवत गीता में कहा है....sloka । तो इस प्रकार से हम विक्टोरियस होंगे हम जीतेंगे माया से जीतेंगे जिस प्रकार से नाम आचार्य श्री हरिदास ठाकुर भी जीते थे, युद्ध को जीते थे और वह वैश्या जो आई थी वह भी एक प्रकार से जीत गई थी क्यों क्योंकि उसका भी आगे का जीवन बहुत सुंदर बन गया जब वह 1 भक्तों से मिली और उसने हरिनाम को ग्रहण किया। तो इस प्रकार हम देखते हैं कि तुकाराम महाराज किस प्रकार से कामिनी से, कामवासना से पूर्ण रूप से मुक्त थे और कंचन से भी..... इत्यादि से भी आसकती किसी प्रकार की नहीं थी। तो 1 दिन शिवाजी महाराज ने अपने कुछ राजदूतों के हाथ अपने कुछ मैसेंजर को भेजा तुकाराम महाराज के पास बहुत सारे आभूषण, वस्त्र आभूषण लेकर के और नाना प्रकार के सुंदर द्रव्य भेंटे तुकाराम महाराज के घर पर और जब तुकाराम महाराज उस समय घर पर नहीं थे, वह बाहर गांव गए हुए थे, तो तुकाराम महाराज की पत्नी ने वह सारे वस्त्र आभूषण इत्यादि जो भी उपहार थे उनको ग्रहण किया और वह अपने को उन से अलंकृत करने लगी और अपने बच्चों को माधव यह लो तुम यह पहनो और तुम यह पहनो और अपने बच्चों को भी वह इस प्रकार से वह आभूषण देने लगी और अपना सब मेकअप करने लगी और अपने को सवारने लगे उन आभूषणों से और उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था इस प्रकार से, परंतु जब तुकाराम महाराज वापस आए, तो उन्होंने कहा अरे आप यह सब क्या कर रहे हो, तुम कैसे कर सकते हो, और उन्होंने यह सब कह कर के सारे वस्त्र और आभूषण एकत्रित किए और उन्होंने जो शिवाजी महाराज के मैसेंजर या राजदूत आए थे उनको वापस किए कि आप यह सब लेकर के जाओ हमें इसकी आवश्यकता नहीं है। तो हम जैसे सुनते हैं....sloka कि दूसरे की जो संपत्ति है वह एक प्रकार से धूल के समान है पत्थर के समान समझते हैं जो भक्त लोग होते हैं। इस प्रकार से कोई भी सांसारिक वस्तु या पदार्थ तुकाराम महाराज को आकर्षित नहीं कर सकता था। शिक्षा अष्टकम 4 श्लोक जैसे कि हम यह प्रार्थना नित्य प्रति करते हैं, तुकाराम महाराज की है प्रार्थना जैसे भगवान ने स्वयं सुन ली थी , और वह किसी भी प्रकार के धन से, किसी प्रकार के व्यक्तियों से, सुंदर स्त्रियों से यह सुंदर कविताओं से किसी भी चीज से आकर्षित नहीं होते थे और उनकी कोई रुचि नहीं थी संसार की किसी भी वस्तु में पर उनकी एकमात्र रुचि भगवान श्री कृष्ण मेथी और जैसा कहते हैं गोलोकेर प्रेम धन हरि नाम संकीर्तन तो तुकाराम महाराज जो थे देहु गांव के सबसे धनी व्यक्ति थे क्यों क्योंकि उनके पास साक्षात तो गोलोक का प्रेम धन था, जो हरि नाम संकीर्तन था, जिसमें वह नित्य प्रति हर समय डूबे रहते थे, परंतु शिवाजी महाराज जो थे वह खुश नहीं हुए इससे और वह उनको कुछ उपहार देना ही चाहते थे। तो शिवाजी महाराज ने ऐसा सोचा विचार किया कि हो सकता है तुकाराम महाराज सबके सामने गांव वालों के सामने उनके उपहार स्वीकार नहीं कर रहे हो, तो उन्होंने एक युक्ति बनाई कि मैं ऐसा करूंगा कि कल सुबह ..... Time 47.18 not understood. उस समय में घाट पर इंद्रानी नदी के तट पर जहां तुकाराम महाराज दैनिक स्नान के लिए आते हैं, मैं वहां पर उपहार आदि भेजूंगा उनके लिए, स्वर्ण अलंकर इत्यादि भेजूंगा उनके लिए। तो उन्होंने ऐसा ही किया, जिस घाट पर तुकाराम महाराज स्नान करते थे, द्रव्य सोने के आभूषण , वस्त्र इत्यादि रखवा दिए और उनके मैसेंजर्स भी साथ में थे उनके जो सैनिक से वह भी उनके साथ मैं थे। लेकिन तुकाराम महाराज जब आ रहे थे उस दिन स्नान करने के लिए तो उन्होंने देखा कि वहां कुछ चमक जा रहा है, तो उन्होंने उस घाट को छोड़कर दूसरे घाट पर चले गए स्नान करने के लिए। तो वहां जो घाट पर देहू निवासी थे, उन्होंने पूछा कि आज आप क्या हो गया कि आज आप अपने घाट पर स्नान नहीं कर रहे हो, जहां रोज स्नान किया करते हो आज आप हमारे यहां, आपने अपना घाट क्यों बदल दिया? । तो तुकाराम महाराज ने कहा कि मुझे लगता है कि उस घाट पर किसी ने शौच आदि करिया करी है, मल त्याग दिया है। तो हम देख सकते हैं कृष किस प्रकार से जैसा कि स्वर्ण मैं प्रकाश होती है या प्रभाव होता है,‌ सोने में जो चमक होती है, उसी प्रकार का जो वर्णन है वह मल का भी होता है। तुकाराम महाराज ने उसको मलवत त्याग दिया। इस प्रकार से हम देख सकते हैं कि तुकाराम महाराज पूर्ण रूप से विरक्त , उनके अंदर कोई भी अभिलाषा नहीं थी, किसी प्रकार की सांसारिक इच्छाएं थी किसी प्रकार की कामनाएं नहीं थी, कि उन्हें संसार से कुछ चाहिए। वह पूर्ण रूप से संतुष्ट थे, तुम किस प्रकार से पूर्ण रुप से संतुष्ट थे, क्योंकि वह हमेशा हरि नाम कीर्तन किया करते थे"हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे" । तो क्या यह संभव है कि जब करने से हम पूर्ण संतुष्ट हो सकते हैं? तो यह तुकाराम महाराज के जीवन से हम ज्वलंत देख सकते हैं कि तुकाराम महाराज किस प्रकार से पूर्ण रूप से संतुष्ट थे, उन्हें किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं, हरि नाम के अतिरिक्त। हरेर नाम हरेर नाम हरेर नाम ए व केवलम तो हम देखते हैं किस प्रकार से, हरि नाम ही केवल जो की तुकाराम महाराज ने स्वीकार किया, तो यह हम समझ सकते हैं कि भगवान भगवान ने कृपा वर्षा तुकाराम महाराज जैसे संतों को हमारे बीच मैं भेजा। तो आप पुणे नगरी पुणे के जो निवासी हैं, जो इतने नजदीक रहते हो आप सब भाग्यशाली हो कि कि आप के समीप ही एक बहुत सुंदर स्थान है देहू, जो कि बहुत ही नजदीक है और आप वहां जा सकते हो और तुकाराम महाराज को अपने जीवन में उतार सकते हो, आप इतने नजदीक रह रहे हो देहू गांव के। तुकाराम महाराज एक ग्रस्त है कल हमने यह भी सुना था देखा था की तुकाराम महाराज ग्रस्त थे, वे कोई संन्यासी नहीं थे मेरे सामान या राधानाथ स्वामी महाराज के समान या गोपाल कृष्ण गोस्वामी महाराज के समान अपितु वह एक ग्रस्त थे और हमारा जो कांग्रेगेशन है पुणे कहा या कहीं के भी भक्त हैं वह अधिकांश गृहस्थी है। तो उन गृहस्थो के लिए एक आदर्श गृहस्थ के रूप में संत तुकाराम महाराज ने अपना जीवन जिया । वह एक आदर्श गृहस्थ थे। गृहस्थ जो है संत तुकाराम महाराज के चरणों का अनुगमन करते हुए अपने गृहस्थ जीवन को जी सकते हैं लीड कर सकते हैं हरी नाम की शरण लेकर के। हरिनाम संकीर्तन की जाए संत तुकाराम महाराज की जय श्रीला प्रभुपाद की जाए गौर भक्त वृंद की जय

English

16th July 2019 Inspiring devotion of Tukaram Maharaja So, the part of the preparation, this morning chanting, we prepared the previous day, so that we could chant better, chant attentively during the morning hours. So, I would say, for me, I have prepared. I did the preparation, of my this morning chanting yesterday as we visited Dehu Gaon, the birth place of Tukaram. Yesterday, as we visited Dehu Gaon, the Dehu village, of course, we had several hundreds of devotees with us. We were remembering and sharing the memories of Tukaram, so that is inspiring, that has become an inspiration for this morning's chanting. As I was chanting today, this morning, I was remembering our visit to Dehu Gaon, the life of Tukaram Maharaja. Hari Hari! So, this is certainly Lord's arrangement. Lord sends His pure devotees into this world and the way they live their lives and their dealings and thoughts and acts and all their dealings, whatever they do, becomes an inspiration, a glaring example for the whole world to follow. Does Vaikuntha exists? So many ask this question; we all have that question. So, yesterday we were there, we visited the Vaikuntha Viman landing spot and then we remembered the whole episode how Tukaram boarded that plane. While leaving his last words were, he had compiled four thousands abhangas. The last abhanga he recited that he compiled and spoke, sang, as he sat on the plane. ami jati amchya gava amcha rama rama ghyava This was his last abhang wherein he sings, "I am going back to home, please, accept my Ram Ram Ram Ram, I am going." He went, the aircraft, Vaikuntha Viman departed and he never returned. Now, these villagers, of course, they were thinking that Tukaram will make a few rounds up there and will come back. ami jati amchya gava amcha rama rama ghyava His gaon is right here. But they were disappointed. They were waiting and waiting for hours, for days, but Tukaram never returned as the aircraft never returned, went back to home, back to Vaikuntha or back to Goloka. So, he is giving some proofs like this. You want a proof of Vaikuntha or Vaikuntha exists and people go back to home? Look, there is life of Tukaram or departure of Tukaram, he left for Vaikuntha. Hence, there is no samadhi of Tukaram also. In Alandi there is a Samadhi but there is no samadhi of Tukaram or anywhere on this planet, there is no samadhi of Tukaram. This is another amazing thing, with his own body, he departed. So, it is an amazing evidence of the existence of Vaikuntha of devotees leading the life of devotion, they do go back to home, back to Vaikuntha or Goloka. kirtaniya sada hari Tukaram Maharaj always chanted the holy names of Panduranga, Panduranga, jai jai Ram Krishna Hari. So, it was difficult for him to stop singing and chanting. For us, it's difficult to chant, utter these names, But Tukaram, once he started chanting and singing, he would just go on and on and on and he was unstoppable. So, he was always doing as is expected by Caitanya Mahaprabhu. He gave goal to His devotees, kirtanya sada harih! And Tukaram Maharaja, yet, another example of someone who did kirtaniya sada hari all the times. Then one morning, a person, he was not a gentleman, he was an anti-party, he was an offender, he had come to Tukaram's home. He inquired, "Tukaba, are you here?" So, the family members told, "No, he would be just now coming. Please hold on, just wait here." So, after some time, Tukaram returned. During the morning hours, he had gone to the fields to take care of his body, pass stool. Coming back, and this person who was vaisnava aparadhi, Tukaram aparadhi, he saw Tukaram returning. Seeing he had lota in his hand, in Tukaram's hand, he asked, "Did you take bath?" "No, not yet." "And you are chanting, doing harinama, kirtana, without taking bath? Such a fool you are! Offender! You do not know the basic rules how to keep clean, ‘suchi’, and then begins the process of worship or chanting or dharmic activities he performed." So, Tukaram said, "I am sorry, I, it’s very difficult to follow, for me to follow this rule and only after I have taken my snana, my bath and then I begin my singing or remembering or worshiping. "And Tukaram Maharaja said, "You know, I am not able to stop chanting. It's beyond me. Something within me is forcing me, dictating me, prompting me to chant and I just cannot stop. If you wish, you could try stopping my chanting." Then there is this person, the aparadi, the karmakandi, paakhandi, he stepped forward and he held the neck of Tukaram tight so that he does not chant but the chanting did not stop. Now, not only his mouth was chanting, Tukaram's whole body was chanting. From the pores of his body there was the trance of the holy name of the Lord. His body was trembling and vibrating and singing was on and neither Tukaram was not able to stop chanting on his own and neither any external forces or parties were able to stop that chanting because, in fact, personalities like Tukaram, of course, nobody's body chants, its soul chants. So, Tukaram's soul is chanting and he is chanting and chanting and never stopping. So, this way we also heard and remembered how Tukaram Maharaja was always doing his kirtaniya sada hari activity or process. Now, we also remembered, one thing, there are karmakandis and pakhandis and hypocrites and offenders; offenders of the vaishnavas, aparadis and nama aparadis. And Tukaram was becoming popular and well known, he was loved by all and they were not very happy with the name, fame, glory of Tukaram Maharaja. Similar to what they did to Sri Namacarya Srila Hari Das Thakura, a prostitute was sent to Tukaram, like was sent to Hari Das Thakura. And the prostitute tried her best and she could not succeed as Tukaram was busy absorbed in bhajan with his veena in one hand, chipdya- some kind of kartal, and he is absorbed and singing, ‘Jai Jai Ram Krishna Hari, Jai Jai Ram Krishna Hari.’ So, what could the poor prostitute do? Tukaram was fully absorbed and fully satisfied within chanting the holy name of the Lord. There is no vacancy with something external or outside. Tukaram was calm and just happily chanting. So, prostitute did all that she could do, was dancing and trying to get the attention of Tukaram but she failed. She surrendered unto Tukaram Maharaj, begged for forgiveness for such an offensive attempt to cause his fall down but there was no way maya could, prostitute could cause his fall down. He is like achyuta, he is with achyuta, he is stuck with achyuta, infallible. So, it was not possible, so, very similar to what happened to Namacarya Srila Hari Das Thakur and a prostitute that happened not far from here, Dehu Gaon with Tukaram Maharaj, very same thing. We should be contemplating upon, take inspiration to keep chanting Hare Krishna and we you are not alone and then you could become victorious. yatra yogesvarah krsno yatra partho dhanur-dharah tatra srir vijayo bhutir dhruva nitir matir mama(BG 18.18) There is victory and no defeat. So, Tukaram Maharaj became victorious and prostitute also became victorious in a sense, she surrendered unto Tukaram Maharaj and she had a glorious life then onwards. Tukaram Maharaj was free from kamini, kama vaasna and also free from kanchan, the gold or the wealth. One time, Shivaji Maharaj wanted to send or he did send a special gift, some clothes and ornaments. He had sent his rajadhuta or messenger,Tukaram Maharaj was out of station, was not in. So, his wife, Tukaram's wife accepted all the gifts. She started wearing ornaments and putting clothes on and giving, "okay my dear, you take this" to son and daughter, and wearing makeup and they were really happy, seeing they've never experienced any expensive clothing and ornaments. But Tukaram arrived and he said "No, no, no what are you doing?" and took all those, took away all those ornaments and clothes from children and from wife and returned, "You take them, we don't need this kind of gift and have no interest in this. para-dravyesu lostavat Wealth of others is like dirt or pebbles or rock, no interest, no attempt to enjoy or exploit wealth like this. So, this is Tukaram. na dhanam na janam na sundarim kavitam va jagad isa kamaye ( Siksastakam verse 4) We are praying. Tukaram's prayers were already heard and he had no interest in dhanam the wealth and janam the following and sundarim beautiful women, the opposite sex, he had no interest whatsoever. He has only interest in Krishna's name and that is wealth, right? That is the wealth. Golokera prema dhana, dhan, said dhan, prem dhana, so Tukaram had dhana, so he was the wealthiest person in Dehu, in the world in fact. So, he was not, no interest in wealth or this, that. Jai Tukaram Maharaj ki, jai! So, Shivaji Maharaj did want to give some wealth or some gifts, some gold. So, he thought he is not accepting this, maybe he is thinking others would watch him and he does not want others to see while he is receiving these valuable gifts and ornaments, so let us do this hiding when there is no one around on the wealth available, or made available, then certainly he will grab it. So, thinking so, now that is a little different strategy of Shivaji Maharaj and his gifts deliverers or messengers. So, what they did was one early morning, they went to Indrayani Ghat. They knew that Tukaram Maharaj comes there during the dawn time and there is less light and to take bath. So, they placed gold and ornaments and wealth like that, displayed it and they thought for sure he will be by himself, no one will be able to see him taking it or accepting. So he would go for it but that did not happen. When Tukaram went he saw all ornaments there. They are dazzling, shining golden ornaments. So, Tukaram Maharaj left that place and went to an another ghat to take snana that morning. Another said, "oh, you are taking bath here today? Why not your ghat, every morning you have been in such and such ghat but today you are bathing here?" He said, "I think someone has passed stool there.” The stool also has complexion like gold. So, he wanted to stay away from the stool, golden stool and so he was fully detached and no hankering, no liking, no wanting wealth like this because he was fully satisfied chanting: Hare Kṛṣṇa Hare Kṛṣṇa Kṛṣṇa Kṛṣṇa Hare Hare Hare Rāma Hare Rāma Rāma Rāma Hare Hare And it is possible to be fully satisfied by chanting. How do we know? We know from life of Tukaram. He was happy, fully satisfied. What was the cause of his satisfaction? Joy and the holy name, in another word, Lord's name, Lord's pastimes, Lord's darsana, Lord's service until the Lord. harer nama harer nama harer namaiva kevalam kalau nasty eva nasty eva nasty eva gatir anyatha harer namaiva kevalam This we can understand from. Kindly, Lord has sent such saints, Sant Tukaram in this world. Residence of Pune, Punnya Nagri are very fortunate. Tukaram birth place is just around the corner from here. So, we should make Tukaram a hero and follow the example of Sant Tukaram Maharaj ki, jai! Yesterday also we said that Tukaram Maharaj was a, householder, not a sannyasi like ourselves, like me or Radhanath Maharaj or Gopal Krishna Maharaj. He was a grihastha. Devotees have made a congregation so for them they could see how another grihastha, the special one from their town, from Pune, Dehu, not two towns, they are the same town, so, study his life and teachings, follow his footsteps and make your life perfect, especially by chanting the holy name of the Lord the way Tukaram chanted or relished chanting. Okay, time has come to stop. Hari nama sankirtan ki, jai! Sant Tukaram Maharaj ki, jai! Srila Prabhupada ki, jai! Gaura bhakta vrnda ki, jai!

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