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हरे कृष्ण जप चर्चा, पंढरपुर धाम, 03 जनवरी 2021 758 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। नमः ॐ विष्णु पादय, कृष्ण पृष्ठाय भूतले, श्रीमते भक्ति वेदांत स्वामिन इति नामिने । नमस्ते सरस्वते देवे गौर वाणी प्रचारिणे, निर्विशेष शून्य-वादी पाश्चात्य देश तारिणे ।। नमः ॐ विष्णु पादय, कृष्ण पृष्ठाय भूतले, श्रीमते भक्ति सिद्धांत सरस्वती इति नामिने । श्रीवर्षाभानवीदेवी दयिताय कृपाब्धये । कृष्णसंबंधविज्ञानदायिने प्रभवे नम: ।। माधुर्योज्जवल प्रेमाढय श्रीरूपनुगभक्तिद। श्रीगौरकरुणाशक्ति विग्रहाय नमोस्तुते।। नमस्ते गौरवाणी-श्रीमूर्तये दीन-तारिणे। रूपानुग विरुद्वापसिद्धांत-ध्वान्त- हारिणे।। यह प्रणाम मंत्र है। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर तिरोभाव तिथि महोत्सव की जय। आप समझ गए होंगे और आपने ध्यानपूर्वक सुना होगा। मैं प्रणाम मंत्र कह रहा था। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर चित्र भी देख रहे हो। हरि हरि। तो ऐसे श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर तिरोभाव महोत्सव की जय। तिरोभाव आविर्भाव समझते हो। आज पुण्यतिथि है महाराष्ट्र में कहते हैं पुण्यतिथि। आज के दिन समाधिस्थ श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर, इनकी समाधि मायापुर में है। चैतन्य गौड़ीय मठ जहां पर श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर का गौडीय मठ का हेड क्वार्टर मायापुर में है। उसी हेड क्वार्टर में आज के दिन 1936 में समाधिस्थ हुए श्रील भक्ति सिद्धांत। वैसे वह कोलकाता में थे, एक विशेष रेलगाड़ी से उनके वपू को कोलकाता से कृष्ण नगर और कृष्ण नगर से मायापुर लाया गया था। समाधि समारोह उस वर्ष 31 दिसंबर 1936 था। हरि हरि। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर तिरोभाव तिथि महोत्सव की जय। उनका जन्म हुआ जगन्नाथपुरी में। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर के सुपुत्र रहे। जगन्नाथ को प्रार्थना कर ही रहे थे। विमला देवी से प्रार्थना कर रहे थे कि उन्हें ऐसा एक पुत्र रत्न प्राप्त हो जो इस हरे कृष्ण आंदोलन का प्रचार कर सकता है। जब पुत्र रत्न प्राप्त हुआ ही तो तब श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने उनका नाम रखा विमला प्रसाद। यह जगन्नाथ प्रसाद है, विमला देवी का प्रसाद है। तो भगवान की शक्ति है विमला। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर के कुछ चरित्र भी लिखे गए हैं। एक चरित्र का नाम दिया गया, विष्णु का जगन्नाथ का एक किरण। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर के रूप में प्रकट हुआ। हरि हरि। जब विमला प्रसाद शिशु ही थे। अभी अभी जन्म थे फिर उस वर्ष की रथयात्रा संपन्न हो रही थी और रथ जब श्रील भक्ति विनोद ठाकुर के कोठी के सामने से गुजर जा रहा था। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट थे। रथ को कोठी के समक्ष वहां रोका गया। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर को सीढ़ी से चढ़कर, भगवती शायद जहां तक नाम याद है श्रील भक्ति विनोद ठाकुर की भार्या। फिर उनकी धर्मपत्नी ने अपने बालक को जगन्नाथ के दर्शन कराए और जगन्नाथ के चरणों में रखा छोटे विमला प्रसाद को। जगन्नाथ में विशेष कृपा की आशीर्वाद दिया शक्ति प्रदान की, कैसे? जगन्नाथ के गले का हार विमला प्रसाद के गले में गिर गया। मानो जगन्नाथ ने पहनाया अपने गले का हार श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर, भविष्य में होने वाले श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर, विमला प्रसाद को पहनाया। हरि हरि। ऐसे विमला प्रसाद श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर के रूप में विख्यात हुए। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने प्रारंभ की हुई कई कार्य कई योजनाएं या एक दृष्टि से श्रील भक्ति विनोद ठाकुर कृष्णभावनामृत आंदोलन की नींव डाल रहे थे स्थापना कर रहे थे। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर उसको आगे बढ़ाएं श्रील भक्ति विनोद ठाकुर के प्रचार प्रसार को। हरि हरि। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जो सप्तम गोस्वामी के रूप में भी प्रसिद्ध थे। छ: गोस्वामी वृंदावन के और सातवे गोस्वामी हुए मायापुर के नवद्वीप के और वह रहे भक्ति विनोद ठाकुर। एक दृष्टि से कहा जा सकता है भक्ति विनोद ठाकुर ही नवद्वीप धाम को प्रकाशित किए। एक समय ऐसा भी था कि नवद्वीप में चैतन्य महाप्रभु का जन्मस्थली कहां है कौन सी है।इसके संबंध में कहीं सारे भ्रम उत्पन्न थे। कोई कहता है यहां है कोई कहता है यहां है कोई कहता है गंगा के उस पश्चिमी तट पर है। तो कई सारे मत मतांतर थे। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने एक समय जब वह अपनी कोठी में जो स्वरूप गंज में जलंगी नदी के तट पर भक्ति विनोद ठाकुर रह रहे थे। पहले जगन्नाथ पुरी डिस्ट्रिक्ट के मैजिस्ट्रेट थे। वहां के स्थानांतरण कराए गए कृष्ण नगर जिला। तब वह रहने लगे स्वरूप गंज में जलंगी नदी के तट पर। तो एक दिन की बात है उन्होंने एक विशेष दर्शन हुए जलंगी नदी के उस पार। सप्रकाश को देखा और प्रकाश के मध्य में कीर्तन हो रहा है ऐसा भी दृश्य देखा। फिर उनको एक साक्षात्कार हुआ दर्शन हुआ इस बात का कि चैतन्य महाप्रभु की जिस स्थान को देख रहे थे कोटी सूर्य समपप्रभा तो ऐसी बात प्रकाश ही प्रकाश। वही स्थान चैतन्य महाप्रभु के आविर्भाव स्थान है और उनको ऐसा अनुभव हुआ भक्ति विनोद ठाकुर को हुआ। इसकी पुष्टि करने के लिए उन्होंने अपने शिक्षा गुरु जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज की सहायता ली। उस समय जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज की आयु 140 वर्ष थी। चलना घूमना फिरना तो मुश्किल ही था। उन दिनों उनको टोकरी में बैठा कर, उनको ढोह के अलग-अलग स्थानों पर ले जाया करते थे। तो भक्ति विनोद ठाकुर ने ऐसी व्यवस्था की और स्वयं भी साथ में थे। जहां पर उन्होंने प्रकाश देखा था। उस स्थान की ओर ले जा रहे थे जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज को। वहां पहुंच ही रहे थे तो जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज जिनको बड़ी वृद्धावस्था के कारण बैठे रहा करते थे। लेकिन वहां जैसे पहुंचाया गया उनको, टोकरी में थे वहां पर वह खड़े हुए और नृत्य करने लगे हरि बोल हरि बोल या हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। तो यह बात पक्की हुई कि यह चैतन्य महाप्रभु के आविर्भाव स्थली। इसकी अब हम योगपीठ कहते हैं और वहां पर एक नीम का पेड़ भी था और वहां तुलसी के पेड़ पौधे कई सारे उगे थे। वहां कई लोग हमें कीर्तन सुनाई देता है समय समय पर। लेकिन वहां अधिकतर लोग मुस्लिम ही रहा करते थे। तो उनसे पूछा गया था यहां पर स्थान का नाम क्या है? मीयापुर। वैसे तो कहना चाहिए था मायापुर। इस प्रकार जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज का जो प्रणाम मंत्र है इसके लिए वो विख्यात हैं। किसके लिए गौर आविर्भाव भूमि, गौरांग महाप्रभु कहां प्रकट हुए कहां जन्मे उसको निर्धारित किए जगन्नाथ दास बाबा महाराज। उन्होंने संकेत किया और उंगली कर के दिखाए या स्वयं जाकर बताएं यही है यही है। जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज की जय, श्रील भक्ति विनोद ठाकुर की जय, श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर की जय। जो फिर भक्ति विनोद ठाकुर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट थे। वह कोलकाता में नव मंदिर निर्माण के लिए धन राशि जुटाने लगे। घर घर जाकर वह भिक्षा मांगते थे। ताकि मंदिर का निर्माण हो योगपीठ में। कितना धन लेते थे? मुझे ₹1 चाहिए। तो मंदिर का निर्माण प्रारंभ हुआ और आगे वह पूरा तो नहीं हुआ था। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर मंदिर निर्माण को आगे बढ़ाएं पूरा किया। भक्ति विनोद ठाकुर ने नवद्वीप धाम माहात्म्य नामक ग्रंथ की भी रचना की। ताकि नवद्वीप की परिक्रमा हो और श्रील भक्ति विनोद ठाकुर उन्होंने विशेष आदेश दिया अपने पुत्र को। अब श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर श्रील भक्ति विनोद ठाकुर के साथ ही रहा करते थे। स्वरूप गंज में जहां भक्ति विनोद ठाकुर की समाधि स्थल है। भक्ति विनोद ठाकुर ट्रेन कर रहे थे। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर को कोई आदेश, उपदेश या निर्देश दे रहे थे। उसमें के एक यह भी था की नवद्वीप मंदिर की परिक्रमा तुम करो,उसकी स्थापना तुम करो। एक अंतिम इच्छा रही श्रील भक्ति विनोद ठाकुर की। ऐसा स्वप्न रहा और उसको साकार किए श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर, 8 बार श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर। अब श्रील भक्ति विनोद ठाकुर नहीं रहे। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर परिक्रमा की स्थापना करी। हरी हरी। जब श्रील प्रभुपाद इस्कॉन हरे कृष्ण आंदोलन की इस्कॉन की स्थापना किए। तब प्रभुपाद के अनुयायी तब मायापुर में आने लगे। मायापुर महोत्सव गौर पूर्णिमा के समय प्रारंभ हुआ। तब श्रील प्रभुपाद परिक्रमा करने के लिए हम शिष्यों को आदेश दिए। किंतु शुरुआत में तो हम बस से परिक्रमा करते थे। फिर हम लोग धीरे-धीरे प्रभुपाद ने हमको पदयात्रा करने के लिए कहा था और पदयात्रा करते हुए हम गए थे वृंदावन से मायापुर और फिर भारतवर्ष की परिक्रमा। ऐसी परिक्रमा करते-करते या पदयात्रा करते करते 1 वर्ष फिर हमने नवद्वीप मंडल परिक्रमा भी प्रारंभ की। वैसे ही जैसे श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर चलके सारे नवद्वीपो की यात्रा करते थे। शुरुआत में जब इस्कॉन में बस से पदयात्रा शुरू हुई तब कई स्थानों पर ही पहुंच पाते थे। लेकिन पैदल पदयात्रा नवदीप मंडल की प्रारंभ हुई तो हम भक्तिविनोद ठाकुर ने जो मार्ग दिखाया था नवदीप मंडल महात्म्य में तो वैसा ही हम भी करने लगे। 1 द्वीप में एक रात बिताना। हरि हरि। गौरा प्रेमानंदे हरि हरि बोल! वैसे भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर 1932 में वृंदावन में परिक्रमा किए। इस परिक्रमा में अभय बाबू भी सम्मिलित हुए थे। तब प्रभुपाद का नाम अभय बाबू था और तब श्रील प्रभुपाद प्रयाग में रहते थे गृहस्थ थे। प्रयाग में फार्मेसी चलाते थे और वहां से प्रभुपाद परिक्रमा में सम्मिलित होने के लिए आए थे और श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर के परिक्रमा में कुछ दिनों के लिए जुड़ गए। वृंदावन में कोशी नाम का स्थान है जब परिक्रमा वहां पहुंची थी तब श्रीला भक्तिसिद्धांता सरस्वती ठाकुर की कथाएं प्रभुपाद ने सुनी, और फिर श्रीला प्रभुपाद श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर को वृंदावन में राधा कुंड के तट पर भी मिले थे। तो तब श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर कहे थे कि, तुम्हें कभी धनराशि प्राप्त होती है तो ग्रंथों की छपाई करो! तो यह आदेश उन्हें हुआ था। श्रील प्रभुपाद को श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर का यह आदेश हुआ। तो इस व्रज मंडल परिक्रमा में सम्मिलित होने के उपरांत श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर स्वयं प्रयाग गए थे। और तब श्रील प्रभुपाद की दीक्षा हुई। प्रयाग में श्रील प्रभुपाद दीक्षित हुए और उनका नाम अभयचरण हुआ। श्रील प्रभुपाद के दीक्षा से पहले 1922 में, दीक्षा तो 1932 या 33 लेकिन उससे पहले 1922 में पहली मुलाकात में श्रीला भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर युवक अभय को आदेश दिए थे कि, तुम पाश्चात्य देशों में जाकर प्रचार करो या अंग्रेजी भाषा में प्रचार करो! तो उस आदेश का पालन करने के लिए पूरे जीवन भर तैयारी करते रहे। 1922 में प्राप्त हुए उस आदेश का उन्होंने पालन किया और 1963 में श्रील प्रभुपाद विदेश गए और उन्होंने अंतरराष्ट्रीयकृष्णभावनामृत संघ की स्थापना किए। और तब श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर के आदेश का पालन प्रारंभ हुआ। हरि हरि। श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर हमारे परंपरा के महान आचार्य है। भक्तिसिद्धांत! वही किसी ने सूर्यसिद्धांत भी लिखा था। क्योंकि वह खगोलशास्त्री थे। उन्होंने एक सिद्धांत लिखा उसका नाम था सूर्य सिद्धांत और वैसे भक्ति के सिद्धांतों से तो वह मुक्त पुरुष थे। वे साधन सिद्ध नहीं थे भगवातधाम से ही भगवान है उनको भेजा था और अपने कार्य को पूरा करके वहीं पर वे लौटे। अपसिद्धान्त-ध्वान्त-हारिणे ऐसी उनकी ख्याति थी। सिद्धांत के विपरीत की बातें वह सहन नहीं करते थे। तो जैसे हम कह रहे थे कि, भक्तिविनोद ठाकुर जो कार्य प्रारंभ किए उसे श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर आगे बढ़ाएं। तो भक्तिविनोद ठाकुर ने धर्म के क्षेत्र में जो कार्य होता है उनका भलीभांति निरीक्षण या परीक्षण करते हुए कई सिद्धांत प्रचार प्रसार किए। 13 अलग-अलग प्रकार के अपसिद्धान्त को नोट करवाए थे। तो श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर उसका मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे। ऐसे अपप्रचार को रोक रहे थे। उसके अंतर्गत मायावाद या अद्वैतवाद का प्रचार, अद्वैतवाद भी अपसिद्धान्त है! यह कुछ अधूरा या त्रुटिपूर्ण सिद्धांत, अपूर्ण सिद्धांत है। भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर का बहुत कठोर प्रचार या विरोध हुआ करता था, और ऐसे प्रचारक कभी सामने आ जाते तो भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर उन्हें कभी-कभी गला पकड़ कर कहते थे, ये! क्या कह रहे हो तुम? क्या कहा तुमने ? मायावाद का प्रचार करते हो? श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर सिंहगुरू जिनकी गर्जना सिंह जैसी थी। उनसे सब मायावादी या अद्वैतवादी डरते थे। हरि हरि। और इनका प्रचार प्रसार! ग्रंथों के प्रकाशन के माध्यम से वे प्रचार पर जोर देते थे। श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने कई ग्रंथ लिखे थे। चैतन्य चरितामृत कर उपर भक्तिविनोद ठाकुर अमृतप्रभा नाम का भाष्य लिखे। और श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर अनुभाष्य लिखें। वैसे श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर चैतन्य भागवत या आज जिसमें चैतन्य चरित्र लिखा है उसपर टीका टिप्पणी लिखे उसका नाम है गौडीय भाष्य, यह बड़ा प्रसिद्ध ग्रंथ है। तो ऐसे कई सारे भाषा लिखें और ब्रह्मसंहिता पर अंग्रेजी में भाष्य लिखें और फिर उसे ही श्रीला प्रभुपाद इस्कॉन में बीबीटी से प्रकाशित करवाएं। और फिर भक्ति विनोदठाकुर की स्मृति भी अद्भुत थी वह अखंड ब्रह्मचारी थे जिसके कारण उनकी स्मृति अद्भुत थी, वे स्मृति धर थे उन्हें वाकिंग इनसाइक्लोपीडिया कहा जाता था। हरि हरि। कई राजा महाराजा जैसे मनीपुर या त्रिपुरा के राजा के के साथ उनका कार्य रहा और ब्रिटिश राज चल रहा था तो कई अधिकारियों के साथ उनका संबंध था और कोलकाता से या जहां कहां से और मायापुर से कई ब्रिटिश अधिकारी ब्रिटिश राज को संभाल रहे थे तो उन्हें आमंत्रित करते थे। मायापुर में कई कार्यक्रम का उद्घाटन ओं में उनका समावेश करवाए थे। तो व्यक्तित्व या प्रभाव भी बहुत था। शारीरिक तौर पर भी बहुत ऊंचे कद के थे। हरि हरि। जब वह मंदिर बनाते विशेष रूप से कोलकाता में जब उन्होंने मंदिर की स्थापना की तो मंदिर के कोर्ट यार्ड में प्रिंटिंग प्रेस की भी स्थापना करते थे। जहां से भगवान के विग्रह प्रिंटिंग प्रेस को देख सकते थे। तो मंदिर में ही या भगवान के विग्रह के सामने ही प्रिंटिंग प्रेस हुआ करता था! और प्रिंटिंग प्रेस को वे बृहद मृदंग कहा करते थे। एक मृदंग आप जानते हो जो वाद्य होता है लेकिन प्रिंटिंग प्रेस यह बहुत बड़ा मृदंग है। मृदंग करताल के साथ हम जो कीर्तन करते हैं वह हो सकता है कि 100 200 मीटर तक उसकी ध्वनि पहुंच सकती है लेकिन जब प्रिंटिंग प्रेस में ग्रंथ की छपाई होती है तो यह ग्रंथ कीर्ति से भरे होते है। अदो मध्यै च अन्ते च हरी सर्वत्र ग्रिह्यते हरि का कीर्तन होता है। प्रिंटिंग प्रेस में छुपे हुए जो ग्रंथ है वह भगवान के कीर्ति को दूर-दूर तक फैलाते है। इसीलिए प्रिंटिंग प्रेस को बृहद मृदंग कहे थे। तो तुम्हें जब धन प्राप्त होगा तब ग्रंथों की छपाई करो यह आदेश प्रभुपाद को मिला था श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर से इसको श्रील प्रभुपाद ने बड़ी गंभीरता पूर्वक इस आदेश का पालन किए और कार्य को आगे बढ़ाएं। श्रील प्रभुपाद विदेश जाने से पहले ही कुछ ग्रंथ जैसे श्रीमद्भागवत, इशोपनिषद इनको छपे थे और अपने साथ विदेश ले गए थे। और फिर विदेश में जब उन्हें धनराशि प्राप्त होने लगी तो प्राप्त हुई धनराशि का सर्वोत्तम उपयोग ग्रंथों की छपाई के लिए और प्रकाशन के लिए श्रील प्रभुपाद करना चाहते थे या कर रहे थे क्योंकि ऐसा आदेश ही था! श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर कहे थे कि, तुम अंग्रेजी भाषा में प्रचार करो तो श्रीला प्रभुपाद अंग्रेजी भाषा में प्रचार करने के लिए अंग्रेजी भाषा में ग्रंथ लिखे और उनकी छपाई भी किए। और आगे श्रील प्रभुपाद अपने संसार भर के शिष्यों को संबोधित करते हुए कहे थे कि, अब जितने भाषाओं में संभव हो सके उतने भाषाओं में ग्रंथों की छपाई करो! लॉस एंजेलिस कैलिफोर्निया में यह बात कही थी कि, मेरी ग्रंथों का अधिक से अधिक भाषाओं में तुम अनुवाद करो! फिर तो प्रभुपाद के हम सब शिष्य यह कार्य करने लगे और श्रील प्रभुपाद के ग्रंथ अब कुछ 70-80 भाषाओं में प्रकाशित है। भाषा अंतरित हुए है, और उसका प्रकाशन और वितरण भी संसार भर में हो रहा है। तो इन दिनों में हम भी, अब तो गीताजयंती का समय ही है और गीता का वितरण हम कर रहे है यह हमारे परंपरा का कार्य है। हम कभी-कभी इसे पारिवारिक या परंपरा का व्यापार कहते है। परंपरा में षड गोस्वामी है, भक्तिविनोद ठाकुर है फिर आगे भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर है और श्रील प्रभुपाद है यह जो हमारा परिवार है इस परिवार का यह व्यापार है कि, ग्रंथों की छपाई करो और उसका वितरण करो! तो यह परंपरा का कार्य है तो जब हम ग्रंथों का वितरण करते है, भगवद्गीता का वितरण करते है या और ग्रंथों का वितरण करते है। तो श्रीला भक्तिसिद्धांतसरस्वती ठाकुर ने दिया हुआ आदेश था कि,जब धन मिल जाए तो ग्रंथों की छपाई करो! इसका मतलब क्या ? कि ग्रंथ का प्रचार प्रसार करो। यारे देख तारे कह कृष्ण उपदेश यह जो चैतन्य महाप्रभु का आदेश है उस आदेश का पालन होता है, और भक्तिविनोद ठाकुर की इच्छा की पूर्ति होती है, श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर और श्रील प्रभुपाद के आदेश का पालन होता है और उनके शिष्यों के जो आदेश है जो हम तक पहुंचते है उनके आदेश का पालन हम से होता है, जब हम भगवतगीता का वितरण करते है। भगवतगीता लेकर हम किसी के द्वारपर या दुकान पर पहुंचते है, या रास्ते में किसी को देते है। यारे देख तारे कह कृष्ण उपदेश! तो श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर के चरणों में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने का यह एक सरल उपाय या श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर को प्रसन्न करने का उपाय है कि हम यह जो वैदिक वांग्मय है, गीता, भागवत, चैतन्य चरितामृत, इशोपनिषद है इन ग्रंथों का या ग्रंथों में जो ज्ञान है इस ज्ञान का, जिसमें भगवान को जानने का या उनके संबंधित ज्ञान है उसको वितरित कर सकते है। तो यह जो कार्य है या ग्रंथों का वितरण है और भगवत गीता का वितरण करते हैं यह सबसे उत्तम श्रद्धांजलि होगी हमारे आचार्य भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर के चरणों में! हरि हरि। हरे कृष्ण!

English

3 January 2021 Inspirational remembrance of Srila Bhaktisiddhanta Sarasvati Thakura nama om vishnu-padaya krishna-preshthaya bhu-tale srimate bhaktisiddhanta-sarasvatiti namine Translation: I offer my respectful obeisances unto His Divine Grace Bhaktisiddhanta Sarasvati, who is very dear to Lord Krishna, having taken shelter at His lotus feet. sri-varshabhanavi-devi-dayitaya kripabdhaye krishna-sambandha-vijnana-dayine prabhave namah Translation: I offer my respectful obeisances to Sri Varshabhanavi-devi-dayita dasa [another name of Srila Bhaktisiddhanta Sarasvati], who is favoured by Srimati Radharani and who is the ocean of transcendental mercy and the deliverer of the science of Krishna. All glories to the disappearance day of Bhaktisiddhanta Sarasvati Thakura! Today is his disappearance day. I just chanted his pranam mantra. Do you understand appearance and disappearance days? Disappearance day is the day when he entered the eternal pastimes of Sri Radha Krsna. Today in 1936 he departed from this material world. He was in Kolkata and was taken to Mayapur via Krsna Nagar on a special train. Then the day was 31 December. His samadhi temple has been erected in Sri Caitanya Gaudiya Matha in Mayapur. He was born to Srila Bhaktivinoda Thakura in Jagannatha Puri. Bhaktivinoda Thakura was praying to Sri Jagannatha and goddess Sri Vimala Devi for a great gem-like son who could preach the movement of Krishna consciousness. Since he was born by the special mercy of Sri Vimala Devi, he was named Vimala Prasada. He was a ray of Lord Jagannatha, a ray of the Lord's effulgence. Bhaktivinoda Thakura was the district magistrate of Puri. The Jagannatha Ratha-yatra passed by their house. The year when Vimala Prasada was born the Ratha stopped at their gate. Vimala Prasada's mother took him on the chariot to Lord Jagannatha for His blessings and Jagannatha's garland fell on him. He grew up to be Srila Bhaktisiddhanta Sarasvati Thakura. He was sowing the seeds of the expansion of the Gaudiya Sampradaya. Bhaktivinoda Thakura is also popular as the 7th Goswami. He discovered Navadvipa Dhama. At that time there were many conflicts as to which is the actual birthplace of Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu. He took a job transfer from Jagannatha Puri to Krsna Nagar near Navadvipa. He was living on the other bank of the Ganges in Swarupganj. From his house he saw on the other side of the river, a special effulgence where kirtana was taking place. He had a realization that, that was the actual birthplace of Caitanya Mahaprabhu. To confirm that he took the help of his siksa Guru, Jagannatha Das Babaji Maharaja. Jagannatha Das Babaji Maharaja was 140 years old then and was too weak to move. His disciples would carry him in a basket. He was carried in this way to that place where Bhaktivinoda Thakura had seen that transcendental effulgence. Upon reaching there Srila Jagannatha Das Babaji stood up and started jumping and dancing in ecstasy. Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare There he confirmed that it was the actual birthplace of Mahaprabhu. There was also an old Neem tree there. Then the Yoga-pitha temple was built there. That place was inhabited by Muslims then, yet a lot of kirtan was heard by Bhaktivinoda Thakura. When inquired he got to know that the place was called Miyapur. Jagannatha Das Babaji Maharaja's pranam mantra also says that he is famous for confirming the discovery of the birthplace of Mahaprabhu. gauravirbhava-bhumes tvam nirdeshta saj-jana-priyah vaishnava-sarvabhaumah shri-jagannathaya te namah Translation: I offer my respectful obeisances to Jagannatha dasa Babaji, who is respected by the entire Vaishnava community and who discovered the place where Lord Caitanya appeared. Bhaktivinoda Thakura collected money for this project of Yoga-pitha. He also wrote a book called Navadvipa Dhama Mahatmya - Glories of Navadvipa Dhama. Srila Bhaktisiddhanta Saraswati Thakura was always with his father and learnt a lot. Bhaktivinoda Thakura instructed Bhaktisiddhanta Sarasvati Thakura to do Navadvipa-mandala Parikrama and he fulfilled it later with his disciples. He did 8 Navadvipa-mandala Parikramas. Srila Prabhupada also started this when we started with the Mayapur festivals. In the beginning, we did it by bus. But then after Srila Prabhupada's instruction to me about Padayatra, we went walking to Mayapur from Vrindavan and then All India Padayatra. Later we started the walking Parikrama. Buses had limitations and could not travel to every place. We follow what Bhaktivinoda Thakura has written in Navadvipa Dhama Mahatmya book about Navadvipa-mandala Parikrama. Srila Bhaktisiddhanta Sarasvati Thakura also did Vraja-mandala Parikrama in 1922. This is where Srila Prabhupada met him for the first time. There is a place called Kosi in Vrindavan where Srila Prabhupada heard Katha from Bhakti Bhaktisiddhanta Sarasvati Thakura. They met on the banks of Radha-kunda and there he was instructed - "Whenever you get some money, print books". Later Srila Prabhupada was initiated in Prayaga in 1932. He was named Abhay Charan Dasa. In his first meeting with Bhaktisiddhanta Sarasvati Thakura, Srila Prabhupada was instructed to go to the West and preach in English. Srila Prabhupada dedicated his entire life to this instruction. He made all the preparations and finally went abroad in 1965 to fulfil this instruction of his spiritual master. Srila Bhaktisiddhanta Sarasvati Thakura was a great devotee and acarya. He took forward the work started by Bhaktivinoda Thakura. Srila Bhaktivinoda Thakura was a social scientist and he identified 13 different ways in which wrong philosophies were being preached and propagated. Srila Bhaktisiddhanta Sarasvati Thakura opposed these and also gave proper answers for their falsehood. He also strongly opposed Mayavad. He would strongly raise his voice against the spread of wrong and false philosophies. He was called Simha Guru - Lion Guru. He would roar like a lion against all the false philosophies. He also wrote many books. Bhaktivinoda Thakur wrote a commentary on Caitanya-caritamrta called Amrta Pravaha. Srila Bhaktisiddhanta Sarasvati Thakura wrote a commentary on Caitanya Bhagavat named Gaudiya Bhasya. He also wrote many other commentaries on different subjects like Brahma Samhita. The same book is published by BBT in English. He was a Brahmachari and had a very good memory. He was a walking encyclopaedia. Many kings of adjoining states and many British viceroys would visit him. He was invited to many places and programs as chief guest. He had a very influential physical personality as well. He was very tall. In the temples that he would inaugurate, he would also set up printing presses. He would set them in such a way that the main Deity could see the press. He would call it Brhad Mrdanga - Mega Mrdanga. The regular Mrdanga is heard up to a short distance, but the books can travel to far off places preaching and spreading the knowledge of Krsna. Srila Prabhupada also followed this. Before traveling abroad he carried books from here and when he started getting money there in the western countries he started printing books. He wrote in English and carried those books with him fulfilling the instructions of his Guru and later he asked his disciples to carry the books and translate them in many languages. Now there are books in 80 languages. This book distribution is our family business - the Goswamis, Srila Bhaktivinoda Thakura, Srila Bhaktisiddhanta Sarasvati Thakura, Srila Prabhupada, and all of us. This is the instruction by Srila Bhaktisiddhanta Sarasvati Thakura - When you get money, print books. When you distribute books the instructions of Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu to preach Hare Krsna to everyone who you may come across, the six Goswamis, Srila Bhaktivinoda Thakura, Srila Bhaktisiddhanta Sarasvati Thakura, Srila Prabhupada, and other Vaisnavas are all fulfilled at the same time. If anyone wishes to speak about Srila Bhaktisiddhanta Sarasvati Thakura then they may quickly speak in short.

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