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जप चर्चा पंढरपुर धाम से 30 नवम्बर 2020

हरे कृष्ण किन-किन को हरे कृष्ण सबको आप जहां तहां हो इस समय इस दीक्षा समारोहों में सम्मिलित हुए हो या या तो फिर आप स्वयं दीक्षार्थी हो फिर दर्शनार्थी भी हो सकते हैं।

जैसे यहां भी कुछ दर्शनार्थी है तो कुछ दीक्षार्थी भी हैं कोई तीर्थयात्री है इस्कॉन के मंदिर के तीर्थ यात्री भी सोलापुर में नोएडा में और राधा गोपाल मंदिर में गोगल गांव श्रीरामपुर में राधा कुंज बिहारी फिर पुणे में और बेंगलुरु में ऐसे कई सारे स्थानों पर आप सब एकत्रित हुए हो और फिर सब जब करने वाले भक्तों भी साथ में हैं आशा है कि वह साथ दे रहे हैं और वे तो पूरे भारत देश से और कई देशों से भी भक्त इस जपा चर्चा में जुड़ने वाले वह भी अब तक उपस्थित है तो उनको भी हरे कृष्णा और उन इस हरे कृष्णा के साथ उन सभी का स्वागत भी है और आभार भी है।

आपके उपस्थिति के लिए हम सारी यांत्रिक मशीन का उपयोग करते हुए और सोशल मीडिया को स्प्रिचुअल मीडिया बनाते हुए अभी हम सोशल मीडिया को क्या कर रहे हैं। आध्यात्मिक मीडिया बना रहे हैं यूटिलिटी इज प्रिंसिपल उपयोगिता ही सिद्धांत है ऐसे भी एक सिद्धांत प्रभुपाद जी दिए इस सुविधा को इंटरनेट की व्यवस्था का प्रयोग करते हुए हम एक आधुनिक पद्धति हो रही है वर्क फ्रॉम होम टेक इनीसीयेशन फ्रॉम होम तो यहां सभी कुछ घर से ही हो रहा है दीक्षा भी ऑनलाइन हरि हरि

पद्ममाली प्रभु जी से पूछते हुए सब चीजों का आयोजन हो चुका है क्या तो आप बता सकते हो या फिर अन्य अन्य स्थानों के भक्त बता सकते हैं कि वह सब तैयार है कि नहीं सब सुन रहे हैं संपर्क में है यदि नहीं तो कृपया हमें बताइए जहां कहीं भी यह समस्या आ रही है तो आप पद्ममाली प्रभु जी से संपर्क कर सकते हैं।

फिर वह हम से संपर्क करेंगे श्याम सुंदर प्रभु जी से पूछते हुए ठीक है सब कुछ हा ठीक है। तो आज कम से कम मैं जहां हूं यह तो पवित्र चली है ही पंढरपुर धाम की जय और फिर आप ही यदि इस्कॉन में हो वह स्थान भी पवित्र ही है या फिर आप घर में हो और घर का यदि आपने मंदिर बनाया है तो आपका घर भी पवित्र स्थान है तो यह दीक्षा समारोह पवित्र स्थान पर संपन्न हो रहा है।

और स्थान भी पवित्र और दिन भी पवित्र पवित्र है कि नहीं आज जय आज कार्तिक मास का समापन का दिवस भी है या रात्रि भी है आज तुलसी शालिग्राम विवाह का दिन भी है। आप सभी को पता था कि नहीं पता होना चाहिए जो कृष्णा भावना भावित होते हैं उन्हें पता ही होना चाहिए या फिर वह पता लगा ही लेते हैं पता लगाना चाहिए तो स्थान भी पवित्र और दिन भी पवित्रा तो ऐसे स्थान पर और ऐसे तीन हम एक पवित्र कार्य करने जा रहे हैं दीक्षा समारोह संपन्न होने जा रहा है।

आप भगवान की ओर मुड़े हो मूड तो गए हैं वैसे दीक्षा का अर्थ ही है कि भगवान की ओर मुड़ना जब हम भगवान की ओर मुड़ जाते हैं तब भगवान के भक्तों से जब हम मिलते हैं संतों को साधुओं को फिर साधु संग साधु संग......

'साधु-सङ्ग', 'साधु-सङ्ग'- सर्व-शास्त्रे कय। लव-मात्र ' साधु-सङ्गे सर्व-सिद्धि हय।। (श्री चैतन्य चरितामृत मध्य लीला २२.५४)

अनुवाद:- सारे शास्त्रों का निर्णय है कि शुद्ध भक्त के साथ क्षण भर की संगति से ही मनुष्य सारी सफलता प्राप्त कर सकता है।

ऐसा ही कुछ हो रहा है यहां आप या साधु संग आपको प्राप्त हुआ है। वैसे श्रील प्रभुपाद कहा करते थे इस्कॉन की स्थापना इसीलिए हुई है ताकि संसार के लोगों को इस्कॉन में आपको सत्संग प्राप्त हुआ और फिर आप बहुत कुछ सीखे और समझे हो और फिर

तस्माद्गुरुं प्रपद्येत जिज्ञासुः श्रेय उत्तमम् । शाब्दे परे च निष्णातं ब्रह्मण्युपशमाश्रयम् ॥२१ ॥

श्रीमद्भागवत 11.3.21.

अनुवाद:- अतएव जो व्यक्ति गम्भीरतापूर्वक असली सुख की इच्छा रखता हो , उसे प्रामाणिक गुरु की खोज करनी चाहिए और दीक्षा द्वारा उसकी शरण ग्रहण करनी चाहिए । प्रामाणिक गुरु की योग्यता यह होती है कि वह विचार - विमर्श द्वारा शास्त्रों के निष्कर्षों से अवगत हो चुका होता है और इन निष्कर्षों के विषय में अन्यों को आश्वस्त करने में सक्षम होता है । ऐसे महापुरुष , जिन्होंने भौतिक धारणाओं को त्याग कर भगवान् की शरण ग्रहण कर ली है , उन्हें प्रामाणिक गुरु मानना चाहिए ।

इसको भी इन शब्दों में नहीं सुने होंगे इस मनुष्य जीवन में तस्माद गुरु मतलब आप अभी मनुष्य बने हो तो क्या करना चाहिए गुरु के आश्रम में जाना चाहिए यह भी आपके सुनने में आया होगा आया ही है तो फिर आप।

तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया | उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः || ३४ ||”

अनुवाद:- तुम गुरु के पास जाकर सत्य को जानने का प्रयास करो | उनसे विनीत होकर जिज्ञासा करो और उनकी सेवा करो | स्वरुपसिद्ध व्यक्ति तुम्हें ज्ञान प्रदान कर सकते हैं, क्योंकि उन्होंने सत्य का दर्शन किया है

यह कर रहे हो जैसे भगवान ने कहा वैसे आप कर रहे हो क्या फिर भगवान ने कहा या फिर वही बात आपको साधुओं ने संतों ने कसी तो फिर आप ऐसा ही कर रहे हो जैसे संत बता रहे हैं साधु बता रहे हैं वैसे ही आप कर रहे हो मतलब ही हुआ कि भगवान ने ऐसा कहा होगा इसलिए संतो ने वैसा ही कहां भगवत गीता यथारूप उन्होंने सुनाएं क्या अंतर हैं फिर श्रील प्रभुपाद कहा करते थे।

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज | अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श्रुचः || ६६ ||”

अनुवाद:- समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूँगा । डरो मत

और साधु संत भी कहते हैं कि भगवान की शरण में जाओ भगवान ने कहा कि मेरी शरण में आओ और गुरु ने कहा कि भगवान की शरण में जाओ उसमें कोई फर्क है कोई अंतर है तो यह यथारूप है।

एक तो भगवान है है कि नहीं हो सकते हैं या है वहां से शुरुआत होती है होनी चाहिए भगवान है भगवान है कहने वाले को फिर आस्तिक कहते हैं आस्तिक अस्ति भगवान अस्ति भगवान है भगवान नहीं है कहने वाले नास्तिक न अस्तिक ऐसे छोटे छोटे शब्द हैं न अस्तिकन तो नही अस्ति मतलब है नही क कहने वाला कैसे समझ वाले को नास्तिक कहते हैं।

तो ठीक है अभी आम दीक्षा के लिए तैयार हो मतलब आप आस्तिक हो आप को यह पता है कि भगवान है और इस बात को आप स्वीकार करते हो तो भगवान है और उनका नाम भी है क्या नाम है कृष्ण जिनका नाम है उनका नाम है तो और क्या क्या है उनका धाम भी है उनका गांव भी होना चाहिए कृष्ण जिनका नाम है गोकुल जिनका गांव है और उनका नाम है तो उनका नामकरण भी हुआ होगा और गांव है तो उस गांव में वो जन्मे होंगे। अजन्मा होते हुए भी भगवान जन्म लेते हैं।

कोई भक्त हैं उन्हें जन्म देते हैं कुछ भक्तों को भगवान अपना माता-पिता बनाते हैं और फिर वात्सल्य रस का आस्वादन करते हैं यह तो बहुत लंबी बात हो जाएगी यदि मैं इसे कहु तो... और भगवान है

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरयः । तेजोवारिमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि ॥१

अनुवाद:- ॥ हे प्रभु , हे वसुदेव - पुत्र श्रीकृष्ण , हे सर्वव्यापी भगवान् , मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ । मैं भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूँ , क्योंकि वे परम सत्य हैं और व्यक्त ब्रह्माण्डों की उत्पत्ति , पालन तथा संहार के समस्त कारणों के आदि कारण हैं । वे प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से सारे जगत से अवगत रहते हैं और वे परम स्वतंत्र हैं , क्योंकि उनसे परे अन्य कोई कारण है ही नहीं । उन्होंने ही सर्वप्रथम आदि जीव ब्रह्माजी के हृदय में वैदिक ज्ञान प्रदान किया । उन्हीं के कारण बड़े - बड़े मुनि तथा देवता उसी तरह मोह में पड़ जाते हैं , जिस प्रकार अग्नि में जल या जल में स्थल देखकर कोई माया के द्वारा मोहग्रस्त हो जाता है । उन्हीं के कारण ये सारे भौतिक ब्रह्माण्ड , जो प्रकृति के तीन गुणों की प्रतिक्रिया के कारण अस्थायी रूप से प्रकट होते हैं , वास्तविक लगते हैं जबकि ये अवास्तविक होते हैं । अतः मैं उन भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूँ , जो भौतिक जगत के भ्रामक रूपों से सर्वथा मुक्त अपने दिव्य धाम में निरन्तर वास करते हैं । मैं उनका ध्यान करता हूँ , क्योंकि वे ही परम सत्य हैं

वेदांत सूत्र में कहां है या श्रीमदभागवतम की शुरुआत ऐसे ही होती है जन्माद्यस्य यतो भगवान है और वह कैसे हैं जन्म सृष्टि स्थिति प्रलय जैसे होता है जिनके कारण होता हैं वह है भगवान और उनके नाम है कृष्ण और भी कई सारे नाम है तो जो भी है सजीव निर्जीव पहले तुम भगवान का सारी सृष्टि है भगवान का साम्राज्य कहते हैं उसमें भी दो प्रकार बताए गए हैं एक होता है त्रिपाद विभूति और दूसरी होती है एक पाद विभूति विभूति मतलब साम्राज्य भगवान का साम्राज्य तो सहारा दिव्य धाम है वैकुंठ लोक हैं और जो अधिक जानते हैं जैसे गौरी अवस्थाओं को अधिक ज्ञान हैं वह गोलोक को भी जानते हैं सभी नहीं जानते लेकिन गोलोक है साकेत हैं वैकुंठ है सदाशिव लोके भी है ।

श्लोक ४३ गोलोकनाम्नि निजधाम्नि तले च तस्य देवीमहेशहरिधामसु तेषु तेषु । ते ते प्रभावनिचया विहिताश्च येन गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि।।४३ ।।

जिन्होंने गोलोक नामक अपने सर्वोपरि धाम में रहते हुए उसके नीचे स्थित क्रमशः वैकुण्ठलोक ( हरिधाम ) , महेशलोक तथा देवीलोक नामक विभिन्न धामों के विभिन्न स्वामियों को यथायोग्य अधिकार प्रदान किया है , उन आदिपुरुष भगवान् गोविंद का मैं भजन करता हूँ

तो एक तो वैकुंठ धाम हैं आध्यात्मिक जगत हैं और फिर वह एक प्रकार का साम्राज्य और दूसरा है जिसको देवी धाम भगवान ने कहा या ब्रह्मा कहे वैसे कौन सा धाम है कौन सा जगत है।

गुरु महाराज सोने वाले भक्तों के लिए कह रहे हैं जो सोएगा वो खोएगा। आप खोना चाहते हो या पाना चाहते हैं यह तो दीक्षार्थी बनकर बैठे हो तो आप किसे प्राप्त करना चाहते हैं भगवान को कृष्ण प्राप्ति जहां....

तो फिर यह देवी धाम है और अनंत कोटी ब्रह्मांड नायक भगवान भगवान कैसे हैं अनंतकोटी ब्रम्हांड नायक तो कोटि कोटि ब्रह्मांड हैं उसमें से एक ब्रह्मांड में हम हैं फिर हर ब्रह्मांड में स्वर्ग है मृत्युलोक हैं और पाताल लोक हैं तो दुर्दैव से कुछ जीव और उसको समझना थोड़ा कठिन है उस दिव्य धाम से उसको वहां बहिष्कार करते हुए बहिर्मुखी होकर चैतन्य महाप्रभु ने कहा है...

जीव क्या होता है बहिरमुख होता हैं बहिरमुख जीव भोग वांछा करे

उसके मन में जागृत होता है और फिर वह इस मायावी जगत में पहुंच जाता है और यहां यहां की माया आध्यात्मिक जगत में कृष्णा का डायरेक्ट सीधा कंट्रोल रहता है और इस जगत में जीव पर कंट्रोल है माया का जो भगवान की ही है माया....

माया-मुग्ध जीवेर नाहि स्वतः कृष्ण-ज्ञान। जीवेरे कृपाय कैला कृष्ण वेद-पुराण ॥ 122॥

अनुवाद:- बद्धजीव अपने खुद के प्रयत्न से अपनी कृष्णभावना को जाग्रत नहीं कर सकता। किन्तु भगवान् कृष्ण ने अहैतुकी कृपावश वैदिक साहित्य तथा इसके पूरक पुराणों का सूजन किया।

तो कुछ जीव ज्यादा नहीं वैसे सभी देशों में जो स्वतंत्र नागरिक होते हैं उसमे कैदी अधिक होते हैं या स्वतंत्र नागरिक अधिक होते हैं स्वतंत्र नागरिक की तुलना में कैदी कितने होते हैं एक परसेंट भी नहीं वैसा ही कुछ है तो इन ब्रह्मांड को इस देवी धाम को कारागार भी कहा गया है और बहुत कुछ कहा गया है कारागार तो कहा ही गया है तो हम यहां कारागार में बंद है और मुक्त आत्मा भगवत धाम में जो आत्मा है वह कैसे हैं मुक्त आत्मा है यहां के जीव बद्ध है माया बद्ध है तो फिर लेकिन यह सभी जीव तो भगवान के ही है फिर वो दिव्य जगत के मुक्त आत्मा हैं या इस मायावी जगत के बद्ध आत्मा हैं पर हम हैं किसके हम भगवान के हैं यह भी संबंध भी जरूरी है यही नहीं कि भगवान है हां भगवान तो है ही पर हम भी तो हैं ना भगवान भी हैं और हम भी हैं और हम हम शरीर नहीं हैं हम जीवात्मा है....

ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः | मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति || ७ ||”

अनुवाद:- इस बद्ध जगत् में सारे जीव मेरे शाश्र्वत अंश हैं । बद्ध जीवन के कारण वे छहों इन्द्रियों के घोर संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें मन भी सम्मिलित है

तो हम जीव है लेकिन यह जीव भगवान का अंश है। भगवान सच्चिदानंद है तो हम भी सच्चिदानंद गर्व से कहो सच्चिदानंद है पूरे विश्वास से कहो और श्रद्धा से कहो हम भी सच्चिदानंद है पर हम आंशिक रूप में हैं इसलिए कहा है कि अचिंत्य भेदा भेद हम भगवान जैसे हैं लेकिन हमारा सच्चिदानंद है वह आंशिक है तो फिर हम भगवान के हो गए हम स्वतंत्र नहीं हैं हम किसके हैं हम भगवान के हैं और हम भगवान के कुछ लगते हैं तो हमारे संबंध है भगवान के साथ इसे संबंध प्रयोजन अभीदेय कहते हैं। यह सब ज्ञान के स्तर हैं शुरुआत तो यहीं से होती हैं हम भगवान के हैं भगवान के साथ हमारा संबंध है सदा के लिए तो फिर भगवान जो दयालु हैं हम तो यह आ गए हमारा चल रहा है भोग वांछा का प्रयास चल रहा है नाना योनियों में अमन कर रहे हैं हम....

श्रीभगवानुवाच कर्मणा दैवनेत्रेण जन्तुर्देहोपपत्तये । स्त्रियाः प्रविष्ट उदरं पुंसो रेतःकणाश्रयः ॥१ ॥

भगवान् ने कहा : परमेश्वर की अध्यक्षता में तथा अपने कर्मफल के अनुसार विशेष प्रकार का शरीर धारण करने के लिए जीव ( आत्मा ) को पुरुष के वीर्यकण के रूप में स्त्री के गर्भ में प्रवेश करना होता है ।

कर्मणा दैवनेत्रेण जन्तुर्देहोपपत्तये ये हो रहा है कभी स्वर्ग में तो कभी नाक में कभी यहां कभी उस योनि में और फिर स्वाभाविक परिवर्तन भी होता हैं और फिर भगवान हमें यह मनुष्य शरीर देते हैं।

कैसा शरीर देते हैं मनुष्य शरीर और फिर शास्त्र में इसका वर्णन भी हैं।

जलजा नव लक्षानी स्थावरा लक्ष वीमसती कर्मयो रुद्र सनखाय पक्षिणाम दस लक्षणाम त्रिमसाल लक्षानी पासवाह चतुर लक्षानी मनुष्य

पद्म पुराण

ज मतलब जल में जन्म लेने वाले क्रिमया उसमे कोरोना वायरस भी आ गया वो ग्यारह लाख हैं तो इस प्रकार 400000 प्रकार के मनुष्य बताएं गए है। ” बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते | वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः || १९ ||”

अनुवाद:- अनेक जन्म-जन्मान्तर के बाद जिसे सचमुच ज्ञान होता है, वह मुझको समस्त कारणों का कारण जानकर मेरी शरण में आता है | ऐसा महात्मा अत्यन्त दुर्लभ होता है

कुछ मनुष्य बहुत जन्मों के उपरांत मनुष्य जन्म पर मनुष्य जन्म भगवान ऐसा अवसर देते हैं और फिर एक जन्म में पता चलता है हम जब संतों के भक्तों के संपर्क में आ जाते हैं साधु संग जब होता है और तब पता चलता है कि वासुदेवः सर्वमिति वासुदेव ही भगवान हैं और वोही सबकुछ हैं और मैं उनका हू।

उन्होंने प्रयास कर के देखा आप मे से प्रयास किसी ने प्रयास नहीं किया आप भूल गए होंगे लेकिन...... वेसे भगवान अर्जुन से कहें कि ही अर्जुन तुम्हारे कई सारे जन्म हो चुके है लेकिन समस्या क्या है उन जन्मों को मैं जानता हो ना तुम नहीं जानते तुम भूल चुके हों तुम्हारे कई सारे जन्म हो चुके है जन्म होता है तो मृत्यु भी होती है हों उसको टालने का प्रयास हो होता है.. ने प्रयास मिटा की नहीं उसने सोचा कि अपना वर मांग ले ऐसे नहीं मारो वेसे नहीं मारो वेसे नहीं मारो तो अंत मे हुआ क्या क्या हुआ मृत्यु तो हो गया उन्होंने प्रयास कर के देखा आप मे से कोई और प्रयास करना चाहता है? इसमे यश मिलने वाला नहीं है नहीं है इसलिए अच्छाई है है हम भगवानों की शरण के जाए तब भगवानों को आती है दया हम जब यहा आ गए और यहा सारा कष्ट भोग रहे हाऊ हो वह भगवानों का ह्रदय तेषां भगवान का ह्रदय.. भगवान है और भगवान का हृदय भी है और उनके भाव भी है भगवान को आती है दया और वे दया मे भगवान फिर इस संसार मे आ जाते है

*परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् | धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे*

मे प्रकट होता हू और क्या कर्ता हू धर्मा की स्थापना कर्ता हू धर्म ही है कृष्णा भावना कृष्णा भावना मतलब क्या है धर्म अंतरराष्ट्रीय कृष्णा भावना संघ कृष्णा consiuous होता मतलब ही धर्म है धर्म बनता है हमने कृष्णा consiuous तो भगवान धर्म की स्थापना करते है भगवान सारे शास्त्र देते हाऊ शास्त्रों को भगवान ही दिए कई विद्वान कहते है कि भगवान शास्त्र देते है भगवान धर्म देते है भागवत गीता भी क्या है धर्म शास्त्र है जो भगवान ने दिया तो गीता का पहला शब्द कौनसा है धर्म और अंतिम शब्द भागवत गीता का कितने अध्यय है उतरने पता होता चाहिए काइट अध्याय है 18 वे अध्याय मे कितने श्लोक है? 78 तो 78th श्लोक जो है अंतिम शब्द वी क्या है?

म म इसको साथ मे कहेंगे तो धर्म म म या म म धर्म ऐसा भी सकते हो सारी जो भागवत गीता है वो क्या है मेंने दिया हुआ धर्म भगवान ने दिए हुए नियम भागवत गीता मे सारे नियम दिए है नियमावली है तो भगवान प्रकट होते है भगवान धर्म देते है भगवान धर्म शास्त्र देते है और साथ ही साथ भगवान अपने भक्तों की भी स्थापना करते है उनको भेजते है समय समय पर फिर भगवान ने ही ये कहा है कि 4 संप्रदा है 4 वैष्णव सृष्टि है संप्रदाय तो या जिसको हम परंपरा कहे मे जो अभी ग्यान दे रहा हू अर्जुन तुमको ये भविष्य मे लोक केसे समझेंगे परंपरा मे समझेंगे तो परम्परा के आचार्य ये भगवान की व्यवस्था है भगवान ने दिया शास्त्र और फिर आचार्य गुरुजन क्या krte है उसको पढ़ते है हम क्या बन जाते है विद्यार्थि बन जाते है गीता के विद्यार्थि धर्म के विद्यार्थि या भगवान के विद्यार्थि भगवान को समझने के लिए हमरा सारा जीवन विद्या अर्थी जो विद्या को प्राप्त करना छाते है प्राप्त कर रहा उनको क्या कहेंगे विद्यार्थि जेसे अभी दीक्षाअर्थी बने है फिर शुरुआत होती है हम छोटे ही है फिर हमको धर्म की जेसी व्यवस्था है भगवान ने दिया तो आप बालक हो तो गुरुकुल जाओ स्वयं भगवान भी गए मथुरा मे थे वहा दे उज्जैन गए अवंति पूर्व गए और गुरुकुल जॉइन किया उन्हों ने बलराम को भी साथ मे ले आए और सुदामा भी आए थे सुदामपूरी से पोरबंदर से और कई सारे विद्यार्थि पढते थे तो भगवान भी पढ़ रहे थे ब्रम्हचारी बनके और क्या कर रहे थे विद्या अर्जन कर रहे थे भगवान आते है भागवत गीता सुनते है और शास्त्र भी सुनते उन्होंने सारे शास्त्र को अपौरुषेय कहा है य़ह किसी पुरुष की सृष्टि नहीं है शास्त्र भगवान से शास्त्र निश्चित होते है

हरे कृष्ण

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