Hindi

विनम्रता - वैष्णवों का आभूषण आज इस माइक्रोफोन के कारण मुझे सभी धन्यवाद दे रहे हैं। भक्त कह रहे हैं यह अद्भुत मइक्रोफ़ोन हैं। " अद्भुत हरिनाम इस अद्भुत माइक्रोफोन के द्वारा जपा जा रहा हैं जिसे भगवान के अद्भुत भक्त सुन रहे हैं " मुझे आप भक्तों द्वारा आशीर्वाद देने के लिए भी बहुत सी प्रार्थनाएँ आती हैं। न केवल मैं अपितु इस कांफ्रेंस में सम्मिलित होने वाले सभी भक्तों के लिए बहुत अधिक मात्रा में दण्डवत प्रणाम के सन्देश आते हैं। यही उचित भाव हैं। आप जब भी किसी भक्त से मिलते हैं या उनके परिवार में जाते हैं तब दण्डवत प्रणाम करना आपकी विनम्रता का प्रदर्शन करता हैं। दण्डवत का अर्थ हैं आप उनके सामने झुक रहे हैं। इस प्रकार जब आप किसीके सामने नम्रता से झुकते हैं तब आप हरिनाम प्राप्त करने में सक्षम होते हैं। चैतन्य महाप्रभु ने पहले से ही इसे अपने एक श्लोक में उद्धृत किया हैं : तृणादपी सुनीचेन तरोरपी सहिष्णुनाम , अमनीना मानदेन कीर्तनीय सदा हरी। (शिक्षाष्टकम श्लोक -३) यदि आपको एक मोमबत्ती या अगरबत्ती को भी जलाना हो तो उसे झुकना पड़ता हैं यदि आप उसे सीधा रखेंगे तो या तो वह बहुत मुश्किल से जलेगी अथवा जलेगी ही नहीं। परन्तु जैसे ही आप उसे झुकाते हैं और तब जलाने का प्रयास करें तो वह तुरन्त ही जल जाती हैं। इसीप्रकार जब हम भी नम्र बनते हैं , झुकते हैं तब हम कृपा प्राप्त करने के योग्य बनते हैं। विद्या ददाती विनयं , विनयात यती पात्रता (हितोपदेश - श्लोक ६) जब आप VIHE वृन्दावन में जाकर ज्ञान प्राप्त करते हैं तब आप विद्वान या विदुषी बनते हैं। वह विद्या आपको नम्र बनाती हैं। केवल अज्ञानी मनुष्य ही झूठे अहंकार में रहते हैं। जैसे ही आप ज्ञानी बनते हैं आप नम्र हो जाते हैं क्योंकि विद्या ददाती विनयं। ये ब्राह्मण के गुण हैं। कृष्ण ब्राह्मण के गुणों के विषय में बताते हुए कहते हैं : विद्या विनय सम्पन्ने ब्रह्मणे (भगवद गीता - ५. १८) ब्राह्मण वह व्यक्ति हैं जो 'विद्यासम्पन्न' अर्थात ज्ञानवान तथा 'विनयसम्पन्न' अर्थात अत्यंत नम्र होता हैं। वह विद्या या ज्ञान से सुसज्जित होता हैं। वही ज्ञान उसे विनयी /नम्र बनाता हैं। अतः हमें ज्ञानवान होना चाहिए। हमें इस ज्ञान को प्राप्त करना चाहिए। भगवद गीता , भागवतम का अध्ययन हमें नम्र बनाता हैं, क्योंकि इनके अध्ययन द्वारा हमें ज्ञात होगा कि भगवान कितने महान हैं तथा मैं कितना तुच्छ , उनका एक छोटा सा अंश मात्र हूँ। इस प्रकार यही वो ज्ञान हैं जो हमें विनम्र बनाता हैं। यही नम्रता हमें भगवान की कृपा प्राप्त करने के योग्य बनाती हैं। इसलिए ऐसा कहा जाता हैं - विद्या ददाती विनयं , विनयात यती पात्रता। इस प्रकार आप भगवान की कृपा को प्रतिधारण करते हैं तथा उसे संजोग कर रखते हैं। यहीं से धारणा , ध्यान तथा समाधी की अवस्था प्रारम्भ होती हैं। हम इस कृपा को तभी संजोग कर रख पाएंगे जब हम नम्र, योग्य , तथा धारण करने में सक्षम होंगे , तब हम इसे संभाल कर तथा अनुरक्षण कर पाएंगे। उस स्थिति में आप अत्यंत प्रसन्न तथा आनन्द में रहेंगे क्योंकि आपने भगवान की कृपा का साक्षात्कार किया हैं। यह इसका एक हिस्सा हैं , जो अपने आप में पर्याप्त हैं। जो मैंने कहा क्या आप उसे समझे ? नम्र होने से क्या लाभ हैं ? आप में से कोई मुझे शिक्षाष्टकम पर प्रवचन देने के लिए कह रहा था , अतः आप इसे शिक्षाष्टकम के 'तृणादपी सुनीचेन तरोरपी सहिष्णुनाम , अमनीना मानदेन कीर्तनीय सदा हरी ' श्लोक पर व्याख्या के रूप में समझ सकते हैं। एक माताजी हवा में अपने दोनों हाथ ऊपर उठा रही हैं , यह भी नम्रता हैं। यह शरणागति का लक्षण हैं। हम शरणागत हैं। हाथ ऊपर उठाना , बहुत महत्वपूर्ण शारीरिक हाव-भाव हैं। इस प्रकार उसी श्लोक में आगे कहते हैं - विनयात यती पात्रता , पात्रवात धनम आपनोति। इसलिए जब आप पात्र होते हैं तब आपको वैभव की प्राप्ति होती हैं। पात्र का अर्थ हैं बर्तन जो किसी को संजोग सकें अतः आप भी उसे संजोग कर रख सकने में सक्षम होते हैं। यह मन्त्र अद्भुत हैं - पात्रवात धनम आपनोति। हम यह महामन्त्र का जो जप कर रहे हैं वही वास्तविक धन हैं। गोलोकेर प्रेम धन। यह धन आपके पास आ रहा हैं जहाँ आपकी आत्मा उसे संजोग कर रखने वाला पात्र हैं। अतः प्रत्येक सुबह हम सभी और अधिक धनवान बनते हैं जब हम इसका जप करते हैं - हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। हम प्रत्येक दिन सुबह धन एकत्रित करने में व्यस्त हो जाते हैं। इन जगत में अन्य व्यक्ति १० बजे से धन अर्जित करने में संलग्न होते हैं परन्तु भक्त सुबह ५ बजे से ही इसमें जुट जाते हैं। भक्त सांसारिक व्यक्तियों से बहुत आगे हैं। भक्त सुबह जल्दी उठते हैं तथा इस धन को अर्जित करने में व्यस्त हो जाते हैं। इसी श्लोक में आगे आता हैं : धनत धर्मः ततः सुखम। इसप्रकार धनं धर्मं अर्थात धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के समान अतः इस धन को भगवान की सेवा में लगाना चाहिए , जिससे कृष्ण भावनामृत का क्रमिक विकास हो सके। यदि धन का बुद्धिमता से उपयोग करेंगे तभी इसका अंतिम परिणाम सुख होगा ' ततः सुखं '। ऐसा कहा जाता हैं कि रात में जल्दी सोने और सुबह जल्दी उठने से व्यक्ति स्वस्थ तथा धनी होता हैं। आप इससे धनी होते हैं क्योंकि सुबह के समय आप शुद्ध हवा को ग्रहण करते हैं जो स्वास्थ्य लाभ प्रदान करती हैं। हमें सुबह के समय अधिक मात्रा में ऑक्सीजन को ग्रहण करना चाहिए। हमें जप को नहीं रोकना चाहिए। हमने कई बार जप करते समय सहायक कार्य पद्दति के विषय में भी चर्चा की हैं , जहाँ आपको जप करते समय पहले गहरी साँस लेनी चाहिए तत्पश्चात जप करते हुए ही धीरे धीरे सांस छोड़ें। इसके बहुत अधिक लाभ हैं। अभी हमारे पास उनके विषय में चर्चा करने के लिए समय नहीं परन्तु हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि यह कार्य केवल योगियों , अष्टांग योगियों तथा हठ योगियों का ही हैं। यह कार्य उनका हैं या हो सकता हैं परन्तु हमें इसे अपने भक्ति योग में सम्मिलित करना हैं जब हम जप कर रहे हो। यदि मैंने अभी जैसा बताया आप उस प्रकार से जप करेंगे तो आप धनी तथा स्वस्थ बनेगें। जब आप अपने फेफड़ों को हवा से भरते हैं तो क्या होता हैं ? आप उस स्थिति में आ जाते हैं जहाँ आप भगवान कृष्ण का स्मरण करने में सक्षम बनते हैं। हम सभी भी ध्यानयोगी हैं।बजरंगी प्रभुजी इसे करते हैं तथा माधव कीर्ति प्रभुजी भी सदैव इसके बारे में चर्चा करते रहते हैं। इनके अलावा भी कई अन्य जप योगी भक्त हैं जो इसके सम्बन्ध में चर्चा करते हैं। जब आपके रक्त में ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में घुलकर मस्तिष्क तक पहुँचती हैं तब आप निद्रा से दूर रहते हैं , जप करते समय आप ऊँघते नहीं हैं , जैसा कि आज एक भक्त कांफ्रेंस के दौरान ऊँघ रहे थे। यदि आप इस तकनीक का इस्तेमाल करके जप के दौरान नींद से बच सकते हैं। आप सतर्क , स्वस्थ , धनी तथा बुद्धिमान बनते हैं। यदि आप रात में जल्दी सोते हैं तथा सुबह जल्दी उठते हों तो आप धनी , स्वस्थ तथा बुद्धिमान अवश्य बनेंगे। आप इस श्लोक को याद करने का प्रयास कीजिए - विद्या ददाती विनयं, विनयत यती पात्रता। पात्रत्वत धनं आपनोति, धनत धर्मः तत: सुखम।। यह कृष्ण का सम्बन्ध या हरे कृष्ण महामन्त्र से सम्बन्ध हैं। ये जप करने वाले साधकों के लिए दिशा - निर्देश हैं। इसमें वह भाव हैं जिससे हम नम्र बन सकते हैं तथा इसके लिए पात्र कैसे बना जाता हैं वह सीख सकते हैं। किसी ने यह प्रश्न किया , " मैं हरिनाम की कृपा किस प्रकार प्राप्त कर सकता हूँ ?" उस प्रश्न का उत्तर हैं - " नम्र बने रहिए। " आज हम यही इस चर्चा को विराम देंगे , क्योंकि राधा - गोविन्ददेव जी के दर्शन का समय हो रहा हैं। कल आप सभी से पुनः भेंट होगी। हरे कृष्ण …….

English

HUMILITY - ORNAMENT OF VAISNAVA!
I am hearing lots of praises for this microphone today . Devotees are saying wonderful microphone. “Wonderful holy name is being chanted with wonderful microphone, and wonderful devotees are listening to it.” I get lots of requests for blessings. Devotees are seeking blessings all the time and offering pranams. I am being bombarded with dandavats every few minutes, not to me alone, but all the participants of the conference. That's the right mood. All the humility at your command, when you enter the association of devotees or devotee family which is busy with chanting. Offering dandavat means you are bowing down. That is how one becomes the recipient of the holy name, when you bow down. Caitanya Mahaprabhu has already declared in his verse -
trinadapi sunichen tarorapi sahishnuna amanina manden kirtaniya sada Hari. (Siksastakam -verse 3).
If you have to light even a candle or incense, if you hold it straight, and light it, it will take longer or may not even burn. But when you hold it slanting or ‘stick bows down’ then it lights quickly. So like that , when we bow down , we become more eligible candidate to receive the mercy.
Vidya dadati vinayam vinyat yati patrata. ( Hitopadesh - verse 6)
When you acquire knowledge, you go to VIHE in Vrindavan and you become vidvan ( learned) or vidushi. That Vidya makes you humble. Only ignorant people are falsely proud. As soon as you become knowledgeable, you become humble , because vidya dadati vinayam. They are the qualities of a Brahmin. Krsna said the qualities of Brahmin are vidya vinaya sammpane brahmane( BG. 5.18). A brahmin is that person who is vidyasampanna (knowledgeable) and vinaysampanna ( humble). He is equipped with vidya or knowledge. That knowledge makes him vinayi or humble. So we should be knowledgeable. We should be acquiring knowledge. Studying Bhagvad-Gita, Bhagavatam will make us humble. Because we will be realizing that God is Great and we are insignificant, just tiny parts and parcels, very tiny. That should make us humble. During our Padayatra to Badrikasrama we were seeing the tall peaks of the Himalayan Mountains all around us. We were walking midst of those mountains like a speck of dust , towards Badrikashram. It was quite a humbling experience. In the midst of the Himalayan Mountains, the tallest mountain on earth and you are walking at the foothill of the mountain peak, like a tiny ants crawling. That was a humbling experience. As we read, Gita, Bhagavatam, Caitanya Caritamrita we become more and more Krsna realized. We understand the greatness of Krsna and at the same time we become self realized. God is great , and I am such insignificant, tiny part and parcel. So that is what makes us humble. This humility makes us eligible to receive the mercy of the Lord. So vidya dadati vinayam, vinayat yati patrata. You become the retainer or beholder of the mercy of the Lord. That's where Dharana , Dhyana and samadhi begins. We hold because we are humble, eligible and you will hold, retain and maintain that. Then you become happy and joyful, since you have already received the mercy of the Lord. This is one part, which is good enough, Have you understood what we said? Importance of being humble.
Someone wanted me to speak on one of the Siksastakam , so this can be also considered as commentary on one of the Siksastakam - trinad api sunichen tarorapi sahishnuna amanina manden kirtaniya sada Hari.
One of the mataji is raising her arms in the air. This is also humility. Surrendering. We are surrendered. It's big body language, raising arms. So vinayat yati patrata, patratvat dhanam aapnoti. Then when you are patra, you could acquire wealth. Patra is a container so you will receive and hold it.
This mantra is wonderful. patratvat dhanam aapnoti. This chanting that we are doing is dhan. Golokera prem dhan . Dhan or wealth is coming your way and your soul is the patra, the holder. So all morning long we are making you richer as we chant - HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE HARE We start acquiring dhanam early morning. Everyone starts making money at 10.00 am. But devotees start earning at 5.00 am . They are ahead of the world. Devotees wake up early, and start collecting wealth. Further it says dhanat dharmaha tataha sukham. So dhanat dharmam - like dharma, artha kama moksha. This should be employed for Dharma. for becoming Krishna conscious, . Dhan or wealth is wisely invested then the end result is tataha sukham i.e. you become happy. This is also what we understand, Early to bed, early to rise makes one healthy wealthy and wise. You become wealthy, because we inhale fresh air enriched with lots of oxygen. We should inhale lots of oxygen in the morning. We don't have to stop chanting. We have talked a few times about the technique of chanting, that while chanting you take a deep breath and you chant, then release the breath slowly while chanting the maha mantra. Chant 3, 4 or 5 mantras, in one breath during which the air is released. Then take a deep breath again and repeat it the same way. There are lots of benefits of this. I don't have time to explain all those now, but don't think this is just a yogi business or astanga yogi business or hatha yoga. It may be or it is but we can also use this in our service of bhakti yoga for chanting. You will also become healthy and wealthy if you chant the way I was just explaining. In order to fill up your lungs, as soon as you begin filling up your lungs, what happens? You come to a position that is favourable for remembering Krsna meditation. We are also meditators. Dhyan-yogis. Bajarangi Prabhuji does this and Madhav-kirti Prabhu also keeps talking about it. There are several other devotees, japa-yogis who follow this. The blood is oxygenated and reaching your brain. Then you will not fall asleep as someone was sleeping this morning in the middle of the chanting. You try this technique, then you will overcome the sleepy state. You will remain awake. Healthy, Wealthy and Wise. If you sleep early, and get up early in the morning, that will make you healthy, wealthy and wise.
Memorise this mantra vidya dadati vinayam, vinayat yati patrata, patratvat dhanam aapnoti and dhanat dharmaha tataha sukham It is Krsna connection or Hare Krishna -mahamantra connection. It is a guideline for the chanters of the holy name. This has elements like humility and how to become eligible. 'How could I the receive mercy of the holy name?’ someone asked. This is the answer to that question. Be humble. Today we will stop here. It's time to greet Radha-Govind Dev. See you tomorrow again. Hare Krishna!

Russian

Джапа сессия 22.02.2019 Смирение - украшение Вайшнава! Я слышу много похвал про этот микрофон сегодня. Преданные говорят замечательный микрофон. «Чудесное святое имя поют с замечательным микрофоном, и его слушают замечательные преданные». Я получаю много просьб о благословениях. Преданные постоянно ищут благословения и предлагают поклоны. Меня каждые несколько минут бомбардируют дандаватами, и не только меня, но и всех участников конференции. Это правильное настроение. Все смирение в вашем распоряжении, когда вы вступаете в сообщество преданных или семьи преданных, которые заняты воспеванием. Предлагая дандават, вы склоняетесь. Вот как человек становится получателем святого имени, когда вы кланяетесь. Чайтанья Махапрабху уже заявил в своем стихе: trinadapi sunichen tarorapi sahishnuna amanina manden kirtaniya sada Hari. (Шикшаштака- стих 3). Когда вам нужно зажечь свечу или ладан, если вы будете держать его прямо и зажигать, это займет больше времени или даже оно не загорится. Но когда вы удерживаете его наклонным или «кланяетесь», он быстро загорается. Таким образом, когда мы кланяемся, мы становимся более подходящим кандидатом на получение милости. Vidya dadati vinayam vinyat yati patrata (Хитопадеш - стих 6) Когда вы приобретаете знания, вы идете в VIHE во Вриндаване и становитесь видваном (учёным) или видуши. Эта Видья делает вас смиренными. Только невежественные люди ложно гордятся. Как только вы становитесь знающим, вы становитесь смиренным, потому что видья дадати винаям ..это качества брамина. Кришна сказал, что качества брахмана - это vidya vinaya sammpane brahmane (БГ 5.18). Брахман - это тот, кто видьясампанна (знающий) и винайсампанна (смиренный). Он оснащен видьям или знаниями. Это знание делает его винайи или скромным. Поэтому мы должны быть знающими. Мы должны приобретать знания. Изучение Бхагавад-гиты, Бхагаватам сделает нас смиренными. Потому что мы поймем, что Бог велик, и мы незначительны, просто крошечные части и частицы, очень маленькие. Это должно сделать нас смиренными. Во время нашей падаятры до Бадрикашрама мы видели высокие вершины гималайских гор вокруг нас. Мы гуляли среди этих гор, как пылинка, по отношению к Бадрикашраму. Это был опыт, который довольно сильно учил смирению. Вы посреди Гималайских гор, самых высоких гор на земле, идете в предгорье вершины горы, как ползающие крошечные муравьи. Это был опыт учащий смирению. Когда мы читаем Гиту, Бхагаватам, Чайтанья Чаритамриту, мы все больше и больше осознаем Кришну. Мы понимаем величие Кришны и в то же время мы осознаем себя. Бог велик, а я такая незначительная, крошечная неотъемлемая частица. Вот что делает нас смиренными. Это смирение дает нам право получить милость Господа. Итак, видья дадати винаям, винаят йати патрата. Вы становитесь хранителем или наблюдателем милости Господа. Вот где начинаются дхарана, дхьяна и самадхи. Мы держимся, потому что мы скромны, достойны, и вы сохраните и поддерживайте это. Тогда вы станете счастливыми и радостными, поскольку вы уже получили милость Господа. Это одна часть, которая достаточно хороша. Вы поняли, что мы сказали? Важно быть скромным. Кто-то хотел, чтобы я говорил об одном стихе из Шикшаштаки, так что это также можно рассматривать как комментарий к одному из стихов Шикшаштаки - trinad api sunichen tarorapi sahishnuna amanina manden kirtaniya sada Hari. Одна из матадж поднимает руки в воздух. Это тоже смирение. Предание. Мы предались. Поднятые руки, это важный язык тела. Итак, vinayat yati patrata, patratvat dhanam aapnoti. В таком случае если вы являетесь Патрой, вы сможете получить богатство. Патра - это сосуд, поэтому вы сможете получить и сохранить его. Эта мантра прекрасна. patratvat dhanam aapnoti. Это воспевание, которое мы делаем, - это дхан. Голокера према дхан. Дхан, или богатство, приходит к вам, а ваша душа - это Патра, сосуд. Так что все утро мы делаем вас богаче, когда мы воспеваем - Харе Кришна Харе Кришна HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE HARE Мы начинаем приобретать дханам рано утром. Все начинают зарабатывать в 10.00. Но преданные начинают зарабатывать в 5 часов утра. Они опережают мир. Преданные просыпаются рано и начинают собирать богатство. Далее говорится: dhanat dharmaha tataha sukham. Поэтому дханат дхармам - как дхарма, артха, кама, мокша. Это должно быть использовано для Дхармы. Чтобы стать сознающим Кришну, Дхан, или богатство, мудро вкладывается, тогда конечный результат istataha sukham, то есть вы становитесь счастливыми. Это также как понимание того, что если мы будем рано ложиться спать и рано вставать, мы станем здоровыми и мудрыми. Вы становитесь богатым, потому что вдыхаете свежий воздух, обогащенный большим количеством кислорода. Мы должны вдыхать много кислорода по утрам. Нам не нужно прекращать воспевать. Мы несколько раз говорили о технике воспевания: когда вы повторяете, вы делаете глубокий вдох и повторяете, затем медленно выдыхаете, повторяя маха-мантру. Повторяйте 3, 4 или 5 мантры на одном дыхании, во время которого выпускается воздух. Затем снова сделайте глубокий вдох и повторите то же самое. У это есть много преимуществ. У меня нет времени, чтобы объяснить все это сейчас, но не думайте, что это занятие только для йогов, аштанга йогов или хатха йогов. Так это или нет, но мы также можем использовать это в нашем служении бхакти-йоги для воспевания. Вы также станете здоровыми и богатыми, если будете повторять то, что я только что объяснял. Что произойдет как только вы начнете заполнять свои легкие? Вы примете положение, благоприятное для запоминания медитации Кришны. Мы также медитирующие. Дхьяна-йоги. Баджаранги Прабхуджи практикует это, и Мадхав-кирти Прабху также продолжает говорить об этом. Есть несколько других преданных, джапа-йогов, которые следуют этому. Кровь насыщается кислородом и достигает вашего мозга. Тогда вы не уснете, как кто-то спал этим утром в середине воспевания. Попробуйте эту технику, тогда вы преодолеете сонное состояние. Вы не уснете. Здоровые, богатые и мудрые. Если вы будете ложиться спать рано и вставать рано утром, это сделает вас здоровыми, богатыми и мудрыми. Запомните эту мантру vidya dadati vinayam, vinayat yati patrata, patratvat dhanam aapnoti and dhanat dharmaha tataha sukham Это связь с Кришной или связь с Харе Кришна - махамантрой. Это руководство для воспевающих Святое Имя. Это имеет такие элементы, как смирение и как стать достойным. «Как я могу получить милость Святого Имени ?» - спросил кто-то. Вот ответ на этот вопрос. Быть скромным. Сегодня мы остановимся здесь. Пришло время приветствовать Радха-Говинда Дева. Увидимся завтра снова. Харе Кришна! «Для души нет старости или молодости, никогда не поздно, воспользуйтесь возможностью. Если вы попытаетесь наслаждаться здесь, вы в конечном итоге будете страдать. Есть две сагары, према сагар и маха-анартха сагар, и те, кто разумны, всегда пойдут за Гаурангой ». - Локанатха Свами