Hindi

क्या आप मुझे सुन पा रहे हैं ? ठीक हैं , जो मुझे सुनना चाहते हैं वे सुन रहे हैं। मैं राधा गोविन्द देव तथा आप सभी भक्तों की प्रसन्नता के लिए बताना चाहता हूँ कि आज इस कांफ्रेंस में ३२५ भक्त सम्मिलित हैं। लगभग १० - २० देश इस कांफ्रेंस में भाग ले रहे हैं।
अपनी १६ माला एक ही समय में बैठकर पूरी कीजिए , वही सर्वोत्तम हैं। यदि आप अब जप रोक देते हैं तो इसका अर्थ हैं कि आपने भक्तों के संग में , पूर्ण चेतना के साथ केवल ६, ८ या १० माला ही की। सुबह का समय ध्यानपूर्वक जप के लिए उपयुक्त हैं। ब्रह्ममुहूर्त में सतो गुण की प्रधानता रहती हैं, उस समय की परिस्थिति भी जप के लिए सर्वथा अनुकूल हैं। उस समय मस्तिष्क ताज़ा , जप में सहयोगी तथा अन्य किसी विचारों से रहित रहता हैं। जैसे जैसे दिन चढ़ता हैं हम कई प्रकार की गतिविधिओं में सम्मिलित होते हैं और इस प्रकार मन में कई विचार आते रहते हैं, और इस प्रकार इन सभी विचारों के मध्य हम हरे कृष्ण का जप करने का प्रयास करते हैं। हम उस समय महामन्त्र का श्रवण नहीं कर सकते हैं तथा ध्यानपूर्वक जप होने की सम्भावना भी अत्यंत कम होती हैं तथा हम असावधानी पूर्वक जप करने में सालग्न हो जाते हैं। अतः सुबह जप करने का प्रयास कीजिए। कई बार ऐसा होता हैं कि भक्त सुबह अपना जप पूरा नहीं कर पाते हैं तथा अन्य कई कार्यों में व्यस्त हो जाते हैं , जिससे उन्हें जप पूरा करने में रात हो जाती हैं। पिछले दिनों मैं जप के विषय में शोध कर रहा था जिसमे मैंने पाया कि भक्तगण अपनी १० से १२ माला सुबह के समय पूरी कर लेते हैं परन्तु बाकी बची हुई माला को भी सुबह ही पूरा करने के लिए कार्य करना चाहिए। उसके पश्चात हमें कृष्ण के लिए अत्यंत भागदौड़ करनी पड़ती हैं , जो रजोगुण का प्रभाव हैं। उस समय मन न तो एकाग्र हो सकता हैं तथा न ही श्रवण कर सकता हैं , इस प्रकार यह हरिनाम को छोड़कर अन्य बातों के श्रवण में मग्न हो जाता हैं तथा प्रत्येक स्थान पर घूमता रहता हैं।
अतः मैं आप सभी को अपनी नियत निर्धारित माला एक ही समय में पूरी करने के लिए प्रेरित करता हूँ।
जब हमारा मन अन्य कई प्रकार के विचारों से आवृत्त रहता हैं तो यही मन हमारे जप में बाधा उत्पन्न करता हैं। उस समय आपके तथा कृष्ण के मध्य में यह अड़ियल मन आ जाता हैं जो बहुत बड़ी बाधा हैं। हमारा मन पंखे के रेगुलेटर के समान हैं। जब रेगुलेटर १ पर होता हैं तो पंखा धीरे चलता हैं , ३ पर थोड़ा तेज़ होता हैं परन्तु जब यह ५ पर होता हैं तो पंखा अपनी पूर्ण गति के साथ घूमता हैं। यह रेगुलेटर वास्तव में करता क्या हैं ? यह पंखे तक पहुँचने वाली ऊर्जा को नियंत्रित करता हैं, इस प्रकार यह नियंत्रक यंत्र पंखे तक पहुँचने वाली ऊर्जा को नियंत्रित करती हैं। हम अपने मन को इस प्रकार जप में बाधक नहीं बनने देना चाहते हैं। जब यह रेगुलेटर करंट को रोक देता हैं तब पंखा बहुत धीरे चलता हैं। रेगुलेटर के ही समान हमारा मन भी भगवान के साथ हमारे वार्तालाप को नियंत्रित करता हैं। इस प्रकार हम भिन्न भिन्न मात्रा में भगवान को समझ सकते हैं। जब हमारा मन अन्य विचारों तथा कार्यों से आवृत्त रहता हैं तब यह समझता हैं कि ये कार्य ही मेरे सबसे महत्वपूर्ण कार्य हैं , तथा उस समय जप का महत्त्व कम हो जाता हैं। उस समय हमें केवल अस्पष्ट शब्द ही सुनाई देते हैं। परन्तु यदि हम मन को एकाग्र रखेंगे तथा अन्य कार्यों में सलग्न नहीं होने देंगे तब यह उस पंखे के समान कार्य करेगा जिसने रेगुलेटर के साथ सम्बन्ध स्थापित कर लिया हैं, तथा हम भगवान कृष्ण के साथ अपना सम्बन्ध स्थापित करने में सक्षम हो सकेंगे। कभी कभी ऐसा हो सकता हैं कि बीच में कोई बाधा उत्पन्न होगी , जहाँ पूर्णरूपेण असावधानीपूर्वक जप भी हो सकता हैं। इस प्रकार ध्यापूर्वक तथा ध्यानरहित जप की मात्रा हमारे मन की शुद्धता पर निर्भर करती हैं। तथा इस शुद्धता को प्राप्त करने के लिए आपको बहुत प्रयास करना पड़ता हैं तथा अत्यंत सावधानीपूर्वक हरे कृष्ण महामन्त्र का जप करना पड़ता हैं। क्या आपको इसका सार समझ में आया ?
जब आप बार बार जप करते हैं तो आप इसके आदी बन जाते हैं। जो रेल की पटरी के समीप रहते हैं उन्हें रेलगाड़ी की आवाज़ से विघ्न नहीं होता हैं। उन घरों के सदस्य यह भी ध्यान नहीं दे पाते हैं कि कोई रेलगाड़ी आ अथवा जा रही हैं। परन्तु यदि हम वहां चले जाएं तो हमें रेलगाड़ी की ही आवाज़ सुनाई देगी। मन भी ठीक इसीप्रकार कार्य करता हैं। बार बार उस रेलगाड़ी की आवाज़ सुन सुन कर एक समय ऐसा आ जाता हैं जब आपको वह आवाज़ सुनाई देना बंद हो जाती हैं। चूँकि आप उसे पसंद नहीं करते हैं इसलिए सदैव उस आवाज़ को अपने मन में दबाकर रखते हैं जिससे कोई व्यवधान पैदा न हो। ऐसा भक्तों के साथ होता हैं। जब हम असावधानीपूर्वक जप की बात करते हैं तो भक्त उस समय जप कर रहे होते हैं , वे पुरे महामन्त्र का उच्चारण भी करते हैं परन्तु उसका श्रवण नहीं कर पाते। तब हमारे मन में अन्य विचार तथा ध्वनि होती हैं। यह दो पटरियों के समान बन जाता हैं। जप करते समय हमारा मन अन्य कई प्रकार की बातों से आवृत्त रहता हैं। उस समय थोड़ा सा जप ध्यानपूर्वक होता हैं तथा बहुत सारे अन्य विचार मन में आते रहते हैं। इस अवस्था में हम १ माला , २ माला तथा इसीप्रकार १६ माला पूरी कर लेते हैं। यह अत्यंत खतरनाक हैं। इस प्रकार कोई अनेक वर्षों तक भी जप कर सकता हैं परन्तु उसका श्रवण नहीं करता हैं। जब हम जप करने के लिए बैठते हैं तब मन अन्य कही व्यस्त होता हैं। उनका मोबाइल उनके पास होता हैं तथा गृहस्थ भक्त टीवी देखते हुए जप करते हैं। अतः क्या आपको यह लगता हैं कि आप इतने बड़े योगी बन गए हैं ? इस सभी के बीच में आप , आसपास के वातावरण से पूर्णतया विरक्त होकर केवल अपने जप पर केंद्रित रहते हैं , क्या ऐसा संभव हैं ? यह हम जैसे साधकों की अवस्था नहीं हैं। हमने तो केवल अभी अभी जप करना प्रारम्भ किया हैं। भक्तिविनोद ठाकुर के अनुसार अनियंत्रित जप अन्य सभी अपराधों का कारण हैं। हरिनाम के प्रति १० अपराध हैं परन्तु उन सभी अपराधों का मूल असावधानीपूर्वक किया गया जप हैं। जब आपका जप असावधानीपूर्वक होता हैं तो इससे कई अनर्थ उत्पन्न होते हैं।
इस प्रकार हम हरिनाम से अत्यंत आसक्त हो जाते हैं तथा अन्य वस्तुओं से एक प्रकार का विलगाव पैदा हो जाता हैं। यदि विलगाव न भी हो तो आप कम से कम तटस्थ रह सकते हैं। हम किसी को नापसन्द करते हैं या हम उनके प्रति तटस्थ रहते हैं। हमें उचित प्रकार से बैठकर ध्यानपूर्वक जप का श्रवण करना चाहिए। हमारे जप के सुधारक भूरिजन प्रभु बताते हैं कि हमें मन्त्र के प्रारंभिक शब्द अत्यंत ध्यानपुर्वक सुनने चाहिए। जब भी आप एक नया मन्त्र बोलते हैं , तो आपको ध्यान रहे कि आप उसके प्रारम्भिक शब्द स्पष्ट रूप से सुन रहे हैं। यह क्रमशः अपने जप की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए एक संकेत हैं। आपको प्रारम्भ में हरे कृष्ण का श्रवण करना चाहिए तथा उसके पश्चात पुरे मन्त्र को श्रवण करें। जप आपने हरे कृष्ण कहा तब आपने हरे कृष्ण सुना परन्तु वास्तव में आपने क्या सुना ? आपके ह्रदय की आवाज़ आपसे पूछती हैं - हरे कृष्ण का अर्थ क्या हैं ? इस हरे कृष्ण के जप से हमें क्या प्राप्त होगा ? इसके श्रवण से हमें क्या लाभ हैं ? इस प्रकार यह और अधिक गहरा होता जाता हैं। जब हम हरे कृष्ण का श्रवण करते हैं तो हमारे भीतर कुछ होना चाहिए। यदि हम वास्तव में श्रवण करते हैं तब ' जीव जागो ' होना चाहिए अर्थात हमारी आत्मा उस ध्वनि के चेतन अवस्था में आनी चाहिए। आप अपने आसपास देखते हैं तथा यह ढूंढने का प्रयास करते हैं कि कृष्ण कहाँ हैं। जब हम हरे कृष्ण हरे कृष्ण का जप करते हैं तो हमारे सामने बहुत सारे कृष्ण होते हैं। हमारा मन पूर्णरूपेण कृष्ण के विचारों से पूर्ण रहता हैं। हमारे मस्तिष्क में कृष्ण के नाम , रूप , गुण तथा लीलाओं के विचार निरन्तर रहते हैं। इस प्रकार कृष्ण से सम्बन्धित विचारों का एक पूरा समुद्र हैं , ये सभी हमारे विचारों के लिए भोजन हैं।
अपने जप की गुणवत्ता को प्रत्येक दिन बढ़ाइए।
हरे कृष्ण !

English

Are you able to hear me? Okay, those who want to hear, they are hearing me. I will like to convey for the pleasure of Radha-Govind Deities and for the pleasure of the devotees that today we had 325 participants. Maybe 10 - 20 countries are part of this conference.
Try to finish all your 16 rounds in one sitting, that's the best. You have stopped chanting now and that means you have only chanted 6, 8 or 10 rounds in morning, in association with full attention and concentration. Early morning hours are favourable for chanting with attention. Brahmamuhurta is the mode of goodness time. Early morning hours conditions are favourable. Mind is fresh, more cooperative, not preoccupied. As we go through the day, lots of things happen and we keep thinking about lot of things. Then in the midst of all these thoughts, we are trying to chant Hare Krishna, Hare Krishna. We may not hear it. There will be no attention. Chanting becomes inattentive. So try to chant in the morning. It is observed that sometimes devotees are not able to chant in the morning and then with many other things, it may become night. The other day I was doing some review of the chanting performance, and I realised that the chanting of only 10 or 12 rounds that we do in the morning and then for the remaining rounds it should be worked out. Later we have to do a lot of running around for Krsna which arouses a lot of passion. The mind can't concentrate, can't hear and ends up hearing other things. Mind gets dragged everywhere.
So I would encourage you to chant the prescribed number of rounds in one stroke. When the mind is preoccupied with so many other issues, then such a mind becomes a stumbling block. Between you and Krsna there is a stubborn mind which is preoccupied and is standing like a block. It's like regulator of a fan. When the regulator is on one, the fan moves slow. On three it moves a little faster, but on 5 it runs really fast. What the regulator does is it regulates the amount of electricity that reaches the fan. This is a device which regulates the amount of current reaching the fan. We do not want our mind to be a stumbling block. If the regulator blocks the current, then the fan moves very slowly. Like that the mind regulates our communication with the Lord. The Lord is revealed to different degrees. When the mind is preoccupied with thoughts of other activities, other assignments it means that those other activities are our number one priority. Chanting becomes less important. There is only vague hearing. If the mind is more fresh and not allowed to be engaged in other engagements and not allowed to wander, then like a fan which makes a connection with the regulator , it will establish a connection with Krsna . Sometimes there could be a blockage. There can be complete, inattentive chanting. There can be 100% inattentive chanting. So the degree of attention or inattention depends on the purity of the mind. For attaining purity, you have to do lot of endeavours and chant Hare Krishna sincerely. Did you get the point?
When you chant again and again you get used to it. Those who are staying next to railway tracks don't hear the sound of the trains. Param Karuna Prabhu’s home in Nagpur is next to railway tracks. The home members were not even noticing the sound of railway trains coming and going. But when we were there, we were only hearing the train sounds. So the mind could also act like that. After hearing and hearing and hearing the railway sounds, a time comes when you don't hear. There is a kind of dislike so you try to keep that at the back of your mind. This could happen and this does happen with chanters. When we say inattentive chanting, devotees are chanting. They are saying Hare Krishna Hare Krishna and the whole mantra, but they are not hearing. Then there will be other sounds and thoughts. It becomes like two tracks. The mind is busy with so many other things while chanting. Some kind of chanting and also other thoughts are going on. Then one round, two rounds are finished. Like that 16 rounds are finished. It’s a risky business! Like that one could go on year after year after year, not hearing. When we sit down to chant the mind is elsewhere. The mobile could be next to them, or for grhasthas the TV is on and they are chanting. So do you think that you are such a great yogi? In the midst of all this you are completely oblivious of the surroundings and you are fully absorbed in chanting no matter what is happening around you? This is not our state as sadhakas. We have just started chanting. So this inattentive chanting is also an offence. According to Bhakti Vinod Thakur, inattentive chanting is the source of all other offences. There are ten offences to the holy name, but the origin of these ten offences is inattentive chanting. When your chanting is inattentive, it gives rise to anarthas. Like this, we become too familiar with the holy name and there develops some kind of dislike. At least you should be neutral. We dislike somebody or are neutral to someone. Like that we take positions. Either we like chanting, or we dislike , or we are neutral. We have to hear properly, sit properly . Our Bhurijan Prabhuji, reformer of chanting says that at the beginning of the mantra should be heard properly. Every time you start with new mantra, make sure you have heard the beginning attentively. This is a tip or hint. You have to hear Hare Krishna and then you have to hear more. When you chant Hare Krishna you heard Hare Krishna, but then what did you hear. The inner voice asks what Hare Krishna meant to you? What did you derive out of hearing? What happens when you hear Hare Krishna? That is going even more deeper. When we hear Hare Krishna something has to happen. If we really hear, then jiva jago, the soul has to wake up. You are looking around, looking for Krsna. When we say Hare Krishna, Hare Krishna, here are so many Krsnas. The mind is full of Krsna's thoughts. Krsna's names, form, qualities, pastimes. There is an ocean of Krsna thoughts. That is some food for thought.
Try to improve your chanting everyday. Make it better and better.
Hare Krishna!

Russian

Джапа сессия 21.02.2019 Вы меня слышите? Хорошо, те, кто хочет услышать, они слышат меня. Я хотел бы озвучить для удовольствия Божеств Радха-Говинды и для удовольствия преданных, что сегодня у нас было 325 участников. Может быть, 10-20 стран являются частью этой конференции. Попробуйте закончить все свои 16 кругов за один присест, так лучше всего. Вы остановились повторять сейчас, и это означает, что вы повторили только 6, 8 или 10 кругов утром, в сочетании с полным вниманием и концентрацией. Ранние утренние часы благоприятны для внимательно воспевания. Брахма-мухурта это время гуны благости. Условия ранних утренних часов благоприятны. Ум свежий, более сговорчивый, не озабоченный. В течение дня происходит много событий, и мы думаем о многих вещах. И посреди всех этих мыслей, мы пытаемся воспевать Харе Кришна, Харе Кришна. Мы можем не слышать того что повторяем. Там не будет никакого внимания. Воспевание становится невнимательным. Поэтому попробуйте воспевать утром. Замечено, что иногда преданные не могут повторять по утрам, и тогда, из - за множества других вещей, приходится повторять ночью. На днях я пересматривал качество повторения и понял, что повторил только 10 или 12 кругов, которые мы повторяем утром, и остальные круги следует завершить. Позже мы должны много бегать за Кришной, что вызывает много страсти. Ум не может сосредоточиться, не может слышать, и все заканчивается слушанием других вещей. Ум отвлекается на все вокруг. Поэтому я бы посоветовал вам повторять предписанное количество кругов за один раз. Когда ум занят многими другими проблемами, тогда этот ум становится камнем преткновения. Между вами и Кришной встает упрямый ум, который озабочен и стоит как блок. Это как регулятор вентилятора. Когда регулятор включен, вентилятор работает медленно. На трех он движется немного быстрее, но на 5 он работает очень быстро. Регулятор регулирует количество электричества, которое достигает вентилятора. Это устройство, которое регулирует количество тока, достигающего вентилятора. Мы не хотим, чтобы наш ум был камнем преткновения. Если регулятор блокирует ток, то вентилятор вращается очень медленно. Так ум регулирует наше общение с Господом. Господь открывается в разной степени. Когда ум занят мыслями о другой деятельности, другими вещами, это означает, что эти другие виды деятельности являются нашим приоритетом номер один. Воспевание становится менее важным. Получается только рассеянное слушание. Если ум более свеж и ему не позволено заниматься другими делами, ему не разрешено блуждать, тогда, подобно вентилятору, который устанавливает связь с регулятором, он установит связь с Кришной. Иногда могут быть препятствия. Иногда бывает совсем невнимательное воспевание. Может быть 100% невнимательное воспевание. Таким образом, степень внимания или невнимания зависит от чистоты ума. Для достижения чистоты вы должны приложить много усилий и искренне воспевать Харе Кришна. Вы поняли смысл? Когда вы повторяете снова и снова, вы привыкаете к этому. Те, кто находится рядом с железнодорожными путями, не слышат звук поездов. Дом Парама Каруна Прабху в Нагпуре находится рядом с железнодорожными путями. Члены дома даже не замечают звука железнодорожных поездов, приходящих и уходящих. Но когда мы были там, мы слышали только звуки поезда. Ум тоже может так себя вести. Слушая, слушая и слушая звуки железной дороги, наступит время, когда вы перестанете их слышать. Это своего рода неприятие, поэтому вы пытаетесь держать это глубоко в уме. Это может случиться, и это случается с воспевающими. Когда мы говорим невнимательное воспевание, преданные воспевают, они говорят Харе Кришна Харе Кришна повторяют всю мантру, но не слушают, будут появляться другие звуки и мысли. Это становится как две дорожки. Во время воспевания ум занят большим количеством других вещей. Происходит какое-то воспевание, а также другие мысли. Затем один круг, два круга закончены. Итак 16 кругов закончены. Это рискованное занятие!Так можно повторять год за годом, год за годом и не слышать. Когда мы садимся воспевать, ум находится в другом месте. Мобильник может быть рядом с нами, или для грихастх, когда телевизор включен, и они воспевают. Вы думаете, что вы такой великий йог? Посреди всего этого вы полностью забываете об окружающей обстановке, и вы полностью поглощены воспеванием независимо от того, что происходит вокруг вас? Это не наше состояние как садхаки. Мы только начали воспевать. Так что невнимательное воспевание также является оскорблением. Согласно Бхактивиноду Тхакуру, невнимательное воспевание является источником всех других оскорблений. Есть десять оскорблений Святого Имени, но источником этих десяти оскорблений является невнимательное воспевание. Когда ваше воспевание невнимательно, оно порождает анартхи. Таким образом, мы становимся слишком фамильярными со святым именем, и так развивается какая-то неприязнь. По крайней мере, вы должны быть нейтральными. Мы не любим кого-то или нейтральны к кому-либо. Вот так мы занимаем позиции. Либо нам нравится воспевать, либо нам не нравится, либо мы нейтральны. Мы должны правильно слышать, правильно. Наш Бхуриджан Прабху, реформатор воспевания, говорит, что начало мантры должно быть услышано внимательно. Каждый раз, когда вы начинаете новую мантру, убедитесь, что вы внимательно услышали начало. Это совет или подсказка. Вы должны услышать Харе Кришна, а затем вы должны услышать больше. Когда вы повторяете Харе Кришна, вы слушаете Харе Кришна, но что вы слышите. Внутренний голос спрашивает, что для тебя значит Харе Кришна? Что вы получили от слушания? Что происходит, когда вы слышите Харе Кришна? Это идет еще глубже. Когда мы слышим Харе Кришна, что-то должно произойти. Если мы действительно слышим, то джив джаго, душа должна проснуться. Вы смотрите вокруг, ищите Кришну. Когда мы говорим Харе Кришна, Харе Кришна, здесь так много Кришны. Ум полон мыслей о Кришне. Имена Кришны, форма, качества, игры. Существует океан мыслей о Кришне. Это пища для размышлений. Попытайтесь улучшить свое воспевание каждый день. Делайте это лучше и лучше. Харе Кришна!