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4-1-2020 गौड़ीय सम्प्रदाय का पंढरपुर से सम्बन्ध जो हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं वे हरे कृष्ण भक्त हैं। वे गौड़ीय वैष्णव हैं। हम हमारे आराध्य भगवान श्री श्री राधा कृष्ण के उपासक हैं। आराध्यो भगवान ब्रजेश तनय , तद्धामं वृन्दावनं। रम्या काचिदुपासना व्रजवधु वर्गेण या कल्पिता।। श्रीमद भागवतम प्रमाण अमलम प्रेम पुमर्थो महान। श्री चैतन्य महाप्रभोर मत मिदम , तत्रादरो न परः।। कृष्णस्तु भगवान स्वयं भगवान जब अपनी अल्हादिनी शक्ति के साथ होते हैं तब वे सम्पूर्ण होते हैं। राधा कृष्ण को आनंद प्रदान करती हैं। महात्मानस तु माम पार्थ , दैवीम प्रकृतिं आश्रितः। भजन्त्यानन्या मनसो ज्ञात्वा भूतादिम अव्ययं।(भगवद गीता 9.13) शुद्ध भक्त तथा महात्मा भगवान की दैवी प्रकृति की शरण ग्रहण करते हैं तथा यह दैवीय शक्ति हैं श्रीमती राधारानी। भगवान की दूसरी शक्ति हैं दुर्गा। एक है योग माया तथा दूसरी हैं महामाया। राधारानी योगमाया हैं , दुर्गा जी महामाया हैं। जब हम सत चित्त आनन्द कहते हैं तो यही वास्तव में भगवान का स्वरुप हैं। चूँकि चैतन्य महाप्रभु बंगाल में प्रकट हुए तथा बंगाल को गौड़ देश कहते हैं अतः गौड़ से गौड़ीय शब्द आया। उड़िसा के लोगों को उड़िया कहते हैं तथा इसी प्रकार गौड़ देश के लोगों को गौड़ीय कहा जाता हैं। चैतन्य महाप्रभु गौड़ीय तथा उड़िया दोनों थे। हमारे आराध्य राधा कृष्ण हैं। प्रत्येक मन्त्र के मन्त्र देवता होते हैं। इसलिए हम उस मन्त्र के माध्यम से उस मन्त्र देवता की उपासना करते हैं। हरे कृष्ण महामन्त्र की देवी श्रीमती राधारानी हैं। मैं सोच रहा था कि मैं पंढरपुर में हूँ तथा यह जप चर्चा की यहीं से संपन्न हो रही हैं। इस धाम को भूवैकुण्ठ कहा जाता हैं। तुकाराम महाराज ने जब वैकुण्ठ गमन किया तब उन्होंने कहा , " आमी जातो आमच्या गावा , मळा राम राम ध्यावा। " इस प्रकार यह पंढरपुर वैकुण्ठ , गोलोक तथा वृन्दावन हैं। चैतन्य महाप्रभु भी इस धाम के धामी बने। वे भी यहाँ पर रहे। नित्यानंद प्रभु , तथा विश्वरूप भी यहाँ रहे अतः वे भी यहाँ के धामी हैं। गोलोक के दो भाग हैं - प्रथम वृन्दावन तथा द्वितीय नवद्वीप, जिसे श्वेतद्वीप भी कहा जाता हैं। पंढरपुर भी श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का धाम हैं। पंढरपुर केवल वैकुण्ठ ही नहीं हैं यह गोलोक भी हैं। कभी कभी गोलोक को वैकुण्ठ भी कहा जाता हैं। वैकुण्ठ नायक श्री कृष्ण। जिस प्रकार यदि कोई विष्णु कहता हैं तो स्वतः ही उसे कृष्ण समझ लिया जाता हैं उसी प्रकार जब कोई वैकुण्ठ कहता हैं तो उसे वृन्दावन समझ लिया जाता हैं। इस धाम के अन्य कई वे चिन्ह हैं जिनसे यह सिद्ध होता हैं कि पंढरपुर केवल वैकुण्ठ ही नहीं हैं। गोलोक नाम्नी निज धाम्नी तले च तस्य, देवी महेश हरी धामसु तेषु तेषु। ते तेओ प्रभव निश्चय विहितास च येन , गोविन्दम आदि पुरुषं तम अहम भजामि।। (ब्रह्मसंहिता श्लोक 43) सर्वप्रथम देवी धाम आता हैं तत्पश्चात हरिधाम , उसे बाद साकेत अयोध्या तथा अन्ततः गोलोक। गोलोक सर्वश्रेष्ठ हैं क्योंकि कृष्ण सर्वश्रेष्ठ हैं। पंढरपुर के विट्ठल मंदिर में न केवल रुक्मिणी का मंदिर हैं अपितु यहाँ राधारानी का मंदिर भी हैं। यहाँ सत्यभामा भी हैं अतः यह द्वारका भी हैं। यह एक में अनेक हैं। पंढरपुर में मंगल आरती को काकड़ आरती कहा जाता हैं। मंगल आरती के समय विट्ठल भगवान विट्ठल नहीं रहते। चूँकि वह ईंट पर खड़े हैं जिसे स्थानीय भाषा में वीट कहते हैं इसीलिए भगवान का नाम विट्ठल पड़ा। चूँकि वह द्वारका से यहाँ आये थे अतः वे द्वारकाधीश भी हैं परन्तु यहाँ उनका अभिषेक यशोदा मैया द्वारा किया जाता हैं। प्रातःकाल में भगवान एक बालक के समान होते हैं अतः उन्हें बालभोग लगाया जाता हैं, जिसमें बहुत अधिक मिठाइयाँ होती हैं , दोपहर में उन्हें राजभोग लगाया जाता हैं। प्रातःकाल में भगवान को बालभोग क्यों लगाया जाता हैं ? प्रभुपाद कहते हैं कि प्रातःकाल में भगवान एक बालक होते हैं अतः उन्हें बालभोग लगाया जाता हैं। दोपहर के समय तक वे बड़े हो जाते हैं इसलिए उन्हें राजा के समान राजभोग चढ़ाया जाता हैं। द्वारकाधीश को एक राजा के समान भोग लगाया जाता हैं। प्रातः काल सर्वप्रथम भगवान की आरती होती हैं तत्पश्चात उनका अभिषेक किया जाता हैं। अभिषेक के मध्य में भगवान को माखन की याद आ जाती हैं। आपको यह स्मरण होना चाहिए कि भगवान किस समय माखन चोरी की लीला करते थे ? हो सकता हैं आप भी कभी भगवान श्री कृष्ण के साथ माखन की लीला का अंश रहे हो। इसप्रकार जब भगवान को माखन का स्मरण होता हैं तब उन्हें माखन खिलाया जाता हैं। उन्हें माखन का एक बड़ा गोला चढ़ाया जाता हैं , इसे मराठी में ' लोनयाच गोड़ ' कहते हैं। इस प्रकार माखन भोजन की लीला पंढरपुर में भी होती हैं। भगवान जो भी कार्य करते हैं उसे लीला कहा जाता हैं। यहाँ गोपालपुर भी हैं। एक हैं पंढरपुर तथा दूसरा हैं गोपालपुर। अतः वृन्दावन का गोकुल पंढरपुर का गोपालपुर हैं। विष्णुपाद भी एक विशेष बात हैं , कृष्ण के चरण चिन्हों को विष्णुपाद कहा जाता हैं। इस प्रकार शास्त्रों में कृष्ण को विष्णु भी कहा जाता हैं। यहाँ पर कन्हैया , गाय, तथा बांसुरी के चिन्ह भी हैं। लोग कहते हैं कि यदि पंढरपुर वृन्दावन से अभिन्न हैं तो इसका प्रमाण क्या हैं ? यहाँ गोपालपुर में भगवान की वे सभी लीलाएं संपन्न हुई हैं। तथा यहाँ पंढरपुर में राधा पंढरीनाथ हैं। पंढरीनाथ यहाँ आप सभी को यह सुस्पष्ट करने के लिए ही प्रकट हुए हैं। बाप ढकाव नाही तार श्रद्धा , इन प्रमाणों पर हमें विश्वास नहीं हैं इसीलिए राधा पंढरीनाथ यहाँ पंढरपुर की नित्य लीला में प्रकट हुए हैं। भगवान की लीलाएं दो प्रकार की होती हैं - नित्य लीला तथा प्रकट लीला। प्रकट लीला वह हैं जो हम गोपालपुर में तथा विष्णुपाद में देखते हैं। भगवान विट्ठल का विग्रह माखन खाने की लीला करता हैं। चैतन्य महाप्रभु भी यहाँ आए तथा अपनी लीला की , नित्यानंद प्रभु भी पंढरपुर आए थे। इस प्रकार पंढरपुर के साथ हमारा गौड़ीय सम्बन्ध हैं। माधवेन्द्रपुरी के शिष्य श्रीरंगपुरी भी यहाँ आए थे। माधवेन्द्रपुरी के अनेक शिष्य थे। वे हमारे सम्प्रदाय के प्रथम आचार्य हैं जिनके हृदय में राधा - कृष्ण का प्रेम प्रकट हुआ। उनकी दीक्षा मध्वाचार्य के संप्रदाय में हुई थी। श्रीरंगपूरी भी यहाँ रुके हुए थे , जब चैतन्य महाप्रभु जी यह समाचार प्राप्त हुआ कि श्रीरंगपुरी पंढरपुर में हैं तो महाप्रभु भागते हुए उनके पास गए। महाप्रभु भी यात्रा करते हुए यहाँ पंढरपुर पधारे थे। सर्वत्र प्रचार होइबे मोर नाम। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। वे स्वयं के नाम का प्रचार कर रहे थे। प्रचार होइबे मोर नाम अर्थात मेरे नाम का प्रचार सर्वत्र होगा। उनका नाम क्या हैं ? हरे कृष्ण उनका नाम हैं। केवल कृष्ण नहीं अपितु राधा कृष्ण दोनों का नाम। इसलिए चैतन्य महाप्रभु राधा कृष्ण का संयुक्त रूप हैं। श्री कृष्ण चैतन्य राधा कृष्ण नहीं अन्य जब चैतन्य महाप्रभु श्रीरंगपूरी से मिले तब ७दिन कहा हुई। काश हमें उस कथा की कोई रिकॉर्डिंग मिल सकती परन्तु दुर्भाग्यवश ऐसा कुछ उपलब्ध नहीं हैं। यहाँ रिकॉर्डिंग चल रही हैं। इस्कॉन में जब भी कथा होती हैं रिकॉर्डिंग तुरन्त प्रारम्भ हो जाती हैं। परन्तु उस ७ दिवसीय कथा की कोई रिकॉर्डिंग उपलब्ध नहीं हैं। चैतन्य महाप्रभु तथा श्रीरंगपुरी के मध्य उस संवाद का विवरण भी उपलब्ध नहीं हैं। प्रत्येक भगवान का अपना निज धाम होता हैं उसी प्रकार पंढरपुर भी राधा कृष्ण का धाम हैं। यह वास्तव में तो राधा कृष्ण का ही धाम हैं। इसे नाद ब्रह्म कहा जाता हैं अर्थात यहाँ कीर्तन का महत्त्व हैं। जगन्नाथ पूरी अन्न ब्रह्म के लिए प्रसिद्द हैं उसी प्रकार श्रीरंगम सुप्तम मधुरं के लिए प्रसिद्द हैं। भगवान का शयन करना भी मधुर हैं। उसी प्रकार तिरुपति कंचन ब्रह्म के लिए प्रसिद्द हैं। प्रश्न : क्या पंढरपुर में शरीर त्यागना श्रेष्ठ हैं ? उत्तर : आपको क्या इसमें संदेह हैं ? निःसंदेह यह श्रेष्ठ हैं ? आपको इसमें शंका नहीं होनी चाहिए। इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले , गोविन्द नाम लेकर तब प्राण तन से निकले। हे प्रभु ! क्या आप इतना कर सकते हैं ? कितना और क्या करवाना चाहते हैं ? मेरे शरीर से प्राण गोविन्द का नाम लेने के पश्चात निकले। इस प्रकार का एक भजन हैं जिसमें यह प्रार्थना हैं। जमुना का वंशी वट हो। जब श्रील प्रभुपाद स्वस्थ नहीं थे तो वे तुरंत वृन्दावन चले गए। अच्छा होगा यदि मैं अपना शरीर वृन्दावन में छोड़ू। इसलिए भक्त धाम में अपना शरीर त्यागना चाहते हैं। क्या मैं शरीर छोड़ते समय आपके पवित्र नामों का उच्चारण कर सकता हूँ ? जब मैं शरीर छोडूं तब कृपया आप मेरे समीप रहना। भीष्मदेव तथा हरिदास ठाकुर ने जब देह त्याग किया तब ऐसा हुआ था। राधा को साथ लाना मेरे मृत्यु के समय आप राधारानी को भी अपने साथ लेकर आना। यदि यह सब धाम में हो तो सर्वश्रेष्ठ हैं। पिछले एक घण्टे से हम पंढरपुर धाम की चर्चा कर रहे हैं अतः यदि हमारा शरीर यहाँ छूटे तो श्रेष्ठ हैं। इससे और उत्तम हमारे लिए क्या होगा ? प्रश्न : जब नारायण अथवा विट्ठल मक्खन खाते हैं तब वे विट्ठल नहीं रहते क्या ? उत्तर : नहीं , ऐसा नहीं हैं। नारायण तथा कृष्ण अभिन्न हैं। कृष्ण भक्तों के लिए भगवान विट्ठल कृष्ण बन जाते हैं। जब तुलसीदास वृन्दावन गए तो वे अपने आराध्य श्री राम का दर्शन करना चाहते थे अतः कृष्ण उनके लिए श्री राम बन गए। यहाँ पंढरपुर मंदिर के प्रांगण में राधारानी का मंदिर भी हैं इसलिए वह रुक्मिणी के विट्ठल हैं तथा राधा के कृष्ण हैं। सभी जानते हैं कि तुकाराम महाराज विट्ठल भक्त हैं परन्तु उनके द्वारा रचित अभंग कृष्ण के बारे में हैं। गोकुलीचा सुख , अन्तपार नाहीं लेखा। गुढ़िया तोरने , करती कथा गाती गाणे।। तुकाराम महाराज ने अपने पुरे ह्रदय से अपने अभंगों में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया हैं। उनके अतिरिक्त और भी कई संतों ने अपने अभंगों में कृष्ण लीला का वर्णन किया हैं। भगवान द्वारिकाधीश कुरुक्षेत्र में जाकर जगन्नाथ बन गए। वे एक वर्ष तक जगन्नाथ पूरी मंडी में रहते हैं जो द्वारका हैं परन्तु ७ दिन के लिए वे गुंडिचा मंदिर जाते हैं जिसे वृन्दावन से अभिन्न समझा जाता हैं। उसी प्रकार गम्भीर जगन्नाथपुरी का नवद्वीप हैं, जहाँ महाप्रभु रहे ।

English

4 January 2020 Gaudiya connection with Pandharpur Those who chant the Hare Krsna maha-mantra are Hare Krsna bhaktas or devotees. They are Gaudiya Vaisnavas. We are devotees of Radha Krsna, our aradhya Lord: aradhyo bhagavan vrajesa-tanayas tad-dhama vrndavanam ramya kacid upasana vraja-vadhu-vargena va kalpita srimad-bhagavatam pramanam amalam prema pum-artho mahan sri-caitanya mahaprabhor matam idam tatradarah na parah krsna stu bhagavan svayam The Lord is complete when He is with his alahadini sakti. Radhe gives pleasure to Lord Krsna. mahātmānas tu māṁ pārtha daivīṁ prakṛitim āśhritāḥ bhajantyananya-manaso jñātvā bhūtādim avyayam [BG 9.13] The great souls, mahatmas take shelter of the divine nature [daivi prakriti] and the divine nature is Srimati Radhika. Another energy of the Lord is Durga. One is Yoga maya and another is Mahamaya. Yogamaya is Radha and Mahamaya is Durga. When we say sat-cit-ananda. How is the Lord? He is sat-cit-ananda. As Caitanya Mahaprabhu appeared in West Bengal and its called Gaudadesh, so from Gauda comes Gaudiya. People from Orissa are called Udiya and from Gauda are called Gaudiya. So Caitanya Mahaprabhu was Gaudiya as well as Udiya. So our aradhyadev is Radha Krsna. Every mantra has its mantra devata. So we worship that mantra Devata with that specific mantra. The Devi of Hare Krsna maha-mantra is Radha. I was thinking as I am in Pandharpur and this japa talk is live from Pandharpur. This dhama is called Bhuvaikuntha. It’s famous as Bhuvaikuntha dhama. Tukarama Maharaja went to Vaikuntha saying “ami jato amchya gava amcha rama rama ghyava.” So Pandharpur is Vaikuntha. Pandharpur is Golok also, Pandharpur is Vrndavan also. Caitanya Mahaprabhu also became dhami of this dhama. He stayed here also. Nitayananda Prabhu also stayed here, so he is also dhami of Pandharpur. Visvarupa is also dhami of Pandharpur. Golok has two parts. One is Vrndavan and another is Navadvipa or its also called Svetadvipa. Pandharpur dhama is also the dhama of Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu. Pandharpur is not only Vaikuntha, its also Golok. Sometimes Golok is also called Vaikuntha. Vaikunthanayak Sri Krsna. If one says Visnu it also indicates Krsna, like that if one says Vaikuntha it also indicates Vrndavan. But there are many indications as this dhama is imprinted with many others symbols which proves that Pandharpur dhama is not only Vaikuntha goloka-namni nija-dhamni tale ca tasya devi mahesa-hari-dhamasu tesu tesu te teo prabhava-nicaya vihitas ca yena govindam adi-purusam tam aham bhajami Translation: Lowest of all is located Devi-dhama [mundane world], next above it is Mahesa-dhama [abode of Mahesa]; above Mahesa-dhama is placed Hari-dhama [abode of Hari] and above them all is located Krsna's own realm named Goloka. I adore the primeval Lord Govinda, who has allotted their respective authorities to the rulers of those graded realms.[Brahma-samhita Verse 43] First is Devi dhama then Hari dhama then Saket or Ayodhya then Golok dhama. Golok is the topmost as Krsna is the topmost. In Pandharpur’s Viththala temple there is not only Rukmini, but there is also Radhika. Satyabhama is also is there so that means Dwaraka is also there, all in one. Mangal arati of Pandharpur is called as Kakad arati. At the time of mangal arati Lord Viththala is not Viththala. He is standing on a brick that’s vit in local language so Lord is called Viththala. He has come from Dwaraka so He is Dwarakadhish also. But at the time of abhishek, it is done by Yasoda. As Lord is a baby in the morning. In the morning the Lord is offered a lot of sweets and in the afternoon He is fed like a king. Why sweets in the morning? Prabhupada said that as the Lord is a baby in the morning so balabhoga is offered to Him. He grows up by afternoon so rajbhoga. So food like a King Dwarakadisa is offered. Abhishek means bathing the Lord. First is arati in the morning and then abhishek. Then in the middle of the abhishek the Lord is reminded of makhan/butter. What’s the time of makhanchori? This much at least you know. You should have learnt it. Maybe you also have done makhan chori with Krsna. So as He remembers makhan He is feed makhan, a big ball of makhan. In Marathi it’s called ‘lonyacha goda.’ So this lila of eating makhan Lord Panduranga also does. What ever Lord does is a lila, a pastime. Here we have Gopalpur. One is Pandharpur and another is Gopalpur. So its two in one. Gopalpur makes it more clear. In Dwaraka Lord sits in a chariot so there godapal [horse for chariot]. Lord Krsna does cow herding here in Gopalpur. So Gokul of Vrndavan is equal to Gopalpur of Pandharpur. Visnupad is once again the same thing. The foot prints are Krsna’s, but they are called Visnupad. So it’s interchangeable. As in sastra Lord Krsna is also called Visnu. There are also imprints of foot prints of Kanhaiya, hooves of the cow, flute what else you need? People say Pandharpur is Vrndavan then show it? Also darsana in Gopalpur is of Krsna Kanhaiya. All the pastimes of Kanhaiya are depicted there. And in Pandharpur there is Radha Pandharinath. Pandharinath appeared here to make it clearer to all of you. baap dakhav nahitar sraddha, proves we will not believe. So here Radha Pandharinath appeared in nitya-lila of Pandharpur. There are two types of lilas. Nityalila and Pragatlila. In Pragatlila what ever see in Gopalpur the darsana there or whatever we see at Visnupad. And then the deity of Lord Viththala does the pastime of eating makhan. Caitanya Mahaprabhu also came here and does His lilas. Nityananda Prabhu came here. So we have our Gaudiya connection with Pandharpur. Srirangapuri, disciple of Madhavendrapuri came here. There are many disciples of Madhavendrapuri. He is our first acarya in whose heart the love for Radha Krsna manifested. He was first initiated in Madhvacarya sampradaya. Sriranga Puri was staying in Pandharpur. Caitanya Mahaprabhu came here and as He got the news that Sriranga Puri in here in Pandharpur he went running to Sriranga Puri. Caitanya Mahaprabhu is also acraya here. He was on pilgrimage. sarvatra prachar hoibe mora nama Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare He was preaching His own name. prachar hoibe mora nama. My name will be preached all over. And what is my name? Hare Krishna is My name. I am not only Krsna, but I have also brought Radha with Me. So I am Radha Krsna-Caitanya Mahaprabhu. My name will be preached all over but now I am not alone. sri krsna caitanya radha krsna nahi anya When Caitanya Mahaprabhu met Sriranga Puri there was katha for 7 days. I wish we could get a recording of that katha, but unfortunately we don’t have. Here recording is going on. Wherever there is a katha in ISKCON immediately the recording is done. But there is no record of the 7 day Hari katha or bodhayanta parasparam. There are no details of that dialogue of Caitanya Mahaprabhu and Sriranga Puri. Every God has it’s dhama, so Pandharpur dhama is the dhama of Radha Krsna. It’s originally the dhama of Radha Krsna? Pandharpur dhama is famous for kirtana, Nada brahma. Jagannatha Puri is famous for anna brahma. Another dhama is Srirangam which is famous for suptam madhuram. Lords is sleeping is also madhur. Lord’s sleeping is also a pastime. Tirupati is kanchan brahma. So Pandharpur is Nada brahma. Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare Question: It is good to leave body in Pandharpur? Answer: Why do you doubt? Yes, it is. Why not? itna to karna swami govind nama leke tab prana tana se nikale Oh! Lord if you could do this much for me, how much?That I utter your name while leaving this body. There is prayer like that: jamuna ka vamsi vata ho Srila Prabhupada also rushed to Vrndavan when he was not well. I better leave my body in Vrndavan. So devotees aspire to leave their body in the dhama. ‘May I utter your holy name at the time of my departure?’ If You could be there next to me when I am leaving this body. As it happened in the case of Bhisma and Haridasa Thakur. radha ko sat lana Please bring Radharani also with You when You come at the time of my departure. And if this could happen in the dhama that could be most ideal. Over one hour we were talking Pandharpur is dhama.We would be happy enough if you leave your body here in Pandharpur. Question: When Narayana or Viththala eat makhan He is no more Viththala? Answer: No, that’s not the case, Narayana and Krsna are non-different. For Krsna's devotees, Lord Viththala becomes Krsna. When Tusli Dasa went to Vrindavan he wanted to darsana of Sri Rama. So for him Krsna became Sri Rama, his worshipable Lord. Radhika is also there on the altar. He is Viththala of Rukmini and Krsna of Radhika. Everyone knows that Tukaram Maharaja is a Viththala bhakta, but the abhangas he has written are of Krsna. gokudichya sukha antapar nahi lekha gudiya torane karati katha gati gane There is description of all Krsna’s pastimes. With all his heart Tukarama Maharaja has described the pastimes of Krsna in his abhangas. Many other saints have also described pastimes of Lord Krsna in their abhangas. Lord Dwarakadhisa went to Kuruksetra and became Jagannatha. And He stays for one full year in His temple that’s Dwaraka dhama. He goes to Gundicha temple for 7 days, that’s Vrndavan dhama. And Gambhira is Navadvipa, where Caitanya Mahaprabhu stayed.

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