Hindi

जप चर्चा 30 दिसंबर 2021 श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप हरे कृष्ण ! आज 1085 स्थानों से भक्त हमारे साथ जपा टॉक में सम्मिलित हैं। सफला एकादशी महामहोत्सव कि जय। आज के दिन आप सभी सफल हो इस प्रकार से मेरी आप सभी को शुभकामनाएँ हैं। कृष्ण प्रेम प्राप्ति में, प्राप्ति ही सफलता है। जब एकादशी होती है तो भक्त दिन में तो व्यस्त रहते ही है, रत में भी व्यस्त रहते हैं। महाराष्ट्र में एकादशी महोत्सव काफ़ी प्रसिद्ध हैं। विट्ठल भक्त एकादशी को पंढरपुर भी दौड़ते हैं वारकरी भी। माधव तिथि भक्ति जननी। एकादशी को माधव तिथि भी कहते हैं। वैसे सभी उत्सव माधव तिथियाँ होती हैं। माधव तिथि एकादशी भी स्पेशल एकादशी है। ये भक्ति कि जननी है। भक्ति देने वाली हैं, प्रेम देने वाली हैं। ऐसे दिन का व रात का भी यथा संभव हमें पूरा लाभ उठाना चाहिए और अधिकतर श्रवण कीर्तन में अपना समय व्यतीत करना चाहिए। हमारी जो शारीरिक आवश्यकताएँ उन्हें घटाते हुए या कम करते हुए। इसलिए यहाँ कई भक्त तो पहले मैं भी कई वर्षों तक निर्जला एकादशी करता था, शायद सात – आठ वर्ष तक हर एकादशी निर्जला एकादशी। या फिर कुछ भक्त तो अन्न तो लेना ही नहीं होता है यह तो आप जानते ही हो, संसार भर का पाप अन्न में प्रवेश करता हैं। पाप अन्न का आश्रय लेता हैं, जो व्यक्ति आज के दिन अन्न खाएगा वह पाप खाएगा इसलिए इस से बचो, इससे दूर रहो। नो ग्रेन्स। अन्न ग्रहण नहीं करते है। अल्पाहार करने का यह दिन हैं, या फलाहार। हरी हरी सनातन गोस्वामी ने उपदेश दिए कि- ग्राम्य कथा ना शुनिबे , ग्राम्य वार्ता ना कहिये । भाल ना खाइबे आर भाल ना परिबे ॥ (चैतन्य चरितामृत अंतय लीला 6.236) अनुवाद - न तो सामान्य लोगों की तरह बोलो और न वे जो कहें उसे सुनो । तुम न तो स्वादिष्ट भोजन करो , न ही सुन्दर वस्त्र पहनो । ये यही प्रेक्टिस करने का दिन है। या अधिकतर अपनी आत्मा को खुराक, आत्मा को आज खूब खिलाना चाहिए । शरीर को मत खिलाओ – पिलाओ या कम खिलाओ – पिलाओ पर आत्मा को खूब खिलाओ । आत्मा के लिए फीस्ट हो आज, शरीर के लिए फ़ास्ट और आत्मा के लिए फीस्ट हो आज। रसाई अनामृत पाओ के स्थान पर हरी नामामृत पाओ या फिर कृष्ण गुण गाओ। भागवत महात्यम में गीता को अमृत कहा गया हैं, भागवत भी अमृत हैं। आत्मा को अधिक से अधिक इस अमृत का पान कराओ। इसी से आत्मा बनेगी अमृत आत्मा मरती नहीं हैं। जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 4.9) अनुवाद- हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है | आत्मा अमर हैं और हम उस अमरत्व का अनुभव कर सकते हैं| एकादशी का पालन आप कैसे करते हो, इस सुअवसर का आप कैसे लाभ उठाते हो| एकादशी दूसरे दिन के जैसा साधारण दिन नहीं है| एकादशी अन्य दिनों से भिन्न है| इसकी बहुत महिमा है एकादशी महात्म्य हैं| या इसीलिए रूप गोस्वामी प्रभुपाद भी एकादशी के पालन के लिए सभी रूपानुगत को प्रेरित किए हैं ये कार्तिक महोत्सव, ये महोत्सव, एकादशी महोत्सव| एकादशी महोत्सव का उत्सव हम श्रवण उत्सव, कर्ण उत्सव - कानों के लिए उत्सव, जिव्हा के लिए उत्सव, कीर्तन कर रहे हैं, जप कर रहे हैं, गीता का पाठ कर रहे हैं यह जिव्हा के लिए उत्सव है| नेत्रों के लिए उत्सव है, दर्शन कर रहे हैं| विग्रह के खूब दर्शन कीजिए नेत्रोत्सव, प्रार्थना कीजिए जिव्होत्सव, प्रार्थना सुनिए कर्नोत्सव| ह सभी उत्सव है और यह उत्सव मनाने से हम उत्साहित होते हैं| आपने सुना होगा मैं कहते रहता हूं शास्त्रों में भी कहा गया है उत्सव बढ़ाते हैं हमारा उत्साह| श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने शची माता को एकादशी करने के लिए प्रेरित किया था| एक समय शची माता या माताएं एकादशी के व्रत का पालन नहीं करती थी| विधवा एकादशी का व्रत कर सकती थी परंतु सधवा नहीं करती थी| विधवा और सधवा में अंतर समझते हैं – विधवा सधवा धव मतलब पति| माधव मतलब क्या लक्ष्मीपति माधव या राधा के पति माधव| धव मतलब पति| पति होना तो सधवा पति के साथ होना पतिव्रता नारियां उन्हें सधवा कहते हैं| पति नहीं रहें तो विधवा बन जाती हैं| 500 वर्ष पूर्व ऐसी मान्यता थी अभी भी होगी विधवा को एकादशी का पालन करना चाहिए सधवा को नहीं करना चाहिए| शची माता के पति जगन्नाथ मिश्र तो थे पर फिर भी चैतन्य महाप्रभु ने कहा मैया एकादशी का पालन करो और फिर तब से शची माता मैया एकादशी का पालन करने लगी| आप भी प्रेरित करो कल कुछ भक्त प्रचार में गए थे तो छोटे ग्रुप से उनका वार्तालाप हो रहा था तो हरे कृष्ण भक्त बता रहे थे कि आपको एकादशी का पालन करना चाहिए, एकादशी का पालन करो| कई लोग उसके लिए तैयार हुए| 8-10 लोगों ने कहा कि हाँ हम एकादशी का पालन करेंगे| आप एकादशी की महिमा औरों को सुनाकर उनसे पालन करवा सकते हैं जो नहीं कर रहे हैं | अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः। अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च।। (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 10.20) अनुवाद - हे नींद को जीतनेवाले अर्जुन ! सम्पूर्ण प्राणियोंके आदि, मध्य तथा अन्तमें भी मैं ही हूँ और प्राणियोंके अन्तःकरणमें आत्मरूपसे भी मैं ही स्थित हूँ। यह कहना था आपको कहा था कि हम आगे बढ़ाएंगे श्री भगवान का ऐश्वर्य नामक जो गीता का दसवां अध्याय है । आप भी पढ़िए दिन में क्या पढ़ सकते हैं दिन में एक बार पढ़िए गीता का वितरण भी करना है। charity begins at home अंग्रेजी में कहते हैं। आप अगर यदि कोई वितरण कर रहे हो, कोई दान दे रहे हो तो पहले तो दान घर में ही दे दो, घर वालों को दे दो या फिर खुद को दो औरों को तो दे रहे हो गीता बांट रहे हो, खूब बांटों। गीता अमृत का पान कराओ देखो क्या क्या कर सकते हो, क्या क्या पढ़ सकते हो, क्या क्या सुन सकते हो या एक घर से दूसरे घर एक दुकान से दूसरी दुकान जा रहे हो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के पास तो रास्ते में आप कुछ पढ़ सकते हो या कुछ सुन सकते हो। प्रभुपाद के टॉक्स, गीता पर प्रभुपाद के प्रवचन या औरों के या गीता पर भागवत पर हरि कथा, दामोदर लीला सुन भी सकते हो। ऐसी व्यवस्था आजकल है हेडफोन के द्वारा। आप अपना समय व्यर्थ नष्ट ना करें। दो ग्राहकों के बीच में ग्राहक समझते हैं आप दो ग्राहकों के बीच में आप स्वयं को कुछ सुनाओ या कुछ याद करो जो बातें कृष्ण ने कही है। भगवत गीता के श्लोक कंठस्थ करो। कुछ पॉकेट या डायरी रख सकते हो important slokas भक्त लिखते हैं ऐसा इंपॉर्टेंट श्लोक और फिर समय-समय पर वह अपनी जेब से डायरी निकाल कर उसे पढ़ते रहते हैं। इस प्रकार अव्यर्थ कालत्वम आप के कल को अव्यर्थ नहीं करोगे। “तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् | ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 10.10) अनुवाद- जो प्रेमपूर्वक मेरी सेवा करने में निरन्तर लगे रहते हैं, उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूँ, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं | पूरे समय का उपयोग कृष्ण की सेवा में आप इस पर विचार करो कैसे हम लोग अपना समय वेस्ट करते रहते हैं। भगवत प्राप्ति में या कृष्ण प्रेम प्राप्ति में या कृष्ण या गुरु गौरांग को प्रसन्न करने की बजाय सभी कुछ हमने किया। अपने समय को बर्बाद किया यह बहुत बड़ा विषय है मेरे मन में ऐसा ही कुछ विचार आया तो मैं कह रहा हूँ। हमारे 24 घंटे हम कैसे बिता रहे हैं उसमें हम कुछ समय व्यर्थ तो नहीं कर रहे हैं। अपने समय को तुम धन कमाने के लिए उपयोग नहीं कर रहे हो तुम अपने समय को बर्बाद कर रहे हो खराब कर रहे हो ऐसा दुनिया वाले कहते हैं परंतु हरे कृष्ण वाले या वैष्णव क्या कहते हैं अपने समय का उपयोग धन की बात कहते हैं तो हरी नाम का या प्रेम धन प्रेम धन प्राप्ति के लिए अपने समय का सदुपयोग नहीं किया तो फिर क्या कहोगे कि हमने अपने समय को नष्ट किया। हे वैष्णव या वैष्णवी तुमने अपने समय को बर्बाद किया। तुम सो रहे हो, तुम ये कर रहे हो, तुम वो कर रहे हो। अगर आप सोते हैं, गपशप करते हैं तो यह अपने समय को बर्बाद करते हैं। अत्याहारः प्रयासश्च प्रजल्पो नियमाग्रहः । जनसङ्गश्च लौल्यञ्च षडर्भिभक्तिर्विनश्यति ॥ (उपदेशामृत) अनुवाद- जब कोई निम्नलिखित छह क्रियाओं में अत्यधिक लिप्त हो जाता है , तो उसकी भक्ति विनष्ट हो जाती है ( १ ) आवश्यकता से अधिक खाना या आवश्यकता से अधिक धन - संग्रह करना । ( २ ) उन सांसारिक वस्तुओं के लिए अत्यधिक उद्यम करना , जिनको प्राप्त करना अत्यन्तः कठिन है । ( ३ ) सांसारिक विषयों के बारे में अनावश्यक बातें करना । ( ४ ) शास्त्रीय विधि विधानों का आध्यात्मिक उन्नति के लिए नहीं अपितु केवल नाम के लिए अभ्यास करना या शास्त्रों के विधि - विधानों को त्याग कर स्वतन्त्रतापूर्वक या मनमाना कार्य करना । ( ५ ) ऐसे सांसारिक प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों की संगति करना जो कृष्णभावनामृत में रुचि नहीं रखते , तथा ( ६ ) सांसारिक उपलब्धियों के लिए लालयित रहना। अपने समय को नष्ट कर रहे हो। सभी के पास 24 घंटे ही होते हैं, किसी के पास ज्यादा घंटे होते हैं क्या? सभी के लिए उतना ही समय होता है तो ऐसे भी कलयुग में जिंदगी बहुत छोटी हो रही है। हम कलयुग के जो जन हैं हम अल्पायु हैं। अधिकतर आयु हम ऐसे ही विफले जनम गोङाइनु। मनुष्य जनम पाइया, राधाकृष्ण ना भजिया, जानिया शुनिया विष खाइनु॥1॥ गोलोकेर प्रेमधन, हरिनाम संकीर्तन, रति ना जन्मिल केने ताय। संसार-विषानले, दिवानिशि हिया ज्वले, जुडाइते ना कैनु उपाय॥2॥ ब्रजेन्द्रनन्दन येइ, शचीसुत हइल सेइ, बलराम हइल निताइ। दीनहीन यत छिल, हरिनामे उद्धारिल, ता’र साक्षी जगाइ-माधाइ॥3॥ हा हा प्रभु नन्दसुत, वृषभानु-सुता-युत, करुणा करह एइ बार। नरोत्तमदास कय, ना ठेलिह राङ्गा पाय, तोमा बिना के आछे आमार॥4॥ अनुवाद- (1) हे भगवान् हरि! मैंने अपना जन्म विफल ही गवाँ दिया। मनुष्य देह प्राप्त करके भी मैंने राधा-कृष्ण का भजन नहीं किया। जानबूझ कर मैंने विषपान कर लिया है। (2) गोलोकधाम का ‘प्रेमधन’ हरिनाम संकीर्तन के रूप में इस संसार में उतरा है, किन्तु फिर भी मुझमें इसके प्रति रति उत्पन्न क्यों नहीं हुई? मेरा हृदय दिन-रात संसाराग्नि में जलता है, और इससे मुक्त होने का कोई उपाय मुझे नहीं सूझता। (3) जो व्रजेंद्रनन्दन कृष्ण हैं, वे ही कलियुग में शचीमाता के पुत्र (श्रीचैतन्य महाप्रभु) रूप में प्रकट हुए, और बलराम ही श्रीनित्यानंद बन गये। उन्होंने हरिनाम के द्वारा दीन-हीन, पतितों का उद्धार किया। जगाई तथा मधाई नामक महान पापी इस बात के प्रमाण हैं। (4) श्रील नरोत्तमदास ठाकुर प्रार्थना करते हैं, ‘‘हे नंदसुत श्रीकृष्ण! हे वृषभानुनन्दिनी! कृपया इस बार मुझ पर अपनी करुणा करो! हे प्रभु! कृपया मुझे अपने लालिमायुक्त चरणकमलों से दूर न हटाना, क्योंकि आपके अतिरिक्त मेरा अन्य कौन है?’’ अपना जीवन जहर पीने में बिता दिया तो हमें यह समझना चाहिए कि यह एक अमृत है यह है नामामृत, यह है गीतामृत, यह है भागवत अमृत, प्रसाद अमृत वह भी एक अमृत है। यह अमृत और यह है जहर। ऐसी बुद्धि भी भगवान हमको दे आपको दे ददामि बुद्धियोगं हम साधना में लगे रहेंगे भगवान देखेंगे कि किस व्यक्ति के प्रयास, भगवान प्रसन्न होंगे और फिर बुद्धि देंगे। शर्त भी हैं तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् हो रहा है या जितना भी हो रहा है जितना भी समय वह भगवान कि सेवा में दे रहा है। कायेन मनसा बुद्धया केवलैरिन्द्रियैरपि | योगिनः कर्म कुर्वन्ति सङगं त्यक्त्वात्मशुद्धये || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 5.11) अनुवाद- योगीजन आसक्तिरहित होकर शरीर, मन, बुद्धि तथा इन्द्रियों के द्वारा भी केवल शुद्धि के लिए कर्म करते हैं। योगी भी कार्य करते हैं। निष्क्रिय नहीं होना है। यह मायावाद है, यह निराकारवाद, निर्गुणवाद है। निष्क्रिय तो होना ही नहीं है ऐसा संभव भी नहीं है। इसलिए कृष्ण कहते हैं योगी नाम कर्म कुर्वंति योगी भी कार्य करते हैं। काया से, मन से, वचन से और इंद्रियों से। इन्द्रियां अनेक हैं, पांच तो प्रमुख है ही। मन को भी छठी इंद्री या इन्द्रियों का राजा एक प्रकार से बताया गया है। योगिनः कर्म कुर्वन्ति योगी कार्य करते हैं। योगी, भक्ति योगी भी कार्य करते हैं। भक्ति योगी होना होता है। सभी योगियों में श्रेष्ठ भक्ति योगी ही होता है। और भगवान ने भक्ति योगियों को रिकमेंट किया हुआ है। कर्म योगियों, अष्टांग योगियों, ध्यान योगियों का ज्ञान अधुरा है। योगी असत संग को त्याग कर आत्मा को शुद्ध करते हैं। एक ही वाक्य में, वचन में भगवान ने बहुत कुछ क्या क्या कहा। योगी कार्य करते हैं योगी कार्य करते हैं कैसे कार्य करते हैं, उनके जीवन में वैराग्यवान होते हैं। वैराग्य होता है और आत्मा की शुद्धिकरण के लिए योगी कार्य करते रहेंगे। तत्पश्चात भगवान हमें बुद्धि देंगे और इस बुद्धि का उपयोग हम भगवान के पास जाने में करेंगे। हमारा 24 घंटे की बुद्धि जो है वह कैसे व्यतीत हो रही है उस पर हमारा ध्यान होना चाहिए। कहीं हम समय को बर्बाद तो नहीं कर रहे हैं जिस समय हम कृष्ण प्राप्ति के लिए प्रयास नहीं हो रहा है। हमें अपना साधन और भजन प्रातः काल में ही करना होता है। दिन में यह करना हैं सायः काल में यह करना है। हमारा 24 घंटे का एक कार्यक्रम होना चाहिए। काम धंधा भी प्रेम धंधे करने चाहिए काम धंधा तो बहुत हो गया। वर्णाश्रम धर्म के अंतर्गत कुछ पारिवारिक जिम्मेदारियां हैं तो उसको निभाने, संभालने हेतु भी समय निर्धारित किया जा सकता है। इस प्रकार हमें अपने पूरे जीवन का और पूरा जीवन कैसे एक एक क्षण का एक क्षण और फिर अणु क्षण से पूरा जीवन बनता है। कितना समय हम गवांते हैं एक क्षण। एक क्षण गवायाँ, दूसरा क्षण गवायाँ। इतना मूल्यवान है यह समय। आज के दिन का पूरा फायदा उठाइए टेक फुल एडवांटेज ऑफ द डे। भगवान का ऐश्वर्य, एकादशी भी भगवान का ऐश्वर्य ही है। यह उत्सव भी ऐश्वर्य ही है। एकादशी महोत्सव या और और उत्सव भगवान ही बने हैं। भक्ति के मार्ग साधन, साध्य यह सारी व्यवस्था भी भगवान का ऐश्वर्य ही है। नीताई गौर प्रेमानंदे हरी हरी बोल

English

Russian