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*जप चर्चा* *03 नवंबर 2021* *वृन्दावन धाम से* हरे कृष्ण आज 842 स्थानों से भक्त इस जब चर्चा में सम्मिलित हैं। ब्रजमंडल परिक्रमा के भक्त जो परिक्रमा कर रहे हैं और एक स्थान पर सुरभी कुंड वे पहुंच ही रहे हैं या पहुंच चुके हैं, जैसे मैं हर वर्ष उन्हें कथा सुनाता रहता हूं और इस साल भी राइट नाउ राइट देयर हम उनको कथा सुनाएंगे। परिक्रमा के भक्तों को यह संबोधन होगा और फिर आप भी सुन सकते हो। यू आर इंटरेस्टेड ? कथा होगी उनके लिए और वैसे मैं वृंदावन में बैठा हूं और वे काम्यवन में और आप जानते ही हो कि आप कहां कहां हो, कोई यूक्रेन में है तो कोई अलीबाग में, कोई अहमदाबाद में, कोई हेयर कोई देयर एवरीव्हेयर ऑल ओवर, आप सब और परिक्रमा के भक्त और मैं अब इकट्ठे हैं आप तैयार हो? क्या मैं देख सकता हूं या और सभी देख सकते हैं। सबको दिखा दो आप समझ रहे हैं ना क्या हो रहा है ? ब्रज मंडल परिक्रमा को देखते हैं, यदि आपको दिखा सकते हैं तो इष्टदेव दिखा सकते हैं ना ? टुडे आर यू देयर? थोड़ा दर्शन कराओ सुरभी कुंड का और परिक्रमा के भक्तों का ताकि सब दुनिया उनको देखे। हमारे जपा कॉन्फ्रेंस के सभी पार्टिसिपेंट्स उनको देख सकते हैं ठीक है हरि हरि ! जब इच्छा की पूर्ति होती है हां बृज भूमि हरि बोल हमें दिखा दो, वहां का दृश्य दिखाओ। सबको सुरभी कुंड का दृश्य दर्शन कराओ मुझको और सभी को यहां इष्ट देव करा सकते हैं। जैसे राधा कुंड का दर्शन कराया था वैसे ही सुरभी कुंड का दर्शन कराओ मैं भी करना चाहता हूं। जय सुरभि कुंड की जय हरि बोल ! निताई गौर सुंदर कहां हैं ? पिछले 35 वर्षों से परिक्रमा कर रहे हैं। ऑल इंडिया पदयात्रा जो है उसमें आप दर्शन कीजिए हम उनके साथ इनके पीछे-पीछे परिक्रमा करते हैं। श्री श्री निताई गौर सुंदर ब्रज मंडल परिक्रमा का नेतृत्व करते हैं हरि हरि ! *ढुले ढुले गोरा-चांद हरि गुण गाइ आसिया वृंदावने नाचे गौर राय॥1॥* ढुले ढुले गौरा चाँद हरि गुण गाए गौर बोले हरि हरि बोले हरि हरि ! इस गीत में चैतन्य महाप्रभु ने जब ब्रज मंडल परिक्रमा की, ब्रज मंडल परिक्रमा की जय हो ! कदंब वृक्ष भी आप देख रहे हो हरि हरि! घर बैठे बैठे, जय कदंब दर्शन कर रहे हो। ऐसा वृक्ष आपके देश में नहीं है आपके राज्य में या शहर में ऐसे वृक्ष नहीं होते हैं। यह वृंदावन की स्पेशलिटी है, कदंब वृक्ष हरी हरी! *कदा द्रक्ष्यामि नन्दस्य बालकं नीपमालकम् । पालकं सर्वसत्त्वानां लसत्तिलकभालकम् ॥* कृष्ण कदंब के वृक्ष के फूलों की माला पहनते हैं फिर वनमाली बन जाते हैं। राधारमण महाराज पहुंच गए और बृज भूमि में बैठे हैं। आपकी स्क्रीन वगैरह तैयार है रेडी ? कुछ लोग तो पहुंच गए हैं क्या आप लोग मुझे देख पा रहे हो परिक्रमा के भक्तों ? हरि बोल हरि हरि *वृन्दावने तरुर लता, प्रेमे कोय हरी कथा निकुंजेर पाखि गुली हरी नाम सोनाइ ।।* वृंदावन के यहां के वृक्ष की लता भी, वह भी भगवान का गुण गाते हैं। निकुंजेर पाखि गुली हरी नाम सोनाइ, निकुंज के पक्षी हरि नाम गाते हैं। आप गाते हो कि नहीं ? यहां के पक्षी भी हरिनाम गाते हैं और आप *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।* वैसे परिक्रमा में आप गाते ही हो गाये बिना आप एक पग भी आगे नहीं रखते हो। गौर बोले हरि हरि ! हरि बोल ! हरि हरि! श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु जब परिक्रमा कर रहे थे ब्रज मंडल परिक्रमा महाप्रभु ने की उसको भूलना नहीं। तब श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु सभी को प्रेरित कर रहे थे। *गौर बोले हरि हरि सारि बोले हरि हरि, मुखे मुखे शुक शारी हरी नाम गाए* हरि बोलो हरि बोलो हरि बोल हरि बोल ! शुकचारी को बुलाते हुए हरि हरि सारा ब्रज मंडल हरि हरि हरि हरि गौर हरी गा रहा था। *हरिनामे मत्त होये हरिणा आसिछे देय मयूर मयूरी प्रेमे नाचिया खेलाय।।* पक्षियों के उपरांत और वृक्षों के उपरांत हिरन भी आ गए। मयूर मयूरी प्रेमे नाचिये खेलाय और मयूर और मयूरी भी नृत्य करने लगे। *प्राणे हरि ध्याने हरि हरि बोलो वदन भोरि हरिनाम गेये गेये रसे गले जाइ॥* प्राण में हरी ध्यान में हरी, हरी बोलो बदन भरी श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का संदेश भी है और ऐसे जीवन ऐसी लीला श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने संपन्न की है। उनके प्राण में हरी, ध्यान में हरी और मुख में हरी हरी ! *आसिया जमुनार कुले नाचे हरि हरि बोले जमुना उठोले एसे चरण धोयाइ॥* श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु परिक्रमा करते करते मधुबन से ताल वन गए और वहां से कुमुद वन गए। कुमुद वन से बहुला वन गए और फिर वहां से वृंदावन गए और वृंदावन के उपरांत काम्यवन में आ गए और फिर एक ही वन बच गया था जैसे आपका भी एक ही वन बचा हुआ है जमुना के पश्चिमी तट पर ही वन बचा हुआ है वह कौन सा वन है ? खादिर वन, वहां पर पड़ाव तो नहीं होता ओवरनाइट स्टे हम खादिर वन में नहीं करते लेकिन आप जब बरसाना में रहोगे तो वहां से खादिर वन ले जाएंगे ऐसी संभावना है। हर साल हम जाते ही हैं इस साल देखो, लेकिन जाना तो चाहिए खादिर वन की यात्रा के बाद पुनः वृंदावन में आते हैं और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने भी ऐसा परिभ्रमण किया। क्या कर रहे थे और हम सभी जो परिक्रमा के भक्त हैं श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के चरण चिन्हों का अनुसरण करते हुए आगे बढ़ते हैं। चैतन्य महाप्रभु जहां जहां गए हम वहां वहां जाते हैं। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय और अब भी अपने विग्रह के रूप में श्री श्री निताई गौर सुंदर तो आए हैं और यह बात हम इसलिए बता रहे हैं या इस गीत में लिखा है आशिया जमुनार कोले नाचे हरि हरि बोले, अतः श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु इतने सारे वनों की यात्रा करते करते नृत्य करते-करते, नृत्य हो रहा है गान हो रहा है और जमुना के तट पर पहुंचते हैं। जमुना मैया की जय! जमुना उठोले ऐसा चरण धोये। जमुना पहचान गई मेरे प्रभु यहां पहुंचे हैं। जमुना दौड़ पड़ी श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के चरणों की ओर , इस गीत में लिखा है चरणधोयाय, जमुना ने चरण धोए पाद प्रक्षालन किया अपने ही जल से चैतन्य महाप्रभु के चरणों का हरि हरि और अपने जल में उगे हुए पुष्प भी जाते जाते साथ में ले गई और फूल भी अर्पित किए श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के चरणों में इस प्रकार जमुना ने भी चैतन्य महाप्रभु का स्वागत किया सत्कार किया सम्मान किया हरि हरि और आथित्य किया। यह सुरभी कुंड में भी पता नहीं समय तो नहीं है लेकिन हम कई बार जब सुरभि कुंड पहुंचते थे तब मुझे याद है एक साल पुंडरीक विद्यानिधि मेरे गुरु माता गॉड ब्रदर बहुत समय पहले की बात है। परिक्रमा में वह भी आए थे। उस समय कई सारे पुष्प खिले हुए थे सुरभी कुंड में जहां आप बैठे हो तो वे तैरते हुए गए और कई सारे पुष्प उन्होंने इकट्ठे किए और फिर वह पुष्प उन्होंने निताई गौर सुंदर के चरणों में अर्पित किए। ऐसी भी एक लीला हुई थी सुरभि कुंड में या सुरभि कुंड के तट पर आज पता नहीं कोई पुष्प है वहां या नहीं लेकिन वृक्ष तो कई सारे हैं। यह विशेष स्थली है और रमणीय भी है और एकांत भी है शांत भी है शायद आप इतने शांत स्थान में अपने जीवन में गए ही नहीं होंगे। कहां शहर शहरों में तो पीपी भौं भौं चलता रहता है। सो मेनी साउंड एंड नॉइज पॉल्यूशन, लेकिन यहां सब संभावना है कि आप पक्षियों की चहचाहट सुनते होंगे और कोई आवाज या ध्वनि यहां पर नहीं है। ऐसे रमणीय एकांत शांत स्थान पर अपना भजन करते हुए प्रबोध आनंद सरस्वती ठाकुर की जय ! यहां प्रबौध आनंद सरस्वती का भजन कुटीर है हरी हरी! यह प्रबोध आनंद सरस्वती इनको श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का अंग संग प्राप्त हुआ श्रीरंगम में, साउथ इंडिया में श्रीरंगम जो धाम है श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु जो दक्षिण भारत की यात्रा में जा रहे थे तब श्रीरंगम में 4 महीने रुके थे चतुर्मास में, यह कार्तिक मास भी चतुर्मास ही है। समझो कि इस समय चैतन्य महाप्रभु श्रीरंगम में थे। व्यंकट भट्ट के अतिथि बन चुके थे। प्रबोध आनंद सरस्वती ठाकुर व्यंकट भट्ट के भ्राता श्री थे। वहां पर महाप्रभु ने तो सभी के ऊपर कृपा की ही थी लेकिन इस कृपा के पात्र बन गए दो व्यक्तित्व एक व्यंकट भट्ट भ्राता प्रबोध आनंद सरस्वती और व्यंकट भट्ट के पुत्र गोपाल भट्ट गोस्वामी षड गोस्वामी बंधुओं में से एक वृंद है गोपाल भट्ट गोस्वामी यह भी व्यंकट भट्ट के पुत्र थे। यह दोनों ही श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के संग से कहो या लीला से कहो कीर्तन से कहो भाव से कहो इतने प्रभावित हुए कि वे दोनों भी श्रीरंगम को छोड़कर साउथ इंडिया लेफ्ट बिहाइंड और वृंदावन आ गए। वृंदावन धाम की जय ! वहां वैधी भक्ति का अवलंबन कर रहे थे यहां आकर वह रागानुगा भक्ति करने लगे। ऐसा ही होता है, प्रबोध आनंद सरस्वती तुंग विद्या सखी है अष्ट सखियों में से एक सखी है तुंगविद्या अर्थात तुंग विद्या ने जन्म लिया था श्रीरंगम में वह तुंगविद्या, ऑफ कोर्स ब्लॉग्स टू वृंदावन, वह वृंदावन लौट आई। जैसे रूप सनातन रूप गोस्वामी रूपमंजरी हैं उनको चैतन्य महाप्रभु का अंग संग प्राप्त हुआ था रामकेली में, तब रूप सनातन भी वृंदावन आए। इस प्रकार प्रबोध आनंद सरस्वती भी वृंदावन में आए और फिर इसी स्थान पर वे अपना भजन किया करते थे हरि हरि ! वृंदावन के इतने प्रेमी थे उन्होंने यहां कई सारे ग्रंथ लिखे हैं। "वृंदावन महिमामृत" नाम का एक प्रसिद्ध ग्रंथ है जिसमें वृंदावन की महिमा का गान किया है और उसमें सभी को प्रेरित करते हैं ए दुनिया वालों छोड़ दो जिसको भी पकड़े हो छोड़ दो वृंदावन की ओर दौडो वृंदावन की ओर चलो वृंदावन धाम की जय ! उनके कई सारे प्रेरणा के वचन हैं और जब वृंदावन आते हो तो वृंदावन को तो कभी भी मत छोड़ना। शीत आतप वात वरिषण, कई सारी परेशानियां या तपस्याएं होती ही हैं। ब्रज मंडल परिक्रमा कर रहे हो यह तपस्या ही तो है। सर्प हो सकते हैं, बिच्छू हो सकते हैं यह हो सकता है या वह हो सकता है लेकिन किसी हालत में आप वृंदावन को नहीं छोड़ना। डोंट लीव वृंदावन हरि हरि !गोपाल भट्ट व्यंकट के पुत्र थे तो यह दोनों ही इतने प्रभावित हुए श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के संग से कहो या लीला से कहो कीर्तन से कहो भाव से कहो तो वे दोनों भी श्रीरंगम को छोड़कर साउथ इंडिया लेफ्ट बिहाइंड और वृंदावन आ गए वृंदावन धाम की जय वहां तो वैधी भक्ति का अवलंबन कर रहे थे यहां आकर वह रागअनुग भक्ति करने लगे प्रबोध आनंद सरस्वती ऐसा ही होता है प्रबोध आनंद सरस्वती तुंग विद्या सखी हैं अष्ट सखियों में से एक सखी है तुंग विद्या तुंग विद्या ने जन्म लिया था। श्री रंगम में तो वह तुमको विद्या ऑफ कोर्स ब्लॉग्स टू वृंदावन तो वह वृंदावन लौट आई जैसे रूप सनातन रूप गोस्वामी तो रूपमंजरी हैं चैतन्य महाप्रभु को उनका भी अंग संग प्राप्त हुआ रामकेली में तो रूप सनातन भी वृंदावन आए इस प्रकार प्रबोध आनंद सरस्वती वृंदावन में आए और फिर इसी स्थान पर वे अपना भजन किया करते थे । हरि हरि वृंदावन के इतने प्रेमी थे वह उन्होंने यहां कई सारे ग्रंथ लिखे हैं तो वृंदावन महिमा अमृत नाम का एक प्रसिद्ध ग्रंथ है जिसमें वृंदावन का महिमा का गान किए है और उसमें सभी को प्रेरित करते हैं ए दुनिया वालों छोड़ दो जिसको भी पकड़े हो छोड़ दो वृंदावन की ओर दौड़े वृंदावन की ओर चलो वृंदावन धाम की जय उनके कई सारे प्रेरणा के वचन हैं और जब वृंदावन आते हो तो वृंदावन को तो कभी भी मत छोड़ना ए शीत आतप वात वरिषण कई सारी परेशानियां यह तपस्याएं होती ही हैं ब्रज मंडल परिक्रमा कर रहे हो तो यह तपस्या तो है या कहते हैं कि वंहा पर सर्प हो सकते हैं बिच्छू हो सकते हैं यह हो सकता है या वह हो सकता है लेकिन किसी हालत में आप वृंदावन को नहीं छोड़ना डोंट लीव वृंदावन हरि हरि व्यंकट के पुत्र थे, यह दोनों ही इतने प्रभावित हुए श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के संग से कहो या लीला से कहो कीर्तन से कहो भाव से कहो तो वे दोनों भी श्रीरंगम को छोड़कर साउथ इंडिया लेफ्ट बिहाइंड और वृंदावन आ गए वृंदावन धाम की जय वहां तो वैधि भक्ति का अवलंबन कर रहे थे यहां आकर वह रागअनुग भक्ति करने लगे प्रबोधआनंद सरस्वती ऐसा ही होता है प्रबोध आनंद सरस्वती तुंग विद्या सखी हैं अष्ट सखियों में से एक सखी है तुंग विद्या, तुंग विद्या ने जन्म लिया था श्रीरंगम में तो वह तुमको विद्या ऑफ कोर्स बैक टू वृंदावन तो वह वृंदावन लौट आई जैसे रूप सनातन रूप गोस्वामी तो रूपमंजरी हैं चैतन्य महाप्रभु को उनका भी अंग संग प्राप्त हुआ रामकेली में तो रूप सनातन भी वृंदावन आए इस प्रकार प्रबोध आनंद सरस्वती वृंदावन में आए और फिर इसी स्थान पर वे अपना भजन किया करते थे हरि हरि वृंदावन के इतने प्रेमी थे वह उन्होंने यहां कई सारे ग्रंथ लिखे हैं तो वृंदावन महिमा अमृत नाम का एक प्रसिद्ध ग्रंथ है जिसमें वृंदावन का महिमा का गान किया है और उसमें सभी को प्रेरित करते हैं, ए दुनिया वालों छोड़ दो जिसको भी पकड़े हो छोड़ दो वृंदावन की ओर दौडो , वृंदावन की ओर चलो वृंदावन धाम की जय उनके कई सारे प्रेरणा के वचन हैं और जब वृंदावन आते हो तो वृंदावन को तो कभी भी मत छोड़ना उनका धार्मिक जीवन था रिलीजियस लाइफ, उसके संबंध में कहते हैं *वंचितोस्मि वंचितोस्मि वंचितोस्मि न संशयः विश्वम गौरा-रासे मग्नम स्पर्शोपि मम नभवत।।* अर्थ:- मुझे वंचित किया गया है, मुझे वंचित किया गया है, निश्चित रूप से मुझे वंचित किया गया है! सारा विश्व श्री गौर के प्रेम में डूबा हुआ था, परंतु अफसोस! मेरी तकदीर ऐसी है कि उस प्यार की एक बूंद भी मुझ तक नहीं पहुंची। वह कहते हैं पहले का मैं जो जीवन जी रहा था वह धार्मिक तो था किंतु वंचितोस्मि मैं ठग गया था मुझे ठगाया गया था क्योंकि उसी समय यह जो गौड़िय वैष्णव हैं या गौड़िय वैष्णव का जगत है वे सारे गौड़िय वैष्णव क्या कर रहे थे गौर रसे मग्नं गौर रस में, प्रेम रस में गोते लगा रहे थे। सर्वात्मा स्नपनं स्नान कर रहे थे कृष्ण प्रेम में, वही आप ब्रजमंडल परिक्रमा के भक्त भी कर रहे हो। गौर रस में नहा रहे हो या अलग-अलग कुंडों में भी नहाते हो या फिर जब यह कथा भी होती है या कीर्तन भी होता है *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। ब्रज मंडल परिक्रमा में प्रवेश करते ही हमारा सर्वात्मा स्नपनं प्रारंभ होता है हम स्नान करने लगते हैं हमारी आत्मा स्नान करती है प्रेम रस में हम स्नान करते हैं यह प्रबोध आनंद सरस्वती ठाकुर कह रहे हैं। विश्व गौरा रसे मग्नं गौड़ीय वैष्णव जगत तो मग्न था तल्लीन था स्नान कर रहा था प्रेम रस में, किंतु मैं बेचारा , सारा गौड़िय वैष्णव जगत भक्तिरसामृत सिंधु में गोते लगा रहा था लेकिन उस सिंधु के एक बिंदु ने भी मुझे स्पर्श नहीं किया। गरीब बेचारा में वंचित उसमें ठग गया, मुझे ठगाया गया। मैं इस धर्म का बन गया मैं उस धर्म का बन गया लेकिन जब तक व्यक्ति श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के आंदोलन के साथ नहीं जुड़ता है, वह सारी ठगाई ही है सारी चीटिंग ही है। प्रबोधानंद सरस्वती और एक वचन में कहते हैं अवतीर्ण गौरा चंद्र उनका चैतन्य चंद्रामृत नामक ग्रंथ है। माधव नाम का उनका प्रसिद्ध ग्रंथ है नवद्वीप शतक केवल उन्होंने वृंदावन का महिमा मृत मतलब वृंदावन की महिमा का ग्रंथ ही नहीं लिखा वहां नवद्वीप मंडल की महिमा का भी ग्रंथ लिखा है। उसका नाम है नवद्वीप शतक और राधारस सुधा निधि यह इनकी विशेष देन है। चैतन्य चंद्रोदय में वे लिखते हैं- *अवतीर्णे गौरचंद्रे विस्तीर्णे प्रेमसागरे।ये न मजंति मजंति ते महानार्थ-सागरे।।* अर्थ:- कलियुग के इस युग में परम पुरूषोत्तम भगवान गौरांग महाप्रभु के आगमन के कारण ब्रह्मांड अत्यंत भाग्यशाली और शुभ बन गया है। उनके दिव्य आगमन के कारण उनके शुद्ध प्रेम का असीम सागर असीम रूप से विस्तारित हो गया है। अगर कोई गहरा गोता नहीं लगाता है और भगवान गौरांग के लिए शुद्ध प्रेम के इस सागर में पूरी तरह से नहीं डूब जाता है तो वह खुद को निश्चित रूप से गहरे डूबे हुए पाएंगे या महान कुकर्मो के सागर में डूबेंगे। "अवतीर्णे गौरा चंद्र विस्तीर्ण प्रेम सागरे " हम आए हैं सुरभि कुंड के तट पर जहां पर प्रबोध आनंद सरस्वती ठाकुर का भजन कुटीर है। उनका स्मरण हम आपको दिला रहे हैं। कैसे बोध किया करते थे वे संबोधन किया करते थे क्या क्या कहा है लिखा है कुछ सैंपल वचन आपको सुना रहे हैं और दूसरा वचन यह है। अवतीर्णे गौरा चंद्र विस्तीर्ण प्रेम सागरे " चैतन्य महाप्रभु ने अवतीर्ण प्रकट होकर क्या किया ? उन्होंने विस्तीर्ण प्रेम सागर प्रेम सागर का विस्तार किया। और फिर देखते हैं। 'ये न मजंति मजंति ते महानार्थ-सागरे' जो इस प्रेम सागर में उड़ेंगे नहीं या प्रवेश नहीं करेंगे या गोते नहीं लगाएंगे, तो उनके लिए फिर क्या है ? एक ही पर्याय बचता है 'मजंति ते महानार्थ-सागरे' वैसे दूसरे शब्दों में दो ही सागर हैं एक प्रेम का सागर है। जो ब्रजमंडल है प्रेम सागर और दूसरा है अनर्थों का सागर, पापमय जीवन का सागर और यह सारी दुनिया छोड़ कर वृंदावन धाम छोड़कर या फिर इस्कॉन टेंपल छोड़कर या जहां-जहां विष्णु मंदिर हैं वह स्थान छोड़कर बाकी सब तो बेकार है। दुनिया है संसार है यह जो सागर है अनर्थ सागर कहते हैं प्रबोधानंद सरस्वती ठाकुर, वह कहते हैं आपके पास दो ही पर्याय हैं यदि आप इस प्रेम सागर में नहीं आओगे , ये न मजंति मजंति फिर उनके लिए यह जो अनर्थो का सागर है वही बचता है हरि हरि ! आपकी क्या ख्वाहिश है आप क्या पसंद करोगे ? मुझे सुन रहे हो प्रेम सागर या महा अनर्थ सागर ?आप प्रबोधानंद सरस्वती ठाकुर के प्रबोधन को स्वीकार कर रहे हो हरि हरि ! उनका आपके ऊपर भी वरद हस्त हो, वे आपको खूब आशीर्वाद दें। आप उनके भजन कुटीर पर पहुंचे ही हो, यह सुरभि कुंड है नाम से ही पता चलता है। चिंतामणि प्रकर सद्मसु कल्पवृक्ष नंद ग्राम से वहां नंद का गोकुल था और नंद ग्राम नंद महाराज का ग्राम वहां जाओगे आप एक दिन, ज्यादा दूर नहीं है। वहां से श्रीकृष्ण प्रतिदिन जैसे आप अपने दफ्तर जाते हो वैसे कृष्ण का जॉब है गाय चराने के लिए प्रतिदिन किसी वन में जाते हैं। संभावना है कि आज वह अपनी गाय लेकर काम्यवन वन में भी आ सकते हैं हरी हरी ! आप जाओगे वहां कई सारी डिजायर ट्री भी हैं। आपकी इच्छा भगवान पूरी करें या यह डिजायर ट्री आपकी इच्छा की पूर्ति करें कि भगवान आज अगर गाय चराने के लिए आएं तो फिर उन गायों को लेकर सुरभि कुंड भी आएंगे यहां जल पिलाते हैं अपनी गायों को, गाय चरती रहती है और कृष्ण बलराम एंड फ्रेंड कंपनी खेलते रहते हैं और फिर चारा खाने के उपरांत गायों की गणना भी करते हैं। किसी वृक्ष के ऊपर कदंब के वृक्ष, जहां आप देख रहे हो मुरली बजाते हैं और सारी गाय वहां आ जाती है बैठ जाती है। इंटरटेनमेंट प्रोग्राम और गाय अपना जुगाली करती है। आपने देखा होगा पशु कैसे खाते हैं, दो बार खाते हैं पहले एक बार खाते हैं फिर उसके बाद में उसी चारे को फिर से चबाते हैं उस का रस बनाते हैं और खाते पीते हैं। कृष्ण मुरली बजा रहे हैं इंटरटेनमेंट भी हो रहा है और साथ ही साथ उनका डिनर कहो या लंच कहो गायों का चल रहा है या खाए हुए को दोबारा खा रहे हैं पी रहे हैं। इन वृक्षों के नीचे यह सब होता है और फिर गाय जल पीने के लिए सुरभी कुंड पर पहुंच जाती है जलपान करती है फ्रेश वाटर प्योर वाटर और यह वर्णन हमको सुनने को मिलता है जब गाय जलपान करती है तो कृष्ण भी उसी सुरभी कुंड का जलपान करते हैं। उनके लिए कोई अलग से बिसलेरी बोतल या जल नहीं है ऐसा है वृंदावन हंड्रेड परसेंट प्योर , यहां का जल भी जो जल गाय पीती है वही जल कृष्ण के लिए भी है. कृष्ण के लिए कोई अलग से व्यवस्था नहीं है और यह भी देखा जाता है कि कृष्ण कभी कभी जल वैसे ही पीते हैं जैसे गाय पीती है। मतलब गाय कैसे पीती है गाय तो मुख से पीती है अपने हाथ पैर का उपयोग नहीं करती है जलपान को पीते समय अपने मुख का उपयोग करती है तो कृष्ण भी आगे बढ़ते हैं गायों के बीच में से और सुरभि कुंड के तट पर पहुंचते हैं और केवल वे अपने मुख से ही जलपान करते हैं हाथ पैरों का उपयोग नहीं करते हैं नीचे झुकते हैं और देखते भी होंगे गाय कैसे पी रही है। उन गायों जैसा ही जलपान कभी-कभी करते रहते हैं। गौ माता की जय !कृष्ण कन्हैया लाल की जय! वैसे ब्रज मंडल परिक्रमा में जाना भगवान की लीला में प्रवेश करना ही है। भगवान की लीला में हम सम्मिलित हो सकते हैं या भगवान की लीला के साक्षी रह सकते हैं जब हम वहां की लीलाओं का जहां जहां हम जाते हैं और वहां की लीलाओं का हम श्रवण करते हैं तो उस लीला को हम कुछ हद तक देखने लगते हैं हम कहते रहते हैं ब्रज मंडल में हम कैसे देखते हैं सुनकर देखते हैं जो हम सुन रहे हैं उसी के साथ उसी का पिक्चर उसकी पेंटिंग या वह दृश्य हमारे सामने खड़ा हो जाता है ऐसा कह रहे थे कृष्ण जैसे जलपान करते हैं सुरभी कुंड का ,आपके मन में एक चित्र उभरा होगा, कैसे पी रहे हैं कृष्ण ? *चिंतामणि-प्रकर-सद्मिसु कल्पवृक्ष- लक्ष आवृतेषु सुरभिः अभिपालयन्तम् ।लक्ष्मी सहस्र शत सम्भ्रम सेव्य मानं गोविन्दम् आदि पुरुषं तमहं भजामि ॥* वृंदावन में कृष्ण क्या करते हैं ? सुरभिः अभिपालयन्तम् सुरभि गायों का या वहां की गायों का एक जनरल नाम है ऐसे सुरभि , वैसे हर गाय का अलग अलग नाम तो है ही लेकिन उनको सुरभि गाय कहते हैं। श्रीकृष्ण इस काम्यवन में जब-जब आते हैं गाय चराने के लिए तो काम्यवन में भी गौचरण लीला स्थली है काम्यवन से नंद ग्राम कोई ज्यादा दूर नहीं है। नंद ग्राम की जय ! कृष्ण वृंदावन में रहते हैं मतलब कहां रहते हैं, वह नंद ग्राम में रहते हैं। कृष्ण का वर्णन भी पूर्ण सुंदरम कृष्ण कैसे हैं उसका वर्णन शुरू होता है। *वान-विभूति-करण नवा-नीरदाभात पितांबरद अरुणा-बिंबा-फलाधरौषत पूर्णेंदु-सुंदर-मुखाद अरविंद-नेत्रत क्षत परं किम अपि तत्त्वं अहं न जाने ||* (मधुसूदन सरस्वती) अर्थ:- हाथ में बाँसुरी सजाए हुए, एक नए बादल का रंग, एक पीले कपड़े में पहने हुए और भोर के रूप में लाल होंठ या बिंब फल के साथ, पूर्णिमा के रूप में सुंदर चेहरे के साथ और कमल की तरह आंखें, मैं कृष्ण से भी ऊँचा कोई सच्चाई नहीं जानता । तो फिर कलाकार भी जैसे पेंटिंग करता है या लकीर खींचता है फिर वह बंसी पीतांबर पहने हैं तब पितांबर का पेंटिंग करता है पीले रंग का उपयोग करता है भगवान का विग्रह का रंग नीला है तो नीला रंग, जैसा हम वर्णन करते हैं पढ़ते हैं सुनते हैं उसी के साथ वह दृश्य वह व्यक्तित्व, पर्सनैलिटी, उनका जो वैशिष्ठ है वह भी हमारे मन में, ऐसी छवि मन में बसी हो कहते हैं इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले , प्राण जब निकलने का समय आएगा, तब छवि मन में बसी हो, जो जो हमने ब्रजमंडल परिक्रमा में सुना था देखा था वह दृश्य फिर हम देखने लगेंगे या कृष्ण की छवि हमारे समक्ष खड़ी होगी होनी चाहिए। इसका फायदा *एतावान्साङ्ख्ययोगाभ्यां स्वधर्मपरिनिष्ठया जन्मलाभः परः पुंसामन्ते नारायणस्मृतिः ॥* (श्रीमदभागवतम २.१.६ ) अनुवाद - पदार्थ तथा आत्मा के पूर्ण ज्ञान से, योगशक्ति से या स्वधर्म का भलीभाँति पालन करने सेमानव जीवन की जो सर्वोच्च सिद्धि प्राप्त की जा सकती है, वह है जीवन के अन्त में भगवान का स्मरण करना। अंत में नारायण की स्मृतियां, कृष्ण की स्मृति में मदद होगी। हम जो जो परिक्रमा में सुन रहे हैं देख रहे हैं अनुभव कर रहे हैं स्पर्श कर रहे हैं यह सब नोट किया जा रहा है। हमारी स्मृति पटल पर उसको लिखा जा रहा है। इसके जो संस्कार हैं इंप्रेशंस हैं यह सदा के लिए हमारे साथ रहेंगे और सदा के लिए इंक्लूडिंग जब प्राण तन से निकले तो जब हम सुनते हैं पढ़ते हैं वैसा ही हम देखते हैं मैं कह रहा था ब्रजमंडल परिक्रमा में जाना मतलब भगवान के लीला में प्रवेश करने जैसी बात है और मरने की बात तो कर ही रहे थे। मरने के उपरांत क्या करना है जय ओम नित्य लीला प्रविष्ट राधारमण महाराज की जय ! या ब्रजभूमि की जय ! इष्ट देव प्रभु की जय ! इनकी जय, उन की जय, सब की जय ! तो क्या होगा? नित्य लीला में प्रवेश करेंगे, शरीर यही का यही रह जाएगा ,समाधि में रहेगा या उसका अंतिम संस्कार होंगे ,लेकिन हमारी जो आत्मा है जो स्पिरिट सोल है जो भगवान का पार्षद है भगवान का परिकर है। वी ऑल आर हम सब भगवान के परिकर हैं। ऑल एसोसिएट्स ऑफ कृष्ण, दास कहो सखा कहो या जो भी हमारा संबंध है अपने स्वरूप में स्थित होकर , *निरोधोऽस्यानुशयनमात्मनः सह शक्तिभिः मुक्तिर्हित्वान्यथा रूपं स्वरूपेण व्यवस्थितिः ॥* (श्रीमदभागवतम २.१०.६) अनुवाद - अपनी बद्धावस्था के जीवन-सम्बन्धी प्रवृत्ति के साथ जीवात्मा का शयन करते हुए महाविष्णु में लीन होना प्रकट ब्रह्माण्ड का परिसमापन कहलाता है। परिवर्तनशील स्थूल तथा सूक्ष्म शरीरों को त्याग कर जीवात्मा के रूप की स्थायी स्थिति 'मुक्ति' है। ब्रज मंडल परिक्रमा में हम जा रहे हैं सुन रहे हैं प्रचार कर रहे हैं सूंघ रहे हैं देख रहे हैं, कथा सुन रहे हैं। सुनने से हम देखते हैं ऐसा करते करते हमारा जो देह है अपना जो रूप है जो स्वरूप है प्राप्त कर रहे हैं। हर पग पर प्राप्त कर रहे हैं। लाइक एवरी स्टेप हमारा जो स्वरूप है वह प्राप्त करने की हमारी जो साधना है या हम जो साधना भक्ति कर रहे हैं और फिर साधना से सिद्ध होकर फिर *जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः । त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ॥* (श्रीमद भगवद्गीता 4.9) अनुवाद- हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है | पुनर्जन्म नहीं है तो फिर क्या होगा। मुझे प्राप्त होंगे परिक्रमा के भक्तों तुम मुझे प्राप्त होंगे, मेरे धाम में लौटोगे। वृंदावन धाम की और लौट कर क्या करोगे अन्य कॉवर्ड बाय या जो सर्वेंट हैं उनके जैसे ही तुम भी सर्वेंट बनोगे, तुम्हारी पोस्ट है पोजीशन है तुम जब से धाम को त्याग कर दुनिया में गए तब से वह स्थान रिक्त है। और आपके जाने से या भगवान का धाम छोड़ने से जो रिक्त स्थान बन चुका है और कोई नहीं भर सकता। वह हमारे लिए रिजर्व है। कृष्ण इज वेटिंग धाम प्रतीक्षा कर रहा है भगवान प्रतीक्षा कर रहे हैं और आप के संगी साथी जो इटरनल फ्रेंड्स हैं एसोसिएट्स हैं वे भी प्रतीक्षा कर रहे हैं। व्हाट हैपन आ गए हो इष्ट देव ब्रज मंडल परिक्रमा पूरा करके। श्रीकृष्ण भावना मृत संघ में हम लोग जो इस प्रकार का जीवन जीते हैं हमारी लाइफ स्टाइल एंड यह सब हम करते हैं साधना करते हैं रागानुगा साधना ताकि हम लोग तैयार हो जाएंगे स्वरूप स्थिति , मैं यह भी कह रहा था भगवान आज काम्यवन आ सकते हैं फिर उनके साथ आप खेल सकते हो। वे खेलते रहते हैं। आप आगे बढ़ोगे तो फिसलनी शिला आने वाली है। आगे पहाड़ी इलाका ही है और हरियाली, हरा भरा घास भी उपलब्ध है। गाय जब चर रही है तो कृष्ण खेलते हैं। कई प्रकार के खेलों में से वे फ़िसलिनी शिला पर भी खेलते हैं। वह शिला बहुत चिकनी है। वहां पीछे ग्वाल बाल फिसलते रहते हैं मैं पहले मैं पहले मैं पहले , ऐसा भी होता होगा या कृष्ण पहले , कृष्ण के ठीक बाद में मैं जाऊंगा। अब आप वहां पहुंचने ही वाले हो आप सभी को वहां से चलना है मैं भी वहां पर फिसला था। मैंने भी वहां खेला था। जब आप भी वहां खेलोगे तो संभावना है वहां और भी बहुत सारे कवर्ड बॉयज या और परिक्रमा के लोग आ गए तो आप भी ये भूमिका निभाओ और कृष्ण और मित्रों के साथ आप भी वैसे मित्र ही हो। केवल तुम भूल गए हो लेकिन परिक्रमा यह इसीलिए आपको रिमाइंडर देने के लिए है कि आप कौन हो कहां के हो कहां है कृष्ण कौन है कहां है और आप उनके साथ कैसे खेलते रहते हो। यह सारा परिचय आप को दिया जाता है ब्रज मंडल परिक्रमा शुरू करा कर, अतः आप खेलने वाले हो फिसलनी शिला पर फिर जब आप आगे बढ़ोगे तब व्योमासुर गुफा का भी दर्शन करोगे हरि हरि ! व्योमासुर का वध काम्यवन में ही हुआ और आपकी जानकारी के लिए कृष्ण का यह आखिरी दिन था वृंदावन में जब अक्रूर मथुरा से वृंदावन या नंदग्राम आ रहे थे और अगले दिन उनको कृष्ण बलराम को ले जाना है तो वह दिन है। वैसे प्रातः काल में कृष्ण ने केसी घाट मे केशी का वध किया और फिर दिन में कृष्ण गोवर्धन के शिखर पर थे वहां खेल रहे थे। अब हम आपको सारी लीला तो नहीं बताएंगे जब वह खेल चल रहा था और कृष्ण के जो मित्र थे कोई बछड़ा बन गया ,कोई चोर बन गया, कोई पुलिस बन गया इस प्रकार यह सभी खेल चल रहा था। कोई चोर आकर चोरी कर रहे थे पुलिस उनको रोक रही थी उनको दंडित कर रही थी जो चोर बनने की लीला जो चोरी की भूमिका निभा रहे थे। तभी एक असुर व्योमासुर चोर बन के आ गया और जैसे बाकी फ्रेंड्स चोरी करते थे और फिर लौटा भी देते थे क्योंकि यह नाटक था यह वास्तविक नहीं होता था कोई चोरी नहीं होती थी। लेकिन इस चोर ने जो कि वास्तविक चोर था राक्षस था वह भगवान के मित्रों की चोरी करके हवाई मार्ग से , कहां से ? गोवर्धन के शिखर से काम्यवन के जो पहाड़ हैं आगे जब आप जाओगे तब उस पहाड़ में एक गुफा को उसने ढूंढा, कृष्ण के मित्रों को उसने वहां रखा था और बड़ी शिला से उसे बंद करता था। 10 , 20, 50, 100 ,1000 ऐसे और मित्रों की चोरी करके उसी गुफा में डाल देता था और फिर दोबारा गोवर्धन आता था फिर दोबारा काम्यवन जाता था, फिर गोवर्धन आता था इस तरह से उसकी शटल सर्विस चल रही थी। तब कृष्ण ने कहा अरे हम लोग तो यही कुछ दस मित्र खेल रहे थे तो क्या हो रहा है अभी केवल 5 ,10, 20 ही बचे हैं यह क्या हो रहा है यह नाटक था या ड्रामा था लेकिन सचमुच ही कोई चोरी कर रहा है। वास्तविक चोर आ गया है फिर उन्होंने नोट किया यस! यही है व्योमासुर ही है फिर भगवान ने उसका वध किया। काम्यवन के आकाश में भगवान का उसके साथ युद्ध हुआ खेलते समय कृष्ण के कई सारे अलंकार वहां गिर रहे थे उसमें से कुछ उसी पहाड़ के ऊपर भी गिरे जिस पर व्योमासुर की गुफा है। वैसे ही आप वहां जाने वाले हो हम कहते ही रहते हैं आप दूर से ही देखो , दूर से ही सुनो लेकिन कोई सुनता नहीं सभी वहां गुफा तक जाना ही चाहते हैं और इतना ही नहीं पहाड़ के ऊपर तक भी चढ़ते हैं। आप देखने वाले हो , आप साक्षी हो गए उस लीला के, कई भगवान के अलंकार के चिन्ह आज भी वहां पर हैं यह प्रूफ है यह लीला सचमुच वहां पर हुई है और उस समय कृष्ण पृथ्वी पर थे काम्यवन काम में और उसी समय उड़ान भरते व्योमासुर के साथ युद्ध खेलते हुए कुछ नीचे आ जाते हैं लैंडिंग होता है फिर टेक ऑफ उसके साथ ही पृथ्वी को एक प्रकार का स्प्रिंग बोर्ड बनाकर, जैसे स्विमिंग पूल में स्नान करने वाले कई बार जब कोई प्लेटफार्म होता है तब वहां से तैयार होते हैं जंप के लिए, अप एंड डाउन कृष्ण भी वैसा ही कुछ कर रहे थे, उसी के साथ यह पृथ्वी भी घूम रही थी। डामाडोल हो रही थी। बलराम ने अपने पैर से उसे स्थिर करने के लिए रखा ताकि पृथ्वी का हिलना डुलना बंद हो या रोका जाए। इस तरह जहां बलराम ने अपने चरण रखे थे उस चरण चिन्ह का दर्शन भी आप करने वाले हो। जय बलराम , कल या परसों या कुछ दिन पहले आपने चरण पहाड़ी पर कृष्ण के चरण देखे कि नहीं देखें ? हरि बोल ! आज आप बलराम के चरण चिन्ह देखने वाले हो और फिर वहां से आगे बढ़ोगे फिर एक और स्थान आप परिक्रमा की डेवोटीज़ जाओगे वह है भोजन स्थली, वैसे वहां भजन भी होगा और भोजन भी होगा, आपका भी भोजन होगा। इष्ट देव या ब्रजभूमि आप सुन रहे हो बाकी सब सुन रहे हैं ना गायत्री सुन रही है और परिक्रमा पार्टी ? भोजन स्थली वह स्थान है जहां उसका थोड़ा हम स्मरण करते हैं फिर हम विराम देंगे और आप भी विराम कर रहे हो आराम हराम है। आपको आगे बढ़ना है। भोजन स्थली एक विशेष स्थल है और यह भी काम्यवन में इतने सारे चिन्ह आज भी उपलब्ध हैं। भगवान की लीला का संकेत करने वाले और उन सभी वनों की अपेक्षा काम्यवन में इतने सारे स्थान है जबकि और वनों में तो भगवान की लीला स्थली या तो लुप्त हो चुकी है या अच्छादित हो चुकी है। हमको पता ही नहीं ऐसा कोई नामोनिशान नहीं है या कोई संकेत नहीं है लेकिन काम्यवन यह वशिष्ठ है कि यहां हजारों है इसीलिए हमने यहां इंटीरियर परिक्रमा या आउटर परिक्रमा और फिर इतने सारे स्थल आज भी वह प्रकट हैं और स्पष्ट हैं हरि हरि! यहां इतने सारे वानर भी हैं , पता नहीं आजकल कुछ संख्या कम हुई है किंतु फिर भी सबसे अधिक वानर काम्यवन में ही हैं क्योंकि भगवान ने काम्यवन में ही सेतु बनाया। रामेश्वरम से श्रीलंका जाने के लिए , वानरों की आवश्यकता थी सेतु बनाने के लिए तब वानर पहुंच गए। इस वन में और वनों की अपेक्षा अधिक वानर हैं इसके पीछे कारण है भगवान की लीला जब सेतू बना रहे थे तब वानरों ने मदद की और फिर रामेश्वरम यहां है, अशोक वन यहां है और यशोदा कुंड यहां है। इस वन में माधुर्य लीला वात्सल्य भरी लीला और सख्य रस से पूर्ण लीला हुई है या पांडव यहां अज्ञातवास के समय रहे और 84 खंबे ब्रज मंडल में दो ही हैं। एक गोकुल में है और दूसरा यहां काम्यवन में है जहां पांडव रहते थे हरि हरि ! फिर राधा मदन मोहन , राधा गोविंद देव ,राधा गोपीनाथ के मंदिर काम वन्य में है और कहीं भी नहीं है। वृंदा देवी की जय ! वृंदा देवी काम वन्य में ही है। वह क्यों है ? आपने सुना होगा , आप पढ़ सकते हो इतने सारे कुंड हैं अभी आउटर परिक्रमा में कितने सारे स्थान आज भी स्पष्ट हैं प्रकट हैं तो बैक टू भोजन थाली कोई भोजन थाली कहते हैं तो कोई भोजन स्थली कहते हैं। भोजन स्थली में कृष्ण की थाली का चिन्ह बन गया। भगवान की लीला में प्रवेश करने की बात हुई , संभावना भी है कि कृष्ण काम्यवन में आ जाए या जहां भोजन स्थल है। जहां भगवान भोजन कर रहे हैं अपने मित्रों के साथ और परिक्रमा के यही कुछ ढाई सौ मित्र भी आ गए, वहीं बैठेंगे , आज का आपका भोजन उसी स्थान पर होगा जहां कृष्ण बलराम अपने मित्रों के साथ भोजन कर रहे थे। क्या भोजन किया था इससे बढ़कर और कौन सा भाग्य क्या कहेंगे इसे ? और क्या है ? भगवान आप सभी को छप्पर फाड़ कर दे रहे हैं। अपनी लीला का दर्शन करा रहे हैं. आपको स्वीकार कर रहे हैं। बैठो !बैठो ! यहां बैठो यहां मैं भी कर रहा हूं भोजन और कई सारे मित्र हैं। बगल में गाय चर रही है। गाय दिन भर भोजन करती है और फिर पानी भी पीती है। मित्र भी अपना खेल खेलते हैं भोजन करते हैं और कृष्ण भी। यहां कृष्ण ने भोजन किया उन्होंने यहां अपनी थाली रखी फिर भगवान ने कुछ कटोरी भी रखी अलग-अलग पकवान से भरे हुए थाली के स्पर्श से वहां की भूमि और शिलाएं पिघल गई। ऐसा ही होता है भगवान जब कभी कभी अपना स्पर्श करते हैं तो पत्थर पिघल जाता है। जैसे कहा कि भगवान के अलंकार जहां गिरे और उसके स्पर्श से वह पत्थर भी पिघल गए और जो चिन्ह वहां छपे हुए हैं उन्हें आप देख ही सकते हैं। इस तरह भोजन थाली की भी वही बात है। भगवान भोजन करते समय भोजन की लीला का और एक समय वहीं से जमुना बहती थी ऐसा भी है अलग-अलग स्थानों से बहती रहती है अलग-अलग कल्पों में जमुना के तट पर कृष्ण भोजन करना पसंद करते हैं और भोजन की लीला इतनी मधुर है सेइ अन्नामृत जैसा अभी है। अन्न गृहण कर रहे हैं कृष्ण वह भी अमृत है यह लीला है भोजन करने की लीला का स्मरण करते हुए अब आप भोजन कीजिए हरि हरि ठीक है। भगवान भी अनंत हैं और उनकी लीला भी अनंत है लेकिन हमारा दिन तो अनंत नहीं है समय बीत रहा है आपको आगे भी बढ़ना है मैं नहीं रोकूंगा क्योंकि उसके बाद आपको आगे फिसलनी शिला भी जाना है बलराम के चरणों का दर्शन करना है। तो आप तैयार हैं ? और गुफा के अंदर नहीं जाना। व्योमासुर से दूर रहो। परिक्रमा कमांडर के आदेशानुसार आप चलो ठीक है अब मैं यहीं विराम देता हूं। हरि हरि बोल ! निताई गौर प्रेमानंदे!

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