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जप चर्चा 4 नवंबर 2021 वृंदावन धाम हरि बोल ! तो जपा टॉक कभी-कभी 6:30 बजे शुरु होता ही है या शुरू करना पड़ता है । वैसे आज भी अभी जपा टॉक प्रारंभ करने जा रहे हैं और समाप्त भी जल्दी ही होगा 7:00 बजे तक इसको समापन करना है और फिर अब पुनः कथा सुन सकते हो 8:00 बजे मंदिर में भागवत की कक्षा होगी दामोदर लीला का संस्मरण होगा 8:00 बजे । आपको पता ही है आजकल कहां ज्वाइन करना होता है और कहां देख सकते हो और सुन सकते हो लॉगइन डीटेल्स तो और फिर आज साईं काल को भी दामोदर अष्टकम भी मुझे गाने के लिए कहा है तो वह 7:00 बजे होगा । 7:00 बजे दामोदर अष्टक सायं कालीन 7:00 बजे और फिर कीर्तन भी, तो जपा टॉक अभी और भगवतम कथा सुबह 8:00 बजे और शाम में 7:00 बजे दामोदर अष्टक । ठीक है तो आज हमारे साथ 766 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं । बेशक स्वागत है आपका स्वागत है आप जहां भी हो । हरि हरि !! हमारे साथ श्रृंगार मूर्ति भी है न्यू जर्सी से इसी तरह से । वैसे ऐसा कोई है नहीं न्यू जर्सी का कोई है नहीं और किसी देश का कोई नहीं है हम सभी वैकुंठ वासी है । वैकुंठ वासी ही नहीं यह महा वैकुंठ है । हम सभी गोलक वासी है इसको याद रखना है । याद रखना है क्या याद दिला भी जाती है प्रतिदिन इसी का स्मरण होता है कि हम कौन हैं ? और हम कहां के हैं ? दामोदर को तो जानो और फिर अपना जो दामोदर के साथ जो संबंध है सास्वत संबंध उसको जानो तो । आप जान रहे हो ना धीरे-धीरे ? और इसी के साथ हमें ... सर्वोपाधि- विनिर्मुक्तं तत्परत्वेन निर्मलम् । हृषीकेण हृषीकेश-सेवनं भक्तिरुच्यते ॥ ( चैतन्य चरित्रामृत मध्यलीला 19.170 ) अनुवाद:- भक्ति का अर्थ है समस्त इंद्रियों के स्वामी, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् की सेवा में अपनी सारी इंद्रियों को लगाना। जब आत्मा भगवान् कि सेवा करता है तो उसके दो गौण प्रभाव होते हैं। मनुष्य सारी भौतिक उपाधियों से मुक्त हो जाता है और भगवान् कि सेवा में लगे रहे ने मात्र से उसकी इंद्रियां शुद्ध हो जाती हैं । करना है । सभी उपाधियों से मुक्त होना है । मैं यहां का हूं मैं वहां का हूं यह सोच, आज है तो कल नहीं वाली बात है तो इसमें से हम कुछ भी नहीं है । यह संसार की सारी जो पहचान है, परिचय है तो बस हम ... जीवेर ' स्वरुप ' हय-कृष्णेर ' नित्य-दास ' । कृष्णेर ' तटस्था-शक्ति ' ' भेदाभेद-प्रकाश ' ॥ ( चैतन्य चरितामृत मध्यलीला 20.108 ) अनुवाद:- कृष्ण का सनातन सेवक होना जीव की वैधानिक स्थिती है , क्योकि जीव कृष्ण की तटस्था शक्ति है और वह भगवान् से एक ही समय अभिन्न और भिन्न है । और फिर यह जीव "कृष्ण दास करलो तुआर दुख नाइ" तो भक्ति विनोद ठाकुर कहते हैं कि एक तो हम सभी जीव है जीवात्मा है जो परमात्मा के अंश है भगवान के हम अंश है । फिर भगवान जहां के हैं हम वहीं के हैं । हम भगवान के हैं हम दामोदर के हैं या हम श्री राम के हैं । इसको जब जानेंगे हम तभी हम सुखी हो सकते हैं । "करलो तुआर दुख नाइ" ए जीव कृष्णदास एइ विश्वास" ये जीव कृष्णदास है इस बात पर विश्वास । पूरा पक्का इरादा जब होगा या जैसे जितना होगा उतना ही हम लोग सुखी होंगे । "करलो तुआर दुख नाइ" दुख नहीं होगा । हम सुखी होंगे । जैसे जैसे मुक्त होते जाएंगे इन उपाधियों से मुक्त होते जाएंगे मतलब की माया से मुक्त हो जाएंगे फिर माया के ही सारे उपाध्याय हैं, मायावी उपाधियां है तो हम सभी साधक है । प्रतिदिन हम साधना करते हैं और साधना के अंतर्गत कई बहुत कुछ करते रहते हैं । अब तो दामोदर व्रत लेके बैठे हैं हम इस मास में यह भी साधना है, जो जैसे जैसे हम साधक साधना करते जाएंगे उसी के साथ हम सिद्ध होते जाएंगे साधनासिद्ध । जितने जितने सिद्ध होंगे उतनी मात्रा में हम "करलो तुआर दुख नाइ" दुखी नहीं होंगे सुख मतलब सुखी होंगे । आनंद को प्राप्त करेंगे । आज वैसे हैप्पी दिवाली । आज दिवाली ही है । जय श्री राम ! अयोध्यावासी राम, राम राम दशरथ नंदन राम ! और सीता मोहन राम । सीता मोहन ! वृंदावन में राधा मोहन है और अयोध्या में वे सीता मोहन राम । आज के दिन श्री राम इनका वनवास समाप्त हुआ और वैसे दशहरे के दिन राम विजयदशमी हम लोग मनाते हैं तो उस दिन । हरि हरि !! परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ ( भगवद् गीता 4.8 ) अनुवाद:- भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ । उस दुष्ट का संघार किए रावण का और फिर प्रस्थान की तैयारी भी लंका से अयोध्या तो आज के दिन भगवान अयोध्या पहुंचे । स्वागतम श्री राम ! तो राम का भव्य भव्य स्वागत हुआ अयोध्या में । हरि हरि !! सभी प्रतीक्षा में थे जो प्रतीक्षा में थे उनको मिल गए श्री राम । पता नहीं हम उतनी प्रतीक्षा में है या नहीं । प्रतीक्षा में होना पड़ता है तभी राम मिलेंगे । अगर प्रतीक्षा ही नहीं है क्यों मिलेंगे राम । हम राम को चाहते ही नहीं या सोचते भी नहीं । प्रार्थना भी नहीं करते आ जाइए हराम । ओ राम ! राम ! राम ! "सोडुनी गेला राम, कसा मला" । सोडुनी गेला राम । ऐसे हम गीत नहीं गाते । "रामविण मज चैन पड़ेना" राम के बिना चैन, हम बेचैन है राम के बिना । "नाही जिवासी आराम" और जीव को आराम नहीं है क्योंकि "सोडुनी गेला राम" । हमको अयोध्या में छोड़के राम वनवास के लिए गए । वन में भ्रमण कर रहे हैं, विचरण कर रहे हैं । अयोध्या वासी राम के भक्त और सभी राम भक्त थे तो राम के बिना यह जीवन हराम है । राम के बिना, राम नहीं है । जीवन में राम नहीं है । राम के बिना, हरि हरि !! तो फिर राम मिलेंगे या फिर कृष्ण भी मिलेंगे । रामकृष्ण एक ही है । त्रेतायुग में जिस दिन आज के दिन राम अयोध्या लौटे । उसके अंतर्गत जो तैयारियां हुई थी अयोध्या को सजाया था । अयोध्या का श्रृंगार हुआ । लोग तो स्वयं सज धज के तैयार हुए थे ही राम, लक्ष्मण, सीता की अगवानी करने के लिए उनके स्वागत करने के लिए और भरत भी वह पादुका लेके अयोध्या के नागरिकों के साथ या वशिष्ठ मुनि के साथ और मंत्रियों के साथ पुरोहितों के साथ जा रहे थे जहां वो मिलने के स्थान पर या स्वागत होने वाला था । स्वागत समारोह का जहां आयोजन हुआ था वहां के लिए भरत भी जा रहे थे तो तो शहर के भी शोभा बढ़ाई उसके अंतर्गत सब दीपक जलाएं । अयोध्या जगमगा रही थी । वैसे भी सूर्यवंश में प्रकट हुए श्री राम के लिए प्रकाश के साथ ज्योति के साथ दीए जलाए हैं हजारों लाखों दिए सर्वत्र जलाए हैं और पंक्ति बंध रखे हैं । दीप-आवली दीपों की आवली । आवली मतलब पंक्ति और उसी के साथ राम आ गए आगे उनके जीवन में राम ने प्रवेश किया । उनके नगर में उनके जीवन में और इसी के साथ हुआ है फिर "तमसो मा ज्योतिर्गमय" । एक प्रकार का अंधेरा छाया हुआ था अयोध्या में । लोग निराश उदास थे और जीवन में ही कुछ निराश अंधेरा तो जैसे राम का प्रवेश हो रहा था हो ही गया उसी के साथ । "तमसो मा" अंधेरा नहीं रहा और वो नीरानंद नहीं रहा । नीर-आनंद, आनंद और नीर-आनंद दुख या नाराजगी तो आज के दिन तो यही है योग भगवान के साथ पुनः अपना संबंध स्थापित हुआ । राम प्राप्त हुए और फिर लोगों ने अयोध्या वासियों ने जिस प्रकार से इतने हर्ष और उल्लास के साथ वे स्वागत कर रहे थे नृत्य कर रहे थे और फिर मिठाईयां भी बांट रहे थे । अच्छी खबर है भगवान राम आए हैं, आए हैं ! तो लोग एक दूसरोंको मुंह मीठा कर रहे थे । इसलिए मिठाइयां बांटते हैं या इसलिए मिठाइ बांटनी चाहिए । राम का स्मरण करते हुए राम आए हैं राम लौटे हैं राम आए हैं ! राम आए हैं ! तभी मिठाई बांटने और खानी चाहिए । जिस दिन राम अयोध्या लौटे और दीपावली का उत्सव मनाया गया तब से अब तक हम लोग दीपावली मनाते ही हैं चलो आज भी हम दीपावली मनाते हैं । वैसे अयोध्या वासियों ने दीपावली मनाई लेकिन हम बता रहे हैं क्यों मना रहे थे ? किस भावों के साथ उत्सव दीपावली मना रहे थे ! तो दीपदान हुआ कहो । दीए जलाए आरती उतारी श्रीराम की स्वागत हो रहा है तो हमको भी करना है । उसी दिन दीपावली के दिन ही अब दृश्य बदल गए हैं युगांतर भी हुआ वहां त्रेतायुग था फिर आगया द्वापरयुग और कृष्ण गोकुल में है । उनके चल रहे हैं डाके डाल रहे हैं चोरी हो रही है । माखन चोर कृष्ण कन्हैया लाल की ! एक और कहते हैं कि माखन चोर कहते हैं फिर उसी की जय हो । ऐसा तो नहीं होता है ना ! चोर की तो जय नहीं होती है । लेकिन यह चोर कुछ भिन्न चोर है । हरि हरि !! या चोर अग्रगण्य है । एक चोराष्टक भी है तो भगवान क्या-क्या चोरी करते हैं उसमें सारी वो लिस्ट है उसमें । चित्तचोर भी है और ये चोरी किया वस्त्र हरण हुआ यह हुआ वो हुआ । लेकिन सबसे अधिक तो माखन चोरी के लिए कृष्ण प्रसिद्ध थे और फिर प्रसिद्धि भी । एक सुप्रसिद्धि और एक कूप्रसिद्धि होती है । ये कीर्ति है । कीर्ति, अपकीर्ति तो कृष्ण की कीर्ति माखन चोरी के साथ और और घरों में कृष्ण चोरी किया करते ही थे । यह रोज का चोरी का मामला चल रहा था । हर सुबह या हर प्रातः काल में । ब्रह्म मुहूर्त में ऐसा पुण्य काम करते थे वे । ब्रह्म मुहूर्त में उठते ही, हरि हरि !! क्योंकि उनको माखन पसंद था । "मैया मोरी माखन भावे" कहा करते थे यशोदा को तो चोरियां होती रहती थी प्रतिदिन । शिकायतें भी नंद भवन के आगे रखा होगा कोई तकरारपेटी या पत्रपेटी कोई आपकी शिकायत है तो उसमें डाल दो । भर जाता था वो पेटी शिकायत से । ए ! ए यशोदे ! हर मिनिट व्रजवासी माताएं आके अपनी शिकायत दर्ज किया करती थी । हरि हरि !! लेकिन फिर आज के दिन ये दामोदर लीला आज हुई दीपावली के दिन । पूरे महीने भर के लिए हम जो दामोदर लीला मना रहे हैं दामोदरव्रत का पालन कर रहे हैं, दामोदर अष्टक गा रहे हैं, दामोदर का स्मरण कर रहे हैं तो वो सदैव स्मरणीय लीला दामोदर लीला आज हुई । एकदा गृहदासीषु यशोदा नन्दगेहिनी । कर्मान्तरनियुक्तासु निर्ममन्थ स्वयं दधि ॥ ( श्रीमद् भागवद् 10.9.1 ) अनुवाद:- श्रीशुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा एक दिन जब माता यशोदा ने देखा कि सारी नौकरानियाँ अन्य घरेलू कामकाजों में व्यस्त हैं , तो वे स्वयं दही मथने लगीं । दही म उन्होंने कृष्ण की बाल क्रीड़ाओं का स्मरण किया और स्वयं उन क्रीड़ाओं के विषय में गीत बनाते हुए उन्हें गुनगुनाकर आनन्द लेने लगीं । या श्रीमद् भागवद् में शूकदेव गोस्वामी जब श्रीदामोदर लीला कथा प्रारंभ करते हैं तो कहते हैं कि "एकदा गृहदासीषु यशोदा नन्दगेहिनी" । "कर्मान्तरनियुक्तासु निर्ममन्थ स्वयं दधि" तो श्रीमद् भागवद् के दसवें स्कंद के नवम अध्याय में ये दामोदर लीला है आप पढीएगा । आप सुनिए सुनाइए पूरा वही लीला है । अगला अध्याय भी वही लीला है 10 वे अध्याय में भी है । यह लीला आज संपन्न हुई आज ही वे बन गए दामोदर । आज ही उनके उदर को डोरी के साथ या "दाम" मतलब डोरी और "उदर" उदर तो कृष्ण का उदर डोरी के साथ और फिर उखल के साथ बांध दी आज के दिन । बांधना पड़ा ऐसा इतना उत्पात मचा रहा था ये नटखट कन्हैया तो "बांधा उखळाला" "नन्दासा चोर" मराठी में गाते रहते हैं । बांधों इसको बांधों । बांध दिए तो । "स्थित ग्रैव - दामोदरं भक्तिबद्धम्" दामोदर अष्टक में तो कहा है । यशोदा ने डोरी से नहीं भक्ति से बांध दिया । डोरी से बांधना संभव नहीं है । "भक्ति बद्धम" यशोदा की प्रेम ने बांध दिया । प्रेम के पास, प्रेम के डोरी ने बांध दिया । वो नलकुबेर और मणिग्रीव उनका जब उद्धार हुआ आज के दिन ही हुआ । ऐसे वे कह रहे थे क्या, छोड़ सकते हैं क्या ? ये कृष्ण को किसी ने डोरी से बांध दिया है ये सही नहीं है । हम छोड़ना चाहते हैं तूने महाराज के शायद कुछ परवानगी करवाना चाह रहे थे । नहीं नहीं नहीं ! इस डोरी का छोड़ना तुम्हारे बस का रोग नहीं है । ये तो यशोदा के प्रेम का बंधन है । ये गांठ यसोदा के प्रेम की गांठ है "भक्तिबद्धम्" तो वहीं छोड़ सकती है यह वही जो जिसकी यशोदा जैसी भक्ति है । वैसा व्यक्ति मुक्त कर सकता है कन्हैया को इस बंधन से ऐसा भाव दिया है । यह जो कुबेर के पुत्र थे उनका भी आज ही उद्धार हुआ । कुबेरात्मजौ बद्धमूर्त्येव यद्वत् त्वयामोचितौ भक्तिभाजौकृतौ च । तथा प्रे भक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ न मोक्षे गृहो मेऽस्ति दामोदरेह ॥ ( श्रीदामोदराष्टकम् पद 7 ) अनुवाद:- हे दामोदर ! ऊखल से बँधे अपने शिशु रूप में आपने नारद द्वारा शापित दो कुवेर - पुत्रों को मुक्त करके उन्हें महान् भक्त बना दिया । इसी प्रकार कृपया मुझे भी अपनी शुद्ध प्रेमभक्ति प्रदान कीजिए । मैं केवल इसकी कामना करता हूँ और मुक्ति की कोई इच्छा नहीं करता । कई प्रार्थना है जैसे, हे प्रभु ! कुबेरात्मजौ कुबेर के दो पुत्रों को आपने मुक्त किया और भक्ति उनको भक्ति भर दी उनके दिल में उनके जीवन में तो वेसा तथा हमारे लिए भी व्यवस्था करो । "तथा प्रे भक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ" दीजिए । हमको भी प्रेम दीजिए । जैसे आपने उन नलकुबेर और मणिग्रीब को प्रेम दिया तो हमें भी प्रेम दीजिए । हमें मोक्ष बगैरा नहीं देना और कुछ हमको भोग विलास नहीं चाहिए हमको मोक्ष भी नहीं चाहिए । हमको चाहिए प्रेम । कृष्ण प्रेम, राधा कृष्ण प्रेम । ऐसी हम प्रतिदिन प्रार्थना कर रहे हैं दामोदर अष्टक के अंतर्गत, तो यह प्रार्थना को और भी तीव्र बनाने का आज भी ये दिन है । ये दामोदर लीला का दिन है तो आप सभी के लिए दामोदर लीला की भी शुभकामनाएं आज का जो अति विशेष दिन है और अति मधुर लीला संपन्न हुई है आज के दिन गोकुल में । इतीदृक् स्वलीलाभिरानंद कुण्डे स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम् । तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं पुन : प्रेम तस्तं शतावृत्ति वन्दे ॥ ( श्रीदामोदराष्टकम् पद 3 ) अनुवाद:- इन अद्भुत बाल्यलीलाओं से श्रीकृष्ण सभी गोकुलवासियों का आनन्द के सागर में निमग्न कर देते हैं । इस प्रकार वे भगवान् के ऐश्वर्य ज्ञान में लीन लोगों के समक्ष घोषणा करते हैं , " मैं केवल अपने प्रेमी भक्तों द्वारा ही जीता जा सकता हूँ । " मैं प्रेमपूर्वक ऐसे दामोदर भगवान् को शत - शत प्रणाम करता हूँ । आप गाते रहे । "इतीदृक् स्वलीलाभिर" दामोदर अष्टक का तीसरा अष्टक । "इतीदृक् स्वलीलाभिरानंद कुण्डे" भगवान ने इस प्रकार की लीलाएं विशेष रूप से ये दामोदर लीला संपन्न करके क्या किया ? "स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्" व्रजवासियों को उन्होंने आनंद के सागर में डुबो दिया । आनंद के सागर में नहा रहे थे सारे व्रजवासी । ये जो दामोदर लीला का जो आनंद है । दामोदर लीला खेल के इसका प्रदर्शन करके सारे व्रजवासियोंको वो अल्हाद आनंद प्रदान किए हैं । वैसा ही आल्हाद, आनंद हम सब को आप सबको प्राप्त हो । ऐसी शुभकामना प्रार्थना के साथ और मुझे अपनी वाणी को यहीं विराम देना होगा । ॥ हरे कृष्ण ॥

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