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जप चर्चा 24 नवम्बर 2020 पंढरपूर धाम..

श्री श्री गुरू गौरांग जयत: ..

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।

701 स्थानो से आज जप हो रहा है ।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।

जय जय राधे जय जय श्याम । जय जय श्री वृंदावन धाम ।। जय जय राधे जय जय श्याम । जय जय हो वृंदावन धाम ।।

जय राधे । लिलाप्रिया गा रही है और कोई तो गाता हुआ नहीं दिख रहा है । हरि हरि ।

जय जय राधे गाओ अभी । जप में तल्लीन है अच्छा हैं , जप चर्चा मे तल्लीन होना चाहिए । कार्तिक मास है , ब्रजमंडल परिक्रमा हो रही है और आप भी कर रहे हैं । आप भी जुड़े हो । हो कि नहीं ? परिक्रमा में हो कि नहीं ? हरि हरि । चौरासी कोस की परिक्रमा है । चौरासी कोस परिक्रमा करने से 86 लाख जो योनिया है उसमें पुन्हा भ्रमण नहीं करना पड़ता है । पहले ही भ्रमण हो चुका है , कितने भ्रमण हो चुके है ? एक तो हो ही चुका है । किंतु अगर हम चाहते हैं कि पुन्ना पुन्ना ना हो ।

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं । पुनरपि जननी जठरे शयनम्। इह संसारे बहुदुस्तारे कृपयापारे पाहि मुरारे ।। (- शंकराचार्यजी द्वारा रचित भज गोविन्दम् – श्लोक सं.-21)

अनुवाद : हे परम पूज्य परमात्मा! मुझे अपनी शरण में ले लो। मैं इस जन्म और मृत्यु के चक्कर से मुक्ति प्राप्त करना चाहता हूँ। मुझे इस संसार रूपी विशाल समुद्र को पार करने की शक्ति दो ईश्वर।

ऐसा ना हो और भ्रमांड भ्रमिते , भ्रमांड भ्रमन , इस संसार का चक्र , हरी हरी ।

जन्म मृत्यु जरा व्याधि फिर ऐसा नहीं भोगना पड़े । हम नहीं चाहते हैं ऐसे दुख पुनः आये और भगवान ने ऐसी व्यवस्था की है अपना धाम भी वह लेकर आए हैं । गोलोक धाम हो , ब्रह्मांड में स्थापित किया है । हरि हरि । उस गोलोक की , वृंदावन की यात्रा और परिक्रमा हम कर सकते हैं , चौरासी कोस में भी वैसे यह अधिक ही है कुछ लोग अधिक भी परिक्रमा करते हैं , कर चुके हैं । गोवर्धन परिक्रमा , और भी परिक्रमा । हरि हरि । औपचारिक रूप से तो चौरासी कोस के नाम से ही यह परिक्रमा जानी जाती है । भगवान की कृपा से यह कैसे हैं , साधु शास्त्र आचार्य और कर्म की व्यवस्था , शास्त्र की व्यवस्था भगवान ने ही की है । भगवान ने शास्त्र दिए हैं , भगवान ने कर्म दिया है और भगवान ने ही परंपरा की स्थापना इस संसार में की हुई है और परंपरा के आचार्य गुरुवृंद भी हमको शास्त्र पढ़ाते हैं , सुनाते है और कुछ धार्मिक कृत्य करवाते हैं । वैसे ब्रज मंडल परिक्रमा करना ,

स वै पुंसां परो धर्मों यतो भक्तिरधोक्षजे । अहैतुक्यप्रतिहता ययात्मा सुप्रसीदति ॥ (श्रीमद भागवत 1.2.6)

अनुवाद : सम्पूर्ण मानवता के लिए परम वृत्ति (धर्म) वही है, जिसके द्वारा सारे मनुष्य दिव्य भगवान् की प्रेमा-भक्ति प्राप्त कर सकें। ऐसी भक्ति अकारण तथा अखण्ड होनी चाहिए जिससे आत्मा पूर्ण रूप से तुष्ट हो सके।

परो धर्म है । हम क्या कर रहे हैं ? भगवान कर रहे हैं भगवान करवा रहे हैं ।मराठी में बोलते हैं करता करविता कर रहे हैं , करवा रहे हैं हमसे यह परिक्रमा भी वही करवा रहे हैं । हमने परिक्रमा करनी चाहिए इसलिए ऐसा भगवान के मुख से निकल रहा है और ऐसा करने से यह 84 लाख योनिया जो है 84 लाख और कई योनियों से बच सकते हैं । पुनर्जन्म नयती । पुनर्जन्म नहीं , पुनर्जन्म नहीं । ऐसा संभव है जब हम इस ब्रजमंडल जैसी परिक्रमा की व्यवस्था का लाभ उठाते हैं । हम भी जुड़ जाते हैं और (हंसते हुए) इस वर्ष तो भगवान ने और भी कृपा करि है कहो , हम घर पर बैठे-बैठे परिक्रमा से जुड़ रहे हैं । ठीक है । यह तो बहुत ही सुलभ हो चुका है । कुछ ज्यादा जरूरत नहीं थी ।हरि हरि ।

परिक्रमा का पड़ाव भांडीरवन में हुआ । हम भांडीरवन में है , भांडीरवन की जय । भांडीरवन भी एक विशेष वन है जहां कई सारी विशेष विशेष विशेष लीलाएं संपन्न हुई है और राधा कृष्ण का विवाह इसी वन में संपन्न हुआ है । नंद महाराज एक दिन कन्हैया को बाल कृष्ण को साथ लेकर गाय चराने के लिए इस वन में पहुंचे । गाय चर ही रही थी भांडीरवन में नंद बाबा स्वयं रखवाली कर रहे थे , नंद गोधन रखवाला तभी तो कृष्ण कन्हैया थे जन्मे थे , छोटे ही थे आगे भविष्य में स्वयं संभालेंगे , कृष्ण ग्वाले बनेंगे और गायों को चरायेंगे , गोचारण लीला करेंगे लेकिन तब तो कृष्ण छोटे ही थे । एक समय नंद महाराज कृष्ण को यहां लेकर आए और प्रेम कर रहे थे , तुमको एक दिन ग्वाल बाल बनना है ।

ब्रज-जन-पालन, असूर-कुल-नाशन, नन्द-गोधन-रखवाला। गोविन्द माधव, नवनीत-तस्कर, सुन्दर नन्द-गोपाला॥

अनुवाद: कृष्ण व्रजवासियों के पालन कर्त्ता तथा सम्पूर्ण असुर वंश का नाश करने वाले हैं, कृष्ण नन्द महाराज की गायों की रखवाली करने वाले तथा लक्ष्मी-पति हैं, माखन-चोर हैं, तथा नन्द महाराज के सुन्दर, आकर्षक गोपाल हैं।

मेरे गाय रूपी धन का रखवाला तुमको बनना है । ऐसा भाव , कुछ विचार हो सकता है । जब वह भांडीरवन में थे तो अचानक कुछ आंधी , तूफान शुरू हुई और वर्षा भी होने लगी , गायों को भी संभालना था और साथ में कन्हैया भी था । नंद महाराज सोच रहे थे कि मेरे कन्हैया को कोई संभाल सकता है क्या ? इस स्थिती मे , ऐसा वह सोच ही रहे थे तो उन्होंने एक तेजस्वी बालिका को आती हुई देखा , नीली साड़ी पहनी हुई थी और वह भी बालिका ही थी और सुवर्ण वर्ण की थी , ओर सौंदर्य का क्या कहना ? जब वह पास में पहुंची तो नंद महाराज पहचान गए यह राधा रानी है । नंद महाराज ने कहा , " इस को संभालो , इस को संभालो , मैं गायों को देखता हूं या संभालता हूं ।" नंद बाबा ने राधा रानी को कृष्णा को दे दिया । अभी नंद बाबा वहा से गए गायों को देखने , संभालने तब वहां के दृश्य में भी परिवर्तन हुआ , एक तो दोनों भी शिशु ही थे बाल राधिका और बालकृष्ण थे , वह स्वयं वहां पर किशोर और किशोरी बन गए । किशोरावस्था को प्राप्त कर लिया और इस वन की सारी शोभा में परिवर्तन हुआ , शोभा और बढ़ गई । हरि हरि । श्री कृष्णा चैतन्य ।

अभी वैसे यहां मानो विवाह मंडप ही बन गया ऐसा भी कह सकते है ।एक वटवृक्ष के नीचे किशोर और किशोरी पहूच गये । वह वटवृक्ष आज भी है , हम भांडीरवन में दर्शन करते हैं । ब्रह्मा जी वहा पहुंच जाते हैं और ब्रह्मा इस विवाह को संपन्न करते हैं , वरमाला एक दूसरे को पहनाते हैं कृष्ण राधा को और राधा कृष्ण को , ब्रह्मा ब्राह्मण है । स्वयं ब्रह्मा जी पुरोहित बनकर वहा पहुच जाते हैं । ऐसा सौभाग्य प्राप्त होता है या ऐसी एक सेवा करने की उनकी खूब मनोकामना थी , ऐसा अवसर प्राप्त हो इस अभिलाषा के साथ ब्रह्मा ने खूब तपस्या की थी । सूनहरा ग्राम नाम का ग्राम है बरसाने के पास ही सुनहरा ग्राम है । जो सुदेवी और नंद देवी का भी गांव है , वहां पर तपस्या ब्रह्मा ने की थी की राधा कृष्ण की सेवा करें और वही विशेष सेवा उनको आज प्राप्त हुई है पुरोहित होने की , उन्होंने भांडीरवन में वृक्ष के नीचे किशोर किशोरी का विवाह संपन्न कराया । ऐसा यह स्थल है और भी वर्णन है विवाह का लेकिन इतना ही कह सकते हैं , इस लीला के साक्षी कहिए या लिला का स्मरण दिलाने के लिए वही भांडीरवन में ही उसी वृक्षों के बगल में , पास में राधा अनंत बिहारी का दर्शन है । बोलो राधा आनंद बिहारी की जय ।

हम प्रतिवर्ष दर्शन करते रहते हैं परिक्रमा में और उसका फोटो भी हमने छपाया है ब्रजमंडल परिक्रमा किताब में , कृष्णाराधा रानी को कुमकुम पहना रहे हैं ऐसा दृश्य , ऐसा दर्शन है , विशेष दर्शन है । ऐसा दर्शन केवल और केवल भांडीरवन में ही है और कहीं नहीं । भांडीरवन की जय । श्री श्री किशोर किशोरी की जय ।

यह किशोर किशोरी की जोड़ी वैसे शाश्वत है , लीला में तो राधा रानी का विवाह अभिमन्यू के साथ होता है , अन्य गोपीयो का विवाह भी और और गोपो के साथ होता है , ऐसी रचना की है ताकि राधा रानी और गोपियों का संबंध परकीय भाव का संबंध हो । परकीय भाव मे जहां और अधिक आस्वादन होता है , रसीला होता है ।

जय जयोज्ज्वल-रस-सर्व रससार। परकीया भावे याहा, व्रजेते प्रचार॥

अनुवाद : समस्त रसों के सारस्वरूप माधुर्यरस की जय हो, भगवान्‌ कृष्ण ने परकीय-भाव में जिसका प्रचार ब्रज में किया।

वैसे नाम मात्र के लिए अभिमन्यु है और गोवर्धन है ऐसे कई सारे गोपों को बीच में खड़ा किया है , दिखाया गया है किंतु वैसे यह गोपीया और राधा रानी अभिमन्यु और गोपको छूती भी नहीं और ना ही अभिमन्यु जैसे अन्य गोपियो को छुते हैं । यह नाटक है यह लीला है उनके साथ उनका विवाह हुआ ऐसा दर्शाया गया है । राधा कृष्ण , वल्लभ वल्लभी , राधा वल्लभ , कृष्णा वल्लभी यह जो रिश्ता नाता है , यह माधुर्य रस है यह तो शाश्वत है । भगवान ने उसको भी दर्शाया है । भगवान ने अपना विवाह राधा रानी के साथ संपन्न किया है । हरि हरि ।

निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ।

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