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जप चर्चा
12 मई 2020
पंढरपूर धाम .
श्री गुरु गौरांग जयतः
772 स्थानो से जप कर रहे थे और अब जप चर्चा या जप कथा जो भी आप कहना चाहोगे हम प्रारम्भ कर रहे है । आप सभी श्रोताओं का स्वागत है । जब हम जप करते है तो हम सभी जपकर्ता स्वयंम ही वक्ता बन जाते है और स्वयंम ही श्रोता बन जाते है । हम ही बोलते है, हम ही किर्तन करते है , और फिर हम ही श्रवण करते है , और हम ही बन जाते है श्रोता । समझ गये न आप वक्ता- श्रोता। और फिर स्मरण भी करते है , स्मरण करने वाले भी हम ही होते है । कई सारी भुमिकाऐं श्रवणः किर्तनं विष्णोः स्मरणं निभाते है । किंतु कथा के समय कोई बन जाता है वक्ता और हम बन जाते है श्रोता । और फिर वैसे ही आपको श्रोताओ को ही बन जाना चाहीए वक्ता । जो भी सुन लिया या श्रवण किया उसे औरो को सुनाना चाहीए । तो फिर श्रवण से हुआ किर्तन । अब 780 स्थानों से भक्त श्रवण कर रहे है । तो याद रखिए , यह आज का संदेश कहना है तो वैसा भी समझ सकते हो , “ श्रोता को बनना है वक्ता ” ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
यह कहने वाले भी हम वक्ता बन जाते है । तो फिर औरों को भी हम किर्तन सुना सकते है। जप करते समय तो हम स्वयं के लिए जप करते है, यह थोडा अंतर है जप और किर्तन मे, जप करते समय हम स्वयंम ही बन जाते है वक्ता और श्रोता, स्वयं के कल्याण के लिए हम थोडे ‘भजनांदी’ बन जाते है । “ भजनांदी ” भजन मे आनंद ।
किंतु फिर यह नाम सुना या नाम का महीमा सुनी तो फिर हमको वक्ता बनके यह नाम औरोंको भी सुनाना है । या इस कथा को इस किर्तन को हमे औरों को सुनाना है औरों के कल्याण के लिये । जब हम अन्यों को सुनाते है तो हम बन जाते है गोष्ठीआनंदी।
आनंद के दो प्रकार है , एक भजन का आनंद भजनांदी और गोष्ठीआनंदी । गोडीय वैष्णव या ईस्कोन मे हम दोनो करते है , दोनो करना अनिवार्य है । भजनांदी भी हो और गोष्ठीआनंदी भी । भजन मे आनंद लेंगे तभी तो इस भजन के आनंद को हम औरो के साथ बाँट सकते है , गोष्ठीआनंदी के समय गोष्ठी ।
आज हम आपका अधिक समय नही लेंगे और यह जो प्रस्तावना चल रही है हमारी इसे समाप्त करके आज के विषय की और मुड़ते है , और आज का विषय है “राय रामानंद” या “रामानंद राय” ।
कल भी हम ने राय रामानंद और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की संवाद के बारे मे चर्चा की है । एक अंश उस संवाद का है आज का विषय । आज तो रायरामानंद का तिरोभाव उत्सव है । एक होता है अविर्भाव और दुसरा होता है तिरोभाव ।आज के दिन जगन्नाथ पुरी धाम से ही उन्होंने प्रस्थान किया , अंतर्धान हुये राय रामानंद । राय रामानंद कोई बद्ध जीव नही थे हम जैसे । वह नित्य मुक्त आत्मा ही थे ,कृष्ण के नित्य लिला के नित्य परिकर रायरामानंद थे । कृष्ण लिला की विशाखा ही बने थे रायरामानंद और कल आपको यह भी समझाया था कि रायरामानंद के पिताश्री थे भवानंद । और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने भवानंद प्रभु को कहा था , “ तुम कोन हो ? , तुम पांडु हो, पांडु हो तुम , एक समय के पांडु , एक समय महाभारत के या फिर कृष्ण लिला के समय के पांडु ही तुम अभी भवानंद के रुप मे प्रगट हुये हो । और तुम्हारी पत्नी अब जो है वह एक समय की कुंती महाराणी ही प्रगट हुई है ” ।
उनके पुत्र थे पाच और सबसे बडे पुत्र थे रायरामानंद । तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जब दक्षिण भारत की यात्रा मे जाने की तैयारी कर रहे थे तो सार्वभौमभट्टाचार्य ने श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को विशेष निवेदन किया की आपके प्रवास मे आप रायरामानंद को मिलो , एक विशेष भक्त है ऐसा थोडा महीमा भी सुनाया था । श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की दक्षिण यात्रा प्रारम्भ हुई । और शुरुवात मे ही श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने जगन्नाथपुरी से प्रस्थान किया , उडीसा से जैसे ही उन्होने आन्ध्र प्रदेश मे प्रवेश किया और गोदावरी के तट पर आये , श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की वही अनायास रामानन्द राय से भेंट हुई । ‘अनायास' मतलब बिना प्रयास रामानंदराय से मुलाकात हो गई । उन्हे कोई पुछ्ताछ नही करनी पडी , कहाँ है ? कौन है ? रायरामानंद ? ऐसा पुछ नही रहे थे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु , तो मिल ही गये रायरामानंद ।
रायरामानंद वहा गोदावरी के तट पर स्नान के लिए कही सारे पुरोहीत , ब्राम्हणो के साथ और मंत्रियो के साथ वहा पहुचे थे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने रायरामानंद को देखा और उनको पता चला यह रायरामानंद होने चाहिए । श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के मन मे रामानंदराय को देखते ही विचार आया की चलो अब चलते है , मिलते है अभी , मै दौड कर उनके पास जाता हु और उनसे मिलता हु । पर फिर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने सोचा की नही नही मै सन्यासी हु , थोडा गंभीर होना चाहिए मुझे । मुझे थोडा गांभिर्य का प्रदर्शन करना चाहिए ऐसा उतवला मन कैसे दौड रहा है ? भावुकता का प्रदर्शन कर रहा है ? ऐसा सोचके श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जहॉ थे वही बैठ गये । इतने मे फिर रायरामानंद ने भी देखा श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की ओर , चैतन्य महाप्रभु का प्रकांड देह औरो न ऐसा।
बहु-कोटि चन्द्र जिनि वदन उज्ज्वल ।
उनके सर्वांग से एक तेज निश्रित हो रहा था तो रायरामानंद स्वयं ही दौड पडे उस व्यक्ती की और उनको समझ मे आया की यह व्यक्ती स्वयंम श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु है । उनके पास आये साष्टांग दंडवत किया और श्री चैतन्य महाप्रभु उठे और कहा उठो उठो , तो जैसे ही उठे रायरामानंद उस समय श्री चैतन्य महाप्रभु विनम्र भाव का अनुभव कर ही रहे थे , कि रामानन्द राय कितने विनम्र है। उनके हावभाव से पता चलता ही है , उनके शारीरीक हावभाव कहो या फिर चेहरे पर क्या भाव है या और भी उनके शरीर मे उन्होने रोमांच देखा तो श्री चैतन्य महाप्रभु ने पुछा आप रायरामानंद हो ?
वैसे कृष्ण दास कविराज गोस्वामी ने लिखा है की चैतन्य महाप्रभु आगे बढकर उन्हे आलिंगन देना चाहते थे लेकिन उन्होने सोचा आलिंगन देने के पहले थोडी पुष्टि करे , लगते तो है वैसे ही हैं जैसा वर्णन सुना इनके संबंध मे लेकिन आलिंगन करने के पहले थोडा निश्चित तो कर लेते है की यही रायरामानंद हैं अथवा नहीं । तो उन्होने पुछा , “ आप रायरामानंद हो ?” वैसे चैतन्य चरितामृत मे लिखा है ,रायरामानंद ने कहा , "हाँ हाँ , मै ही तो हु वो शुद्र , अधम , रायरामानंद के संबंध मे आपने जो सुना होगा वही अधम ,वही पतित, वह पामर मै ही तो हूँ । और जब श्री चैतन्य महाप्रभु ने यह बात सुन ली और यह निश्चित हो गया की यही रायरामानंद है , तो चैतन्य महाप्रभु दौड पडे, और रायरामानंद भी चैतन्य महाप्रभु की ओर दौडे और एक दुसरे को बाहुपाश मे भर लिया और फिर क्या कहना जो उनके हावभाव और यह भक्ति के विकार बिलकुल स्पष्ठ थे । सारे भावों का प्रदर्शन हुआ । जो स्पष्ट रुप से हर कोई देख सकता है उसको कहते है भक्ति , उसको ही कहते है भक्तिभाव , रोमांच कम्प अश्रु तरंग इत्यदि । और फिर जब एक दुसरे को आलिंगन दे रहे थे इससे पता चलता है कितना घनिष्ठ संबंध उनका है , और कितना है प्रेम एक दुसरे के प्रति ।
भगवान का भक्त से और भक्त का भगवान से प्रेम द्विमार्गीय यातायात होती है । ऐसा नही की हम ही भगवान से प्रेम करते है , नही नही भगवान भी हमसे प्रेम करते है । वैसे कभी कभी हम प्रेम करना छोड देते है , हम काम मे लगे रहते है , लेकिन भगवान का प्रेम तो बना ही रहता है । तो जब गाढ आलिंगन दे रहे थे वो भावविभोर हुए , बाह्यज्ञान नही रहा और दोनो धडाम से धरती पर गिर गये और लौटने लगे और बहुत समय के उपरांत जब होश मे आये तो फिर एक दुसरे से वार्तालाप करने लगे । कुशल मंगल हो ? , कैसे हो ? इत्यादी । वहाँ लिखा है क्या क्या बाते हुई । चैतन्य महाप्रभुने कहॉ, मुझे सार्वभौमभट्टाचार्य ने कहा कि मुझे आपसे जरुर मिलना चाहिए । तो रायरामानंद ने कहा सार्वभौम भट्टाचार्य कितने कृपालु है , वे वहाँ जगन्नाथपुरी मे हैं लेकीन वह मेरा स्मरण करते है , उन्होने कहा कि आप मुझे मिले ।
रामानन्द राय का चरित्र इतना जो सुन लिया कुछ अंदाजा आ जाता है । तो फिर हरदिन के भाती मध्यान के समय ब्राम्हण मिले श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को और घर ले गये भिक्षाके लिये । और वैसे यह तय हुआ था चैतन्य महाप्रभु और रायरामानंद के बिच की हम सायंकाल को मिलते है । तो सायंकाल को मिलने के लिये आ गए । और वैसे हर सायंकाल को मिलते रहे । वहा 8-10 दिन रुके श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु , केवल और केवल रायरामानंद के कारण इतने दिन एक स्थान पर रुके श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु । नही तो और स्थानो मे तो चैतन्य महाप्रभु एक रात, पुरी रात भी नही आधी रात मे आगे बढते थे । रात मे आगे नही बढते तो क्या होता प्रातः काल मे सारा गॉव उनके साथ जाने के लिए तैयार हो जाता , फिर कोन समझायेंगा बुझायेंगा तो इसीलिये अच्छा है की सब सोये है तो चलते है । आसान होता है आगे बढने के लिये ।
लेकीन यहॉ कोहुर नाम का स्थान है , गोदावरी के तट पर ।
हम भी गये है वहॉ पदयात्रा जब गई थी । श्रील प्रभुपाद भी गये थे । वहॉ गोडीय मठ भी है । 1972 मे श्रील प्रभुपाद विदेश के भक्तो के साथ उस स्थान पर गये जहॉ रायरामानंद और चैतन्य महाप्रभु का सवांद हुआ करता था । तो वहॉ हर रात्री को अलग अलग विषय को लेकर चर्चा हुआ करती थी । कल आपको बताया प्रश्न उत्तर , फिर हर रात्री को प्रश्न उत्तर चलते रहे । वो साध्य साधन का निर्णय किजीए । तो चैतन्य महाप्रभु जिज्ञासु बनते और रामानंदराय से पुछते , रायरामानंद से बुलवाते थे सारी बाते । तो वक्ता कौन ? रायरामानंद । श्रोता कौन ? स्वयंम भगवान श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु । एक विशेष लम्बी वहॉ चर्चा हुई , संवाद हुआ , विचार विनीमर्श हुआ । साध्य का निर्णय किजीए ? तो रायरामानंद कहने लगे वर्णाश्रम पद्ध्ती का उलंघन करना ही साध्य है । तो चैतन्य महाप्रभुने कहॉ यह बाह्य है ।
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
यह साध्य है , नही नही यह है लेकीन प्रधान बात नही है , यह गौण है या बाह्य है ।
यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् ।
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् ll
यह तो ठिक है बाह्य । आगे बढते हुये और सवांद को आगे बढाते हुये रायरामानंद कहे कर्ममिश्र भक्ति बाह्य , ज्ञानमिश्र भक्ति बाह्य ,दास्यभक्ति हॉ यह है । लेकीन और आगे बढते हुए और कहते साख्यभक्ति , फिर वात्सल्य भक्ति , फिर माधुर्यभक्ति । इस माधुर्य रस का वर्णन किया गया , कहॉ गया की यह साध्य है । तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कहॉ , हॉ यह है । और फिर रायरामानंद से कई सारी बाते कहलवाई माधुर्य रस के संबंध मे । माधुर्य रस की बात करनी है तो फिर राधा की बाते , महाभावा राधा ठाकुराणी , महाभाव को प्रगट करने वाली कौन है ? राधा ठाकुराणी है । तो रायरामानंद राधा के संबंध मे राधा के माधुर्य रस बताने लगे , तो फिर राधा भी है , गोपीया भी है , यह जो भाव है यह सर्वोच्य भाव है , सर्वोच्य भक्ति है l
च.च आदि लीला 1.4
समरपयितुं उन्नतोज्जवल रसाम,स्व भक्तिम श्रियं
उज्जवल उन्नत रस का प्रसारण करने हेतु प्रकट हुए थे ।तो चैतन्य महाप्रभु ने कहा" और कहो और कहो" गोपनीय बातें होने लगी और एक समय आया चैतन्य महाप्रभु ने कहा बस बस और राय रामानंद का मुख बंद कर दिया। इससे आगे कहोगे तो लोग संभ्रमित हो सकते हैं ,उनकी समझ में नहीं आएगा, अपराध भी कर सकते हैं ,या इस प्रेम को सांसारिक कामुकता समझ सकते हैं। दुनिया वालों के पल्ले नहीं पड़ेगा ।यह चैतन्य महाप्रभु और राय रामानंद के मध्य का जो संवाद है,वह चैतन्य चरितामृत का विशेष संवाद या विषय वस्तु है ।इस प्रकार की माधुर्य रस की चर्चा कम पाई जाती है । रूप गोस्वामी के साथ जब प्रयाग में चैतन्य महाप्रभु की चर्चा हुई तो वहां पर भी कुछ झलक, कुछ प्रदर्शन होता है माधुर्य रस का और जब सनातन गोस्वामी के साथ भी वाराणसी में चर्चा हुई तब भी ।
चैतन्य महाप्रभु सुना करते थे, जगन्नाथपुरी में कृष्ण कर्णामृता को सुनते थे ,गीत गोविंद को सुनते थे, विद्यापति की कविताएं सुनते थे, और श्रीमद भागवतम का भी श्रवण करते थे। और राय रामानंद के जगन्नाथ वल्लभ नाटक को भी सुनते थे ।तो वहां पर भी कुछ माधुर्य रस की चर्चाएं हुई। गोपनीय लीलाएं सुना करते थे पर संवाद के रूप में चैतन्य महाप्रभु और राय रामानंद जो कोहूर में गोदावरी के तट पर संवाद हुआ यह अति विशेष है ।जगन्नाथ रथ यात्रा के समय भी संवाद आते हैं। रथ यात्रा के समक्ष चैतन्य महाप्रभु नृत्य कर रहे हैं। वहां पर भी कुछ चर्चाएं हैं चैतन्य चरितामृत अन्त्य लीला में । क्योंकि वह धीरे-धीरे राधा भाव का प्रदर्शन कर रहे हैं
।पहले तो थे कृष्ण ....."हरे कृष्ण नाम गौर करीला प्रचार" हरे कृष्ण नाम का प्रचार कर रहे हैं। धर्म की स्थापना का कार्य किसका है?धर्म की स्थापना कृष्ण करते हैं। तो वह है राधा और कृष्ण तो कृष्ण को जो करना चाहिए वह उन्होंने कर लिया आधी लीला और मध्य लीला में ।अन्त्य लीला में (जगन्नाथपुरी में ) जो उनकी गोपनीय प्राकट्य का कारण है.... राधा को समझना , राधा की महिमा को और राधा के भावों को समझना है ।राधा को समझने के लिए राधा ही बन गए ।
"श्री कृष्ण चैतन्य राधा कृष्ण नहीं अन्य"
अन्त्य लीला में (जगन्नाथपुरी )महाप्रभु में कृष्ण तो है पर आगे राधा हैं ।जगन्नाथपुरी में कृष्ण के रूप में चैतन्य महाप्रभु ज्यादा कुछ नहीं कर रहे ।राधा के रूप में ,राधा के भाव में ,
राधाभावद्युति स्व ललितम नवमी कृष्ण स्वरूपम (च,च आदि लीला 4.56) राधा के भाव को समझना है ,राधा ही बनना है। और कृष्ण को खोजना है। इसमें सहायता करने के लिए चैतन्य महाप्रभु सभी भक्तों को गोलोक से अपने साथ ही ले आए , और उन भक्तों में से अग्रगण्य हैं राय रामानंद। चैतन्य महाप्रभु ने राय रामानंद को एक दिन विशेष दर्शन दिए। पहले तो सन्यासी जैसे दिखते थे प्रखंड देह अरुण वसन, पर एक दिन वैसे नहीं दिखे गौरांग ,चैतन्य ....
श्री कृष्ण चैतन्य राधा कृष्ण नहीं अन्य
यह जो बातें हम सुनते हैं ,हम पढ़ते हैं ,कंठस्थ करते हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ही हैं राधा और कृष्ण। राय रामानंद विशाखा है ।उन्होंने कृष्ण देखें और राधा देखी तो विशाखा के सानिध्य में कैसे अपने मूल स्वरूप को छुपा सकते हैं ।अब तो बने हैं चैतन्य राधा और कृष्ण । मिश्रण हुआ है, दो के एक हुए हैं पर है तो वे दो ही।उनको विशाखा को ऐसे दर्शन देना पड़ा विशाखा को। वृंदावन का दृश्य और दर्शन है तो यह कोहूर वाले कहते हैं कि यह हमारा कोहूर गोदावरी के तट पर दक्षिण का वृंदावन है ।एक वृंदावन तो आपका यूपी में है वहां भी राधा कृष्ण की लीलाएं हैं और फिर आंध्र प्रदेश में गोदावरी के तट पर भगवान ने राधा कृष्ण के रूप में दर्शन दिया तो हमारा धाम भी वृंदावन है। चैतन्य महाप्रभु को राय रामानंद कह रहे थे आप थोड़े दिन रुक जाईये। तो इसके उत्तर में चैतन्य महाप्रभु ने कहा थोड़े दिन क्या मैं तो तुम्हारे साथ सब दिन रहना चाहता हूं और उन्होंने कहा कि अभी मैं दक्षिण भारत की यात्रा पर जा रहा हूं और जैसे ही मेरी यात्रा पूरी होगी मैं जगन्नाथपुरी आ जाऊंगा तब तुम भी जगन्नाथपुरी आ जाना और मेरा बाकी जीवन मैं तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूँ।
तुम सेवानिवृत्त हो जाओ अभी तुम गवर्नर हो और फिर हम साथ में रहेंगे जगन्नाथपुरी में और फिर ऐसा ही हुआ चैतन्य महाप्रभु जैसे ही जगन्नाथपुरी लौटे अपनी दक्षिण भारत की यात्रा से राय रामानंदी वहां पहुंच गए और तब से अंतर्धान होने तक की लीला के समय तक वे दोनों साथ थे ।आज वैसे राय रामानंद का अंतर्ध्यान होने का दिवस है चैतन्य महाप्रभु पहले अंतर्धान हुए बाद में राय रामानंद। दोनों साथ में रहे। चैतन्य महाप्रभु ने अपना निवास स्थान काशी मिश्र भवन में बनाया। ऐसी व्यवस्था की राजा प्रताप रूद्र ने। गंभीरा जो कि एक गंभीर स्थान है। देखा है आपने? चैतन्य महाप्रभु अपने कुछ विशेष परिकरों के साथ वहां रहा करते थे। एक तो स्वरूप दामोदर थे, राय रामानंद थे ,सार्वभौम भट्टाचार्य थे, और गोविंदास भी सेवा के लिए पहुंच गए। जगन्नाथपुरी में और भी कई भक्त थे जैसे हरिदास ठाकुर। वहां सब रहा करते थे पर गंभीरा में चैतन्य महाप्रभु के साथ रहने वाले राय रामानंद थे।पूरी रात भर रहते थे उनके साथ ,लेकिन पूरी रात चैतन्य महाप्रभु की विरह में बीतती थी।कृष्ण कहां है? कृष्ण कृष्ण कृष्ण ......
वृंदावन में जो राधा का भाव है ,कृष्ण के पास में ही है पर सोचती हैं कृष्ण चले गए तो रोना प्रारंभ करती हैं। ऐसा हुआ प्रेम सरोवर के तट पर भी ।ऐसे लीलाएं हुई रोज का है ऐसा ही था ।वही हाल हो रहा था चैतन्य महाप्रभु का क्योंकि अब वह राधा है ।तो इस विरह भाव की पीड़ा से व्यथित चैतन्य महाप्रभु को सांत्वना देने वाले यह दो लोगों की भूमिका थी ।स्वरूप दामोदर उनके लिए विशेष लीलाओं का गान करते और चैतन्य महाप्रभु को सांत्वना देने का प्रयास करते। राय रामानंद कथा सुनाते ,लीलाएं सुनाते ,गीत गोविंद की लीलाएं ,कृष्ण कर्णामृत की लीलाएं और उनके खुद के जगन्नाथ वल्लभ नाटक को भी सुनाते। उसी तरह जैसे राधा के दाएं और बाएं तरफ ललिता और विशाखा होती हैं। राधा के भावों की पुष्टि,वे विरह के समय राधा को संतावना देती हैं। वृंदावन में जो ललिता विशाखा करती हैं ।अब गंभीरा बन गया वृंदावन ।जगन्नाथपुरी भी वृंदावन है गुंडिचा मंदिर भी है। रथ खींचकर ले जाते हैं रथ को खींचने वाले राधा गोपियां और बृजवासी हैं।
राधा और गोपियां रथ को खींचकर नीलांचल से सुंदराचल ले जाते हैं। वृंदावन सुन्दरआचल है। जगन्नाथपुरी वृंदावन भी है, नवद्वीप भी है ,और द्वारिका भी है ऐसे कई धामों का संगम है। वहां राय रामानंद की एक विशेष सेवा थी चैतन्य महाप्रभु कहते थे कि मैं सन्यासी होने के उपरांत भी कभी स्त्री की मूर्ति देखता हूं तो मुझ में विकार उत्पन्न होते हैं (पर यह सच नहीं पर चैतन्य महाप्रभु ऐसा कहते थे) पर राय रामानंद एक पक्के ब्रह्मचारी थे ।उनकी एक सेवा थी कि जगन्नाथ स्वामी की प्रसन्नता के लिए, उन को रिझाने के लिए देवदासियों को तैयार करते थे ।गीत गोविंद का गान होता था, राय रामानंद का एक मंडल था। कई युवतियों को तैयार भी करते थे। नाटक के जो कलाकार थे( देवदासियां) या उनको तैयार करते थे यहां तक उनको नहलाते भी थे, वस्त्र भी पहनाते थे और श्रृंगार भी स्वयं करते थे।
उनके लिए कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि वह इस द्वंद से मुक्त थे कि वह स्त्री है या पुरुष ।द्वंदातीत से परे थे। कोई अन्यथा विचार और उपभोग के विचार कभी उत्पन्न नहीं हुए उनमें। जगन्नाथ की प्रसन्नता के लिए ही वह सेवा करते थे। इसीलिए चैतन्य महाप्रभु ने कहा देखो देखो राय रामानंद जो है वह प्रेम की मूर्ति है ।इसमें काम की गंध भी नहीं है। राय रामानंद की कोठी है या निवास स्थान कह सकते हैं जो कि ग्रैंड रोड पर है जगन्नाथपुरी में जगन्नाथ वल्लभ उद्यान के नाम से जानी जाती है ।राय रामानंद का निवास स्थान है जब हम परिक्रमा में जाते हैं तो आज भी देखते हैं ।
आज के दिन राय रामानंद नित्य में प्रविष्ट हुए। श्री कृष्ण की लीला में प्रवेश किया ।तो यह भी लीला है। चैतन्य महाप्रभु और कृष्ण दोनों की लीला नित्य है । कुछ व्यक्तित्व हैं जिनकी दोनों ही लीलाओं में भूमिका है। ऐसा नहीं कह सकते कि उन्होंने चैतन्य महाप्रभु की नित्य लीला को त्यागकर कृष्ण की नित्य लीला में प्रवेश किया। ऐसा नहीं है। दोनों ही लीलाएं एक ही साथ में हैं और दोनों ही लीलाओं में राय रामानंद और विशाखा उन दोनों की बड़ी भूमिका है ।
राय रामानंद तिरोभाव तिथि महोत्सव की जय ।।
श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय।। जगन्नाथ पुरी धाम की जय ।।
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।।