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*हरे कृष्ण* *जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से,* *4 अप्रैल 2021* *(जय) राधा माधव (जय) कुंजविहारी।* *(जय) गोपीजन वल्लभ (जय) गिरिवरधारी ।।* *(जय) यशोदा नंदन (जय) व्रजजनरंजन।* *(जय) यमुनातीर वनचारी ।।* अनुवाद:-वृन्दावन के कुंजवनों में विहार करने वाले श्री श्रीराधामाधव की जय हो! श्रीकृष्णगोपियों के प्रियतम तथा गिरिराज पर्वत को धारण करने वाले श्रीकृष्ण की जय हो!यशोदा के प्रिय पुत्र श्रीकृष्ण की जय हो!तथा समस्त व्रजवासियों के प्रिय हैं और यमुना के तट पर स्थित वनों में विचरण करने वाले श्रीकृष्ण की जय हो! *जय ॐ विष्णुपाद परमहंस परिव्राजकाचार्य अष्टोत्तरशत श्री श्रीमद्कृष्णकृपाश्रीमूर्ति अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद की... जय!* तो प्रभुपाद कहा करते थे, *जय ॐ विष्णुपाद परमहंस परिव्राजकाचार्य अष्टोत्तरशत श्री* *श्रीमद्कृष्णकृपाश्रीमूर्ति भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर श्रील* *प्रभुपाद की... जय!हरिबोल!* आज 4 तारीख है, और आज के दिन ही सायंकाल को इस उत्सव का समापन हुआ था। वैसे श्रील प्रभुपाद प्रातः काल और सायंकाल को प्रोग्राम किया करते थे। लेकिन उन दिनों में मैं तो प्रात काल: में उस प्रोग्राम में सम्मिलित नहीं हो रहा था। तो कुछ उत्सव को पुनर्जीवित और पुनः प्रस्तुत करने का प्रयास ५ मार्च से चल रहा हैं। आज यह करते-करते 11 दिन बीत गए हैं।आज उस हरे कृष्ण उत्सव का 11 वा दिन है। कभी-कभी तो सुबह और शाम को उसका प्रस्तुतीकरण होता था। आज मैने जय राधा माधव गाया, क्योंकि उस 1971 के उत्सव के प्रवचन के प्रारंभ में श्रील प्रभुपाद इस भजन को जरूर गाया करते थे।और फिर वह प्रेम ध्वनि भी गाते जैसे मैंने अभी सुनाई। उस समय श्रील प्रभुपाद भी जय कहते थे। वृंदावन धाम की जय! तो आज प्रातः काल में चर्चा हो रही हैं और उसी के साथ सायंकाल में भी होने वाली हैं, जो अभी यहां संपन्न हो रहा है। इसके अंत में आपको सूचनाएं दी जाएगी की आज के दिन जो हरे कृष्ण उत्सव का 11 वा और समापन का दिन था,उस दिन एक भव्य शोभायात्रा का आयोजन हुआ था। जिसकी घोषणा कल सायं काल को 3 अप्रैल के हरे कृष्णा फेस्टिवल में की गई।मतलब आज सायंकाल को शोभायात्रा संपन्न होगी। उसकी शुरुआत यहां से होगी और समापन यहां पर होगा तो ऐसी सूचनाएं दी गई थी।मैं भी उस शोभायात्रा में सम्मिलित था और उसी में राधा कृष्ण के विग्रह विराजमान किए हुए थे और प्रभुपाद शोभा यात्रा के साथ में चल रहे थे। और कीर्तन तो हो ही रहा था! *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम* *हरे हरे।।* उन दिनों में विदेश के जो भक्त थे, जिन्हें वाइट एलीफैंट कहते हैं,उस समय यात्रा में नाच रहे थे और सभी का मन मोह रहे थे।यह शोभायात्रा गिरगांव चौपाटी पहुंच गई,जहां मरीन ड्राइव है, मुंबई में समुद्र के तट पर गिरगांव चौपाटी में मंच बनाया गया था और वहा प्रोग्राम हुआ और वहां पर कथा सुनाइ गई। अब मुझे अधिक याद नहीं कि प्रभुपाद ने क्या क्या कहा , लेकिन एक बात मुझे याद है जिसमें प्रभुपाद वैकुंठ की बात कर रहे थे। प्रभुपाद कह रहे थे कि, चलो बैक टू गौडहेड। कह नहीं रहे थे,अभियान छेड़ रहे थे। हमारे देश में चलो दिल्ली, या चलो मंत्रालय, यहां चलो, वहां चलो, इस मैदान में चलो, ऐसी बातें चलती रहती है। लेकिन प्रभूपाद यह अभियान छेड़ रहे थे, कौन सा अभियान था? कि वैकुंठ चलो, भगवद् धाम चलो!अंतिम दिवसीय कार्यक्रम हो रहा है,उसमें श्रील प्रभुपाद याद दिला रहे थे कि अंततोगत्वा हमें अपने घर लौटना है। हमारे परम माता-पिता जहां रहते हैं हमें वहां जाना है! इस पर प्रभुपाद जोर दे रहे थे। गिरगांव चौपाटी के शोभायात्रा के अंतर्गत जो उत्सव मनाया जा रहा था उसमें प्रभुपाद यह कह रहे थे, सायं कालीन सत्र संपन्न हुआ ही था जो कि बड़ा ही यशस्वी रहा।यह मैं ही नहीं कह रहा हूं! प्रभुपाद ने कहा! फिर बाद में उसी दिन उनके शिष्य ने एक पत्र लिखा था,4 अप्रैल को, जिसको मैंने मेरे ग्रंथ मुंबई इस माय ऑफिस में भी लिखा है। अमेरिकन साधुज इन बोम्बे इस अध्याय में प्रभुपाद ने उनके शिष्य वैकुंठनाथ को पत्र लिखा जो कि गृहस्थ थे,जिनका विवाह प्रभुपाद ने करवाया था।उस समय उनहोने वैकुंठनाथ को लिखा की, हम यहां भारत में एक विशाल उत्सव मना रहे है, जिसमें 20 30 हजार लोग एकत्रित होकर कीर्तन सुन रहे हैं और प्रवचन सुन रहे हैं और वह प्रसाद भी ग्रहण कर रहे है। 50 वर्ष पूर्व प्रभुपाद ने लिखा था कि यहां मुंबई का प्रचार और उत्सव बड़ा ही यशस्वी रहा। कई सारे लोग,कई सारे विशेष लोग कृष्णभावना में या हरे कृष्ण आंदोलन में रुचि ले रहें हैं। और इस पत्र के अंत में लिखा कि हम तुरंत ही मुंबई में एक परमनेंट हरे कृष्णा सेंटर प्रारंभ करने जा रहे है। हरि हरि। तो इतने दिनों से श्रील प्रभुपाद इस उत्सव के अंतर्गत विचार कर रहे थे और अपने देशवासियों को प्रोत्साहित कर रहे थे कि, आप इस हरे कृष्ण महामंत्र के आंदोलन को समझो और उनसे कह रहे थे, *भारत भूमि जन्म होईले जाए जन्म सार्थक करी कर परोपकार* महाप्रभु ने कहा हैं कि हें भारतीयों! क्या करो? जन्म सार्थक करो! कैसे करोगे जन्म सार्थक? करी परोपकार! परोपकार करोगे तो तुम्हारा जन्म सार्थक होगा और प्रभुपाद यह भी समझा रहे थे कि, कृष्ण भावना को स्वीकार करना और उसका प्रचार प्रसार करना और उसकी स्थापना करना यही परोपकार का कार्य है। वैसे जय श्री राम और जय श्री कृष्ण यह हमारे देश में उस समय चल ही रहा था और चलना भी चाहिए। स्वागत है! किंतु श्रील प्रभुपाद श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को सबके सामने ला रहे थे। वैसे पाश्चात्य देशों में तो सबको बता चुके थे और अब भारत में उनके पाश्चात्य शिष्यों के साथ आए थे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को सबके सामने प्रस्तुत कर रहे थे। वैसे यह आंदोलन, हरे कृष्ण आंदोलन! यह श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का ही आंदोलन है। और कलिकाल में प्रगट होने वाले श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ही श्री कृष्ण है! तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने जैसे भक्ति की उसी भक्ति को व्रज भक्ति को यानी वृंदावन की भक्ति या फिर, जैसे गोपियों ने भक्ति कि,या राधा रानी जैसी भक्ति करती है ऐसी भक्ति को यानी शुद्ध भक्ति सब को सिखा रहे है और हरे कृष्ण महामंत्र सबसे बुलवा रहे है। और वैसे भी प्रतिदिन प्रभुपाद अपने शिष्यों को भेजा करते थे, कीर्तन के लिए,नगर संकीर्तन के लिए। ताकि उस उत्सव का प्रचार हो,सायंकाल सत्र में लोगो को बुलाने के लिए। भक्त जाते थे, कीर्तन करते थे, घोषणा करते थे। श्रील प्रभुपाद यह कीर्तन भी प्रस्तुत कर रहे थे। वैसे तो कीर्तन ही इस कार्यक्रम के केंद्र में था। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।* उस कार्यक्रम में प्रभुपाद शिक्षित और दीक्षित कर रहे थे। कुछ ने दीक्षा भी ली। जैसे मैंने और राधानाथ महाराज ने दीक्षा ली। श्रील प्रभुपाद शिक्षा तो दे ही रहे हैं और हरे कृष्ण महामंत्र सिखा रहे थे। हरे कृष्ण महामंत्र का परिचय करा रहे थे। हरि हरि। मायापुर धाम की जय। पहली बार मायापुर धाम की चर्चा हो रही थी। मायापुर धाम का परिचय कराया जा रहा था। पहले तो अयोध्या धाम चलता था। अयोध्या धाम की जय। वृंदावन धाम की जय। मायापुर वह क्या होता है? माया का पुर। तो कोई नहीं जानता था। कुछ बंगाली जानते होंगे। कुछ उड़िया लोग जानते थे। श्रील प्रभुपाद ने मायापुर को प्रकाशित करने का भी कार्य किया ताकि पूरी दुनिया मायापुर धाम को जान सके। जब उत्सव संपन्न हुआ था, तब 1971 चल रहा था। 1972 में श्रील प्रभुपाद ने देश और विदेश के, संसार भर के शिष्यों को मायापुर बुलाया। वहां गौर पूर्णिमा उत्सव संपन्न हुआ। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का आविर्भाव तिथि महोत्सव मायापुर में संपन्न हुआ।सारे संसार को ज्योतिर्गमय किया *तमसो मा ज्योतिर्गमय* जो अंधेरे में था, अज्ञान में था।मैं चैतन्य महाप्रभु के संबंध में बिल्कुल नहीं जानता था। मायापुर को नहीं जानता था या चैतन्य महाप्रभु का नाम नही सुना था। जैसे महाराष्ट्र में तुकाराम हुए, राजस्थान में मीराबाई हुई, पंजाब में नानक हुए और वृंदावन में सूरदास हुए। वैसे एक संत और महात्मा हुए जिन्होंने सन्यास भी लिया था, वे थे चैतन्य। तो ऐसा परिचय हुआ करता था। जब मैं प्राथमिक स्कूल में था। हमारी पाठ्य पुस्तक में एक अध्याय था जिसका शीर्षक चैतन्य था। तो उसमें भी चैतन्य महाप्रभु का ऐसा ही परिचय था। चैतन्य महाप्रभु एक संत रहे और भक्त रहे किंतु श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु स्वयं भगवान है यह किसी ने नहीं बताया। गौरंग गौरंग गौरंग। वह गौर हरि हैं या वह गौर भगवान है। यह जो गौर तत्व है या पंचतत्व भी है, श्रील प्रभुपाद ने इसको भी प्रकाशित किया। इस हरे कृष्ण उत्सव में यह भी चल रहा था। श्रील प्रभुपाद शिक्षा दे रहे हैं। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु कौन है? यह भी सिखा और समझा रहे थे। हरि हरि।इससे मैं भी सीख रहा था। कुछ प्रेरणा प्राप्त कर रहा था। कुछ नहीं अपितु बहुत सारी प्रेरणा।मै भी पूरा प्रेरित हो चुका था और तैयार था। *सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज |* *अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श्रुचः || ६६ ||* *(श्रीमद्भगवद्गीता 18.66)* अनुवाद – समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूँगा । डरो मत । *सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज |* करने के लिए मैं तैयार था। पहले मेरी कई सारी योजनाएं और विचार थी, मेरी परिकल्पनाएं थी और खुद का मनोधर्म था। उस स्थान पर श्रील प्रभुपाद ने, उस उत्सव में, मुझ में मेरे मन में, मेरे ह्रदय प्रांगण में सही धर्म की और शाश्वत धर्म की स्थापना की। उस उत्सव में *धर्मसंस्थापनार्थाय* मेरे ह्रदय में, मेरे जीवन में, धर्म की स्थापना हुई। सभी लोग लाभान्वित हो रहे थे। मैं इतना कह सकता हूं, मैं सबसे ज्यादा लाभान्वित हुआ। सभी के लिए हरे कृष्ण उत्सव का आयोजन हुआ था। लेकिन मैं यह कह सकता हूं कि उत्सव का आयोजन तो मेरे लिए ही हुआ था। भगवान मुझे मुंबई लाये और मुंबई यूनिवर्सिटी का विद्यार्थी बनाया। इसके पीछे भगवान जो कठपुतली वाले हैं। *मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम् |* *हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते || १० ||* (श्रीमद्भगवद्गीता 9.10) अनुवाद – हे कुन्तीपुत्र! यह भौतिक प्रकृति मेरी शक्तियों में से एक है और मेरी अध्यक्षता में कार्य करती है, जिससे सारे चर तथा अचर प्राणी उत्पन्न होते हैं | इसके शासन में यह जगत् बारम्बार सृजित और विनष्ट होता रहता है | उनकी अध्यक्षता के अनुसार सब कुछ चलता है।उनहोंने मुझे सांगली से उठाकर मुंबई में रख दिया। ताकि यह जो क्रॉस मैदान में हरे कृष्ण उत्सव होगा मैं वहा जा सकू और अधिकतर लोगों को हरे कृष्ण उत्सव का पता चला ही था। फिर भगवान ने ऐसी योजना बनाई कि मुझ तक भी उस उत्सव का समाचार पहुंच गया। *तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् |* *ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते || १० ||* (श्रीमद्भगवद्गीता 10.10) अनुवाद – जो प्रेमपूर्वक मेरी सेवा करने में निरन्तर लगे रहते हैं, उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूँ, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं | भगवान बुद्धि देते हैं। हरि हरि। भगवान ने मुझे बुद्धि दे ही दी और मुझे इस उत्सव में पहुंचा ही दिया। ताकि क्या हो जाए? *ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते* ताकि यान्ति मतलब जाना और उप मतलब पास। मैं भगवान के अधिक पास और कृष्ण के पास जा सकता हूं। तो मुझे श्रील प्रभुपाद कृष्ण के चरणों तक तो ले ही गए। फिर बाकी सब होता ही गया। *तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया |* *उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः || ३४ ||* (श्रीमद्भगवद्गीता 4.34) अनुवाद – तुम गुरु के पास जाकर सत्य को जानने का प्रयास करो | उनसे विनीत होकर जिज्ञासा करो और उनकी सेवा करो | स्वरुपसिद्ध व्यक्ति तुम्हें ज्ञान प्रदान कर सकते हैं, क्योंकि उन्होंने सत्य का दर्शन किया है | मैं वहां पहुंचा और सही समय पर पहुंचा,जब प्रभुपाद वहां थे और उत्सव हो रहा था। मुझे श्रील प्रभुपाद का संग प्राप्त हुआ। मैंने श्रील प्रभुपाद की वाणी सुनी। भक्ति का दर्शन हो रहा था। मंच पर भगवान भी थे। राधा रासबिहारी भी थे और भी राधा कृष्ण के विग्रह थे। राधा कृष्ण के दो सेट थे। तो वैसे मुझे राधा रासबिहारी भी मिले। 1972 में, अगले वर्ष राधा रासबिहारी से जुडूंगा, उनका भक्त बनूंगा और और श्रील प्रभुपाद राधा रास बिहारी के मुझे प्रधान पुजारी बनाने वाले थे। वहां विग्रह भी थे और उनका दर्शन भी हो रहा था, कीर्तन हो रहे था। मैं सबसे अधिक प्रभावित कीर्तन से हो रहा था। प्रश्नोत्तर हो रहे थे। *परिप्रश्नेन* मैंने तो प्रश्न नहीं पूछे। लेकिन मेरे प्रश्न कुछ और लोग पूछ रहे थे। मानो वह मेरे ही प्रश्न थे। उनके उत्तर भी मुझे प्राप्त हो रहे थे और वहां पुस्तक टेबल भी था। जहां से मैंने छोटे ग्रंथ खरीदे थे। मोटे ग्रंथ की कीमत अधिक थी। मेरे पास बड़ी रकम नहीं थी। हमारे पास थोड़ी सी जेब खर्च हुआ करती थी। कुछ छोटे ग्रंथ जैसे भगवत दर्शन पत्रिका भी ली। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* इसको भी लिया था। इसे संपत्ति कहो या भगवान ही संपत्ति है। भगवान का दर्शन संपत्ति, भगवान के ग्रंथ संपत्ति और *गोलोके प्रेम धन* हरि नाम संपत्ति है। हम कुछ सुसंस्कृत भी हुए। हमारी संस्कृति भी हमारी संपत्ति है। संस्कृति हमारा धन है। मुझे कौन सी जीवनशैली अपनानी है यह भी निर्धारित हो रहा था। मैं अपना मन बना रहा था। श्रील प्रभुपाद को यह उत्सव होते-होते अंत तक मैंने गुरु रूप में स्वीकार कर लिया था। उनसे जो शिक्षा प्राप्त हुई थी, फिर उसी का परिणाम होता है दीक्षा। एक दिन दीक्षित भी होंगे। जैसे प्रभुपाद के शिष्य बनकर साधु बने हैं। मैं भी ऐसा ही बनना चाहता हूं। फिर ऐसा विचार आ रहा था कि उनकी जैसी जीवनशैली,, संस्कृति और विचारधारा मेरी भी रहेगी। जो वहां पर श्रील प्रभुपाद ने प्रस्तुत किया था। वह मुझे मंजूर था और मेरी श्रद्धा थी। मैं श्रद्धा से भी थोड़ा आगे ही पहुंच गया था। कुछ निश्चय और दृढ़ श्रद्धा या निष्ठा कहो। निष्ठा की ओर विचार बढ़ रहे थे। मतलब यहां से अब पीछे नहीं मुड़ना है। यू टर्न नहीं लेना है। ऐसा मेरा भी पक्का इरादा हो रहा था। ऐसे इरादों के साथ हम उस उत्सव से विदा लेते हैं। हरि हरि। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। श्री श्री राधा रास बिहारी की जय। श्रील प्रभुपाद की जय। 1971 क्रॉस मैदान हरे कृष्ण उत्सव की जय। अनंत कोटि वैष्णव वृंद की जय। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।

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