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15 अगस्त 2019 हरे कृष्ण प्रिय भक्तों, आज मैं लास वेगास से जपा कॉन्फ्रेंस कर रहा हूं, इंडिया के भक्तों के लिए यह जपा टाइम नहीं है। वैसे तो हमें सतत ही भगवान का नाम लेना चाहिए, जप करना चाहिए। नामनामकारी बहुधा निज सर्वशक्तिस्तरारपिता नियमित स्मरने न कालः... जैसा महाप्रभु ने बताया है जप के लिए कोई बहुत कठिन नियम नहीं है (महाराज जी वहां जपा कांफ्रेंस में साथ में जप कर रहे भक्तों को अपने पास बुलाते हुए इशारा करते हैं कि सभी थोड़ा थोड़ा आगे आ जाए) ...... मैं आपको बता रहा था कि जप के लिए बहुत कठिन नियम नहीं है लेकिन मैं यहां पर आप सभी को याद दिलाना चाहूंगा कि जप के लिए सबसे अच्छा समय ब्रह्म मुहूर्त है, जल्दी सुबह का समय....... यह समय सतोगुणी होता है, इसके बाद दिन का समय मुख्यतः रजोगुण से प्रभावित होता है, और रात्रि का समय मुख्य तमोगुणी होता है। इस प्रकार पूरे समय (दिन रात)को गुणों के आधार पर तीन भागों में बांटा जा सकता है प्रत्येक भाग में एक गुण की मुख्य रूप से प्रधानता होती है । जप का कार्य हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होना चाहिए क्योंकि मैं जानता हूं आप सभी बहुत व्यस्त लोग हैं।( हंसते हुए) जप के कार्य की वरीयता सबसे ऊपर होनी चाहिए, आप सभी के लिए मेरा यह सुझाव है कि आप दिन को 22 घंटे का ही समझे और इन 22 घंटों में आप खूब व्यस्त रहें। यह व्यस्तता आपकी पारिवारिक वचनबद्धता, वर्णाश्रम धर्म और अन्य भक्तिमय सेवाओं में हो सकती है। इसलिए आप 22 घंटों में इन सब उत्तरदायित्वों का निर्वाह करिए, परंतु शेष 2 घंटे में इनका कोई अस्तित्व नहीं है आपको इन 2 घंटे में केवल हरे कृष्ण महामंत्र का गंभीरता से जप करना है और कुछ भी नहीं...... आप दिन को दो भाग में अपने लिए बांट सकते हैं पहले 2 घंटे के भाग में जप और दूसरे 22 घंटे वाले भाग में (हंसते हुए )और ज्यादा जप, प्रवचन सुनना, प्रचार सेवाएं, पारिवारिक कर्तव्य पालन इत्यादि। यहां अमेरिका के लास वेगास में कल बलराम पूर्णिमा उत्सव मनाया गया, भारत में आप संभवततः आज यह उत्सव मनाएंगे । कल हमने पूरा दिन बलराम जी को याद करते हुए बिताया, उनकी गौरवमई लीलाएं और गाथाओं को सुना , सबने हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन किया; हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। बलराम जी आदि गुरु हैं वह प्रथम आध्यात्मिक गुरु हैं। भारत में लोग यह जानने के लिए उत्सुक रहते थे और ऐसा पूछते हैं कि आप हरे कृष्ण वाले जो हरे कृष्ण महामंत्र कहते हैं...... हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे राम हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे इसमें जो दूसरा भाग है हरे राम हरे राम ........ इसमें राम क्या श्रीराम के लिए है तो श्रीलप्रभुपाद कहते थे हाँ वो राम हैं, श्री राम हैं। प्रभुपाद ने यह भी बताया कि जो राम हैं वह बलराम हैं और हम यह शास्त्र की तकनीक से जानते हैं कि राम कृष्ण हैं और कृष्ण बलराम हैं वे दोनों एक दूसरे से अभिन्न हैं। बलराम ही कृष्ण हैं और कृष्ण बलराम हैं। प्रभुपाद कहते हैं कि बलराम 98 प्रतिशत कृष्ण हैं, अंतर बहुत कम है वह लगभग कृष्ण ही हैं। कृष्ण के जैसे ही हैं, इस प्रकार जप में हम बलराम को भी संबोधित करते हैं बलराम शब्द को अगर हम समझे तो बल और राम, हमे आध्यात्मिक बल बलराम से प्राप्त होता है। नायमात्मा बलहीन ना लभया... जैसा कहा गया है कि.. नायमात्मा... आत्मा का साक्षात्कार नही कर सकते ,या नही किया जा सकता बिना बल के बलहीन... अर्थात बिना बल के, बिना ताकत के... बलहीन ना लभया ना लभया का तात्पर्य है प्राप्त न करना, अर्थात बिना बल (आध्यात्मिक बल) के निश्चित ही कृष्ण का साक्षात्कार एवं आत्मसाक्षात्कार नही हो सकता। इस प्रकार हमे साक्षात्कार के लिए आध्यात्मिक बल की आवश्यकता होती है, आध्यात्मिक क्षमता की आवश्यकता होती है, और यही आध्यात्मिक बल एवं क्षमता हमे बलरामजी से प्राप्त होती है। वह हमारे आदि गुरु हैं, और उन्ही से हम गुरु परंपरा के माध्यम से अपने आध्यात्मिक गुरु के द्वारा आध्यत्मिक बल प्राप्त करते हैं । आध्यात्मिक बल के साथ साथ बलराम जी हमे राम भी प्रदान करते हैं राम का अर्थ है आनंद रमन्ति रमयन्ति इति राम:.... राम का ऐसा व्यक्तित्व है कि वह प्राकृतिक रूप से शाश्वत है , आनंदमयी है और वे दूसरों को भी आनंद प्रदान करते हैं क्योंकि वही समस्त आनंद के स्रोत हैं, और दूसरों के आनंद के भी वही एक मात्र कारण हैं। हा हा प्रभु नित्यानंद प्रेमानंद सुखी, कृपावलोकन करो अमी बड़ा दुखी..... यह बहुत ही प्रसिद्ध वैष्णव भजन की पंक्ति है इसमें बताया जा रहा है कि ओ नित्यानंद आप बहुत ही सुखी प्रतीत हो रहे हो, आप प्रेम के आनंद में सुखी हो । नित्यानंद प्रेमानंद है, बलराम प्रेमानंद है, दोनों एक ही हैं, बलराम होईल निताई... दोनों एक ही है नित्यानंद और बलराम,(महाराज जी नित्यानंद शब्द को प्रमुखता से बोलते हुए)//नित्यानंद // आनंदमयी हैं, बलराम आनंदमयी हैं। कृपावलोकन करो... (महाराजजी चुटकी बजाते हुए.....)मुझे देखो, मुझ पतित को देखो कितना दुखी हूं, कितना व्यथित हूँ। बडों दुखी.... यह कैसे हुआ, आप सुखी हैं और मैं दुखी!! नित्यानंद प्रभु मुझ पर भी कुछ दया करिए और हम बलराम जी से भी यह कह सकते हैं कि आप भी प्रेम के आनंद मैं सुखमणि है जब हम यहां वैष्णव भजन गाते हैं हमारा मन हमसे कहता है कि हमें भी खुश होना है हम भी खुश होना चाहते हैं। कुछ प्रेम हमें भी चाहिए और इसीलिए बलराम रमते रामायते च वह स्वयं आनंद में रहते हैं और दूसरों के आनंद का भी कारण है इसलिए हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे इसलिए जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का उच्चारण करते हैं तो हम कृष्ण और बलराम से प्रार्थना करते हैं ताकि हम भी सुखी हो सके, इसके अलावा अन्य कोई मार्ग नहीं है, सुखी होने का..... हरेर्नामेव केवलम कल हम बलराम जी का अविर्भाव दिवस सेलिब्रेट कर रहे थे, तब यहां पर दो भक्तों ने दीक्षा भी प्राप्त किया उन्होंने वैष्णव भजन गाया और सुना, जीव जागो जीव जागो गौरा चांद बोले.... हमने उनमे से एक को गौरचांद नाम दिया। उठो देखो गौरांग महाप्रभु बुला रहे हैं, वह पुकार रहे हैं, वह हर समय हमें पुकारते हैं, लेकिन हम सुनते नहीं हैं, हम सुनते हैं, और नहीं भी सुनते हैं, कभी नहीं भी सुनते हैं और यहां तक कि जब हम सुनते हैं तो हम वास्तव में अपना ध्यान नहीं लगाते हैं, और कुछ और ही सोचते रहते हैं कल हमने दो भक्तों को जगाया उन्होंने वास्तव में सुना इस महाप्रभु की पुकार को, गौरांग महाप्रभु बुला रहे हैं जीव जागो जीव जागो... जिन दो भक्तों की दीक्षा हुई उनमें से एक ने गौरचांद नाम ग्रहण किया जो कि साक्षीगोपाल प्रभु के बड़े बेटे हैं और वह ज्यादा बड़े नहीं हैं केवल 13 साल के हैं और उन्होंने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए, (हस्ते हुए )। उन्होंने तोड़ा या मैंने रिकॉर्ड तोड़ दिया उनको दीक्षा देकर, इतने कम आयु के भक्तों को दीक्षा दिया। केवल 13 साल के भक्त हैं वे, वह मेरे सबसे कम आयु के शिष्य बन गए और वहां पर उपस्थित सभी भक्तों ने उनकी सराहना की। मंदिर की अध्यक्षा मुख्य माताजी उनकी सराहना कर रही थी और यह हम सबके लिए आवश्यक है कि हम जागृत अवस्था में आए। दूसरी दीक्षा जो माताजी ने लिया वह 22 वर्ष की आयु की थी, और गुयाना से आई थी, वह रसानंदी राधा बनी उनके माता-पिता गुयाना से हैं, और उनका जन्म यहां नहीं हुआ है वह धर्मराज प्रभु की पुत्री है । दीक्षा का मतलब है शुरुआत तो इस प्रकार दूसरी माताएं भी बहुत सराहना कर रही थी कि इन 2 भक्तों ने कम से कम 16 मालाएं करने का वचन लिया और वह प्रेरणादाई थे। गुरुकुल के सभी लोग भी यहां थे, उनके आयु समूह के सभी मित्र उपस्थित थे। हार्दिक पटेल जो कि जपा कॉन्फ्रेंस में प्रतिदिन नियमित रूप से जप करते हैं , 8 घंटे की ड्राइव के बाद यहां पर सबका संग प्राप्त करने के लिए आए थे। विद्या जो कि मॉरीशस से हैं वह भी यहां पर थी उन्होंने ड्राइव तो नहीं किया लेकिन वह बहुत लंबी दूरी से हवाई जहाज के द्वारा आई थी, और कल की दीक्षा समारोह की प्रत्यक्ष दृष्टा बनी। जिन दो लोगों ने दीक्षा प्राप्त की वह सभी दोस्तों के लिए प्रेरणादाई थे। तो हम सभी इसके बारे में विचार कर सकते हैं और अपने जप को और गंभीर कर सकते हैं। गुणवत्ता की दृष्टि से गंभीर होना चाहिए और मात्रा की दृष्टि से पूरे 16 राउंड कम से कम जप होने चाहिए, ऐसा नहीं है कि मैंने गंभीरता से 4 राउंड किए हैं या 8 राउंड किए,( महाराज जी ने बहुत जोर देते हुए बोला ) नहीं कम से कम दिन में 16 मालाओ का जप करना है गंभीरता से, जप करने का मतलब है कि आप स्वयं की देखभाल कर रहे हैं, आप अपने आपको समझ पा रहे हैं । आप एक शुद्ध आत्मा हैं, जिसकी आप सदा से अवमानना करते आ रहे हैं, यह जीव जागो आत्मा को जागृत करने के लिए बोला जा रहा है, यहां श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने आत्मा को जागृत करने के लिए बताया है, वह कहते हैं जीव जागो ऐसा गौरा चांद बोल रहे हैं। अगर हम गंभीरता से अपनी देखभाल कर रहे हैं,---अपनी देखभाल करने का तात्पर्य केवल शरीर नहीं, किंतु हम एक आत्मा है। आत्मा को हमें हरे कृष्ण महामंत्र का जप करके संतुष्ट करना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम अपनी आत्मा के लिए हरे कृष्ण महामंत्र की खुराक सही से दे रहे हैं और इसी प्रकार केवल हम अपनी आत्मा को तृप्त कर सकते हैं। यह आत्मा उसे ग्रहण करती है और पोषित होती है। हम सभी जप तो कर रहे हैं लेकिन उसे सुन नहीं पा रहे हैं, हम जप करते हैं लेकिन वास्तव में हमारा मन जप में नहीं रहता, मन कहीं और ही होता है हम अपने राउंड करते रहते हैं पहला राउंड, दूसरा राउंड और इस तरीके से साथ ही साथ हमारा मन भी इस संसार के कार्यों में राउंड करता रहता है। हमें अपने मन को जप में स्थिर करना होगा मन को इंद्रियों से हटाकर जप मे लगाना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा, कि हम अपने जप को सुन पा रहे हैं और भगवान को याद कर पा रहे हैं। भगवान को उनके गुण, लीला, धाम के रूप में याद कर सकते हैं। जब माता को अपने छोटे बच्चे को भोजन देना होता है, तो कुछ बच्चे खाने के लिए अपना मुंह नहीं खोलते हैं, वह मुंह खोलने का मात्र दिखावा सा करते हैं लेकिन अपने जबड़ों को तेजी से कस लेते हैं हम सभी ने ऐसा देखा है, जब माता को किसी भी प्रकार से अपने बच्चे को भोजन देना होता है तो वह उसका ध्यान भोजन से हटाकर कैसे भी भोजन भर कर चम्मच को होठों के बीच में लाकर उसे भोजन देती है, और यह सुनिश्चित करती है कि भोजन उसके मुंह में जा पाया है कि नहीं, यहां पर बहुत सारी माताएं मुझसे सहमत होंगी, बहुत सारे बच्चों के साथ आपने ऐसा देखा होगा। यहां तक कि जब माताएं भोजन को उसके मुंह में पहुंचा देती हैं तब भी वह (बच्चा)इसे निगलता नहीं है और माताओं को अभी अपने बच्चों के साथ प्रयास करते रहना पड़ता है,और यह सुनिश्चित करना होता है, कि उसने मुख का भोजन निगल लिया है या नहीं, पेट में यह भोजन पाचित होने के उपरांत हमें ऊर्जा देता है, और हम अपने सभी कार्यों को सुचारु रुप से कर पाते हैं। इस प्रकार यह जप करने की प्रक्रिया में हमारा मन एक अवरोध उत्पन्न करता है। यह मन उसी प्रकार से अवरोध देता है, जिस प्रकार किसी छोटे बच्चे को भोजन कराते समय उसके दांत और होंठ अवरोध देते हैं। यहां तक कि बच्चे के मुंह में भोजन आ भी जाता है वह इसको मुंह में ही रखता है उसे पेट में नहीं जाने देता है उसी प्रकार मन भी हमारा शत्रु है। आत्मैव हि आत्मनो बंधुर आत्मनेवा रिपुरात्मनः... भगवान भगवत गीता के छठे अध्याय में अष्टांग योग की व्याख्या करते हुए बताते हैं कि मन हमारे लिए शत्रु या मित्र दोनों ही तरह से व्यवहार कर सकता है, इसलिए हमें अपने मन को मित्र बनाना चाहिये। उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् ।आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।। (6.5) भगवान कहते हैं, उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्.... ईस श्लोक के पहले भाग में भगवान ने केवल आत्मा शब्द को 3 बार कहा है, आत्मा, आत्मा और आत्मा। यहाँ आत्मा शब्द आत्मा के साथ साथ मन और बुद्धि के लिए भी प्रयोग किया है। आत्मैव हि आत्मनो बंधुर....-आत्मा , आत्मा का मित्र है, यहां पर पहला आत्मा शब्द आत्मा(स्पिरिट सोल ) के लिए कहा गया है, आत्मैव हि आत्मनो बंधुर.... यह मन(आत्मा) आत्मा का मित्र भी बन सकता है, या आत्मैवरिपुरात्मनः मन जो कि आत्मा है, आत्मा का शत्रु भी हो सकता है। तो यहाँ पर कृष्ण एक आत्मा को स्पिरिट सोल (आत्मा) और दूसरा , मन को भी आत्मा कह रहे हैं। इस श्लोक मे बुद्धि को भी आत्मा ही कहा गया है। एक आत्मा दुसरी आत्मा की प्रगति में सहायक है, एक आत्मा से दूसरी आत्मा को उद्धरित (एलिवेट) करना चाहिए, उद्धरेद... उद्धार करो, उद्धरेदात्मनात्मानं तुम अपनी आत्मा का उत्थान दूसरी आत्मा से करो, जो कि तुम्हारा मन है, तुम्हारी बुद्धि है। अपने मन के द्वारा (जो कि दैवी बुद्धि के द्वारा नियंत्रित हो ) अपनी आत्मा का उत्थान करो, और उसे नित्य भगवान की सेवा में लगाओ।(मोक्ष प्राप्त करो) आत्मा को हम नियंत्रित मन और दैवी बुद्धि के साथ उत्थान की और ले जा सकते हैं, मन को नियंत्रित करने वाला यह बुद्धि ही है। इस प्रकार यहां पर 3 आत्मा शब्दो का प्रयोग किया गया है: सोल-आत्मा मन-आत्मा बुद्धि-आत्मा इन सबसे ऊपर परमात्मा है, भगवान कहते है, ददामि बुद्धियोगं तं मैं सभी को बुद्धि प्रदान करता हूँ। भगवान बुद्धि देते हैं, और इस दैवी बुद्धि से हम अनियंत्रित मन को नियंत्रण में कर सकते हैं। मन ही आत्मा है। मन एव मनुष्यानाम कारनाम बध्धह मोक्षयोः जब मन शत्रु की तरह व्यवहार करता है तब हम बंधन में फस जाते हैं और जब यह मन हमारे मित्र की भांति व्यवहार करता है तो हम मुक्त हो जाते हैं, मन ही मुक्ति और बंधन का कारण है । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे इसलिए हम कहते हैं कि जप सफलतापूर्वक करना एक बुद्धिमान व्यक्ति का ही कार्य हो सकता है, क्योंकि बुद्धिमान व्यक्ति ही तल्लीनता से सही तरीके से, शुद्धता से, जप कर सकता है इसलिए यह बुद्धू का काम नहीं है। एक होता है बुद्धू और दूसरा होता है बुद्धिमान....... यही कारण है कि बलराम जी ने गधा असुर,धेनुकासुर का वध किया, गधा एक बुध्धू जानवर समझा जाता है, और इसीलिए वह सदैव कठिन परिश्रम में लगा रहता है, उसके चारों तरफ घास ही घास होती है और उसे घास खाने के लिए इतनी अधिक परिश्रम की जरूरत नहीं है, लेकिन फिर भी वह कठिन परिश्रम करता है अपने मालिक, सरकार और कंपनी (जिसके लिए हम काम कर रहे हैं) का भारी बोझ उठाता है घास पाने के लिए, यह बिल्कुल ही गधा मानसिकता(अस्स मेंटेलिटी) है, बलराम जी हमारे अंदर के धेनुकासुर का वध करते हैं, वह हमारे आदिगुरु हैं। बलराम की कृपासे उन्ही के माध्यम से गुरु हमारे अंदर के छुपे हुए गधे (जिसके कारण से हमने अपने अंदर गधा की मानसिकता विकसित कर रखी है ) को मारते हैं। गधा कठिन परिश्रम करने के साथ साथ संभोग में भी बहुत ज्यादा आसक्ति रखता है। वह सदैव गधी के पीछे दौड़ता है, हमारे iskcon वृन्दावन (कृष्ण बलराम मंदिर) के दीनबंधु प्रभु बलराम जी और धेनुकासुर वध लीला को बहुत अच्छे से बताते हैं, की कैसे एक गधा ,गधी के पीछे दौड़ता है जबकि यह भी हो सकता है कि पास पहुचने पर गधी उसके मुंह पर जोरदार लात ही क्यों न मारदे, लेकिन फिर भी गधा उससे दूर नही रहता,वह लगातार प्रयास करता रहता है, बार बार प्रयास करता रहता है और भोग सुख के लिए लात पर लात खाता रहता है। भगवान कृष्ण भी धेनुकासुर को मार सकते थे, लेकिन उन्होंने यह मौका बलराम जी को दिया क्योंकि वह सभी गुरुओ को यह शिक्षा देना चाहते हैं की सभी गुरुओ को भी अपने शिष्यों को उनके भीतर की गधा मानसिकता से छुटकारा दिलाना है। इसीलिए हम हरे कृष्ण महामंत्र जप को बुद्धिमानो का कार्य बता रहे हैं ना कि किसी बुद्धू का, और जब तक हम गधे की मानसिकता में रहेंगे, हम प्रगति नहीं कर सकते, और इस प्रकार से हम गलत पथ पर जाते रहेंगे और बंधन में फंसेगे । हमें बुद्धिमान होना चाहिए भगवान किस को बुद्धि देते हैं? ऐसा नहीं है कि वह बुद्धि मुफ्त में ही प्रदान करते हैं वह कहते हैं तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् , ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते जो प्रेम पूर्वक मेरी सेवा करने में निरंतर लगे रहते हैं, उन्हें में ज्ञान प्रदान करता हूँ, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं। जो भगवान की सेवा करने का प्रयास कर रहे हैं वे ही भगवान की निरंतर सेवा करना चाहते है... सतत युक्तानाम और प्रीति पूर्वकम.... वे भगवान के लिए प्रेम विकसित करना चाहते हैं वे भक्ति और श्रद्धा के साथ सेवा करना चाहते हैं। बाइबिल में बताया गया है भगवान को पूरी श्रद्धा के साथ प्रेम करो कृष्ण भी कहते हैं कि भगवान को पूरी श्रद्धा के साथ प्रेम करो साधन भक्ति में भक्तिमय सेवा और हरे कृष्ण महामंत्र जप मुख्य सिद्धान्त है, और जो पूरी श्रद्धा से भगवान की भक्तिमय सेव करते हैं, भगवान उनको बुद्धि प्रदान करते हैं। इस कलियुग में भक्ति का मुख्य अंग नाम जप है, इसके अलावा और कोई दूसरा साधन नही है। हमारा लक्ष्य है येन मामुपयान्ति ते-वो मुझे प्राप्त करेंगे। भगवान के धाम को प्राप्त करना है जहाँ कृष्ण और बलराम की शाश्वत लीलाये संम्पन्न हो रही है। इस संसार मे हम सभी साधना भक्ति कर रहे हैं, जो हमें शुद्ध करके अपने स्वरूप में वापस लाएगी और तब हम अपने शाश्वत निवास में चले जायेंगे जहां से इस संसार में आये थे। हरि हरि जय बलराम परम पूज्य श्रील लोकनाथ स्वामी महाराज की जय

English

15th August 2019 CAST OFF THE ASS LIKE MENTALITY For you this is not Japa time, but you could also be chanting all the time. What did Mahaprabhu say? - namnamkari bahuda nija sarva shaktis tatra arpita niyamita smaranen kalaha. So there is no hard and fast rule about chanting. Here I am talking to you, sitting with several devotees. We are in Alachua. New Ramanreti, Krishna-Balaram temple, America. We did a little Japa with the devotees assembled here and while talking to you all on this conference, some are also around me here. So there is no hard and fast rule with regard to the time, but of course we have been emphasising and reminding all you chanters that the best time for chanting is Brahma muhurta. The morning of the day is the time in the mode of goodness. Day time is passion. Rajo Guna becomes prominent and night time is supposed to be reserved for ignorance. Like this, the day is divided into three parts and the three modes are dominant in each one of those. So we should attempt with all effort to chant. Get up and the first thing you do is chanting. I know you all are busy people. My advice is that you should consider that the day has only 22 hours for you. You could stay busy for 22 hours in different things and devotional services or family obligations also, which is part of your Varnasrama responsibilities. To take care of those you have 22 hours, but the other 2 hours they don't exist for doing anything else but chanting of maha-mantra. You could divide your day like that in two parts, two hours for chanting and 22 hours for more chanting and more serving, hearing and taking care of other different obligations. Here in Alachua we celebrated Balaram Purnima yesterday. I think in India , you are celebrating that today. We spend the day remembering Balarama, chanting and hearing his glories. Also chanting Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare Lots of Hare Krishna and some more chanting also. Balaram also did many things. He is Adiguru, the first spiritual master. When we chant Hare Krishna the next part is Hare Rama. Prabhupada would say that this 'Hare Rama Hare Rama' also refers to Balarama. In India people are interested to know about this Hare Rama that we chant. Whether it is Jay Sri Rama or what? Prabhupada would say , “Yes, and 'Hare Rama Hare Rama' refers to Balarama. Technically we know this Hare Rama is Krsna, but then Krsna is Balarama and Balarama is Krsna. They are non-different. Balarama is as good as Krsna. He is almost Krsna. Srila Prabhupada said that, and we also said yesterday, He is almost there. He is there. He is Krsna. So chanters of the maha-mantra of course remember Balarama while chanting 'Hare Rama Hare Rama' part. Balarama from the name itself is Bala and Rama. We get strength, spiritual strength from Balarama. nayam-atma  bala-hinena  labhyo na  =  not;ayam  =  this; atma  =  Paramatma; bala-hinena  =  by  the  weak  ( in  spirit ); labhyah  =  is  attained (MUNDAKOPANISHAD : CHAPTER-3. SECTION-2. MANTRAM-4) It says na ayam atma - atma can be realized, but the soul can't be realized, become God realized, Krsna realized , without strength. na bala hinena - you are devoid of Bala - strength. na labhyo - you can't attain self realization, Krsna realization. So we need this Bala,strength to realize the lord. That strength comes from Balarama. He is also Adiguru. It comes from Balarama and then through our spiritual master it reaches us. So we get spiritual strength from Balarama. Rama means pleasure,joy. ramati ramayati ca iti ramah Rama is that personality who is joyful in nature. He enjoys-: ramati ramayati ca, ca means. ' and' He becomes the cause of others’ pleasure. ha ha prabhu nityananda, premananda sukhi kripabalokana koro ami boro duhkhi The famous prayer statement, says, ha ha prabhu nityananda, premananda sukhi. You seem to be sukhi, happy and full of premananda. So whether Nityananda or Balarama is premananda sukhi. is same. Balarama hai Nitai. Balarama has become joyful. But then the song says, look at me, poor me. I am miserable. - boro dukhi. That's not fair. You are sukhi and I am dukhi. So do something for me too Nityananda Prabhuji. We also say this to Balarama by addressing Him as You are premanande sukhi. When we sing this song,our mind says me too! I would like to be Happy. Some Prema for me also. That is what Balarama has ramati ramayati ca. He enjoys Himself and He becomes the cause of others enjoyment. So Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare We chant Hare Krishna mahamantra and in the prayer unto Krishna and Balarama so that we could be happy, and there is no other way to become Happy. harer namaiva kevalam Yesterday as we were celebrating Appearance Day of Balarama, we gave initiation to some souls. They heard, Jiva Jago Jiva jago Gauracand bole. We gave him the name Gauracand. Please wake up. Gauranga Mahaprabhu is calling. He has been calling. He is calling all the time. We don't listen, or we listen and not listen. Even if we listen we don’t pay attention really and think of something else. Yesterday we woke up two souls They really heard the wake up call. Gauranga is calling Jiva Jago Jiva jago. They were initiated. One became Gauracand - Sakshi Gopal Prabhu's elder son is not very old. He is only thirteen years old. He broke all the records. He broke or I broke the record by initiating such a young man - only thirteen years old. He has become my youngest disciple and then he was appreciated by devotees assembled here. Temple president , Mukhya mataji was appreciating them. That of course is about whether we also woke up . Other one is twenty-two, took some extra time and she became Rasanandi Radha, from Guyana. She is not born here. Her parents are from Guyana. She is Dharmaraj Prabhu's daughter. She also took initiation. Initiation means initiated . So the other mataji was appreciating that these two souls have taken this commitment of chanting the prescribed number of rounds. They are exemplary. The whole Gurukul was also here. Friends also from their age groups. They were associating. Hardik Patel who chants regularly on this conference has travelled a long distance driving for eight hours. to catch up with us. Vidya is from Mauritius. She also is here. She didn't drive, but she flew long distance to join us. She was also a witness of yesterday's initiation. Two of them took initiation, which is an example for others. So think about it and take to the chanting seriously. Quality wise seriously and quantity wise sixteen rounds minimum of all rounds. Not that I chanted four rounds seriously , I have taken it seriously. I have chanted four rounds seriously or eight rounds seriously. No! No! Minimum sixteen rounds at that time of the day. Chanting seriously means you are taking care of yourself. You have understood yourself. The spirit soul is being yourself which you had been neglecting for a long, long time. So this Jiva Jago is wake up soul. We don't say wake up body. Time to go to work. Even after telling them , as Bhaktivinoda Thakura has given the wake up call. He says Jiva Jago Jiva jago Gauracand bole. This wake up call is for Gauracanda. If we are serious in taking care of ourselves - self is not the body, but the soul. We feed the soul by chanting Hare Krishna Hare Krishna. We are connecting the soul. Make sure that we feed it properly. Make sure we trying to feed the soul, but are we feeding it properly. The soul is consuming, or swallowing it. We are chanting, but we are not listening. We are chanting, but our mind is really not into chanting. Mind is off. We are doing our rounds. Round after round, one round done, second round and in between the mind makes so many rounds around the world. We have to do this thing, fixing our mind on chanting Bringing the mind back from the senses and making sure you are hearing and then thinking and remembering the Lord. Remembering Lord's form, qualities abode and like that. When the mother has to feed the child , some children don’t even open their mouth. He is pretending to open, but the jaws are still tight. We have seen this. Then the mother somehow feeds the child, distracts the child from the task of opening the mouth and somehow with the spoon holding in between the lips tries to make the space. Then she has to make sure that food reaches the mouth. There are many mothers here who will agree. So many babies you have seen. Even if the food is in the mouth the child doesn't swallow it. She still keeps working on the child. The baby has to swallow it. And when it is in stomach, it also has to be assimilated. Once it is digested then it becomes part of your system and that is what gives you strength, energy. Then you could function in your lively way. So for this process of chanting and hearing, our mind is always a stumbling block. The mind comes in the way like that child's body comes in the way. Child's lips, teeth come in the way. Child's mouth also may come in a way. Child's food in the mouth and he is holding it and it is not going down to the stomach. Likewise Mind is 'anti', Your enemy. atmaiva hy atmano bandhur atmaiva ripur atmanah The Lord has explained this in the sixth chapter of Bhagavad-Gita where he is talking about astanga yoga. It applies to us. Krsna says your mind can act like your enemy, it can also act like your friend, so make your mind friend. uddhared atmanatmanam natmanam avasadayet atmaiva hy atmano bandhur atmaiva ripur atmanah (BG 6.5) Lord's advice is uddhared atmanatmanam. Throughout this particular statement the Lord is only saying atma, atma, atma, that each of these atma refers to the soul, refers to intelligence also as atma, refers to the mind also as atma. atmaiva hy atmano bandhur- atma is friend of atma. Here first atma is atma, spirit soul. atmaiva hy atmano bandhur. This atma - mind could be the friend of the soul, or atmaiva ripur atmanah - the mind which is atma could be the enemy of atma - soul. So one Atma is atma and other atma which Krsna talks about is the mind . Intelligence is also atma. One atma should lift the other atma. So this atma - soul should be lifted. Uddhared - uddhar karo, lift! uddhared atmanatmanam- You lift the soul(atma) with the other atma, that is the mind and intelligence. With the help of the mind which is governed by divine intelligence, you lift the soul. The soul has to be lifted and the soul has to be liberated. The soul could be lifted by the controlled, purified mind with intelligence. What governs or controls the mind is intelligence. So the three atmas are: soul -atma mind - atma intelligence - atma Above all, there is Paramatma. Lord says,” I give atma, I give intelligence. dadami buddhi-yogam tam (BG 10.10). I give intelligence. Lord gives intelligence. With the help of that divine intelligence we can control our otherwise uncontrollable mind. Mind is soul. Mana eva manushyanam karanam bandha mokshayoho When the mind acts like your enemy then bandhan, bondage, you are conditioned. And when the mind acts as our friend then our soul becomes free from bondage. Mind is the cause of bondage and liberation. Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare. So while we say that to chant successfully is a job of an intelligent person. Buddhiman person could chant attentively, properly, purely and fiercly . So ye buddhu ka kama nahi hai. Ek hota hai buddhu. and the other is buddhiman. That's why Balarama killed the ass demon. Dhenukasur. Otherwise the ass is known to be dull headed and that is why he works so very hard. Although the grass is everywhere and it doesn't require much labor to get the grass, he feels he must work very hard, carry a big load of my boss, government or company for which I am working, to get the grass. This is one mentality of the ass. Working hard mentality. Balarama killed the ass demon. He is Adi-guru. This is the Guru's business on behalf of Balarama, the ass that is hiding within us because of which we have developed ass like mentality has to be killed. The ass works very hard that's one thing, but the ass is also attached to sex life. He always runs after the she ass or the he donkey runs after the she donkey. Our Deenabandhu Prabhu , ISKCON panda from Krishna Balaram temple Vrindavan describes this Dhenukasur past time. He describes it in a very interesting way. How the ass is running after the she ass and she ass may give the he ass a kick on his face, but he ass doesn't go away. He persists and tries again. Another attempt to enjoy and another kick. Kick after kick just to enjoy the sex pleasure. Ass is also known for working hard and sex life. So Krsna could have killed that ass, but he let Balarama kill him to set an example for all the guru's, that you have to also get rid of the ass like mentality. We were talking of chanting as being the job of buddhiman and not buddhu. As long as we stay or maintain the ass like mentality, then we can't progress. We will be going the wrong way and that leads to bondage. We have to become intelligent. To whom does Lord gives intelligence? He doesn't distribute it like free cookies. He says I give such intelligence : esam satata-yuktanam bhajatam priti-purvakam dadami buddhi-yogam tam yena mam upayanti te To those who are constantly devoted and worship Me with love, I give the understanding by which they can come to Me. (BG 10.10) Those who are endeavouring to serve the Lord, they want to serve Lord, satata-yuktanam and priti- purvakam. They want to develop love for the Lord. You want to serve, with love and devotion . The Bible says, ' Love thy Lord with all thy strength'. Krsna also said, 'Love thy Lord with all thy strength.' in sadhana bhakti, devotional service, chanting is the primary principal. This is devotional service. Those who are serving the Lord like that, to them the Lord gives intelligence. We did some service and the Lord gave some intelligence. Then he served more. By seeing that service , the Lord gave more intelligence and like that. So part of that service is the chanting service specially in this age of Kali. There is no other way . The goal is - yena mam upayanti te. They will come back to Me. Come back to Godhead where Krsna and Balarama are performing the pastimes eternally. Here we do sadhana bhakti in this world and then when we become perfect, eligible, then we return to the place from where we have come.

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